Monday, December 17, 2012

बदलते वक्त में ये कैसा दौर आया है
हमी से दूर हो रहा हमारा साया है
आज हम उनकी जुबां पर लगा रहे हैं बंदिश
जिन बुजुर्गों ने हमे बोलना सिखाया है।
छत्तीसगढ़ में कभी आदिवासी तथा सतनामी समाज कांग्रेस का विश्वसनीय वोट बैंक होता था। विधायक बनते थे और उनकी संख्या के आधार पर ही अविभाजित मप्र में कांग्रेस की सरकार बनती थी, पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सतनामी समाज का एक वर्ग भाजपा के करीब चला गया तो आदिवासी समाज तो भाजपा के साथ ही चला गया। हालात यह रहे कि आदिवासी अंचल बस्तर में भाजपा का परचम लहराता रहा। वर्तमान में बस्तर की 11 विधानसभा सीटों में मात्र एक पर कांग्रेस का कब्जा है। भाजपा की प्रदेश में लगातार दो बार सरकार बनने के पीछे इन्हें समाजों की महत्वपूर्ण रही है पर आजकल सतनामी और आदिवासी समाज सत्तारूढ़ दल भाजपा से नाराज रहा है।
छत्तीसगढ़ में सतनामी और आदिवासियों का एक बड़ा वोट बैंक है और आजकल दोनों समाज भाजपा की प्रदेश सरकार से कुछ नाराज चल रहा है। सत्ताधारी दल के मंत्री भी अपने-अपने समाज के लोगों को सरकार के साथ जोड़ने और नाराजगी दूर करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इससे भाजपा में बेचैनी है तो कांग्रेस खुश नजर आ रही है।
सतनामी तथा आदिवासी समाज राज्य सरकार की आरक्षण नीति से नाखुश है। प्रदेश सरकार ने न जाने किस नौकरशाह की सलाह पर सतनामी समाज के आरक्षण में कटौती करके आदिवासी समाज में वृद्धि करने की घोषणा की। इससे दोनों समाज नाराज है। सतनामी समाज की आरक्षण पर कटौती करने की घोषणा से से नाराजगी वाजिब है। सतनामी समाज का मानना है कि जनसंख्या के आंकड़े आने के पहले ही सरकार ने अधिसूचना जारी करने में न केवल जल्दीबाजी की है। पिछले बार भी गुरू घासीदास जयंती पर सतनामी समाज ने सत्तापक्ष के मुखिया डा. रमन सिंह सहित अन्य भाजपाई नेताओं को आमंत्रित नहीं किया था और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे है। गिरौधपुरी गुरू दर्शन मेले सहित कुतुबमीनार से भी ऊचा जैत खाम का फरवरी माह में लोकार्पण की योजना है डा. रमन सरकार इसके लिये बाबू जगजगीवन सिंह की पुत्री और लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार को आमंत्रित करना चाहती है पर कुछ वरिष्ठ समाज के लोगों ने दिल्ली जाकर मीराकुमार से छत्तीसगढ़ नहीं आने का अनुरोध किया है और उन्हें संभवत: नहीं आने पर राजी भी कर लिया है। गिरौधपुरी मेले को लेकर अभी से भाजपा सरकार की बेचैनी बढ़ गई है। हालांकि भाजपा की सरकार में पुन्नुलाल मोहिले जैसे सतनामी नेता है पर वे भी सतनामी समाज की नाराजगी दूर करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इधर सतनामी की सरकार से नाराजगी का फायदा उठाने में कांग्रेस कोताही नहीं बरत रही है। जिस तरह सतनामी समाज के कार्यक्रमों में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी शिरकत कर रहे है उससे भाजपा में बेचैनी है। इधर हाल ही में सतनामी समाज के प्रमुख नेता, पूर्व सांसद पूर्व विधायक पी.आर. खूंटे की कांग्रेस में वापसी हुई है वह भी कांग्रेस के लिये सुखद है।
