Monday, August 27, 2012

उजियारा बेइमान हो गया
अंधियारे का मेहमान हो गया
जिंदगी की नाव चलेगी कैसे
हर कतरा तूफान हो गया

च्कोयले की दलाली में हाथ कालाज् यह कहावत अब चरितार्थ होते दिखाई दे रही है। केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार से लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार के दामन पर भी भ्रष्टाचार के छीटे पड़े हैं। भाजपा नेता कांग्रेस सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधकर उनसे इस्तीफा मांग रहे हैं तथा संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं लने दे रहे है तो कोयला नीति पर कांग्रेसी भाजपा की राज्य सरकारों पर आरोप मढ रहे हैं क्योंकि इन राज्य सरकार के मुखिया ने कोयला आबंटन नीति में परिवर्तन नहीं करने का आग्रह पत्र भेजा था। कैग की रिपोर्ट को लेकर घमासान मचा है, प्रमुख विपक्षी दल तथा एनडीए घटक की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा कैग की रिपोर्ट को विश्वसनीय मानकर प्रधानमंत्री से इस्तीफा मागं रही है वही प्रदेश में भाजपा की सरकार है और यहां विस में प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट को भाजपा सरकार तवज्जो नहीं दे रही है। एक आईएएस अफसर ने तो प्रदेश में कैग की रिपोर्ट पर बयानबाजी कर नयी परंपरा शुरू कर दी है।
केन्द्र में सीएजी ने 2004 से 2012 तक कोल आबंटन पर सरकार को एक लाख 85 हजार करोड़ के नुकसान की संभावना प्रकट करते हुए आपत्ति की है इसी को लेकर लोकसभा और राज्य सभा में बवाल मचा हुआ है। भाजपा सदन में प्रधानमंत्री का जवाब नही इस्तीफा मांग रहा है यह बात और है कि इलेक्ट्रानिक्स चैनलों में वाद-विवाद में इसी मसले पर नेता हिस्सा ले रहे हैं।
छग सीएजी की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ में सीएजी की रिपोर्ट में कोयला माले में 1052 करोड़ के नुकसान और अनियमितता पर सवाल खड़े किये गये है पर सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है। सरकार के मुखिया के करीब रहने वाले एआईएएस अफसर ने तो सीएजी की रिपोर्ट पर ही नकारात्मक टिप्पणी करके नई परंपरा इजात की है। भाजपा के अध्यक्ष नितिन गड़करी के करीबी और कारोबारी साझेदार अजय संचेती को कोल ब्लाक आबंटित करना भी चर्चा में है।
25 जुलाई 2007 को भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को अनुशंसा की कि किसी सरकारी अथवा कोल माईन्स एक्ट 1973 के तहत काम करने वाली किसी कंपनी को कोल ब्लाक के दोहन वितरण का काम सौपा जाए या भागीदार बनाया जाए। निगम ने 3 जुलाई 2008 को निविदाएं आमंत्रित की। कुल 34 कंपनियों ने तीन करोड़ 10 लाख के कुल 62 निविदा प्रपत्र खरीदे। 25 जुलाई को निविदा खोली गई। भटगांव 2 के लिये नागपुर की कंपनी एमएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सलोसिव तथा जिंदल स्टील पावर लिमिटेड के ही प्रस्ताव विचार योग्य पाये गये? जिंदल ने 540 और एसएमएस इफ्रास्ट्रक्चर ने 552 रूपये प्रति मीट्रिक टन की दर से प्रस्ताव दिया था इसलिये भटगांव 2 में खनन का ठेका एसएमएस को सौप दिया गया।
भटगांव 2 (एक्सटेंशन) के लिये 14 कंपनियों ने प्रपत्र खरीदा लेकिन खनिज निगम ने केवल एसएमएस इफ्रास्ट्रक्चर और मुम्बई की एसीसी को ही विचार योग्य पाया इसमें एसीसी मुम्बई को खनन योग्य अनुभव नहीं होने के नाम पर उसके प्रस्ताव पर चर्चा नहीं की और एसएमएस इफ्रास्ट्रक्चर सोलार एक मात्र बची कंपनी को 129.60 पैसे प्रति मीट्रिक टन पर खनन का ठेका दे दिया। कैग ने यही आपत्ति की। भटगांव 2 के कोल ब्लाक के खनन का ठेका 552 रूपये प्रति मीट्रिक टन पर दिया गया वही भटगांव (एक्सटेंशन) का ठेका 129.60 पैसे प्रति मीट्रिक टन में दिया गया। कैग की यह भी आपत्ति की है कि दोनों कोल ब्लाक आसपास है फिर खनन ठेका में अंतर क्यों? सवाल यह भी उठ रहा है कि भटगांव 2 (एक्सटेंशन) में जब निविदा खोलने पर एक ही कंपनी का प्रस्ताव सही पाया गया तो स्वच्छ और प्रतिस्पर्धा के नाम पर पुन: निविदा आमंत्रित क्यों नहीं कई गई? वैसे इफ्रास्ट्रक्चर-सोलार को भागीदार ही खनन में बनाया गया है। 51 प्रतिशत हिस्सा खनिज निगम को मिलेगा तो 49 प्रतिशत हिस्सा कंपनी को। सवाल फिर उठ रहा है कि जब सरकार का हिस्सा 51 प्रतिशत है तो एक कंपनी को निविदा योग्य पाने के बाद भी अधिक लाभ के लिये पुन: निविदा आमंत्रित क्यों नहीं की गई। ज्ञात रहे कि एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सलोसिव कंपनी भाजपा के रास सदस्य तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीति गड़करी के करीबी अजय संचेती की है।
