Tuesday, May 22, 2012

मैं तो छोटा हूं, झुका दूंगा कभी भी अपना सिर
सब बड़े तय तो कर लें, कौन है सबसे बड़ा!

अखंड कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में हालत अच्छी तरह देखकर समझकर गये है कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी। राजधानी के करीब 10 घंटे के प्रवास के दौरान उन्होंने युवा कांग्रेसियों, राष्ट्रीय छात्र संगठन के नेताओं सहित स्थानीय निकाय के निर्वाचित पदाधिकारियों के कार्यक्रमों में शिरकत की वही कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों से भी चर्चा की और कभी कांग्रेस के गढ रहे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत के लिये कौन जिम्मेदार है इसका तो अहसास उन्हें हो ही गया है।
वैसे लगता है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के पास छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत की जानकारी लगातार पहुंचती रहती है। छत्तीसगढ़ आने के पूर्व ही उन्होंने अच्छा होमवर्क किया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अंतर्कलह, गुटबाजी, बड़े नेताओं के बीच अहम की लड़ाई, शह और मात का खेल उनकी जानकारी में था छग की जनता की कांग्रेस में अपेक्षा और उम्मीदें, कांग्रेस नेता उसके मुकाबले कहां खड़े है यह सब आंकलन करके आये थे राहुल। वैसे तो कांग्रेस के युवराज ने पांच कार्यक्रमों में एक ही दिन में शिरकत की पर वे सभी कार्यक्रमों में कांग्रेस की स्थिति की टोह ही लेते रहे। सभी जगह अपने संबोधन में उन्होंने एक ही बात कही प्रदेश की जनता कांग्रेस के साथ है वह भाजपा के कुशासन से मुक्त होना चाहती है लेकिन प्रदेश के कांग्रेसी एक जुट नही है। अगर सभी कांग्रेस के नेता एकजुट होते तो 2008 का विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता नही मिलती। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनाने वे यहां कभी भी आ सकते है। जरूरत होगी तो माओवादी क्षेत्र बस्तर-सरगुजा भी जाएंगे उन्होंने वैसे एक तरह से कांग्रेसियों को एक जुट होने का संकेत भी दे दिया है। उन्होंने तो राजधानी के हालात देखकर स्पष्ट चेतावनी भी दे दी कि भाषण बाजी से परिवर्तन नहीं होता कार्यकर्ताओं में अनुशासन की कमी है और बड़े नेताओं में भी एकता नही है यदि अभी नही संभले तो बाहर ही बैठना पड़ेगा। उनकी चेतावनी का क्या असर दिखाई देता है इसका पता तो बाद में ही चलेगा वैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के कई गुट है। विद्याचण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी के अलग-अलग गुट है और प्रदेश कांग्रेस संगठन के छोटे बड़े नेता, विधायक इन्ही गुटों के इर्द गिर्द ही दिखाई देते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कांग्रेस के विधायक अपनी जीत के लिये कांग्रेस पार्टी को नहीं स्वयं को जिम्मेदार मानते है तो हार का ठीकरा किसी न किसी बड़े नेता, उनके गुट पर फोड़ते हैं। 2008 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा स्वयं पराजित हो गये जिन्होंने टिकट वितरण में प्रमुख भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता मोतीलाल वोरा के पुत्र तीसरी बार विस चुनाव में पराजित हो गये। नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा केवल अपनी सीट नहीं हारे बल्कि बस्तर में कांग्रेस की लुटिया पुन: डूबा दी। कांग्रेस के युवा नेता तथा कुर्मी समाज के बड़े नेता होने का दम पाल बैठे भूपेश बघेल भी विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव हार गये। छग के एक मात्र सांसद तथा वर्तमान में केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत के घर में कांग्रेसी प्रत्याशी पराजित हो गया। आदिवासी नेता तथा हाल ही में देश में आदिवासी राष्ट्रपति की वकालत करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम अपनी पुत्री को टिकट तो दिलवा सकें पर उसे विजयी बनाने में सफल नहीं रहे। बस्तर में केवल एक सीट कवासी लखमा ने जीतकर कांग्रेस की लाज बचाई, कभी वहां कांग्रेस का ही बोलबाला रहता था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा राकांपा जाकर 2003 में विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी लड़ाकर भाजपा के लिये सस्ता सुख का मार्ग प्रशस्त करने वाले विद्याचरण शुक्ल ने राजधानी से संतोष अग्रवाल को टिकट दिलवाई थी और उनके एकमात्र प्रत्याशी भी पराजित हो गये। हालात यह है कि बड़े नेताओं की पहल पर उनके रिश्तेदारों या उनके समर्थकों को कांग्रेस आलाकमान ने टिकट दी और हालात सामने है। क्या कांग्रेस में टिकट वितरण के लिये कोई नया तरीका इजाद किया जाएगा या फिर वही पुरानी दबाव की रणनीति हो चलेगी वैसे राहुल गांधी के युवाओं के प्रति विश्वास से ऐसा लगता है 2013 के विस चुनाव में युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी बहरहाल राहुल की चेतावनी के बाद भी कांग्रेस के मठाधीशों की नींद टूटती है या नही यह देखना है।