भाजपा सरकार ने सतनामियों का आरक्षण कम करके आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाया है उसके बाद भी आदिवासी समाज सरकार से नाराज है। एक तो आरक्षण नीति पर कोई ने स्थगन दे दिया है वही आदिवासियों की रायपुर रैली में लाठी चार्ज, गिरफ्तार कर जेल में डाल देने की सरकार की नीति से भी आदिवासी नाराज है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जिस तरह विकास के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं से विस्थापन हो रहा है, औद्योगिकीकरण के नाम पर आदिवासियों की जमीन का जबरिया अधिग्रहण किया जा रहा है, जल, जंगल और जमीन से विस्थापित किया जा रहा है। गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी और अशिक्षा के नाम पर आदिवासी समाज अपनी संस्कृति से दूर होता जा रहा है।
बस्तर आदि क्षेत्र में वैसे भी नक्सलियों से निपटने सलावा जुडूम चलाया गया उससे भी आदिवासी समाज जल , जंगल जमीन से बेदखल होकर राहत शिविरों में किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहा था पर अब तो सलवा जुडूम ही बंद कर दिया गया है राहत शिविर भी लगभग बंद जैसे है। इन शिविरों में रहने वाले अब अपने गांव वापस नहीं जा सकते इसलिये बहुत लोग प्रदेश से जुड़े दूसरे प्रदेशों में शरण ले चुके हैं। कांग्रेस के बस्तर में पिछले माह किये गये प्रदर्शन, धरना की सफलता से भी भाजपा चिंतित है। वैसे तो बस्तर में प्रदेश सरकार में विक्रम उसेण्डी, लता उसेण्डी मंत्री है पर पिछला विस चुनाव भी काफी कम मतों से दोनों नेताओं ने जीता था। हाल ही में पूर्व मंत्री मनोज मंडावी का कांग्रेस प्रवेश भी भाजपा के लिये उस उस विधानसभा क्षेत्र में परेशानी बढ़ाएगा। अरविन्द नेताम तीसरे मोर्चे के लिये प्रयासरत है। आदिवासियों के मसीहा प्रवीरचंद भंजदेव के परिवार के कुमार भंजदेव का कांग्रेस और भाजपा पर खुला हमला भी भाजपा के लिये चिंता का कारण बना हुआ है। वैसे कम्युनिस्ट पार्टी भी कोण्टा दंतेवाड़ा क्षेत्र में सक्रियता बढ़ रही है। कुल मिलाकर बस्तर में कांग्रेस, तीसरा मोर्चा बनने की कवायद और कम्युनिस्ट पार्टी की सक्रियता से भाजपा चिंतित है। वैसे भी बस्तर छत्तीसगढ़ सरकार की कुंजी है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा को क्रमश: 9 और 10 विधानसभा में जीत मिली थी।
65 लाख की चूक
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हेलीकाप्टर खरीदी में 65 लाख का झटका लगा पर आश्चर्य तो यह है कि सरकार ने किसी भी जिम्मेदार अधिकारी पर कार्यवाही ही नही ंकी। छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष 2007 में भंडार खरीदी नियमों को शिथिल करते हुए वैश्विक निविदा की छूट दी थी। इसी के तहत अगस्टा ए-109 हेलीकाफ्टर खरीदने की निविदा जारी की गई। तब हेलीकाफ्टर की प्रस्तावित कीमत 63.15 लाख डालर थी। जिसमें 2 लाख डालर की प्रीमियम राशि शामिल थी। पता चला है कि निगोशियन के बाद मेसर्स शार्प एशियन इन्वेस्टमेण्ट ने प्रीमियम की राशि में छूट देकर 61,26 लाख में हेलीकाफ्टर देने सहमति बना ली थी। पर 29 मार्च 2007 तक अनुबंध की शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण प्रस्ताव निरस्त हो गया। इसके बाद सरकार ने पुन: वैश्विक निविदा जारी की और इसी कंपनी से 65.70 लाख डालर यानि 65 लाख अधिक रकम अदा करके हेलीकाफ्टर खरीदा। सवाल यह है कि 65 लाख अधिक देकर इसी कंपनी स हेलीकाफ्टर खरीदने के लिये तत्कालीन प्रमुख सचिव, वित्त एवं संचालन विमानन आदि से अतिरिक्त भुगतान बाबत् कोई सवाल-जवाब तक नहीं किया गया। सूत्र कहते हैं कि मामला उच्च स्तरीय होने के कारण दबा दिया गया।
सरकार के करीबी....दूर!
