Tuesday, June 18, 2013

ये हमने किसके कहने पर बहाई खून की नदियां
ये हम एक-दूसरे को
क्यों अकेला छोड़ आये हैं...

स्तर की जीरम घाटी में ताजा माओवादी हमले के बाद देश के भीतर चिंतन और विचारों की लहर उफान पर हैं। नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 31 लोगों की मौत के बाद छत्तीसगढ़ की सरकार की सुरक्षा चूक और राजनीतिक साजिश की चर्चा के बीच कई अनकही और अनसूलझी कहानियां चर्चा में है। एक बात तो तय है कि इस बड़े हमले को राजनीति पार्टियां भुनाने की कोशिश में है। प्रदेश के सत्ताधारी दल द्वारा इस हमले में कांग्रेसियों का ही हाथ होने की बात करते हुए एनआईए को भी लपेटने में भी गुरेज नहीं किया वहीं कांग्रेस स्वयं को बेसहारा होने की बात करते हुए हमदर्दी करने में पीछे नहीं है। पूरे घटनाक्रम के बाद भी पुलिस की तरफ से या शासन की तरफ से अधिकृत बयान नहीं आने के चलते प्रत्यक्षदर्शियों के विरोधाभाषी बयान भी आ रहे है। वैसे महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे विद्याचरण शुक्ल तथा उदय मुदलियार तो सामूहिक गोलीबारी के अनजाने में ही शिकार बन गये पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेेटे दिनेश पटेल को अलग ले जाकर नक्सलियों ने क्यों हत्या कर दी यह अभी भी अनसूलझा हुआ है। सवाल यह उठ रहा है कि सुकमा जिले से निकली परिवर्तन यात्रा में तो सुरक्षा इंतजाम था पर जगदलपुर जिले में सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम क्यों नहीं थे।
बहरहाल छत्तीसगढ़ सरकार की मद्द से सलवा जुडूम अभियान चलाया गया था। इस अभियान के चलते सलवा जुडूम कैंप की स्थापना हुई, कई गांव खाली हो गये अप्रशिक्षित विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की नियुक्ति की गई और आम आदिवासी नक्सली-एसपीओ तथा सुरक्षाबल के बीच फंस गये थे। इसी के बाद केंद्र सरकार की ओर से आपरेशन ग्रीन हण्ट अभियान भी शुरू किया गया। कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती की भी शिकायत मिली वैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर का करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद एक तरह से घमासान की चपेट में रहा। सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट तो समाप्त हो चुका है पर अभी भी 'असरÓ बाकी है।
केंद्र सरकार भी लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की मांग पर सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ा रही है। आज की स्थिति में केवल बस्तर में ही 15 हजार से अर्धसुरक्षा बल तैनात है पर सुरक्षाबल की मौजूदगी के बाद भी बस्तर का एक आम आदिवासी स्वयं को नक्सलियों से सुरक्षित महसूस कर रहा है? क्या नक्सली हमले कम हुए है? क्या सरकार की विकास नीतियां बस्तर में जोड़ पकड़ पाई है। नक्सलवाद क्या कागजों पर ही लड़ा जाएगा या सिर्फ जवानों को मौत के मुह में धकेल कर लड़ा जाएगा। केवल शहादत पर बयानबाजी करने से काम नहीं चलेगा। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला बस्तर की किसी गली -कूचे में नहीं राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे) में हुआ और जहां हमला किया गया वहां से 10 किलोमीटर के दायरे में दो थाने थे फिर भी विद्याचरण शुक्ल जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री गोली लगने के बाद करीब 4 घंटे घटनास्थल पर ही पड़े रहे क्या यह नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई की नियत पर सवाल नहीं खड़ा करता है। बस्तर में टाईगर के नाम से चर्चित स्व. महेन्द्र कर्मा ने नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राण भी निछावर कर दिया। अब उनके परिवार को नक्सली गृहग्राम में नहीं रहने की धमकी दे रहा है और उनके परिवार जन दिल्ली जाकर अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे है।
इधर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से लौट रहे नेताओं पर नक्सली हमले के मामले में 200 नक्सलियों के खिलाफ दरभा थाने में मामला दर्ज किया इसमें गणेश उइके, गुडसा उसेण्डी, रमन्ना, सुमित्रा और पांडू सहित लगभग 60 नक्सली महिला भी शामिल थी।
वैसे खुफिया जांच से पता चला है कि सुकमा की इस हृदय विदारक घटना का मास्टर माईंड सेण्ट्रल कमेटी का मुखिया मुपुला लक्ष्मण राव उफ गणपति ही था। एशिया का सबसे बड़ी गुरिल्ला आर्मी के इसी नेता के मातहत 10 हजार हथियारबंद है जो छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और विहार तक फैले हजारों किलोमीटर के दायरे में सक्रिय है। 1979 में नक्सलवादी आंदोलन से जुडने वाला गणपति लाल आतंक का सबसे बड़ा चेहरा है।
एसएमएस की चर्चा
बस्तर की जीरम घाटी में परिवर्तन यात्रा पर किये गये नक्सली हमले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाने लगी है। कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और विधायक कवासी लखमा को निशाना बनाया गया था। तो भाजपा की प्रदेश सरकार तथा कुछ अफसरों पर राजनीतिक साजिश का आरोप भी उछला था इसी के बाद एनआईए की जांच में 4 कांग्रेसी नेताओं की संलिप्ता की चर्चा उठी हालांकि एनआईए ने खंडन भी कर दिया। हाल फिलहाल नक्सली हमले का शिकार बने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के पुत्र दिनेश पटेल के एसएमएस से दरभा हमले का रहस्य गरमा गया है। कांग्रेस के एक नेता को 23 मई यानि नक्सली हमले के दो दिन पहले दिनेश पटेल का एसएमएस मिला था जिसके अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमेटी 15 जून को डा. रमनसिंह को लेकर एक बड़ा खुलासा करेगी और इसके बाद डा. रमनसिंह का इस्तीफा निश्चित है। वैसे एनआईए को यह एसएमएस फारवड किया जा चूका है और जांच में इसे भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर वह खुलासा क्या था। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार माओवादी से सबसे अधिक क्रूरता महेन्द्र कर्मा और दिनेश पटेल के साथ की थी। कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे पर दिनेश पटेल की हत्या को लेकर लगातार सवाल उठ रहे है। क्या खुलासे और दिनेश पटेल की हत्या के बीच कोई संबंध है। खैर 23 मई के एसएमएस को 15 जून तक कांग्रेस ने खुलासा क्यों नहीं किया यह भी एक बड़ा सवाल है?
सरकार की इच्छा शक्ति
छत्तीसगढ़ की सरकार क्या इमानदारी से नक्सलियों का उन्मूलन करने प्रयासरत है? केवल अर्धसैनिक बलों का जमावड़ा करके ही नक्सलियों से निपटा जा सकता है, छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल के नक्सली मामले का सलाहकार बनया जा सकता है पर नक्सल मामलों के जानकार तथा छत्तीसगढ़ कैडर से सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर संतकुमार पासवान से सलाह लेना भी सरकार उचित नहीं समझती है। डीजीपी राम निवास के बाद प्रदेश पुलिस की कमान सम्हालने वाले गिरधारी नायक भी आईजी बस्तर, नक्सल आपरेशन, प्रशिक्षण आदि का काम सम्हाल चुके है पर उन्हें पिछले 2 साल से पुलिस मुख्यालय से बाहर जेल में रखा गया था हालांकि अब वे कार्यवाहक महानिदेशक बन चुके है। सरगुजा में करीब 3 साल तथा बस्तर में दो साल पुलिस महानिरीक्षक का बखूबी काम सम्हालने वाले एडीजी एएन उपाध्याय को 5 सालों से मंत्रालय में ओएसडी  बनाकर एक कमरे तक सीमित कर दिया गया है। काफी समय तक खुफिया विभाग सम्हालने वाले तथा गंभीर संजीदा तथा इमानदार अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले संजय पिल्ले को आर्थिक अपराध शाखा में पद स्थापना कर पुलिस मुख्यालय से बाहर रखा गया है। वैसे कभी भाजपा की सरकार की नाक कान और आँख समझे जाने वाले डी एम अवस्थी भी पुलिस आवास निगम के प्रमुख बनाकर मुख्य धारा से अलग कर दिये गये है। बस्तर में सुरक्षा चूक के लिये जिम्मेदार मानकर एक आईजी को हटाया गया तो दूसरे ऐसे आईजी की पदस्थापना कर दी गई जिन पर भाजपा के ही एक सांसद ने प्रशासनिक आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया था।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा के आयुक्त सेवानिवृत्त होने वाले है और नक्सली प्रभावित इस क्षेत्र में नये कमिश्नर की तलाश की जा रही है इधर बिलासपुर में आयुक्त पद पर आईएएस के डीपी राव की नियुक्ति की गई है पर वे वहां जाना नहीं चा रहे है और जबलपुर कैट से स्थगन ले चुके है, न्यायालय का मामले होने के चलते लम्बा वक्त लगेगा और सरकार उसे ही आयुक्त बनाने की जिद पकड़ बैठी है। अभी बिलासपुर आयुक्त का पद करीब डेढ माह से रिक्त है। बिलासपुर संभाग में भी नक्सलियों की दस्तक सुनाई दे रही है।
और अब बस
ठ्ठ छत्तीसगढृ के पूर्व गृह सचिव, तथा सेवानिवृत्त आईएएस रार्बर हरंगडोला के खिलाफ जाति छिपाकर जमीन बेचने के मामले में जांच शुरू हो गई है।
ठ्ठ आर्ट आफ लिविंग सीखने वालों को बाद में पता चला कि 'आर्ट आफ घपलाÓ साथ में 'फ्रीÓ सिखाया जाता है।