वाणिज्यकर और संचेती
अजय संचेती का नाम राज्य में पहले भी चर्चा में आ चुका है। दुर्ग के एक नेता के रिश्तेदार अजय संचेती की कंपनी ने 1999-2003 के मध्य दुर्ग-राजनांदगांव के बीच एक बायपास रोड का निर्माण किया था। बायपास निर्माण के बाद कंपनी वाणिज्य कर विभाग ने 17 करोड़ 35 लाख की वसूली के लिये सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश जारी किया। विभाग ने सारी सम्पत्तियां और बैकों ने 21 खाते भी सील कर दिये परन्तु 15 सितंबर 2012 को अचानक वाणिज्य कर विभाग ने सभी सम्पत्तियों सहित बैंक खाते कंपनी को लौटा भी दिये। सूत्र कहते है कि कागजों में हेरफेर करके आनन फानन नई कंपनी बताकर मामला सुलझ गया। सवाल यह उठ रहा है कि वाणिज्य कर विभाग ने सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश यदि गलत दिया था तो दोषी अफसर के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई, सम्पत्ति कुर्क करने वाले अफसर ने सम्पत्ति छोडऩे के कारणों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया।
अमन सिंह पर निशाना
आईआरएस जैसी अखिल भारतीय स्तर की नौकरी से इस्तीफा देकर संविदा आधार पर ऊर्जा सचिव और मुख्यमंत्री के सचिव अमन सिंह फिर चर्चा में है वैसे भी मुख्यमंत्री का सचिव संविदा नियुक्ति में हो यह किसी प्रदेश में का पहला मामला है। कुछ सालों के लिये राष्ट्रीय स्तर की नौकरी छोडऩे का भी यह संभवत: पहला मामला होगा। हाल ही में नागवंशी नामक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेकर उच्च न्यायालय बिलासपुर में ऊर्जा विभाग की अनियमितता को लेकर जनहित याचिका लगाकर 7200 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है उनके द्वारा 2723 पृष्ठों के दस्तावेजों सुबुतों के लिये पेश किया गया है और इस आधार पर उच्च न्यायालय ने ऊर्जा सचिव अमन सिंह सहित विद्युत मंडल के जिम्मेदार अधिकारियों को तलब किया है। यह मामला विद्युत पोल ट्रांसफार्मर खरीदी को लेकर है। इधर बजट सत्र में सीएजी की रिपोर्ट में भी ऊर्जा विभाग और बिजली कंपनियों के 1700 करोड़ से अधिक की अनियमितता को उजागर किया था। सीएजी के अनुसार निजी विद्युत उत्पादकों से बिजली खरीदी में विद्युत वितरण कंपनी को एक वर्ष में 420 करोड़ और विद्युत पारेषण कंपनी को में ट्रांसमीशन हानि होने के कारण 5 वर्षों में 1122 करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ है। अटल ज्योति योजना में विलंब और भ्रष्टाचार के कारण 115 करोड़ का नुकसान राज्य को हुआ है। विद्युत मंडल का विखंडन करके नई कंपनियां बनाई गई जिससे वार्षिक बजट में 80 से 220 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी गई। बहरहाल अमन सिंह उच्च न्यायालय में क्या जवाब देते है इसी का इंतजार है।
बैस की साफगोई
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री पार्षद विधायक होकर सांसद का सफर तय करने वाले रमेश बैस गंभीर नेता माने जाते है वे लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक भी है। समय समय पर वे भाजपा की प्रदेश सरकार को आईना दिखाने का काम भी करते रहते हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ के नियंत्रक महालेखा कार (सीएजी) की रिपोर्ट की जांच के लिये विधानसभा की लोकलेखा समिति को नहीं सौंपने पर कड़ा आपत्ति की है। उन्होंने कहा है कि सीएजी एक संवैधानिक संस्था है, जिसका सभी का आदर करना चाहिए। लोकलेखा समिति इस मामले में जिन लोगों को दोषी करार देती है उनके खिलाफ राज्य सरकार को सख्त कार्यवाही करनी चाहिये।
रमेश बैस ने कहा कि छत्तीसगढ़ सीएजी की रिपोर्ट में खनिज ऊर्जा समेत कई विभागों पर विपरीत टिप्पणी की गई है पर अफसोस है कि इसे अब तक जांच के लिये लोक लेखा समिति को नहीं सौपा गया है। उनका कहना है कि सीएजी एक संवैधानिक संस्था है और उसका दायित्व सरकार के खर्चों की समीक्षा करना है।
और अब बस