कभी डा. रमन सिंह सरकार के काफी करीबी और नीतिकार समझे जाने वाले अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी की पुलिस मुख्यालय वापसी की जगह पुलिस हाऊसिंग बोर्ड में तैनाती की जमकर चर्चा है। वैसे डीजीपी रामनिवास से उनके रिश्ते किसी से छिपे नहीं है।
कभी छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्य सचिव पी. जाय उम्मेन की चलती थी, बी.के.एस रे जैसे वरिष्ठ आईएएस की उपेक्षा कर उन्हें मुख्य सचिव बनाया गया था, फिर उन्हें निर्धारित कार्यकाल पूरा करने के पहले ही हटाकर सुनील कुमार को मुख्य सचिव बना दिया गया। उन्हें सेवानिवृत्ति के पश्चात भी कहीं समायोजित नहीं किया गया। वहीं आईबी दिल्ली से उनकी शर्तों पर लिये गये विश्वरंजन को डीजीपी बनाया गया। उनको लेकर कई बार गृहमंत्री ननकीराम कंवर तक की उपेक्षा की गई पर एक ही झटके में उन्हें हटाकर अनिल एम नवानी को डीजीपी बनाया गया। बस्तर में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में चुनाव कराने तथा प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद राजधानी में पुलिस महानिरीक्षक बनाकर संतकुमार पासवान को सरकार के करीबी माना जाता था पर धीरे धीरे उन्हें हाशिये में डालने की कार्यवाही शुरू हुई और उनकी वरिष्ठता को दर किनार करते हुए उनसे काफी जूनियर रामनिवास को डीजीपी बनाया गया।
कभी आईजी के रूप में डीएम अवस्थी की भाजपा सरकार में तूती बोलती थी। रायपुर आईजी और इंटेलीजेन्स आईजी का साथ-साथ प्रभार उन्हें मिला था, सरकार के हर निर्णय में अवस्थी की भूमिका होती थी। उन्हें पुलिस मुख्यालय से पहले बाहर किया या, आर्थिक अपराध शाखा की जिम्मेदारी दी गई और हाल ही में पुलिस हाऊसिंग जैसे लूप लाईन के पद पर पदस्थ किया गया, खैर सरकार के करीब होने का लाभ होता है तो हानि भी होती है।
और अब बस
0 संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रोहणीपुरम में वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय से सरकार के कामकाज पर फीड बैक लिया एक खबर...। कभी नितिन गडकरी भी अपने समर्थक एक मंत्री से फीड बैंक लेते थे पर बाद में क्या हुआ किसी से छिपा नहीं हैं।
0 छत्तीसगढ़ सरकार के काफी निकट होने वाले एक सरकारी अधिकारी ने दिल्ली में किसी दुबई की कंपनी में नौकरी के लिये इंटरव्यूह दिया है ऐसी जमकर चर्चा है।
0 छत्तीसगढ़ के 2 पूर्व पुलिस अधिकारी तथा हाल ही में सेवानिवृत्त होने वाले पुलिस अधिकारी के आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा हैं।



मैने चिरागों की हिफाजत वहां भी की
सूरज के डूबने का जहां रिवाज न था

छत्तीसगढ़ की राजनीति तो मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के इर्द गिर्द ही दिखाई देती है। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में राज्य से स्टार प्रचारकों में दोनों नेता शीर्ष पर होंगे यह तय है।
छत्तीसगढ़ में 1980 में जनता सरकार के पतन के बाद जनसंघ ने अपने स्वरूप में परिवर्तन कर उसे भारतीय जनता पर्टी का नाम दे दिया वही समाजवादी पार्टी जनता दल के नाम से अस्तित्व में आई थी। 1980-85 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी और उनकी स्थिति 1967 की ही बनी रही थी। हालांकि नेटवर्क में विस्तार जरूर हुआ था। 1985 में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर के बावजूद भाजपा की ताकत बढ़ी वह 13 विधानसभा क्षेत्रों में विजयी रही थी। पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले चुनाव में भाजपा की ताकत बढ़ी थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के लिये सप्रे स्कूल के मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने पहली बार छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनाने का वादा किया था। राज्य बना, विधायकों की संख्याबल के नाम पर पहली सरकार कांग्रेस की बनी, अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। इधर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव के लिये प्रदेश की बागडोर सम्हालने तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस और डा. रमन सिंह को संगठन ने विधानसभा चुनाव कराने की पहल की उसके लिये केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़ने की शर्त थी। डा. रमन सिंह ने केन्द्रीय मंत्री का पद-मोह छोड़कर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा की जिम्मेदारी सम्हाली और छग की जनता ने नया राज्य बनाने पर भाजपा को छग की बागडौर सौंप दी। डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने, पहली बार छग के भाजपा की सरकार बनी, गरीबो को एक और दो रूपये किलो चावल योजना सहित कई विकास योजनाओं के चलते तथा कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते दूसरा विधानसभा चुनाव परिणाम भी भाजपा की झोली में गया और डा. रमन सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और 7 दिसम्बर का उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपना 9 साल पूरा कर लिया है और वे कहते है कि आगामी विस चुनाव में जीतने के लिये उनके पास योजना है जिसे समय पर सामने लाएंगे। हालांकि डा. रमन सिंह ने 9 साल बतौर मुख्यमंत्री पूरा कर लिया है पर उनके खिलाफ आदिवासी एक्सप्रेस भी चलाई गई उपचुनाव में कांग्रेस की विजय को मुद्दा बनाकर उन्होंने घेरने का प्रयास उनकी ही लोगों द्वारा किया गया। उन्हें लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल सहित वरिष्ठ आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल  से हटाना, फिर शामिल करना पड़ा पर उनका कारवां जारी है। हालांकि उन पर नौकरशाही द्वारा सरकार चलाने का आरोप भी लगता रहा है पर अभी तक तो उन्होंने बेरोकटोक सफर शुरू रखा है। उन्हें सुनील कुमार जैसे इमानदार और अनुभवी मुख्य सचिव भी मिल गया है जिससे नौकरशाह नियंत्रण में है सामने तो प्रदेश में रेल कारीडोर, उद्योग सम्मेलन सहित कई विकास योजनाओं की घोषणा और उनके क्रियान्वयन में भी सफलता मिलती जा रही है। वैसे मंत्रिमंडल के कुछ साथी भी डा. रमन सिंह से नाखुश है पर भाजपा हाई कमान का मानना है कि डा. रमन सिंह का चेहरा ही छग में भाजपा के रूप में पहचाना जाता है और यह चेहरा आगामी लोकसभा-विधानसभा में पहले से बेहत्तर परिणाम हासिल करेगा। वैसे डा. रमन सिंह 9 साल के कम समय में भारत के कई राज्यों में भाजपा की पहचान बन चुके है तभी तो गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश बिहार, हिमाचल में भी चुनाव के समय इन्हें आमंत्रित किया जाता है। वैसे केन्द्र में प्रतिनिधित्व की भी बात समय समय में उठती रहती है। उनकी छवि के चलते ही उन्हें प्रधानमंत्री के योग्य प्रत्याशी के रूप में शामिल करने में कोई गुरेज नहीं है। मप्र के उद्योग मंत्री विजय वर्गीय ने तो डा. रमन सिंह को प्रधानमंत्री बनने योग्य ठहरा भी दिया है।
जोगी का रहना, नहीं रहना!
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पहले मुख्यमंत्री आईएएस, आईपीएस अफसर रहे अजीत जोगी भले ही विवादों में रहते है पर उनकी छत्तीसगढ़ में पकड़ से उनके विरोधियों सहित सत्ताधारी दल भाजपा के नेता भी इंकार नहीं करते हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तथा अविभाजित मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, केन्द्र सरकार में एक मात्र मंत्री तथा छग के एक मात्र लोकसभा सदस्य डा. चरणदास महंत भी वरिष्ठ नेता है। आदिवासी नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम भी है हालांकि वे कांग्रेस छोड़कर तीसरा मोर्चा बनाने प्रयत्नशील है। वरिष्ठ विधायक तथा नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, वरिष्ठ विधायक तथा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल आदि भी है पर इनमें से एक भी भीड़ जुटाऊ और उसे वोटों में तब्दील करने की उतनी क्षमता नही रखता जितनी क्षमता अजीत जोगी में है।
भैसावृत्ति!