Monday, June 17, 2013

मुहाजिरों यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा

चाल, चरित्र और चेहराÓ के साथ राजनीतिक सुचिता को लेकर चर्चा में रही भारतीय जनता पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाला 84 वर्षीय बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के विभिन्न पदों से इस्तीफा देकर यह संकेत तो दे ही दिया है कि भाजपा के भीतर क्या चल रहा है। लगभग 2 वर्षों से गुजरात से निकलकर राष्ट्रीय चेहरा बनने की राह पर निकले नरेन्द्र मोदी को भाजपा की लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेजे गये पत्र में 'भाजपाÓ की हालत का ही खुलासा किया है। उन्होंने पत्र में कहा गया है कि पिछले कुछ समय से पार्टी (भाजपा) में जो चल रहा है या जो हो रहा है, वह पार्टी की विचारधारा के विपरीत है। भाजपा अब पहले जैसी विचारधारा वाली पार्टी नहीं रही है। ज्यादातर नेता अपने 'निजी एजेन्डाÓ को पुरा करने में लगे है। इसी पत्र को मेरा इस्तीफा माना जाए।
सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा में यह पीढ़ी का बदलाव है या नई विचारधारा करवट ले रही है। भाजपा में 2 सांसदों से पहली गैर कांग्रेसी सरकार अटल जी के नेतृत्व में बनाने के पीछे अटल-आडवाणी की मेहनत किसी से छिपी नहीं है। जनसंघ से भाजपा के सफर में करीब 60 साल के सार्वजनिक जीवन गुजारने वाले आडवाणी को आखिर इस्तीफा देने क्यों मजबूर होना पड़ा?
गोवा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने समुद्र मंथन करके नरेन्द्र मोदी को निकालकर उन्हें भाजपा लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष घोषित किया बस यही से भाजपा में दरार की शुरूवात हुई। आडवाणी सहित कुछ नेता इसके विरोधी थे। सूत्र कहते है कि इन नेताओं का सुझाव था कि लोकसभा चुनाव प्रचार समिति के लिये अलग अध्यक्ष बनाया जाए वहीं राज्यों के लिये अलग-अलग प्रभारी बनाया जाए पर न जाने क्यों इस राय को महत्व नहीं दिया गया। सवाल यह भी उठ रहा है कि गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में अटल-आडवाणी की फोटो तक से परहेज किया गया बाद में हडबड़ी में कटआऊट लगाये गये। मोदी ने अपने भाषण में आडवाणी के नाम का जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझा? बहरहाल अटल बिहारी वाजपेयी अस्वस्थ है और लौह पुरूष के नाम से चर्चित आडवाणी इस्तीफा दे चुके है जाहिर है कि भाजपा दो फाड़ होने की स्थिति में है। वैसे डेमेज कंट्रोल करने भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता आडवाणी को मनाने में लगे है पर सवाल उठ रहा है कि आडवाणी की उपेक्षा में पीछे राजनाथ-मोदी गुट का हाथ है या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ है या दोनों का हाथ है यह स्पष्ट नहीं हो सका है।
छग : आडवाणी-मोदी
लौह पुरूष लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे तथा नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने से छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में भी असर से इंकार नहीं किया जा सकता है। छग ही नहीं देश मे 'सिंधी समाजÓ के मतदाता भाजपा से नाराज होंगे यह तय है क्योंकि सिंधी समाज के ही लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के इस्तीफा दे दिया है तो एक दूसरे बड़े नेता राम जेठमलानी को हाल ही में भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने पार्टी से निस्कासित कर दिया है। छग में सिंधी समाज के मतदाताओं की अच्छी संख्या है। इधर भाजपा में पहले से उपेक्षित चल रहे अल्प संख्यक समुदाय के मतदाता भी नरेन्द्र मोदी को हाल ही में दी गई जिम्मेदारी के बाद कुछ नाखुश है। यदि यह वर्ग एकजूट हो जाएगा तो भाजपा को नुकसान राज्य में भी हो सकता है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा वरिष्ठ सांसद नेता रमेश बैस, राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय, सांसद दिलीप सिंह जूदेव, भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती करूणा शुक्ल आदि आडवाणी समर्थक है। साथ ही भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार के मुखिया डा.रमनसिंह से इनके मतभेद जाहिर हो चुके है यही नहीं अपनी ही पार्टी की सरकार में अपनी ही उपेक्षा से नाराज चल रहे है। इधर भाजपा सरकार के प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से भी नरेन्द्र मोदी से 'संबंधÓ किसी से छिपे नहीं है। छग के पहले नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में पर्यवेक्षक बनकर आये नरेन्द्र मोदी के सामने जो विरोध हुआ था उसी के बाद बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडे, अजय चंद्राकर और देवजी पटेल पर निलंबन की गाज गिरी थी। जाहिर है कि मोदी-आडवाणी एपीसोड से बृजमोहन खेमा भी खुश नहीं होगा। हां एक बात जरूर है कि राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने, मोदी के पार्टी में और मजबूत बनकर उभरने से डा.रमनसिंह खेमा जरूर उत्साहित है। क्योंकि उनको विरोधी खेमा पार्टी में कुछ कमजोर हो रहा है। बहरहाल 'अप एण्ड डाऊनÓ ही का नाम ही तो राजनीति है।
प्रदेश कांग्रेस में क्या!
प्रदेश कांगे्रस में भी क्या चल रहा है यह आम कार्यकर्ता की समझ के बाहर है पर वह महसूस तो कर रहा है कि कुछ न कुछ तो चल रहा ही है। पं. श्यामाचरण शुक्ल की मूर्ति की राजिम में स्थापना के कार्यक्रम में अजीत जोगी को आमंत्रण नहीं मिलने के बावजूद दिग्विजय सिंह के साथ डा. रेणु जोगी, अमित जोगी का विमान से रायपुर आना, अमितेष शुक्ल के घरभोज में भी रेणु-अमित का शामिल होना कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अजीत जोगी के जन्मदिन पर अमितेष शुक्ल द्वारा सागौन बंगले में जाकर जोगी को बधाई देना तथा पिता की मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम में नहीं बुलवाना भी समझ के बाहर है।
हाल ही में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी प्रतापगढ़, नजफगढ़ आदि का उल्लेख कर बाहरी लोगों से छत्तीसगढ़ का लाभ नहीं होने संबंधी संबोधन और प्रतिउत्तर में दिग्विजय सिंह द्वारा नक्सली हिंसा में शहीद उदय मुदलियार को कर्नाटक का होने की बात करना चर्चा में रहा। रात में अमित जोगी की दिग्विजय सिंह से 'गुप्तगूÓ भी चर्चा में रही। बाद में कार्यकारिणी अध्यक्ष डा. चरणदास महंत का अजीत जोगी के बयान पर सफाई देना कि  यह दिग्विजय सिंह के नहीं 'डा. रमनसिंह आदि के खिलाफ थाÓ यह भी आम कार्यकर्ता को हजम नहीं हो रहा है।
राजनीति के जानकार कहते है कि भीतर ही भीतर कोई 'राजनीतिक खिचड़ीÓ जरूर पक रही है। सूत्र तो कहते है कि दिग्विजय सिंह को किसी ने छत्तीसगढ़ से अगला लोकसभा चुनाव लडऩे की भी सलाह दे दी है हालांकि दिग्गी राजा ने हंसकर टाल दिया है। वैसे दिग्गी राजा की हाल फिलहाल छत्तीसगढ़ में सक्रियता से नये राजनीतिक समीकरण बन रहे है।
नक्सली ङ्क्षहसा औार बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर में हाल ही में नक्सली हिंसा से नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित 30 लोगों की मौत हो गई है वहीं विद्याचरण शुक्ल अभी भी दिल्ली में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। बस्तर की इस हिंसक नक्सली वारदात से भाजपा सरकार की नीव हिल गई हैं। कांग्रेसियों के प्रति हमदर्दी उभर रही है तो भाजपा की सरकार के प्रति आक्रोश भी उभर रहा है सुरक्षा चूक के लिये वैसे सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और सरकार ने चूक स्वीकार भी कर ली है।
यह तो तय है कि पिछले विस चुनाव की तरह कांग्रेस को इस बार एक सीट से संतोष नहीं करना पड़ेगा कांग्रेसी सीट निश्चित ही बढ़ेगी वहीं तीसरा मोर्चा में एनपीसी कम्युनिस्ट पार्टी, भंजदेव परिवार के लोग भी वहां के परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में तो है वही विधानसभा में अपना खाता भी खोल सकते है।
जाहिर है ऐसे में भाजपा को ही नुकसान होगा। इस बार बस्तर चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता बलीराम कश्यम नहीं होंगे तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र से ही अगली सरकार के भाग्य का फैसला होगा यह इस बार भी तय माना जा रहा है। इधर कांग्रेस अपनी परिवर्तन यात्रा 16 जून से बस्तर के उसी स्थान से शुरू करने जा रही है जहां नक्सली वारदात में 30 लोगों की मौत हुई थी। केशलूर से शुरू होने वाली इस परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आने के संकेत मिल रहे हे तो समापन पर श्रीमती सोनिया गांधी के आने की चर्चा अभी से हैं। दिल्ली की बैठक में परिवर्तन यात्रा शुरू करने पर सहमति भी बन चुकी है।
और अब बस
0 लालकृष्ण आडवाणी की उपेक्षा तो छग में पहले भी दे चुकी है। सिंधी समाज के कार्यक्रम में आडवाणी को छोड़कर पहले भाषण देकर प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता राजनांदगांव चले गये थे।
0 अजीत जोगी कहते है कि भाजपा अब राम (राम जेठमलानी) और कृष्ण (लालकृष्ण आडवाणी) से भी अब दूर हो रही है।