विपक्ष की भूमिका पर सवाल
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन के साथ ही विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस के विधायक दल की कार्यप्रणाली पर भी एक तरह से उंगली उठा दी है। इंडोर स्टेडियम में युवक कांग्रेसियों के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पर खनिज सम्पदा लूटने का आरोप मढा। उन्होंने कहा कि छग की भाजपा सरकार प्रदेश की खनिज सम्पदा लूटने में लगी है। यहां की हवा, पानी और बिजली तो बेच ही रही है साथ ही जमीन के अंदर की संपदा को भी बेचना से गुरेज नहीं किया। राहुल ने कहा कि कुछ लोग छत्तीसगढ़ को गरीब राज्य के रूप में प्रचारित कर रहे है लेकिन छत्तीसगढ़ बेहद संपन्न राज्य है। राहुल के मुताबिक यहां की धरोहरों के समुचित दोहन करने की आवश्यकता है। यह दायित्व राज्य सरकार का है। भाजपा सरकार लूट मचा रखी है तो कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि राज्य सरकार के इन कामों को रोकना होगा। प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं का महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन जाती है कि सरकार के इन कदमों का विरोध कर राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिये इस सम्पदाओं के सही तरीके से दोहन करना होगा।
राहुल गांधी के इस तरह के बयान का यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि प्रदेश में कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका से भी वे संतुष्ट नहीं दिखाई देते हैं। प्रदेश सरकार के गलत कदम का विरोध विधानसभा में सख्त तरीके से किया जा सकता है पर लगता है कि विपक्ष की भूमिका से भी वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। वैसे कुछ बड़े कांग्रेस नेताओं के साथ भाजपा के बड़े नेताओं से मधुर संबंधी की चर्चा भी आम है। बहरहाल प्रदेश में राहुल का एक दिवसीय प्रवास और सलाह के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि कुछ बदलाव भी हो सकते हैं। बदलाव राष्ट्रपति चुनव के पहले होंगे या बाद में यह कहा नहीं जा सकता पर एक बात तो तय है कि प्रदेश के कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका से राहुल गांधी कम से कम खुश तो नहीं है।
प्रथम नागरिक की उपेक्षा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की प्रथम नागरिक महापौर डा. किरणमयी नायक की भी संगठन ने उपेक्षा की। उन्हें न तो राहुल गांधी के साथ मंच पर बैठने दिया गया और न ही संबोधन का अवसर दिया गया स्थानीय निकाय के कार्यक्रम में भिलाई की महापौर श्रीमती निर्मला यादव को जरूर उद्बोधन का अवसर मिला बस इसी बात से डा. किरणमयी नायक नाराज है। उन्होंने अपनी नाराजगी राहुल गांधी के सामने व्यक्त जरूर की परन्तु मंच पर बैठने नहीं देने या संबोधन नहीं करने देने के स्थान पर प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी की शिकायत कर दी। उन्होंने राहुल गांधी से सीधी बातचीत करके प्रदेश में चल रही गुटबाजी को उभारकर बड़े नेताओं की फजीहत करने में कोताही नहीं बरती। वैसे चुनाव के समय विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, डा. चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा से आर्शीवाद लेने वाली महापौर चुनाव जीतने के बाद कभी उधर रूख ही नहीं किया। अब तो कहा जाता है कि किसी बड़े कांग्रेसी से यदि सिफारिश कराई जाती है तो निगम में काम ही नहीं होता हैं।
और अब बस
० कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में चुनाव जीतने के टिप्स दिये। एक खबर..। प्रतिक्रिया अरूण वोरा को चौथी बार चुनाव में विजयी होने टिप्स देने की अधिक जरूरत है।
० मंत्री लता उसेण्डी के घर पर हमला से एक सुरक्षा गार्ड की मौत हो गई नये पुलिस कप्तान ने कुछ अन्य कर्मियों को निलंबित किया। डबल स्टोरी भवन बनाने के चक्कर में वहां सुरक्षा कर्मी के खड़े होने रहने की जगह नहीं है तो सुरक्षाकर्मी कहां खड़े होकर सुरक्षा करेंगे।


Monday, May 14, 2012

माननीय!