अजीत जोगी के एक भैसा प्रसन्ग की चर्चा अपनी सायकिल बिगड़ने पर मित्र की सायकल से घर आ रहे थे। सायकल वे स्वयं चला रहे थे,  गौरेला-पेण्ड्रा में भदोरा-दत्ताप्रेय टेकरी के बीच ढलान पर जब वे आ रहे थे तब भैसो की टोली सामे आ गई। त्वरित निर्णय लेकर वे दो भैसों क बीच से सायकल निकाल रहे थे पर भैसों की सीग मारने की वृत्ति के शिकार होकर घायल हो गये थे। आज के हालात में भी जब वे मंजिल की ओर बढ़ने का प्रयास करते है तो सींग मारने की प्रवृत्ति के लोग सींग मारने से बाज नहीं आते है, वे तो अब भैसावृत्ति से बचने का रास्ता सीख चुके है पर अब उनके बेटे अमित जोगी सींग मारने की वृत्ति का शिकार हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने में सफल अजीत जोगी व्हील चेयर्स में है फिर भी उनके खिलाफ अफवाह का बाजार हमेशा गर्म रहता है। कभी अफवाह फैलती है कि वे बहुजन समाज पार्टी में जा रहे है कभी उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने का मामला उछाला जाता है, हद तो यह है कि किस राज्य के राज्यपाल बन रहे है इसका भी दावा किया जाता है। कभी सोनिया-राहुल से उनके मतभेद बढ़े उन्हें मिलने का समय नहीं मिला ऐसी चर्चा होती है। पर हाल ही में राहुल गांधी द्वारा अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर यही साबित किया कि कांग्रेस में अजीत जोगी का क्या स्थान है। कांग्रेस की सर्वोच्च टीम कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी है अजीत जोगी। इस कमेटी में आजतक विद्याचरण शुक्ल और उनके अग्रज स्व. श्यामाचरण शुक्ल को शामिल नहीं किया गया जबकि कभी शुक्ल बंधु कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं के नाक के बाल माने जाते थे।
कांग्रेस में जोगी विधायक है उनकी पत्नी डा. रेणु जोगी विधायक बनती आ रही है, उनके कई समर्थक विधायक चुनकर आ रहे है। हालत यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, उपनेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम पराजित हुई। विद्याचरण शुक्ल द्वारा टिकट दिलवाये गये एक मात्र प्रत्याशी संतोष अग्रवाल भी पराजित रहे। सवाल यही उठ रहा है कि यदि जीतने योग्य प्रत्याशी को टिकट दिया जाता, भाई भतीजावाद को प्रश्रय नहीं दिया जाता और इन नेताओं का जनाधार मजबूत होता तो ये सभी विजयी होते ऐसे में कांग्रेस की सरकार क्यों नहीं बनती? बस्तर कभी कांग्रेस का गढ़ था वहां महेन्द्र कर्मा, अरविन्द नेताम, मनकूराम सोढ़ी जैसे मजबूत कांग्रेसी नेता पिछले चुनाव में थे फिर भी कांग्रेस को केवल एक विधानसभा का में ही सफलता मिली और उसके लिये भी कवासी लखमा की अपनी छवि ने ज्यादा असर दिखाया था। बहरहाल जोगी रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी और जोगी नही रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी ऐसी चर्चा को जोगी तो कामन है। वैसे केन्द्रीय नेतृत्व को यह तय करना होगा कि जोगी नहीं तो कौन?
