Monday, December 17, 2012

बदलते वक्त में ये कैसा दौर आया है
हमी से दूर हो रहा हमारा साया है
आज हम उनकी जुबां पर लगा रहे हैं बंदिश
जिन बुजुर्गों ने हमे बोलना सिखाया है।
छत्तीसगढ़ में कभी आदिवासी तथा सतनामी समाज कांग्रेस का विश्वसनीय वोट बैंक होता था। विधायक बनते थे और उनकी संख्या के आधार पर ही अविभाजित मप्र में कांग्रेस की सरकार बनती थी, पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सतनामी समाज का एक वर्ग भाजपा के करीब चला गया तो आदिवासी समाज तो भाजपा के साथ ही चला गया। हालात यह रहे कि आदिवासी अंचल बस्तर में भाजपा का परचम लहराता रहा। वर्तमान में बस्तर की 11 विधानसभा सीटों में मात्र एक पर कांग्रेस का कब्जा है। भाजपा की प्रदेश में लगातार दो बार सरकार बनने के पीछे इन्हें समाजों की महत्वपूर्ण रही है पर आजकल सतनामी और आदिवासी समाज सत्तारूढ़ दल भाजपा से नाराज रहा है।
छत्तीसगढ़ में सतनामी और आदिवासियों का एक बड़ा वोट बैंक है और आजकल दोनों समाज भाजपा की प्रदेश सरकार से कुछ नाराज चल रहा है। सत्ताधारी दल के मंत्री भी अपने-अपने समाज के लोगों को सरकार के साथ जोड़ने और नाराजगी दूर करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इससे भाजपा में बेचैनी है तो कांग्रेस खुश नजर आ रही है।
सतनामी तथा आदिवासी समाज राज्य सरकार की आरक्षण नीति से नाखुश है। प्रदेश सरकार ने न जाने किस नौकरशाह की सलाह पर सतनामी समाज के आरक्षण में कटौती करके आदिवासी समाज में वृद्धि करने की घोषणा की। इससे दोनों समाज नाराज है। सतनामी समाज की आरक्षण पर कटौती करने की घोषणा से से नाराजगी वाजिब है। सतनामी समाज का मानना है कि जनसंख्या के आंकड़े आने के पहले ही सरकार ने अधिसूचना जारी करने में न केवल जल्दीबाजी की है। पिछले बार भी गुरू घासीदास जयंती पर सतनामी समाज ने सत्तापक्ष के मुखिया डा. रमन सिंह सहित अन्य भाजपाई नेताओं को आमंत्रित नहीं किया था और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे है। गिरौधपुरी गुरू दर्शन मेले सहित कुतुबमीनार से भी ऊचा जैत खाम का फरवरी माह में लोकार्पण की योजना है डा. रमन सरकार इसके लिये बाबू जगजगीवन सिंह की पुत्री और लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार को आमंत्रित करना चाहती है पर कुछ वरिष्ठ समाज के लोगों ने दिल्ली जाकर मीराकुमार से छत्तीसगढ़ नहीं आने का अनुरोध किया है और उन्हें संभवत: नहीं आने पर राजी भी कर लिया है। गिरौधपुरी मेले को लेकर अभी से भाजपा सरकार की बेचैनी बढ़ गई है। हालांकि भाजपा की सरकार में पुन्नुलाल मोहिले जैसे सतनामी नेता है पर वे भी सतनामी समाज की नाराजगी दूर करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इधर सतनामी की सरकार से नाराजगी का फायदा उठाने में कांग्रेस कोताही नहीं बरत रही है। जिस तरह सतनामी समाज के कार्यक्रमों में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी शिरकत कर रहे है उससे भाजपा में बेचैनी है। इधर हाल ही में सतनामी समाज के प्रमुख नेता, पूर्व सांसद पूर्व विधायक पी.आर. खूंटे की कांग्रेस में वापसी हुई है वह भी कांग्रेस के लिये सुखद है।
भाजपा सरकार ने सतनामियों का आरक्षण कम करके आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाया है उसके बाद भी आदिवासी समाज सरकार से नाराज है। एक तो आरक्षण नीति पर कोई ने स्थगन दे दिया है वही आदिवासियों की रायपुर रैली में लाठी चार्ज, गिरफ्तार कर जेल में डाल देने की सरकार की नीति से भी आदिवासी नाराज है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जिस तरह विकास के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं से विस्थापन हो रहा है, औद्योगिकीकरण के नाम पर आदिवासियों की जमीन का जबरिया अधिग्रहण किया जा रहा है, जल, जंगल और जमीन से विस्थापित किया जा रहा है। गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी और अशिक्षा के नाम पर आदिवासी समाज अपनी संस्कृति से दूर होता जा रहा है।
बस्तर आदि क्षेत्र में वैसे भी नक्सलियों से निपटने सलावा जुडूम चलाया गया उससे भी आदिवासी समाज जल , जंगल जमीन से बेदखल होकर राहत शिविरों में किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहा था पर अब तो सलवा जुडूम ही बंद कर दिया गया है राहत शिविर भी लगभग बंद जैसे है। इन शिविरों में रहने वाले अब अपने गांव वापस नहीं जा सकते इसलिये बहुत लोग प्रदेश से जुड़े दूसरे प्रदेशों में शरण ले चुके हैं। कांग्रेस के बस्तर में पिछले माह किये गये प्रदर्शन, धरना की सफलता से भी भाजपा चिंतित है। वैसे तो बस्तर में प्रदेश सरकार में विक्रम उसेण्डी, लता उसेण्डी मंत्री है पर पिछला विस चुनाव भी काफी कम मतों से दोनों नेताओं ने जीता था। हाल ही में पूर्व मंत्री मनोज मंडावी का कांग्रेस प्रवेश भी भाजपा के लिये उस उस विधानसभा क्षेत्र में परेशानी बढ़ाएगा। अरविन्द नेताम तीसरे मोर्चे के लिये प्रयासरत है। आदिवासियों के मसीहा प्रवीरचंद भंजदेव के परिवार के कुमार भंजदेव का कांग्रेस और भाजपा पर खुला हमला भी भाजपा के लिये चिंता का कारण बना हुआ है। वैसे कम्युनिस्ट पार्टी भी कोण्टा दंतेवाड़ा क्षेत्र में सक्रियता बढ़ रही है। कुल मिलाकर बस्तर में कांग्रेस, तीसरा मोर्चा बनने की कवायद और कम्युनिस्ट पार्टी की सक्रियता से भाजपा चिंतित है। वैसे भी बस्तर छत्तीसगढ़ सरकार की कुंजी है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा को क्रमश: 9 और 10 विधानसभा में जीत मिली थी।
65 लाख की चूक
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हेलीकाप्टर खरीदी में 65 लाख का झटका लगा पर आश्चर्य तो यह है कि सरकार ने किसी भी जिम्मेदार अधिकारी पर कार्यवाही ही नही ंकी। छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष 2007 में भंडार खरीदी नियमों को शिथिल करते हुए वैश्विक निविदा की छूट दी थी। इसी के तहत अगस्टा ए-109 हेलीकाफ्टर खरीदने की निविदा जारी की गई। तब हेलीकाफ्टर की प्रस्तावित कीमत 63.15 लाख डालर थी। जिसमें 2 लाख डालर की प्रीमियम राशि शामिल थी। पता चला है कि निगोशियन के बाद मेसर्स शार्प एशियन इन्वेस्टमेण्ट ने प्रीमियम की राशि में छूट देकर 61,26 लाख में हेलीकाफ्टर देने सहमति बना ली थी। पर 29 मार्च 2007 तक अनुबंध की शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण प्रस्ताव निरस्त हो गया। इसके बाद सरकार ने पुन: वैश्विक निविदा जारी की और इसी कंपनी से 65.70 लाख डालर यानि 65 लाख अधिक रकम अदा करके हेलीकाफ्टर खरीदा। सवाल यह है कि 65 लाख अधिक देकर इसी कंपनी स हेलीकाफ्टर खरीदने के लिये तत्कालीन प्रमुख सचिव, वित्त एवं संचालन विमानन आदि से अतिरिक्त भुगतान बाबत् कोई सवाल-जवाब तक नहीं किया गया। सूत्र कहते हैं कि मामला उच्च स्तरीय होने के कारण दबा दिया गया।
सरकार के करीबी....दूर!
कभी डा. रमन सिंह सरकार के काफी करीबी और नीतिकार समझे जाने वाले अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी की पुलिस मुख्यालय वापसी की जगह पुलिस हाऊसिंग बोर्ड में तैनाती की जमकर चर्चा है। वैसे डीजीपी रामनिवास से उनके रिश्ते किसी से छिपे नहीं है।
कभी छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्य सचिव पी. जाय उम्मेन की चलती थी, बी.के.एस रे जैसे वरिष्ठ आईएएस की उपेक्षा कर उन्हें मुख्य सचिव बनाया गया था, फिर उन्हें निर्धारित कार्यकाल पूरा करने के पहले ही हटाकर सुनील कुमार को मुख्य सचिव बना दिया गया। उन्हें सेवानिवृत्ति के पश्चात भी कहीं समायोजित नहीं किया गया। वहीं आईबी दिल्ली से उनकी शर्तों पर लिये गये विश्वरंजन को डीजीपी बनाया गया। उनको लेकर कई बार गृहमंत्री ननकीराम कंवर तक की उपेक्षा की गई पर एक ही झटके में उन्हें हटाकर अनिल एम नवानी को डीजीपी बनाया गया। बस्तर में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में चुनाव कराने तथा प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद राजधानी में पुलिस महानिरीक्षक बनाकर संतकुमार पासवान को सरकार के करीबी माना जाता था पर धीरे धीरे उन्हें हाशिये में डालने की कार्यवाही शुरू हुई और उनकी वरिष्ठता को दर किनार करते हुए उनसे काफी जूनियर रामनिवास को डीजीपी बनाया गया।
कभी आईजी के रूप में डीएम अवस्थी की भाजपा सरकार में तूती बोलती थी। रायपुर आईजी और इंटेलीजेन्स आईजी का साथ-साथ प्रभार उन्हें मिला था, सरकार के हर निर्णय में अवस्थी की भूमिका होती थी। उन्हें पुलिस मुख्यालय से पहले बाहर किया या, आर्थिक अपराध शाखा की जिम्मेदारी दी गई और हाल ही में पुलिस हाऊसिंग जैसे लूप लाईन के पद पर पदस्थ किया गया, खैर सरकार के करीब होने का लाभ होता है तो हानि भी होती है।
और अब बस
0 संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रोहणीपुरम में वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय से सरकार के कामकाज पर फीड बैक लिया एक खबर...। कभी नितिन गडकरी भी अपने समर्थक एक मंत्री से फीड बैंक लेते थे पर बाद में क्या हुआ किसी से छिपा नहीं हैं।
0 छत्तीसगढ़ सरकार के काफी निकट होने वाले एक सरकारी अधिकारी ने दिल्ली में किसी दुबई की कंपनी में नौकरी के लिये इंटरव्यूह दिया है ऐसी जमकर चर्चा है।
0 छत्तीसगढ़ के 2 पूर्व पुलिस अधिकारी तथा हाल ही में सेवानिवृत्त होने वाले पुलिस अधिकारी के आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा हैं।



मैने चिरागों की हिफाजत वहां भी की
सूरज के डूबने का जहां रिवाज न था

छत्तीसगढ़ की राजनीति तो मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के इर्द गिर्द ही दिखाई देती है। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में राज्य से स्टार प्रचारकों में दोनों नेता शीर्ष पर होंगे यह तय है।
छत्तीसगढ़ में 1980 में जनता सरकार के पतन के बाद जनसंघ ने अपने स्वरूप में परिवर्तन कर उसे भारतीय जनता पर्टी का नाम दे दिया वही समाजवादी पार्टी जनता दल के नाम से अस्तित्व में आई थी। 1980-85 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी और उनकी स्थिति 1967 की ही बनी रही थी। हालांकि नेटवर्क में विस्तार जरूर हुआ था। 1985 में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर के बावजूद भाजपा की ताकत बढ़ी वह 13 विधानसभा क्षेत्रों में विजयी रही थी। पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले चुनाव में भाजपा की ताकत बढ़ी थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के लिये सप्रे स्कूल के मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने पहली बार छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनाने का वादा किया था। राज्य बना, विधायकों की संख्याबल के नाम पर पहली सरकार कांग्रेस की बनी, अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। इधर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव के लिये प्रदेश की बागडोर सम्हालने तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस और डा. रमन सिंह को संगठन ने विधानसभा चुनाव कराने की पहल की उसके लिये केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़ने की शर्त थी। डा. रमन सिंह ने केन्द्रीय मंत्री का पद-मोह छोड़कर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा की जिम्मेदारी सम्हाली और छग की जनता ने नया राज्य बनाने पर भाजपा को छग की बागडौर सौंप दी। डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने, पहली बार छग के भाजपा की सरकार बनी, गरीबो को एक और दो रूपये किलो चावल योजना सहित कई विकास योजनाओं के चलते तथा कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते दूसरा विधानसभा चुनाव परिणाम भी भाजपा की झोली में गया और डा. रमन सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और 7 दिसम्बर का उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपना 9 साल पूरा कर लिया है और वे कहते है कि आगामी विस चुनाव में जीतने के लिये उनके पास योजना है जिसे समय पर सामने लाएंगे। हालांकि डा. रमन सिंह ने 9 साल बतौर मुख्यमंत्री पूरा कर लिया है पर उनके खिलाफ आदिवासी एक्सप्रेस भी चलाई गई उपचुनाव में कांग्रेस की विजय को मुद्दा बनाकर उन्होंने घेरने का प्रयास उनकी ही लोगों द्वारा किया गया। उन्हें लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल सहित वरिष्ठ आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल  से हटाना, फिर शामिल करना पड़ा पर उनका कारवां जारी है। हालांकि उन पर नौकरशाही द्वारा सरकार चलाने का आरोप भी लगता रहा है पर अभी तक तो उन्होंने बेरोकटोक सफर शुरू रखा है। उन्हें सुनील कुमार जैसे इमानदार और अनुभवी मुख्य सचिव भी मिल गया है जिससे नौकरशाह नियंत्रण में है सामने तो प्रदेश में रेल कारीडोर, उद्योग सम्मेलन सहित कई विकास योजनाओं की घोषणा और उनके क्रियान्वयन में भी सफलता मिलती जा रही है। वैसे मंत्रिमंडल के कुछ साथी भी डा. रमन सिंह से नाखुश है पर भाजपा हाई कमान का मानना है कि डा. रमन सिंह का चेहरा ही छग में भाजपा के रूप में पहचाना जाता है और यह चेहरा आगामी लोकसभा-विधानसभा में पहले से बेहत्तर परिणाम हासिल करेगा। वैसे डा. रमन सिंह 9 साल के कम समय में भारत के कई राज्यों में भाजपा की पहचान बन चुके है तभी तो गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश बिहार, हिमाचल में भी चुनाव के समय इन्हें आमंत्रित किया जाता है। वैसे केन्द्र में प्रतिनिधित्व की भी बात समय समय में उठती रहती है। उनकी छवि के चलते ही उन्हें प्रधानमंत्री के योग्य प्रत्याशी के रूप में शामिल करने में कोई गुरेज नहीं है। मप्र के उद्योग मंत्री विजय वर्गीय ने तो डा. रमन सिंह को प्रधानमंत्री बनने योग्य ठहरा भी दिया है।
जोगी का रहना, नहीं रहना!
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पहले मुख्यमंत्री आईएएस, आईपीएस अफसर रहे अजीत जोगी भले ही विवादों में रहते है पर उनकी छत्तीसगढ़ में पकड़ से उनके विरोधियों सहित सत्ताधारी दल भाजपा के नेता भी इंकार नहीं करते हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तथा अविभाजित मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, केन्द्र सरकार में एक मात्र मंत्री तथा छग के एक मात्र लोकसभा सदस्य डा. चरणदास महंत भी वरिष्ठ नेता है। आदिवासी नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम भी है हालांकि वे कांग्रेस छोड़कर तीसरा मोर्चा बनाने प्रयत्नशील है। वरिष्ठ विधायक तथा नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, वरिष्ठ विधायक तथा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल आदि भी है पर इनमें से एक भी भीड़ जुटाऊ और उसे वोटों में तब्दील करने की उतनी क्षमता नही रखता जितनी क्षमता अजीत जोगी में है।
भैसावृत्ति!
अजीत जोगी के एक भैसा प्रसन्ग की चर्चा अपनी सायकिल बिगड़ने पर मित्र की सायकल से घर आ रहे थे। सायकल वे स्वयं चला रहे थे,  गौरेला-पेण्ड्रा में भदोरा-दत्ताप्रेय टेकरी के बीच ढलान पर जब वे आ रहे थे तब भैसो की टोली सामे आ गई। त्वरित निर्णय लेकर वे दो भैसों क बीच से सायकल निकाल रहे थे पर भैसों की सीग मारने की वृत्ति के शिकार होकर घायल हो गये थे। आज के हालात में भी जब वे मंजिल की ओर बढ़ने का प्रयास करते है तो सींग मारने की प्रवृत्ति के लोग सींग मारने से बाज नहीं आते है, वे तो अब भैसावृत्ति से बचने का रास्ता सीख चुके है पर अब उनके बेटे अमित जोगी सींग मारने की वृत्ति का शिकार हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने में सफल अजीत जोगी व्हील चेयर्स में है फिर भी उनके खिलाफ अफवाह का बाजार हमेशा गर्म रहता है। कभी अफवाह फैलती है कि वे बहुजन समाज पार्टी में जा रहे है कभी उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने का मामला उछाला जाता है, हद तो यह है कि किस राज्य के राज्यपाल बन रहे है इसका भी दावा किया जाता है। कभी सोनिया-राहुल से उनके मतभेद बढ़े उन्हें मिलने का समय नहीं मिला ऐसी चर्चा होती है। पर हाल ही में राहुल गांधी द्वारा अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर यही साबित किया कि कांग्रेस में अजीत जोगी का क्या स्थान है। कांग्रेस की सर्वोच्च टीम कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी है अजीत जोगी। इस कमेटी में आजतक विद्याचरण शुक्ल और उनके अग्रज स्व. श्यामाचरण शुक्ल को शामिल नहीं किया गया जबकि कभी शुक्ल बंधु कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं के नाक के बाल माने जाते थे।
कांग्रेस में जोगी विधायक है उनकी पत्नी डा. रेणु जोगी विधायक बनती आ रही है, उनके कई समर्थक विधायक चुनकर आ रहे है। हालत यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, उपनेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम पराजित हुई। विद्याचरण शुक्ल द्वारा टिकट दिलवाये गये एक मात्र प्रत्याशी संतोष अग्रवाल भी पराजित रहे। सवाल यही उठ रहा है कि यदि जीतने योग्य प्रत्याशी को टिकट दिया जाता, भाई भतीजावाद को प्रश्रय नहीं दिया जाता और इन नेताओं का जनाधार मजबूत होता तो ये सभी विजयी होते ऐसे में कांग्रेस की सरकार क्यों नहीं बनती? बस्तर कभी कांग्रेस का गढ़ था वहां महेन्द्र कर्मा, अरविन्द नेताम, मनकूराम सोढ़ी जैसे मजबूत कांग्रेसी नेता पिछले चुनाव में थे फिर भी कांग्रेस को केवल एक विधानसभा का में ही सफलता मिली और उसके लिये भी कवासी लखमा की अपनी छवि ने ज्यादा असर दिखाया था। बहरहाल जोगी रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी और जोगी नही रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी ऐसी चर्चा को जोगी तो कामन है। वैसे केन्द्रीय नेतृत्व को यह तय करना होगा कि जोगी नहीं तो कौन?
दिग्गी की सक्रियता
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मप्र सहित छत्तीसगढ़ में जल्दी ही सक्रिय होने की चर्चा है। सूत्र कहते है कि दिग्गी राजा तो यदि छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया जाय तो कांग्रेस की गुटबाजी कम जरूर हो सकती है। अविभाजित मप्र के 10 साल मुख्यमंत्री रहते हुए उनके छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेसी नेताओं से अच्छे संबंध है। वर्तमान नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल उनके मंत्रिमंडल के सदस्यरह चुके है तो अजीत जोगी और दिग्गी राजा के राजनीतिक गुरू भी अर्जून सिंह रह चुके हैं। केन्द्रीय राज्य मंत्री डा. चरणदास महंत कभी उनके मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके है तो उन्ही की सलाह पर पहली बार डा. चरण को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से भी उनके संबंध बहुत अच्छे नही तो बुरे भी नहीं है।
बहरहाल दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ के ठाकुर रमन सिंह पर भी हमला तेज कर दिया है। भोपाल में हाल ही पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह ने माओवादियों से समझौता किया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान जिन क्षेत्रों में माओवादियो ने मतदान बहिष्कार का ऐलान किया था वहां 70 से 80 प्रतिशत मतदान हुआ जिसमें 90 प्रतिशत मत भाजपा को मिले है। उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह और भाजपा के संस्कार संस्कृति लेनदेन के हैं। खैर बात आरोप की नहीं। इस बयान से यह तो स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस हाईकमान की नजर भी बस्तर में है। वैसे भी बस्तर के चुनाव परिणाम छत्तीसगढ़ की सत्ता की कुंजी है यह तो तय है।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन पुलिस अधीक्षकों के फेरबदल की चर्चा है। वैसे अब जिलों की कमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को नही सौंपने का भी निर्णय हो चुका है।
0 छत्तीसगढ़ मंत्रालय में प्रमुख सचिवों के भी बदलने की चर्चा है। एक प्रमुख सचिव से एक बड़ा विभाग वापस लिया जाना तय माना जा रहा है। लोक आयोग की लताड़ के बाद भी वे नहीं सुधरे हैं।

