Thursday, November 3, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

परों को खोल जमाना उड़ान देखता है
जमीन पर बैठकर क्या आसमान देखता है
मिला है हुश्न तो इसकी हिफाजत कर
सहल के चल तुझको जहान देखता है॥

हमारे देश में भ्रष्टïाचार पहले एक नाली की तरह था जो आजकल एक अथाह महासागर के रूप में तब्दील हो चुका है। बड़ी संया में राजनेता, नौकरशाह और व्यापारी भ्रष्टïाचार के महासागर में गोते लगा रहे हंै। एक लाख 70 हजार करोड़ का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कारगिल युद्घ के शहीदों के नाम से आदर्श सोसायटी घोटाला, कर्नाटक की खान और सरकारी जमीन के आवंटन में घोटाला चर्चा में है। कुछ राजनेता, अफसर तो जेलों में हैं। सांसदों को रिश्वत देने का मामला हो या सवाल पूछने के नाम पर पैसा लेने का मामला
हो या जानवरों के चारा के नाम पर किया गया घोटाला हो इससे राजनेताओं की छवि निश्चित ही खराब हुई है। राजकीय कोष में सेंध लगाकर अपनी जेब भरने को अपना कत्र्तव्य मानने वाले नेताओं, नौकरशाहों, एनजीओ, ठेकेदार पहले से ही मौजूद थे अब तो उनकी संया में लगातार इजाफा होता जा रहा है। भ्रष्टïाचारी आमजनता के धन और संपत्ति को बेखौफ होकर लूटते रहते हैं। क्योंकि राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का कहीं न कहीं इन्हें संरक्षण है। राजनीति में केवल पद से इस्तीफा दे देना ही अपराध के लिये
समुचित दण्ड नहीं है। छत्तीसगढ़ के कुछ राजनेताओं पर भी भ्रष्टïाचार के आरोप लगे हैं पर वे अभी भी 'पदÓ पर काबिज हैं। जहां तक वरिष्ठï प्रशासनिक अफसरों का सवाल है तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये सरकार (वरिष्ठï अफसरों) से अनुमति लेने का प्रावधान है। वैसे तो अनुमति मिलती नहीं है यदि अनुमति मिल भी गई तो न्यायप्रणाली की लबी चलने वाली कार्यवाही भी उनके लिये मददगार होती हैं।
छत्तीसगढ़ के मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा में सभी मंत्रियों, विधायकों द्वारा संपत्ति का विवरण देने की बात की थी नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने भी विपक्ष के विधायकों द्वारा भी संपत्ति का विवरण देने की बात स्वीकार की थी पर क्या हुआ? मुयमंत्री ने सभी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस द्वारा संपत्ति का विवरण देने कहा था पर कितने अफसरों ने विवरण दिया, कितनों ने नहीं दिया, कितनों ने अपनी सही संपत्ति का विवरण नहीं दिया आखिर इसकी जांच कौन करेगा?
छत्तीसगढ़ की राजधानी में चौपहिया वाहनों की संया तेजी से बढ़ी है, कई वाहनों में सांसद, विधायक, महापौर की पट्टïी लिखी होती हैं यहां तक तो ठीक है पर वार्ड पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, सरपंच, कांगे्रस-भाजपा के पदाधिकारी, सांसद, विधायक प्रतिनिधि की नाम पट्टिïका लगाकर यातायात पुलिस पर रौब डालते नेताओं को देखा जाता है। आखिर पदाधिकारी बनते ही कौन सा कारुं का खजाना हाथ लग जाता है कि चौपहिया वाहन आ जाता है। गांव में सरपंच बनने के बाद पहले घर पक्का होता है फिर मोटर सायकल या
चौपहिया वाहन खरीदा जाता है बस यहीं से भ्रष्टïाचार की नींव डलती है और सरकार की छवि गांव की जनता में बनना-बिगडऩा शुरू होती है। प्रदेश में कई एनजीओ कार्यरत हैं। आमजनता की सेवा करने बनाये गये कुछ एनजीओ के संचालकों की संपत्तियों में लगातार वृद्घि होती जा रही है। स्कूटर से चौपहिया वाहन, राजधानी में कुछ मकान बनाने आखिर उनके पास पैसा आता कहां से है? यदि कुछ एनजीओ संचालकों की संपत्ति की जांच की जाए तो पता चलेगा कि जनता का नहीं वे अपना हित साध रहे हैं।
छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम में 2 सगी बहनें नौकरी कर रही हैं और दोनों की पैदा होने के समय में 3 महीने दस दिन का अंतर है। शिकायत पर लोक आयोग में जांच हो रही है। इसी पाठ््यपुस्तक निगम में पिछले 5-6 सालों में मुत पुस्तक वितरण के लिये करोड़ों का कागज खरीदा गया है। कागज की गुणवत्ता जांच एक हायर सेकेण्ड्री पास कर्मचारी के जिमे हैं। प्रतिनियुक्ति की निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद भी एक अधिकारी वहां क्यों पदस्थ है सरकार मौन हैं, क्यों?
बस्तर में सलवा जुडूम आंदोलन के चलते एसपीओ की नियुक्ति की गई थी, उन्हें सुको के निर्देश के बाद हटाकर उनकी भर्ती की नई व्यवस्था कर दी गई है पर करीब 70 हजार आदिवासी जो अपने घर से बेघर होकर सलवा जुडूम राहत कैप में आ गये थे अब सलवा जुडूम आंदोलन समाप्त होने के बाद वे कहां जाएंगे इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष मौन है क्यों?