द्य मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने आईबी में तैनात विश्वरंजन को उनकी शर्तों पर अनुरोध करके छत्तीसगढ़ लाकर डीजीपी बनाया था। डीजीपी पद से समय पूर्व हटाने के बाद उन्होंने हाल ही में तत्पर संस्था के बैनर तले एक संगोष्ठी में रमन सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
द्य मुख्य सचिव नहीं बनाये जाने से राज्य सरकार से नाराज चल रहे बी.के.एस. रे ने योजनाओं पर भ्रष्टाचार तथा पारदर्शिता के अभाव की बात करने राज्य सरकार की नीतियों की भी जमकर आलोचना की है।

Friday, August 24, 2012

ना मिले जख्म ना निशान मिले
पर परिन्दे लहु-लुहान मिले
यही संघर्ष है जमीं से मेरा
मेरे हिस्से का आसमान मिले

छत्तीसगढ़ में अगला लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव अगले साल होना है पर प्रदेश सत्ताधारी दल भाजपा तथा कांग्रेस की अभी से तैयारी शुरू हो गई। कांग्रेस का अनुसूचित जाति-जनजाति क्षेत्र में सम्मेलन कर सक्रियता से भाजपा के नीतिकारों के होश उड़ गये है इसलिये भाजपा के एक प्रमुख नेता सौदान सिंह जिला स्तर पर स्वयं जाकर राज्य सरकार के कार्यों की टोह ले रहे है सरकार की नीतियों पर आम राय ले रहे है तो वर्तमान विधायक, सांसद सहित स्वायत्तशासी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के कार्य की एक तरह से समीक्षा भी कर रहे हैं। वर्तमान जनप्रतिनिधियों के विषय में टोह भी ले रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश में पिछली 2 सरकार बनाने के पीछे सौदान सिंह की विशेष भूमिका रही है यही नहीं विधानसभा और लोकसभा प्रत्याशी चयन में भी उनकी राय को तवोज्जो दी गई थी। पिछली बार भाजपा ने कुछ विधायकों की टिकट काट दी थी और उसका लाभ भी भाजपा को मिला था। हाल ही में भाजपा की डा. रमन सरकार द्वारा सतनामियों का आरक्षण का प्रतिशत कम करके आदिवासियों का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की गई पर संवैधानिक निर्धारित कोटा से अधिक आरक्षण होने उच्च न्यायालय से स्थगन हो गया है। वैसे यह पहली बार हुआ है कि आरक्षण बढऩे के बावजूद आदिवासी सरकार से नाराज है आरक्षण कम होने से सतनामी समाज का नाराज होना तो स्वाभाविक ही है। राजधानी में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर लाठी चार्ज आरक्षण प्रतिशत कम करने, नक्सली प्रभावित क्षेत्र में सलवा जुडूम अभियान चलाने, हजारों आदिवासियों के विस्थापित होने से आदिवासी समाज नाराज है वहीं हाल ही में साप्ताहिक बाजारों में आदिवासियों पर पारंपारिक हथियार लेकर आने पर पाबंदी ने भी आग में घी डाला है। जंगली जानवारों सहित नक्सलियों से रक्षा करने वाले पारंपरिक हथियार, तीर धनुष, कुल्हाड़ी, फरसा आदि पर भी प्रतिबंध लगाने से भी आदिवासी समाज नाराज है।
यह ठीक है कि आदिवासी और सतनामी समाज भाजपा से नाराजगी से कांग्रेसी खेमा उत्साहित है वही हाल ही में कांग्रेस के एक बड़े नेता के अनुसार भाजपा ने चुनाव पूर्व जो दो सर्वेक्षण कराये है उसकी रिपोर्ट भी उत्साह जनक है। आगामी विस चुनाव में अभी की स्थिति में भाजपा 26 तथा 32 विधायकों में सिमट जाएगी यह सर्वे रिपोर्ट आई है। यह ठीक है कि 10 साल सरकार में रहने के बाद फिर से सरकार बनाना कठिन होता है। वैसे भी भाजपा में नरेन्द्र मोदी ही तीन बार लगातार जीत चुके है पर गुजरात की बात और है। खैर कांग्रेस का खेमा उत्साहित है पर कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। चर्चा तो अभी से शुरु हो ई है कि कुछ विधायकों की टिकट इस बार भी काटी जा सकती है। वैसे आरक्षण के विषय में राज्य सरकार की घोषणा और बाद में उच्च न्यायालय से स्थगन के बाद आदिवासी और सतनामी वर्ग राज्य सरकार से कुछ नाराज बताया जा रहा है इस वर्ग के मंत्री भी नाराजगी दूर करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं इसलिये मुख्यमंत्री ने इन वर्गों को संतुष्ट करने स्वयं कमान सम्हाल ली है। दरअसल सत्ता और संगठन के बीच तालमेल नहीं होने के कारण ही कुछ पार्टी नेता नाराज भी बताये जा रहे हैं। नौकरशाह बेलगाम होने के कारण पार्टी के विधायक सहित कुछ अन्य नेता शिकायत करते रहते हैं हर बार उन्हें संतुष्ट करने का आश्वासन दिया जाता है पर हालात जस के तस हैं।
कांग्रेस की हालत
