Tuesday, December 20, 2011

बादलों ने फिर शरारत की
धरती के नाम विरासत की
नदियों का जल इक_ïा हो गया
तब समुंदर ने बगावत की

छत्तीसगढ़ की राजनीति तथा प्रशासन में ए,आर, और एस अक्षर से शुरू होने वाले नामधारी लोगों का बड़ा दबाव है। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त (एस) मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (आर) पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी (ए) पुलिस प्रमुख अनिल एम नवानी (ए) जेल प्रमुख संतकुमार पासवान(एस) प्रदेश के वरिष्ठï आईएएस सुनील कुमार (एस) भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर पैकरा (आर) महिला कांगे्रस अध्यक्ष अंबिका मरकाम (ए) इस श्रेणी में शामिल हैं तो एन नाम धारियों में विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल, प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, प्रमुख आईएएस नारायण सिंह शामिल हैं। विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक (डी) मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन (पी) तथा डीजी होमगार्ड विश्वरंजन (व्ही) के प्रथम अक्षरवाले लोगों की संख्या जरूर कम है।
छत्तीसगढ़ राज्य में 'एÓ, 'आरÓ तथा 'एसÓ नाम की शुरूवात वाले व्यक्ति पूरे फार्म में हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार सहित प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस की बात करें तो इन नाम वाले चर्चा में हैं। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त 'एसÓ नाम वाले हैं तो प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी 'एÓ तथा पिछले 8 सालों से भाजपा सरकार के मुखिया बने डॉ. रमन सिंह 'आरÓ नाम वाले हैं। डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का विवाह 'एÓ नाम वाली 'एश्वर्याÓ से हुआ है तो अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी 'आरÓ नाम वाली है। वहीं जोगी दंपत्ति के पुत्र अमित का विवाह भी 'आरÓ नाम वाली ऋचा से 2 दिन पूर्व ही संपन्न हुआ है। अजीत और अमित 'एÓ नाम वाले हैं तो रेणु और ऋचा 'आरÓ नाम वाली है। वैसे डॉ. रमन सिंह की पत्नी वीणा सिंह डी जी विश्वरंजन विक्रम सिसोदिया 'व्हीÓ नाम वाले होकर भी चर्चा में हैं तो विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक 'डीÓ उपाध्यक्ष नारायण चंदेल, गृहमंत्री ननकीराम कंवर, वरिष्ठ सांसद नंदकुमार साय तथा मुख्यसचिव की दौड़ में शामिल नारायण सिंह, कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार 'एनÓ नामधारी है तो 'पीÓ नाम धारी जॉय उम्मेन भी कम चर्चा में नहीं है। पी नामधारी बृजमोहन अग्रवाल, बद्रीधर दीवान भी चर्चा में रहते हैं।
'एÓ नामधारियों में अपने बयानों के लिये चर्चा में स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल, पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी, छत्तीसगढ़ प्रेम में अपनी अखिल भारतीय सेवा को त्यागने वाले अमन सिंह, एडीजी तथा ओएसडी ए एन उपाध्याय, हस्तशिल्प बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह, पापुनि के अध्यक्ष अशोक शर्मा, पिछला विस चुनाव हारकर वित्त आयोग के अध्यक्ष बने अजय चंद्राकर, बिलासपुर के पुलिस महानिदेशक ए डी गौतम, आईपी एस अफसर आनंद तिवारी भी चर्चा में हैं।
'आरÓ नाम वालों की चर्चा
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री राजेश मूणत, राम विचार नेताम, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस, भाजपा के संगठन प्रमुख रामप्रताप सिंह, बर्खास्त कर्मचारी से उसी विभाग के सर्वेसर्वा बने राधाकृष्ण गुप्ता, आईएएस आर पी मंडल रायपुर, दुर्ग में पुलिस कप्तान रह चुके तथा वर्तमान में आईजी दुर्ग के पुलिस महानिरीक्षक होमगार्ड आर सी पटेल, डीआईजी रविन्द्र भेडिय़ा, कप्तान आर एल डांगी भी कम चर्चा में नहीं हैं।
एस नाम वाले भी
'एसÓ शब्द से नाम शुरू होने वालों में सबसे बड़ा नाम है। राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त का। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर संभाग के आयुक्त भी शेखर दत्त रह चुके हैं। वहीं नौकरशाहों में मुख्य सचिव बनने में सशस्त्र दावेदारी करने वाले सुनील कुमार का नाम भी इस श्रेणी में शामिल है। बस्तर के आदिवासी अंचल से अपनी नौकरी की शुरूआत करने वाले सुनील कुमार भी रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। कभी रायपुर में अपर कलेक्टर निगम प्रशासक रहने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव बनकर सेवा निवृत्त होकर आजकल सत्ताधारी दल के करीबी शिवराज सिंह भी एक बड़ा नाम है। दुर्ग में महापौर फिर विधायक और सांसद बनकर रिकार्ड बनाने वाली सुश्री सरोज पांडेय भी 'एसÓ श्रेणीधारियों का नेतृत्व करती हैं। जेल महानिदेशक संतकुमार पासवान भी पहले पुलिस कप्तान रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, आईजी बस्तर, रायपुर रह चुके हैं। मुख्यमंत्री के काफी करीबी सुबोध सिंह, संजीव बख्शी, क्रेडा के एस के शुक्ला भी एस नामधारी ही हैं।
भाजपा सरकार के प्रमुख संगठन प्रभारी सौदान सिंह भी छत्तीसगढ़ में जाना पहचाना तथा चर्चित नाम है। इनके अलावा शिवप्रताप सिंह, सुभाष राव, शिवरतन शर्मा, सच्चिदानंद उपासने, श्याम बैस, सुनील सोनी, संतोष पांडे, आईएएस सुब्रत साहू, एस एस बजाज भी कम चर्चा में नहीं है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने शरद जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी, रविवि के कुलपति एस के पांडे भी 'एसÓ नामधारी हंै। कवि पदमश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की चर्चा तो और भी जरूरी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 11 सालों से वे ओएसडी बने हुए हैं। अजीत जोगी के समय भी थे और डॉ. रमन सिंह के समय भी हैं। एक और नाम की भी चर्चा जरूरी है। जनसंपर्क विभाग के स्वराज कुमार दास भी राज्य बनने के बाद से अभी तक मुख्यमंत्री का जनसंपर्क सम्हाल रहे हैं।
एक तिहाई विधायक भी
छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में करीब एक तिहाई से अधिक विधायक 'एÓ, 'आरÓ और 'एसÓ से शुरू वाले नामधारी हैं। यह भी एक रिकार्ड ही है। वैसे ये सभी विधायक भाजपा, कांगे्रस और बसपा के हैं।
सुश्री रेणुका सिंह (प्रेमनगर) राम विचार नेताम (रामानुजगंज), सिद्धनाथ पैकरा (सामरी), रामदेव राम (लुण्ड्रा), अमरजीत भगत(सीतापुर), रामपुकार सिंह (पत्थल गांव), डॉ. शक्राजीत नायक (रायगढ़), ओमप्रकाश राठिया (धरमजयगढ़) राम दयाल उइके (पाली-तानाखार) अजीत जोगी (मरवाही) डॉ. रेणु जोगी (कोटा) राजूसिंह ठाकुर (तखतपुर), अमर अग्रवाल (बिलासपुर), सौरभ सिंह (अकलतरा), श्रीमती सरोजा मनहरण राठौर (सक्ती), महंत राम सुंदरदास (जैजैपुर), अग्निचंद्राकर (महासमुंद), डॉ. शिव डहरिया (बिलाईगढ़), राजकमल सिंघानिया (कसडोल), राजेश मूणत (रायपुर पश्चिम), रुद्र कुमार गुरु (आरंग), अभिषेक शुक्ला (राजिम), श्रीमती अंबिका मरकाम (सिहावा), रविंद्र चौबे (साजा), मो. अकबर (पंडरिया), सियाराम साहू (कवर्धा), रामजी भारती (डोंगरगढ़), डॉ. रमन सिंह (राजनांदगांव), शिवराज सिंह उसारे (मोहला-मानपुर), श्रीमती सुमित्रा मारकोले (कांकेर), सुभाऊ कश्यप (बस्तर), संतोष बाफना (जगदलपुर), शामिल हैं। वहीं प्रमुख पूर्व विधायकों में रामचंद्र सिंहदेव, स्वरूपचंद जैन, सत्यनारायण शर्मा, शंकर सोढ़ी, रमेश वल्र्यानी आदि के नाम प्रमुख हैं।
मीडिया प्रमुख
राजधानी से निकलने वाले समाचार पत्र तथा इलेक्ट्रानिक्स मीडिया में भी संपादकों और ब्यूरोचीफ में ए आर और एस नाम वालों की प्रमुखता है। प्रिंट मीडिया में सर्वश्री श्याम वेताल, राजीव सिंह, रवि भोई, राजेंद्र शर्मा, शंकर पांडे, राम अवतार तिवारी, अनिरुद्ध दुबे, सुनील कुमार, राजीव रंजन, अशोक भटनागर, अशोक साहू, (वार्ता) राजेंद्र शुक्ला (आरएनएस), एजाज केसर, आर कृष्णादास, शेष करण जैन, अरविंद अवस्थी आदि के नाम शामिल हैं तो इलेक्ट्रानिक मीडिया में सर्वश्री रुचिर गर्ग, शिरीष मिश्रा, सुनील नामदेव, शैलेष पांडे, संजय शेखर, संदीप ठाकुर के नाम प्रमुख हैं। जहां तक जनसंपर्क संचालनालय की बात है तो आयुक्त अशोक अग्रवाल, सहायक संचालक एस आर कुरैटी, स्पराज कुमार दास, संतोष सिंह, संजय नैय्यर, राजेश श्रीवास के नाम इस श्रेणी में शामिल किये जा सकते हैं।
और अब बस
(1)
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र के विवाह समारोह में पहुंचे वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से कुछ लोगों ने वहां आटोग्राफ लिया और साथ में फोटो भी खिंचवाया। एक टिप्पणी... कांगे्रसी उनका महत्व समझते हैं पर भाजपा का राष्ट्रीय संगठन क्यों समझने तैयार नहीं है?
(2)
अमित के विवाह समारोह में उन्हें आशीर्वाद देने गृहमंत्री ननकीराम कंवर को भी भारी भीड़ के चलते इंतजार करना पड़ा एक टिप्पणी... उनकी ही पार्टी वालों ने अपनी छवि खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
(3)
पिछले विधानसभा चुनाव में शुरूआती परिणामों पर ही पूर्व मुख्यमंत्री को बधाई देने पहुंचने वाले एक आईएएस अफसर की विवाह समारोह में सक्रियता चर्चा में रही, वैसे वे दिल्ली जाने की मानसिकता बना चुके हैं।
खुले आम सजा कौन दे रहा है
निर्दोष का पता कौन दे रहा है
बाजार में हो रही है सरेआम हत्या
सल्फी का मजा कौन ले रहा है

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरनारायण सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आदिवासी समाज की 32 फीसदी आरक्षण एवं संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के नाम पर आयोजित रैली ने सरकार के कान खड़ेे कर दिये हैं। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल ने आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण देने की सैद्धांंतिक सहमति बना ली है पर प्रदेश में इससे कुल आरक्षण 58 प्रतिशत हो जाएगा जबकि सर्वोच्च न्यायालय 50 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में पूर्व में फैसला दे चुका है। एक-दो राज्यों में जरूर आरक्षण का प्रतिशत 50 से ऊपर है पर वहा बकायदा आयोग बनाकर, परीक्षण कर लागू किया गया है।
'एक वीर एक कमान सभी आदिवासी एक समानÓ इस नारे के साथ आदिवासी समाज के 34 संगठनों ने छत्तीसगढ़ के 10 स्थानों पर रैली और सभा लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप मढ़ा है। रैली, सभा में जारी पर्चे में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का एक तिहाई 66.19 लाख आदिवासी जनसंख्या है, हमारी बदौलत ही सरकार बनती है फिर भी शासन-प्रशासन को सबसे अधिक अपमान और पीड़ा आदिवासी समाज को झेलनी पड़ती है। सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (4), 16(4) (क) (ख), 46, 47, 48(क), 49,225, 243(घ,ड़), 243 (य, ग), 244(1), 275, 330, 332, 335, 338, 339, 342 तथा 5 बी अनुसूची में अनुसूचित जातियों के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास के पर्याप्त प्रावधान के बावजूद आदिवासी समाज का अपेक्षित विकास क्यों नहीं हो रहा है। आरोप तो यह भी लगाया गया है कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के क्रियान्वयन की बजाय आदिवासी समाज को 1-2 रुपए किलो चावल में खरीदने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि 32 प्रतिशत आरक्षण शासकीय नौकरियेां सहित शिक्षण संस्थाओं में भी लागू किया जाए।
छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 धारा 165(6) के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों द्वारा क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध है पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बस्तर में टाटा एस्सार, रायगढ़ एवं जशपुर जिले में जिंदल, कोरबा जिले में बालको और वेदांता तथा सरगुजा जिले में भारी उद्योग लगाने भूमि अधिग्रहित कर आबंटित की जा रही है जिससे आदिवासी भूमि स्वामी दर-दर की ठोकर खाने मजबूर हैं। भू अर्जन अधिनियम 1884 यथा संशेधित 1994 में शासकीय प्रयोजनों जैसे तालाब, सड़क, रेल पटरी आदि के निर्माण हेतु भूअर्जन का प्रावधान था पर सरकार लगातार, संशोधन कर निजी कंपनियों के लिये भूमि अधिग्रहित कर माटीपुत्र आदिवासियों को बेदखल कर रही है। इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों के नगरीय निकायों में असंवैधानिक चुनाव कराकर 3 नगर निगम, 7 नगर पालिका तथा 264 पार्षदों के पद छीनकर गैर आदिवासियों को दे दिया गया है। इसके अलावा फर्जी प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं करने, आदिवासियों को नक्सली समर्थक मानकर प्रताडि़त करने, फर्जी मुठभेड़ में हत्या कराने, जेल में बंद करने का भी आरोप सरकार पर लगाया है।
वीसी-बैस की हालत
एक जैसी!
छत्तीसगढ़ में सबसे वरिष्ठ सांसद बनने का गौरव पाने वाले विद्याचरणश्ुाक्ल तथा रमेश बैस की हालत कुछ एक जैसी ही है। विद्याचरण शुक्ल फिलहाल सांसद नहीं है पर रमेश बैस सांसद हैं पर क्रमश: केन्द्र की सरकार और राज्य की सरकार में दोनों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
विद्याचरण शुक्ल कांगे्रस के वरिष्ठ नेताओं में से एक है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ उन्हें काम करने का अनुभव है। 1957 बलौदाबाजार लोस से अपनी राजनीतिक पारी बतौर सांसद उन्होंने शुरू की थी और 1966 में पहली बार संसदीय कार्य तथा संचार मंत्रालय में उपमंत्री बने थे। उसके बाद गृह, वित्त, रक्षा योजना, सूचना एवं प्रसारण, नागरिक आपूर्ति सहकारिता, विदेश, जल संसाधन तथा संसदीय कार्य जैसे कई मंत्रालय का कार्य सम्हाला। हालांकि कांगे्रस छोड़कर विद्याचरण शुक्ल जनमोर्चा, राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी सहित भाजपा का भी चक्कर लगा चुके हैं। बतौर भाजपा प्रत्याशी वे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी महासमुंद से पराजित भी हुए थे। उन्हें प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार नहीं देने में सहयोग देने के नाम पर भाजपा नेतृत्व ने उपकृत किया था पर बतौर भाजपा प्रत्याशी पराजय के बाद वे कांगे्रस में लौट आए हैं। कांगे्रस में वापसी के बाद उनकी स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पिछले लोस चुनाव ें वे महासमुंद से कांगे्रस की टिकट चाहते थे पर वहीं से अजीत जोगी ने भी टिकट के लिये दबाव बनाया था और दोनों को टिकट नहीं मिली। हां पिछले विधानसभा चुनाव में उनके एकमात्र समर्थक संतोष अग्रवाल को जरूर रायपुर की एक विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया था पर वे भी पराजित रहे। ऐसा लगता है कि अपनी ही पार्टी में पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं।
छत्तीसगढ़ में पार्षद विधायक होकर लोकसभा का सफर तय करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश बैस वरिष्ठ सांसद है। ब्राह्मणपारा से वे पिछले 78-83 पार्षद चुने गये फिर 1980 में वे मंदिर हसौद से विधायक बने। 1989, 96, 98, 99, 2004, 2009 में वे रायपुर लोकसभा से चुने गये। पूर्व मुख्यमंत्री पं.श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने का भी श्रेय उनके खाते में दर्ज है। यही नहीं इस्पात एवं खनन रसायन एवं उर्वरक, सूचना एवं प्रसारण, पर्यावरण एवं वन, मंत्री भी वे केन्द्र में रहे। भाजपा और आरएसएस के वे स्थापित नाम हैं।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़कर प्रदेश में पहले विस चुनाव की बागडोर उन्हें सौंपने की पहल हुई थी पर उनके स्थान पर डॉ. रमन सिंह ने वह चुनौती स्वीकार कर ली और पिछले 8 साल से लगातार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड पूरा कर रहे हैं। रमेश बैस और प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया के बीच मनभेद कई बार सार्वजनिक हो चुके हैं। पार्टी मंचों सहित कुछ अन्य मंचों पर सरकार की कार्यप्रणाली पर रमेश बैस प्रहार भी कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की है तो सीमेंट के बढ़ते दामों पर चिंता प्रकट करते हुए आंदोलन तक की धमकी दे डाली है। वही तीरदांजी संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी नाराजगी खेल संघ के संचालक आईपीएस अफसर से है। वैसे ये वही अफसर हैं जिन पर फर्जी नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का आरोप पहले भी लग चुका है। रमेश बैस ही हालत तो यह है कि प्रदेश सरकार के अफसर उनकी सिफारिशों को तवज्जो नहीं देते हैं कुद मंत्री तक उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। बहरहाल कांगे्रस तथा भाजपा के दोनों वरिष्ठ नेताओं की हालत कुछ एक जैसी ही है।
हम साथ-साथ हैं!
छत्तीसगढ़ के आला पुलिस अफसर एक साथ तभी दिखाई देते हैं जब मुख्यमंत्री या केन्द्रीय गृह मंत्री आकर कोई बैठक लेते हैं इसमें भी केवल मुख्यालय में पदस्थ अफसर शामिल होते हैं या जिला मुख्यालयों में तैनात अफसर शामिल होते हैं पर प्रतिनियुक्ति में गये पुलिस अफसर, साथ-साथ कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। पर हाल ही में एक समारोह में पुलिस के कई आला अफसरों को साथ-साथ देखकर सुखद अनुभूति ही हुई। छत्तीसगढ़ होमगार्ड के खेल समापन समारोह में गवर्नर शेखर दत्त, गृहमंत्री ननकीराम कंवर पहुंचे थे और उन्हीं के साथ जेल महानिरीक्षक संतकुमार पासवान, एडीसी उपाध्याय, आईजी पी एन तिवारी, संजय पिल्ले, आनंद तिवारी, बी एस मरावी, देवांगन पहुंचे थे। प्रदेश के मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन सार्वजनिक समारोह में कम ही दिखाई देते हैं पर वे भी वहां पहुंचे थे। कार्यक्रम में डीजी होमगार्ड विश्वरंजन तथा आर सी पटेल तो बतौर आयोजक वहां पहुंचे थे। कहा जाता है कि आईजी होमगार्ड आर सी पटेल के अनुरोध पर सभी अधिकारी वहां गये थे। चलो प्रयास किसी का भी हो सभी पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी अच्छा संकेत है। हां होमगार्ड में कभी डीजी रहे तथा अब पुलिस डीजी बने अनिल नवानी की अनुपस्थिति जरूर चर्चा में रही।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ सरकार के करीबी एक चिकित्सक ने बाल आश्रम में कब्जा करने काफी मेहनत की यह बात और है कि उन्हें सफलता नहीं मिली।
(2)
छत्तीसगढ़ में चल रहे पर्चा विवाद पर कुछ आर एस एस, भाजपा नेता चिंतित हैं। चर्चा है कि एक बड़े नेता के इर्द-गिर्द रहने वाले ही एक नेता पर शक क सुई पहुंच रही है पर आरएसएस का करीबी होने के कारण उन्हें दण्ड भी तो नहीं दिया जा सकता है।
(3)
मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने डॉ. रमन सिंह पर कोई आरोप नहीं लगाया है। इसका खुलासा भी आनन-फानन में कर दिया एक टिप्पणी... हम सभी ठाकुर साथ-साथ हैं।