ये कैसा गडबड़ घोटाला है
'जन के नाम पर
'अभिजन को आपने
पोसा-पाला है

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। 26 जनवरी 1950 को संविधान बना और अंतरिम संसद के रूप में कार्यवाही प्रारंभ हुई, 1950 में भी रेशम लाल जांगडे को संासद मनोनित किया गया उसके बाद 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव में भी रेशमलाल जांगडे बिलासपुर से सांसद बने वहीं 1989 में भी सांसद बनने का सौभाग्य उन्हें मिला। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी के साथ संसद की कार्यवाही में शामिल होने वाले रेशमलाल जांगडे को कल संसद की 60 वीं वर्षगांठ के मौके पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सुराज ने  1952 लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम पर भी एक नजर डालकर हमारे लोकतंत्र के रक्षको को याद करने की कोशिश इस कालम के माध्यम से की है।
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और आजादी के बाद 1952 में देश में लोकसभा तथा विधानसभा के आम चुनाव हुए। 13 मई 1952 को आजाद भारत की पहली संसदीय सभा में भारत के पहले राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि संसद की 60वीं वर्षगांठ पर 1952 से पहले अंतरिम संसद मनोनित होने वाले 88 वर्षीय रेशमलाल जांगडे का सम्मान किया गया। 88 वर्षीय रेशमलाल जांगडे देश के इमानदार, जनसेवा करने वाले जनप्रतिनिधि का एक उदाहरण हो सकते है।
16 फरवरी 1925 को गांव परसाडीह, तहसील बिलाइगढ़ में स्व.टीकाराम जांगडे के घर रेशमलाल जांगडे का एक सतनामी परिवार में जन्म हुआ। अभाव के चलते भी उन्होंने बी.ए., एलएलबी की पढ़ाई की और कृषि कार्य के साथ-साथ वकालत में भी रूचि ली। 1942 में रेशमलाल जांगडे को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हिस्सेदारी के चलते जेल यात्रा करनी पड़ी। 1952 में जांगडे अंतरिम सदस्य रहे तो 57 और 62 में बिलासपुर लोकसभा सदस्य रहे। 1962 में 67 तक वे कांग्रेस पार्टी की तरफ से भटगांव से विधायक चुने गए और 1963 में उन्हेंं म.प्र. सरकार में उपमंत्री बनाया गया।  1972 में कांग्रेस से मोहभंग हो गया 1973 में भटगांव से ही उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव जीता। बाद में वे जनता पार्टी में शामिल हो गए पर 1977 का विधानसभा चुनाव बतौर जनता पार्टी प्रत्याशी वे हार गए। 1985 में वे भाजपा उम्मीदवार के रूप में विस चुनाव में विजयी रहे। 1989 में बिलासपुर लोस से वे विजयी रहे पर 1993 का विस चुनाव में उन्हें पुन: भटगांव विस से पराजय का सामना करना पड़ा।
तीन बार विधायक और दो बाद सांसद रहने वाले रेशमलाल जांगडे आज भी अपने परिवार के साथ जनता क्वार्टर में रहते है।  जो 1972 मेें 9 हजार में खरीदा था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व सांसद विधायक के रूप में मिलनेवाले 25 हजार रुपए मासिक पेंशन पर अपने परिवार के 10 सदस्यों का जीवन चल रहा है। आज की राजनीति में जब पहली बार विधायक या सांसद बनने के बाद चार चक्का वाहन, आलीशान घर जरूरी है ऐसे माहौल में रेशमलाल जांगडे की सादगी और इमानदारी आज के राजनेताओं के लिए आदर्श स्थापित कर सकती हैं। प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू और उनके नाती राजीव गांधी के साथ संसद में रहने वाले रेशम लाल जांगडे आज की राजनीतिक व्यवस्था और भ्रष्टाचार के बोलबाले से नाखुश है। लोगों की भावनाएं और समस्याएं उठाकर जनसेवा करने वे राजनीति में आए थे ईमानदारी से जीवन जिया और उनका कहना है कि इमानदारी से ही वे मरेंगे।