केन्द्र में सबसे बड़ी पार्टी तथा यूपीए की प्रमुख घटक होकर सत्ता सम्हालने वाली कांग्रेस की हालात छत्तीसगढ़ में ठीक -ठाक तो वही कही जा सकती है। कभी छत्तीसगढ़ से निर्वाचित कांग्रेस की विधायक संख्या के आधार पर अविभाजित मप्र में कांग्रेस की सरकार बनती थी पर पिछले दो चुनावों में कांग्रेस की हालात पतली है कभी आदिवासी और सतनामी मतदाता कांग्रेस के करीब थे पर धीरे-धीरे उनकी दूरियां बढ़ती रही। बस्तर में कभी जनसंघ या भाजपा कोई नाम लेवा नहीं था। एकाध विधायक ही जीत पाते थे वहां भाजपा की स्थिति बेहतर होती गई है। 2003 के विस चुनाव में 11 में 2 पर कांग्रेस का कब्जा रहा तो यह संख्या 2008 के विस चुनाव में एक पहुंच गई है। सतनामी बाहुल्य क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति जरूर कुछ बेहतर है पर संतोष जनक नहीं कही जा सकती है।  कांग्रेस में कई खेमे हैं। अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरणदास महंत का खेमा अलग अलग है तो प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे भी अपना खेमा बनाने प्रयासरत हैं। खेमेबाजी के चलते कांग्रेस को पिछले दो विस-लोस चुनावों में नुकसान हुआ है। पिछले दो लोस चुनाव में कांग्रेस से एक-एक सांसद चुना जा रहा है। कांग्रेस में वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री विधायक आजकल उपेक्षित महसूस कर रहे है उनसे सलाह की बात तो दूर पार्टी की बैठकों में भी आमंत्रित नहीं किया जाता है और उपेक्षा का दौर जारी है। देखना यह है कि कांग्रेस कुछ सबक लेती है या नहीं।
पैसे के लिये मंत्री दर्जा छोड़ा
पिछले विधानसभा चुनाव में चर्चा में रहे मंत्री अजय चंद्राकर को कांग्रेस के पहलीबार चुनाव में खड़े लेखराज से पराजित होना पड़ा पर अब वे पुन: सक्रिय हो गये हैं। भाजपा की नयी राजधानी में पार्टी कार्यालय बनाने का जिम्मा उन्हें ही दिया गयाहै और वे लगे है पार्टी का भव्य कार्यालय बनाने में।
डाला से प्रदेश में कभी कद्दावर मंत्री बनने का सफर अजय चंद्राकर ने कैसे पूरा किया है बात कुरूद क्षेत्र का बच्चा बच्चा जानता है। उनके डाला कहलाने की भी कई जनचर्चा है। बहरहाल पूर्व मंत्री की हैसियत से राजधानी में सरकारी बंगला मांगने के दबाव के चलते उन्हें वित्त आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। वित्त आयोग की रिपोर्ट ठीक-ठाक बने इसके लिये उनके गुरु तथा दुर्गा कालेज के प्राचार्य पूर्व अशोक पारख को सदस्य बनाया गया। अशोक पारख वित्त आयोग की रपट बनाने में लगे भी है। हाल ही में अजय चंद्राकर द्वारा वित्त आयोग के अध्यक्ष बतौर कैबिनेट मंत्री का दर्जा सरकार को लौटाने की जमकर चर्चा है। सूत्र कहते हैं कि कैबिनेट मंत्री का दर्जा हने पर अजय चंद्राकर को बतौर वेतन 58-60 हजार रूपये मासिक प्राप्त होते जबकि वित्त आयोग के अधिनियम में अध्यक्ष को करीब सवा लाख मिलेगा। कैबिनेट मंत्री का दर्जा होने पर उनका वेतन सदस्य से भी कम हो जाता। बहरहाल अजय चंद्राकर ने प्रशासन प्रशासन विभाग को पत्र लिखकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा वापस लेने का आग्रह कर अपनी आय बढ़ाने का मार्ग ही चुना। वैसे भी अजय चंद्राकर को आय-व्यय के संतुलन का पुराना अच्छा अनुभव है।
मोहन-मूणत की मांग
सांसद तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस के जनदर्शन को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। आम जनों के साथ कुछ कांग्रेसी नेता भी समस्याओं के समाधान के लिये बैस से मिल रहे हैं। हर शनिवार को आयोजित जनदर्शन में रमेश बैस के घर में 100 से 150 लोग औसत पहुंचकर अपनी समस्या रखते है। रमेश बैस समस्या सुनकर तत्काल निदान का प्रयास करते है। पिछले शनिवार को उन्होने छग सरकार के मंत्री रामविचार नेताम, अतिरिक्त मुख्य सचिव विवेक ढांड, पीएचई सचिव सहित राजधानी के एसएसपी दीपाशु काबरा से फोन पर चर्चा कर आवश्यक निर्देश दिये है। जनदर्शन में शामिल कुछ लोगों ने राजधानी के दो मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत के भी साथ में शामिल करने का सुझाव भी दिया और सांसद बैस ने इस प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया और अगले शनिवार को दोनों मंत्रियों को शामिल करने की भी बात की।
और अब बस
० पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की रोजा इफ्तार पार्टी में 16 विधायक पहुंचे..एक खबर। टिप्पणी...विधायकों के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल कहां रह गये।
० एक उत्साही युवा नेता तथा मीडिया में सुर्खी बनने वाले आजकल छग सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के खिलाफ चुनाव लडऩे का सपना पाल रहे हैं। एक टिप्पणी...चेम्बर और विस चुनाव में बड़ा फर्क होता है।
मेरे खुशनुमा इरादों, मेरी देखभाल करना
किसी और से नहीं है, मेरा खुद से सामना है

समूचे भारत सहित छत्तीसगढ़ में अगस्त महीने का बड़ा महत्व है। सावन की समाप्ति के साथ ही रक्षाबंधन का पवित्र त्यौहार इसी माह आता है। साथ ही क्रांति दिवस के साथ ही आजादी का पर्व 15 अगस्त का राष्ट्रीय त्यौहार भी मनाया जाता है। इसी के साथ छत्तीसगढ़ में कुछ प्रमुख नेताओं का जन्मदिन भी इसी माह आता है। पंडित रविशंकर शुक्ल कसडोल उपचुनाव में विजयी होने के बाद मप्र के मुख्यमंत्री बने द्वारिका प्रसाद मिश्रा, मप्र बनने के पूर्व मुख्यमंत्री तथा गर्वनर रहे डा. राघवेन्द्र राव ने भी अगस्त महीने में ही जन्म लिया था। इनके साथ ही छत्तीसगढ़ की नृत्य संगीत विरासत को देश-विदेश में चर्चित कराने महान योगदान देने वाले रायगढ़ नरेश राजा चक्रधर सिह भी अगस्त माह में ही धरती पर आये थे।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेता तथा सीपीएफ बरार तथा मप्र के मुख्यमंत्री रहे पं. रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1877 को हुआ था तो मप्र के मुख्यमंत्री रहे पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र ने 5 अगस्त 1901 को जन्म लिया था। छत्तीसगढ़ के ही एक प्रमुख नेता डा. राघवेन्द्र राव 4 अगस्त 1889 तो रायगढ़ नरेश चक्रधर सिंह 19 अगस्त 1905 को जन्मे थे। वरिष्ठ आदिवासी नेता मनकूराम सोही का जन्म भी। 1 अगस्त 1939 को हुआ था।
वैसे अगस्त महीने का छत्तीसगढ़ में विशेष महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि कुछ नेताओं का जन्म दिन भी इसी महीने हुआ है और उनके समर्थकों को भी यह माह विशेष याद रहता है। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता तथा वर्षों तक केन्द्र सरकार में कई विभागों में मंत्री का पद सम्हालने वाले विद्याचरण शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1929 को ही हुआ था उनके समर्थक इस दिन को उत्साह पूर्वक मनाते हैं। विद्या भैय्या के प्रमुख प्रतिद्वंदी तथा लोकसभा चुनाव में उन्हें पराजित करने वाले देश तथा प्रदेश के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस भी 2 अगस्त 1947 को ही इस दुनिया में आये हैं। उनके पैदा होने के 13 अगस्त दिन बाद ही देश आजाद हुआ था। विद्याचरण शुक्ल तथा उनके अग्रज स्व. श्यामाचारण शुक्ल को पराजित करने का श्रेय रमेश बैस के खाते में दर्ज हैं। उनका जन्म दिन भी उनके समर्थक उत्साह पूर्वक मनाते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के पूर्व नेता प्रतिपक्ष तथा आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा का जन्म भी अगस्त माह में ही हुआ था। 5 अगस्त 1950 को बस्तर में जन्म लेने वाले महेन्द्र कर्मा भी छग के प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी बलौदाबाजार की पूर्व विधायक तथा जांजगीर की सांसद रही श्री करूणा शुक्ला का भी जन्म एक अगस्त 1950 को ग्वालियर में हुआ था। वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक गुरुमुख सिंह होरा तो 15 अगस्त 1947 भारत की आजादी मिलने के दिन ही पैदा हुआ थे। पूर्व मंत्री तथा विधायक ताम्रध्वज साहू ने भी 6 अगस्त 1949 को जन्म लिया था। इसके अलावा बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा विधायक दाऊराम रत्नाकर (3 अगस्त 1958) बदरूद्दीन कुरैशी (11 अगस्त 1947) पूर्व सांसद मनकूराम सोढ़ी (13 अगस्त 1934) पूर्व मंत्री तथा विधायक मो. अकबर (24 अगस्त 1955) भूपेश बघेल (23 अगस्त 1961) ने अगस्त माह में जन्म लिया। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी के सुपुत्र तथा युवा नेता अमित एश्यर्व जोगी का जन्म भी 7 अगस्त को अमेरिका में अपनी मौसी के घर हुआ था। इनका जन्म दिन भी उनके समर्थक उत्साह से मनाते हैं।
नई राजधानी और नामकरण!