Saturday, December 10, 2011

मैं बोलता गया हूं वो सुनता रहा खामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी-कभी

छत्तीसगढ़ को ऊंची पर्वतीय चोटियों और इन पर उगे प्राकृतिक खजाने साल, सागौन, बीजा तथा बांस के सदाबहार वन, जंगली औषधियों और इन क्षेत्रों में आश्रय पाने वाले विविध वन्य प्राणियों, रंग-बिरंगी चिडिय़ों के स्वप्निल संसार ने देशी-विदेशी लेखकों, सैलानियों को सदा अपनी ओर आकर्षित किया है। छत्तीसगढ़ के वन्यप्राणियों की विविधता की प्रचूर संया थी पर शानदार प्रजातियां लगातार कम होती जा रही है। पहले वन विभाग के अमले को ग्रामीणों की सहायता मिलती थी और वनों तथा वन्यप्राणियों के
संरक्षण में उनकी महती भूमिका होती थी पर आजकल तो ग्रामीण जन ही वन्यप्राणियों के दुश्मन बन गये हैं और इसका कारण है वन विभाग का असहयोगात्मक रवैया। हाल ही में 3 शेर मारे गये, कुछ हाथियों की भी संदिग्ध मौत हो गई, दरअसल छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश में वन्यप्राणियों और मानव के बीच सीधे संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई है और इसके लिये कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।
पंडित मुकुटधर पांडे ने जिस 'कुर्रीÓ की पीड़ा को देखकर छायावाद की धारा का प्रवाह शुरू किया था वह 'कुर्रीÓ अब छत्तीसगढ़ से गायब है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर और बस्तर संभाग में वन भैसा को राजकीय पशु घोषित किया है उसकी भी संया घटती जा रही है। इसके लिये अभी से वन भैसा संरक्षण परियोजना प्रारंभ किया जाना जरूरी है। छत्तीसगढ़ में कभी विशाल बारहसिंगा पर्याप्त संया में थे इनके अलावा काला हिरण (ब्लैक बक) भी पाये जाते थे पर आजकल यह समाप्त प्राय है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय की बात
करें तो दुनिया का सबसे तेज धावक माने जाने वाला चीता भी छत्तीसगढ़ में पाया जाता था पर बैकुंठपुर (कोरिया) में एक रात में ही 3 चीतों को मार डाला गया और देश में दु्रतगामी इस जीव का अंत हो गया। उडऩे वाली गिलहरी भी बस्तर में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान सहित बादलखोल अयारण्य में गिनी चुनी ही बची है ऐसा कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में कभी भेडिय़े, सोन कुत्ते, अचानकमार के जंगलों में खरगोश के आकार का माऊस डियर भी अब दिखाई नहीं देता है। साल के वनों में पाई जाने वाली फरदार सुंदर बड़ी गिलहरी की
उछल-कूद भी अब नहीं दिखाई देती है। बस्तर की मैना भी दुर्लभ हो चली है। मधुरस्वर में गाने वाली पक्षियों में काले रंग के भृंगराज तथा अमराइयों में पंचम स्वर में गाने वाली कोयल के स्वर भी मंद होते जा रहे हैं। प्रवासी पक्षियों में फेमिंगो (राजहंस), पेलिकान के अलावा भी कई पक्षी छत्तीसगढ़ में बड़ी संंया में आते थे लेकिन अब यदाकदा ही दिखाई देते हैं।
बसंत के समय टेसू के फूलों पर चहचहाने वाला टिनिफर स्टॉलिंग अब दिखाई नहीं देता है। भारतीय सर्पों के विषय में सर्वमान्य पुस्तक 'स्नेकऑफ इंडियाÓ में डॉ. पी जे देवरस ने लिखा है कि अजगर की सबसे बड़ी प्रजाति 'पाइथन एरिव्कुलसÓ सन 1030 में रतनपुर में अंतिम बार दिखाई दी थी। यह विशाल अजगर 30 फीट लबा होता था लेकिन यह प्रजाति भारत में ही समाप्त हो गई है। जशपुर, फरसाबहार आदि के क्षेत्र को आज भी 'नागलोकÓ कहा जाता है। यहां हर साल सैकड़ों ग्रामीण की सांप काटने से मौत हो जाती है। यहां करैत जैसा
जहरीला सांप भी पाया जाता है। राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में 'स्नेक पार्कÓ बनाने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा है पर यह लंबित है। राज्य सरकार को ठोस पहल करना चाहिए ताकि 'स्नेक पार्कÓ बनने से वहां के लोगों की जान तो बचेगी वहीं सांप के जहर से बन रही दवाइयों के लिये भी छत्तीसगढ़ राज्य का योगदान रहेगा।
जांजगीर जिले में 'मगरमच्छ पार्कÓ को पिछली राज्य सरकार ने प्रस्तावित किया था कुछ कार्य भी किया था उसे भी संरक्षण की जरूरत है। पता चला है कि क्रोकोडाइल पार्क के कुछ किलोमीटर के पास ही एक उद्योग स्थापित हो रहा है निश्चित ही इससे इस पार्क तथा मगरमच्छ के संरक्षण पर असर पड़ेगा। कुल मिलाकर राज्य सरकार को कुछ कड़े निर्णय लेने ही होंगे।
आजकल 'अपने छत्तीसगढ़Ó में जिस तरह वनों का विनाश जारी है, शेर और हाथियों को मारने का सिलसिला चल रहा है उससे तो लगता है कि 'वन्यजीवÓ अब दुर्लभ हो जाएंगे। वैसे वन अमला वनों की सुरक्षा और वनप्राणियों की रक्षा को छोड़कर बाकी सभी काम कर रहा है जो उसे करना ही नहीं था।
छत्तीसगढ़ में हाल-फिलहाल ही 3 बाघों की मौत हो चुकी है और वन अमला मामले की लीपापोती में ही लगा है। पहले पंडरिया विकासखंड के अमनिया गांव में एक बाघ की सड़ी-गली लाश मिली थी उसे वन अमला 'लकड़बग्घाÓ मारने की रट लगा रहा था। बाद में कुछ वन्य प्राणी विशेषज्ञों के हस्तक्षेप के बाद उसे बाघ मानने तैयार हुआ। बिलासपुर में भी बाघिन के दांत मिले थे पर पत्रकारों के सामने ही एक वन अधिकारी इसे 'पगोलिनÓ का दांत होना ठहरा रहा था और अपने तर्क भी दे रहा था पर वहां उपस्थित डाक्टर ने उसे बहस से
रोका और बताया कि पैंगोलिन के तो दांत ही नहीं होते हैं।
इधर कवर्धा क्षेत्र में कुछ ग्रामीणों ने एक वनराज को पीट-पीट कर मार डाला। जांच हो रही है और जांच कैसे होती है रिपोर्ट में क्या होता है यह किसी से छिपा नहीं है। हाल ही में भोरमदेव के पास जामनीपाली गांव के निकट भी एक बाघिन का शव मिला है। उसकी मौत मृत गाय की लाश में जहर मिलाने और उसे खाने से हुई है ऐसा वन विभाग के लोगों का कहना है वैसे एक बाघिन अपने दो शावकों के साथ क्षेत्र में धूम रही थी यह खबर वन अधिकारियों के पास पहुंची थी पर वन विभाग को तो कोई मतलब ही नहीं
था। खैर बाद में यह कहा गया कि यह बाघिन वही है और इसके शावक बड़े होने के कारण आसपास के जंगलों में चले गये होंगे। जहां बाघिन की लाश मिली है उसी के 400 मीटर दूर एक गाय की लाश मिली है और उसके शव पर जहर मिलाया गया और उसे खाकर बाघिन की मौत हुई। इधर इसके पहले वन संरक्षक वन्यप्राणी का यह बयान भी आया था कि जहां बाघिन का शव मिला था उसके आसपास दो किलोमीटर का क्षेत्र छान मारा गया है। तब तो गाय का शव क्यों नहीं मिला? खैर बाद में वन तथा पुलिस अमले ने वीरसिंह और उसके
साथियों को पकड़ा, एक रेस्ट हाऊस में अच्छी मारपीट की गई। 19 नग शेर के नाखून भी जब्त किये। अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि शेर के एक पंजे में 4 नाखून होते हैं इस हिसाब से 16 नाखून होने चाहिए फिर 19 नाखून आये कहां से! खैर वीर सिंह और साथियों ने तो शेर को मारना भी स्वीकार कर लिया है चलो बला तो छूटी।
हाथी भी संकट में
आदिवासी अंचल सरगुजा में भी हाथियों के मरने का सिलसिला चल रहा है। करंट से एक हाथी मरा, एक हाथी हाल ही में जहर के सेवन से मरा है यह कहा जा रहा है वहीं हाथी दल से बिछुड़ा एक बच्चा छाल के जंगल से मिलने पर बिलासपुर लाया गया था पर वह भी चल बसा। दरअसल सरगुजा, कोरबा, रायगढ़ आदि क्षेत्र में कई गांव जंगली हाथियों के दल हमले से परेशान है। अभी तक 18 लोगों की मौत हाथियों के हमले से हो चुकी है। कई घर, कई एकड़ खेतों की फसलें बर्बाद हो चुकी है। कुछ गांवों में रतजगा हो रहा है। इसीलिये
अब प्रतिशोध की भावना ग्रामीणों में घर कर रही है। वन अमला अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह बना हुआ है और जंगली जानवरों और ग्रामीण जनता के बीच आना नहीं चाह रहा है।
बिलासपुर गजेटियर की मानें तो भूतपूर्व मातिन और उपरोरा जमींदारी के जंगलों में 1868 में करीब 300 हाथी थे। पर धीरे-धीरे इनकी संया कम होती गई। हाथी दांत की देश विदेशों में बढ़ती मांग भी प्रमुख कारण रहा। वैसे सीमा से लगे पलामू क्षेत्र के हाथी अभी भी सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा व प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में झुंड के रूप में आकर कहर बरपा जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बिहार से आकर हाथी अपना कहर बरपाते हैं। झारखंड से भी हाथी आते हैं। वन अमला कभी हाथी अयारण्य बनाने की बात करता है तो
कभी ग्रामीणों को मशाल जलाकर, फटाका फोड़कर हाथी के दल से मुकाबला करने की समझाइश देता है। प्रदेश के हाथियों सहित बाहरी प्रदेश के हाथियों के लिये 'एलीफेण्ट प्रोजेक्टÓ की स्थापना की जरूरत है और इस के लिये केन्द्र सरकार पर भी दबाव बनाया जाना चाहिए क्योंकि जनहित पहले जरूरी है।
और अब बस
(1)
प्रेमिका (प्रेमी से) सामने की खिड़की में जो तोता-मैना बैठे हैं, दोनों रोज यहां आते हैं, साथ-साथ बैठते हैं, गुतगू करते हैं और एक हम हैं जो हमेशा लड़ते रहते हैं। प्रेमी-तुमने एक चीज नोट नहीं की है, यहां रोजाना बैठने वाले जोड़ेे में तोता तो वही होता है पर मैना हमेशा एक नहीं होती है।
(2)
राजधानी सहित 13 जिलों में एक भी गधा नहीं है, पशुधन विभाग की रिपोर्ट कहती है। एक टिप्पणी: घोड़ों को नहीं मिलती घास देखो, गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो!