1952 के लोस चुनाव
भारत में आजादी के बाद 1952 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हुए थे। उस समय छत्तीसगढ़ सीपीएण्ड बरार प्रदेश के अधीन था। तब इस प्रदेश में 29 लोक सभा सीटे थी और उनमें से 10 लोकसभा सीटे वर्तमान छत्तीसगढ़ में थी। इन 10 क्षेत्रों में बस्तर और सरगुजा- रायगढ़ में निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे थे बाकी सभी 8 सीटों पर राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विजयी रहे थे। बस्तर से निर्दलीय मुचकी कोसा तथा सरगुजा- रायगढ़ से निर्दलीय चद्रकिरण सिह जूदेव ने जीत दर्ज की थी वहीं बिलासपुर क्षेत्र में सरदार अमरसिंह सहगल, भूपेन्द्रनाथ मिश्रा, तथा बिलासपुर (अजा) से रेशमलाल जांगडे विजयी रहे थे। बिलासपुर दुर्ग-रायपुर(अजा) सीट से मिनी माता, दुर्ग से वासुदेव श्रीधर किरोलीकर, दुर्ग-बस्तर से पं.भगवती चरण शुक्ल (पंडित रविशंकर शुक्ल के पुत्र) महासमुंद से मगनलाल बागडी, सरगुजा-रायगढ़ (अजा) से बाबूनाथ सिंह विजयी रहे थे। तब आदिवासी वर्ग या अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए केवल बस्तर लोकसभा सीट ही तय थी।
 1952 में कांग्रेस के 398 लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे उनमें से 8 छत्तीसगढ़ से ही चुने गए थे। 2008 के लोस चुनाव में छत्तीसगढ़ की स्थिति उलट है। अभी  छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में 10 मेें भाजपा का कब्जा है वहीं कांग्रेस के एक मात्र विजयी सांसद, चरणदास महंत केन्द्र में मंत्री  भी हैं।
1952 के विस चुनाव
आजादी के बाद 1952 में लोकसभा विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई पर 1951 में ही भारतीय जनसंघ, समाजवादी पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी का उदय देश तथा प्रदेश में हो चुका था। 1952 के विस चुनाव में इन पाटियों के प्रत्याशी भी चुनाव समर में उतरे थे। जनसंघ के प्रत्याशी तो स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठ भूमि के नहीं थे और न ही कभी कांग्रेस में सक्रिय रहे। परंतु समाजवादी पार्टी और किसान मजदूर पार्टी के अधिकांश प्रत्याशी स्वतंत्रता संग्राम के दौर में कांग्रेस के साथ थे।
ठा.प्यारेलाल सिंह, खूबचंद बघेल, बैरिस्टर छेदीलाल , बुलाकी लाल पुजारी, लक्ष्मण प्रसाद बैद्य, ठाकुर रामकृष्ण सिंह आदि ने कांग्रेस से अलग होकर विस चुनाव लड़ा था।
 1952 में छत्तीसगढ़ में कुल 82 विधानसभा क्षेत्र थे जिसमें कांग्रेस ने 73 प्रत्याशी खड़े किए थे उनमें से 57 विजयी रहे थे तो जनसंघ ने 14 प्रत्याशी चुनाव समर में उतारा था और एक भी विजयी नहीं हो सका था सीपीआई के तीन में कोई नहीं जीता, किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 36 प्रत्याशी चुनाव समर के उतारे थे उनमें  से चार विजयी रहे थे। वहीं 127 निर्दलीय मैदान में उतरे थे उनमें से 17 ने जीत दर्ज की थी।
1952 में सीपी एण्ड बरार प्रदेश में अच्छी सफलता मिलने पर पं. रविशंकर शुक्ला मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में बैलाडिला खदानों को हैदराबाद के निजामो को सौंपने की गुप्त योजना का पर्दाफाश हुआ और समझौता निरस्त हो गया अन्यथा छत्तीसगढ़ का यह हिस्सा हैदराबाद में होता। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना भी इनके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि है।