Tuesday, December 4, 2012

जंग तो सबके लिये एक जैसी होती है,
हारते हैं वही जो हौसला नहीं रखते

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल होना है और अभी से कयास लगाने का दौर शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री डा.  रमन सिंह के साथ उनकी पत्नी श्रीमती वीणा सिंह या पुत्र अभिषेक सिंह भी अगले चुनाव में उतर सकते हैं। सूत्र कहते हैं कि राजनांदगांव, डोगरगांव, कवर्धा, बेमेतरा आदि विधानसभा क्षेत्र पसंदीदा हो सकते हैं। कोई कहता है कि गुप्त सर्वे से अच्छी रिपोर्ट आई है, कुछ कहते है कि मकान आदि खरीदने की योजना बन रही है। हालांकि भाजपा के सूत्र कहते है केवल डा. रमन सिंह ही चुुनाव समर में उतरेंगे, चूंकि उन्हें तीसरी बार सरकार बनाना है इसलिये वे परिवार में से किसी और को भी प्रत्याशी बनाना पसंद नहीं करेंगे। बहरहाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा छग के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी अभी मरवाही से विधायक है पत्नी डा. रेणुका जोगी कोटा से विधायक है और इस बार चुनाव समर में अमित जोगी भी उतरेंगे यह तय है। सूत्र कहते है कि एक ही परिवार के तीन लोगों को विधानसभा प्रत्याशी बनाना मुश्किल होगा पर अजीत जोगी तो अजीत जोगी है। विधायक पत्नी को बिलासपुर लोकसभा से आखिर प्रत्याशी बनवा दिया था, डा. शिव डहरिया को विधायक रहते लोस की टिकट दिलवा दी थी। खैर सोनिया, राहुल गांधी से अजीत जोगी बहुत दूर हो गये है यह अफवाह फैलाने वालों के कलेजे में तब सांप लोट गया था जब राहुल गांधी ने अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर लिया। इधर चर्चा यह भी है कि अजीत जोगी महासमुंद से लोस चुनाव लड़ सकते है, चर्चा यह भी है कि डा. रेणुका जोगी बिलासपुर लोकसभा से चुनाव लड़कर कोटा विधानसभा सीट अमित के लिये खाली कर सकती है वैसे यह चर्चा गर्म है कि अमित जोगी, डा. रमन सिंह सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल के खिलाफ बिलासपुर से चुनाव समर में उतर सकते हैं। वैसे यह तय है कि अमित जोगी किसी सामान्य सीट से ही चुनाव लडेंगे। इधर शहर विधायक बृजमोहन अग्रवाल, देवजी भाई पटेल आदि के भी वर्तमान विस सीट बदलने की चर्चा है। इधर एक पूर्व महापौर तथा चेम्बर आफ कामर्स के 2 पदाधिकारियों की भी विस चुनाव में उतरने की चर्चा गर्म है। राजधानी की महापौर डा. किरणमयी नायक लोकसभा तो नहीं पर शहर की 4 विधानसभा में एक से लडऩे की तैयारी कर रही हैं।
सस्ता कोयला महंगी बिजली
कोल मंत्रालय ने आईएमजी की अनुशंसा पर भटगांव एक्सटेशन 2 कोल ब्लाक का आबंटन रद्द कर दिया है बैंक गारंटी 1.59 करोड़ राजसात कर लिया है इधर छग खनिज निगम इस फैसले के खिलाफ न्यायालय जाने पर विचार कर रहा है। छत्तीसगढ़ में सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ के रूप में चर्चित कोयला निकाला जा रहा है। सूत्र कहते है कि अंग्रेजों के जमाने से ही कोल खनन का कार्य चल रहा है। आजादी के बाद भी खनन बस्तूर जारी रहा, जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर कोयला खनन होता रहा है। आजादी के बाद कई वर्षों तक कोयला के उत्खनन का कोई लेखा जोखा ही नहीं रखा गया। करीब 2030 साल पूर्व ही केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेने की शुरूवात हुई। अविभाजित मप्र तथा छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनने के बाद भी कोयले का अवैध उत्खनन जारी है।
प्रदेश में प्रकाश इंडस्ट्रीज सबसे बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है। रायगढ़ जिले के चोटिया , मदनपुर नार्थ और फतेहपूर ब्लाक के कई हिस्सों मे ंप्रकाश इंडस्ट्रीज कोल खनन में लगी है। यह इंडस्ट्रीज 2003 से उत्खनन कर रही है हालांकि इसे 4037.534 हेक्टेयर में खनन का अधिकार है पर अत्याधिक खनन, निर्धारित क्षेत्र से भी बाहर खनन, सरकार को गलत जानकारी देने आदि का आरोप लगातार लगाया जाता है, नोटिस दिया जाता है पर अभी भी उत्खनन जारी है।
राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल की रायगढ़ स्थित जिंदल इस्पात एक पावर लिमिटेड ने तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1996 से खनन कर रही है। उसे रायगढ़ जिले का गोरेपेलमा ब्लाक आबंटित हुआ था और 2051.626 हेक्टयर के बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है।
जिंदल पावर की सबसे बड़ी चर्चा इस बात को लेकर है कि वह सरकार से कोयला तो सस्ता खरीदा है पर बिजली महंगी बेचता है।
रायगढ़ स्थित जिंदल का कोयला आधारित पावर जेएसपीएल देश का पहला पावर प्रोजेक्ट है जो मर्चेंट पावर के आधार पर संचालित हो रहा है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार के साथ कोई समझौता नहीं है कि वह सरकार को उत्पादित बिजली देगा साथ ही वह बाजार में किसी को भी बिजली बेच सकता है। जेएसपीएल यानि जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड ने 1000 मेगावाट के प्रोजेक्ट को 2008 में शुरू किया था करीब एक साल तक इसने 6 रूपये प्रति यूनिट पर बिजली बेची थी। उसे केवल दो साल में ही इतना लाभ हुआ कि 2010 तक अपना सभी ऋण चुकता कर दिया और उसे इस दौरान 4338 करोड़ का लाभ हुआ। सूत्र कहते है कि जिंदल को कोयला 300-400 रूपये प्रति रू. पड़ा था तो सरकारी कंपनी एनटीपीसी को 1200 रूपये, लेंको अमरकटंक को 1020 रूपये प्रति टन कोयला उपलब्ध कराया गया था।
सस्ता कोयला मिलने पर भी जिंदल पावर ने बाद में 3.85 पैसे प्रति यूनिट की दर पर 2011-12 में बिजली बेची जबकि एनटीपीसी ने 2.20 पैसे लैको ने 6.67 पैसे प्रति यूनिट की दर में बिजली बेची थी। इसीलिये जिंदल को 1765 करोड़ का मुनाफा हुआ तो लैको अमरकंटक को सिर्फ 155 करोड़।
नवीन जिंदल है क्या?
खैर जिंदल ग्रुप के मालिक तथा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल को पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल कांग्रेसी नहीं मानते हैं तो अजीत जोगी उन्हें कांग्रेसी ही मानते हैं। डा. चरणदास महंत सीधे आरोप लगाने से बचने है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल कोई भी टिप्पणी करने से परहेज करते हैं।
वैसे रायगढ़ में जिंदल के संयंत्र की स्थापना में शुक्ल बंधुओं की अहय भूमिका रहीहै। यह संयंत्र तब स्थापित हुआ जब व्हीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और सुंदरलाल पटवा अविभाजित मप्र के मुख्यमंत्री थे।
शुरूवाती दौर में नवीन के पिता ओ.पी. जिंदल और विद्याचरण शुक्ल में गहरी दोस्ती थी पर न जाने क्यों नवीन से विद्याचरण शुक्ल काफी नाराज है और रायगढ़ जाकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
वैसे जिंदल की ही सिस्टर कंसर्न मोनेट भी कोल उत्खनन में पीछे नहीं है। कंपनी का कब्जा रायगढ़ जिले के राजगामार दीपसाईड ब्लाक है। अधिकारिक तौर पर इस कंपनी को 1455 हेक्टेयर जमीन पर उत्खनन करने का अनुबंध है पर वह कितने क्षेत्र में उत्खनन कर रही है इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है।
40 साल की राजनीति
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के प्रमुख नेताओं में एक तथा छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने 1972 में पहली बार परपाली विधानसभा से चुनाव लड़ा था यह बात और है कि वे पहला चुनाव जनसंघ से लड़कर पराजित हो गये थे पर 1977 में जनता पार्टी प्रत्याशी बतौर उन्होंने बिजयश्री प्राप्त की थी और वे उस समय संसंदीय सचिव बने थे। उन्हीं के साथ ही आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी संसदीय सचिव बने थे। खैर 1972 से यदि ननकीराम कंवर की सक्रिय राजनीति में प्रवेश माना जाए तो 2012 में इस साल उन्हें सक्रिय राजनीति के 40 साल पूरे होने चुके है। अविभाजित मप्र में पटवा मंत्रिमंडल में कृषि, वन, जन शक्ति नियोजन मंत्री रहे, छत्तीसगढ़ में पहले कृषि मंत्री भी रहे पर डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में 2004 में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। कारण जो भी हो उनकी फिर 13 माह बाद ही मंत्रिमंडल में वापसी हो सकी थी। वैसे वे गृहमंत्री, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। प्रोटोकाल के हिसाब से गृहमंत्री का ओहदा मुख्यमंत्री के बाद होता है यानि वे मंत्रियों में वरिष्ठ है, प्रोटोकाल तथा अनुभव के मुकाबले। फिर भी उन्हें वह तवज्जों नहीं मिल रही है। आलम यह है कि न तो उन्हें पुलिस मुख्यालय तवज्जों देता है और न ही सहकारिता मुख्यालय। उनके आदेशों पर कार्यवाही करने की बात तो दूर तबादला, पदोन्नति आदि की भी जानकारी उन्हें मीडिया से ही मिलती है। वैसे दूसरी बार मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उनकी आक्रमक क्षमता भी मंद पड़ती जा रही है।
और अब बस
0 नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री पद का योग्य प्रत्याशी बताया है। मप्र के एक मंत्री विजयवर्गीय ने भी तो डा. रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखने वाले नेता बताया है।
0 पुलिस मुख्यालय सहित फील्ड में पदस्थ कुछ महानिरीक्षक, पुलिस कप्तानों के बदलने की चर्चा है। एक टिप्पणी...गृहमंत्री को छोड़कर सभी की राय को अहमियत दी जाएगी।
0 एक पूर्व मंत्री एक बड़ी कंपनी के पीछे पड़ गये है चर्चा है कि कंपनी प्रबंधन ने उक्त कांग्रेसी नेता की जमीन खरीदने से इंकार कर दिया है यही है नाराजगी का कारण।


Saturday, November 24, 2012

सरहदों पर तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या!