chhattisgarh ka Aaina

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार के 12 दिसंबर को पूरे 8 साल होने जा रहे हैं। इन आठ सालों में लगातार मुख्यमंत्री रहकर डॉ. रमन सिंह ने भाजपाई मुख्यमंत्रियों का एक रिकार्ड बनाया है। नरेंद्र मोदी के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो एक पारी पूरी करने दूसरी पारी के भी 3 साल पूरे कर रहे हैं। यही नहीं पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में पिछले 8 सालों में उमा भारती, बाबूलाल गौर के बाद शिवराज सिंह यानि 3 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। भाजपा शासित झारखंड की भी कुछ ऐसी ही हालत है जहां तक गुजरात की बात है तो यहां के हालात कुछ अलग हैं वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनने की राह पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने पर लगातार एक भी कार्यकाल उन्होंने पूरा नहीं किया। इधर कांगे्रस के दिग्विजय सिंह ने जरूर मध्यप्रदेश में 10 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहकर एक रिकार्ड बनाया है और उन्हीं का रिकार्ड डॉ. रमन सिंह तोडऩे की राह में है। कांगे्रस में तो शीला दीक्षित ने भी रिकार्ड बनाया है। बहरहाल अपने 8 साल के सफर में डॉ. रमन सिंह ने बिना किसी चुनौती के अपना सफर पूरा किया है। हालांकि इस दौरान उन्हें 'आदिवासी एक्सपे्रेसÓ के नाम पर कुछ आदिवासी नेताओं की चुनौती मिली थी पर भाजपा हाईकमान के वरदहस्त होने के कारण उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। पर हाल ही में जो भाजपा में रंग-बिरंगे पर्चे जारी करने का दौर है उससे जरूर उनके सामने कुछ चुनौती सामने दिख रही है। हाल ही में पीले पर्चे के बाद केसरिया पर्चा भी जारी किया गया है। हालांकि पर्चा जारी किसने किया यह तो नहीं कहा जा सकता है पर उसकी भाषा देखकर यह कहा जा रहा है कि यह किसी जानकार के दिमाग की ही उपज है। इस पर्चे में डॉ. रमन सिंह को चापलूस नेताओं और ऐसे अफसरों से बचने की हिदायत दी गई है साथ ही 'समय रहते सुधर जाओÓ नहीं तो उत्तराखंड, झारखंड और कर्नाटक जैसा हाल होने की भी बात की गई है। ज्ञात रहे कि इन राज्यों में मुख्यमंत्री बदले गये है। पत्र में सीधा आरोप लगाया गया है कि चापलूस और पराजित नेताओं को पद बांटकर वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई है। पत्र में उल्लेख है कि अशोक शर्मा, अशोक बजाज, अजय चंद्राकर, लीलाराम भोजवानी आदि को पद दिया गया है। 7 पन्नों का यह पर्चा काफी चर्चा में है। इधर डॉ. रमन सिंह की परेशानी भाजपा के वरिष्ठ नेता भी बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ सांसद रमेश बैस ने प्रदेश में लोकपाल की जोरदार पैरवी करते हुए मुख्यमंत्री को भी दायरे में लाने की मांग की। वहीं सीमेंट के भाव बढऩे पर भी सरकार को आड़े हाथ लिया है तो सांसद दीलिप सिंह जूदेव ने प्रदेश में 'प्रशासनिक आतंकवादÓ संबंधी पत्र तो लिखा साथ ही 'अगला मुख्यमंत्री जशपुर से हो सकता हैÓ कहकर अपनी बात से डॉ. रमन सिंह को भी कुछ संकेत देने का प्रयास किया है। इधर नौकरशाही सरकार के नियंत्रण में नहीं है। जिस तरह प्रदेश के खनिज, जंगल यहां तक की बांध, पानी बेचा जा रहा है वह भी प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि मुख्यसचिव की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने रोगदाबांध का सौदा बिना मुख्यमंत्री तथा विभागीय मंत्री की जानकारी के कर लिया गया। बहरहाल डॉ. रमन सिंह को पार्टी असंतोष तो दूर करना होगा वहीं नौकरशाही को नियंत्रण में करना है इसके लिये वे क्या करते हैं इसका पता तो कुछ दिनों बाद ही चल सकेगा।
कांगे्रस की खेमेबाजी!
छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल भाजपा में तो असंतुष्ट खेमा पर्चेबाजी कर रहा है पर कांगे्रस में तो अब बहुत छोटे नेता भी खुलकर एक-दूसरे के विरोध में सामने आ रहे हैं। कांगे्रस की निर्वाचित महापौर किरणमयी नायक चुनाव जीतने के बाद चर्चा में है कभी आर.एस.एस के जुलूस का स्वागत करके चर्चा में आती है तो कभी प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के फरमान के बावजूद राज्योत्सव के कार्यक्रम में शिरकत करने के कारण चर्चा में रहती हंै। कभी मानसरोवर यात्रा में जाने पर ठगे जाने के नाम पर अखबार में सुर्खियां बंटोरती है पर हाल ही में तो कांगे्रस के महासचिव (हालांकि कांगे्रस भवन के सूचना फलक में प्रभारी महासचिव दर्ज हैं) सुभाष शर्मा के सुंदरनगर स्थित स्कूल में तालाबंदी के लिये चर्चा में है। स्कूलों में नगर निगम एक्ट के तहत 'करÓ नहीं लगता है पर भी स्कूल का उपयोग विवाह या अन्य सार्वजनिक समारोह किराये में देकर किया जाता है तो कर वसूली हो सकती है। इसी तारतम्य में 14 लाख की वसूली बकाया होने पर निगम के वार्डपार्षद भाई मृत्युजंय दुबे की पहल पर तालाबंदी कर दी गई। कांगे्रस के महासचिव सुभाष शर्मा को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने अपनी ही पार्टी की महापौर के खिलाफ धरना, प्रदर्शन शुरू करवा दिया है। बात कांगे्रस आलाकमान तक पहुंच गई है। महापौर डॉ. किरणमयी नायक को एक बात समझ में नहीं आ रही है कि नियमानुसार वसूली क्या गलत है? वैसे फिर नोटिस भी जारी हो गया है। कभी पार्षद पद के प्रत्याशियों के टिकट वितरण, कभी तिरंगा वाला केक काटने, कभी किसी मयखाने में हंगामा करने वाले तथा अपने ही वार्ड में कांगे्रस का पार्षद बनाने में सफल नहीं होने वाले नेता क्या निर्वाचित महापौर के खिलाफ खड़े हो सकते हैं? खैर देखे आगे क्या होता है?
अमर की बयानबाजी!
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के बयान आजकल चर्चा में है। स्वास्थ्य मंत्री को संवेदनशील होना चाहिए पर उनके बयान से हाल ही में उनकी असंवेदनशील छवि सामने आ रही है। बालोद में सरकारी अस्पताल में करीब 45-50 लोगों की मोतियाबिंद आपरेशन के तहत नेत्र ज्योति चली गई। प्रभावित मरीजों की जांच हो गई है। चेन्नई के शंकरा नेत्र चिकित्सालय में भी इलाज हेतु कुछ मरीजों को भेजने की खबर है। इस मामले में अमर का बयान चर्चा में रहा। पहले तो उन्होंने कहा कि कुछ लोग 'मुआवजाÓ के कारण गलत जानकारी दे रहे हैं। फिर उन्होंने स्वीकार किया कि आपरेशन थियेटर के कारण कुछ मरीजों को समस्याएं हुई है फिर बालोद नेत्र शिविर कांड में प्रभावित कुछ मरीजों से वे मिलने सेक्टर, अस्पताल में पहुंचे वहां भी उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मैं बालोद चला जाता तो क्या मरीज ठीक हो जाते? बहरहाल अमर अग्रवाल ने हाल ही में बिलासपुर के निजी अस्पताल के उद््घाटन में उस अस्पताल की प्रशंसा से भी वे चर्चा में आ गये हैं। छत्तीसगढ़ के सरकार अस्पतालों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की कमी किसी से छिपी नहीं है कई बार विधानसभा में भी उन्होंने डाक्टरों की कमी की बात स्वीकार की है, रायगढ़ में काफी पहले से मेडिकल कालेज की स्थापना का प्रयास जारी है, जगदलपुर में शुरू किये गये मेडिकल कालेज को एमसीआई की मान्यता को लेकर तलवार लटकी रहती है, प्रदेश के एक मात्र सबसे बड़े अस्पताल 'मेकाहाराÓ में डाक्टर नहीं है, विशेषज्ञ नहीं, दवाई नहीं, चिकित्सा उपकरण खराब आदि के समाचार आते रहते हैं ऐसे में हाल ही में दुर्ग प्रवास पर दुर्ग के मेडिकल कालेज की स्थापना संबंधी अमर अग्रवाल का बयान भी कम चर्चा में नहीं है।
न आरोपी, न आरोप मुक्त
छत्तीसगढ़ में पारदर्शी परीक्षा प्रणाली लागू कर करीब 62 परीक्षाएं आयोजित कर करीब ढाई लाख बेरोजगारों के लिये रोजगार मुहैया कराने में विशेष भूमिका निभाने वाले व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. भानु त्रिपाठी फिर साइंस कालेज पहुंचे गये हंै। मानसिक यातना के अलावा वे पुलिसिया पूछताछ से भी गुजर चुके हैं। इतना समय गुजरने के बाद जांच अधिकारी इसी राय में पहुंचे हैं कि पीएमटी का पर्चा प्रकाशन कंपनी से ही पार होकर बाजार में पहुंचा था। वैसे डॉ. त्रिपाठी के समय शिक्षा कर्मी, महिला एवं बाल विकास पर्यवेक्षक, लोक अभियोजक वेयर हाऊसिंग बोर्ड, सहकारिता अंकेक्षक, खाद्य निरीक्षक परिवहन आरक्षक आदि की परीक्षाएं हुई थीं। करीब 8-9 लाख शिक्षा कर्मियों की परीक्षा लेकर एक माह के भीतर परिणाम भी घोषित करने का एक नया रिकार्ड अभी भी प्रदेश में स्थापित है।
डॉ. त्रिपाठी ने उत्तरपुस्तिका की कार्बन कापी परीक्षार्थियों को उपलब्ध कराने की नई परंपरा स्थापित की माडल आंसर भी इंटरनेट में अपलोड कराया, इंटरनेट के माध्यम से दावा-आपत्तियां भी मंगवाई और उनका भी निराकरण कराया, व्यापम के खिलाफ कुछ लोग उच्च न्यायालय भी गये पर किसी भी मामले में व्यापम के खिलाफ फैसला नहीं आया, हालात तो यह है कि व्यापम की परीक्षा प्रणाली को अब प्रदेश के लोकसेवा आयोग भी अपनाने जा रहा है। बहरहाल डॉ. त्रिपाठी की हालत तो यह है कि न तो आरोपी हंै और न ही आरोप मुक्त। बदनामी जो मढी गई वह अलग।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ का अगला मुख्य सचिव कौन? सुनील कुमार, नारायण सिंह या कोई और? एक टिप्पणी... पहले रोगदा बांध की जांच रिपोर्ट तो विस में पेश हो फिर देखा जाएगा।
(2)
एक मंत्री के निजी सचिव को लम्बी छुट्टी में भेजा गया है... मीडिया को 'सेटÓ करने का दावा खरा नहीं उतरा ऐसा कहा जा रहा है।
(3) मुख्यमंत्री ने पुलिस के आला अफसरों को नक्सली क्षेत्र में रात्रि विश्राम का आदेश दिया था। एक टिप्पणी... अभी तो रात्रि विश्राम का मुहूर्त नहीं निकला है।
(4)
विधायक तथा शराब निगम के अध्यक्ष देवजी पटेल ने अपनी ही सरकार को पत्रकारवार्ता लेकर सीमेंट की बढ़ती कीमतों पर चुनौती दे दी है... शराब की कीमत भी तो दिनों दिन बढ़ रही है...?

Wednesday, November 30, 2011

यूं लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन हैै लिखने वाले को भी ये खबर नहीं
किस्से में जो नहीं है वही बात खास है

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और संगठन के कुछ बड़े लोग पीले और सफेद पर्चों से परेशान है। इन पर्चों के माध्यम से पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को उभारने का प्रयास किया गया है ऐसा लगता है। वैसे प्रदेश में पार्टी के सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी समय-समय पर अपना असंतोष जाहिर करते रहे हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ये पर्चे किसने जारी किया है उसकी जांच होगी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा पार्टी के असंतुष्टï या कांगे्रस के लोगों पर यह पर्चा जारी करने का आरोप मढ़ रहे हैं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी चुटकी ली है कि सवाल यह नहीं है कि पर्चा किसने जारी किया है सवाल यह है कि पर्चे में जो असंतोष जाहिर किया गया है उस पर सरकार और संगठन को जांच करना चाहिए।
बहरहाल भाजपा में असंतोष कोई नई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के चुनाव से यह असंतोष परिलक्षित हो गया था। नेता प्रतिपक्ष बने नंदकुमार साय, पार्टी अध्यक्ष भी रहे, उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में नये क्षेत्र मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतार कर उन्हें शहीद करा दिया गया। वहां से पराजित होने के बाद वे स्वत: ही मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बने शिवप्रताप सिंह को प्रदेश की राजनीति से अलग कर राज्य सभा भिजवा दिया गया उनका बेटा तो पार्टी से बगावत कर चुनााव मैदान में भी उतरा था। एक और अध्यक्ष ताराचंद साहू की हालत तो और भी खराब है। लगातार भाजपा की ओर से सांसद बनने वाले ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाकर भाजपा की जड़ों में मठा डालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमप्रकाश पांडे भी हासिये में है। हां, दुर्ग जिले में महापौर, विधायक और सांसद बनकर सुश्री सरोज पांडेय ने एक रिकार्ड बनाया है और वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्टï्रीय पदाधिकारी है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय, जनता पार्टी की सरकार में बस्तर से एक मात्र गैर आदिवासी के रूप में विधानसभा चुनाव में विजयी होकर संसदीय सचिव बनने वीरेंद्र पांडे भी हासिये पर है तथा पार्टी से बाहर हैं। डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने पर विधायक खरीदी-बिक्री के मामले को प्रकाश में लाने वाले वीरेंद्र पांडे को उपहार स्वरूप राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था पर बाद में उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी गई और वे पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव भी लड़कर पार्टी से बाहर हो गये वे आजकल भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद और विद्याचरण शुक्ल-श्यामाचरण शुक्ल को लोकसभा चुनावों में पराजित करने वाले रमेश बैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उपेक्षित ही है। वे कभी-कभी असंतोष जाहिर भी करते रहे हैं। इस सरकार द्वारा नियुक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने कहा था यह मामला काफी चर्चा में रहा फिर भी राजीव रंजन काफी समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे। कमल विहार योजना का भी उन्होंने विरोध किया था पर यह योजना शुरू कर ही दी गई पार्टी के एक सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी प्रदेश सरकार से संतुष्ट नहीं है। हाल ही में उन्होंने पुलिसिया कार्यवाही से नाराज होकर 'प्रशासनिक आतंकवादÓ का जिक्र कर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है यही नहीं हाल ही में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि यदि भाजपा की सरकार तीसरी बार बनी तो मुख्यमंत्री जशपुर का होगा। बगीचा के एक सार्वजनिक समारोह में जब जूदेव ने यह कहा उस समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा सांसद विष्णुदेव साय भी मौजूद थे। डॉ. रमन सिंह द्वारा अमर अग्रवाल और ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर पुन: वापसी भी चर्चा में रही।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठï नेता तथा छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की हालत किसी से छिपी नहीं है वे हैं तो गृहमंत्री पर पुलिस के एक सिपाही का भी तबादला उनकी मर्जी से नहीं होता है, कहा तो यहां तक जाता है कि गृहमंत्रालय के किसी भी फेरबदल में उनकी राय नहीं ली जाती। अखबरों में समाचार प्रकाशित होने के बाद उन्हें खबर मिलती है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो इस सरकार के लिये संकट मोचक है। प्रदेश में उपचुनाव हो या कोई समस्या खड़ी होती है तो उन्हें आगे करके उपयोग किया जाता है पर हाल ही में एक तथाकथित ठेकेदार के आरोप पर सरकार के मुखिया ने मुख्य सचिव से जांच करने का आदेश देकर भी सभी को चौंका दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने आरोप को तो गलत माना पर विदेशी दूतावास में सरकार की तरफ से विरोध पत्र भेजने में भी रुचि नहीं दिखाई है। बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में प्रयोग के तहत अधिकारियों की पदस्थापना का खेल भी जारी है। कभी भी किसी की नियुक्ति इन विभागों में की जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों में चर्चित अजय चंद्राकर को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाने से भाजपा का एक खेमा नाराज हैं। इधर तकनीकी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहित लोकसेवा आयोग में 'ऊपरÓ के दबाव पर बाहरी लोगों की नियुक्ति का भी पार्टी स्तर पर विरोध हो रहा है। इससे छत्तीसगढ़ की योग्यता पर यह भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोग इस पद के लिये नहीं हैं? खैर भाजपा का यह अंदरुनी मामला है और सत्ता-संगठन इससे कैसे निजात पाता है यह देखना है।
कांगे्रस और प्रभार
वैसे छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरह कांगे्रस में भी असंतोष तो है साथ ही भाई-भतीजावाद, बड़े नेताओं के करीबी लोगों को महत्व देने की चर्चा है। नये प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने सभी नेताओं के 'खासÓ को प्रदेश की कार्यसमिति में स्थान देकर सभी को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है पर असंतोष तो अभी भी है। अल्पसंख्यक वर्ग से मुसलमान, जैन समाज के लोग पर्याप्त पद नहीं देने से नाराज है।
हाल ही में प्रदेश के 11 लोकसभा क्षेत्र के लिये महामंत्रियों और सदस्यों को प्रभारी बनाया गया है उसमें बड़े नेताओं की पसंद का विशेष ख्याल रखा गया है। कांगे्रस कमेटी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यक्षेत्र दुर्ग और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से उनके खास समर्थक सुभाष शर्मा और उनके पुत्र अरुण वोरा को प्रभारी बनाया गया है तो बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से डॉ. शिवडहरिया प्रभारी बनाये गये हैं इस लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी पिछला लोस चुनाव लड़ चुकी है। छत्तीसगढ़ में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से हमेशा विद्याचरण शुक्ल का दबाव रहता है हालांकि अजीत जोगी भी यहां से सांसद बन चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल भी यहां से सांसद बन चुके हैं। यहां का प्रभार विधान मिश्रा को सौंपा गया है ये कभी विद्याचरण शुक्ल के करीबी थे, बाद में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गये थे। आजकल वे किसके साथ है यह स्पष्टï नहीं है। इसी के साथ बड़े नेताओं से जुड़े चंद्रभान बारमते, वेद प्रकाश शर्मा को सरगुजा, भूपेश बघेल को रायगढ़ पदमा मनहर, दीपक दुबे को जांजगीर, डॉ. प्रेमसाय सिंह को कोरबा, देवव्रत सिंह को रायपुर, फूलोदेवी नेताम, उदय मुदलियार को बस्तर, रमेश वल्र्यानी और अब्दुल हमीद हयात को कांकेर का प्रभारी बनाया गया है। वैसे इन नेताओं को लोकसभा का प्रभार क्या देखकर, क्या सोचकर दिया गया है इसका खुलासा तो नंदकुमार पटेल ही बेहतर कर सकते हैं।
राजेंद्र-सुभाष परेशान!
छत्तीसगढ़ की कांगे्रस के 2 बड़े नेता राजेंद्र तिवारी (एक बार विधानसभा में पराजित) सुभाष शर्मा (एक बार पार्षद बनने का श्रेय) बहुत परेशान है। राजेंद्र तिवारी पहले विद्याचरण शुक्ल और बाद में अजीत जोगी का दामन थामकर बड़े नेता बनने का गुमान पाल बैठे थे। इस बार नंदकुमार पटेल ने उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाकर उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है। नाराज राजेंद्र तिवारी ने हाल ही में कांगे्रस भवन में एक कार्यक्रम में (आराम-हराम है) पर अपने स्वभाव के अनुसार, टिप्पणी कर दी और अब उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की चर्चा है। वहीं सुभाष शर्मा जो अभी तक स्वयं को कांगे्रस का पर्याय मानते थे। उन्हें मोतीलाल वोरा के चलते महासचिव तो बनाया गया पर प्रभारी महासचिव नहीं बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष किसी भी महासचिव को प्रभारी महासचिव बनाने के विरोध में है। बहरहाल हाल ही में सुभाष शर्मा के सुंदरनगर में 14 साल से प्रापर्टी टेक्स नहीं जमा करने पर सुंदरनगर सोसायटी दफ्तर का पहला माला, सांस्कृतिक भवन को सील कर दिया वहीं स्कूल परिसर पर बने 28 दुकानदारों को दुकानें खाली कराने का आदेश दे दिया है। खैर महापौर किरणमयी नायक की नोटसीट से वह सील खुल भी गई। सवाल यह है कि कांगे्रस पार्टी की महापौर है और सुंदरनगर सोसायटी के सर्वेसर्वा सुभाष शर्मा भी कांगे्रस के है फिर निगम ने आनन-फानन में यह कार्यवाही क्यों की? खैर पार्षद मृत्युंजय दुबे का आरोप है कि नगर निगम रिकार्ड में काम्पलेक्स की दुकानें स्कूल के कमरे के रूप में दर्ज है और यह प्रापर्टी 2006 में दुकानदारों को सोसायटी अध्यक्ष शर्मा ने बकायदा रजिस्ट्रीकर के बेची है! परेशान है सुभाष शर्मा, भाजपा के महापौर ने कुछ नहीं किया और कांगे्रसी महापौर ने इसे अंजाम दिया...!
और अब बस
(1)
नगर निगम द्वारा राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर 2009 तक 80 लाख खर्च होता था अब सवा 2 करोड़ खर्चा हो रहे हैं... एक टिप्पणी... राजधानी में सफाई तो होती ही नहीं है...!
(2)
मंत्रालय में पदस्थ और चर्चित एक आईएएस केन्द्र की प्रतिनियुक्ति में जाना चाहते हैं वैसे दिसंबर में उनकी इच्छा पूरी होने की संभावना है।
(3)
पापुनि के महाप्रबंधक के खिलाफ लोक आयोग में 4 प्रकरण पहुंच गये हैं, प्रतिनियुक्ति अवधि भी समाप्त हो गई है। एक बड़े अफसर ने प्रतिनियुक्ति समाप्त करने का अनुरोध भी सरकार से किया है फिर अब देरी क्या है?