दिग्गी की सक्रियता
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मप्र सहित छत्तीसगढ़ में जल्दी ही सक्रिय होने की चर्चा है। सूत्र कहते है कि दिग्गी राजा तो यदि छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया जाय तो कांग्रेस की गुटबाजी कम जरूर हो सकती है। अविभाजित मप्र के 10 साल मुख्यमंत्री रहते हुए उनके छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेसी नेताओं से अच्छे संबंध है। वर्तमान नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल उनके मंत्रिमंडल के सदस्यरह चुके है तो अजीत जोगी और दिग्गी राजा के राजनीतिक गुरू भी अर्जून सिंह रह चुके हैं। केन्द्रीय राज्य मंत्री डा. चरणदास महंत कभी उनके मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके है तो उन्ही की सलाह पर पहली बार डा. चरण को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से भी उनके संबंध बहुत अच्छे नही तो बुरे भी नहीं है।
बहरहाल दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ के ठाकुर रमन सिंह पर भी हमला तेज कर दिया है। भोपाल में हाल ही पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह ने माओवादियों से समझौता किया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान जिन क्षेत्रों में माओवादियो ने मतदान बहिष्कार का ऐलान किया था वहां 70 से 80 प्रतिशत मतदान हुआ जिसमें 90 प्रतिशत मत भाजपा को मिले है। उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह और भाजपा के संस्कार संस्कृति लेनदेन के हैं। खैर बात आरोप की नहीं। इस बयान से यह तो स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस हाईकमान की नजर भी बस्तर में है। वैसे भी बस्तर के चुनाव परिणाम छत्तीसगढ़ की सत्ता की कुंजी है यह तो तय है।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन पुलिस अधीक्षकों के फेरबदल की चर्चा है। वैसे अब जिलों की कमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को नही सौंपने का भी निर्णय हो चुका है।
0 छत्तीसगढ़ मंत्रालय में प्रमुख सचिवों के भी बदलने की चर्चा है। एक प्रमुख सचिव से एक बड़ा विभाग वापस लिया जाना तय माना जा रहा है। लोक आयोग की लताड़ के बाद भी वे नहीं सुधरे हैं।

Tuesday, December 4, 2012

जंग तो सबके लिये एक जैसी होती है,
हारते हैं वही जो हौसला नहीं रखते

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल होना है और अभी से कयास लगाने का दौर शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री डा.  रमन सिंह के साथ उनकी पत्नी श्रीमती वीणा सिंह या पुत्र अभिषेक सिंह भी अगले चुनाव में उतर सकते हैं। सूत्र कहते हैं कि राजनांदगांव, डोगरगांव, कवर्धा, बेमेतरा आदि विधानसभा क्षेत्र पसंदीदा हो सकते हैं। कोई कहता है कि गुप्त सर्वे से अच्छी रिपोर्ट आई है, कुछ कहते है कि मकान आदि खरीदने की योजना बन रही है। हालांकि भाजपा के सूत्र कहते है केवल डा. रमन सिंह ही चुुनाव समर में उतरेंगे, चूंकि उन्हें तीसरी बार सरकार बनाना है इसलिये वे परिवार में से किसी और को भी प्रत्याशी बनाना पसंद नहीं करेंगे। बहरहाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा छग के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी अभी मरवाही से विधायक है पत्नी डा. रेणुका जोगी कोटा से विधायक है और इस बार चुनाव समर में अमित जोगी भी उतरेंगे यह तय है। सूत्र कहते है कि एक ही परिवार के तीन लोगों को विधानसभा प्रत्याशी बनाना मुश्किल होगा पर अजीत जोगी तो अजीत जोगी है। विधायक पत्नी को बिलासपुर लोकसभा से आखिर प्रत्याशी बनवा दिया था, डा. शिव डहरिया को विधायक रहते लोस की टिकट दिलवा दी थी। खैर सोनिया, राहुल गांधी से अजीत जोगी बहुत दूर हो गये है यह अफवाह फैलाने वालों के कलेजे में तब सांप लोट गया था जब राहुल गांधी ने अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर लिया। इधर चर्चा यह भी है कि अजीत जोगी महासमुंद से लोस चुनाव