1952 के विस चुनाव जीतने वालों में महाराजा रामानुजशरण सिहदेव (अंबिकापुर), राजा विजयभूषण सिहदेव (जशपुर), राजा चंद्रचूड़ (धर्मजयगढ़), राजा नरेश चंद सारंगढ़ (बाद में म.प्र. के मुख्यमंत्री बने), मथुरा प्रसाद  दुबे (मरवाही), रामगोपाल तिवारी (मुंगेली), शिव दुलारे मिश्र (बिलासपुर), गणेशराम अनंत (मस्तुरी), बिसाहूदास महंत (बाराद्बार), रामकृष्ण राठौर (चांपा), महाराजा लीलाधर सिंह (सक्ती), ठाकुर प्यारेलाल सिंह (रायपुर), लखनलाल गुप्ता (आरंग), खूबचंद बघेल (पचेड़ा-धरसींवा), चक्रपाणी शुक्ला (भाटापारा), बृजलाल वर्मा (कोसमंडी-कसडोल), महंत लक्ष्मीनारायण दास (भटगांव), श्याम कुमारी देवी (राजिम), पंडित रविशंकर शुक्ल (सरायपाली), जयदेव सतपथी (बसना), गणपतराव दानी (पिथौरा-खल्लारी), भोपाल राव पवार (कुरुद), भानुप्रताप देव (कांकेर), विद्यानाथ ठाकुर (जगदलपुर), बाय.बी. तामस्कर (बेमेतरा), रानी पद्मावती (बोरीदेवरकर), घनश्याम गुप्ता (दुर्ग), केशव लाल गुमास्ता (बालोद), धन्नालाल जैन (डोंगरगांव), आर.के. शुक्ला (राजनांदगांव), विजयलाल ओस्तवाल (डोंगरगढ़), राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह (खैरागढ़) तथा घरघोड़ा से दुर्गाचरण पटेल विजयी रहे थे। बाद में पटेल के नाम से पटेलपाली गांव की स्थापना बाद में हुई। ये कुछ महत्वपूर्ण लोग विजयी रहे जिन्होंने बाद में छत्तीसगढ़ का नेतृत्व देश-प्रदेश में किया। 1952 में कई विधानसभा क्षेत्रों में द्बिसदस्यीय व्यवस्था थी यानि सबसे अधिक मत और उससे कम मत पाने वाला विधायक निर्वाचित होता था।
3 महिलाएं विस में
1952 के विधानसभा चुनाव में 3 महिलाएं विजयी होकर विधानसभा पहुंची थी। श्यामाकुमारी देवी, विन्द्रानवागढ़, कनक कुमारी, देवी चौकी (दोनों अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिलाएं) विजयी रही थी तो बोरई देवकर से रानी पद्मावती ने अपनी जीत दर्ज की थी।
नेता प्रतिपक्ष/पक्ष
1952 के विस चुनाव के बाद सीपी एण्ड बरार में नेता पक्ष तथा मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल बने जो रायपुर जिले की सरायपाली से निर्वाचित हुए थे, रायपुर के ही थे। नेता प्रतिपक्ष बने ठा. प्यारेलाल सिंह। 1952 का विस चुनाव इन्होंने रायपुर शहर से किसान मजदूर प्रजा पार्टी के उम्मीदवार की हैसियत से जीता था। वैसे ठाकुर प्यारेलाल सिंह 1936 में विधानसभा सदस्य बने थे। वे सीपी एण्ड बरार के खरे मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। बहरहाल 1952 के चुनाव में वे नेता प्रतिपक्ष बने थे। पंडित रविशंकर शुक्ल और ठा. प्यारेलाल सिंह एक ही रेल से नागपुर राजधानी साथ-साथ जाते थे और विधानसभा में पक्ष और विपक्ष की भूमिका ईमानदारी से निभाते थे।
विस अध्यक्ष
घनश्याम दास गुप्ता 1923 से सीपी एण्ड बरार विधानसभा के सदस्य रहे, वहीं नेता प्रतिपक्ष भी रहे। 1937-52 तक विधानसभा अध्यक्ष का भी दायित्व संभाला था। 22 दिसंबर 1885 को जन्में श्री गुप्त बीएससी, विधि स्नातक थे। वे दुर्ग के रहने वाले थे।
और अब बस
छत्तीसगढ़ से निर्वाचित एक सांसद को लोकसभा में सवाल पूछने के नाम पर पैसा लेने के स्ट्रीग ऑपरेशन दुर्योधन के कारण सदस्यता से वंचित होना पड़ा?