Tuesday, November 22, 2011

यूं लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन हैै लिखने वाले को भी ये खबर नहीं
किस्से में जो नहीं है वही बात खास है

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और संगठन के कुछ बड़े लोग पीले और सफेद पर्चों से परेशान है। इन पर्चों के माध्यम से पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को उभारने का प्रयास किया गया है ऐसा लगता है। वैसे प्रदेश में पार्टी के सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी समय-समय पर अपना असंतोष जाहिर करते रहे हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ये पर्चे किसने जारी किया है उसकी जांच होगी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा पार्टी के असंतुष्टï या कांगे्रस के लोगों पर यह पर्चा जारी करने का आरोप मढ़ रहे हैं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी चुटकी ली है कि सवाल यह नहीं है कि पर्चा किसने जारी किया है सवाल यह है कि पर्चे में जो असंतोष जाहिर किया गया है उस पर सरकार और संगठन को जांच करना चाहिए।
बहरहाल भाजपा में असंतोष कोई नई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के चुनाव से यह असंतोष परिलक्षित हो गया था। नेता प्रतिपक्ष बने नंदकुमार साय, पार्टी अध्यक्ष भी रहे, उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में नये क्षेत्र मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतार कर उन्हें शहीद करा दिया गया। वहां से पराजित होने के बाद वे स्वत: ही मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बने शिवप्रताप सिंह को प्रदेश की राजनीति से अलग कर राज्य सभा भिजवा दिया गया उनका बेटा तो पार्टी से बगावत कर चुनााव मैदान में भी उतरा था। एक और अध्यक्ष ताराचंद साहू की हालत तो और भी खराब है। लगातार भाजपा की ओर से सांसद बनने वाले ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाकर भाजपा की जड़ों में मठा डालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमप्रकाश पांडे भी हासिये में है। हां, दुर्ग जिले में महापौर, विधायक और सांसद बनकर सुश्री सरोज पांडेय ने एक रिकार्ड बनाया है और वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्टï्रीय पदाधिकारी है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय, जनता पार्टी की सरकार में बस्तर से एक मात्र गैर आदिवासी के रूप में विधानसभा चुनाव में विजयी होकर संसदीय सचिव बनने वीरेंद्र पांडे भी हासिये पर है तथा पार्टी से बाहर हैं। डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने पर विधायक खरीदी-बिक्री के मामले को प्रकाश में लाने वाले वीरेंद्र पांडे को उपहार स्वरूप राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था पर बाद में उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी गई और वे पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव भी लड़कर पार्टी से बाहर हो गये वे आजकल भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद और विद्याचरण शुक्ल-श्यामाचरण शुक्ल को लोकसभा चुनावों में पराजित करने वाले रमेश बैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उपेक्षित ही है। वे कभी-कभी असंतोष जाहिर भी करते रहे हैं। इस सरकार द्वारा नियुक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने कहा था यह मामला काफी चर्चा में रहा फिर भी राजीव रंजन काफी समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे। कमल विहार योजना का भी उन्होंने विरोध किया था पर यह योजना शुरू कर ही दी गई पार्टी के एक सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी प्रदेश सरकार से संतुष्ट नहीं है। हाल ही में उन्होंने पुलिसिया कार्यवाही से नाराज होकर 'प्रशासनिक आतंकवादÓ का जिक्र कर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है यही नहीं हाल ही में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि यदि भाजपा की सरकार तीसरी बार बनी तो मुख्यमंत्री जशपुर का होगा। बगीचा के एक सार्वजनिक समारोह में जब जूदेव ने यह कहा उस समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा सांसद विष्णुदेव साय भी मौजूद थे। डॉ. रमन सिंह द्वारा अमर अग्रवाल और ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर पुन: वापसी भी चर्चा में रही।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठï नेता तथा छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की हालत किसी से छिपी नहीं है वे हैं तो गृहमंत्री पर पुलिस के एक सिपाही का भी तबादला उनकी मर्जी से नहीं होता है, कहा तो यहां तक जाता है कि गृहमंत्रालय के किसी भी फेरबदल में उनकी राय नहीं ली जाती। अखबरों में समाचार प्रकाशित होने के बाद उन्हें खबर मिलती है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो इस सरकार के लिये संकट मोचक है। प्रदेश में उपचुनाव हो या कोई समस्या खड़ी होती है तो उन्हें आगे करके उपयोग किया जाता है पर हाल ही में एक तथाकथित ठेकेदार के आरोप पर सरकार के मुखिया ने मुख्य सचिव से जांच करने का आदेश देकर भी सभी को चौंका दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने आरोप को तो गलत माना पर विदेशी दूतावास में सरकार की तरफ से विरोध पत्र भेजने में भी रुचि नहीं दिखाई है। बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में प्रयोग के तहत अधिकारियों की पदस्थापना का खेल भी जारी है। कभी भी किसी की नियुक्ति इन विभागों में की जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों में चर्चित अजय चंद्राकर को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाने से भाजपा का एक खेमा नाराज हैं। इधर तकनीकी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहित लोकसेवा आयोग में 'ऊपरÓ के दबाव पर बाहरी लोगों की नियुक्ति का भी पार्टी स्तर पर विरोध हो रहा है। इससे छत्तीसगढ़ की योग्यता पर यह भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोग इस पद के लिये नहीं हैं? खैर भाजपा का यह अंदरुनी मामला है और सत्ता-संगठन इससे कैसे निजात पाता है यह देखना है।
कांगे्रस और प्रभार
वैसे छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरह कांगे्रस में भी असंतोष तो है साथ ही भाई-भतीजावाद, बड़े नेताओं के करीबी लोगों को महत्व देने की चर्चा है। नये प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने सभी नेताओं के 'खासÓ को प्रदेश की कार्यसमिति में स्थान देकर सभी को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है पर असंतोष तो अभी भी है। अल्पसंख्यक वर्ग से मुसलमान, जैन समाज के लोग पर्याप्त पद नहीं देने से नाराज है।
हाल ही में प्रदेश के 11 लोकसभा क्षेत्र के लिये महामंत्रियों और सदस्यों को प्रभारी बनाया गया है उसमें बड़े नेताओं की पसंद का विशेष ख्याल रखा गया है। कांगे्रस कमेटी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यक्षेत्र दुर्ग और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से उनके खास समर्थक सुभाष शर्मा और उनके पुत्र अरुण वोरा को प्रभारी बनाया गया है तो बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से डॉ. शिवडहरिया प्रभारी बनाये गये हैं इस लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी पिछला लोस चुनाव लड़ चुकी है। छत्तीसगढ़ में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से हमेशा विद्याचरण शुक्ल का दबाव रहता है हालांकि अजीत जोगी भी यहां से सांसद बन चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल भी यहां से सांसद बन चुके हैं। यहां का प्रभार विधान मिश्रा को सौंपा गया है ये कभी विद्याचरण शुक्ल के करीबी थे, बाद में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गये थे। आजकल वे किसके साथ है यह स्पष्टï नहीं है। इसी के साथ बड़े नेताओं से जुड़े चंद्रभान बारमते, वेद प्रकाश शर्मा को सरगुजा, भूपेश बघेल को रायगढ़ पदमा मनहर, दीपक दुबे को जांजगीर, डॉ. प्रेमसाय सिंह को कोरबा, देवव्रत सिंह को रायपुर, फूलोदेवी नेताम, उदय मुदलियार को बस्तर, रमेश वल्र्यानी और अब्दुल हमीद हयात को कांकेर का प्रभारी बनाया गया है। वैसे इन नेताओं को लोकसभा का प्रभार क्या देखकर, क्या सोचकर दिया गया है इसका खुलासा तो नंदकुमार पटेल ही बेहतर कर सकते हैं।
राजेंद्र-सुभाष परेशान!
छत्तीसगढ़ की कांगे्रस के 2 बड़े नेता राजेंद्र तिवारी (एक बार विधानसभा में पराजित) सुभाष शर्मा (एक बार पार्षद बनने का श्रेय) बहुत परेशान है। राजेंद्र तिवारी पहले विद्याचरण शुक्ल और बाद में अजीत जोगी का दामन थामकर बड़े नेता बनने का गुमान पाल बैठे थे। इस बार नंदकुमार पटेल ने उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाकर उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है। नाराज राजेंद्र तिवारी ने हाल ही में कांगे्रस भवन में एक कार्यक्रम में (आराम-हराम है) पर अपने स्वभाव के अनुसार, टिप्पणी कर दी और अब उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की चर्चा है। वहीं सुभाष शर्मा जो अभी तक स्वयं को कांगे्रस का पर्याय मानते थे। उन्हें मोतीलाल वोरा के चलते महासचिव तो बनाया गया पर प्रभारी महासचिव नहीं बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष किसी भी महासचिव को प्रभारी महासचिव बनाने के विरोध में है। बहरहाल हाल ही में सुभाष शर्मा के सुंदरनगर में 14 साल से प्रापर्टी टेक्स नहीं जमा करने पर सुंदरनगर सोसायटी दफ्तर का पहला माला, सांस्कृतिक भवन को सील कर दिया वहीं स्कूल परिसर पर बने 28 दुकानदारों को दुकानें खाली कराने का आदेश दे दिया है। खैर महापौर किरणमयी नायक की नोटसीट से वह सील खुल भी गई। सवाल यह है कि कांगे्रस पार्टी की महापौर है और सुंदरनगर सोसायटी के सर्वेसर्वा सुभाष शर्मा भी कांगे्रस के है फिर निगम ने आनन-फानन में यह कार्यवाही क्यों की? खैर पार्षद मृत्युंजय दुबे का आरोप है कि नगर निगम रिकार्ड में काम्पलेक्स की दुकानें स्कूल के कमरे के रूप में दर्ज है और यह प्रापर्टी 2006 में दुकानदारों को सोसायटी अध्यक्ष शर्मा ने बकायदा रजिस्ट्रीकर के बेची है! परेशान है सुभाष शर्मा, भाजपा के महापौर ने कुछ नहीं किया और कांगे्रसी महापौर ने इसे अंजाम दिया...!
और अब बस
(1)
नगर निगम द्वारा राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर 2009 तक 80 लाख खर्च होता था अब सवा 2 करोड़ खर्चा हो रहे हैं... एक टिप्पणी... राजधानी में सफाई तो होती ही नहीं है...!
(2)
मंत्रालय में पदस्थ और चर्चित एक आईएएस केन्द्र की प्रतिनियुक्ति में जाना चाहते हैं वैसे दिसंबर में उनकी इच्छा पूरी होने की संभावना है।
(3)
पापुनि के महाप्रबंधक के खिलाफ लोक आयोग में 4 प्रकरण पहुंच गये हैं, प्रतिनियुक्ति अवधि भी समाप्त हो गई है। एक बड़े अफसर ने प्रतिनियुक्ति समाप्त करने का अनुरोध भी सरकार से किया है फिर अब देरी क्या है?
हम सिर्फ तोहमतों की सफाई न दे सके,
खामोश रहकर शहर में बदनाम हो गये
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने बयानों के लिये चर्चा में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने शिक्षाकर्मियों के आंदोलन पर सरकार द्वारा एस्मा लगाने और गिरतारी के बाद कहा कि मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह 'परबुधियाÓ हैं। परबुधिया का मतलब होता है जो दूसरों की सलाह पर या उनके कहने पर कार्य करें। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव के समय अजीत जोगी ने उन्हें 'लबरा राजाÓ भी कई सभाओं में कहा था लबरा छत्तीसगढ़ी का शब्द है और इसका मतलब है 'झूठाÓ। खैर मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह को 'परबुधियाÓ यानि दूसरों की
सलाह पर काम करने वाला तो अजीत जोगी ने कह दिया पर किसकी सलाह पर काम करते हैं यह स्पष्टï नहीं किया है। वैसे छत्तीसगढ़ के कुछ भाजपा नेता, सरकारी अधिकारी, व्यापारी, ठेकेदार भी इसी तलाश में है कि मुयमंत्री किसकी सुनते हैं। पहले चर्चा थी कि डॉ. रमन सिंह तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सुनते थे, फिर चर्चा थी कि वे भाजपा संगठन के एक दूसरे 'सिंहÓ की सुनते थे। फिर चर्चा चली कि वे अपने आसपास सक्रिय दो अफसरों 'सिंहÓ की भी सुनते हैं। फिर भाजपा में ऊपरी स्तर पर परिवर्तन हो गया और नीतिन
गडकरी भाजपा अध्यक्ष और सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गई। इसके बाद से प्रदेश के कुछ हालात बदल गये हैं। इन दोनों नेताओं के प्रदेश में 2 करीबी नेता हैं पर दोनों ही डॉ. रमन सिंह के करीबी तो नहीं है यह तय है। अब डॉ. रमन सिंह अपनी दूसरी पारी में किसकी सुनते हैं इसका खुलासा नहीं हो सका है। जिस तरह उन्होंने एक झटके से डीजीपी रहे विश्वरंजन को हटाया है, नये जिलों का निर्माण कर कई भाजपा नेताओं को ही आश्चर्य में डाल दिया है, उनके तेवर से अब उनके कुछ मंत्री, सरकारी अफसर
सहित पार्टी के कुछ चर्चित पदाधिकारी पीडि़त हैं वे किसकी सलाह ले रहे हैं यह पता लगाने लोग बेकरार हैं। अजीत जोगी प्रशासनिक अफसर रहे हैं, मुयमंत्री भी रहे हैं यदि वे डॉ. रमन सिंह किसकी सुनते हैं यही स्पष्टï कर दे तो 'जनहितÓ में एक बड़ी मदद कर सकते हैं। बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप से दूर विवादों से दूर रहने की डॉ. रमन सिंह की अपनी एक अलग कला है।

कांगे्रस सक्रिय है?

छत्तीसगढ़ में कांगे्रस प्रमुख विपक्षी दल है हाल ही में यह लगने लगा है। जिस तरह सत्ताधारी दल भाजपा को कई मामलों में घेरने का प्रयास किया है उससे सत्ताधारी दल कुछ मुश्किल में लग रहा है तो कांगे्रस के लोग कम उत्साहित नहीं है। विधानसभा के भीतर और बाहर एक तरह से कांगे्रस ने राज्य सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।
राजनांदगांव के पुलिस कप्तान विनोद कुमार चौबे की नक्सलियों द्वारा हत्या के बाद कांगे्रस ने 4 दिन विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया था पर अगले दिन ही कार्यवाही ंमें भाग लेना शुरू कर दिया था। कांगे्रस ने किस कारण सदन की कार्यवाही के बहिष्कार का निर्णय लिया था यह अभी तक ज्ञात नहीं है। इधर बस्तर में ताड़मेटला, तीमापुर, मोरपल्ली में कुछ झोपड़ों में आगजनी, तत्कालीन कमिश्नर और कलेक्टर को राहत सामग्री लेकर जाने से रोकने की घटना के बाद वरिष्ठï विधायक नंदकुमार पटेल की अध्यक्षता में 10
कांगे्रसी विधायक को बस्तर में पुलिस घटनास्थल पर जाने से रोकती है और उस दौरान विधानसभा की कार्यवाही चलती रहती है यह भी चर्चा में है।
बहरहाल कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने विधानसभा में भी आक्रामक रुख दिखाया तो विधानसभा के बाहर भी उनकी सक्रियता से प्रदेश सरकार के लिये कुछ मुश्किलें तो दिखाई दे रही है। बालोद में सरकारी अस्पताल में मोतियाबिंद आपरेशन के बाद करीब 60 लोगों की आंखों की रौशनी जाने के मामले में कांगे्रस ने सरकार को जमकर घेरा है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के इस मामले में उदासीन रवैये के चलते भी कुछ नाराजगी है वहीं प्रदेश सरकार पर भ्रष्टïाचार का आरोप लगाकर लालकृष्ण
आडवाणी की एकता यात्रा के दौरान कांगे्रस के बड़े नेताओं ने गिरतारी देकर भी विपक्ष की मौजूदगी का एहसास दिलाया। वहीं धान खरीदी एक नवंबर से करने तथा किसानों को बोनस देने के नाम पर धरना भी दिया। यह धरना पूरे प्रदेश में हुआ यह बात और है कि राजधानी के 5 स्थानों पर धरना कार्यक्रम था पर यहां का जिमा लेने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और राजधानी के आसपास का जिमा लेने वाले पूर्व सांसद देवव्रत सिंह केवल एक-एक स्थान पर ही कुछ देर के लिये दिखाई दिये। बहरहाल कहने लगे है कि

प्रदेश में विपक्ष भी मजबूत हो रहा है।

बार बाला और कलेक्टर!