लड़ सकते है, चर्चा यह भी है कि डा. रेणुका जोगी बिलासपुर लोकसभा से चुनाव लड़कर कोटा विधानसभा सीट अमित के लिये खाली कर सकती है वैसे यह चर्चा गर्म है कि अमित जोगी, डा. रमन सिंह सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल के खिलाफ बिलासपुर से चुनाव समर में उतर सकते हैं। वैसे यह तय है कि अमित जोगी किसी सामान्य सीट से ही चुनाव लडेंगे। इधर शहर विधायक बृजमोहन अग्रवाल, देवजी भाई पटेल आदि के भी वर्तमान विस सीट बदलने की चर्चा है। इधर एक पूर्व महापौर तथा चेम्बर आफ कामर्स के 2 पदाधिकारियों की भी विस चुनाव में उतरने की चर्चा गर्म है। राजधानी की महापौर डा. किरणमयी नायक लोकसभा तो नहीं पर शहर की 4 विधानसभा में एक से लडऩे की तैयारी कर रही हैं।
सस्ता कोयला महंगी बिजली
कोल मंत्रालय ने आईएमजी की अनुशंसा पर भटगांव एक्सटेशन 2 कोल ब्लाक का आबंटन रद्द कर दिया है बैंक गारंटी 1.59 करोड़ राजसात कर लिया है इधर छग खनिज निगम इस फैसले के खिलाफ न्यायालय जाने पर विचार कर रहा है। छत्तीसगढ़ में सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ के रूप में चर्चित कोयला निकाला जा रहा है। सूत्र कहते है कि अंग्रेजों के जमाने से ही कोल खनन का कार्य चल रहा है। आजादी के बाद भी खनन बस्तूर जारी रहा, जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर कोयला खनन होता रहा है। आजादी के बाद कई वर्षों तक कोयला के उत्खनन का कोई लेखा जोखा ही नहीं रखा गया। करीब 2030 साल पूर्व ही केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेने की शुरूवात हुई। अविभाजित मप्र तथा छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनने के बाद भी कोयले का अवैध उत्खनन जारी है।
प्रदेश में प्रकाश इंडस्ट्रीज सबसे बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है। रायगढ़ जिले के चोटिया , मदनपुर नार्थ और फतेहपूर ब्लाक के कई हिस्सों मे ंप्रकाश इंडस्ट्रीज कोल खनन में लगी है। यह इंडस्ट्रीज 2003 से उत्खनन कर रही है हालांकि इसे 4037.534 हेक्टेयर में खनन का अधिकार है पर अत्याधिक खनन, निर्धारित क्षेत्र से भी बाहर खनन, सरकार को गलत जानकारी देने आदि का आरोप लगातार लगाया जाता है, नोटिस दिया जाता है पर अभी भी उत्खनन जारी है।
राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल की रायगढ़ स्थित जिंदल इस्पात एक पावर लिमिटेड ने तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1996 से खनन कर रही है। उसे रायगढ़ जिले का गोरेपेलमा ब्लाक आबंटित हुआ था और 2051.626 हेक्टयर के बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है।
जिंदल पावर की सबसे बड़ी चर्चा इस बात को लेकर है कि वह सरकार से कोयला तो सस्ता खरीदा है पर बिजली महंगी बेचता है।
रायगढ़ स्थित जिंदल का कोयला आधारित पावर जेएसपीएल देश का पहला पावर प्रोजेक्ट है जो मर्चेंट पावर के आधार पर संचालित हो रहा है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार के साथ कोई समझौता नहीं है कि वह सरकार को उत्पादित बिजली देगा साथ ही वह बाजार में किसी को भी बिजली बेच सकता है। जेएसपीएल यानि जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड ने 1000 मेगावाट के प्रोजेक्ट को 2008 में शुरू किया था करीब एक साल तक इसने 6 रूपये प्रति यूनिट पर बिजली बेची थी। उसे केवल दो साल में ही इतना लाभ हुआ कि 2010 तक अपना सभी ऋण चुकता कर दिया और उसे इस दौरान 4338 करोड़ का लाभ हुआ। सूत्र कहते है कि जिंदल को कोयला 300-400 रूपये प्रति रू. पड़ा था तो सरकारी कंपनी एनटीपीसी को 1200 रूपये, लेंको अमरकटंक को 1020 रूपये प्रति टन कोयला उपलब्ध कराया गया था।
सस्ता कोयला मिलने पर भी जिंदल पावर ने बाद में 3.85 पैसे प्रति यूनिट की दर पर 2011-12 में बिजली बेची जबकि एनटीपीसी ने 2.20 पैसे लैको ने 6.67 पैसे प्रति यूनिट की दर में बिजली बेची थी। इसीलिये जिंदल को 1765 करोड़ का मुनाफा हुआ तो लैको अमरकंटक को सिर्फ 155 करोड़।
नवीन जिंदल है क्या?