Sunday, May 13, 2012

माननीय!
ये कैसा गडबड़ घोटाला है
'जन के नाम पर
'अभिजन को आपने
पोसा-पाला है

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। 26 जनवरी 1950 को संविधान बना और अंतरिम संसद के रूप में कार्यवाही प्रारंभ हुई, 1950 में भी रेशम लाल जांगडे को संासद मनोनित किया गया उसके बाद 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव में भी रेशमलाल जांगडे बिलासपुर से सांसद बने वहीं 1989 में भी सांसद बनने का सौभाग्य उन्हें मिला। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी के साथ संसद की कार्यवाही में शामिल होने वाले रेशमलाल जांगडे को कल संसद की 60 वीं वर्षगांठ के मौके पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सुराज ने  1952 लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम पर भी एक नजर डालकर हमारे लोकतंत्र के रक्षको को याद करने की कोशिश इस कालम के माध्यम से की है।
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और आजादी के बाद 1952 में देश में लोकसभा तथा विधानसभा के आम चुनाव हुए। 13 मई 1952 को आजाद भारत की पहली संसदीय सभा में भारत के पहले राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि संसद की 60वीं वर्षगांठ पर 1952 से पहले अंतरिम संसद मनोनित होने वाले 88 वर्षीय रेशमलाल जांगडे का सम्मान किया गया। 88 वर्षीय रेशमलाल जांगडे देश के इमानदार, जनसेवा करने वाले जनप्रतिनिधि का एक उदाहरण हो सकते है।
16 फरवरी 1925 को गांव परसाडीह, तहसील बिलाइगढ़ में स्व.टीकाराम जांगडे के घर रेशमलाल जांगडे का एक सतनामी परिवार में जन्म हुआ। अभाव के चलते भी उन्होंने बी.ए., एलएलबी की पढ़ाई की और कृषि कार्य के साथ-साथ वकालत में भी रूचि ली। 1942 में रेशमलाल जांगडे को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हिस्सेदारी के चलते जेल यात्रा करनी पड़ी। 1952 में जांगडे अंतरिम सदस्य रहे तो 57 और 62 में बिलासपुर लोकसभा सदस्य रहे। 1962 में 67 तक वे कांग्रेस पार्टी की तरफ से भटगांव से विधायक चुने गए और 1963 में उन्हेंं म.प्र. सरकार में उपमंत्री बनाया गया।  1972 में कांग्रेस से मोहभंग हो गया 1973 में भटगांव से ही उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव जीता। बाद में वे जनता पार्टी में शामिल हो गए पर 1977 का विधानसभा चुनाव बतौर जनता पार्टी प्रत्याशी वे हार गए। 1985 में वे भाजपा उम्मीदवार के रूप में विस चुनाव में विजयी रहे। 1989 में बिलासपुर लोस से वे विजयी रहे पर 1993 का विस चुनाव में उन्हें पुन: भटगांव विस से पराजय का सामना करना पड़ा।
तीन बार विधायक और दो बाद सांसद रहने वाले रेशमलाल जांगडे आज भी अपने परिवार के साथ जनता क्वार्टर में रहते है।  जो 1972 मेें 9 हजार में खरीदा था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व सांसद विधायक के रूप में मिलनेवाले 25 हजार रुपए मासिक पेंशन पर अपने परिवार के 10 सदस्यों का जीवन चल रहा है। आज की राजनीति में जब पहली बार विधायक या सांसद बनने के बाद चार चक्का वाहन, आलीशान घर जरूरी है ऐसे माहौल में रेशमलाल जांगडे की सादगी और इमानदारी आज के राजनेताओं के लिए आदर्श स्थापित कर सकती हैं। प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू और उनके नाती राजीव गांधी के साथ संसद में रहने वाले रेशम लाल जांगडे आज की राजनीतिक व्यवस्था और भ्रष्टाचार के बोलबाले से नाखुश है। लोगों की भावनाएं और समस्याएं उठाकर जनसेवा करने वे राजनीति में आए थे ईमानदारी से जीवन जिया और उनका कहना है कि इमानदारी से ही वे मरेंगे।