देश में मध्यावधि चुनाव होने की अटकल के बीच उसी के साथ कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने की चर्चा आम है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव होना है। सत्ताधारी दल भाजपा सहित प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की सक्रियता शुरू हो गई है। आम जनता को भी अब अपने बढ़ते महत्व का एहसास हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का ध्यान अब आदिवासी क्षेत्रों सहित शहरी मतदाताओं पर अधिक है। युवाओं को भी लुभाने अब राज्य सरकार लोक लुभावन योजनाएं शुरू करने का दावा कर रही है। छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा क्षेत्रों में 29 आदिवासी बाहुल्य है और उसमें से भी 21 सीटों पर भाजपा के विधायक काबिज हैं। आदिवासी अंचल बस्तर की 11 विधानसभा सीटों में 10 भाजपा के पास है। केवल एक सीट पर कांग्रेस के विधायक चुने गये थे। हाल ही में आरक्षण के मामले में राज्य सरकार की घोषणा के बाद सतनामी समाज सहित आदिवासी समाज भी कुछ नाराज है। सलवा जुडूम के बाद बढ़ती नक्सली गतिविधियां नक्सलियों के आतंक के चलते गांव छोडऩे वाले आदिवासी अब सलवा जुडूम कैम्प लगभग बंद होने से बेघर वार है वही आदिवासी क्षेत्रों की जमीन उद्योगपतियों को जबरिया देने से भी समाज नाखुश है। बस्तर में सभी जिलों में कांग्रेस प्रदर्शन, गिरफ्तारी की स्थिति के चलते सरकार कुछ चितिंत है। सरकार आदिवासियों को चावल योजना के बाद चना वितरण, कूप कटाई का लाभांस 15 से 20 प्रतिशत करने की घोषणा की वही बांस कटाई का पूरा लाभांष आदिवासियों को देने की घोषणा कर चुकी है। वही किसानों को नया पृथक कृषि बजट, एक प्रतिशत ब्याज पर किसानों को ऋण पांच हार्स विद्युत पर छह से सात हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क देकर साधने का प्रयास कर रही है वहां धान के एक-एक दाना खरीदने की बात भी कर रही है।
भाजपा युवाओं को भी जोडऩे का प्रयास कर रही है। उद्योग पतियों को राज्योत्सव में आमंत्रित करके एमओयू करके प्रदेश के हजारों नौकरियों का सपना तो दिखा रही है वही हाल ही में युवाओं को उनके रूझान के चलते टेबलेट देने की घोषणा कर भी रिझाने का प्रयास कर रही है। कम्प्यूटर शिक्षा के बढ़ते के्रज के चलते यह योजना युवाओं को निश्चित ही आकर्षित करेगी।
आज से ही राज्य सरकार ने शहरी मतदाताओं को रिझाने शहरी क्षेत्रों में सुराज अभियान शुरूकर चुकी है। गांव के चलाने वाले सुराज अभियान और शहरी क्षेत्रों में शुरू सुराज अभियान में बड़ा फर्क है। एक तो शहरी मतदाता शिक्षित एवं जागरुक होते है दूसरा शहरी मतदाता सफाई, सड़क, पेयजल और बिजली की समस्या को लेकर परेशान है। वैसे डा. रमन सिंह का यह अभियान कितना सफल होकर शहरी मतदाताओं को रिझाता है इसका पता तो बाद में ही चलेगा पर एक बात जरूर है कि शहरी क्षेत्र के विधायक, मंत्री 4 साल पूरा होने के बाद अपने मतदाताओं से रूबरू होंगे जाहिर है उन्हें मतदाताओं की समस्या और आक्रोश से रूबरू होना पड़ेगा।
कांग्रेस की तैयारी
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मात्र डेढ़ फीसदी अधिक मत लेकर प्राप्त कर सत्ता का सुख हासिल कर लिया था। मात्र डेढ़ फीसदी के अंतर के कारण भाजपा इस चुनाव में कुछ चिंतित है तो कांग्रेस यह गड्डा आसानी से पाटने की कवायद शुरू कर चुकी है। यह ठीक है कि नंद कुमार पटेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में उत्साह तो जागा ही है, उनके नेतृत्व में जिस तरह प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, धरना, आंदोलन तथा रैलियां हुई है उसने कांग्रेस में जान फंूक दी है। कांग्रेस ने लगातार भटगांव कोल ब्लाक के गलत आबंटन का मुद्दा उठाया और केन्द्र सरकार ने वह आबंटन निरस्त करने की सिफारिश कर दी यह कोल खदान भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती को आबंटित की गई थी। कांग्रेस का तो सीधा आरोप था कि यह खान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के दबाव में दी गई थी खैर कांग्रेस ने भाजपा का विरोध तो किया पर जनहित के मुद्दे पर उसे और भी जमकर संघर्ष करना होगा। सरप्लस बिजली वाले प्रदेश में आम उपभोक्ता को महंगी बिजली दी जा रही है, नगरीय निकायो में नलों से दिया जाने वाला पानी महंगा हो गया है, राजधानी में ही सड़कों की हालत खस्ता है, धान खरीदी में अनियमितता, खाद का संकट, कालाबाजारी , मिलावट आदि कुछ आम जनता से जुड़ी बातें है, कांग्रेस ने आंदोलन तो किया पर रस्म अदायगी की,
कांग्रेस के पास पुराने समर्पित कांग्रेसी नेताओं, कार्यकर्ताओं की फौज है पर नंदकुमार पटेल ने उन्हें जोडऩे भी कुछ खास मेहनत नही की। पवन दीवान का छग में अच्छा जनाधार है पर उनसे मिलने का भी समय नहीं निकाल पाये, यह तो एक उदाहरण है ऐसे कई नेता और कार्यकर्ता जिनसे क्षेत्र में कांग्रेस को पहचाना जाता था वे उपेक्षित हैं। हां, कुछ जनाधार विहीन और अखबारी नेता जरूर उनके आसपास सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस अध्यक्ष यदि पुराने उपेक्षित कांग्रेसियों को ही सक्रिय कर लेंगे तो डेढ़ प्रतिशत मतो का गड्डा पाटना कठिन नहीं होगा?
कांग्रेस आलाकमान मध्यावधि चुनाव का संकेत दे चुका है। कांग्रेसी पर्यवेक्षक उसेण्डी प्रदेश का दौरा करके प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र से 3-3 युवाओं की पैनल बनाने टोह ले रहे हैं। सूत्र कहते है कि मप्र, छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों मे ंलोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने की भी चर्चा है। छत्तीसगढ़ मे ंकांग्रेस के विधायक अधिक चुने जाते हैं पर पिछले  दो लोकसभा चुनावों में केवल एक सांसद ही बन रहा है। जबकि विधायकों की संख्या के आधार पर कम से कम 4-5 सांसद बनने चाहिये थे। सूत्र कहते है कि यदि लोस-चुनाव एक साथ होंगे तो कांग्रेस को लाभ हो सकता है।
तीसरे मोर्चे को झटका
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संस्थापक , 4 बार सांसद तथा 2 बार विधायक रह चुके ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन से प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने के अभियान को झटका लगा है। साहू समाज में अपना अहम स्थान रखने वाले ताराचंद साहू के प्रयास से ही अरविंद नेताम, पुरूषोत्तम कौशिक, पूर्व विधायक मनीष कुंजाम, एनसीपी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक नोबल वर्मा, पूर्व मंत्री डीपी धृतलहरे, बसपा के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक दाऊराम रत्नाकर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक हीरा सिंह मरकाम आदि का एक मंच पर एकत्रित होकर कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ एक तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू की थी और उसके सूत्रधार थे स्व ताराचंद साहू। सूत्र कहते है कि तीसरे मोर्चे की तैयारी, प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की थी। बहरहाल ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन के बाद तीसरे मोर्चे के गठन पर कुछ गतिरोध आया है। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने हालांकि पिछले विस चुनाव में खाता तो नहीं खोला था पर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराई थी। वैसे भी कांग्रेस-भाजपा पर राष्ट्रीय स्तर पर जो आरोप लग रहे है ऐसे भी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता से राजनीति सूत्र भी इंकार नहीं कर रहे हैं।
अजीत जोगी और चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा मीडिया में छाये रहते हैं। कभी उनके कांग्रेस छोडऩे की चर्चा उछलती है तो कभी उनके कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के महासचिव तथा पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी से बढ़ती दूरियां की खबर उछलती है कभी उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाने की चर्च गर्म होती है, कभी वे प्रदेश के प्रभारी सचिव बी.के. हरिप्रसाद पर नाराजगी जाहिर करते हुए चर्चा में रहते हैं। चर्चा और खबरों में रहने की कला अजीत जोगी अच्छे से जानते हैं। कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी के प्रदेश में रहते छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती है कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी जैसा जनाधार वाला कांग्रेसी नेता छत्तीसगढ़ मे ंदूसरा नहीं है। कभी अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के प्रदेश दौरे से प्रदेश के कुछ बड़े कांग्रेसी नेताओं के परेशान होने की भी खबर मिलती है। वैसे हाल ही में कांग्रेस आलाकमान द्वारा चुनाव घोषणा पत्र संबंधी उप समिति में अजीत जोगी को शामिल किये जाने की घोषणा के बाद उनके समर्थक उत्साहित है तो विरोधी नेता नाखुश। देश की जनता की नब्ज पहचानकर चुनाव घोषणा पत्र बनाने वाली कमेटी में अजीत जोगी को शामिल करने का मतलब साफ है कि वे कम से कम छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज तो पहचानते ही है। पिछले विस चुनाव में मात्र डेढ़ प्रतिशत कम मत हासिल करने के कारण कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा था। कई प्रमुख नेता पराजित हो गये थे। नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, उप नेता  भूपेश बघेल, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की पुत्री सभी पराजित हो गये थे। क्या सभी प्रमुख लोगों को अजीत जोगी ने टिकट दिलवाई थी खैर चुनाव घोषणा पत्र उप समिति में शामिल करने पर जोगी समर्थक उत्साहित है तो विरोधी यह कह रहे है कि उप समिति में शामिल करके जोगी को प्रदेश की राजनीति से दूर करने की रणनीति हैं। सवाल फिर उठ रहा है कि यदि प्रदेश की राजनीति से अजीत जोगी को मान लो दूर भी किया जाता है तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरण दास महंत, नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे या किसी अन्य के?
सुनील कुमार और दिल्ली
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, अपनी इमानदार छवि और सख्त अफसर के रूप में चर्चित सुनील कुमार को देश के 30 अच्छे सीआर वाले अफसरों की सूची में शामिल करके केन्द्रीय सचिव के रूप में इन्पैनलमेंट किया है। हालांकि स्वास्थ्य अधिकारी इसका खंडन कर रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव सुनील कुमार मार्च 2014 तक मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सम्हालेंगे। वैसे वे चाहे तो 17-18 माह का सेवा काल बचे होने के कारण केन्द्रीय सचिव पद पर जा सकते है क्योंकि केन्द्रीय सचिव पद के लिये कम से कम एक साल का समय अनिवार्य होता है। वैसे केन्द्रीय सचिव के पास प्रदेश की कुछ सरकारों से 8-10 गुना बजट अधिक होता है पर सुनील कुमार को तो बजट से कोई मतलब नही होता है। उनके छत्तीसगढ़ में मुख्य सचिव बनने के बाद कुछ राजनेताओं सहित कुछ आला अफसरों का बजट ही विबगड़ रहा है। वैसे पंजाब के राज्यपाल तथा केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्व. अर्जून सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, कलेक्टर अजीत जोगी, पूर्व मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल आदि के साथ कार्य करने वाले सुनील कुमार डा. रमन सिंह के साथ छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक प्रमुख का कार्यभार सम्हाल रहे हैं। वैसे अपनी नौकरी की शुरूवात बस्तर-अबूझमाड़ से करने वाले सुनील कुमार ने अपने कैरियर का प्रारंभ-विज्ञापन एजेन्सी और मीडिया के कार्य से किया था। जब अपनी आईएएस की नौकरी की शुरूवात उन्होंने बस्तर से की थी तब वहां बिजली भी नहीं थी और लालटैन की रोशनी में रात में काम होता था। अबूझमाड़ को उस दौरान कुछ दिन वहां जाकर उन्होंने बूझने का प्रयास भी किया था।
और अब बस
0 सुराज अभियान में आपत्ति के बाद महापौर किरण मयी नायक की होडिंग्स में फोटो हाटकर निगम का लोगों चस्पा किया जा रहा है...एक टिप्पणी...ऐसे में अगला विधानसभा चुनाव के दावे का क्या होगा? फोटो होने से आम जन कम से कम पहचानना तो शुरू ही कर देते।
0 नगर निगम को मच्छड़ मारने 95 लाख मिले थे और खर्च हुए सिर्फ एक लाख... सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी चौकाने वाली है। लगता है कि निगम के जनप्रतिनिधि और अधिकारी जीव हत्या के खिलाफ है तभी तो मच्छड़ों की आबादी बढ़ती ही जा रही है।
0 अगला पुलिस महानिदेशक कौन होगा राम या संत, वैसे भाजपा को संतों से अधिक राम से प्यार है इसलिये राम की संभावनाएं अधिक दिखाई दे रही हैं।


Wednesday, November 7, 2012

ये मैं ही था बचाके ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का

अमीर धरती गरीब लोग यह जुमला छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले से चल रहा है। छत्तीसगढ़ की इस बहुमूल्य धरा है जहां 44 फीसदी क्षेत्र वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्र फल के हिसाब से हमारे राज्य की गिनती देश के तीसरे राज्य के रूप में होती है। खनिज की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश में दूसरा राज्य है। प्रकृति ने इसे बड़ी फुरसत से गढ़ा है। देश का 16.86 प्रतिशत कोयला, 18.67 प्रतिशत लौह अयस्क, 5.15 प्रतिशत चूना पत्थर, 11. 24 प्रतिशत डोलोमाईट, 4.50 प्रतिशत बाक्साईड, 37.69 प्रतिशत टिन अयस्क, 28.26 प्रतिशत हीरा, 1.06 प्रतिशत कोरंडम, 13 प्रतिशत  ग्रेनाईट लाख  मार्बल मिलियन, 4.63 प्रतिशत है तो प्रायमरी तौर पर 0.23 स्वर्ण अयस्क और 0.55 स्वर्ण धातू हमारी धरती के भीतर होने का अनुमान है।
हीरा और!
छत्तीसगढ़ में हीरा की किम्बर लाईट पाईप होने की पुष्टि हो चुकी है। रायपुर जिले के मैनपुर क्षेत्र में हीरा खनिज की मातृशिला किम्बर लाईट के 6 पाईप बेहराडीह, पायलीखंड, जांगड़ा, कोरोमाली, कोसमबुड़ा एवं बेहराडीह टेम्पल क्षेत्रों में होने की संभावना है तो बेहराडीह और पायलीखंड में किम्बर लाईट पाईप में हीरे होने की पुष्टि भी हो चुकी है। इसके अतिरिक्त रायगढ़ और महासमुंद जिले में किम्बर लाईट पाईप उपस्थित होने की पुष्टि भी कर दी गई है सर्वेक्षण निजी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। वैसे राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने हीरे के पूर्वेक्षण खनन लायसेंस को निरस्त कर दिया था और उसके बाद इस काम में लगी एक निजी कंपनी उच्च न्यायालय बिलासपुर चली गई थी और उच्च न्यायालय को पेशी दर पेशी ही सालों से चल रही है राज्य सरकार के आला अफसर इस मामले को न्यायालय से निपटाने में क्यों रूचि नहीं ले रहे है? जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास ही खनिज मंत्रालय है। जब राज्य बना था तो करमुक्त राज्य की बात जोर शोर से चली थी पर 12 साल बाद आम आदमी पर करों का बोझ है। राज्य सरकार को सभी बंदिशों हटाकर हीरा उत्खनन करना ही होगा तभी प्रदेश के आर्थिक हालात सुधरेंगे।
सपना और सौदागर
छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया रहे पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी ने तो कहा था कि वे सपनों के सौदागर हैं। सपना देखेंगे तभी तो पूरा होने की दिशा में कदम उठाया जाएगा। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी प्रदेशवासियों के सपनों को पूरा करने देश की अत्याधुनिक राजधानी नया रायपुर को महत्व दे रहे है। पुराने रायपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर नई राजधानी आकार ले रही है। नई राजधानी इस क्षेत्र में बने यह निर्णय मंत्रिमंडल की बैठक में केवल 15 मिनट में ही अजीत जोगी ने लिया था और थोड़ा बहुत फेरबदल करके नई राजधानी को अंजाम तक पहुंचाने का जिम्मा डा. रमन सिंह ने लिया है। छग में कोयला लोहा की लूट, प्राकृतिक नदियों, नालों के पानी की बिक्री की खबरें चर्चा में रही है इसी बीच डा. रमन सिंह ने राज्य बनने के 12 सालों बाद पहली बार ग्लोबल इंवेस्टर मीट कराकर निश्चित ही औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित किया है। पहली बार सरकार ने बेरोजगारों को भी अपने लक्ष्य में रखकर रोजगार मूलक उद्योगों की स्थापना पर बल दिया है और इसको अच्छा प्रतिसाद मिला है। निश्चित ही उद्योगों की स्थापना से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा पर इसके लिये सख्त कानून भी बनाने होंगे। छत्तीसगढ़ में कृषि भूमि सिकुडती जा रही है और धान कटोरा के नाम से चर्चित छत्तीसगढ़ अब उद्योग का खौलता कड़ाह बनने की दिशा में अग्रसर हो गया है खेती किसानी कम होने से बेरोजगारी बढ़ी है और गांव से शहरों तथा महानगरों की ओर पलायन शुरू हो गया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की युवा पीढ़ी के लिये डा. रमन सिंह की सोच अच्छी है पर सरकार को कानून बनाना होगा कि छत्तीसगढ़ में स्थापित किसी भी उद्योग में इतने प्रतिशत छत्तीसगढिय़ों को रोजगार देना अनिवार्य होगा और सतत् मानिटरिंग की भी जरूरत है। ग्लोबल इनवेस्टर मीट मे ंकरीब एक लाख 22 हजार 449 करोड़ के औद्योगिक निवेश का एमओयू हुआ है इसका स्वागत किया जाना चाहिये पर उद्योगों की स्थपाना के साथ ही छत्तीसगढ़ में प्रदूषण नियंत्रण पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।
रावघाट परियोजना और कवर्धा
छत्तीसगढ़ के भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये जीवन दायिनी रावघाट परियोजना पर नक्सली खौफ का ग्रहण लग रहा है। सेल के चेयरमेन ने ग्लोबल इंवेस्टर मीट में कवर्धा की लौह अयस्क खान के लिये राज्य सरकार से एमओयू का लिया है। दल्लीराजहरा से 3-4 सालों तक के लिये ही लौह अयस्क बचा है और रावघाट परियोजना इतने समय में अंजाम ले पाएगी ऐसा लग नहीं रहा है
केन्द्रीय इस्पात मंत्रालय एवं सेल (स्टील एथारिटी आफ इंडिया) को रावघाट परियोजना पूरी होकर लौह उत्खनन की उम्मीद थी पर नक्सली खौफ के चलते रेल लाईन सर्वे आदि का काम भी प्रभावित हो रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्रालय, राज्य शासन और रेल मंत्रालय द्वारा हाल ही में पहल कर राजहरा से रावघाट खदान तक रेल्वे ट्रेक बनने का कार्य प्रारंभ किया गया है। इस ट्रेक की लम्बाई 90 किलोमीटर होगी, पहले चरण में दल्ली राजहरा से केयोटी तक 42 किलोमीटर ट्रेक बिछाने का कार्य अक्टूबर में शुरू किया गया पर नक्सली खौफ और धमकी के चलते यह कार्य प्रभावित हो रहा है। यह रेल्वे लाईन चूंकि बालौद, कांकेर, नारायणपुर, कोण्डागांव, जगदलपुर जिलों से गुजरना है और बड़ा क्षेत्र नक्सली प्रभावित है इसलिये रावघाट परियोजना के शीघ्र प्रारंभ होने में संदेह है। इसीलिये सेल के चेयरमेन ने छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम से कवर्धा की एक आयरन ओर खदान के लिये एमओयू करके वैकल्पिक रास्ता खोजने का प्रयास किया है। इससे भिलाई इस्पात संयंत्र की धड़कन तो चलती ही रहेगी।
तब गुस्सा क्यों नहीं आता
छत्तीसगढ़ की प्रथम महापौर डा. किरणमयी नायक को गुस्सा बहुत आता है। अभी तक तो गुस्से में कुछ भी कह देती थी पर अब तो गुस्सा दिखाना भी शुरू कर चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पथ संचलन में पुष्प वर्षा करके चर्चा में रही महापौर ने हाल ही में सिटी बस लोकापर्ण कार्यक्रम में अतिथियों के लिये लाये गये पुष्प गुच्छ, हारों को जमीन में फेंककर एक नया रूप दिखाया है। वैसे कांग्रेसी नेताओं की उपेक्षा, आमंत्रण पत्र में बड़े कांग्रेसी नेताओं के नाम नहीं होने को लेकर महापौर को गुस्सा आया था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के दिन एक नवम्बर को तीन मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल और राजेश मूणत को भारी विरोध के चलते बिना मंच पर चढ़े औपचारिक लोकापर्ण करना पड़ा। बाद में महापौर किरणमयी नायक ने अतिथियों के लिये लाये गये हार पुष्प गुच्छ को जमीन में फेंककर अपना विरोध दर्ज कराया। लोग अब कहने लगे है कि जब राज्य सरकार ने निगम क्षेत्र में पेयजल की दर बढ़ाई थी तब महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया, रायपुर की कई सड़कें इस बार की बारिश से गड्ढों में तब्दील हो गई है तब महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया, सम्पत्ति कर बढ़ाया जा रहा है तब महापौर नाराज क्यों नहीं हुई। कई लोगों को बिना व्यवस्थापन के हटा दिया गया, सुभाष धुप्पड़ के पुराने पेट्रोलपंप (अब व्यवसायिक परिसर निर्माणाधीन) से डंगनिया तक वर्षों पुराने कब्जं को हटाया गया तब महापौर कहां थी? और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुस्तैनी मकान का पाटा तोड़ा गया और निगम ने अपने खर्चे पर पुन: पाटा बना दिया गया तब महापौर को शहर के विकास और चौड़ीकरण के लिये हटाये गये कब्जाधारियों की याद नहीं आई। आमापारा से तात्यापारा चौक तक तो चौड़ीकरण के नाम पर कब्जा हटाया गया पर तात्यापारा से जयस्तंभ तक कब्जा नहीं हटाने पर महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया। शहर की सफाई व्यवस्था, सड़कों की हालत चिंता जनक है पर महापौर को गुस्सा नहीं आता है।
जोगी की चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा सुर्खियों में रहते है। कभी प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के रायपुर प्रवास पर नारेबाजी कराकर चर्चा में रहते है तो कभी बुजुर्ग नेता मोतीलाल वोरा को माना विमानतल में समझाने का प्रयास करते अखबार की सुर्खिया बनते है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी तथा कांग्रेस के महासचिव बीके हरिप्रसाद को बिल्हा के मंच पर समझाने और दुर्ग के मंच पर सोनिया गांधी जिंदाबाद के नारे लगवाकर सोनिया गांधी को बताने की बात मंच से सार्वजनिक रूप से हरिप्रसाद से कहने पर चर्चा में है। सूत्र कहते है कि अजीत जोगी चतुर सुजान नेता है उन्हें कहां क्या करना है यह आता है। दुर्ग के कांग्रेसी मंच पर अजीत जोगी द्वारा पव्वा के बदले बम्फर लेने, 500 से बदले एक हजार का नोट भाजपाईयों से लेकर पर कांग्रेस को वोट देने की अपील की। वैसे यह अपील कई सार्वजनिक मंच से जोगी कर चुके है पर पता नहीं क्यों विद्या भैय्या को यह बुरा लग और उन्होंने इस बयान की ही निंदा कर दी बस फिर क्या था उद्योगपति और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल को शोषक तथा सच्चा कांग्रेसी नहीं मानने तथा रायगढ़ जाकर विरोध करने वाले विद्या भैय्या जोगी के निशाने में आ गये। सूत्र कहते है कि नवीन जिंदल के पास खबर गई और नवीन जिंदल ग्लोबल इंवेस्टर मीटर में पहुंचे और अजीत जोगी के निवास पर जाकर उनके एक घंटे गुफ्तगु की। जाहिर है कि विद्या भैय्या के विषय में भी बातचीत तो हुई ही होगी। वैसे कांग्रेस के दिल्ली में बैठे कई आला नेता मानते हैं कि जोगी की मदद के बिना छग में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती वही कुछ लोग कहते है कि जोगी के छग में रहते कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती? बहरहाल अजीत जोगी को दिल्ली में कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रवक्ता पुन: बनाने की चर्चा चल रही है। जोगी भी अपनी कुछ शर्तों पर छग से बाहर जाने तैयार हो सकते है इससे भाजपा सरकार सहित नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरणदास महंत कुछ फ्री तो हो ही जाएंगे?
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में हमेशा मुख्यमंत्री के अगल-बगल दिखने वाले एक अधिकारी की इस बार सक्रियता नजर नहीं आई...एक टिप्पणी कुछेक और अधिकारियों को अगल-बगल से हटा देंगे तो अगली सरकार बनने की संभावना बढ़ सकती है।
0 नये मंत्रालय भवन में सबसे बड़े कक्ष में प्रमुख सचिव बृजेन्द्र कुमार बैठेंगे मुख्यमंत्री के लिये बने कक्ष पर अब ये बैठेंगे वही इनके नाम पर बने कक्ष में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह


Tuesday, October 30, 2012

रातों को जागते है इसी वास्ते कि ख्वाब
देखेगा आँख बंद तो फिर लौट जाएगा।

लगभग 11.5 विलियन रु (261 मिलियन डालर) की लागत से नई राजधानी के लिये लगभग 11000 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है। इस खर्च में निर्माण लागत को शामिल नहीं किया गया है। करीब 6 लाख की आबादी के लिये फिलहाल शहर बसाया जा रहा है। भूमि उपयोग के आंकड़ों से पहली नगर में यह मध्य दिल्ली का एक अन्य संस्करण जाना पड़ता है। नये शहर की सिर्फ 10 फीसदी हिस्सा वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग के लिये होगा जबकि सार्वजनिक तथा अर्ध सार्वजनिक उपयोग के लिये 26 फीसदी हिस्सा आरक्षित है। 26 फीसदी वाले इस हिस्से में ही स्कूल, अस्पताल और सरकारी दफ्तरों के अलावा अन्य संस्थान होंगे।
छत्तीसगढ़ की नवनिर्मित राजधानी नया रायपुर में सरकारी कार्यालयों के स्थानांतरण का काम अंतिम चरण में है। मंत्रालय एवं सरकारी कार्यालयों के स्थानांतरण के बाद 7 नवम्बर से औपचारिक रूप से काम काज शुरू हो जाएगा। वैसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 6 नवम्बर को विधिवत उद्घाटन करने वाले है। मौजूदा राजधानी रायपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नई राजधानी में सभी सचिवालय, सरकारी कार्यालय और विभाग एक जगह बनाये गये हैं। इसे करीब 8000 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित किया गया है। हालांकि बुनियादी ढांचा क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाएं अभी भी चल रही है जिसे पूरा होने में अभी समय लगेगा।
छत्तीसगढ़ राज्य का स्थापना दिवस एक नवम्बर को है और उसी दिन राज्योत्सव का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी के हाथों होना है। समापन समारोह में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी उपस्थित रहेंगे। बीच के कार्यक्रमों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता शामिल होंगे।
कांग्रेसी असमंजस में
छत्तीसगढ़ की नई राजधानी में एक से 6 नवम्बर को आयोजित राज्योत्सव को लेकर आम कांग्रेसी असमंजस में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा का कहना है कि राज्योत्सव राज्य का उत्सव है और इसमें सभी को शामिल होना चाहिये पर वे यह भी कहते हैं कि ये मेरा व्यक्तिगत विचार है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल का कहना है कि जिस दिन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आ रहे है उस दिन कांग्रेसियों को शामिल होना चाहिये। इधर कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल भी विद्याचरण शुक्ल की बात से सहमत है कि राज्योत्सव में जिस दिन राष्ट्रपति आ रहे है उस दिन कांग्रेसियों को शामिल होना ही चाहिये पर वे मोतीलाल वोरा की बातों पर भी एक तरह से सहमति दे रहे हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रपति जब राज्योत्सव के समापन पर आ रहे है तब तो कांग्रेसियों को जाना ही चाहिये पर अन्य दिनों में राज्योत्सव में शामिल होने पर किसी कांग्रेसी के लिये बंदिश नहीं है। दरअसल पिछले 2011 के राज्योत्सव में कांग्रेसियों ने बहिष्कार का एलान किया था। उसके बाद भी कवि सम्मेलन में राजिम के विधायक तथा पूर्व मंत्री अमितेष सुक्ला ने वहां शिरकत की थी पर उनके खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही नहीं हो सकी थी। लगता है कि पिछले राज्योत्सव के बहिष्कार के ऐलान के बाद नंदकुमार पटेल ने बीच का रास्ता इस बार निकालने का फैसला लिया है। वैसे अभी तक अजीत जोगी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया राज्योत्सव को लेकर नहीं आई है। वैसे जब डा. रमन सिंह के 60 वें जन्मदिन पर कांग्रेसियों ने बधाई नहीं देने का निर्णय लिया था तो अजीत जोगी ने डा. रमन सिंह के निवास पर जाकर बधाई दी थी। वैसे कांग्रेस का आम कार्यकर्ता बड़े नेताओं के बयान के बाद असमंजस में है।
और एएसआई निलंबित हो गया...
छत्तीसगढ़ पुलिस कार्य प्रणाली को लेकर अक्सर चर्चा होती है। पुलिस की अंदरूनी राजनीति और कार्य प्रणाली कैसी हो गई है इसकी भी पुलिस मुख्यालय में जमकर चर्चा है। यह खबर सच तो नहीं है पर पुलिस कार्यप्रणाली को आईना दिखने पर्याप्त है। एक किस्सा पुलिस मुख्यालय में जमकर चल रहा है। किस्सा कुछ यूं है। एक सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) ने एक बड़े बदमाश को गोली मारकर मुठभेड़ में मार गिराया। उसने इसकी सूचना थाना निरीक्षक को फोन पर दी। थाना निरीक्षक ने आदेश दिया कि रोजनामचे में उनके नाम का भी जिक्र किया जाए। निरीक्षक ने डीएसपी को बदमाश को खुद मारने की जानकारी दी तो डीएसपी ने रोजनामचे में उसके नाम को भी शामिल करने का आदेश दिया डीएसपी ने एएसपी (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक) और पुलिस अधीक्षक को बदमाश के मुठभेड़ में मारने की खबर दी और सभी के क्रमश: आदेश के बाद रोजनामचा में एएसआई से लेकर पुलिस कप्तान तक का नाम मुठभेड़ की उल्लेखनीय सफलता के रूप में शामिल हो गया। इसी के बाद जब मारे गये बदमाश का पोस्ट मार्टम कराया गया तो रिपोर्ट आई कि बदमाश पहले ही दिल के दौरे से मर गया था। मरने के बाद उसके मृत शरीर पर गोली दागी गई। बस फिर क्या था एसपी, एएसपी,डीएसपी तथा टीआई (थाना निरीक्षक) ने क्रमश: दबाव बनाकर अपना नाम रोजनामचा से हटाने का सिलसिल शुरू किया और आखिर में मुठभेड़ के नाम पर मृत बदमाश के शरीर में गोली मारने का आरोप एएसआई पर लगा और उसे निलंबित कर दिया गया। इसका मतलब यही है कि अच्छे में सभी अफसर साथ है, श्रेय लेने में सभी साथ है पर मुसबित में उसे खुद झेलनी पड़ती है।
और अब बस
0 विद्याचरण शुक्ल, नवीन जिंदल कांग्रेसी नहीं है शोषक है। मोतीलाल वोरा, नवीन जिंदल एवं उनके परिवार को अच्छे से जानता हूं, उनके माता-पिता भी कांग्रेसी थे।
0 सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी तो सभी जानते है पर बस्तर की पहाड़ी मैना सोने का अंडा देने वाली पक्षी बन गई है। मोनोगेमस होने की बात जानकर भी उस की कैप्टिव ब्रीडिंग पर लाखों खर्च किया जा चुका है।

Tuesday, October 23, 2012

तू मुसीबत में अकेला है तो हैरत कैसी
हर कोई डूबती कश्ती से उतर जाता है
जिंदगी जंग है और जंग लडऩे के लिये
जिनको जीना नहीं आता है मर जाता है

छत्तीसगढ़ में कभी कमिश्नर रहे शेखर दत्त आज राज्यपाल है, कभी रायपुर में ही बतौर कलेक्टर पदस्थ रहे अजीत जोगी को पृथक छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला, रायपुर में ही कभी कलेक्टर रहे सुनील कुमार वर्तमान में प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया या मुख्य सचिव है। कभी एडीशनल कलेक्टर तथा निगम प्रशासन रहे शिवराज सिंह मुख्य सचिव होकर सेवा निवृत्ति के पश्चात आजकल मुख्यमंत्री के सलाहकार बने हुए है। कभी यहां पुलिस कप्तान और पुलिस महानिरीक्षक रहे संतकुमार पासवान और पुलिस महानिरीक्षक रहे रामनिवास अब डीजीपी बनने की राह में है। आयुर्वेदिक कालेज छात्रावास में रहकर पढ़ाने करने वाले डा. रमन सिंह लगातार दो कार्यकाल से मुख्यमंत्री है तथा भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में रिकार्ड बना रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजधानी रायपुुर में अविभाजित मप्र के समय वरिष्ठ आईएएस अफसरों को कलेक्टर बनाया जाता था। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी रायपुर में 14 नवम्बर 78 से 26 जून 81 तक कलेक्टर रह चुके है और इसके बाद उन्हें इंदौर का कलेक्टर बनाया गया था। बाद में वे राजनीति में उतर गये, राज्यसभा , लोकसभा होकर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने, छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुमार भी अविभाजित मप्र के समय रायपुर के कलेक्टर रहे। उन्होंने 6 फरवरी 87 से 20 मार्च 88 तक रायपुर की कलेक्टरी की थी। आज वे राज्य के सबसे बड़े नौकरशाह के पद पर पदस्थ है। मुख्य सचिव का पद भार सम्हाल रहे है।
छत्तीसगढ़ में आजकल राजनांदगांव-कवर्धा को विशेष रियायत दी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों से या यों कहें कि जब से छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी है तो कवर्धा , राजनांदगांव क्षेत्र को अपनी राजनीतिक कर्म भूमि बनाने वाले डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने हैं तभी से रायपुर के कलेक्टर बनने का रास्ता व्हाया कवर्धा, राजनांदगांव होकर पूरा होता है। राजनांदगांव के कलेक्टर रहे गणेश शंकर मिश्रा 19 दिसंबर 03 से 14 जून 06 तक राजनांदगांव में कलेक्टर रहे फिर बस्तर कलेक्टर, कमिश्नर होकर आजकल वाणिज्यकर आयुक्त के महत्वपूर्ण पद पर काबिज है। कवर्धा में आई ए एस संजय गर्ग 5 जुलाई 07 से 23 मई 09 तक कलेक्टर रहे और 30 जून 09 से 9 नवम्बर तक राजधानी के कलेक्टर बनाये गये थे। इसके पहले कवर्धा कलेक्टर सोनमणी बोरा 14 जून 06 से 23 अप्रेल 08 पदस्थ रहे और उसे के बाद उन्हें सीधा रायपुर का कलेक्टर बनाया गया था। सोनमणी बोरा 23 अप्रैल 08 से 25 अक्टूबर 10 तक राजधानी के कलेक्टर बिलासपुर रहे, हाल फिलहाल छग गृह निर्माण समिति के आयुक्त सहित जन संपर्क संचालनालय के मुखिया है। राजनांदगांव में ही 6 जनवरी 2009 से 9 फरवरी 10 तक कलेक्टर रहे डा. रोहित यादव बाद में 13 सितंबर से 27 जुलाई 12 तक राजधानी के कलेक्टर बनाये गये थे. हाल फिलहाल कोमल सिद्धार्थ परदेशी भी व्हाया राजनांदगांव ही रायपुर आये है। कोमल परदेशी 23 अप्रैल 08 से 15 फरवरी 10 तक कवर्धा में कलेक्टर रहे उसके बाद उन्हें राजनांदगांव का कलेक्टर बनाया गया। राजनांदगांव में 16 फरवरी 10 से 27 जुलाई 12 तक कलेक्टर रहने वाले कोमल की पदस्थापना कलेक्टर रायपुर के पद पर की गई है। 28 सितंबर 12 को उन्होंने राजधानी रायपुर में कलेक्टरी सम्हाली है।
वैसे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में दो-दो बार कलेक्टर बनने का भी रिकार्ड विकासशील और अमिताभ जैन के नाम है। अमिताभ जैन 18 दिसंबर 2000 से 4 अप्रैल 2003 तक रायपुर में कलेक्टर रहे तो 29 मार्च 04 से 17 मई 2005 तक दूसरी बार कलेक्टर बनने का रिकार्ड बनाया है। वही विकाशील का भी रिकार्ड बना हुआ है। विकाशील 30 अप्रैल 2007 से 23 अप्रैल 2003 तक राजधानी के कलेक्टर रहे फिर 25 अक्टूबर 08 से 22 दिसम्बर 08 तक भी उन्होंने राजधानी में कलेक्टर का कार्यभार सम्हाला है। जाहिर है कि प्रदेश के मुखिया के करीबी होने तथा उनके क्षेत्र की कलेक्टरी करने का लाभ तो मिलता ही है।
अगला डीजीपी कौन!
छत्तीसगढ़ के पुलिस मुखिया अनिल एम नवानी का कार्यकाल 30 नवम्बर को समाप्त होना है। 30 नवम्बर को वे कार्यमुक्त हो जाएंगे और उससे पहले ही अगले पुलिस महानिदेशक का नाम तय हो जाएगा। हालांकि वरिष्ठता क्रम में उनके बैच मेट संतकुमार पासवान का नंबर है और उसके बाद 82 बैच के आईपीएस रामनिवास यादव का नंबर आता है इन्हीं दोनों में किसी एक को नया पुलिस महानिदेशक बनाया जाएगा यह तय माना जा रहा है। कुछ ही माह समय सेवा निवृत्ति होने के लिये बचा होने के कारण तथा सरकार के करीबी होने के कारण रामनिवास का पलड़ा कुछ भारी दिख रहा है। सूत्र तो कहते है कि वर्तमान डीजीपी अनिल नवानी का सुझाव भी रामनिवास की तरफ अधिक है।
खैर अगला डीजीपी किसे बनाया जाएगा यह अभी तय नहीं है पर पिछले आम चुनावों में जब तत्कालीन डीजीपी विश्वरंजन को चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाया गया था तब संतुकमार पासवान कार्यवाह क डीजीपी भी रह चुके हैं। वैसे छग में पूर्व डीजीपी श्री मोहन शुक्ला और अशोक दरबारी को छग लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। आरएलएस यादव को सरकार ने सलाहकार बनाया था। विश्वंरजन तो डा. रमन सिंह के अनुरोध पर केन्द्र से छग लौटे थे पर बाद बाद में सरकार के उनसे संबंध ठीक नहीं रहे और उन्हें महत्वपूर्ण डीजीपी पद से हटाकर डीजी होमगार्ड बना दिया और सेवा निवृत्ति के पश्चात वे रायपुर में ही स्थायी निवास बना चुके हैं पर सरकार ने उन्हें उपकृत नहीं किया है। डीजीपी अनिल नवानी को सरकार सेवानिवृत्ति के पश्चात कोई पद देकर उपकृत करेगी ऐसा लगता तो नहीं है।
खैर पासवान डीजीपी बनते है तो अप्रैल 13 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनके बाद रामनिवास विधानसभा चुनाव कराकर सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनके बाद डीजीपी बनने की लाईन में 4 एडीजी का दावा बनता है। वैसे वरिष्ठता क्रम में 82 बैच के ही गिरधारी नायक प्रबल दावेदार है उसके बाद 84 बैच के मो. वजीर अंसारी, 85 बैच के ए एन उपाध्याय और 86 बैच के डीएम अवस्थी का नंबर वरिष्ठता क्रम में आता है। विधानसभा चुनाव के बाद सरकार किस पार्टी की बनती है और उस समय हालात क्या होते है अगला डीजीपी कौन होगा यह इसी बात पर निर्भर करेगा वैसे अगली सरकार के पास किसी बाहरी अफसर को भी डीजीपी बनाने का विकल्प खुला रहेगा। खैर अभी तो 30 नवम्बर के बाद अनिल नवानी के बाद अगला डीजीपी कौन होगा इसी बात को लेकर पुलिस मुख्यालय में कवायद तेज है। कुछ अफसर वरिष्ठता के आधार पर संतकुमार पासवान के पक्षधर है तो कुछ रामनिवास का पलड़ा भारी होने का कयास लगा रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में वरिष्ठता के स्थान पर सरकार अपनी पसंद-नापसंद पर ही यह निर्णय लेती है। जिस तरह विश्वरंजन को हटाकर अनिल नवानी को डीजीपी बनाया गया था वह भी उस समय अप्रत्याशित कदम था। जबकि उस समय विश्वरंजन हटेंगे यह कल्पना किसी ने नहीं की थी।
राज्योत्सव और डीडी नगर
राजधानी रायपुर में राज्योत्सव साइंस कालेज के बगल में स्थित रविशंकर विश्वविद्यालय स्टेडियम में होता था तो उसका फायदा किसको होता था यह तो सरकार ही जानती है पर कम से कम डीडी नगर के रहवासियों के लिये जरूर त्यौहार होता था। आयुर्वेदिक कालेज से डीडीनगर जाने वाली सड़क की हर साल मरम्मत होती थी। चिनकी सड़क बनती थी क्योंकि व्ही व्ही आई पी इसी सड़क से राज्योत्सव में आते जाते थे। यह नही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सर संघचालक स्व. सुदर्शनजी भी अपनी बहन से मिलने रोहणीपुरम जाने इसी मार्ग से आते थे इसलिये कभी कभार यह सड़क की मरम्मत हो जाया करती थी पर इस बार तो राज्योत्सव नई राजधानी में हो रहा है वही हाल ही में सुदर्शन जी का भी निधन हो गया है। ऐसे में आयुर्वेदिक कालेज से डीडी नगर, रोहणीपुरम जाने वाली यह मुख्य सड़क की मरम्मत नहीं हो रही है और इस क्षेत्र के निवासी तो जरूर यह महसूस भी कर रहे है। हालांकि साइंस कालेज हास्टल के बगल से एक चौड़ी सड़क निर्माणाधीन है जो बाद में पूरी होगी। खैर अभी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ा एक स्कूल क्षेत्र में स्थापित है और संघ के आयोजन भी होते हैं। उम्मीद अभी भी जागी हुई है कि कभी तो इस सड़क का पुनर्रूद्धार होगा ही?
नामकरण पर सलाह
छत्तीसगढ़ मंत्रालय के नये रायपुर में बने भवन में डीके एस मंत्रालय से शासकीय विभागों की शिफ्टिंग का काम तेजी से चल रहा है। 25 अक्टूबर तक शिफ्टिंग पूरी होने की समय सीमा तय की गई है एक नवम्बर से 6 नवम्बर तक नई राजधानी में ही इस साल का राज्योत्सव होगा। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 6 नवम्बर को इसका उद्घाटन भी करने जा रहे है पर अभी तक नई राजधानी और मंत्रालय भवन का नामकरण नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब डी.के. अस्पताल में मंत्रालय का कामकाज शुरू हुआ था तो उसे डीकेएस मंत्रालय भवन का नाम दे दिया गया था। छत्तीसगढ़ में वर्तमान विधानसभा भवन का नामकरण भी 11 सालों में नहीं हो सका अलबत्ता सभागृह का जरूर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम जाना जाता है। माना विमानतल टर्मिनल के नामकरण को लेकर भी विवाद था पर विधानसभा में संकल्प पारित कराकर उसका नाम स्वामी विवेकानंद विमानतल रखा गया है। प्रदेश के सबसे बड़े 700 बिस्तर अस्पताल को 700 बिस्तर अस्पताल मेकाहारा, डा. अम्बेडकर अस्पताल या बड़े अस्पताल के नाम से जाना जाता है।
नई राजधानी और नये मंत्रालय भवन के नामकरण को लेकर कई सुझाव आ रहे है, श्रीराम की माता कौशल्या दाऊ कल्याण सिंह, वीर नारायण सिंह, पं. श्यामा प्रसाद, मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के नाम सामने आये है। बहरहाल अंतिम निर्णय तो डा. रमन सिंह को ही लेना है वैसे संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि नई राजधानी में सड़कों, चौक चौराहों के नाम देश-प्रदेश की विभूतियों के नाम से रखे जाएंगे जहां तक नया रायपुर और मंत्रालय भवन के नामकरण की बात है तो इस पर मिल बैठकर निर्णय लिया जा सकता है।
और अब बस
0 नई राजधानी में 203 हेक्टेयर में एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा मानव निर्मित जंगल सफारी का शिलान्यास हो गया..एक टिप्पणी पहले नई राजधानी में मानव बसाहट पर तो ध्यान देना चाहिये।
0 आरक्षण कम होने से सतनामी समाज नाराज है तो बढऩे के बाद भी आदिवासी समाज नाराज है। आखिर प्रदेश सराकर को आरक्षण बढ़ाने घटाने की किस नौकरशाह ने इसकी सलाह दी थी?
0 भटगांव कोल खदान आबंटन केन्द्र सरकार निरस्त कर सकती है एक टिप्पणी...इससे संचेती को फर्क पड़ेगा डा. रमन सिंह बेअसर रहेंगे।