आग से दोस्ती उसकी थी जला घर मेरा

दी गई किसको सजा और खता किसकी थी

बस्तर सदियों से अपनी संस्कृति, सभ्यता के लिये अपनी पहचान पूरी दुनिया में बनाये रखा था। यहां इंद्रावती का जल आज भी इस बात की गवाही देता है कि कितनी सहज प्रवृत्तियों से यह अंचल जी रहा है। राग-द्वेष का नाम यहां नहीं है लोक शब्द और संस्कृति का महत्व अंचल के लिये  सनातन और शाश्वत है। यहां के लोक गीतों, लोक संगीतों और नृत्यों में बस्तर का जनजीवन मुखर हो उठता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि बस्तर इस धरती पर अपना अनूठापन लिये हुए है। बस्तर ने अगर करवट नहीं बदली तो केवल यही कारण है कि यहां के लोग नितांत सहज और भोले हैं। यहां के लोगों के भोलेपन का एक उदाहरण हमेशा चर्चा का विषय रहता है। किसी आदिवासी को किसी छोटे-मोटे अपराध में पुलिस जवान गिरफ्तार करके रस्सी से बांधकर अपने साथ थाने ले जा रहा था। राह में जंगल में अधिक शराब पीकर वह वेसुध हो गया तब बस्तर का वह आदिवासी उस वेसुध पुलिस वाले को कंधे में डालकर थाने लेकर पहुंच गया और स्वयं को भी थाने के हवाले कर दिया।
बहरहाल सुरम्य और सदाबहार और निस्तब्ध वनों की खुशबू, सरल और सारा जीवन बिताकर अपनी संस्कृति और सभ्यता में रचे बसे संसार में एक खौफनाक जहर नक्सलियों ने घोल दिया है। सदाबहार वनों में अब बारूद की गंध और मानव खून की गंध फैल रही है। कभी ग्रामीणों के 'दादाÓ कहे जाने वाला नक्सलियों ने जन विरोधी कार्य शुरू कर दिया है। सुरक्षा, ग्रामीण तथा राजनेताओं को निशाने पर अब नक्सलियों ने ले लिया है। आईबी के संचालक छत्तीसगढ़ में राज्यपाल बनने के बाद अब आंधप्रदेश में राज्यपाल की जिम्मेदारी सम्हाल रहे नरसिम्हन साहब ने छत्तीसगढ़ की विदाई के समय साक्षात्कार में मुझसे कहा था कि आखिर नक्सली चाहते क्या हैं यही स्पष्ट नहीं है? यह ठीक है कि सलवा जुडूम आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद नक्सली कुछ अधिक हिंसक हो गये है। छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदात बढ़ी है पर हाल ही में दरभा घाट में जिस तरह निरपराध लोगों को नक्सलियों ने निशाना बनाया इससे यह तो स्पष्ट  हो ही गया कि अब नक्सलियों की कोई आई दिया ेलाजी ही नहीं रह गई है। वैसे नक्सलियों ने कहा है कि वे तो महेन्द्र कर्मा को ही मारना चाहते थे।
 बयानबाजी और मायने
आदिवासी अंचल बस्तर के दरभा की जीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन को उड़ाने का प्रयास किया, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार जैसे लोकप्रिय नेताओं सहित करीब 30 लोगों की हत्या कर दी। पर बस्तर से नक्सलवाद के खात्में की जगह अब कांग्रेस-भाजपा की निगाह अगले चुनाव पर है। नक्सली वारदात से लाभ-हानि का आकलन किया जा रहा है। कांग्रेस और प्रदेश की भाजपा सरकार में शामिल लोग जिस तरह की बयानबाजी रक रहे है, जिस स्तर पर बयानबाजी कर रहे है, वह निश्चित ही दूख के इस समय में उचित प्रतीत नहीं हो रही है। सियासत की राजनीति निश्चित ही आमजन को रास नहीं आ रही है। अभी तो मृतक लोगों की तेरहवी भी नहीं हो सकी है। नक्सली हमले में नक्सलियों का हाथ था यह तो तय हो चुका हे पर उसके पीछे कौन था इसको लेकर सियासत शुरू है। कांग्रेस के एक मात्र लोकसभा सदस्य और केंद्र सरकार में मंत्री चरणदास महंत ने आरोप लगाया है कि इस वारदात के पीछे भाजपा और मुख्यमंत्री का हाथ है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो घटना के समय मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स सार्वजनिक करने की मांग ही कर डाली है।
वैसे भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है। पड़ोसी राज्य म.प्र. के भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने तो इस नक्सली वारदात में अजीत जोगी का हाथ होने की आशंका ही जाहिर कर दी है। इधर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुश्री मीनाक्षी लेखी ने एक इलेक्ट्रानिक चैनल में वारदात में आये नक्सलियों द्वारा तेलगू में बातचीत करने पर उन्हें आंध्र्रप्रदेश का होने का हवाला देकर वहां कांग्रेस की सरकार होने की बात करके एक नई चर्चा को जन्म दिया है। इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता तथा पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में चर्चा में रहे अजय चंद्राकर ने वारदात के पीछे एक कांग्रेस नेता के होने का शक जाहिर करते हुए बस्तर के एक मात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा के नार्काे टेस्ट की मांग कर डाली है। भाई अजय चंद्राकर पिछले विस चुनाव में पराजय के बाद लगता है कि बहुत कुछ भूल चुके है। राजनांदगांव जिले के मानपुर क्षेत्र में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौब की नक्सलियों ने हत्या की थी तब भी कई तरह की चर्चा शुरू हुई थी। तब शक के दायरे में आने वालों के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई थी, दंतेवाड़ा जेल ब्रेक देश का सबसे बड़ा नक्सली जेल ब्रेक था तब तत्कालीन जेलर के नार्को टेस्ट कराने की सलाह भाई अजय ने सरकार को नहीं दी थी। सीआरपीएफ के 76 जवान एक साथ शहीद हो गये थे और सभी आरोपी न्यायालय से रिहा हो गये तब जांच अधिकारी के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई। बिलासपुर में पुलिस करतान ने आत्महत्या कर ली या संदिग्ध परिस्थितियों में उकनी मौत हुई तब उनके मृत्युपूर्व लिखे पत्र के आधार पर दोषियों की नार्को टेस्ट कराने की जरूरत उनकी सरकार ने नहीं समझी तब अजय चंद्राकर कहां थे...।