छत्तीसगढ़ के एकमात्र माना विमानतल का नामकरण स्वामी विवेकानंद की स्मृति में रखने मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को साधूवाद दिया जा सकता है। इससे स्वामी विवेकानंद के रायपुर में कुछ समय रहने की चिर स्मृति बनी रहेगी वही अब नई राजधानी के नामकरण की बारी है। अगला राज्योत्सव नई विकसित राजधानी में होगा। राष्ट्रपति को आमंत्रण भी दिया जा चुका है। नई राजधानी आकार लेने आतुर है पर अभी तक उसका नामकरण नहीं हो सका है।
भारत की राजधानी जब दिल्ली बनी तो उसे नई दिल्ली नाम दिया गया। वैसे जिस भी राज्य में नई राजधानी किसी बड़े शहर के पास विकसित की गई तो उसे नया नाम दिया गया। हां अविभाजित मप्र में जरुर ओल्ड भोपाल, न्यू भोपाल का नाम दिया गया और लगता है कि अभी भी हम अविभाजित मप्र की मानसिकता से बाहर नहीं आये हैं तभी तो हम नई राजधानी का नाम नया रायपुर देने प्रयासरत हैं। भारत के एक प्रमुख प्रदेश गुजरात की नई राजधानी अहमदाबाद से कुछ किलोमीटर दूर बनी और महात्मागांधी की याद मे ंउस नई राजधानी का नाम गांधीनगर दिया गया उसी तरह मां कामाख्या की नगरी गुवाहाटी के पास नई राजधानी विकसित की गई और उसका नाम दिया गाय दिसपुर। छत्तीसगढ़ की नई राजधानी निर्माणाधीन है। रायपुर शहर से कुछ किलोमीटर दूर स्तिथ इस नई राजधानी को अभी से छत्तीसगढ़ की गरिमा के अनुरूप नाम दिया जाना जरूरी है। वैसे नामकरण के संबंध में एक उदाहरण रायपुर शहर के 700 बिस्तर अस्पताल का भी हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध यह अस्पताल पहले डीके अस्पताल (दाऊकल्याण सिंह) के नाम से जाना जाता था क्योंकि दाऊजी ने इसके लिए बड़ा दान दिया था। बाद में अस्पताल को मेडिकल कालेज का नया भवन बनने पर सेन्ट्रल जेल के सामने स्थानांतरित कर दिया गया तथा मरीज बिस्तरों की संख्या भी 700 कर दी गई इसके बाद वहां नामकरण की राजनीति चली। किसी ने डा. आम्बेडकर के नाम पर तो किसी ने इंदिरा गांधी के नाम पर नामकरण करना चाहा, डा. अम्बेडकर की मूर्ति की भी अस्पताल के सामने स्थापित हो गई। सियासत के चलते आज तक विधिवत इस अस्पताल का नामकरण नहीं हो सका है। कोई मेकाहारा (मेडिकल कालेज हास्पिटल रायपुर) कहता है तो कोई 700 बिस्तर अस्पताल कहता है वहीं कुछ लोग पहले की तरह आज भी इसे बड़ा अस्पताल कहते हैं। छत्तीसगढ़ की नई राजधानी का नामकरण करने अभी से प्रयास किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ का पुराना नाम दक्षिण कौसल रहा है। दक्षिण कौसल (वर्तमान छत्तीसगढ़) का साम्राज्य श्री राम के पुत्रकुश को मिला था। महाराज कुश ने इस राज्य की राजधानी का नाम कुशावती रखा था। तब रतनपुर, मल्हार तथा सिरपुर आदि विकसित नहीं हुए थे ऐसा जानकार कहते हैं जाहिर है उस समय रायपुर बिलासपुर आदि का तो नामो निशान ही नहीं था। महाराजा कुश के वंशज हजारों वर्षों तक दक्षिण कौसल में राज्य करते रहे। महारानी कौशल्या के पिता, श्री राम के नाना, मामा का पहले यहां राज्य रहा है। इसी कारण ही छत्तीसगढ़ में मामा-भांजा का रिश्ता काफी पवित्र और सम्मानजनक माना जाता है। इतिहास कहता है कि महाराजा नाग्नाजित की राजधानी जांजगीर-चांपा जिले के कोसला में थी संभवत: यही कुशावती का परिवर्तित नाम हो। बहरहाल नई राजधानी का नाम कुशावती भी रखा जा सकता ह वही राजधानी में नया रायपुर कहने की जगह कोई और भी अच्छा नाम दिया जा सकता है जिससे छत्तीसगढ़ के प्राचीन गौरवांवित इतिहास की झलक लोगों को मिलेगी साथ ही राजधानी को नये नाम के साथ भी पहचान मिलेगी।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख नौकरशाह को एक राजनेता दम्पत्ति द्वारा अच्छी तरही खबर लेने के समाचार मिले है। उन्हें पहले भी एक कांग्रेसी विधायक को च्खबरज् देने के नाम पर किनारे लगाया गया था।
0 जनदर्शन में भारी भीड़ उमड़ती देखकर राजनेता गदगद थे। किसी ने टिप्पणी की... यदि सरकार का कामकाज ठीक-ठाक होता तो इतनी भीड़ क्यों आती।
0 पी.ए. संगमा और अरविंद नेताम द्वारा एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने पर छग में क्या असर पड़ेगा एक टिप्पणी... नेताम कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लडऩे पर अपनी जमानत नहीं बचा सके है...पिछला विस चुनाव अपनी बेटी को नही जिता पाये हैं नई पार्टी का क्या होगा?