Tuesday, October 16, 2012

यहां गुनाह हवा में छुपाये जाते हैं,
चराग खुद नहीं बुझते, बुझाये जाते हैं,
अजीब कर्ज है नफरत का, कम नहीं होता
बढ़ता जाता है जितना चुकाया जाता है।

विद्याचरण शुक्ल को अचानक नवीन जिंदल पर इतना गुस्सा क्यों आ गया? कोल ब्लाक आबंटन में चर्चा में आये नवीन जिंदल अचानक ही नायक से खलनायक बन गये। विद्या भैय्या ने तो कांग्रेस के इस राज्यसभा सदस्य को कांग्रेसी मानने से ही इंकार कर दिया। उन्हें शोषक कहा, छत्तीसगढ़ के लोगों का शोषण करने वाला ठहाराया, यही नहीं उन्हें अच्छा उद्योगपति भी नहीं बताया है। विद्या भैय्या राजधानी रायपर में रहकर उन्हें कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी यही नहीं रायगढ़ जाकर भी जिंदल समूह के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली यह बात और है कि उन्हें जिंदल समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें काले झंडे भी दिखाये गये। वैसे एक बार उनके राजनीतिक स्वर्णिम काल में आरंग के पास एक गांव में उन्हें सतनामी बंधुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था उसके बाद यह दूसरा अवसर है जब विद्या भैय्या को अपने ही छत्तीसगढ़ में काले झंडे देखने पड़े हैं। विद्या भैय्या प्रदेश ही नहीं देश के वरिष्ठ सांसद रहे है कई वर्षों तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हराव, वीपी सिंह, चंद्रशेखर आदि के काफी करीबी रहे यही नहीं कई बार विषम परिस्थितियों में कांग्रेस के लिये संकट मोचक बनकर भी अपनी कुशल रणनीति का परिचय दे चुके हैं. कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा, जनतादल, भाजपा होकर कांग्रेस में लौटे विद्या भैय्या का समय अब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें महासमुंद से लोकसभा प्रत्याशी भी नहीं बनाया गया था। यह बात ठीक है कि पहली अजीत जोगी सरकार को पुन: सत्ता में आने से रोकने में विद्या भैय्या ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी पर आजकल उनके सितारे कुछ गर्दिश में चल रहे हैं। हाल ही में जिंदल समूह के खिलाफ उनका नाराजगी का कारण तलाशा गया तो पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में कोयला मंत्रालय से कुछेक अधिकारियों को कोल ब्लाक आबंटन विवाद के चलते हटा दिया है उसमें एक अफसर विद्या भैय्या का करीबी रिश्तेदार है, इसके चलते विद्या भैय्या नाराज है और नवीन जिंदल के बहाने केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अप्रत्यक्ष मोर्चा खोल बैठे है । रायगढ़ में जिंदल के खिलाफ मुहिम चलाने पहुंचे विद्या भैय्या का साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा उसी जिले के विधायक नंदकुमार पटेल ने भी नहीं दिया इसकी भी जमकर चर्चा है।
परिवार बांटने लगी गैस
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता रहता है। कांग्रेस के कई नेताओं के परिजन अभी भी बतौर उत्तराधिकारी राजनीति में है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल की तरह जगजीवनराम की बेटी मीरा कुमार , शीला दीक्षित का पुत्र संदीप दीक्षित, अर्जुन सिंह का पुत्र अजय सिंह, राष्ट्रपति जाकिर अली खान के दामाद के दामाद खुर्शीद आलम, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र तथा कल ही उपचुनाव में बमुश्किल सांसद चुने गये अभिजीत मुखर्जी भी परिवारवाद के उदाहरण है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी पं. रविशंकर शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल , श्यामाचरण शुक्ल, अमितेष शुक्ल, अजीत जोगी और अब अमित जोगी, बिसाहूदास महंत और अब चरणदास महंत, भवानीलाल वर्मा और नोबल वर्मा, मोतीलाल वोरा, अरूम वोरा सहित काफी लोग शामिल है। राजनीति में किसी परिवार की तीसरी पीढ़ी विरासत सम्हाल रही है तो किसी परिवार की दूसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत सम्हालने आतुर है जिसमें अमित जोगी पंकज शर्मा, हरमीत सिंह होरा, राजेश शर्मा आदि के नाम शामिल है। वहीं परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली कांग्रेस पार्टी के हाल ही के एक निर्णय से जनसामान्य का संयुक्त परिवार टूटन की कगार पर है। संयुक्त परिवार अच्छा परिवार यह नारा भी कुछ समाज सेवियों ने दिया है तथा भारत में संयुक्त परिवार को सही ठहराया है। पर कांग्रेस नीत सरकार के मुखिया डा. मनमोहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रवैय्ये के चलते संयुक्त परिवार अब टूटने की कगार पर है।
मजबूरी क्या क्या कर देती है। इसका खुलासा आजकल रसोई गैस कनेक्शनो को लेकर देखने को मिल रहा है। जब से एक घर में एक कनेक् शन और एक कनेक्शन पर एक सब्सिडी वाले 6 सिलेण्डर एक साल में देने का प्रावधान जारी हुआ है तब से घरों में कागजी बटवारों की संख्या बढऩे लगी है। मजे की बात तो यह है कि लोग आपस में मिल जुलकर एक ही घर में रह है लेकिन नोटरी बयान हल्फी देकर घर में बंटवारा साबित करने की फिराक में है। पति-पत्नी में अलगाव के मामले सामने आ रहे है तो कही भाई-भाई कही पिता-पुत्र कागजों में अलग हो रहे है। वैसे गैस कंपनियों के सख्त निर्देश है कि एक से अधिक कनेक्शनों के मामले में भौतिक सत्यापन किया जाए।
जोगी-ननकी भाई नहीं
गृहमंत्री तथा सुरक्षाबल में की भर्ती नहीं हो पाने के कारण संभवत: सुरक्षा बलों से नाराज चल रहे आदिवासी नेता ननकीराम कंवर के बयानों की चर्चा जरूरी हो गई है वे कभी भी कुछ भी कह देते हैं। नक्सलियों के मारे जाने पर शहीद सुरक्षा बलों के जवानों पर उन्होंने कहा था कि लड़ाई में दोनो तरफ के लोग मारे जाते है, कभी कहते है कि जवानों की शहादत उनकी सतर्कता नहीं बरतने के कारण उनकी गलती से हुई है। उन्होंने हाल ही में अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टर और पुलिस कप्तान पर कांग्रेसियों का पक्ष लेकर भाजपाईयों को प्रताडि़त करने का आरोप लगा दिया था। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पर दिये गये बयान को लेकर वे चर्चा में है।
मरवाही के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तारीफ कर दी थी। इस पर कोटा की विधायक श्रीमती डा. रेणुका अजीत जोगी ने बाद में कंवर-जोगी को भाई-भाई बता दिया था। बस किसी ने कंवर को सालह दे दी कि जोगी की तारीफ उन्हें भारी न पड़ जाए और रमन सरकार के निशाने पर होने के कारण पहले की तरह उनकी विदाई न हो जाए। बस गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने कहा कि अजीत जोगी मेरे भाई नही है , न तो उनसे मेरी शक्ल मिलती है और न ही मेरी जाति के है तो ऐसे में वे भाई कैसे हो गये? वैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े ननकीराम को संघ से जुड़े किसी भी जाति के लोग को भाई कहने में परहेज नहीं है पर अजीत जोगी तो संघ से भी नहीं जुड़े है, खैर ननकी का अर्थ होता है छोटा और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल प्रमुख विपक्षी दल तथा अफसर भी कहते है कि ननकीराम को तो दूधभात है। उनके बयानों को कोई भी गंभीरता से नहीं होता है।
महापौर श्मशान घाट में
महापौर डा. किरणमयी नायक हमेशा चर्चा में रहती है कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जुलुस में फूल बरसाकर चर्चा में आती है तो कभी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद  धाड़ीवाल की विज्ञापन में गरिमा के अनुकूल फोटो प्रकाशित नहीं कराने के कारण नोटिस मिलने पर चर्चा में आती है। कभी बीसा नहीं मिलने पर अपनी धार्मिक यात्रा से वापस आने तथा कभी नगर में सिटी बस चलाने के मामले में अखबारों की सुर्खियों बनती है। कभी बारिश में शहर की मुख्य सड़कों में पानी भरने पर मुम्बई-दिल्ली से शहर की तुलना के कारण लोगों की नाराजगी मोल ले लेती है पर हाल ही में 2 महिला पार्षदों को लेकर श्मशान घाट जाने को लेकर चर्चा में है। हाल ही में दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जब महापौर डा. किरणमयी नायक, पार्षद द्वय कविता ग्वालानी, रेखा रामटेके उस घर में पहुंचे तो पता चला की शवयात्रा श्मशान घाट चली गई है बस महापौर सीधे श्मशान घाट पहुंच और भीतर जाकर शव पर पुष्प अर्पित कर वापस लौट गई। लोग कहते है कि वैसे भी महिलाओं को श्मशान घाट किसी शव के साथ जाने की इजाजत समाज नहीं देता है पर समाज से महापौर को क्या लेना देना है। पर पता चला है कि दोनों पार्षदों की जरूर उनके परिजनों ने क्लास ले ली तथा भविष्य में महापौर के साथ किसी भी ऐसी जगह जाने की मनाही का फैसला सुना दिया है। पर महापौर को तो यह सामान्य बात ही लग रही है।
और अब बस
0 छग मानवाधिकार आयोग के कार्यालय के लिये वन विभाग का रेस्ट हाऊस मांगा जा रहा है। एक टिप्पणी... हाई कोर्ट के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश के लिये गरिमामय, अच्छा भवन तो होना ही चाहिये।
0 आईजी मुकेश गुप्ता ने यातायात समस्या को लेकर राजधानी पुलिस की क्लास ले ली है। एक टिप्पणी... बहुत दिन बाद लगा कि ये पहले वाले मुकेश गुप्ता है।
0 डा. रमन सिंह साठ साल के हो गये वीसी जोगी तो पहले ही सठिया चुके है। चरण, बृजमोहन जरूर मन ही मन खुश होंगे।