खैर जिंदल ग्रुप के मालिक तथा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल को पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल कांग्रेसी नहीं मानते हैं तो अजीत जोगी उन्हें कांग्रेसी ही मानते हैं। डा. चरणदास महंत सीधे आरोप लगाने से बचने है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल कोई भी टिप्पणी करने से परहेज करते हैं।
वैसे रायगढ़ में जिंदल के संयंत्र की स्थापना में शुक्ल बंधुओं की अहय भूमिका रहीहै। यह संयंत्र तब स्थापित हुआ जब व्हीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और सुंदरलाल पटवा अविभाजित मप्र के मुख्यमंत्री थे।
शुरूवाती दौर में नवीन के पिता ओ.पी. जिंदल और विद्याचरण शुक्ल में गहरी दोस्ती थी पर न जाने क्यों नवीन से विद्याचरण शुक्ल काफी नाराज है और रायगढ़ जाकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
वैसे जिंदल की ही सिस्टर कंसर्न मोनेट भी कोल उत्खनन में पीछे नहीं है। कंपनी का कब्जा रायगढ़ जिले के राजगामार दीपसाईड ब्लाक है। अधिकारिक तौर पर इस कंपनी को 1455 हेक्टेयर जमीन पर उत्खनन करने का अनुबंध है पर वह कितने क्षेत्र में उत्खनन कर रही है इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है।
40 साल की राजनीति
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के प्रमुख नेताओं में एक तथा छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने 1972 में पहली बार परपाली विधानसभा से चुनाव लड़ा था यह बात और है कि वे पहला चुनाव जनसंघ से लड़कर पराजित हो गये थे पर 1977 में जनता पार्टी प्रत्याशी बतौर उन्होंने बिजयश्री प्राप्त की थी और वे उस समय संसंदीय सचिव बने थे। उन्हीं के साथ ही आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी संसदीय सचिव बने थे। खैर 1972 से यदि ननकीराम कंवर की सक्रिय राजनीति में प्रवेश माना जाए तो 2012 में इस साल उन्हें सक्रिय राजनीति के 40 साल पूरे होने चुके है। अविभाजित मप्र में पटवा मंत्रिमंडल में कृषि, वन, जन शक्ति नियोजन मंत्री रहे, छत्तीसगढ़ में पहले कृषि मंत्री भी रहे पर डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में 2004 में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। कारण जो भी हो उनकी फिर 13 माह बाद ही मंत्रिमंडल में वापसी हो सकी थी। वैसे वे गृहमंत्री, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। प्रोटोकाल के हिसाब से गृहमंत्री का ओहदा मुख्यमंत्री के बाद होता है यानि वे मंत्रियों में वरिष्ठ है, प्रोटोकाल तथा अनुभव के मुकाबले। फिर भी उन्हें वह तवज्जों नहीं मिल रही है। आलम यह है कि न तो उन्हें पुलिस मुख्यालय तवज्जों देता है और न ही सहकारिता मुख्यालय। उनके आदेशों पर कार्यवाही करने की बात तो दूर तबादला, पदोन्नति आदि की भी जानकारी उन्हें मीडिया से ही मिलती है। वैसे दूसरी बार मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उनकी आक्रमक क्षमता भी मंद पड़ती जा रही है।
और अब बस
0 नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री पद का योग्य प्रत्याशी बताया है। मप्र के एक मंत्री विजयवर्गीय ने भी तो डा. रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखने वाले नेता बताया है।
0 पुलिस मुख्यालय सहित फील्ड में पदस्थ कुछ महानिरीक्षक, पुलिस कप्तानों के बदलने की चर्चा है। एक टिप्पणी...गृहमंत्री को छोड़कर सभी की राय को अहमियत दी जाएगी।
0 एक पूर्व मंत्री एक बड़ी कंपनी के पीछे पड़ गये है चर्चा है कि कंपनी प्रबंधन ने उक्त कांग्रेसी नेता की जमीन खरीदने से इंकार कर दिया है यही है नाराजगी का कारण।