Sunday, August 12, 2012

जाने कितनी उड़ान बाकी है
इस परिंदे में जान बाकी है
जितनी बंटनी थी बंट गई ये जमी
अब तो बस आसमान बाकी है
छत्तीसगढ़ में प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस में एक पर्चा चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। कांग्रेस की नीतियों और फैसलों की आलोचनाओं से लबालब पत्र इन दिनों सुर्खियों में है। सवाल यह उठ रहा है कि करीब 8 सालों से सरकार से दूर होकर भी कांग्रेस को सदबुद्धि नहीं आई है।
पत्र किसने लिखा, पत्र से किसको लाभ होगा किसे निशाना बना गया है यह सवाल भी उठ रहे हैं। पहले भारतीय जनता पार्टी में पर्चेबाजी का दौर चला, डा. रमन सिंह और उनके आसपास सक्रिय नौकरशाहों को निशाना बनाया गया था। उन पत्रों की भाषा देखकर ऐसा लगता था भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसी जानकार ने अपनी पीड़ा का इजहार किया है पर भाजपा के आला नेताओं ने पत्र लिखने का ठीकरा कांग्रेस पार्टी पर फोड़ दिया किसी कांग्रेसी द्वारा लिखने की बात की, अपने स्तर पर जांच भी कराई पर कुछ खास पता नहीं लग सका। इन कांग्रेस की नीतियों, फैसलों की आलोचना करते हुए एक पत्र सार्वजनिक हो गया है। जाहिर है कि पत्र की भाषा से लगता है कि किसी जानकार कांग्रेसी ने यह पत्र जारी किया है पर कांग्रेस के कुछ आला नेताओं ने इस पत्र के लिये कांग्रेस की जगह भाजपा के लोगों को जिम्मेदार ठहरा दिया है। वैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप लगाने का मौका नहीं छोड़ती है। महंगाई बढऩे के लिये भाजपा की प्रदेश सरकार केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार को जिम्मेदार ठहराती है तो कांग्रेस इसकी जिम्मेदारी प्रदेश की भाजपा सरकार पर थोपकर अपना कत्वर्य पूरा मान लेती है। पेट्रोल डीजल और केरोसीन के दाम बढऩे के लिये केन्द्र सरकार और उसकी नीतियों को जिम्मेदार माना जा सकता है पर केन्द्र सरकार की मजबूरी है कि पेट्रोलियम पदार्थ के लिये खाड़ी के देशो पर निर्भर होना पड़ता है और वहां के उतार-चढ़ाव का असर भारत में भी पड़ता है। परन्तु राज्य में बिजली और पेयजल में वृद्धि के लिये तो राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। पानी हमारा है और उसकी दर तो हम तय कर सकते हैं। केवल बिजली कंपनियों के खर्चे पूरे करने बिजली दर में वृद्धि कहां तक उचित है। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि और राज्यों से छत्तीसगढ़ में बिजली सस्ती है? तो छग में पानी कोयला भी तो बहुतायत में है। हम बिजली के मामले में पृथक राज्य बनने के बाद सरप्लस में थे। बिजली कंपनियों बनाकर लगातार आय में कमी होने के लिये आखिर जिम्मेदार कौन है? कुल मिलाकर सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है और आम जनता तमाशा देखने ही मजबूर हैं।
चाल्र्स डिकेंस...
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नीतियों को लेकर एक पत्र चर्चा में है। दलित और आदिवासी के बहाने किसी ने पूरी भड़ास कांग्रेस पर निकाली है। पीएम इन वेटिग राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास पर आने पर मंच से किसी भी दलित और आदिवासी नेता को बोलने का अवसर नहीं दिया और दूसरे वर्गों के लोगों ने भाषण दिया उसमें इन वर्गों का उल्लेख नहीं किया यहां से उपेक्षा का आरोप शुरू हुआ और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे पर भी कई गंभीर आरोप लगाये गये हैं। पत्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल को सहकारिता चुनाव में पराजय का जिम्मेदार ठहराया गया है साथ उनके बडबोलेपन पर भी सवाल उठाया गया है। पृथक बस्तर राज्य से लेकर मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनाने संबंधी बयानबाजी की भी भूमिका पर सवाल उठाये गये है। कांग्रेस ने 8 वर्षों में दलितों और आदिवासियों के लिये क्या किया? इस शीर्षक से शुरू पत्र में सलवा जुडूम पर कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये है। महेन्द्र कर्मा पर कटाक्ष किया गया है वहीं इस मसले में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और बस्तर के एक मात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा की तारीफ की गई है। पत्र में प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष को से एक पद दलित आदिवासी समुदाय को देने सहित ब्लाक कांग्रेस कमेटी में 50 प्रतिशत पद इन्हीं वर्गों को देने की वकालत की गई है।