Wednesday, October 10, 2012

बिजली की होती मारामारी
तब शुरू होती मेरी पारी
राज्य और केन्द्र को लड़ाता हूं
माफियाओं का प्यारा हूं
जी हां! मैं कोयला हूं
कोयला घोटाले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार भी घिरनेवाली है। 9 अक्टूबर को दिल्ली में अंतर मंत्रिमंडल समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को कोल आबंटन मामले की सुनवाई होगी। सूत्र कहते हैं कि इस बैठक में भटगांव के दोनों कोल ब्लाक तथा ओडि़शा के दो ब्लाकों पर फैसला हो सकता है। 9 की बैठक को लेकर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है।
छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को वाणिज्यिक उपयोग के लिये कोल ब्लाक दिये गये थे पर निगम ने संयुक्त उपक्रम बनाकर उपरोक्त कोल ब्लाकों को निजी हाथों को सौंपकर उसमें स्वयं भागीदार बन गया है। यही नही भटगांव के चर्चित दोनों कोल ब्लाको को उद्योगों की जरूरत पूरा करने के लिये दिये थे पर राज्य सरकार ने अजय संचेती और उनके भाइयों की एसएमएस इंफ्रास्ट्रक्चर को सौप दिया। इस कंपनी को तो कोल ब्लाक के विस्तार और उत्खनन का कोई अनुभव ही नहीं है। संचेती बंधुओं को सिविल कांट्रेक्टर और लेण्ड डेव्लपर हैं।
भटगांव कोल ब्लाक एक्सटेंशन और एक्सटेशन क्रमांक 2 को राज्य में उर्जा, इस्पात संयंत्रों के हित में राज्य की जरूरतों का हवाला देकर केन्द्र सरकार से छग खनिज विकास निगम के नाम से लिया था।
महालेखाकार की रिपोर्ट के बाद प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी वही राज्य सरकार पर महालेखाकार ने सरगुजा जिले के आसपास भटगांव के दो कोल ब्लाको को क्रमश: 552 और 129.60 पैसे प्रति मीट्रिक टन पर आबंटन पर सवाल उठाते हुए 1052 करोड़ के घाटे का अनुमान लगाया है। विधानसभा के अंतिम दिन कैग की रिपोर्ट आई और रिपोर्ट पर चर्चा नहीं कर सत्र का समापन हो गया।
इधर इन कोल ब्लाक के आबंटन के पूर्व भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती चर्चा में है। उनके रिश्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी से भी है तभी तो लोगों के विरोध के चलते उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाने पर भी गड़करी कुछ बड़े नेताओं के निशाने पर आये थे।
पहले संचेती बंधुओं ने दुर्ग बाईपास रोड पर काम किया और उन पर 16 करोड़ की देनदारी निकाल कर उनके खाते सील किये गये फिर किसी की मेहरबानी से रकम वसूल नहीं की गई और खाते भी फ्री कर दिये गये।
अभी भटगांव कोल ब्लाक के आबंटन में अनियमितता का आरोप कांग्रेस लगा रही है वहीं कैग ने भी घाटे का अनुमान लगाया है। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यही है कि कोल ब्लाक आबंटन के लिये सलाहकार नागपुर के बनाये गये तो संचेती भी नागपुर के हैं। इस कोल आबंटन में छग खनिज विकास निगम 51 प्रतिशत का पार्टनर है और एसएमएस इंफ्रास्ट्रक्चर 49 प्रतिशत का पार्टनर है उसमें भी नागपुर की सोलर एक्सप्लोसिव लिमिटेड बड़ी पार्टनर है। इसके बाद भी संयुक्त उपक्रम का 24.99 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली अजय संचेती को एमडी बनाया गया है। सूत्र यहां यह भी जुड़ रहे है कि अजय संचेती के पार्टनर सत्यनारायण नुवाल का नाम नवभारत कोल फील्डस को लेकर भी सामने आया है। भाजपा की नेत्री डा. नीनासिंह के पति व्ही.के. सिंह को राज्य सरकार की सिफारिश पर 2009 में 36 करोड़ टन कोयला भंडारवाला ब्लाक आबंटित किया गया था और बाद में इस कंपनी ने 74 प्रतिशत हिस्सेदारी 300 करोड़ में सोलर एक्सप्लोसिव्ह नामक कंपनी को बेच दिया यह कंपनी सत्यनारायण नुवाल की है जो भाटगांव कोल ब्लाक में अजय संचेती की कंपनी के पार्टनर हैं। हालांकि नवभारत कोल फील्डस के मामले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है।
संचेती बंधुओं को बाजार दर से काफी कम में कोल ब्लाक आबंटन, बिना अनुभव के संयुक्त उपक्रम का भागीदार बनाने, निविदा प्रक्रिया में अनियमितता नागपुर की ही एक कंसल्टेंसी फर्म एक्सिनों कैपिटल सर्विस लिमिटेड की नियुक्ति निविदाओं के लिये कोई सुरक्षित निधि तय नहीं करने, सार्वजनिक उपक्रम बनाने पर मात्र 24.99 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले अजय संचेती को एमडी बनाने आदि के मुद्दों पर अंतर मंत्रि मंडल समिति 9 को दिल्ली में छग खनिज निगम से पूछताछ करेगी। फिर ओडिशा के चेदीपाड़ा के दो कोल ब्लाक भी छग खनिज विकास निगम, उत्तर प्रदेश विद्युत निगम और महाराष्ट्र बिजली बोर्ड के संयुक्त उपक्रम को आबंटित हुए हैं। वहां केलवाशरी स्थापित करने के लिये गौतम अडानी की कंपनी से अनुबंध कर लिया गया है। कांग्रेस के महासचिव तथा प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सिफारिश पर गौतम अडानी को ठेका देने का आरोप लगाया है। इन दो कोल ब्लाक आबंटन मामला भी अंतर मंत्रिमंडल समूह की बैठक में उठेगा। वैसे 9 और 10 अक्टूबर को देश के 47 कोलब्लाक आबंटन पर समूह चर्चा करने वाला है। कांग्रेसी सूत्रों को विश्वास है कि छग खनिज विकास निगम से ये चारो कोल ब्लाक छीने जा सकते हैं, यदि ऐसा हुआ तो प्रदेश में राजनीतिक हल चल और भी तेज हो जाएगी यह तय मामा जा रहा है।
गुटबाजी कांग्रेस-भाजपा की
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर चर्चा आम है, वैसे कांग्रेस से अधिक गुटबाजी भाजपा में भी है यह बात और है कि वह सार्वजनिक नहीं हो पाती है। कांग्रेस में अभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और जुनियर जोगी अमित अभी चर्चा में है। हाल ही प्रदेश के एक मात्र कांग्रेसी सांसद और केन्द्र सरकार में मंत्री डा. चरणदास महंत ने बिना किसी पद में रहते हुए अमित जोगी के प्रदेश में जगह-जगह दौरे पर नाराजगी पार्टी मंच में जाहिर की थी उसके बाद युवक कांग्रेस और भारतीय छात्र संगठन ने अमित जोगी के पक्ष में बयानबाजी की। उसी के बाद दिल्ली में कांग्रेस की बैठक आदि की चर्चा होती रही पर सूत्र बताते है कि कांग्रेस के आला नेताओं ने छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को घेरने के लिये मेहनत करने का सुझाव दिया है वहीं गुटबाजी पर नियंत्रण कि जिम्मेदारी कांग्रेस आला कमान पर छोडऩे की बात की है। असल में कांग्रेस में पहले अजीत जोगी निशाना बनते थे और अब उनके साथ अमित जोगी को भी निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा लगातार विस चुनाव हार रहे हैं। पिछले विस चुनाव में विद्याचारण शुक्ल ने रायपुर से संतोष अग्रवाल को टिकट दिलाई थी पर वे भी पराजित हो गये। डा. चरणदास महंत का गृह जिला चांपा है पर वहां भी कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अजीत जोगी ही एक मात्र जनाधार वाले नेता बचते हैं। उनपर हालांकि कुछ कांग्रेसी प्रत्याशियों को पराजित कराने के भी आरोप उछलते रहते हैं सवाल उठता है कि वे प्रत्याशी जितवा सकते हैं, पराजित करा सकते हैं तो कांग्रेस में उन्हें सर्वमान्य नेता मानने कुछ नेता तैयार क्यों नहीं है।
सूत्र कहते है कि पहले अजीत जोगी और डा. चरणदास महंत में नजदीकियां बढ़ी थी पर आजकल जोगी-विद्याचरण शुक्ल के बीच संबंध अच्छे हो रहे हैं बस यही बात कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को बर्दाश्त नहीं हो रही है। कभी जोगी पर नई पार्टी बनाने के समाचार भी उछलते हैं। हालांकि कांग्रेस के ही सूत्र बताते है कि मीडिया में छाये रहने की कला जोगी जी को आती है और उन्हीं के गुट के लोग अफवाह फैलाते रहते हैं।
इधर कांग्रेस के अधिक गुटबाजी भाजपा में है। डा. रमन सिंह से सांसद रमेश बैस, नंदकुमार साय, दिलिप सिंह जूदेव मतभेद कई बार जाहिर हो चुके हैं। डा. रमन सिंह और सबसे वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बीच भी संबंध मधुर है ऐसा कहा नहीं जा सकता है। बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, अमर अग्रवाल के रिश्ते भी ठीक-ठाक नहीं है। मुख्यमंत्री से दुखी रहने वालों में गृहमंत्री ननकीराम कंवर का नाम भी प्रमुख है। वही हाल ही में आदिवासी मुख्यमंत्री की मुहिम चलाने वाले मंत्रिमंडल के सदस्य रामचिवार नेताम भी कुछ दुखी चल रहे हैं। दिसम्बर में प्रदेश में नया अध्यक्ष बनना है। वर्तमान अध्यक्ष को ही पुन: जिम्मेदारी दी जाएगी या किसी अनुसूचित जाति। जनजाति के वर्ग से नया अध्यक्ष बनाया जाएगा यह भी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को अध्यक्ष बनाया जा सकता है ऐसे में मंत्रिमंडल के पुर्नगठन होना भी तय है। वैसे भी मंत्रिमंडल का पुर्नगठन राज्योत्सव के बाद होगा ऐसे संकेत मिले हैं। इधर हाल ही जूदेव ने आदिवासी मुख्यमंत्री सरगुजा जिले  से बनाने की बात करने आदिवासी एक्सप्रेस को गति दे दी है।
नया डीजी कौन
छत्तीसगढ़ प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी नवम्बर माह में राज्योत्सव के बाद सेवा निवृत्त हो रहे है उनका उत्तराधिकारी संत कुमार पासवान होगे या रामनिवास यादव होंगे इसी बात को लेकर अटकलें जारी है। हालांकि रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाने के बाद उनका दावा भी मजबूत बन रहा है। दरअसल नवानी के सेवा निवृत्त होने के बाद उनके बैचमेट संतकुमार पासवान का नंबर आता है पर वे अप्रेल 13 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 4-5 महीने के लिये उन्हें डीजीपी बनाया जाता है या नहीं इसका फैसला मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को लेना है। पासवान के बाद राम निवास यादव का क्रम है उनकी सेवा निवृत्ति जनवरी-फरवरी 14 में होनी है। यदि पासवान को डीजीपी बनाया जाता है तो उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात 9-10 माह के लिये रामनिवास भी डीजीपी बन सकते है और आगामी विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में होना है। बहरहाल वरिष्ठता क्रम की उपेक्षा की बात छग में नई नहीं है। छत्तीसगढिय़ा वासुदेव दुबे सबसे वरिष्ठ होने केबाद भी डीजीपी नहीं बन सके तो बीके एस रे सबसे वरिष्ठ आईएएस होने के बाद, भी मुख्य सचिव नहीं बनाये गये थे।
और अब बस
0 राज्योत्सव के बाद कुछ कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित सचिवों, पुलिस महानिरीक्षकों का तबादला होना तय माना जा रहा है।
0 मोतियाबिंद आपरेशन में अनियमितता से कुछ की आंखों की रोशनी गई, पैसो की लालच में कुछ महिलाओं की बच्चेदानी निकाली गई और अब स्मार्ट कार्ड से बिना इलाज के पैसे निकाले गये एक टिप्पणी...स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का समय अभी ठीक नहीं चल रहा है।
0 गणेशजी विराजित हुए और उन्हें विसर्जित भी कर दिया गया पर एक गणेशजी एक विभाग में काफी समय से तैनात है, कांग्रेसी और भाजपाई दोनों उनकी पदस्थापना से खुश है क्योंकि ये गणेशजी चंदा लेते नहीं चंदा देते हैं।
चाकू काटे बांस को बंशी खोले भेद
उतने ही सुर जानिये, जितने उसमें छेद

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव को देखकर सत्ताधारी दल भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की चुनावी तैयारी शुरू हो गई है वही बहुजन समाज पार्टी, सहित ताराचंद साहू, अरविंद नेताम तथा दाऊराम रत्नाकर भी छग स्वाभिमान मंच के बैनर तल चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे है। वैसे जिस तरह देश और प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की किरकिरी चल रही है उससे किसी एक पार्टी को प्रदेश में स्पष्ट बहुमत मिलेगा ऐसा लगता नही है। वैसे भी हाल फिलहाल यानि कुछ महीनों के भीतर जिस जिस प्रदेशों में चुनाव हुए है वहां गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई सरकार बनने से राजनीतिक समीकरण बनता-बिगड़ता जा रहा है। जयललिता की सरकार बनी, नीतिश कुमार की सरकार बनी , ममता बेनर्जी की सरकार बनी और छग से लगे ओडिसा में तो बीजू जनता दल की सरकार काबिज ही है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जिस तरह समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, इसके पहले बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी थी ये देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस-भाजपा के लिये खतरे की घंटी है। पर कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने, एक दूसरे को नीचा दिखाने लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में अविभाजित मप्र के समय बहुजन समाज पार्टी, कम्प्युनिस्ट पार्टी, गोडवाना गणतंत्र पार्टी का खाता खुल चुका है। यह बात और है कि राज्य बनने के बाद इनके नेता अपनी पकड़ आमजनता में बनाये नहीं रख सके पर अब कांग्रेस -भाजपा से दुखी आम जनता क्षेत्रीय दलों की ओर रूख कर सकती है। कांग्रेस की अजीत जोगी सरकार के खिलाफ भय भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा करके सत्ता में आई भाजपा के शासन काल में भ्रष्टाचार तो सामने आ ही रहा है जहां तय भय मुक्त करने की बात है तो अधिकारी इतने भय मुक्त हो गये है कि उन्हें सरकार की कोई चिंता नहीं है। करोड़ों रूपये की अघोषित सम्पत्तियां छापों में मिलना इस बात का गवाह है। महंगाई भ्रष्टाचार के लिये प्रदेश के भाजपा नेता केन्द्र सरकार पर आरोप मढ़ रहे है तो कांग्रेस के नेता प्रदेश की भाजपा सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं। केन्द्र कांग्रेस नीत सरकार पर डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस महंगा करने से महंगाई बढऩे की बात भाजपा नेता करते है पर कांग्रेस शासित राज्यों की तरह 3 गैस सिलेण्डरों पर राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी देने की बात प्रदेश की भाजपा सरकार क्यों नहीं मान रही है। डीजल पर वैट टैक्स कम करने क्यों तैयार नहीं है। बिजली की दर कम करने की पहल क्यों नहीं हो रहे है, हाल ही में ट्रांसपोर्ट व्यवसायियों ने डीजल की कीमत वृद्धि पर परिवहन किराया बढ़ाने या दूसरे राज्यों की तरह परिवहन कर कम करने की मांग की थी पर जनता की हितैषी होने का दावा करने वाली प्रदेश सरकार ने परिवहन कर कम करने की जगह 10 से 35 प्रतिशत यात्री किराया बढ़ाकर जनता पर आर्थिक बोझ डालना उचित समझा क्यों अगले माह कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढऩे के कारण प्रदेश के बिजलीदर में वृद्धि की तैयारी है?
मुफ्त चांवल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल में गरीबों तथा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालो को प्रतिमाह एक परिवार को 35 किलो चांवल देने की नीति अपनाई थी, उसके बाद चावल एक दो रूपये किलो में देने का प्रावधान किया और इस योजना का लाभ भी भाजपा को हुआ बस उसी तर्ज पर अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने अम्बिकापुर की सभा में घोषणा कर दी कि यदि अगली प्रदेश सरकार कांग्रेस की बनी तो आयकरदाताओं को छोड़कर सभी वर्गों को मुफ्त चांवल दिया जाएगा। सवाल फिर यही उठ रहा है कि क्या राज्य सरकारों का बस एक ही काम है पेट भरना। छत्तीसगढ़ में कभी बासी भात का चलन था। राज्य सरकार के गठन के करीब 12 साल बाद बासी से यात्रा शुरू की थी और चावल वितरण, नमक मुफ्त देने से हम फिर बासी तक पहुंच गये हैं। क्या छत्तीसगढ़ की भावी पीढ़ी का विकास हमारा कत्वर्य नहीं है। राज्य बनने के बाद कितने उद्योग धंधे स्थापित हुए, कितनी कृषि भूमि उद्योगों की भेंट चढ़ गई पर कितने नौजवानों को सरकारी रोजगार मिला या निजी उद्योगों में कितने प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को मिला इसकी चिंता आखिर कौन करेगा सत्ता पक्ष, विपक्ष या कोई नहीं।
अफसरों को जमीन बांटी!
राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा तत्पर से जुड़े वीरेन्द्र पांडे ने आईएएस, आईपीएस और न्यायाधीशों को करोड़ों की 87 एकड़ जमीन नियम विपरीत बांटने का आरोप छग गृह निर्माण मंडल पर लगाया है। उनका आरोप है कि नगर निगम सीमा पर स्थित धरमपुरा में आवासहीनो को आवास उपलब्ध कराने गृह निर्माण मंडल ने जमीन ली थी पर षडय़ंत्रपूर्वक कर करीब 87 एकड़ जमीन को गुपचुप आला अफसरों के लिये चिन्हित कर आबंटित कर दी गई है और एक तरह से आवासहीनो के साथ धोखा किया गया है। उनका सीधा आरोप है कि छग गृह निर्माण मंडल ने 500 आला अफसरों को उपकृत कर भूखंड आबंटित किया गया है यही नहीं बाजार मूल्य से काफी कम दर पर भूखंड आबंटन में करोड़ों की राजस्व क्षति भी हुई है। उनका आरोप यह भी है कि 2 साल तक भूखंड में निर्माण नही करने वालो का आबंटन निरस्त करने का प्रावधान है पर अफसरों के साथ इस नियम का भी उपयोग नहीं किया गया।
सगी बहनो का मामला
पाठ्यपुस्तक निगम में 2 सगी बहनो की उम्र के बीच तीन माह का अंतर होने का मामला लोग आयोग के पास विचाराधीन है। पापुनि में 2 सगी पांडे बहनों को नौकरी दी गई और दोनों की उम्र के बीच का फसला मात्र 3 माह है। यह संभव भी नहीं है। जुड़वा बहनों में भी यह अंतर नहीं रहता है। बहरहाल पापुनि के प्रबंध संचालक रहे सुभाष मिश्रा के कार्यकाल का यह किस्सा है। उन्हें तो हटाकर अपर संचालक (प्रचार) पंचायत विभाग बनाया गया है पहले पंचायत मंत्रालय का कार्य एक एपीआरओ या सूचना सहायक के पास होता था। खैर पांडे बहनों का मामला लोक आयोग में लंबित है। इन दोनों बहनों की सत्य प्रतिलिपि का भी सुभाष मिश्रा ने सत्यापन किया था। बहरहाल चर्चा है कि वहां से हटने के पहले ही इस मामले में लीपापोती भी की गई है। बताया गया है कि दोनों बहनों में एक पिता और दादा के पास रहती थी कम पढ़े लिखे होने के कारण जन्म तिथि लिखाने में गलती हो गई यह जवाब दिया गया है? सवाल उठ रहा है कि यदि पिता-दादा कम पढ़े लिखे थे,गलती से गलत जन्मतिथि लिखा दिया था तो बहनें तो पढ़ी लिखी थी उन्होंने क्यों सुधार नहीं कराया? एक बहन रायगढ़ में पढ़ी तो दूसरी जबलपुर में पढ़ी थी यह भी जांच का विषय हो सकता है इन दोनो शहरों में किनके पास रहकर यह बहन पढ़ाई करती थी? खैर लोक आयोग जल्दी ही फैसला देने वाला है।
10 अक्टूबर का इंतजार
कोयला खानों का समय पर विकास नहीं करने को लेकर अंतर मंत्रालय समूह (आईएमजी) ने निजी कंपनियों के बाद अब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी कसना प्रारंभ कर दिया है। छत्तीसगढ़ मिनरल डव्हलपमेण्ट कारपोपरेशन (सीएमडीसी) को भी नोटिस मिल चुका है और 10 अक्टूबर को पक्ष प्रस्तुत करने कहा गया है। सूत्र कहते है कि सीएमडीसी के पास गारेपेलम के अलावा, शंकरपुर, भटगांव और सोंधिया कोल ब्लाक है। छत्तीसगढ़ के सरकारी उपक्रमों को कोल ब्लाक्स आबंटित किये गये है केन्द्रीय और छग खनिज विकास निगम, राज्य बिजली बोर्ड के साथ ही महाराष्ट्र खनिज विकास निगम, तमिलनाडु बिजली बोर्ड, गुजरात खनिज विकास निगम, मप्र खनिज विकास निगम, राजस्थान विद्युत उत्पादन, कंपनी को भी यहां कोल ब्लाक दिये गये हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि भाजपा के राज्य सभा सदस्य अजय संचेती और उनके भाइयों की भागीदारी वाली एसएमएस इंफास्ट्रक्चर कंपनी को कोयला उत्खनन का अनुभव नहीं होने के बाद भी 2 कोल ब्लाक आबंटित किया गया है इसमें एक कोल ब्लाक काफी कम दर पर दिये जाने को लेकर कांग्रेस भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी उंगली उठ रही है। यही नहीं कोल ब्लाक के विस्तार और उत्खनन कार्यों के लिये अपात्र तथा अनुभवहीन कंपनी को खनिज विकास निगम ने अपना पार्टनर भी बना लिया है। लगता है कि 10 अक्टूबर को इस संबंध में राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद आईएमजी कोई निर्णय ले सकती है और इसी निर्णय पर राज्य का माहौल गर्माने की भी संभावना है।
और अब बस
0 निगम के बड़े अफसर की पत्नी पुलिस अधिकारी है वहीं अब पर्यटन मंडल के प्रबंधक संचालक आईएएस की आईपीएस पत्नी ने मुख्यालय में अपनी आमद दे दी है।
0 जिला कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने कार्यभार सम्हालते ही होटल मालिकों, के बाद अब गैस संचालकों की भी क्लास ले ही है। अब अगली बारी किसकी है इसी का इंतजार है।
0 राज्य प्रशासनिक सेवा के 1991 बैच के अफसर पदोन्नत होकर आईएएस बन गये है वही 87 बैच के राज्य पुलिस सेवा के अफसर अभी तक पदोन्नति से वंचित है। आखिर 4 साल के अंतर की वजह क्या है।