राज्योत्सव के समापन के अवसर पर जशपुर में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुंबई की बार-बालाओं ने 'मुन्नी बदनाम हुईÓ और 'शीला की जवानीÓ जैसे फिल्मी गानों पर फूहड़ नृत्य किया। इस कार्यक्रम में विधायक, कलेक्टर समेत कुछ प्रशासनिक अधिकारी भी देर रात तक झूमते रहे। राज्योत्सव के समापन समारोह में 'मुंबई से आई बार-बालाओं ने कम कपड़ों में नृत्य करते हुए अश्लीलता परोसी और हद तो यह हो गई कि कलेक्टर, पुलिस कप्तान देर रात तक वहां जमे रहे। अधिकारियों की उपस्थिति में कलेक्टर
अंकित आनंद भी बार-बालाओं के साथ मंच पर पहुंचकर न केवल गाना गाया बल्कि उनके साथ झूमते भी देखे गये।
पता चला है कि स्थानीय आदिवासी कलाकारों की उपेक्षा करके 9 लाख रुपए देकर मुंबई की बार बालाओं को बुलाया गया था वैसे सरकारी तौर पर इसकी पुष्टिï नहीं हो सकी है। वैसे राज्योत्सव में इस बार सांसद दिलिप सिंह जूदेव, नंदकुमार साय, संसदीय सचिव युद्घवीर सिंह की अनुपस्थिति चर्चा में रही। ज्ञात रहे कि विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष तथा वरिष्ठï विधायक रामपुकार सिंह को तो आमंत्रित ही नहीं किया गया था। बहरहाल कलेक्टर का मंच पर गाना गाना और झूमना चर्चा में है।

किरण और अमितेष

बालोद नेत्रशिविर में करीब 60 लागों की आंखों की रौशनी चले जाने और प्रदेश सरकार द्वारा मात्र 50 हजार की मुआवजा राशि देने के विरोध में कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव 2011 के बहिष्कार का निर्णय लिया था। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, पूर्व मुयमंत्री अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल सहित कांगे्रस के विधायक आदि ने बहिष्कार किया। कांगे्रसी तो राज्योत्सव देखने भी नहीं गये पर राजधानी की प्रथम महिला महापौर किरणमयी नायक और राजिम के विधायक अमितेष शुक्ला ने जरूर राज्योत्सव के
पहले दिन शिरकत की। महापौर तो मुयमंच पर विराजमान रहीं वहीं अमितेष शुक्ला नीचे दर्शकदीर्घा में रहे यही नहीं एक रात कवि समेलन में भी वे मौजूद रहे। महापौर श्रीमती किरणमयी नायक का कहना है कि वे महापौर होने तथा नगर निगम का एक स्टाल लगे होने के कारण गई थीं पर अमितेष शुक्ला ने तो कोई स्पष्टïीकरण देना भी उचित नहीं समझा। खैर किरणमयी नायक महापौर थीं इसीलिये चली गईं। बहरहाल समापन समारोह में जरूर महापौर और राजिम विधायक नहीं पहुंचे। लगता है कि संगठन ने जरूर ही उनकी पेशी ली होगी।

जल्दी होगी प्रशासनिक सर्जरी

छत्तीसगढ़ में 9 जिलों की और स्थापना हो गई है। इन जिलों के लिये जल्दी ही कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित सरकारी मुलाजिमों की व्यवस्था करना है। इसी के चलते प्रदेश में इसी माह कुछ फेरबदल हो सकता है। कुछ कलेक्टर और कुछ पुलिस कप्तान, एडीशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, एडीशनल एसपी, डीएसपी आदि को इधर-उधर किया जा सकता है। कहा तो यह जा रहा है कि नये छोटे जिलों में पदोन्नत आईएएस और आईपीएस को मौका दिया जा सकता है। वहीं अभी छोटे जिलों में तैनात कुछ अफसरों को बड़े
जिलों में पदस्थ करने की भी तैयारी की जा रही है। वैसे चर्चा तो यह भी है कि फील्ड और मंत्रालय मेें पदस्थ कुछ अफसरों के प्रभार में भी बदलाव किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि दिसंबर में विधानसभा सत्र है उसके पहले फेरबदल की जगह जनवरी में पदस्थापना ही की जाएगी और शीतकालीन सत्र के बाद बड़ा बदलाव हो सकता है। इधर चर्चा है कि मंत्रिमंडलस्र[स्र[[स्र का विस्तार या तो शीतकालीन सत्र के बाद होगा या फिर बजट सत्र के बाद किया जाएगा। शीतकालीन सत्र में रोगदा बांध के विषय में गठित विधानसभा समिति अपनी रिपोर्ट
देगी इसको लेकर विपक्ष हंगामा भी करेगा। इसलिये शीतकालीन सत्र के बाद ही एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं है।

और अब बस
(1)
उत्तर प्रदेश में जन्में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व राज्यपाल के एम सेठ भाजपा में आ गये हैं एक टिप्पणी... उत्तर प्रदेश के एक राज्यपाल भी कांगे्रस में वापस आ गये हैं और कांगे्रस की हालत किसी से छिपी नहीं है।
(2)
पूर्व डीजीपी विश्वरंजन बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे मसलन नक्सलियों को घर में घुसकर मारेंगे और वर्तमान डीजीपी अनिल नवानी चुपचाप ही रहते हैं और फाइलों में उलझे रहते हैं।
(3)
शिक्षाकर्मी फेडरेशन के एक नेता कहते हैं कि सरकार ने एस्मा के तहत गिरतार किया यानि सरकार हमें सरकारी कर्मचारी मानती है! छत्तीसगढ़ में कुछ भी हो सकता है।

Thursday, November 3, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

परों को खोल जमाना उड़ान देखता है
जमीन पर बैठकर क्या आसमान देखता है
मिला है हुश्न तो इसकी हिफाजत कर
सहल के चल तुझको जहान देखता है॥

हमारे देश में भ्रष्टïाचार पहले एक नाली की तरह था जो आजकल एक अथाह महासागर के रूप में तब्दील हो चुका है। बड़ी संया में राजनेता, नौकरशाह और व्यापारी भ्रष्टïाचार के महासागर में गोते लगा रहे हंै। एक लाख 70 हजार करोड़ का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कारगिल युद्घ के शहीदों के नाम से आदर्श सोसायटी घोटाला, कर्नाटक की खान और सरकारी जमीन के आवंटन में घोटाला चर्चा में है। कुछ राजनेता, अफसर तो जेलों में हैं। सांसदों को रिश्वत देने का मामला हो या सवाल पूछने के नाम पर पैसा लेने का मामला
हो या जानवरों के चारा के नाम पर किया गया घोटाला हो इससे राजनेताओं की छवि निश्चित ही खराब हुई है। राजकीय कोष में सेंध लगाकर अपनी जेब भरने को अपना कत्र्तव्य मानने वाले नेताओं, नौकरशाहों, एनजीओ, ठेकेदार पहले से ही मौजूद थे अब तो उनकी संया में लगातार इजाफा होता जा रहा है। भ्रष्टïाचारी आमजनता के धन और संपत्ति को बेखौफ होकर लूटते रहते हैं। क्योंकि राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का कहीं न कहीं इन्हें संरक्षण है। राजनीति में केवल पद से इस्तीफा दे देना ही अपराध के लिये
समुचित दण्ड नहीं है। छत्तीसगढ़ के कुछ राजनेताओं पर भी भ्रष्टïाचार के आरोप लगे हैं पर वे अभी भी 'पदÓ पर काबिज हैं। जहां तक वरिष्ठï प्रशासनिक अफसरों का सवाल है तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये सरकार (वरिष्ठï अफसरों) से अनुमति लेने का प्रावधान है। वैसे तो अनुमति मिलती नहीं है यदि अनुमति मिल भी गई तो न्यायप्रणाली की लबी चलने वाली कार्यवाही भी उनके लिये मददगार होती हैं।
छत्तीसगढ़ के मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा में सभी मंत्रियों, विधायकों द्वारा संपत्ति का विवरण देने की बात की थी नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने भी विपक्ष के विधायकों द्वारा भी संपत्ति का विवरण देने की बात स्वीकार की थी पर क्या हुआ? मुयमंत्री ने सभी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस द्वारा संपत्ति का विवरण देने कहा था पर कितने अफसरों ने विवरण दिया, कितनों ने नहीं दिया, कितनों ने अपनी सही संपत्ति का विवरण नहीं दिया आखिर इसकी जांच कौन करेगा?
छत्तीसगढ़ की राजधानी में चौपहिया वाहनों की संया तेजी से बढ़ी है, कई वाहनों में सांसद, विधायक, महापौर की पट्टïी लिखी होती हैं यहां तक तो ठीक है पर वार्ड पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, सरपंच, कांगे्रस-भाजपा के पदाधिकारी, सांसद, विधायक प्रतिनिधि की नाम पट्टिïका लगाकर यातायात पुलिस पर रौब डालते नेताओं को देखा जाता है। आखिर पदाधिकारी बनते ही कौन सा कारुं का खजाना हाथ लग जाता है कि चौपहिया वाहन आ जाता है। गांव में सरपंच बनने के बाद पहले घर पक्का होता है फिर मोटर सायकल या
चौपहिया वाहन खरीदा जाता है बस यहीं से भ्रष्टïाचार की नींव डलती है और सरकार की छवि गांव की जनता में बनना-बिगडऩा शुरू होती है। प्रदेश में कई एनजीओ कार्यरत हैं। आमजनता की सेवा करने बनाये गये कुछ एनजीओ के संचालकों की संपत्तियों में लगातार वृद्घि होती जा रही है। स्कूटर से चौपहिया वाहन, राजधानी में कुछ मकान बनाने आखिर उनके पास पैसा आता कहां से है? यदि कुछ एनजीओ संचालकों की संपत्ति की जांच की जाए तो पता चलेगा कि जनता का नहीं वे अपना हित साध रहे हैं।
छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम में 2 सगी बहनें नौकरी कर रही हैं और दोनों की पैदा होने के समय में 3 महीने दस दिन का अंतर है। शिकायत पर लोक आयोग में जांच हो रही है। इसी पाठ््यपुस्तक निगम में पिछले 5-6 सालों में मुत पुस्तक वितरण के लिये करोड़ों का कागज खरीदा गया है। कागज की गुणवत्ता जांच एक हायर सेकेण्ड्री पास कर्मचारी के जिमे हैं। प्रतिनियुक्ति की निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद भी एक अधिकारी वहां क्यों पदस्थ है सरकार मौन हैं, क्यों?
बस्तर में सलवा जुडूम आंदोलन के चलते एसपीओ की नियुक्ति की गई थी, उन्हें सुको के निर्देश के बाद हटाकर उनकी भर्ती की नई व्यवस्था कर दी गई है पर करीब 70 हजार आदिवासी जो अपने घर से बेघर होकर सलवा जुडूम राहत कैप में आ गये थे अब सलवा जुडूम आंदोलन समाप्त होने के बाद वे कहां जाएंगे इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष मौन है क्यों?
जांजगीर जिले में रोगदाबांध एक निजी कंपनी को बेच दिया गया है, विपक्ष के हमले के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा समिति बना दी है जांच शुरू हो गई है पर सरकार अपने स्तर पर कार्यवाही करने में पीछे क्यों है? जबकि एक एसीएस राधाकृष्ण को हाल ही में एक जांच के बाद ही निलंबित कर दिया गया है?
नक्सलियों को पैसा पहुंचाने के आरोप में एक ठेकेदार लाला को गिरतार कर लिया गया है वहीं नक्सलियों की समर्थक मानकर सोढी सोनी की भी गिरतारी कर ली गई है पर एस्सार के संचालकों से पूछताछ में सरकार की रुचि क्यों नहीं है। भोपाल में यूनियन कार्बाइड की गैस रिसाव के मामले में संचालक की गिरतारी और रिहाई को लेकर भाजपा के बड़े नेताओं ने कांगे्रस को कटघरे में खड़ा कर दिया था जबकि संचालक विदेशी थे पर कोरबा में चिमनी हादसे में मजदूरों की जान चली गई कुछ चीनी अफसरों की
भी गिरतारी की गई परंतु कंपनी के संचालक से पूछताछ की हिमत सरकार क्यों नहीं जुटा पा रही हैïं? वैसे यह जनता है और सब कुछ देख रही है?
रागदरबारी और व्यंग्य
बहरहाल विख्यात लेखक श्री लाल शुक्ल का शुक्रवार को निधन हो गया है।
रागदरबारी वियात लेकर स्व. श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्घ व्यंग्य रचना है। श्रीलाल शुक्ल ने इसमें आजादी के बाद भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उखाड़ कर रख दिया है। रागदरबारी की कथाभूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे एक गांव की है। जहां जिन्दगी की प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। गांव शिवपालगंज की पंचायत, कालेज की प्रबंध समिति और को.आपरेटिव सोसयाटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति है जो प्रजातंत्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारो ओर फल-फूल रही है। उन्होंने उस समय जो व्यंग्य लिखकर सामाजिक व्यवस्था पर चोट की थी वह अक्षरश: अभी गांव-गांव में दिखाई दे रही है। उनके कुछ चुटीले व्यंग्य उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत कर हम उन्हें अपनी श्रद्घांजलि दे रहे हैं।
जाने माने साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की रचना रागदरबारी समकालीन साहित्य में 'एक मील का पत्थरÓ है। 1968 में 1968 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। प्रशासनिक सेवा में रहते उन्होंने काफी नजदीक से समाज को देखा है।
रागदरबारी-1
को.आपरेटिव्ह यूनियन का गबन बड़े ही सीधे सादे ढंग से हुआ था, सैकड़ों की संया में रोज होते रहने वाले गबनों की अपेक्षा इसका वही सौंदर्य था कि यह शुद्घ गबन था, इसमें ज्यादा घुमाव फिराव न था।
रागदरबारी-2
जैसे भारतीयों की बुद्घि अंगे्रजी की खिड़की से झांककर संसार का हाल-चाल देती है वैसे ही सनीचर की बुद्घि रंगनाथ की खिड़की से झांककर हुई दिल्ली के हालचाल लेने लगी।
रागदरबारी-3
डिनर के बाद काफी पीते हुए, छके हुए अफसरों का ठहाका दूसरी ही किस्म का होता है। वह ज्यादातर पेट की बड़ी ही अंदरुनी गहराई से निकलता है। उस ठहाके के घनत्व का उनकी साधारण हंसी के साथ वहीं अनुपात बैठता है जो उनकी आमदनी का उनकी तनवाह से होता है। राजनीतिज्ञों का ठहाका सिर्फ मुंह के खोखल से निकलता है और उसके दो ही आयाम होते हैं। उसमें प्राय: गहराई नहीं होती है।
रागदरबारी-4
देशी विश्वविद्यालय के लड़के अंगे्रजी फिल्म देखने जाते हैं। अंगे्रजी बातचीत समझ में नहीं आती है, फिर भी बेचारे मुस्कुराकर दिखाते रहते है कि वे सब समझ रहे हैं और फिल्म बड़ी मजेदार है।
रागदरबारी-5
सड़क पर ट्रक खड़ी है, पुलिस वाला कहता है कि ट्रक सड़क के बीचों-बीच खड़ी है, ट्रक चालक कहता है कि ट्रक सड़क के किनारे खड़ी है। बहरहाल मुझे लगता है कि इन ट्रकों का जन्म ही सड़कों से बलात्कार करने के लिये ही हुआ है।
और अब बस
(1) हम सभी मिलकर एक शाम आयोजित करें, उन भ्रष्टïाचारियों को पुरस्कृत और समानित करें, तब जाकर उन पर भ्रष्टïाचारी होने की पक्की मुहर लगेगी और वे असली भ्रष्टïाचारी कहलाएंगे। वह कौन सा अवार्ड लेना चाहते हैं यह उन्हीं को सोचना है?
(2)
भ्रष्टïाचार के मामले में सबसे अधिक बदनाम पुलिस वाले हैं। यह पूछने पर एक पुलिस अफसर की टिप्पणी:- हम सैकड़ों, हजारों लेकर बदनाम हैं जो लाखों-करोड़ों लेते हैं उन पर मीडिया की निगाह क्यों नहीं पड़ती है?