1952 के लोस चुनाव
भारत में आजादी के बाद 1952 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हुए थे। उस समय छत्तीसगढ़ सीपीएण्ड बरार प्रदेश के अधीन था। तब इस प्रदेश में 29 लोक सभा सीटे थी और उनमें से 10 लोकसभा सीटे वर्तमान छत्तीसगढ़ में थी। इन 10 क्षेत्रों में बस्तर और सरगुजा- रायगढ़ में निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे थे बाकी सभी 8 सीटों पर राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विजयी रहे थे। बस्तर से निर्दलीय मुचकी कोसा तथा सरगुजा- रायगढ़ से निर्दलीय चद्रकिरण सिह जूदेव ने जीत दर्ज की थी वहीं बिलासपुर क्षेत्र में सरदार अमरसिंह सहगल, भूपेन्द्रनाथ मिश्रा, तथा बिलासपुर (अजा) से रेशमलाल जांगडे विजयी रहे थे। बिलासपुर दुर्ग-रायपुर(अजा) सीट से मिनी माता, दुर्ग से वासुदेव श्रीधर किरोलीकर, दुर्ग-बस्तर से पं.भगवती चरण शुक्ल (पंडित रविशंकर शुक्ल के पुत्र) महासमुंद से मगनलाल बागडी, सरगुजा-रायगढ़ (अजा) से बाबूनाथ सिंह विजयी रहे थे। तब आदिवासी वर्ग या अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए केवल बस्तर लोकसभा सीट ही तय थी।
 1952 में कांग्रेस के 398 लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे उनमें से 8 छत्तीसगढ़ से ही चुने गए थे। 2008 के लोस चुनाव में छत्तीसगढ़ की स्थिति उलट है। अभी  छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में 10 मेें भाजपा का कब्जा है वहीं कांग्रेस के एक मात्र विजयी सांसद, चरणदास महंत केन्द्र में मंत्री  भी हैं।
1952 के विस चुनाव
आजादी के बाद 1952 में लोकसभा विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई पर 1951 में ही भारतीय जनसंघ, समाजवादी पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी का उदय देश तथा प्रदेश में हो चुका था। 1952 के विस चुनाव में इन पाटियों के प्रत्याशी भी चुनाव समर में उतरे थे। जनसंघ के प्रत्याशी तो स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठ भूमि के नहीं थे और न ही कभी कांग्रेस में सक्रिय रहे। परंतु समाजवादी पार्टी और किसान मजदूर पार्टी के अधिकांश प्रत्याशी स्वतंत्रता संग्राम के दौर में कांग्रेस के साथ थे।
ठा.प्यारेलाल सिंह, खूबचंद बघेल, बैरिस्टर छेदीलाल , बुलाकी लाल पुजारी, लक्ष्मण प्रसाद बैद्य, ठाकुर रामकृष्ण सिंह आदि ने कांग्रेस से अलग होकर विस चुनाव लड़ा था।
 1952 में छत्तीसगढ़ में कुल 82 विधानसभा क्षेत्र थे जिसमें कांग्रेस ने 73 प्रत्याशी खड़े किए थे उनमें से 57 विजयी रहे थे तो जनसंघ ने 14 प्रत्याशी चुनाव समर में उतारा था और एक भी विजयी नहीं हो सका था सीपीआई के तीन में कोई नहीं जीता, किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 36 प्रत्याशी चुनाव समर के उतारे थे उनमें  से चार विजयी रहे थे। वहीं 127 निर्दलीय मैदान में उतरे थे उनमें से 17 ने जीत दर्ज की थी।
1952 में सीपी एण्ड बरार प्रदेश में अच्छी सफलता मिलने पर पं. रविशंकर शुक्ला मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में बैलाडिला खदानों को हैदराबाद के निजामो को सौंपने की गुप्त योजना का पर्दाफाश हुआ और समझौता निरस्त हो गया अन्यथा छत्तीसगढ़ का यह हिस्सा हैदराबाद में होता। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना भी इनके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि है।