 जान बचाना गलत था क्या!
एक गांव में रहने वाला विधायक कवासी लखमा ने यदि नक्सली हमले के बाद गोड़ी में नक्सलियों से बातचीत की एक  मोटर सायकल में सवार होकर घटनास्थल में अपनी जान बचाने निकल भागे तो क्या वह शक के घेरे में है। उन्हें क्या अपनी जान बचाने की जगह नक्सलियों के सामने निहत्थे खड़े होकर अपनी जान भी दे देना था। हर व्यक्ति को अपनी जान बचाने का अधिकार है। अजीत जोगी को भाजपा के कुछ नेता निशाना बना रहे हैं, उन्हें साजिश में शामिल होने का आरोप मढ़ रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि क्या उनके कहने से क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर जिन्हें चूक के कारण भाजपा की प्रदेश सरकार ने हटा दिया है। श्री अजीत जोगी के आदेश पर सुरक्षा दस्ता तैनात करने में कोताही की थी? यदि ऐसा था तो फिर तो यही कहा जा सकता है कि अघोषित तौर पर सरकार के मुखिया अजीत जोगी ही है। सरकार किस पार्टी की है छत्तीसगढ़ में? जांच का जिम्मा एक आई ए को है, राज्य सरकार भी न्यायिक जांच करा रही है, परिणाम आने के बाद इस वारदात का खुलासा हो सकेगा, इसके पहले बिना सिर पैर की बयानबाजी व्यक्तिगत लांछन लगाना उचित भी नहीं है फिर अभी तो मृतकों की चिताओं के अंगारे भी दहक ही रहे हैं। उनके परिजन अभी भी शोकाकुल है ऐसे में भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य लोगों को अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए।
गिल और बयान
पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन ब्लूस्टार के हीरो तथा सन 2006 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बतौर सुरक्षा सलाहकार के.पी.एस. गिल ने हाल ही में दरभा की जीरम घाटी में हमले के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर की गई टिप्पणी चर्चा में है। गिल का कहना है जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में बतौर सुरक्षा सलाहकार नक्सली उन्मूलन की योजना बनाई थी तब डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि वेतन लो, मौज करो। उन्होंने एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया कि जब नक्सली क्षेत्र में पदस्थ पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि बस्तर में उनके जिले में केवल 5 प्रतिशत क्षेत्र में उनका जोर है 95 प्रतिशत क्षेत्र में नक्सलियों का आदेश चलता है और इसकी लिखित जानकारी उपर भेजी गई तो उपरी लोगों ने उन्हें फटकार लगाई थी। बहरहाल न जाने किस सरकारी अधिकारी या राजनेता की सलाह पर डॉ. रमन सिंह ने केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाया था। गिल को वैसे फील्ड का विशेष अनुभव नहीं था फिर बस्तर के जंगल और नक्सलियों के गोरिल्ला वार की भी विशेष जानकारी नहीं थी। खैर छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल को उस समय मुख्यसचिव ने लगभग बराबर वेतन तथा सुविधाएं मुहैया कराई गई थी।
वैसे गिल के छग आगमन के साथ ही 60 लाख का खर्च हुआ था। करीब 60 हजार मासिक वेतन तया था 16 लाख की बुलेटप्रुफ एम्वेसडर कार खरीदी गई थी, उनकी सुरक्षा के लिये चार वाहन लगाये गये थे, पुलिस आफिसर मेस में उनकी सुरक्षा के लिये एक इंस्पेक्टर, 2 सब इंस्पेक्टर , 8 हथियारबंद जवान तैनात रहते थे वहीं जब से प्रवास पर जाते थे तो एक-पांच आगे तथा एक-पांच सुरक्षा गार्ड पीछे तैनात रहता था। वाहन चालक मिलाकर दो दर्जन स्टाफ साथ रहता था जिसका मासिक खर्च डेढ़ लाख के करीब आता था। केवल दिल्ली आने जाने का उनका हवाई बिल भी लाखों का हो गया था। एक बार जगदलपुर और एक बार सरगुजा जाकर उन्होंने वहां के पर्यटन क्षेत्रों का दौरा किया, कुछ ही बैठकों में वे शामिल हुए और छत्तीसगढ़ के खाते में नक्सली उन्मूलन का रिजल्ट आया शुन्य! अब वे कुछ भी आरोप डॉ. रमन सिंह पर लगाये और जवाब में डॉ. रमन सिंह कुछ भी कहे, छत्तीसगढ़ को आर्थिक क्षति ही पहुंची केपीएस गिल के सुरक्षा सलाहकार बनने से?
और अब बस
ठ्ठ माओवादी विचारधारा से प्रेरित होकर जनता की सेवा में उतरे महेन्द्र कर्मा की उसी विचार धारा से जुड़े कुछ लोगों ने हत्या कर दी।
ठ्ठ भाजपा ने शिवरतन शर्मा, अजय चंद्राकर, सच्चिदानंद उपासने ओर संजय श्रीवास्तव, श्रीचंद सुदरानी को प्रदेश प्रवक्ता बनाया है। सूत्र कहते हैं कि तीनों विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं... क्या प्रवक्ताओं को प्रत्याशी बनाया जाता है...!
ठ्ठ डॉ. चरणदास महंत और रविन्द्र चौबे परिवर्तन यात्रा में शामिल क्यों नहीं हुए... भाजपा का आरोप। वैसे गरियाबंद के पास पटेल के काफिले पर जब पहली बार नक्सली हमला हुआ था तब भी तो रविन्द्र चौबे नहीं गये थे।
कोई खुशियों की चाह में रोया
कोई दुखों की पनाह में रोया
अजीब सिलसिला है ये जिंदगी का
कोई भरोसे के लिये, तो कोई भरोसा करके रोया