आइना ए छत्तीसगढ़

किन राहों से दूर है मंजिल, कौन सा रास्ता आसां है
हम भी जब थक कर बैठेंगे, औरों को समझाएंगे
भाजपा के वरिष्ठï नेता लालकृष्ण आडवाणी की छठवीं रथ यात्रा निकल चुकी है। यह रथयात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ पहुंचेगी। आडवाणी साहब की यह रथयात्रा भ्रष्टïाचार के खिलाफ कालाधन की वापसी और नये भारत के निर्माण को लेकर शुरू की गई है। यह रथयात्रा 23 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों में घूमेगी। लेकिन इस बार यह रथयात्रा न तो अयोध्या की तरफ गई है और न ही इस बार सोमनाथ मंदिर गुजरात जाएगी। वैसे आडवाणीजी रथयात्रा के जनक कहे जाते हैं। 1990 से अभी तक 2011 यानि 21 साल में उनकी यह छठी रथयात्रा है।
सन् 1990 के दशक में आडवाणी जी ने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण के लक्ष्य को लेकर गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक 25 दिसबर 1990 को निकाली थी। हालांकि उस रथयात्रा में उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला था पर बिहार के तत्कालीन मुयमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरतार करके यह यात्रा पूरी नहीं होने दी थी।
हालांकि इस यात्रा के बाद भाजपा के वोट बैंक में अप्रत्याशित वृद्घि हुई और वह दूसरे नंबर की पार्टी देश में बन गई। 1997 में लालकृष्ण जी ने स्वर्णजयंती रथ यात्रा निकाली, उनकी छवि एक व्यापक जनाधार वाले नेता के रूप में उभरी। 1998 में केन्द्र में गैर कांगे्रसी सरकार बनी थी। यह बात और है कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन सरकार मात्र 13 दिन ही शासन कर सकी।
1999 में भाजपा ने 23 दलों वाली गठबंधन सरकार रही, आडवाणी जी इस सरकार में उपप्रधानमंत्री बने। एनडीए सरकार ने समय पूर्व चुनाव की घोषणा कर दी। 2004 में आडवाणी जी ने भाजपा नीत सरकार की उपलब्धियों को लेकर तीसरी बार भारत उदय यात्रा (इंडिया साइनिंग) निकाली पर भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार केन्द्र में सरकार नहीं बना सकी। आडवाणी जी ने 2006 में 'भारत सुरक्षाÓ नाम से चौथी रथ यात्रा निकालकर कश्मीर की सुरक्षा और आतंकवाद के मुद््दे को जमकर उठाया पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। 2009 में
लालकृष्ण आडवाणी ने 'जनादेश यात्राÓ निकाली जैसे भाजपा ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री का उमीदवार घोषित कर ही दिया था। इस यात्रा में आडवाणी ने महंगाई, भ्रष्टïाचार, विदेश में कालाधन आदि को मुद्दा बनाकर जनादेश मांगा था पर उस यात्रा के बाद चुनाव में एनडीए गठबंधन बुरी तरह पराजित हुआ वहीं भाजपा की भी लोकसभा में संया घट गई थी।
आडवाणी की छठवीं यात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में पहुंचेगी। लोगों का कहना है कि अटलजी ने नया छत्तीसगढ़ राज्य दिया और उसके बाद के पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा की लगातार दो बार सरकार बनी है। लोकसभा की 11 में 10 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी की जीत दो लोस चुनावों में होती रही है तो अब आखिर आडवाणी जी से क्या उमीद रखते है। छत्तीसगढ़ के लोगों ने तो 11 में 10 लोस सीटों पर भाजपा की जीत दिलाकर आडवाणी जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में अपनी एक तरह से सहमति ही दे दी थी पर
अन्य राज्यों की जनता यदि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में रुचि नहीं ली तो हम कहां दोषी हैं।

एस्सार के सरकारी मददगार!

छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के नाम पर एस्सार स्टील कंपनी के एक-दो अफसरों, एक ठेकेदार, एक आदिवासी महिला के पीछे पड़ गई है पर अपनी ही सरकार में एस्सार प्रबंधन को मदद पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है यह सवाल अब उठना शुरू हो गया है।
एस्सार का एमओयू समाप्त होने के बाद लगातार एमओयू बढ़ाने के पीछे उद्योग विभाग का कौन मददगार है, एस्सार द्वारा वन क्षेत्रों में पाइप लाइन बिछाने से वनों का विनाश ही हुआ है, पर वन विभाग मौन है, एस्सार ने 5 लाख पौधों का रोपण किया है कहां किया है इसका पता वन विभाग को भी नहीं है। किरदुंल में बेनीफिकेशन प्लांट लगाने 85 एकड़ भूमि आदिवासियों से अधिग्रहित की गई उन्हें मुआवजा मिला कि नहीं, नौकरी मिली कि नहीं इसकी चिंता किसी को नहीं है।
सिंचाई सुविधाओं से वंचित तथा गर्मी में पेयजल के लिये मोहताज होने वाले दक्षिण बस्तर के आदिवासियों की चिंता भी जलसंसाधन विभाग को नहीं है। शबरी नदी के जल से अपनी स्लटी पाइप लाइन योजना से रोज 30 हजार टन लौह अयस्क चूर्ण का परिवहन पानी के दबाव से एस्सार कपंनी करती है। कंपनी ने अपनी अनुबंध में 45 पैसे प्रतिघन मीटर की दर तय की थी पिछले वर्ष 2010 में यह रकम 2 रुपए हो गई है। पहले की तरह आज भी एस्सार प्रति घंटे 10 लाख 6 हजार का चैक जल संसाधन विभाग को देती है। यह भी औसत खपत के आधार पर भुगतान होता
है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि एस्सार निर्धारित या तय पानी ही लेता है आज तक जल संसाधन विभाग ने यह जांच करने का प्रयास नहीं किया कि एस्सार प्रबंधन कुल कितने घन मीटर पानी का उपयोग करता है। सवाल यह भी है कि कुल कितना पानी का उपयोग एस्सार प्रबंधन ने किया इसकी जानकारी न तो एस्सार प्रबंधन ने दी और न ही जल संसाधन विभाग ने लेने की जरूरत समझी। आखिर क्यों? छत्तीसगढ़ शासन ने एस्सार प्रबंधन को साढ़े 4 लाख घन मीटर पानी प्रतिमाह दिये जाने की अनुमति दी है और एस्सार उतने ही पानी का भुगतान करता है न तो किसी माह
कम पानी का उपयोग किया है और न ही किसी माह अधिक पानी का? नक्सलियों द्वारा पाइप लाइन उड़ीसा में प्रभावित करने के कारण कुछ महीने परिवहन प्रभावित रहा था उस दौरान एस्सार प्रबंधन ने करार के अनुसार पानी लिया है या नहीं इसका भी खुलासा नहीं हो सका है।
इधर एमओयू की शर्तों के मुताबिक आसपास के 10 गांवों में आधारभूत सुविधाएं मसलन स्कूल, अस्पताल, सड़क पेयजल की व्यवस्था एस्सार प्रबंधन को करनी थी, पर ऐसा कुछ नहीं किया गया है फिर भी एमओयू की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है। क्या एस्सार को छत्तीसगढ़ शासन के अधिकारी- राजनेता मदद नहीं कर रहे हैं यदि यह एस्सार को मदद है तो ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने की भी छत्तीसगढ़ सरकार को हिमत जुटानी चाहिये?

महापुरुषों के चयन में भी संकीर्णता!

छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम अपनी कारगुजारी को लेकर काफी चर्चा में है। 2 लाख रुपए मासिक किराये पर कार्यालय लेकर पाठ्य पुस्तक वितरण, कागज की खरीदी, जरूरत से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन और जबरिया वितरण को लेकर चर्चित पापुनि ने शिक्षा विभाग सहित अनुसूचित जाति/जनजाति विभाग से 100 प्रतिशत राशि वसूलने के मामले की जांच शुरू हो चुकी है। कहा जाता है कि 15 प्रतिशत प्रकाशित मूल्य से कम कीमत में पुस्तक वितरण के आदेश का यहां कुछ सालों से सीधा-सीधा उल्लंघन हो रहा है। वहीं पापुनि ने 10
महापुरुषों के लेमिनेटेड फोटोग्रास प्रायमरी, मिडिल, हाई स्कूल तथा हायर सेकेण्ड्री स्कूल में वितरण करने को लेकर फिर चर्चा में है। पापुनि ने न जाने किस की सलाह पर रानी दुर्गावती, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद, रविन्द्रनाथ टैगोर, सर्वपल्ली, राधाकृष्णन, डॉ. भीमराव अबेडकर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को ही महापुरुष माना है। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, प्रथम राष्टï्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री जैसे देश के इतिहास पुरुषों को पता नहीं किसकी सलाह पर महापुरुष नहीं माना, वहीं छत्तीसगढ़ के कई समाज सुधारकों को भी इस योग्य नहीं माना है। सवाल यह उठ रहा है कि करोड़ों खर्च करने वाले पापुनि के अफसर चाहते तो 10 की जगह 15 या 20 महापुरुषों के फोटो ग्रास भी स्कूलों में भिजवा सकते थे पर लगता है कि कुछ महापुरुषों के कांगे्रस से नाता होने के कारण तथा प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण कुछ अफसरों ने संर्कीणता की परिचय देकर कुछ महापुुुरुषों की उपेक्षा ही नहीं की बल्किï भावी पीढ़ी को भी इन महापुरुषों से दूर करने की एक तरह से साजिश ही रची है। जहां तक पापुनि की कार्यप्रणाली की बात है तो लोक आयोग तक शिकायत पहुंचना और वहां प्रकरण दर्ज कर जवाब तलब करना ही सभी कुछ स्पष्टï करने काफी है।
दीपावली का तोहफा मिला पटेल को
प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल काफी खुश हैं। उनकी खुशी का एक बड़ा करण यह है कि प्रदेश में कार्य समिति के गठन के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने किसी भी बड़े नेता को मुलाकात का समय नहीं दिया। वहीं शनिवार को न केवल उन्हें मुलाकात का समय दिया बल्कि छत्तीसगढ़ में भी जल्दी आने की सहमति भी दे दी है। साथ ही श्रीमती सोनिया गांधी के निर्देश पर कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा न ेपटेल को नई वाहन खरीदने सवा 9 लाख का चेक भी दे दिया है। 16 साल बाद नये वाहन का कांगे्रस भवन में बल्कि होना अब तय माना जा रहा है।

और अब बस
(1)
प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठï आईएएस अफसर एक हाईपावर कमेटी के सामने प्रस्तुत नहीं हुए। जूनियर अफसर के अनुसार साहब प्रशिक्षण हेतु मसूरी गये हैं, बाद में स्वयं साहब ने बताया कि वे विदेश यात्रा पर हैं?
(2)
संस्कृति विभाग का बजट जस का तस है पर सांस्कृतिक आयोजन बढ़े हैं इससे एक छोटा अफसर हमेशा तनाव में रहता है।

Sunday, October 16, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

खुद ही लहुलूहान है घर की हक़ीक़तें
मत फेंकिये फरेब के पत्थर नये-नये
छत्तीसगढ़ में नक्सली फल-फूल रहे हैं। सरकारी अधिकारी, उद्योगपति, ठेकेदार भी फल-फूल रहे हैं नक्सली प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले तथाकथित एनजीओ भी फल-फूल रह हैं। जनप्रतिनिधि भी कुछ खास मुसीबत में नहीं हैै। बस वहां की आम जनता परेशान हैैं। सरकार से परेशान हैं, सरकार भी की सुरक्षाबल से परेशान है, नक्सलियों से परेशान है और अभी तक तो एसपीओ (विशेष पुलिस अफसर) से भी परेशान थी अब एसपीओ तो सरकार के ही अंग नई नियुक्ति के बाद बन जाएंगे उसके बाद वे क्या करेंगे यही सोचकर कम परेशान नहीं हैं।
अभी तक सरकार के पास वन ठेकेदार तेंदूपत्ता व्यवसायी, परिवहन कार्यकर्ताओं सहित कुछेक सरकारी अधिकारियों द्वारा नक्सलियों को आर्थिक मदद देने की सूचनाएं पहुंचती थी। हालांकि अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में सरगुजा के विपक्षी एक तत्कालीन विधायक द्वारा बड़ी रकम देने का मामला विधानसभा में चर्चा में आया था। पर हाल ही में एक बहुराष्टï्रीय औद्योगिक कंपनी एस्सार पर नक्सलियों को आर्थिक सहायता (रंगदारी टेक्स) करने का मामला चर्चा में हैै। दंतेवाड़ा के युवा पुलिस कप्तान अंकित गर्ग ने एक ठेकेदार को नक्सलियों को 15 लाख रुपए की बड़ी रकम देने के पूर्व गिरफ्तार करने का मामला गर्म हैै। हालांकि ठेकेदार ने वह रकम एस्सार की होने की बात की और उसके बाद एक एनजीओ 'जय जोहारÓ सहित एस्सार केडी जीएम, एक अन्य मददगार सोरी सोनी को पुलिस ने हिरासत में लिया हैै और पूछताछ की जा रही है।
छत्तीसगढ़ में नक्सली हथियारों के मामले में दिनों दिन मजबूत होते जा रहे थे उन्हें बारूद की आपूर्ति कहां से होती हैै, उनके आर्थिक मददगार कौन-कौन हैैं इस पर चर्चा होती रही हैै पर अब जो खुलासा हो रहा हैै वह कम चौकाने वाला नहीं हैै। एस्सार पाइप लाइन के सहारे लौह अयस्क को किरंदुल से विशाखापट्नम परिवहन करती हैै। यह पाइप लाइन छत्तीसगढ़, उड़ीसा सहित आंध्रप्रदेश के धुर नक्सली इलाके से गुजरती हैै। और लगता है कि इसी के एवज में एस्सार नक्सलियों को बड़ी रकम अदा करती हैै। हाल ही में पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी ने नक्सलियों और एस्सार के रिश्ते, आर्थिक मदद आदि के विषय में जांच करने आईजी पी.एन. तिवारी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई हैै और जांच शुरू हो चुकी हैै।

50 लाख पौधे कहां लगाये गये!

इधर सूत्रों का कहना है कि एस्सार प्रबंधक पैसा कही खर्च होना बताकर अधिक भुगतान संबंधित जनों को करता था और वे लोग 'नकदीÓ नक्सलियों तक पहुंचाते थे। पता चला है कि एस्सार के ठेकेदार बी के लाला को दोगुना अधिक दर में परिवहन का ठेका दिया गया था उसी तरह उड़ीसा चित्रगोडा में जिस पंप हाऊस को पहले नक्सलियों ने क्षतिग्रस्त करके लौह अयस्क का परिवहन प्रभावित किया था और उसी के बाद बिना बाधा के परिवहन की 'डीलÓ हुई होगी उस पंप हाऊस की मरम्मत के लिये 5 गुना अधिक रकम खर्च बताई गई हैै। क्या यह अतिरिक्त पैसा भी नक्सलियों के फंड में गया होगा? इधर पुलिस जांच में एस्सार प्रबंधन द्वारा पिछले 3 महीनों के भीतर 50 लाख पौधे किसी सूरज नर्सरी जगदलपुर से खरीदने और उसके एवज में करीब 50 करोड़ के भुगतान के कागजात भी हाथ लगे हैंं। पौधे जिस नर्सरी से खरीदकर भुगतान करना बताया जा रहा है वह नर्सरी जगदलपुर में है ही नहीं, न तो उस नर्सरी का रजिस्ट्रेशन नंबर मिला है न ही फोन नंबर, जाहिर है नर्सरी कहां स्थापित हैै इसका पता तो लग ही नहीं सकता हैै। सवाल यह भी उठ रहा है कि एस्सार ने 50 लाख पौधे आखिर कहां लगाये हैं। 50 लाख पौधे कितने वाहनों से आये किस-किस नंबर के वाहन से पौधे पहुंचे इसकी भी जानकारी एस्सार प्रबंधन को नहीं हैै।
पुलिस कप्तान ने दंतेवाड़ा केडीएफओ से 50 लाख पौधों की आपूर्ति के विषय में जांच करने कहा तो किसी भी वन जांच चौकी में पौधों के परिवहन का उल्लेख नहीं मिला। सवाल फिर उठ रहा है कि 50 करोड़ का भुगतान किसे किया गया? लगता है कि बिचौलियों के नाम से एस्सार भारी रकम का भुगतान कराता हैै और उसे नकदी की शक्ल में नक्सलियों तक पहुंचाया जाता हैै। बहरहाल कई बार एस्सार प्रबंधन के कार्यालय में संदिग्ध लोगों के आने-जाने की चर्चा पहले से चल रही हैै। कही ये अनजान लोग नक्सली या उनके समर्थक तो नहीं थे?

अटलजी के पिता का क्या नाम है?