पर्चा कांग्रेस के किसी ने लिखा है, वैसे शक की सुई हाल ही में कांग्रेस से निकाले गये पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की तरफ भी इशारा कर रही है पर यदि पत्र उनकी तरफ से जारी होता तो महेन्द्र कर्मा की बुराई नही की जाती और अजीत जोगी की तारीफ का तो सवाल ही नही उठता। पत्र में जोगी सरकार के 3 सालों का जिक्र नही होना भी चर्चा में है। वैसे 10 पेज के इस पत्र में महान लेखक चाल्र्स डिकेंस के शब्दों में च्हम उल्टी तरफ रूख कर रहे हैज् का उल्लेख है पत्र में देश के संविधान निर्माता डा. भीमराव आम्बेडकर का भी उल्लेख है। वैसे छत्तीसगढ़ में कुछ कांग्रेसी नेताओं ने डा. भीमराव आम्बेडकर तो पढ़ा होगा उनके कथनों का उल्लेख भी कोई भी कर सकता है पर महान लेखक चाल्र्स डिकेंस को कितनो ने पढा होगा यही एक नेता विशेष की तरफ शक की सुई जा रही है पर यह भी तो हो सकता है कि शक पैदा करने की किसी ने जानबूझकर चाल्र्स डिकेंस का जिक्र कर स्वयं को शक के दायरे से बाहर रखने का प्रयास किया होगा यह भी संभव है।
बैस का जनदर्शन
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ भाजपा सांसद रमेश बैस का शनिवार को जनदर्शन का आयोजन राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। उनकी साफगोई ने प्रदेश सरकार पर सवालिया निशान भी खड़ा कर दिया है। इतने सालों से कांग्रेस-भाजपा की प्रदेश और देश में सरकार होने के बाद पहली बार रमेश बैस ने जनदर्शन आयोजित कर आमजनों से सीधे रूबरू होने की क्यों जरूरत समझी या सोचनीय है।
ब्राम्हणपारा से पार्षद फिर विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्री का सफर तय करते हुए भाई रमेश बैस अभी लोकसभा में भाजपा के प्रमुख सचेतक है। उन्हें अपने ही राज्य में अपनी ही पार्टी की सरकार होने के बाद भी आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिये हर शनिवार को जनदर्शन की जरूरत क्यों महसूस हुई। एक और बात यह है कि जनदर्शन में आई समस्याओं को लेकर भाई रमेश बैस ने मुख्यमंत्री राज्य सरकार के किसी मंत्री की जगह सीधे अफसरों को फोन करके एक सप्ताह के भीतर समस्या के निराकरण का अल्टीमेटम देते रहे सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि अफसरों ने किसी दबाव में एक सप्ताह के भीतर समस्याओं का निराकरण नहीं किया तो रमेश बैस का अगला कदम क्या होगा?
एक समाचार पत्र प्रतिनिधि से भी रमेश बैस ने कहा कि प्रदेश के नौकरशाह बेलगाम हो गये है इसीलिये समस्याओं का हल नहीं हो रहा है। अफसरों को सत्ता का भय नही है, जब तबादला और पोस्टिंग मनमाने तरीके से होने लगी है तब आम जनता की बात सुनने का समय किसके पास रहेगा। उन्होंने यह भी कहकर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है कि संसदीय क्षेत्र के दौरे में मैने महसूस किया है कि छोटे-छोटे कार्यों के लिये लोग भटक रहे है उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने डा. रमन सिंह के सुराज अभियान पर भी टिप्पणी की कि सुराज अभियान के तहत मिले आवेदनों को संबंधित विभागों में भेजकर मान लिया जाता है निराकरण हो चुका है। मैने मुख्यमंत्री से कहा है कि इसकी मानिटरिंग की व्यवस्था की जाए।
वाणिज्य कर विभाग और महिलाएं!
वाणिज्य कर विभाग में आजकल एक अफसर की जमकर चर्चा है। विभागीय बैठक में महिलाओं के सामने फाईल फेंकने पीकर आई है क्या? इस तरह की सार्वजनिक टिप्पणी से महिलाएं आहत है। भाजपा की सरकार के एक बड़े नेता का बरदस्त होने के वह अफसर बेखौफ हैं। वाणिज्य कर विभाग की एक महिला तो पहले ही आत्महत्या कर चुकी है वही इस मालदार विभाग से एक महिला अफसर ने हाल ही में अनिवार्य सेवा निवृत्ति ले ली है और कल उसे विदाई भी दे दी गई है। गांधी जी को आदर्श मानने वालों विभागीय प्रमुख के अधीन महिलाएं क्यों असहज महसूस कर रही है यह जांच का विषय हो सकता है वहीं एक दागी अफसर मोनोपली भी चर्चा में हैं।
और अब बस
0 अपनी कलेक्टरी का पहला जनदर्शन या जनता दरबार आयोजित कर एक कलेक्टर निपट गये हैं उनके स्थान पर आने वाले कलेक्टर की अभी ऐसी कोई योजना नही है।
0 एक सार्वजनिक सभा में अटल जी के पिता का नाम पूछने वाले कांग्रेस के एक चर्चित नेता आजकल कहां है यह पता नहीं है। अपनी बातों से हमेशा चर्चा में रहने वाले वह नेता किसके साथ है यह खोज का विषय है।
0 पुलिस महानिरीक्षको, पुलिस अधीक्षकों का तबादला शीघ्र होना है, दरअसल आगामी विस चुनाव को लेकर ठोक-बजाकर अफसरों की तलाश जारी है।