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने एक राजनीतिक पार्टी कुछ नेताओं को घेरकर अधाधुंध गोलियां चलकार लहूलुहान कर दिया। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला किसी राजीतिक पार्टी ने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है बस्तर में सलवा जुडूम की शुरूवात करने वाले महेन्द्र कर्मा और नक्सलियों के बीच कुछ वर्षों से —— की लड़ाई चल रही थी। अवसर देखकर नक्सलियों ने उन्हें गोली मारकर छलनी कर दिया पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल से नक्सलियों की क्या दुश्मनी थी यह समझ से परे है। अविभाजित म.प्र. और छत्तीसगढ़ पृथक राज्य में करीब 7-8 साल गृहमंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल चुके पटेल तो कभी भी नक्सलियों की हिट लिस्ट में नहीं रहे। गरियाबंद से किसान सम्मेलन से लौटते समय उनके काफिले पर हमला हुआ था। तब नक्सलियों ने घायल लोगों का इलाज भी किया था। फिर यदि हाल-फिलहाल नक्सलियों से कुछ अरावत हुई भी होगी तो उनके बेटे दीपक का हत्या नक्सलियों ने क्यों की। 84 वर्षीय विद्याचरण शुक्ल तो नक्सलवाद पर कम ही टिप्पणी करते थे वे तो वैसे भी कुछ वर्षों से सत्ता से दूर है, वृद्ध नेता को नक्सलियों द्वारा गोली मारना भी समझ के परे है। राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार की भी हत्या का नक्सलियों के पास कोई उद्देश्य रहा होगा ऐसा लगता नहीं है।
नक्सलियों ने पहले परिवर्तन यात्रा को एक ट्रक उड़ाकर रोका फिर एक विस्फोट किया इसके पहले सड़क पर एक पेड़ काटकर रास्ता बंद कर दिया था। पहला वाहन तो विस्फोट का शिकार हो गया पर नक्सलियों ने दूसरे वाहन से सबसे आखरी वाहन जिस पर विद्याचरण शुक्ल सवार थे सभी वाहनों पनर एके 47, जैस अत्याधुनिक हथियार से अधाधुंध फायर किया जाहिर है कि उनका उद्देश्य परिवर्तन यात्रा में शामिल सभी लोगों की हत्या करना था पर कुछ लोगों को तो उन्होंने छोड़ दिया जिसमें विधायक कवासी लखमा प्रमुख है। 9 साल से सत्ता से दूर कांग्रेसियों से आखिर नक्सली नाराज क्यों थे?
वैसे इतनी अधिक संध्या में नक्सलियों के जमावड़े की सूचना भी गुप्तचर शाखा को नहीं मिलना भी कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। पूर्व कें्रदीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को 3 गोली लगने के बाद भी करीब 3-4 घंटे तक पुलिस प्रशासन का नहीं पहुंचना, 108 एंबुलेंस का काफी देर से पहुंचना, घटना स्थल से ही आधे किलोमीटर दूर नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र की लाश पड़ी होने की सूचना मीडिया कर्मी की खबर के बाद प्रशासन का सक्रिय होना भी गंभीर मामला है। वैस सूत्र रहते है सरकार की विकास यात्रा जब बस्तर में निकली तो करीब 4 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात थे पर जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकली तो वहां सुरक्षा बल का अता-पता नहीं था। केवल नेताओं के सुरक्षा कर्मियों ने ही नक्सलियों का मुकाबला किया और गोली खत्म होने के कारण खुद शहीद हो गये और अपने नेताओं की सुरक्षा करने में भी असमर्थ रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के गनमैन, नंदकुमार पटेल के गनमैन और जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त महेन्द्र कर्मा के सुरक्षा कर्मी आखिर कितनी देर घात लगाकर तैयारी से आये नक्सलियों का कितनी देर मुकाबला करते।
सुकमा में परिवर्तन यात्रा के लौट रहे कांग्रेसी काफिले पर घात लगाकर दरभा-जीरम घाटी पर नक्सलियों द्वारा की गई गोलबारी से आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा, राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार , प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा म.प्र. और छत्तीसगढ़ के करीब 8 वर्षों तक गृहमंत्री रहे नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दीपक पटेल सहित लोगों की हत्या तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल पर जानलेवा हमा करके नक्सलियों पर कुठाराघात किया है वहीं यह भी जाहिर करने का प्रयास किया है कि बस्तर क्षेत्र में उनकी समानांतर सरकार है। राज्य सरकार का अस्तित्व केवल कागजों पर ही सीमित है।
नक्सलियों ने पहले ही भाजपा की विकास यात्रा और कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को लेकर धमकी दी थी लेकिन फिर भी सुरक्षा बल की सक्रियता नहीं होगा भी आश्चर्य जनक ही है।
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार गठित हुई है उसके बाद से नक्सली वारदातों में वृद्धि हुई है। कुछ ऐसी बड़ी वारदात हुई है जिससे छत्तीसगढ़ की चर्चा भारत ही नहीं विश्व में भी हुई है। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में 76 सीआरपीएफ के जवानों की हत्या कर दी। यह भी विश्व में सबसे बड़ी नक्सली वारदात थी। पुलिस ने कुछ नक्सलियों को गिरफ्तार कर प्रकरण भी बनाया पर न्यायालय में पुलिस अपना पक्ष सही तरह से नहीं रख सकी और सभी आरोपी नक्सली न्यायालय से बरी हो गये क्या इस पर सही विवेचना नहीं करने वालों के खिलाफ सरकार ने कार्यवाही की नहीं...।
16 अप्रैल 2007 को रानीबोरली में नक्सली हमल से 49 लोगों की मौत हुई, 17 जुलाई 07 को दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने 25 लोगों की हत्या कर दी।
दंतेवाड़ा क जेल में नक्सलियों ने 299 कैदी बंदी को जेल से भगाने का कमा किया यह भी देश में जेलब्रेक की सबसे बड़ी नक्सली वारदात रही पर कार्यवाही केवल तत्कालीन जेल प्रभारी के खिलाफ की गई उस पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया पर वह न्यायालय से बरी हो गया क्योंकि राजद्रोह का मुकदमा चलाने के पूर्व सरकार से विधिवत अनुमति ही नहीं ली गई थी इस मामले में भी सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी।
राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित कुछ जवानों की हत्या मानपुर क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा की गई उसके बाद भी सरकार ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं कि जबकि उस समय तरह-तरहकी चर्चा आम थी।  सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेमन तो रिहा हो गये पर अपहरण किन परिस्थितियों में हुआ इसकी समीक्षा अभी तक नहीं हो सका है।
बस्तर के राहीगर नाम से चर्चित तथा सलवा जुडूम आंदोलन के प्रणेता महेन्द्र कर्मा सहित उनके रिश्तेदारों पर नक्सलियों ने कई बार हमला किया उनको कहा रिश्तेदार भी शहीद हो गया, पूर्व सांसद वलीराम कश्यप के पुत्र की भी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। ग्रामीणों तथा सुरक्षाबल के लोगों की हत्या तो अब बस्तर में आम हो गई है। पर कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने एक बार पुलिस मुख्यालय में बैठक लेकर नक्सली क्षेत्र में पुलिस के आला अफसरों को रात गुजारने का आदेश दिया था पर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ अफसर रात नहीं कितने दिन नक्सली क्षेत्र में गुजारे यह पता आसानी से लगाया जा सकता है।
कभी छत्तीसगढ़ में विशेष सलाहकार बनाकर केजीएस गिल को लाकर प्रयोग किया गया तो कभी भी छत्तीसगढ़ में पदस्थ नहीं रहने वाले स्व.ओपी राठौर को पुलिस महानिदेर्शक बनाकर 'सलवा जुडूमÓ अभियान चलाया गया, कभी आईबी में कई साल गुजारने वाले विश्वरंजन को डीजीपी बनाकर भी नया प्रयोग किया गया। वहीं नक्सली मामलों के जानकार तथा बस्तर में पहली बार मतदान कराकर केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा सम्मानित संत कुमार पासवान नक्सली फील की जगह होमगार्ड, जेल आदि में पदस्थापना कर भी सरकार ने प्रयोग किया। सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस मुख्यालय सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कितने अफसरों में नक्सलवाद या नक्सल अभियान की जानकारी है। कितने अफसर नक्सली क्षेत्र में पदस्थ रहें है।
और अब बस
० सलवा जुडूम आंदोलन के कारण महेन्द्र कर्मा की जान चली गई, हजारों आदिवासी अपने घर-बार प्रदेश से वंचित हो गये, एक टिप्पणी तो सलवा जुडूम का लाभ किसे मिला...।
० भाजपा के लोग आरोप लगाते है कि नक्सलियों को कांग्रेस का समर्थन है। हाल फिलहाल की घटना ने साबित कर दिया है कि नक्सली किसी के नहीं है।