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस में कभी विद्याचरण शुक्ल और कभी अजीत जोगी के खेमे में अपनी दखल स्थापित कर 'बड़े नेताÓ का भ्रम पालने वाले राजेंद्र तिवारी को इस बार नवनियुक्त प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने जमीनी हकीकत से वाकिफ करवा ही दिया। विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी के करीबी रहकर कांगे्रस का पर्याय बनने तथा अपने बड़बोलेपन के लिये विख्यात राजेंद्र तिवारी को इस बार प्रदेश कांगे्रस कमेटी में स्थान नहीं मिला उन्हें न तो महासचिव बनाया गया और न ही मुख्य प्रवक्ता। उन्हें विशेष आमंत्रित सदस्य बनाकर उनके कद का अहसास करा दिया गया। विद्याचरण शुक्ल के लोकसभा चुनाव में गांधी चौक कांगे्रस भवन के पास एक चुनावी सभा में राजेंद्र तिवारी ने बाजपेयी के पिता का क्या नाम हैै? पूछकर जनता को नाराज कर दिया। खैर उनका तो कुछ नहीं बिगड़ा, विद्या भैया वह चुनाव जरूर पराजित हो गये, पिछले विस चुनाव में भी एक बार राजेंद्र तिवारी मीडिया से ही उलझ पड़े थे बाद में माफी मांगकर किसी तरह मामला सुलझाया था। बहरहाल इस बार नंदकुमार पटेल ने जरूर प्रवक्ता बनाने में विशेष सावधानी बरती, मीडिया, समिति का अध्यक्ष इंजीनियर शैलेश नितिन त्रिवेदी को बनाया तो उनके साथ अमीर अली फरिश्ता, राजेश बिस्सा, आनंद शुक्ला आदि को भी समयोजित किया हैै। सूचना के अधिकार के तहत तो राजेश बिस्सा राष्टï्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं।

पूर्व मंत्री के पीए को तमाचा

छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में चर्चित एक मंत्री के पीए उस समय उनसे भी अधिक चर्चा में थे। भाजपा के छोटे नेता और कार्यकर्ता उस समय यही नहीं समझ पाते थे कि मंत्री बड़ा है या उनका पीए! चूंकि पीए सर्वगुण संपन्न था इसलिये मंत्रीजी भी उनके खिलाफ कुछ भी सुनना पंसद नहीं करते थे। खैर पिछले चुनाव में वह मंत्री चुनाव हार गये और उनके पीए का भी रौब समाप्त हो गया। फिर भी पूर्वमंत्री ने अपने पीए को दूसरे मंत्री के पास एडजस्ट कराया पर वहां पीए की दाल नहीं गली तो दूसरे सीधे-सादे छत्तीसगढिय़ा मंत्री के पास उस पीए की तैनाती करवाने में सफलता पाई। पर वह पीए इतने बड़े आदमी हो गये कि उसी पूर्व मंत्री के एक निकटीय रिश्तेदार के काम को भी करवाने में रुचि नहीं ली। 2-3 बार भी कहने पर जब काम नहीं हुआ तो पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने उस पीए को वर्तमान मंत्री के बंगले में जाकर तमाचा रसीद करने में कोताही नहीं बरती। खैर अब इस मंत्री की भी चला-चली की बेला हैै, पूर्व मंत्री भी नाराज हो गये हैैं अब पीए कहीं और पदस्थापना की जुगाड़ में है।
और अब बस
(1)
खेल-कूद के सामानों की खरीदी में अनियमितता की शिकायत संगठन और आरएसएस नेताओं के पास पहुंच गई है। देखना है कि आगे क्या होता हैै।
(2)
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ 3 और सिंह भी अमेरिका यात्रा पर रवाना हो गये हैं। मंत्रालय सहित फील्ड में पदस्थ अधिकारी कुछ दिन जरूर तनावमुक्त रह सकते हैं।
(3)
2 सगी बहनों की उम्र में 3 माह का अंतर है। उन्हें नौकरी में रखने पर पापुनि के महाप्रबंधक, लोक आयोग में इस शिकायत से परेशान हैं। दोनों की अंकसूचियों का सत्यापन भी तो उन्होंने किया है। उन्हें इस शिकायत का कोई काट भी तो नहीं मिल रहा हैै।

Tuesday, October 4, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

मैं परिंदा हूं कहीं रुकना मेरी फितरत नहीं,
फिर किसी मंजिल का सपना बुन रहा हूं आजकल

छत्तीसगढ़ के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने नक्सलियों से हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अच्छी पहल की है। देश के लगभग 12 राज्यों में अपने पैर पसार चुके नक्सली आखिर चाहते क्या हैं, यही पता नहीं है। आईबी में डायरेक्टर रहने के बाद छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के राज्यपाल ई.एस.एल. नरसिम्हन ने हमसे एक साक्षात्कार में भी यही कहा था कि मैं समझ ही नहीं पाया कि नक्सली चाहते क्या हैं। गरीबों के उत्थान, भूमि सुधार और समाज कल्याण की बात करने वाले नक्सलियों ने अभी तक तो इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। उल्टे उनकी हिंसक गतिविधियों से समाज और विकास विरोधी मानसिकता ही सामने आई है। सुदूर क्षेत्रों में सड़क, शाला, आश्रम भवन, पंचायत भवन, पुल-पुलिया, स्वास्थ्य केन्द्र उड़ाकर उन्होंने गरीबों का कौन सा हित किया है। यही समझ से परे है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रा के लिये केन्द्र और राज्य सरकार कई योजनाएं बनाती है और उसके लिये प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च भी होता है। पर ईमानदारी से वह योजनाएं फील्ड में पहुंच नहीं पाती है। नक्सली प्रभावित क्षेत्र में भ्रष्टïाचार की चर्चा अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने तक जारी है। कांकेर जिले में सूखा के समय बाढ़ राहत के नाम पर लाखों खर्च करने का मामला उठा था, जांच भी हुई पर क्या हुआ कुछ पता नहीं चला। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कागजों में ही भवन, पुल-पुलिया बनने की चर्चा होती रहती है। वनो में अवैध कटाई, शिकार की बात सामने आती है दरअसल बस्तर में तो वन क्षेत्रों में एक तरह से नक्सली ही मालिक बन बैठे हैं। वन विभाग के कई योग्य अफसर दूसरे विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय मालिक मकबूजा के नाम पर एक बड़ा घोटाला सामने आ चुका है जिसमें तत्कालीन कलेक्टर और कमिश्नर के बीच उपजा विवाद भोपाल मुख्यालय तक पहुंचा था। आदिवासियों का शोषण और उनके हक की लड़ाई के नाम पर नक्सलियों ने आदिवासियों की हमदर्दी हासिल कर अपनी राह बनाई और अब आदिवासियों के ही बड़े दुश्मन बन गये हैं।
वैसे डॉ. रमन सिंह नक्सलवाद की समस्या पर बहुत संजीदा हैं। सलवा जुडूम के नाम पर लम्बा संघर्ष नक्सलियों के खिलाफ चला, एसपीओ की तैनाती और सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद एसपीओ की भर्ती का मार्ग प्रशस्त करने में डॉ. रमन सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हाल ही में उन्होंने पुलिस के आला अफसरों से कहा है कि हर माह में कम से कम एक सप्ताह नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में गुजारें और ग्रामीणों के दुख-दर्द की जानकारी लेकर उसके निदान की पहल करें। वैसे यह सुझाव ही है कि बस्तर और राजनांदगांव क्षेत्र के लिये एक एडीजी स्तर के अधिकारी की बस्तर में तैनाती की जा सकती है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय राजनांदगांव में एक नक्सली आईजी की स्थापना हो चुकी है। यह भी तो सकता हैै कि बस्तर क्षेत्र में एक प्रभारी सचिव (आईएएस) की नियुक्ति कर दी जाए और वह प्रतिमाह कम से कम 10 दिन बस्तर में ही कैम्प करे। इससे एडीजीपी और सचिव स्तर के अधिकारी दोनों मिलकर नक्सल अभियान पर निगाह रखेंगे वहीं विकास योजनाओं की भी समय-समय पर समीक्षा करते रहेंगे। बहरहाल डॉ.रमन सिंह का नक्सलियों से मुख्यधारा में हथियार छोडऩे की पहल करना सरकार की नीयत को साफ करता है। यदि वास्तव में नक्सली आदिवासियों के हितचिंतक हैं तो उन्हें बातचीत की पहल करना चाहिए क्योंकि वार्ता से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकलता है। वैसे नेपाल में माओवादियों ने चुनाव लडऩे की हिम्मत दिखाई है यदि बस्तर के आदिवासी उनके साथ है ऐसा वे मानते हैं तो चुनाव लड़कर अपनी लोकप्रियता साबित करने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं चुनाव जीतकर वे विधानसभा में पहुंचकर आदिवासियों की समस्याओं को अधिक मजबूती से उठा सकेंगे। देखना यह है कि मुख्यमंत्री की पहल को नक्सली किस रूप में लेते हैं।

पलायन अफसरों का!

छत्तीसगढ़ में आखिर आईएएस और आईपीएस रहना क्यों नहीं चाहते हैं? क्या राज्य सरकार में चल रही अफसर शाही इसके लिये जिम्मेदार हैं या अफसर अपनी उपेक्षा के चलते ऐसा करने मजबूर हैं। छत्तीसगढ़ में आंध्रप्रदेश कैडर के आईएएस पंकज द्विवेदी कुछ वर्षों तक प्रतिनियुक्ति पर रहे वे इसी राज्य में सेवाएं देना चाहते थे, क्योंकि उनके परिजन यही के हैं। विधानपुरुष के नाम पर चर्चित मथुरा प्रसाद दुबे के दामाद तथा कांगे्रस नेत्री नीरजा द्विवेदी के पति पंकज को आखिर आंध्रप्रदेश जाना ही पड़ा और हाल ही में उन्हें आंध्रप्रदेश का मुख्य सचिव बनाया गया है। उड़ीसा के मूल निवासी तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सुंदरनगर में स्थायी रूप से रह रहे बी के एस रे को वरिष्ठï होने के बाद भी मुख्य सचिव क्यों नहीं बनाया गया इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्हें योग्य होते हुए भी किसी भी पद के लिए उपयुक्त क्यों नहीं समझा गया इसका भी जवाब देने कोई तैयार नहीं है। हाल ही में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से मानव संसाधन मंत्रालय से प्रदेश लौटे वरिष्ठï आईएएस सुनील कुमार को एसीएस होने पर शालेय शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का प्रभार देकर सीमित कर दिया गया है। वैसे अभी तक प्रमुख सचिव या सचिव स्तर के अधिकारी यह काम देखते थे। प्रदेश के वरिष्ठï तथा अनुभवी आईपीएस अफसर प्रवीण महेंद्रु तो कभी छत्तीसगढ़ में आये ही नहीं वही राजीव माथुर अपनी उपेक्षा से नाराज होकर प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में चले गये। यहां उन्हें डीजीपी के योग्य नहीं समझा गया और बाद में वे हैदराबाद पुलिस अकादमी के संचालक बनाये गये यह पद आईपीएस अफसरों के लिये प्रतिष्ठïा का होता है। अभी भी आईपीएस अफसर बी के सिंह, स्वागत दास, रवि सिन्हा, जयदीप सिंह, अशोक जुनेजा, अमित कुमार, अमरेश मिश्रा प्रतिनियुक्ति पर है। वहीं बस्तर के आईजी टी जे लांगकुमेर और नेहा चंपावत भी प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले हैं। हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने 1988 बैच के मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले तथा आर के विज को संयुक्त सचिव पद के लिये सूचीबद्घ (इम्पैनल) किया है हालांकि इनमें से किसी को भी राज्य शासन ने अपनी अनापत्ति नहीं दी है। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में आखिर आईएएस, आईपीएस रहने इच्छुक क्यों नहीं है। क्या खेमेबाजी में लगे कुछ अफसर या राजनेताओं के करीबी इसके लिये जिम्मेदार हैं?

हमारे सांसद!

वोट फार इंडिया की 2010-11 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले अगस्त माह में मानसून सत्र में सवाल पूछने के मामले में छत्तीसगढ़ के सांसद 20वें स्थान पर रहे तो संसद में उपस्थिति के मामले में 22वें क्रम पर रहे हैं। डॉ. चरणदास महंत छत्तीसगढ़ से कांगे्रस के एक मात्र सांसद हैं वे 72 दिन चली संसद की कार्यवाही में 67 दिन हाजिर रहकर सबसे आगे रहे तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विधानसभा के शामिल होने वाले लोकसभा राजनांदगांव के सांसद मधूसूदन यादव ने सबसे कम 23 दिन उपस्थिति दर्ज कराकर सबसे पीछे रहे। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष तथा रायगढ़ के सांसद विष्णुदेव साय और आदिवासी अंचल नक्सली प्रभावित क्षेत्र कांकेर के सांसद सोहन पोटाई ने एक भी सवाल नहीं पूछा है। सुश्री सरोज पांडेय ने 48 दिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर सर्वाधिक 100 सवाल पूछे तो प्रदेश के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस 66 दिन सदन की कार्यवाही में उपस्थित रहकर 77 सवाल पूछा। डॉ. चरणदास महंत ने भी 67 दिन की उपस्थिति दर्ज कराकर 77 सवाल पूछे। दिलीप सिंह जूदेव ने 47 दिन उपस्थित रहकर 81 सवाल पूछे तो कमला देवी पाटले ने 26, चंदूलाल साहू ने 19, मधूसूदन यादव ने 10, मुरारीलाल सिंह ने 10 सवाल पूछे। तेजी से बढ़ रहे छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र के प्रमुख हथियार प्रश्नकाल में ज्वलंत और बुनियादी समस्याओं को उठाने में प्रदेश के कुछ सांसदों की कम उपस्थिति और कम सवाल पूछने के लिये आखिर जनता बेचारी कर भी क्या सकती है। उसका काम तो पांच साल में एक बार मतदान कर सांसद चुनना ही है और उसके बाद केवल पांच साल का इंतजार ही करना उसकी नियति बन चुकी है।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ के करीब आधे मंत्रियों की क्लास गडकरी सर ने ले ली है और आधे की क्लास लेना जरूरी नहीं समझा है। मंत्री अभी तक गडकरी सर के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं।
(2)
मंत्रिमंडल में फेरबदल डॉ. रमन सिंह की विदेश यात्रा के बाद होगा ऐसा संकेत मिला है। एक टिप्पणी:- मंत्रालय और फील्ड में पदस्थ अफसरों में खुशी की लहर दौड़ गई है।

