Thursday, November 3, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

किन राहों से दूर है मंजिल, कौन सा रास्ता आसां है
हम भी जब थक कर बैठेंगे, औरों को समझाएंगे
भाजपा के वरिष्ठï नेता लालकृष्ण आडवाणी की छठवीं रथ यात्रा निकल चुकी है। यह रथयात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ पहुंचेगी। आडवाणी साहब की यह रथयात्रा भ्रष्टïाचार के खिलाफ कालाधन की वापसी और नये भारत के निर्माण को लेकर शुरू की गई है। यह रथयात्रा 23 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों में घूमेगी। लेकिन इस बार यह रथयात्रा न तो अयोध्या की तरफ गई है और न ही इस बार सोमनाथ मंदिर गुजरात जाएगी। वैसे आडवाणीजी रथयात्रा के जनक कहे जाते हैं। 1990 से अभी तक 2011 यानि 21 साल में उनकी यह छठी रथयात्रा है।
सन् 1990 के दशक में आडवाणी जी ने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण के लक्ष्य को लेकर गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक 25 दिसबर 1990 को निकाली थी। हालांकि उस रथयात्रा में उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला था पर बिहार के तत्कालीन मुयमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरतार करके यह यात्रा पूरी नहीं होने दी थी।
हालांकि इस यात्रा के बाद भाजपा के वोट बैंक में अप्रत्याशित वृद्घि हुई और वह दूसरे नंबर की पार्टी देश में बन गई। 1997 में लालकृष्ण जी ने स्वर्णजयंती रथ यात्रा निकाली, उनकी छवि एक व्यापक जनाधार वाले नेता के रूप में उभरी। 1998 में केन्द्र में गैर कांगे्रसी सरकार बनी थी। यह बात और है कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन सरकार मात्र 13 दिन ही शासन कर सकी।
1999 में भाजपा ने 23 दलों वाली गठबंधन सरकार रही, आडवाणी जी इस सरकार में उपप्रधानमंत्री बने। एनडीए सरकार ने समय पूर्व चुनाव की घोषणा कर दी। 2004 में आडवाणी जी ने भाजपा नीत सरकार की उपलब्धियों को लेकर तीसरी बार भारत उदय यात्रा (इंडिया साइनिंग) निकाली पर भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार केन्द्र में सरकार नहीं बना सकी। आडवाणी जी ने 2006 में 'भारत सुरक्षाÓ नाम से चौथी रथ यात्रा निकालकर कश्मीर की सुरक्षा और आतंकवाद के मुद््दे को जमकर उठाया पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। 2009 में
लालकृष्ण आडवाणी ने 'जनादेश यात्राÓ निकाली जैसे भाजपा ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री का उमीदवार घोषित कर ही दिया था। इस यात्रा में आडवाणी ने महंगाई, भ्रष्टïाचार, विदेश में कालाधन आदि को मुद्दा बनाकर जनादेश मांगा था पर उस यात्रा के बाद चुनाव में एनडीए गठबंधन बुरी तरह पराजित हुआ वहीं भाजपा की भी लोकसभा में संया घट गई थी।
आडवाणी की छठवीं यात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में पहुंचेगी। लोगों का कहना है कि अटलजी ने नया छत्तीसगढ़ राज्य दिया और उसके बाद के पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा की लगातार दो बार सरकार बनी है। लोकसभा की 11 में 10 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी की जीत दो लोस चुनावों में होती रही है तो अब आखिर आडवाणी जी से क्या उमीद रखते है। छत्तीसगढ़ के लोगों ने तो 11 में 10 लोस सीटों पर भाजपा की जीत दिलाकर आडवाणी जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में अपनी एक तरह से सहमति ही दे दी थी पर
अन्य राज्यों की जनता यदि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में रुचि नहीं ली तो हम कहां दोषी हैं।

एस्सार के सरकारी मददगार!

छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के नाम पर एस्सार स्टील कंपनी के एक-दो अफसरों, एक ठेकेदार, एक आदिवासी महिला के पीछे पड़ गई है पर अपनी ही सरकार में एस्सार प्रबंधन को मदद पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है यह सवाल अब उठना शुरू हो गया है।
एस्सार का एमओयू समाप्त होने के बाद लगातार एमओयू बढ़ाने के पीछे उद्योग विभाग का कौन मददगार है, एस्सार द्वारा वन क्षेत्रों में पाइप लाइन बिछाने से वनों का विनाश ही हुआ है, पर वन विभाग मौन है, एस्सार ने 5 लाख पौधों का रोपण किया है कहां किया है इसका पता वन विभाग को भी नहीं है। किरदुंल में बेनीफिकेशन प्लांट लगाने 85 एकड़ भूमि आदिवासियों से अधिग्रहित की गई उन्हें मुआवजा मिला कि नहीं, नौकरी मिली कि नहीं इसकी चिंता किसी को नहीं है।
सिंचाई सुविधाओं से वंचित तथा गर्मी में पेयजल के लिये मोहताज होने वाले दक्षिण बस्तर के आदिवासियों की चिंता भी जलसंसाधन विभाग को नहीं है। शबरी नदी के जल से अपनी स्लटी पाइप लाइन योजना से रोज 30 हजार टन लौह अयस्क चूर्ण का परिवहन पानी के दबाव से एस्सार कपंनी करती है। कंपनी ने अपनी अनुबंध में 45 पैसे प्रतिघन मीटर की दर तय की थी पिछले वर्ष 2010 में यह रकम 2 रुपए हो गई है। पहले की तरह आज भी एस्सार प्रति घंटे 10 लाख 6 हजार का चैक जल संसाधन विभाग को देती है। यह भी औसत खपत के आधार पर भुगतान होता
है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि एस्सार निर्धारित या तय पानी ही लेता है आज तक जल संसाधन विभाग ने यह जांच करने का प्रयास नहीं किया कि एस्सार प्रबंधन कुल कितने घन मीटर पानी का उपयोग करता है। सवाल यह भी है कि कुल कितना पानी का उपयोग एस्सार प्रबंधन ने किया इसकी जानकारी न तो एस्सार प्रबंधन ने दी और न ही जल संसाधन विभाग ने लेने की जरूरत समझी। आखिर क्यों? छत्तीसगढ़ शासन ने एस्सार प्रबंधन को साढ़े 4 लाख घन मीटर पानी प्रतिमाह दिये जाने की अनुमति दी है और एस्सार उतने ही पानी का भुगतान करता है न तो किसी माह
कम पानी का उपयोग किया है और न ही किसी माह अधिक पानी का? नक्सलियों द्वारा पाइप लाइन उड़ीसा में प्रभावित करने के कारण कुछ महीने परिवहन प्रभावित रहा था उस दौरान एस्सार प्रबंधन ने करार के अनुसार पानी लिया है या नहीं इसका भी खुलासा नहीं हो सका है।
इधर एमओयू की शर्तों के मुताबिक आसपास के 10 गांवों में आधारभूत सुविधाएं मसलन स्कूल, अस्पताल, सड़क पेयजल की व्यवस्था एस्सार प्रबंधन को करनी थी, पर ऐसा कुछ नहीं किया गया है फिर भी एमओयू की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है। क्या एस्सार को छत्तीसगढ़ शासन के अधिकारी- राजनेता मदद नहीं कर रहे हैं यदि यह एस्सार को मदद है तो ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने की भी छत्तीसगढ़ सरकार को हिमत जुटानी चाहिये?

महापुरुषों के चयन में भी संकीर्णता!

छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम अपनी कारगुजारी को लेकर काफी चर्चा में है। 2 लाख रुपए मासिक किराये पर कार्यालय लेकर पाठ्य पुस्तक वितरण, कागज की खरीदी, जरूरत से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन और जबरिया वितरण को लेकर चर्चित पापुनि ने शिक्षा विभाग सहित अनुसूचित जाति/जनजाति विभाग से 100 प्रतिशत राशि वसूलने के मामले की जांच शुरू हो चुकी है। कहा जाता है कि 15 प्रतिशत प्रकाशित मूल्य से कम कीमत में पुस्तक वितरण के आदेश का यहां कुछ सालों से सीधा-सीधा उल्लंघन हो रहा है। वहीं पापुनि ने 10
महापुरुषों के लेमिनेटेड फोटोग्रास प्रायमरी, मिडिल, हाई स्कूल तथा हायर सेकेण्ड्री स्कूल में वितरण करने को लेकर फिर चर्चा में है। पापुनि ने न जाने किस की सलाह पर रानी दुर्गावती, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद, रविन्द्रनाथ टैगोर, सर्वपल्ली, राधाकृष्णन, डॉ. भीमराव अबेडकर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को ही महापुरुष माना है। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, प्रथम राष्टï्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री जैसे देश के इतिहास पुरुषों को पता नहीं किसकी सलाह पर महापुरुष नहीं माना, वहीं छत्तीसगढ़ के कई समाज सुधारकों को भी इस योग्य नहीं माना है। सवाल यह उठ रहा है कि करोड़ों खर्च करने वाले पापुनि के अफसर चाहते तो 10 की जगह 15 या 20 महापुरुषों के फोटो ग्रास भी स्कूलों में भिजवा सकते थे पर लगता है कि कुछ महापुरुषों के कांगे्रस से नाता होने के कारण तथा प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण कुछ अफसरों ने संर्कीणता की परिचय देकर कुछ महापुुुरुषों की उपेक्षा ही नहीं की बल्किï भावी पीढ़ी को भी इन महापुरुषों से दूर करने की एक तरह से साजिश ही रची है। जहां तक पापुनि की कार्यप्रणाली की बात है तो लोक आयोग तक शिकायत पहुंचना और वहां प्रकरण दर्ज कर जवाब तलब करना ही सभी कुछ स्पष्टï करने काफी है।
दीपावली का तोहफा मिला पटेल को
प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल काफी खुश हैं। उनकी खुशी का एक बड़ा करण यह है कि प्रदेश में कार्य समिति के गठन के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने किसी भी बड़े नेता को मुलाकात का समय नहीं दिया। वहीं शनिवार को न केवल उन्हें मुलाकात का समय दिया बल्कि छत्तीसगढ़ में भी जल्दी आने की सहमति भी दे दी है। साथ ही श्रीमती सोनिया गांधी के निर्देश पर कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा न ेपटेल को नई वाहन खरीदने सवा 9 लाख का चेक भी दे दिया है। 16 साल बाद नये वाहन का कांगे्रस भवन में बल्कि होना अब तय माना जा रहा है।

और अब बस
(1)
प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठï आईएएस अफसर एक हाईपावर कमेटी के सामने प्रस्तुत नहीं हुए। जूनियर अफसर के अनुसार साहब प्रशिक्षण हेतु मसूरी गये हैं, बाद में स्वयं साहब ने बताया कि वे विदेश यात्रा पर हैं?
(2)
संस्कृति विभाग का बजट जस का तस है पर सांस्कृतिक आयोजन बढ़े हैं इससे एक छोटा अफसर हमेशा तनाव में रहता है।

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