जांजगीर जिले में रोगदाबांध एक निजी कंपनी को बेच दिया गया है, विपक्ष के हमले के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा समिति बना दी है जांच शुरू हो गई है पर सरकार अपने स्तर पर कार्यवाही करने में पीछे क्यों है? जबकि एक एसीएस राधाकृष्ण को हाल ही में एक जांच के बाद ही निलंबित कर दिया गया है?
नक्सलियों को पैसा पहुंचाने के आरोप में एक ठेकेदार लाला को गिरतार कर लिया गया है वहीं नक्सलियों की समर्थक मानकर सोढी सोनी की भी गिरतारी कर ली गई है पर एस्सार के संचालकों से पूछताछ में सरकार की रुचि क्यों नहीं है। भोपाल में यूनियन कार्बाइड की गैस रिसाव के मामले में संचालक की गिरतारी और रिहाई को लेकर भाजपा के बड़े नेताओं ने कांगे्रस को कटघरे में खड़ा कर दिया था जबकि संचालक विदेशी थे पर कोरबा में चिमनी हादसे में मजदूरों की जान चली गई कुछ चीनी अफसरों की
भी गिरतारी की गई परंतु कंपनी के संचालक से पूछताछ की हिमत सरकार क्यों नहीं जुटा पा रही हैïं? वैसे यह जनता है और सब कुछ देख रही है?
रागदरबारी और व्यंग्य
बहरहाल विख्यात लेखक श्री लाल शुक्ल का शुक्रवार को निधन हो गया है।
रागदरबारी वियात लेकर स्व. श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्घ व्यंग्य रचना है। श्रीलाल शुक्ल ने इसमें आजादी के बाद भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उखाड़ कर रख दिया है। रागदरबारी की कथाभूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे एक गांव की है। जहां जिन्दगी की प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। गांव शिवपालगंज की पंचायत, कालेज की प्रबंध समिति और को.आपरेटिव सोसयाटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति है जो प्रजातंत्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारो ओर फल-फूल रही है। उन्होंने उस समय जो व्यंग्य लिखकर सामाजिक व्यवस्था पर चोट की थी वह अक्षरश: अभी गांव-गांव में दिखाई दे रही है। उनके कुछ चुटीले व्यंग्य उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत कर हम उन्हें अपनी श्रद्घांजलि दे रहे हैं।
जाने माने साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की रचना रागदरबारी समकालीन साहित्य में 'एक मील का पत्थरÓ है। 1968 में 1968 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। प्रशासनिक सेवा में रहते उन्होंने काफी नजदीक से समाज को देखा है।
रागदरबारी-1
को.आपरेटिव्ह यूनियन का गबन बड़े ही सीधे सादे ढंग से हुआ था, सैकड़ों की संया में रोज होते रहने वाले गबनों की अपेक्षा इसका वही सौंदर्य था कि यह शुद्घ गबन था, इसमें ज्यादा घुमाव फिराव न था।
रागदरबारी-2
जैसे भारतीयों की बुद्घि अंगे्रजी की खिड़की से झांककर संसार का हाल-चाल देती है वैसे ही सनीचर की बुद्घि रंगनाथ की खिड़की से झांककर हुई दिल्ली के हालचाल लेने लगी।
रागदरबारी-3
डिनर के बाद काफी पीते हुए, छके हुए अफसरों का ठहाका दूसरी ही किस्म का होता है। वह ज्यादातर पेट की बड़ी ही अंदरुनी गहराई से निकलता है। उस ठहाके के घनत्व का उनकी साधारण हंसी के साथ वहीं अनुपात बैठता है जो उनकी आमदनी का उनकी तनवाह से होता है। राजनीतिज्ञों का ठहाका सिर्फ मुंह के खोखल से निकलता है और उसके दो ही आयाम होते हैं। उसमें प्राय: गहराई नहीं होती है।
रागदरबारी-4
देशी विश्वविद्यालय के लड़के अंगे्रजी फिल्म देखने जाते हैं। अंगे्रजी बातचीत समझ में नहीं आती है, फिर भी बेचारे मुस्कुराकर दिखाते रहते है कि वे सब समझ रहे हैं और फिल्म बड़ी मजेदार है।
रागदरबारी-5
सड़क पर ट्रक खड़ी है, पुलिस वाला कहता है कि ट्रक सड़क के बीचों-बीच खड़ी है, ट्रक चालक कहता है कि ट्रक सड़क के किनारे खड़ी है। बहरहाल मुझे लगता है कि इन ट्रकों का जन्म ही सड़कों से बलात्कार करने के लिये ही हुआ है।
और अब बस
(1) हम सभी मिलकर एक शाम आयोजित करें, उन भ्रष्टïाचारियों को पुरस्कृत और समानित करें, तब जाकर उन पर भ्रष्टïाचारी होने की पक्की मुहर लगेगी और वे असली भ्रष्टïाचारी कहलाएंगे। वह कौन सा अवार्ड लेना चाहते हैं यह उन्हीं को सोचना है?
(2)
भ्रष्टïाचार के मामले में सबसे अधिक बदनाम पुलिस वाले हैं। यह पूछने पर एक पुलिस अफसर की टिप्पणी:- हम सैकड़ों, हजारों लेकर बदनाम हैं जो लाखों-करोड़ों लेते हैं उन पर मीडिया की निगाह क्यों नहीं पड़ती है?

No comments:

Post a Comment