Saturday, September 29, 2012

वो तालों का लटकना
वो रैली की बहार
वो बस में तोड़फोड़
वो मारपीट का समाचार
वो रेल को रोकना
वो आम लोगों पर अत्याचार
मुबारक हो आपको
बंद का त्यौहार!

छत्तीसगढ़ में आजकल बंद-बंद का खेल शुरू हो गया है। महंगाई के लिये प्रदेश में कांग्रेस पार्टी, सत्ताधारी दल भाजपा को जिम्मेदार ठहराती है तो प्रदेश की भाजपा सरकार केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार को जिम्मेदार ठहराकर अपना दामन पाक-साफ बताने का प्रयास करती है। कभी भाजपा केन्द्र सरकार के खिलाफ च्बंदज् का आयोजन करती है तो कभी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस, भाजपा की प्रदेश सरकार के खिलाफ बंद का आयोजन करती है और मासूम जनता दोनों पार्टी के बंद पर चुपचाप तमाशा देखने मजबूर है उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर कौन सच बोल रहा है कौन झूठा!
हाल ही में केन्द्र ने गैस सिलेण्डर की सीमा प्रतिवर्ष 6 कर दी है और अतिरिक्त सिलेण्डर लेने पर सब्सिडी नहीं देने का फैसला लिया है वही डीजल प्रति लीटर 5 रूपये महंगा कर दिया है। इसी बात को लेकर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने केन्द्र सरकार से अपना समर्थन वापस लेकर केन्द्र में शामिल अपने मंत्रियों को इस्तीफा दिलवा दिया है।
इधर केन्द्र सरकार ने कांग्रेस शासित राज्यों में 6 सिलेण्डर के अतिरिक्त 3 सिलेण्डर पर राज्य सरकार को सब्सिडी की राशि वहन करने का निर्देश दिया है वही गैर सब्सिडी युक्त सिलेण्डरों से एक्साईज और कस्टम टैक्स हटाकर 105 रुपये की और भी राहत दी है। इधर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा चांऊर वाले बाबा के नाम से देश में चर्चित डा. रमन सिंह 6 सिलेण्डरों के बाद छत्तीसगढ़ की जनता को राहत देने के मूड में नहीं है। सलवा जुडूम अभियान में अरबों खर्च हो चुका है पर नक्सली समस्या बढ़ती ही जा रही है। एक और दो रुपये चावल बांटने की योजना में भी हर साल करोड़ों खर्च हो रहे हैं। पर आम जनता को साल में 3 सिलेण्डर में सब्सिडी देने के लिये डा. रमन सिंह इललिए तैयार नहीं है क्योंकि उनके रणनीतिकारों की सलाह है कि अभी ऐसा करना उचित नहीं होगा कोल ब्लाक आबंटन की बात हो या नदियों का जल उद्योगपतियों को बेचने का मामला हो या बांध बेचने की बात हो, कृषि भूमि को उद्योगपतियों के लिये अधिग्रहण का मामला हो तो यह सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई देती है पर आम जनता को 3 सिलेण्डरों के लिये सब्सिडी देने के मामले में सरकार राणनीति के चलते राहत देने के मूड में नहीं है क्योंकि मप्र में भी कुछ इसी तरह का बयान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दे चुके हैं। जब गोवा की भाजपा सरकार राहत दे सकती है तो छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार क्यों नहीं? वैसे काफी कम लोगों को पता है कि डीजल-पेट्रोल के वैट से राज्य सरकार को जितनी आय होती है उतनी शराब में भी नहीं होती है।
चरण की सीख, जोगी का जवाब
कभी नायब तहसीलदार रहे केन्द्र में राज्यमंत्री तथा छत्तीसगढ़ के एकमात्र कांग्रेसी सांसद डॉ. चरणदास महंत कभी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके आसपास सक्रिय कुछ अफसरों को जेल जाने की बात करते हैं। वे भटगांव एक्सटेशन 2 कोल ब्लाक, पुष्प स्टील को लौहा, कोल ब्लाक आबंटन, नवभारत फ्यूज को कोल ब्लाक तथा कवर्धा में मां बम्लेश्वरी कंपनी को कोलब्लाक आबंटन पर अनियमितता का आरोप मढ़कर इसे ही भविष्य में नेता जेल जाने का प्रमुख करण बता रहे है। खैर भाजपा की सरकार और मुखिया पर आरोप लगाना तो उनकी राजनीति का हिस्सा हो सकती है परन्तु अपनी ही पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को बुजुर्ग ठहराकर सेकेण्ड लाईन को मौका देने का बात कहकर उन्होंने अपनी ही पार्टी के मठाधीशों से पंगा ही ले लिया है। उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि पहली पंक्ति के बड़े और बुजुर्ग नेता अपने घरों में न बैठे बल्कि छोटे नेताओं में नेतृत्व क्षमता विकसित करें। परंपरा यही है कि अधिकार और क्षमता एक पीढी से दूसरी पीढ़ी में विकसित करें। डा. महंत ने बुजुर्ग नेताओं की श्रेणी में विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी आदि को रखा है। वही सेकेण्ड लाईन के नेताओं में स्वयं सहित नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे को रखा है।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो इन त्रिफला पर पहले ही टिप्पणी कर चवनप्रास स्वयं से लेने की सलाह दी थी अब महंत के ताजे बयान के बाद उन्होंने कहा है कि मैं डोकरा नहीं हूं। उन्होंने कहा कि मोतीलाल वोरा और विद्याचरण शुक्ल उनसे 20 साल बड़े है। जब इन दोनों नेताओं ने राजनीति शुरू की थी मैं बच्चा था। उनका यह भी महंत को सुझाव था कि सेकेण्ड लाईन के बच्चे नेता और बुजुर्ग नेताओं के बीच मुझे एडजेस्ट किया जा सकता है। वैसे डा. चरणदास महंत कभी नायब तहसीलदार रह चुके है और राजनीति में आने के बाद मप्र के गृहमंत्री होकर सांसद तथा केन्द्रीय राज्य मंत्री बन चुके है तो अजीत जोगी कलेक्टर रह चुके है, मुख्यमंत्री रह चुके हैं, राज्यसभा और लोकसभा सदस्य रह चुके हैं एक बात जरुर है कि वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सकें है।
पुलिस मुख्यालय से
छत्तीसगढ़ का पुलिस मुख्यालय हमेशा चर्चा में रहा है। पहले डीजीपी विश्वरंजन बहुत बड़बोले थे और अभी के डीजीपी अनिल नवानी बहुत कम बोलते हैं ये अंतर्मुखी है बस पुलिस मुख्यालय के एक-दो बड़े अफसरों के सामने ही खुलते हैं। खैर नवम्बर माह में अनिल नवानी सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनके स्थान पर संतकुमार पासवान और रामनिवास यादव में से एक डीजीपी बनेंगे यह तय माना जा रहा है। पहला तर्क पुलिस मुख्यालय में यह दिया जा रहा है कि केन्द्र मे ंडीजी के रूप में वरिष्ठता हासिल करने वाले संतकुमार पासवान को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। वैसे पासवान भी अप्रेल 2012 यादि अनिल नवानी की सेवा निवृत्ति के बाद 5 महीने बाद सेवा निवृत्त हो जाएंगे यदि उन्हें डीजीपी बनाया जाता है तो नक्सली क्षेत्र में बहुत कुछ हो सकता है क्योंकि नक्सल क्षेत्र सहित छत्तीसगढ़ के कई जिलों में एसपी से लेकर आईजी तक की जिम्मेदारी वे सम्हाल चुके हैं। उनकी गिनती अनुभवी तथा गंभीर अफसरों में होती है। केवल 5 महीने के लिये डीजीपी बनाने का जहां तक सवाल है तो पहले भी स्व. दास कुछ महीनों के लिये डीजीपी बने थे। इधर रामनिवास यादव के विषय में कहा जा रहा है कि वर्तमान डीजीपी तथा सरकार के करीबी होने का उन्हें लाभ मिल सकता है पर उनकी पासवान के मुकाबले कनिष्ठता उनके लिये बड़ी कमी बताई जा रहे हैं। सूत्र कहते है कि स्पेशल डीजी बनाकर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास है। इधर यह भी तर्क दिया जा रहा है कि चूंकि केन्द्रीय गृहमंत्रालय को दो नामों का पेनल भेजना है और पासवान को छोड़कर कोई डीजी रैंक का अफसर नहीं था इसलिये रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाया गया था। सूत्र यह भी तर्क देते है कि 5 महीने संतुकमार पासवान को डीजीपी बनाकर अनुसूचित जाति वर्ग में ेक संदेश देने का प्रयास हो सकता है। इनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात करीब 9 महीने का समय राम निवास के पास होगा और वे विधानसभा चुनाव कारकर सेवानिवृत्त हो सकते है ऐसे में राज्य सरकार दोनों को संतुष्ट कर सकती है।
एक भी एडीजी नहीं!
छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में अब एक भी एडीजी नहीं रह गया है। एक मात्र एडीजी रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाया गया है। हालांकि राज्य में एडीजी रैंक के 5 अफसर है पर सभी पुलिस मुख्यालय से बाहर हैं। पुलिस मुख्यालय में एडीजी नक्सल आपरेशन और सीएफ, प्रशिक्षण और गुप्चर शाखा का पद स्वीकृत है। वर्तमान में एडीजी के स्वीकृत पद के विरुद्ध आईजी और आईजी पद के निरूद्ध एडीजी कार्यरत हैं। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में एडीजी पद पर गिरधारी नायक जेल में पदस्थ है तो एम डब्लु अंसारी लोक अभियोजन के संचालक ए.एन. उपाध्याय गृह मंत्रालय में ओएसडी, डीएम अवस्थी एसीबी और आर्थिक अपराध शाखा में आरसी श्रीवास्तव पुलिस गृह निर्माण में प्रबंध संचालक है। जल्दी ही संजय पिल्ले, आर.के विज और मुकेश गुप्ता की पदोन्नति एडीजी के पद पर हो जाएगी। इधर बस्तर, रायपुर और दुर्ग में भी नये आईजी की तलाश जारी है। वही कुछ और पुलिस कप्तान भी बदले जाने हैं। वैसे सूत्र कहते है कि नवम्बर के पहले या नवम्बर के बाद दिसम्बर महीने में पुलिस मुख्यालय से लेकर जिलों तक एक बड़ा फेरबदल हो सकता है।
और अब बस
0 कोल ब्लाक आबंटन में सीबीआई द्वारा प्रकरण बनाये जाने के बाद ही एक दामाद की उनके मूल कैडर में वापसी हो गई है। यह संयोग भी हो सकता है।
0 गृहमंत्री ननकीराम कंवर कहते है कि उन्होंने डा. चरणदास महंत को तहसीलदारी सिखाई है एक टिप्पणी... पुराने समय की बात है आजकल तो गृहमंत्री होने के बाद भी वे किसी को थानेदारी भी नहीं सिखा पा रहे हैं।
0 बृजमोहन अग्रवाल और रामविचार नेताम अब छत्तीसगढ़ सरकार के प्रवक्ता होंगे। चलो अब आफ दी रिकार्ड बात तो हो सकेगी।