1952 के विस चुनाव जीतने वालों में महाराजा रामानुजशरण सिहदेव (अंबिकापुर), राजा विजयभूषण सिहदेव (जशपुर), राजा चंद्रचूड़ (धर्मजयगढ़), राजा नरेश चंद सारंगढ़ (बाद में म.प्र. के मुख्यमंत्री बने), मथुरा प्रसाद  दुबे (मरवाही), रामगोपाल तिवारी (मुंगेली), शिव दुलारे मिश्र (बिलासपुर), गणेशराम अनंत (मस्तुरी), बिसाहूदास महंत (बाराद्बार), रामकृष्ण राठौर (चांपा), महाराजा लीलाधर सिंह (सक्ती), ठाकुर प्यारेलाल सिंह (रायपुर), लखनलाल गुप्ता (आरंग), खूबचंद बघेल (पचेड़ा-धरसींवा), चक्रपाणी शुक्ला (भाटापारा), बृजलाल वर्मा (कोसमंडी-कसडोल), महंत लक्ष्मीनारायण दास (भटगांव), श्याम कुमारी देवी (राजिम), पंडित रविशंकर शुक्ल (सरायपाली), जयदेव सतपथी (बसना), गणपतराव दानी (पिथौरा-खल्लारी), भोपाल राव पवार (कुरुद), भानुप्रताप देव (कांकेर), विद्यानाथ ठाकुर (जगदलपुर), बाय.बी. तामस्कर (बेमेतरा), रानी पद्मावती (बोरीदेवरकर), घनश्याम गुप्ता (दुर्ग), केशव लाल गुमास्ता (बालोद), धन्नालाल जैन (डोंगरगांव), आर.के. शुक्ला (राजनांदगांव), विजयलाल ओस्तवाल (डोंगरगढ़), राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह (खैरागढ़) तथा घरघोड़ा से दुर्गाचरण पटेल विजयी रहे थे। बाद में पटेल के नाम से पटेलपाली गांव की स्थापना बाद में हुई। ये कुछ महत्वपूर्ण लोग विजयी रहे जिन्होंने बाद में छत्तीसगढ़ का नेतृत्व देश-प्रदेश में किया। 1952 में कई विधानसभा क्षेत्रों में द्बिसदस्यीय व्यवस्था थी यानि सबसे अधिक मत और उससे कम मत पाने वाला विधायक निर्वाचित होता था।
3 महिलाएं विस में
1952 के विधानसभा चुनाव में 3 महिलाएं विजयी होकर विधानसभा पहुंची थी। श्यामाकुमारी देवी, विन्द्रानवागढ़, कनक कुमारी, देवी चौकी (दोनों अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिलाएं) विजयी रही थी तो बोरई देवकर से रानी पद्मावती ने अपनी जीत दर्ज की थी।
नेता प्रतिपक्ष/पक्ष
1952 के विस चुनाव के बाद सीपी एण्ड बरार में नेता पक्ष तथा मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल बने जो रायपुर जिले की सरायपाली से निर्वाचित हुए थे, रायपुर के ही थे। नेता प्रतिपक्ष बने ठा. प्यारेलाल सिंह। 1952 का विस चुनाव इन्होंने रायपुर शहर से किसान मजदूर प्रजा पार्टी के उम्मीदवार की हैसियत से जीता था। वैसे ठाकुर प्यारेलाल सिंह 1936 में विधानसभा सदस्य बने थे। वे सीपी एण्ड बरार के खरे मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। बहरहाल 1952 के चुनाव में वे नेता प्रतिपक्ष बने थे। पंडित रविशंकर शुक्ल और ठा. प्यारेलाल सिंह एक ही रेल से नागपुर राजधानी साथ-साथ जाते थे और विधानसभा में पक्ष और विपक्ष की भूमिका ईमानदारी से निभाते थे।
विस अध्यक्ष
घनश्याम दास गुप्ता 1923 से सीपी एण्ड बरार विधानसभा के सदस्य रहे, वहीं नेता प्रतिपक्ष भी रहे। 1937-52 तक विधानसभा अध्यक्ष का भी दायित्व संभाला था। 22 दिसंबर 1885 को जन्में श्री गुप्त बीएससी, विधि स्नातक थे। वे दुर्ग के रहने वाले थे।
और अब बस
छत्तीसगढ़ से निर्वाचित एक सांसद को लोकसभा में सवाल पूछने के नाम पर पैसा लेने के स्ट्रीग ऑपरेशन दुर्योधन के कारण सदस्यता से वंचित होना पड़ा?