Thursday, September 22, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़


सरहदों में बहुत तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या!
छत्तीसगढ़ की डॉ.रमन सिंह सरकार प्रदेश में शराबबंदी करने की तरफ कदम बढ़ा रही है वहीं संगठन के कुछ बड़े नेता भी सक्रिय हो गये हैं हाल ही में डीजीपी पद से विश्वरंजन की छुट्टïी और प्रशासनिक फेरबदल की भी चर्चा है यह प्रशासनिक कसावट का संकेत है वहीं मंत्रिमंडल के 6 वरिष्ठï सदस्यों से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी दिल्ली बुलाकर समीक्षा कर चुके हैं। मंत्रिमंडल में फेरबदल आगामी विधानसभा चुनाव के मद््देनजर होगा ऐसा कहा जा रहा है। वहीं निगम मंडलों में भी नई नियुक्तियां होनी है। इससे कुछ नेताओं को पद देकर संतुष्टï किया जाएगा जैसा हाल ही पिछले विस चुनाव में पराजित चर्चित नेता अजय चंद्राकर को एक साल के लिये वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाकर किया गया है। इधर कांगे्रस भी आगामी चुनाव के लिये तैयारी कर रही है। हाल ही में विधानसभा में कांगे्रस का आक्रामक रवैया चर्चा में रहा वहीं कांगे्रसी नेताओं की एकजुटता भी आगामी चुनाव के मद्देनजर ही दिखाई दे रही है।
छत्तीसगढ़ कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल की अगुवाई में राष्टï्रपति प्रतिभा ताई पाटिल को रमन सरकार के खिलाफ 20 हजार करोड़ के घपले का आरोप लगाकर 500 पेज का दस्तावेज सौंपकर सीबीआई जांच की मांग करके अपनी सक्रियता का परिचय तो दिया ही है। साथ ही यह भी महसूस कराने का प्रयास किया है कि छत्तीसगढ़ में 'मजबूत विपक्षÓ है। अभी तक तो यही लग रहा था कि विपक्ष में है इसलिये सरकार का विरोध करने की औपचारिकता निभाई जा रही है।
हाल ही में प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठï कांगे्रसी नेता मोतीलाल वोरा, राज्यसभा सदस्य मोहसिना किदवई, डॉ. चरणदास महंत, विद्याचरण शुक्ल, नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे सहित कई विधायकों, पूर्व मंत्रियों ने एकजुटता दिखाकर दिल्ली के खिलाफ शंखनाद किया और इससे यह भी संदेश आम कार्यकर्ताओं तक पहुंचा कि कांगे्रस में 'एकाÓ हो रहा है। हालांकि इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अनुपस्थिति जरूर चर्चा में रही। बहरहाल छत्तीसगढ़ कांगे्रस ने राष्टï्रपति को ज्ञापन सौंपकर राज्य सरकार पर 20 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है। प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल की मानें तो 10 हजार करोड़ का एनयूटी सड़क घोटाला, 3 हजार करोड़ का धान खरीदी, 100 करोड़ का जल आबंटन, खनिज पट्टïों के लिये 100 करोड़ का लेनदेन, 2 हजार करोड़ की पीएमजीवायएस सड़कें घटिया बनाकर घोटाला किया है वहीं आदिवासियों की करीब 1500 एकड़ जमीन उद्योगपतियों को दे दी है। पटेल के अनुसार आरोप पत्र मुद््दों की सीबीआई से जांच कराई जाएगी तो आरोप प्रमाणित भी हो जाएंगे। सीधा आरोप राज्य सरकार पर लगाकर प्रदेश अध्यक्ष ने खनिज पट्टïों की बंदरबाट, उद्योगों-कारखानों के लिये भूमि अधिग्रहण के मामलों में गड़बड़ी प्रदेश की जीवनदायिनी महानदी के पानी आबंटन में किसानों की उपेक्षा केन्द्र सरकार की योजनाओं, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टïाचार, धान खरीदी में घोटाला, एनयूटी सड़क बनाने में अनियमितता, ऊर्जा विभाग का ओपन एक्सेस घोटाला जैसे प्रकरण राष्टï्रपति को मय दस्तावेज सौंपे हैं।
एस्सार, ठेकेदार और माओवादी माओवादियों को 15 लाख रुपए देने के आरोप में पकड़े गये ठेकेदार बी के लाला 1971-72 में हरियाणा से आकर किरंदुल में चाय की गुमटी लगाता था उसके बाद फेरी लगाकर कपड़े बेचता था उसी के बाद ठेकेदारी शुरू कर दी पहले एनएमडीसी के लिये काम किया आजकल एस्सार गु्रप के विश्वसनीय ठेकेदार के रूप में सक्रिय है। एस्सार की पाइप लाइन विशाखापटनम तक गई है। इस पाइप लाइन का 80 किलोमीटर क्षेत्र पूरी तरह माओवादियों के कब्जे में है। इस पाइप लाइन का रास्ता साफ करने में लाला की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। सवाल कई तरह के उठ रहे हैं। 15 लाख रुपए उसने किस बैंक से निकाले थे, किस खाते से निकाले थे, उसने 15 लाख की रकम बैंक से क्यों निकाली थी, उस रकम को नक्सलियों को कहां सौंपनी थी आदि कई बातों का खुलासा अभी होना बाकी है। वैसे नये पुलिस कप्तान का यह साहस कहीं उनको ही भारी साबित न पड़े क्योंकि उन्होंने उत्साह में रकम जब्त कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और इस मामले में सरकार की भी किरकिरी हो रही है।
छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र के विशेषज्ञ समझे (?) जाने वाले पुलिस महानिरीक्षक टी जे लांगकुमेर ने राज्य बनने से अभी तक 10 साल से अधिक समय बस्तर में ही विभिन्न पदों पर गुजारा है क्या उन्हें नक्सलियों के मददगारों की जानकारी नहीं थी? एक और नक्सली क्षेत्र में अभियान चलाने की महारत हासिल(?) एसआरपी कल्लूरी को क्या इस ठेकेदार की जानकारी नहीं थी? सवाल यह उठ रहा है कि किसी नक्सली से एक भरमार बंदूक जब्त किसी नक्सली समर्थक को पकड़कर अपनी पीठ ठोंकने वाली पुलिस और खुफिया विभाग को ठेकेदार लाला के कुछ ही वर्षों में करोड़पति बनने की खबर नहीं थी? ठेकेदार लाला ट्रांसपोर्टर का भी काम करता था उसकी गाडिय़ां कदमपुर और पारापुर जैसे खतरनाक क्षेत्रों में परिवहन किया करती थी इससे उसे सालाना 6 करोड़ से अधिक का भुगतान मिलता था। परिवहन में करोड़ों की आय होने वाले ट्रांसपोर्टर को पुलिस जानती नहीं होगी यह बात गले उतरने की नहीं है। बहरहाल माओवादियों के आर्थिक मददगारों पर यदि पुलिस शिकंजा कसने में कामयाब होती है तो यह बस्तर के माओवाद के सफाये के लिये एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। वैसे इस मामले की सीबीआई जांच कराने की बात प्रदेश के एक मात्र कांगे्रस सांसद और केन्द्रीय राज्यमंत्री डॉ. चरणदास महंत कर रहे हैं देखना है कि वे इसमें सफल होते हैं कि नहीं।
एक आईएएस फिर चर्चा में
छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा अविभाजित मध्यप्रदेश में जनता पार्टी के शासनकाल में संसदीय सचिव रह चुके वीरेंद्र पांडे ने पहले विधायक खरीदी का मामला उठाया था और हाल फिलहाल छत्तीसगढ़ के एक मंत्री राजेश मूणत के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर लोक आयोग में शिकायत दर्ज कराई है साथ ही दो आईएएस अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आग्रह किया है। इसमें एक आईएएस तो शुरू से ही चर्चा में है। टिकरापारा स्थित पटवा कॉम्प्लेक्स में 2 लाख मासिक किराये पर एक कार्यालय भवन किराये पर लेने के नाम पर वह चर्चा में रहे। उनके विभाग के खिलाफ अजीत जोगी के कार्यकाल में ही विपक्ष (अभी सरकार में शामिल) ने विधानसभा में 25-30 सवाल भी उठाये थे। बतौर नगरीय प्रशासन सचिव इनके द्वारा रायपुर, बिलासपुर में सड़कों की सफाई हेतु खरीदे गये रोड स्वीपर वाहन अभी भी एक ही स्थान पर खड़े होकर सरकार का मुंह चिढ़ा रहे हैं। इनके ही कार्यकाल में केन्द्र सरकार की योजना के तहत गरीबों के लिये बनाने वाले मकानों के निर्माण हेतु ठेकेदारों को अग्रिम में बड़ी रकम देना, मकान निर्माण में देरी पर विपक्ष के लगातार हमले से मुख्य सचिव को बैठक लेकर चेतावनी देना भी चर्चा में रहा। हाल ही जल संसाधन विभाग के सचिव पद से भी इन्हें हटाया गया है। जांजगीर जिले के 'रोगदा बांधÓ की जमीन को एक निजी उद्योगपति को सौंपने के मामले में विधानसभा समिति जांच कर रही है। चर्चा तो यह भी है कि विपक्ष के पास इस मामले की पूरी जानकारी सुलभ कराने में भी जलसंसाधन विभाग का योगदान रहा है। बहरहाल ये आईएएस अफसर तो अब प्रतिनियुक्ति में दिल्ली जाने की तैयारी में है।
ब्राह्मïण-ठाकुर सफाई ठेकेदार नगर निगम की सफाई व्यवस्था से नाराज महापौर किरणमयी नायक ने नवरात्रि से दीपावली तक सुधारने की चेतावनी देकर कहा है कि यदि निरीक्षण के दौरान गंदगी पाई गई तो सीधे जोन कमिश्नर और स्वच्छता निरीक्षक के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी इस बार सफाई ठेकेदारों को क्लीनचिट दिया गया है। बहरहाल शहर की सफाई के लिये एक करोड़ मासिक का भुगतान हो रहा है यह राशि पिछले साल 80 लाख रुपए थी। बहरहाल सफाई ठेकेदारों को छोडऩे की हिम्मत महापौर महोदया नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि ऐसा करने से उनकी गद्दी ही खतरे में पड़ जाएगी। सूत्रों का कहना है कि राजधानी के 70 वार्डों में सफाई आधारित ठेके दिये गये है। इनमें करीब 25 वार्ड ऐसे हैं जहां सफाई का ठेेका कांगे्रस-भाजपा के अलावा दमदार निर्दलीय पार्षदों के रिश्तेदारों को दिया गया है। वार्डों की सफाई व्यवस्था की बुरी हालत है। अधिकांश वार्डोंे का सफाई ठेका ब्राह्मïणों-ठाकुरों के पास है। सफाई ठेकेदार का मोबाइल नंबर उनके अस्थायी कार्यालय में नहीं मिलता है, सफाई कर्मचारियों की संख्या उनके आने-जाने का समय भी कार्यालय में नहीं होता है। सफाई ठेके के लिये क्या योग्यता निर्धारित की गई है। क्या शर्त है, कितने कर्मचारी सफाई ठेेकेदार द्वारा निर्धारित किये गये है यह भी पारदर्शी नहीं है। आलम यह है कि शहर के प्रमुख वार्डों में गंदगी का आलम है। बहरहाल निगम के जोन कमिश्नर और स्वास्थ्य निरीक्षक सफाई के लिये दबाव बनाएंगे और पार्षद रिश्तेदार सफाई ठेकेदार सहयोग नहीं करेंगे तब क्या होगा...?
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख जिलों में तैनात पुलिस कप्तानों की अदला-बदली की चर्चा जमकर है। अपनी बदली और प्रभावी भूमिका में आये गृहमंत्री ननकीराम कंवर पहले उनके आदेश की उपेक्षा करने वाले कुछ अफसरों को निपटा सकते हैं।
(2)
छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल का पुनर्गठन टल गया है एक टिप्पणी: ... गृहमंत्री की तलाश जारी है, तलाश पूरी होते ही बदलाव हो जाएगा।
(3)
छत्तीसगढ़ पुलिस के एकमहानिरीक्षक ने एक हवलदार के स्वागत करने पहुंचने पर अपनी खुशी जाहिर की। सरगुजा जिले का वह हवलदार 'बिग बीÓ के शो के लिये चयनित होकर हाट सीट पर बैठकर लौटा है।

आइना ए छत्तीसगढ़

सिलसिला जख्म-जख्म जारी है
ये जमीं दूर तक हमारी है
नाव कागज की छोड़ दी है मैंने
अब समंदर की जिम्मेदारी है

छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन में लोकायुक्त जस्टिस एल सी भादू की यह टिप्पणी कि 'भ्रष्टï लोकसेवकों को महत्वपूर्ण पदों से हटाना जरूरीÓ एक तरह से छत्तीसगढ़ सरकार को आइना दिखाने का ही प्रयास है। जब देश में अन्ना हजारे के अनशन के बाद 'जनलोकपालÓ बनाने की मुहिम का पूरे देश में स्वागत किया जा रहा है स्वयं मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह भी मजबूत लोकपाल के पक्षधर हैं ऐसे समय प्रतिवेदन के माध्यम से लोकायुक्त जस्टिस भादू की टिप्पणी स्वागत योग्य है। जस्टिस भादू ने राज्य सरकार के सचिवों पर गंभीर आक्षेप लगाया है। उनका कहना है कि लोकायुक्त की अनुशंसाओं को विभिन्न विभागों के सचिव गंभीरता से नहीं लेते हैं उसे डस्टबीन (कचरे की पेटी) में डाल देते हैं। ऐसा करते समय सचिवों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनुशंसा उस व्यक्ति की है जो हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस या जस्टिस रह चुका है।
उन्होंने अपने वार्षिक प्रतिवेदन में कहा है कि सिद्घांतत: किसी लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टïाचार स्थापित होने का आदेश होने पर संबंधित लोकसेवक को महत्वपूर्ण पद से हटा देना चाहिए पर वह अधिकारी महत्वपूर्ण पद पर बना रहता है और आयोग की अनुशंसा ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है।
स्क्रीन
जस्टिस भादू ने कहा है कि सरकारी अमला कब पैसा खा जाए, यह भी कह पाना कठिन है।लेकिन अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि तालाब में मछलियों की संख्या अनगिनत है और हर मछली अधिक पानी पीने को बेताब है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रष्टïाचारियों को बचाया जा रहा है।
लोकायुक्त जस्टिस भादू ने अपने प्रतिवेदन में सरकार को सुझाव दिया है कि आयोग की अनुशंसा को गंभीरता पूर्वक लेकर उसका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। यदि क्रियान्वयन नहीं करने की स्थिति पैदा होती है तो उस परिस्थिति में कम से कम 3 वरिष्ठï मंत्रियों मुख्य सचिव विभागीय प्रमुख सचिव/सचिव की कमेटी द्वारा विचार-विमर्श कर सामूहिक निर्णय लेना चाहिए। परंतु ऐसी कोई व्यवस्था शासन द्वारा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी लोकसेवक के विरुद्घ अवचार स्थापित होने का आदेश आयोग द्वारा राज्य सरकार को भेजा जाता है तो सर्वप्रथम अवचारी लोकसेवक को महत्वपूर्ण पद से हटाया जाना चाहिए। परंतु यह बात देखने में आई है कि कई मामलों में लोकसेवक के विरुद्घ अवचार स्थापित होने की अनुशंसा की गई है। वही महत्वपूर्ण अधिकारी के रूप में पदस्थ रहता है और आयोग की अनुशंसा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
क्यों नाराज हैं राजीव रंजन
छत्तीसगढ़ में एक नौकरशाह थे राजीव रंजन, उन्हें बिहार-झारखंड के एक बड़े नेता के खास होने के कारण छत्तीसगढ़ लाया गया था यहां आकर उन्हें छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल का अध्यक्ष बनाया गया और उसके बाद उनके ही अंदाज बदल गये। प्रदेश के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस ने जब उनसेे कुछ जानकारी मांगी तो उन्होंने सत्ताधारी दल भाजपा के वरिष्ठï सांसद को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने की सलाह दे दी और उसके बाद बहुत बवाल भी हुआ। उनकी शिकायत भाजपा आलाकमान तक पहुंची पर प्रदेश के मुखिया की सरपरस्ती और भाजपा गठबंधन मेें शामिल एक बड़े नेता के संरक्षण के चलते काफी समय बाद उनसे किनारा किया गया उन्हें ऊर्जा विभाग का ओएसडी बनाकर दिल्ली में अटैच किया गया फिर हालात समझकर उन्होंने खुद किनारा भी कर लिया। इस बार नीतीश कुमार की आंधी के चलते राजीव रंजन विधायक भी चुन लिये गये हैं वैसे उनका छत्तीसगढ़ का कार्यकाल चर्चा में रहा है। हाल ही में वे छत्तीसगढ़ प्रवास पर आये और रायपुर में बाकायदा पत्रकारों को बुलवाकर चर्चा की और छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के विषय में काफी कुछ कह गये, छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ भी बोल गये। सरकार के कभी काफी करीबी रहे रंजन जी का यह विष--वमन किसी के समझ में नहीं आया। बाद में पता चला कि उनका पुराना कुछ मसला बाकी था और वह ठीक नहीं होने पर उन्होंने अपना गुस्सा सरकार सहित विद्युत मंडल पर ही उतार दिया जबकि पहले वे सरकार और विद्युत मंडल के गुण गाने में नहीं अघाते थे।
शहर का कोई माई बाप नहीं
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 2 दिनों की बारिश के चलते ही कई इलाकों को जलमग्र सा कर दिया है। शहर की कई पॉश कालोनी सहित कुछ निचली बस्तियों में पानी भरने के कारण रतजगा की स्थिति बन गई थी। रायपुर शहर की कई प्रमुख सड़कों पर पानी भर गया, नालियां ओव्हरफ्लो हो गई, राजधानी का हृदय स्थल जयस्तंभ चौक काफी हाऊस के आस-पास सड़क पर पानी भर गया था, नये निगम मुख्यालय के सामने भी पानी का जमाव हो गया था। छत्तीसगढ़ के विधायकों के लिये नियत स्थान विधायक विश्राम गृह में भी इतना पानी भर गया था कि विधायकों का अपने कमरों से बाहर आकर विधानसभा सत्र में भाग लेने जाना भी समस्या हो गया था, कुछ विधायकों ने तो इसकी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष को भी की है। बहरहाल यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी का कोई माई बाप नहीं है। नगर के 2 विधायक बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री हैं। दोनों मंत्रियों में 36 का आंकड़ा है। यह किसी से छिपा नहीं है। राजेश मूणत तो नगरीय प्रशासन मंत्री भी हैं। नगर के तीसरे विधायक कुलदीप जुनेजा कांगे्रस से हैं और नगर निगम में कभी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं तो महापौर किरणमयी नायक भी कांगे्रस की हैं। कांगे्रसी पार्षदों की पर्याप्त संख्या के बाद भी सभापति संजय श्रीवास्तव (भाजपा) चुने गये हैं। निगम कमिश्नर जिस तेजी से आते-जाते रहते हैं वह भी चर्चा में है। कुल मिलाकर आपसी प्रतिद्घंद्घिता और अहम की लड़ाई के चलते राजधानी की नागरिक सुविधाएं प्रभावित हो रही है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी की महापौर डॉ. किरणमयी नायक को धार्मिक यात्राएं और सेमीनारों में भाग लेने से फुर्सत नहीं है। हाल ही में नगर के कई क्षेत्रों में 2 दिनों की अनवरत बारिश से पानी घुस गया था और महापौर को शहर में निकलने की फुर्सत नहीं थी। एक चैनल की खबर के अनुसार उन्होंने मेंहदी लगा रखी थी। इधर सत्ताधारी दल के खिलाफ राजधानी से चुने गये एक मात्र विधायक कुलदीप जुनेजा को शहर की समस्या की जगह अपने लोगों के निजी काम कराने में अधिक रुचि लेते देखाजा रहा है। सवाल फिर यही उठ रहा है कि शहर की जनता ने कांगे्रस का महापौर चुनकर क्या कोई गलती की है? शहर के अधिकांश वार्डों में सफाई व्यवस्था बदतर है। सफाई का ठेका कुछ पार्षदों ने अपने लोगों को दे रखा है, ब्राह्मïण-ठाकुर यदि सफाई ठेकेदार होंगे तो सफाई कैसे हो पाएगी, सफाई ठेका देने में भी पारदर्शिता नहीं बरती गई है जिससे आक्रोश व्याप्त है। शहर में पानी का शुल्क बढ़ा दिया गया है, नलों में मीटर लगाने की तैयारी हो रही है महापौर को शहर के भीतर बड़े काम्पलेक्सों से वसूली कर निगम की आय बढ़ाने की चिंता है पर वर्षों से लंबित भूमिगत नाली योजना पूरी कराने में रुचि नहीं है। करोड़ों की लागत से नगर निगम के भवन बनाकर वहां कार्यालय स्थानांतरित करने की चिंता है पर निगम के पुराने भवन का क्या किया जाए इस पर रुचि नहीं है। निगम प्रशासन को अपनी आय बढ़ाने की चिंता है। हाल ही में सफाई कर में वृद्घि, ठेले, छोटे-रोजगार करने वालों से कर लेने की तैयारी हो रही है पर नगर के व्यवस्थित विकास की चिंता नहीं है। कांगे्रस- भाजपा की अंदरूनी राजनीति में निगम फंस गया है और शहर की जनता इसमें सफर कर रही है। महापौर किरणमयी नायक भाजपा सरकार पर आरोप मढ देती है और भाजपा शहर की हालत के लिये महापौर को जिम्मेदार ठहरा देती है और जनता बस बयानबाजी में ही उलझकर रह गई है।
और अब बस
कांगे्रस के एक पूर्व विधायक को शहर अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की चर्चा चली पर एक बात यह उठी कि 8-9 बजे रात के बाद तो उनसे बात करना मुश्किल है ऐसे में यह प्रस्ताव स्वयमेव ही खारिज हो गया।
(2)
भाजपा विधायकों ने अपने क्षेत्र के लिये अपनी पसंद का थानेदार नियुक्त करने का अनुरोध किया है, मंत्री अपने क्षेत्र में पसंदीदा एसपी और सीएसपी, डीएसपी चाहते हैं। इसीलिये तो ननकीराम कंवर गृहमंत्री रहना नहीं चाहते हैं एक टिप्पणी...!
(3)
पूर्व डीजीपी विश्वरंजन ने अपनी छुट्टïी बढ़ा ली है, उन्होंने नया कार्यभार भी नहीं सम्हाला हैं। एक टिप्पणी... वे अनिश्चय की स्थिति में है प्रदेश में रहे या नहीं!