Tuesday, September 18, 2012

ये जो सियासी घराने है, सब एक निकले
बुझाने वाले-जलाने वाले, सब एक निकले
खाने वाले-खिलाने वाले, सब एक निकले
बचाने वाले-गिराने वाले, सब एक निकले
महंगाई से पहले से परेशान आम जनता पर केन्द्र सरकार ने डीजल के दामों में 5 रूपये प्रति लीटर की वृद्धि कर भारी भरकम बोझ डाल दिया है यही नहीं अब रसोई गैस के मात्र 6 सिलेण्डरों ही एक वर्ष में सब्सिडी पर मिलेगें वहीं सातवां सिलेण्डर अब बाजार दर यानि 750 से 800 रूपये में खरीदना होगा।
4 सदस्यीय परिवार को माह में एक गैस सिलेण्डर लगता है इस हिसाब से साल में 12 गैस सिलेण्डर लगते हैं। अभी राजधानी रायपुर में 405 रूपये प्रति सिलेण्डर सब्सिडी के साथ मिलते है। सरकार को चाहिये  था कि 100 रूपये प्रति सिलेण्डर की दर में वृद्धि करके 12 सिलेण्डर साल में सब्सिडी के तहत देती और 12 से अधिक गैस सिलेण्डर को बाजार भाव यानि 750 से 800 रूपये खरीदने की बाध्यता रखती तो बेहतर होता। सरकार मानती है कि देश की करीब 44 प्रतिशत आबादी 6 सिलेण्डर ही उपयोग करती है पता नहीं यह आंकड़ा कहां से एकत्रित किया गया है। इधर इसी केन्द्र सरकार के योजना आयोग ने कहा था कि जिनकी एक दिन की कमाई 28 रूपये है वह गरीब नहीं है। वह आंकड़ा भी कहां से एकत्रित किया गया था यह भी पता नहीं चला है।
सरकार ने डीजल की कीमत प्रति लीटर 5 रूपये की वृद्धि की है। इसमें से 3.50 पैसे तेल कंपनियों तथा शेष 1.50 पैसे सरकार के खजाने में बतौर शुल्क और कर जमा होगा। जाहिर है कि डीजल के 5 रूपये प्रति लीटर की वृद्धि से परिवहन महंगा होगा तो उपभोक्ता वस्तुएं महंगी होगी और अनुमान लगाया जा रहा हैकि इससे एक फीसदी महंगाई में वृद्धि होगी। डीजल के महंगा होते ही परिवहन भाड़े में 15 प्रतिशत वृद्धि की घोषणा की गई है वही सब्जियों के दाम भी 05 प्रतिशत बढ़ा दिये गये है इसका असर आम आदमी पर जरूर पड़ेगा यह तो तय है।
रमन से अपेक्षा
छत्तीसगढ़ में गरीब और गरीबी सीमा रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को एक-दो रूपये प्रति किलो चावल बांटकर डा. रमन सिंह ने पूरे देश में एक मिसाल कायम किया है। उनका मानना है कि प्रदेश में कोई भी भूखा पेट नहीं सोएगा। उन्होंने चना, नमक आदि वितरण के साथ ही मुफ्त पाठ्य पुस्तकें, स्कूली छात्राओं को सायकल आदि देने की योजनाएं शुरू की है। पर डीजल और रसोई गैस सिलेण्डर के दामों में वृद्धि के बाद वे कोई राहत देने के मूड में नहीं है। वे वैट प्रदेश में कम करने से इंकार कर रहे हैं क्यों?
हाल ही में रसोई गैसे की 6 सिलेण्डर की शर्त पर गोवा सरकार ने राज्य की ओर से सब्सिडी देने की घोषणा की है। तीन लाख वार्षिक आय वाले परिवारों को गोवा सरकार ने रियायती दर पर ही गैस सिलेण्डर उपलब्ध कराएगी और खर्च राज्य खुद वहन करेगी। वही गोवा सरकार ने पहले भी गैस और पेट्रोल में वैट कर कम करके प्रदेश वासियों को राहत दी है। केन्द्र द्वारा डीजल की कीमत में प्रति लीटर 5 रूपये की वृद्धि के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने वैट 20 प्रतिशत की जगह 8 प्रतिशत करके 95 पैसे प्रति लीटर कम करने का प्रयास किया है तो केरल राज्य सरकार ने वैट कम करके एक रूपये 15 पैसे प्रति लीटर की राहत राज्य के निवासियों को दी है।
छत्तीसगढ़ सरकार भी कुछ ऐसा ही कदम उठा सकती है। छत्तीसगढ़ में वैट 25 प्रतिशत है जो अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत है। वैसे बहुत कम लोगों को पता है कि राज्य सरकार को डीजल-पैट्रोल से जितनी आय वैट के रूप में मिलती है उतनी आय तो शराब से भी नहीं होती है। शायद इसी लिये डा. रमन सिंह वैट कम करने के पक्ष में नहीं है। वैसे दिल्ली राज्य में पैट्रोल पर 19 प्रतिशत तथा डीजल पर 13.29 प्रतिशत वैट है।
अमन पर कांग्रेस का हमला
मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के साथ उनके सबसे करीबी संविदा सचिव अमन सिंह भी अब कांग्रेस के निशाने मे ंहैं। हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत नागवंशी ने 2733 पृष्ठों की जानकारी एकत्रित करके 7200 करोड़ के गोलमाल का आरोप लगाकर उसे उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका लगाकर संविदा सचिव उर्जा अमन सिंह को नोटिस दिलवा दिया है। वहीं छग कैग की रिपोर्ट में भी उर्जा विभाग पर 1700 करोड़ का अनियमितता उजागर की थी। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार विद्युत उत्पादकों से बिजली खरीदने से वितरण कंपनी को एक साल में 420 करोड़ का और पारेषण कंपनी को ट्रांस मिशन हानि होने पर 1122 करोड़ का नुकसान हुआ।
दरअसल अमन सिंह भारतीय राजस्व सेवा के 1995 बैच के अधिकारी है और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद सन् 2004 से मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ है। प्रमुख सचिव उर्जा तथा अपनी इमानदारी के लिये चर्चित डीएस मिश्रा को हटाकर उनके स्थान पर अमन सिंह को उर्जा सचिव बनाया गया यह पहला अवसर देश में था जब किसी आई आरएस अफसर को उर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौपी गई है। जबकि छग को पावर हब बनाने कई निवेशकों से एमओयू का दौर जारी था। हद तो तब हो गई जब राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार को अमन सिंह की प्रति नियुक्ति की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया और केन्द्र सरकार ने इंकार कर दिया। उसके बाद 27 जनवरी 10 को भारतीय राजस्व अधिकारी आईआरएस से अमन सिंह ने इस्तीफा दे दिया और राज्य सरकार ने समान पद पर संविदा नियुक्ति कर लिया है। मुख्यमंत्री किसी को भी संविदा नियुक्ति में अपने पास यानि मुख्यमंत्री सचिवालय में रख सकते है पर जो शासकीय सेवा में ही नहीं है उसे उर्जा मंत्रालय में सचिव पद पर नियुक्ति कैसे की जा सकती है। सवाल तो मंत्रालय में अभी तक उठ रहा है कि जिस अफसर अमन सिंह की 20 साल से अधिक सेवा बची थी उसने अखिल भारतीय स्तर की आईआरएस सेवा से इस्तीफा क्यों दे दिया जबकि छत्तीसगढ़ में उनके रिश्ते नातेदार भी नहीं है। सबसे अधिक आश्चर्य तो उस समय मीडिया साथियों के यशगान का भी रहा। उनका त्यागपत्र राज्यहित में बताया गया। बहरहाल कांग्रेस ने अब अमन सिंह को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया है। इनके एक रिश्तेदार तथा छग शासन के पूर्व अधिकारी से हाल ही में कोयला मामले में सीबीआई प्रारंभिक पूछताछ भी कर चुकी है। डा. रमन मंत्रिमंडल के एक सदस्य कहते है कि अमन सिंह तो सुपर सीएम है। उनकी संविदा नियुक्ति पर मंत्रिमंडल में एक बार मुहर लगी है अब संविदा नियुक्ति बढ़ाने का फैसला तो नई सरकार के गठन के बाद ही लिया जाएगा। तब तक देखे कि क्या होता है। अभी तो नियुक्ति करने वाले और कराने वाले ही असमंजस में है।
विद्याचरण को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी....
देश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तथा इंदिरा राजीव गांधी के कभी काफी करीबी रहे विद्याचरण शुक्ल को कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ प्रधानमंत्री की बुरे समय में संकट मोचन रहे विद्या भैय्या का सभी दलों के नेताओं से मधुर रिश्ते भी है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुलायाम सिंह, शरद पवार, शरद यादव आदि से उनके रिश्ते भी मधुर है। इनमें से कुछ तो उनके समकालीन है। सुत्र कहते है कि जब भी सरकार संकट में होती थी तो पहले आर.के. धवन, माखनलाल फोतेदार, विद्याचरण शुक्ल प्रणब मुखर्जी आदि मध्यस्थ की भूमिका अदा करके विपक्ष को मना लेते थे। हाल ही में प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार कोल ब्लाक आबंटन में अनियमितता को लेकर लोकसभा-राज्यसभा ही विपक्षी दल भाजपा ने नहीं चलने दी। भाजपा का यह भी खुला आरोप था कि सरकार की तरफ से कोई ठोस पहल ही नहीं हुई। बहरहाल कांग्रेस के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को विद्याचरण शुक्ल का नाम भी सुझाया है और उनके उपयोग की भी सलाह दी है। हालांकि विद्या भैय्या का कैसे उपयोग होगा यह तो अभी तय नहीं है पर केन्द्र सरकार के सामने मौजूदा परिस्थितियां और विपक्ष के बढ़ते हमले के बीच यदि सक्रिय रूप से विद्याचरण शुक्ल का कांग्रेस हाई कमान उपयोग करें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। वैसे दिल्ली में विद्याचरण शुक्ल को लेकर जमकर चर्चा है।
और अब बस
0 कोयला ब्लाक आबंटन में अनियमितता की सीबीआई (सेन्ट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन) जांच कर रही है। एक भाजपा नेता ने अपने समर्थकों को समझाया चिंता की बात नहीं है मेरा बैक खाता सीबीआई में नहीं एसबीआई (स्टेट बैंक ऑफ इंडिया) में है।
0 कोयला ब्लाक अनियमितता में सीबीआई ने एक समधी से पूछताछ कर ली है अब दूसरे समधी से पूछताछ का इंतजार किया जा रहा है।
0 बंगलादेश में चोरों को रायपुर क्राइम स्काड ने पकड़ा है। एक भाजपाई ने इसके लिये इंदिरा गांधी को दोषी बताया है। उसका कहना है कि इंदिरा जी द्वारा न बंगलादेश बनाया जाता और न ही वहां से लोग रायपुर चोरी करने आते।

Tuesday, September 11, 2012

जुर्म खुद करना, इलजाम किसी पर धरना
यह नया नुस्खा है, बीमार भी कर सकता है
जागते रहिये की आवाज लगाने वाला
लूटने वालों को होशियार भी कर सकता है

छत्तीसगढ़ में अजात शत्रु माने जाने वाले मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह कुछ परेशान दिखाई दे रहे है। छग नियंत्रक और महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट ने कोयला खदानों के आबंटन में अनियमितता का आरोप लगाकर संसद के दोनों सदनों के नहीं चलने के बाद कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई  सड़कों पर आ गई है और ऐसे मौैके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गड़करी के करीबी तथा भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती की एमएमएस इंफास्ट्रक्चर कंपनी को 552 रूपये मिट्रीक टन की दर के मुकाबले मात्र 129.60 पैसे की दर पर भाटागांव कोल ब्लाक आबंटन भाजपा के गले की हड्डी बन गया है। संचेती का प्रदेश में कोई उद्योग नहीं है वही पहले भी टोल प्लाजा के नाम पर वाणिज्य कर विभाग द्वारा संचेती की कंपनी बाद में उसकी वापसी भी चर्चा का कारण बनी हुई है। भिलाई-राजनांदगांव बायपास का निर्माण 150 करोड़ की लागत से कराया है।
कोल आबंटन में अनियमितता का आरोप लगाकर कांग्रेस ने तो डा. रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। डा. रमन सिंह से इस्तीफे की मांग को लेकर कांग्रेस प्रदर्शन कर चुकी है। वैसे कांग्रेस के अलावा डा. रमन सिंह की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे भाजपा के कुछ नेता भी अपनी तीखी टिप्पणी पहले ही कर चुके है। अप्रेल माह में छत्तीसगढ़ में कैग की रिपोर्ट में 1052 करोड़ के नुकसान की बात सामने आने पर देश और प्रदेश के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि गडकरी का करीबी होने के कारण संचेती को कोल ब्लाक दिया गया है तो मैं तो सांसद हूं मुझे भी कोल ब्लाक मिलना चाहिये। उन्होंने आबंटन प्रक्रिया पर सवाल उठाये थे यह बात और है कि अगले ही दिन बैस अपने आरोपों से पलट गये और प्रक्रिया को जायज ठहरा दिया। पर हाल ही में जनदर्शन कार्यक्रम में उन्होंने प्रदेश की कैग की रिपोर्ट पर संयुक्त विधायको की समिति से जांच कराने की भी वकालत कर दी।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी पिछले लोस चुनाव में डा. चरणदास महंत से पराजित तथा हाल ही में राज्यसभा जाने से वंचित करूणा शुक्ला ने भी कैग की रिपोर्ट को काल्पनिक कहे जाने पर आपत्ति की थी। बहरहाल गडकरी से मामला जुड़ा होने के कारण खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के माध्यम से पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया गया। इधर 2002 में एनडीए सरकार के कोयला मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद पर भी उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा नवीन जिंदल के लिये सिफारिश पत्र देने और 2003 में नवीन जिंदल को उड़ीसा में कोल ब्लाक आबंटित होने का मामला भी चर्चा में आया है।
छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह सरकार के खिलाफ एक बार आदिवासी एक्सप्रेस नेताओं ने दिल्ली जाकर मुहिम भी चलाई पर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने सिंह का ही पक्ष लिया और मुहिम दबा दी गई। हाल ही में सरकार में शामिल एक आदिवासी मंत्री ने भी दिल्ली जाकर दबाव बनाया पर उन्हें भी मुह की खानी पड़ी। पर प्रदेश में कोल ब्लाक आबंटन के मुद्दे पर पहला मौका है जब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को डा. रमन सिंह सरकार के बचाव के लिये उतरना पड़ा है।
लता, नंदकुमार या कोई और...
छत्तीसगढ़ में भी कोयला ब्लाक आबंटन को लेकर सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। भाजपा ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को इस्तीफा देने रैली, धरना प्रदर्शन किया है तो कांग्रेस डा. रमन सिंह से इस्तीफे की मांग को लेकर धरना रैली सभा करके मुख्यमंत्री निवास को घेरने का असफल प्रयास कर चुकी है। सीबीआई द्वारा ही में छत्तीसगढ़ में कोल ब्लाक लेने वाले कांग्रेस के सांसद विजय दर्डा और उनके भाई राजेन्द्र दर्डा के मेसर्स जेएलडी यवतमाल एनर्जी लिमिटेड नागपुर में छापा मार चुकी है वही सूत्र कहते है कि कांग्रेस सांसद के बाद नागपुर के ही भाजपा के राज्यसभा सदस्य तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के करीबी विजय संचेती का नंबर है उनकी एमएमएम इंफास्ट्रक्चर को काफी कम दर पर भटगांव कोल ब्लाक आबंटन किया गया है। सूत्र कहते है कि यदि संचेती के खिलाफ कार्यवाही होती है तो डा. रमन सिंह की मुश्किल बढ़ेंगी यह लगभग तय है। वैसे भी पुष्प स्टील्स, बमलेश्वरी माइंस एवं इस्पात आदि पहले ही कांग्रेस के निशाने पर है। केन्द्रीय कोयला मंत्री कपिल सिब्बल भाजपा शासित राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों वसुंधरा राजे सिंधिया (राजस्थान) शिवराज सिंह चौहान (मप्र) नवीन पटनायक (उड़ीसा) डा. रमन सिंह (छत्तीसगढ़) आदि के खिलाफ कोल आबंटन करने सिफारिश करने का आरोप लगा चुके है हालांकि छग से तत्कालीन मुख्य सचिव एके विजय वर्गीय ने पत्र लिखा था।
बहरहाल मान लो कि डा. रमन सिंह को हटाने की नौबत आती है तो विकल्प के तौर पर नये नेताओं का नाम भी चर्चा में है। सूत्र कहते है कि पहला नाम डा. रमन सिंह मंत्रिमंडल की सदस्य लता उसेण्डी का है। आदिवासी होने के साथ वे महिलाओं का भी नेतृत्व करती है, उनके सहारे नाराज आदिवासियों सहित महिला मतदाताओं को भी प्रभावित किया जा सकता है। दूसरा नाम राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय का भी उभरा है पहले नेता प्रतिपक्ष की भाजपा सरकार बनने के बाद उपेक्षा की गई थी पार्टी के वरिष्ठ नेता उनके प्रति भी सहानुभूति रखते है फिर हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव में संगमा द्वारा पराजय के बाद नई पार्टी बनाने की कोशिश पर भी नंदकुमार साय भाजपा के लिये अच्छा माहौल बना सकते हैं। हालांकि चर्चा तो सांसद रमेश बैस, रामविचार नेताम आदि की भी है पर ऐन चुनाव के पहले इन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी ऐसा लगता नहीं है। खैर डा. रमन सिंह जिस तरह मजबूत बनकर उभरे हैं इसलिये उन्हें हटाना तो फिलहाल संभव नहीं है पर लगातार 9 साल मुख्यमंत्री रहना, भाजपा के वरिष्ठ नेता सौदान सिंह के सामने जिला स्तरों पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी उभरना भी हाई कमान के लिये चिंता का विषय बना हुआ है। खैर राजनीति में कब क्या ह जाए यह नहीं कहा जा सकता है।
त्रिफला च्वयनप्रास और आयुर्वेदिक डा. रमन
केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और नेता प्रतिक्ष रविन्द्र चौबे के त्रिफला के खिलाफ कांग्रेस के बाजार में अजीत जोगी ने च्वयनप्रास को विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि त्रिफला तो हाजमे के लिए लिया जाता है पर कमजोरी दूर करने तथा ताकत बढ़ाने च्वयनप्रास का उपयोग होता है और वह हमारे पास है। कांग्रेस के बीच चल रहे इन आयुर्वेदिक दवाओं का विकल्प तो आयुर्वेदिक चिकित्सक डा.रमन सिंह को ढूंढना है हालांकि पिछले 2 विधानसभा तथा लोक सभा चुनाव मेें उन्होंने काट तैयार कर उसका उपयोग किया था अब आगामी चुनाव में उन्हें त्रिफला और च्वयनप्रास का विकल्प तैयार करना होगा।
बहारहाल प्रदेश के एकमात्र कांगे्रसी सांसद तथा मनमोहन मंत्रिमंडल में शामिल डा.चरणदास महंत ने मंत्रीमंडल की शपथ लेकर पहलीबार रायपुर आकर कहा था कि डा.रमन सिंह से सत्ता से हटानेे त्रिफला तैयार किया गया है जिसमें नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे शामिल है यह त्रिफला ही भाजपा सरकार से लड़ाई करेगा और कांग्रेस को सत्ता दिलाएगा वैसे त्रिफला में डा.चरणदास महंद बाद मेें कम ही नजर आए। कुछ दिन दिल्ली में रहकर लौटे अजीत जोगी ने इसी त्रिफला के खिलाफ च्वयनप्रास का विकल्प सुझाया है  यह भी कहा है कि कमजोरी दूर करने तथा ताकत बढ़ाने च्वयनप्रास हमारे पास से ले जाएं। ज्ञात रहे कि हाल ही मेें एक अफवाह उड़ी थी कि अजीत जोगी कांग्रेस छोड़ रहे हैं उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस में है और रहेंगे। दिल्ली में लंबी चर्चा भी हुई उससे कांग्रेस छोडऩे  की अफवाह किसी ने उड़ा दी है। 10 जनपद से उनकी राजनीति शुरू हुई है और वहीं  से खत्म भी होगी।

और अब बस
0 भाजपा सरकार के गृहमंत्री तथा वरिष्ठ आदिवासी नेता ननकीराम कंवर ने कोरबा के कलेक्टर और पुलिस कप्तान पर कांग्रेसियों को अभयदान देकर भाजपाईयों को प्रताडि़त करने का आरोप लगाकर सभी को चौंका दिया है।
0 उच्च न्यायालय ने चार पावर प्लांट का भूमि अधिग्रहण रद्द कर दिया है जिसमें जांजगीर की एसकेएस महानदी भी शामिल हैं। वल्र्ड बैंक के सहयोग से बने बांध को इसी पावर प्लांट को राज्य सरकार द्वारा बेचे जाने की चर्चा लंबे समय तक चली भी है।
0 नए कलेक्टर कोमल सिद्धार्थ परदेशी ने कार्यभार सम्हालते ही अपने तेवर दिखाना शुरू कर  दिया है। जनहित में उनकी रूचि देखकर पूर्व एडीएम कोमल सिंह की याद ताजा हो रही हैं।