Saturday, May 4, 2013

वह सरफिरी हवा थी,
सम्हलना पड़ा मुझे
मैं आखरी चिराग था,
जलना पड़ा मुझे

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के वोटों का गणित सत्ता की ओर तथा सत्ता से विमुख करा सकता है। नये राज्य में सत्ता की चाबी आदिवासी क्षेत्रों के पास ही है। नया राज्य बनने के बाद आदिवासी न जाने क्यों कांग्रेस से रुठ गये हैं वही भाजपा के करीबी हो गये हैं पिछले 2 विधानसभा चुनावों में आदिवासियों ने भाजपा का समर्थन किया। वैसे आदिवासी क्षेत्रों में भारी मतदान के कारणों का भी खुलासा अभी तक नहीं हो सका है।
छग में पिछले 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले मात्र 39 हजार 596 मत अधिक हासिल करके भाजपा ने 19 सीटों पर कब्जा किया था और कांग्रेस 10 सीटों पर ही अपनी जीत दर्ज कर सकी थी। 2003 के विस चुनावों छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा क्षेत्र में 34 आदिवासी वर्ग के लिये सीट आरक्षित थी कुल 50 विधायक भाजपा के चुनकर आये थे जिसमें 25 विधायक आदिवासी क्षेत्रों से आये थे। जबकि कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी और 9 विधायक आदिवासी थे।
2008 के विस चुनाव में परिसीमन के कारण आदिवासी क्षेत्रों की संख्या 29 हो गई थी। इस विस चुनाव में भाजपा को 50 सीटें मिली थी जिनमें आदिवासी सीटों की संख्या 19 थी। वही कांग्रेस को 10 आदिवासी क्षेत्रों में सफलता मिली थी इस हिसाब से सीटें घटने के बाद भी कांग्रेस की आदिवासी क्षेत्र में एक सीट बढ़ी थी।
2008 में 19 आदिवासी सीटों में भाजपा को 12 लाख 7 हजार 982 मत मिले थे तो कांग्रेस 10 सीटों में विजयी रही थी और उसे 11 लाख 68 हजार 386 मत मिले थे। यानि 2008 के विस चुनाव में भाजपा 19 सीटें ले सकी थी और कांग्रेस 10 सीटों पर विजयी रही थी पर मतों का अंतर मात्र 39 हजार 596 का ही थी। कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस में मामूली अंतर से परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं।
भाजपा और गुटबाजी
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को कुछ ही महीने बाकी है। कांग्रेस, भाजपा, बसपा सहित तीसरा मोर्चा के नाम पर कुछ राजनेता तथा राजनीतिक पार्टी सक्रिय हो गई हैं। सत्ता धारी दल भाजपा में में भी गुटबाजी है यह बात और है कि अनुशासन के डंडे के चलते बात बाहर नहीं आ पाती है वही कांग्रेस के बड़े नेता तो गुटबाजी को सार्वजनिक भी करते रहते हैं। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, एनसीपी, एनपीपी (संगमा), कम्युनिस्ट पार्टी, मुक्ति मोर्चा, बसपा आदि सभी दल तीसरा मोर्चा बनाकर कांग्रेस-भाजपा को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं।
सत्ताधारी दल भाजपा में कभी-कभी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती रहती है। यह बात और है कि छग बनने के बाद प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता नंदकुमार साय, शिवप्रताप सिंह, सोहन पोटाई आदि हासिये पर हैं तो डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल ननकीराम कंवर, रामविचार नेताम कभी-कभी अपना विरोध प्रकट कर ही देते हैं। गृहमंत्री ननकीराम कंवर के तो विवादास्पद, सरकार विरोधी बयान सुर्खियां बनते रहते हैं। बस्तर तथा सरगुजा ही भाजपा की सरकार बनाने का प्रवेश द्वार है और यहां के आदिवासी तथा गैरआदिवासी नेता भी उपेक्षा से दुखी हैं। छत्तीसगढ़ में पहले आदिवासियों को 20' आरक्षण दिया जाता था उसे बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया गया है फिर भी आदिवासी समाज का बड़ा वर्ग सरकार से नाराज है। प्रदेश के 18 आदिवासी संगठनों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय संयोजक और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी वीपीएस नेताम छत्तीसगढ़ में 'झारखंड फार्मूलेÓ को लागू करने पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि यदि झारखंड में 26' आदिवासियों की आबादी के बाद भी आदिवासी समाज को शिबू सोरेन , बाबूलाल मरांडी, मधु कोडा और अर्जुन मुण्डा मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं!
वैसे डॉ. रमन सिंह सरकार की उपेक्षा से पिछड़ा वर्ग के नेता तथा छग के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस, बिलासपुर के सांसद, जशपुर सरगुजा क्षेत्र के निवासी दिलीप सिंह जूदेव, भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी श्रीमती करुणा शुक्ला भी कम नाराज नहीं हैं।
कांग्रेस और गुट
अब सवाल कांग्रेस पार्टी का है। कांग्रेस में बड़े नेताओं की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का एक बड़ा गुट है जिसके कुछ विधायकों, पूर्व विधायकों, युवा वर्ग सहित महिलाओं की संख्या अधिक है। दूसरा गुट मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, डॉ. चरण दास महंत, रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल, सत्यनारायण शर्मा का है। दूसरे गुट में नेता कभी-कभी  साथ-साथ नजर आते हैं कभी अलग-अलग नजर आते हैं। वैसे सभी नेताओं का गुट मिलाकर भी अजीत जोगी के गुट के बराबर भी नहीं पहुंचता है। वैसे अजीत जोगी विरोधी गुट का नेतृत्व डॉ. चरणदास महंत कर रहे हैं और उनके पीछे दिग्विजय सिंह का हाथ है ऐसा समझा जा रहा है। बहरहाल कांग्रेस में बड़े नेता गुटबाजी का शिकार हैं पर कभी-कभी सभी एक मंच पर भी दिखाई दे जाते हैं तथा 'हम साथ-साथ हैंÓ्र यह संदेश भी देना चाहते हैं। वैसे अजीत जोगी का कहना है कि कांग्रेस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है इसमें मतभेद नहीं मतभेद हो सकता है। हमारी नेता सोनिया गांधी ही है। भाजपा में तो उनका नेता राजनाथ सिंह हैं, आडवाणी हैं, सुषमा स्वराज हैं, नरेन्द्र मोदी हैं , नितिन गडकरी हैं, अरुण जेटली हैं यह तय नहीं है। जहां तक प्रदेश की बात है तो मंत्री बृजमोहन अग्रवाल-राजेश मूणत की तकरार किसी से छिपी नहीं है। धरमलाल कौशिक-अमर अग्रवाल, सरोज पांडे-प्रेमप्रकाश पांडे का झगड़ा कई बार सार्वजनिक हो चुका है। रमन सिंह के खिलाफ ही उनके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य भी हैं। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में गुटबाजी का दीमक अधिक है।
महिला आयोग का फरमान
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के कड़े रूख के चलते कई निजी संस्थान दुविधा में हैं। आयोग ने शाम 6 बजे के बाद महिलाओं से काम लेने वाले व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने के संकेत दिये हैं। अब शाम 6 बजे के बाद महिलाओं से काम लेना अपराध माना जाएगा। वैसे महिला आयोग के इस आदेश के बाद प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों स्थित शापिंगमाल, सुपर मार्केट, कपड़ों, साड़ियों और स्वर्णाभूषणों के शो रूम में कार्यरत महिलाओं सहित प्रबंधन के सामने कई समस्या उभरी है। बताया जाता है कि इन संस्थानों में कार्यरत महिलाएं सुबह 10-11 बजे से रात 9 बजे तक कार्य करती हैं। वैसे रात में काम से छूटकर घर जाती महिलाएं छेड़छाड़ या अन्य तरह की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कभी कभी यह देरी अप्रिय स्थिति भी निर्मित कर देती है। वैसे देखना यह है कि महिला आयोग के शाम 6 बजे वाले आदेश का कलेक्टर कितना पालन कराते हैं।
डीएसपी और बाल विवाह
छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया के समय बाल विवाह होते हैं और इन्हें रोकने हर साल राज्य सरकार संबंधित जिलों के कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित थाना प्रभारियों को निर्देश भी देती है और कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में बाल विवाह की रोकथाम में सरकार को कुछ सफलता भी मिली है पर छत्तीसगढ़ की नई राजधानी स्थित मंत्रालय में बतौर सुरक्षा में तैनात एक अधेड़ पुलिस उप अधीक्षक नाबालिग से शादी करते पकड़ा जाए तो इसे आप क्या कहेंगे।
उत्तरप्रदेश के चंदौली में एक अधेड़ पुलिस अफसर को एक नाबालिग से मंदिर में विवाह रचाते पुलिस ने पकड़ा और दुल्हा-दुल्हन सहित इनके परिजनों को थाने भी ले गई। छत्तीसगढ़ में पदस्थ डीएसपी 50 साल का है तो दुल्हन की उम्र मात्र तेरह साल है। दुल्हा उत्तरप्रदेश के चंदोली के बलुआ थाना क्षेत्र का रहने वाला है। उसकी पत्नी का निधन हो गया है। हालांकि पुलिस को देखकर टोपी और गले में पड़ी वरमाला फेंककर भागने का प्रयास भी किया। उनका कहना है कि लड़की बालिग है जबकि लड़की 10 वीं पास है और उसकी उम्र मात्र 13 साल है। गरीबी के कारण लड़की के पिता ने बेमेल वर से शादी करने का फैसला मजबूरी में लिया था। बहरहाल पुलिस अधिकारी, लड़की के पिता और विवाह कराने पहुंचे पंडित के खिलाफ बाल विवाह अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। जिन पर समाज ने बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी दी है यदि वही ऐसा करें तो क्या कहा जा सकता है। अब तो छग सरकार क्या करती है इसी का इंतजार है।
और अब बस
(1) बृजेन्द्र कुमार को पहले जनसंपर्क आयुक्त के पद से हटाया गया फिर प्रमुख सचिव के पद से मुक्त किया गया। एक टिप्पणी...एक साथ पदमुक्त नहीं किया जा सकता था क्या?
(2) रविशंकर विवि के कुलपति डॉ. पांडे और पत्रकारिता विवि के कुलपति डॉ. जोशी लगातार दो बार कुलपति बनने में सफल रहे।
(3) बस्तर के महाराजा कोमलचंद भंजदेव के सक्रिय होने से नुकसान कांग्रेस को होगा या भाजपा को। अभी चर्चा का विषय है।
(4) आदिवासी नेता अरविंद नेताम 'संगमा की पार्टीÓ के प्रदेश अध्यक्ष बन गये हैं। पिछले चुनाव में अपनी बेटी को वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जिताने में सफल नहीं हो सके थे।
(5) छत्तीसगढ़ की 2 महिला महापौर विधानसभा चुनाव लड़ने इच्छुक है। एक की तो पार्टी विधायक की सीट पर ही नजर है।
सुराज उजालों का मिलता है उनको ही दरवेज
जो खुद को अंधी गुफाओं  में डाल देते हैं

छत्तीसगढ़ राज्य बनने क बाद पहली बार आईपीएल का एक मैच सम्पन्न हो चुका है दूसरा मैच एक मई को होना है। छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े क्षेत्र में आईपीएल का मैच कराकर एक नया रिकार्ड बनाया है यहां के बच्चे-बूढ़े, युवा तथा महिलाएं क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रत्यक्ष देखकर उत्साहित है। और धान के कटोरे में क्रिकेट का जलवा देख रहे है। कभी रायपुर के कमिश्नर के पद पर शेखरदत्त कार्यरत थे तब भिलाई में एक क्रिकेट मैच का आयोजन हुआ था। तब पहली बार कुछ बड़े क्रिकेट खिलाड़ियों को देखने का मौका छत्तीसगढ़वासियों को मिला था। उस समय भी क्रिकेट पूरे रोमांच पर था। तब मोहिंदर अमरनाथ जैसे खिलाड़ी आए थे साथ में कुछ छोटे उभरते हुए खिलाड़ी भी आये थे। तब एक खिलाड़ी के पास एक बच्ची ने आटोग्राफ मांगा था कुछ देर तक खिलाड़ी ने आटोग्राफ नहीं दिया बाद में पता चला कि बिना पैसों के आटोग्राफ देने का रिवाज नहीं है। यही नहीं उस समय दिल्ली के लिये एक ही विमान जाता था। क्रिकेट खिलाड़ियों को रायपुर आकर माना से दिल्ली जाना था। प्रेस क्लब रायपुर के पदाधिकारियों ने प्रेस क्लब होकर माना जाने का प्रस्ताव रखा था तो खिलाड़ी ने कहा था कि हमें प्रेस क्लब आने का कितना पैसा मिलेगा? खैर उस समय की एक घटना का भी उल्लेख जरूरी है। उस समय माना विमानतल में एक कमरा ही व्हीआईपी के बैठने के लिये था। उस समय मि. पिंटो माना विमानतल के प्रभारी थे। उन्होंने क्रिकेट खिलाड़ियों के लिये वह व्हीआईपी कमरा ही नहीं खोला था। एक तो वनडे क्रिकेट शुरआत हुई थी वही दूसरी ओर उस समय की तत्कालीन टीम पाक से मैच हार गई थी। उस समय जावेद मियांदाद पूरे फार्म में थे। पाक से मैच हारने के कारण भी मिस्टर पिंटो नाराज थे। खैर खिलाड़ी बाहर ही समय काटते रहे और फिर विमान से दिल्ली रवाना हो गये।
वैसे छत्तीसगढ़ में अतंर्राष्ट्रीय स्टेडियम के निर्माण के पीछे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की कल्पना थी। उन्होंने युवाओं को छत्तीसगढ़  राज्य बनने का नया उपहार स्टेडियम के रूप में देने की कल्पना की थी और इस कल्पना के पीछे छत्तीसगढ़ के क्रिकेट खिलाड़ी राजेश चौहान की भी भूमिका रही। अजीत जोगी ने अपनी कल्पना को पूरी करने की जिम्मेदारी रायपुर विकास प्राधिकरण के तत्कालीन अध्यक्ष, खेल संघों से जुड़े विमल जैन को सौंपी थी। विमल जैन ने इसके लिये 6 माह में प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया और मोहाली स्टेडियम के डिजाइनर मिस्टर लाम्बा का आर्किटेक्ट के रूप में चयन किया था। मोहाली स्टेडियम सहित कई स्टेडियम का अलोकन कर उसकी खामियों को दूर करके एक नये स्टेडियम की आधारशिला रखी गई और छत्तीसगढ़ का यह वीरनारायण सिंह स्टेडियम विश्व के 170 देशों की निगाह में आ गया है यहां आईपीएल मैच के साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के लिये अब रास्ता आसान हो गया है खैर आईपीएल मैच की व्यवस्था बनाने , कार्य करने के लिये कुछ लोगों को सम्मानित किया गया पर इस स्टेडियम की कल्पना करने, प्रोजेक्ट  रिपोर्ट तैयार करने, आर्किटेक्ट आदि का भी सम्मान तो किया जाना ही था। खैर अभी देर नहीं हुई है। अभी एक आईपीएल का मैच होना है। खैर दलगत राजनीति से खेल को दूर रखने की बात करनेवालों को अपने व्यवहार में भी ऐसा करना चाहिए.
छत्तीसगढ़ और रिकार्ड...
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता था पर राज्य बनने के बाद यह उद्योगों का खौलता कड़ाह बनने की ओर अग्रसर है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार आईपीएल मैच कराकर राज्य सरकार ने इतिहास रचा है। वैसे भी नया राज्य बने के बाद कई इतिहास बने है और उनसे छत्तीसगढ़ का नाम लोगों की जुबान पर आ गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने की घोषणा के बाद ही अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ विद्याचरण शुक्ल समर्थकों ने क्या किया था? यह भी अब इतिहास में जुड़ गया है। भाजपा के विधायकों का कांग्रेस में शामिल होना और दो को मंत्री बनाना भी दलबदल का इतिहास बन चुका है। कांग्रेसी शासन में तत्कालीन राज्यपाल का पुतला भाजयुमो द्वारा दोपहिया वाहन घसीटना भी चर्चा में रहा।
भाजयुमो-भाजपा के आंदोलन में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय, म.प्र. के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर पुलिसिया लाठी चार्ज भी इतिहास बन चुका है।
नक्सली क्षेत्र में सलवा जुडूम आंदोलन, एसपीओ( विशेष पुलिस अधिकारी) की भर्ती, दंतेवाड़ा जेल से 299 नक्सली और कैदियों का जेल ब्रेक तो विश्व रिकार्ड बना चुका है वहीं सीआरपीएफ के 75 जवानों की नक्सलियों के हमले से शहादत, झलियामारी आश्रम में महीनों तक यौन शोषणा रिकार्ड बना चुका है। एक और दो रूपए प्रति किलो में गरीब वर्ग को चावल वितरण, किसानों के धान की सरकारी खरीदी, पीडीएस प्रणाली भी रिकार्ड बना चुकी है। नये जिलों का निर्माण, नई राजधानी का निर्माण और बिना किसी विशेष सुविधा के नई राजधानी में सरकारी कार्यालयों का स्थानांतरण कम चर्चा में नहीं है।
कुछ रिकार्ड ऐसे भी
छत्तीसगढ़ में इंजीनियरिंग कालेज में अध्यापन कराने तथा आयुवेदिक कालेज के सामने एक किराए के मकान में रहने वाले अजीत जोगी का रायपुर में कलेक्टर और उसके बाद नए छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रथम मुख्यमंत्री बनना भी इतिहास बन चुका है। पहली बार कांग्रेस सरकार को हटाने और भाजपा का एक तरह से सहयोग करने का रिकार्ड तो विद्याचरण शुक्ल भी बना चुके है यह बात और है कि एनसीपी, भाजपा होकर वे वापस कांग्रेस में आ चुके हैं। वैसे एक बात की चर्चा भी जरूरी है जब किस्सा कुर्सी का जैसे कुछ मामले आपातकाल के समय विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ लंबित थे तब बतौर निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर अजीत जोगी ने उन्हें आपत्ति अवलोकन खारिज करने के बाद चुनाव लड़ने देने का निर्णय दिया था। महासमुन्द लोकसभा में वहीं विद्याचरण  शुक्ल को अजीत जोगी से पराजित होना पड़ा था। वैसे छत्तीसगढ़ में पति- पत्नी अजीत जोगी, और डा. श्रीमती रेणु जोगी का एक ही सदन को सदस्य होना भी रिकार्ड है। इसके पहले राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उसकी पत्नी रानी पद्मावती देवी के नाम यह रिकार्ड था।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी आयुर्वेदिक कालेज रायपुर में पढ़ाई कर चुके हैं और कालेजों के पीछे छात्रावास में रहते थे। कवर्धा विधानसभा में योगीराज से पराजित होने के बाद मोतीलाल वोरा को उसी साल लोकसभा चुनाव में पराजित कर केन्द्रीय मंत्री और राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में भाजपा की सरकार बनाने और लगातार 2 बार मुख्यमंत्री बनने का भी उनका रिकार्ड है. वे हैट्रिक की तैयारी में है। भाजपा के मुख्यमंत्रियों में उन्हें केवल नरेन्द्र मोदी का रिकार्ड तोड़ना है।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद पूर्व केन्द्रीय मंत्री का सफर तय करने वाले रमेश बैस की राजनीतिक यात्रा वार्ड पार्षद से शुरू हुई. पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री विद्याचरण  शुक्ल को पराजित करने का भी इनका रिकार्ड है। रमेश बैस छग ही नहीं देश के वरिष्ठ सांसद है।
अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर संभाग के आयुक्त पद पर तैनात शेखरदत्त वर्तमान में ्रनए छत्तीसगढ़ के राज्यपाल है। उन्होंने इस समय एक-दो बार बस्तर संभाग के कमिश्नर का पदभार भी सम्हाला था। रायपुर शहर के चारों ओर रिंग रोड, बांस प्लांटेशन, डबरी में मछली पालन आदि उनकी कुछ योजनाएं अभी भी चल रही है। छत्तीसगढ़ के विकास के लिये उस समय छत्तीसगढ़ विकास प्राधिकरण का भी गठन हुआ था और बतौर कमिश्नर उन्होंने उस प्राधिकरण के सचिव पद का भी कार्यभार सम्हाला था।
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुमार का भी छत्तीसगढ़ से  पुराना नाता है। आईएएस बनने के बाद उनकी पहली नियुक्ति बस्तर में हुई थी। और उन्होंने उस दौरान अबूझमाड का भी दौरा किया था तब कई कार्यालयों में चिमनी और लालटेन ही उजाला करने के साधन थे। बाद में अविभाजित म.प्र. के समय सुनील कुमार ने बतौर कलेक्टर का पद भार सम्हाला उस समय महासमुन्द , धमतरी, गरियाबंद, बलौदाबाजार(अब नए जिले) रायपुर जिले के अंतर्गत आते थे। अगले मुख्य सचिव की दौड़ में शामिल विवेक ढांड तो रायपुर विज्ञान महाविद्यालय में ही पढ़ चुके है इधर अगले पुलिस महानिदेशक की दौड़ में सबसे आगे चल रहे गिरधारी नायक भी अविभाजित रायपुर जिले में काफी पहले एडीशनल एसपी (ग्रामीण) के पद पर कार्य कर चुके है उस समय जिले में पुलिस कप्तान के अलावा एक ही ग्रामीण कप्तान होता था शहर की जिम्मेदारी एक सीएसपी के जिम्मे होती थी खैर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कई और भी रिकार्ड बने है उनकी चर्चा फिर कभी...
और अब बस
छत्तीसगढ़ में एडीजी अंसारी यदि रहते तो डीजीपी रामविास के सेवानिवृत्त होने के बाद महानिदेशक तो बन ही जाते पर वे अचानक प्रतिनियुक्ति में क्यों चले गये यही लोगों को समझ में नहीं आ रहा है।
2 डीके अस्पताल स्थित मंत्रालय में आपरेशन थियेटर में मुख्यमंत्री का कार्यालय था और वही से प्रशासनिक सर्जरी होती थी पर आजकल नए मंत्रालय में एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी की सर्जरी से कुछ भ्रष्ट निकम्मे अफसर परेशान है
3 छत्तीसगढ़ के कुछ अफसर कह रहे है कि प्रदेश में अगली सरकार कांग्रेस की बनेगी या भाजपा पुन: जीतकर हैट्रिक बनाएगी यह तो नहीं कहा जा सकता पर एक बात तय है कि अगली सरकार किस पार्टी की बनेगी यह तो अजीत जोगी और उनकी रणनीति ही तय करेगी।

Friday, April 19, 2013



बैठे-ठाले कुछ तो कर,  

और नहीं तो पैदल चल 

हर दल अब यात्रा पर निकले,  

भले ही प्रदेश में हो रहा दलदल


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी परिवर्तन यात्रा निकाल चुकी है, कांग्रेस के बड़े नेता देश में नहीं छत्तीसगढ़ प्रदेश में परिवर्तन कराकर कांग्रेस की सत्ता स्थापित करना चाहते हैं। कभी छत्तीसगढ़ से विजयी कांग्रेसी विधायकों की संख्या के आधार पर अविभाजित म.प्र. में कांग्रेस की सरकार बनती थी पर बड़े भाई यानि म.प्र. से अलग होने के बाद आखिर क्या हो गया कि बड़े भाई म.प्र. और छोटे भाई छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार पिछले 2 बार के विधानसभा चुनावों में नहीं बन सकी है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार बनती आ रही है और अब तीसरी बार तिकड़ी बनाने भाजपा प्रयासरत है। विजय यात्रा पर अब भाजपा निकालने वाली है। 
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास लम्बे समय तक राजनीतिक अनुभव रखने वाले विद्याचरण शुक्ल है तो पूर्व राज्यसभा, लोकसभा सदस्य, छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री तथा आईपीएस , आईएएस रह चुके अजीत जोगी है तो म.प्र. में मुख्यमंत्री , केन्द्रीय मंत्री तथा उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रह चुके वयोवृद्ध नेता मोतीलाल वोरा है। डा. चरणदास जैसे अनुभवी नेता है। महेन्द्र कर्मा जैसे वरिष्ठ आदिवासी नेता है तो परसराम भारद्वाज जैसे वरिष्ठ सतनामी नेता भी है फिर भी कांग्रेस को लगातार दो बार पराजय का सामना करना पड़ा.
इधर भाजपा के पास तो मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह है जो इन नेताओं के मुकाबले राजनीतिक तौर पर कम अनुभवी है। उनके पास तो जाति, समाज के स्तर पर भी बड़े नेताों की कमी भी है। पिछड़े वर्ग के नेता रमेश बैस तो डा. रमन सिंह से अलग-थलग से हैं। सतनामी समाज में पुन्नुलाल मोहिले , विजय कुमार गुरू, डा. कृष्णमूर्ति बांधी आदि है पर इनकी समाज में स्थिति किसी से छिपी नहीं है। आदिवासी क्षेत्र में दखल रखने वाले बलीराम कश्यप अब नहीं रहे वहीं दिलीप सिंह जूदेव भी कम से कम खुले दिल से तो डा. रमन सिंह के साथ नहीं है। मंत्रिमंडल में शामिल ननकीराम कंवर के तो बयानबाजी को लेकर चर्चा उठ रही है कि वे डा. रमन सिंह के साथ है या नहीं, केदार कश्यप, लता उसेण्डी, विक्रम उसेण्डी , रामविचार नेताम की तो अपने क्षेत्र में ही प्रभावी भूमिका नहीं रही है. ऐसे हालत में डा. रमन सिंह रणनीति के बल पर दो बार मुख्यमंत्री बनाया गया है और यदि सरकार अपनी तिकड़ी बनाने में सफल रही तो डा. रमन सिंह की तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी की पूरी संभावना है। 
बहरहाल कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा शुरू हो गई है। अम्बिकापुर से शुरू यात्रा की शुरूआत अच्छी कही जा सकती है। अपनी वृद्धावस्था के चलते झुकी कमर के साथ मोतीलाल वोरा, अपनी धीमे थके हुए कदमों के साथ विद्याचरण शुक्ल, व्हील चेयर्स में अजीत जोगी पहुंचे तो परसराम भारद्वाज सहित नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे तथा अगली बार सरकार कांग्रेस की बनाने की पूरी उम्मीद के साथ नंदकुमार पटेल भी पहुंचे। वैसे म.प्र. के मुकाबले छत्तीसगढ़ की परिवर्तन यात्रा की शुरूआत अच्छी रही। अब वरिष्ठ नेताओं की एकता के पीछे राहुल के तेवर थे, अधिक दिन सत्ता से दूरी थी या सरकार बनने की संभावना थी यह तो नहीं कहा जा सकता पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को एक मंच पर देखकर आम कांग्रेसी जरूर खुश हुए होंगे।
12 जिलों में आसार अच्छे नहीं
गांवों में कृषि, वनभूमि और सामुदायिक उपयोग की जमीन को उद्योगों के लिये अधिग्रहित करने की राज्य सरकार, सरकारी मशीनरी और निवेशकों की नीति के चलते प्रदेश के लगभग 12 जिलों में ग्रामीणों नाखुश है कई जगह तो तनाव की स्थिति भी बन रही है। राईट्स एण्ड रिर्सोसेज इनशिएटिव्ह की रिपोर्ट कहती है प्रदेश सरकार के इशारे पर निजी उद्योगपतियों, निवेशकों के लिये गांवों में सामुदायिक उपयोग की जमीन को उद्योगों के लिये अधिग्रहित किया जा रहा है। प्रदेश के 12 जिलों में करीब 10 लाख हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की कार्यवाही या तो हो चुकी है या चल रही है। आदिवासी तथा नक्सली प्रभावित दंतेवाड़ा में मासी और दुर्ली गांव में 1500 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली गई है। वहां एनएमडीसी, टाटा और एस्सार ने जमीन अधिग्रहण तो किया है पर अभी तक एमओयू के मुताबिक उद्योग स्थापित नहीं किया है, समय सीमा जरूर बढ़ाई जा रही है।
भदौरा की चर्चा भी
भदौरा में भूमि घोटाला का मामला सुर्खियों में है। किसानों की जमीनों की फर्जी ऋण पुस्तिका तैयार कर दलालों द्वारा किसानों की जानकारी के बिना ही तीन कंपनियों को जमीन बेचने का मामला उजागर हुआ है। भदौरा ग्राम में शासकीय और निजी भूमि मिलाकर करीब 60 एकड़ जमीन पिछले 3 साल के भीतर फर्जी तौर पर बिक चुकी है। तीन कंपनियों में एक कंपनी के संचालक एक वरिष्ठ भाजपा नेता के पुत्र है यह तो तय है। वहीं कुछ कांग्रेसी और भाजपा नेताओं को भी दलालों ने फर्जीवाड़ा कर उपकृत किया है। कांग्रेस भदौरा जमीन घोटाले पर राज्य सरकार के एक मंत्री को निशाना बना रहे है तो उक्त मंत्री ने कांग्रेसियों पर आरोप मढकर किसी भी स्तर पर जांच कराने की बात कही है। प्रदेश में सरकार जब उनकी है तो स्वयं भी मुख्यमंत्री से किसी एजेंसी से जांच कराने की मांग तो कर ही सकते हैं।
जे.पी. सीमेण्ट और...
दुर्ग जिले के मलपुरी खुर्द में अपनी भूमि देने के मामले में वहां स्थापित हो रहे जेपी लक्ष्मी सीमेंण्ट प्रबंधन से नौकरी की मांग को लेकर हाल ही में ग्रामीण आक्रोशित हो गये। ग्रामीणों पर आरोप है कि कुछ ही घण्टों में ग्रामीणों ने 600 करोड़ की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचा दिया। बाद में वहां के पुलिस कप्तान और डाक्टर छाबड़ा ने मुख्य आरोपी कुर्रे को भी गिरफ्तार किया, उसके घर से एक रजिस्ट्रर भी जप्त किया जिसमें सीमेण्ट संयंत्र में आग लगाने की योजना थी। खैर पुलिस ने तो 2 देशी बम भी वहीं बरामद कर लिया, कुर्रे नक्सलियों के संपर्क में था यह भी जल्दी ही पता लगा लिया। सवाल यह है कि अप्रशिक्षित ग्रामीण 600 करोड़ की सम्पत्ति को नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं। चर्चा है कि बैंक ऋण लेकर सीमेंण्ट प्रबंधन ने काम शुरू किया था। अप्रैल में पहली किश्त भी देना था पर सीमेंण्ट संयंत्र तो शुरू ही नहीं हो सका है। जहां तक प्रभावितों को नौकरी की बात है तो मलपुरीखुर्द में अधिकांश किसानों से जेपी सीमेंट प्रबंधन की जगह कुछ हरियाणा के लोगों ने जमीन खरीदी और उसे प्रबंधन को बेच दी। सीमेण्ट प्रबंधन का कहना है कि जब हमने किसानों से सीधे जमीन ही नहीं खरीदी तो उन्हें जमीन के एवज में नौकरी देने का सवाल ही नहीं उठता है। किसानों का कहना है कि हमें धोखे में रखकर प्रबंधन ने अपने एजेण्टों के माध्यम से जमीन खरीदी है, किसान कहते हैं कि जमीन हमारी कमाई तुम्हारी, अब नहीं चलेगी। वैसे एडीजी संजय पिल्ले ने जेपी सीमेण्ट में आगजनी की जांच शुरू कर दी है। 
एनएमडीसी और पार्टनर...
बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 20 किलो मीटर दूर ओडि़सा सीमा पर स्थित नगरनार में 16 हजार करोड़ की लागत से बन रहे राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के स्टील प्लांट का निर्माण विवादों में रहा है अब नया विवाद सामने आ रहा है। नया छत्तीसगढ़ बनने के बाद सन 2001 में पूर्व सांसद बलीराम कश्यप के प्रयास से बस्तर में औद्योगिक विकास की शुरूआत हुई. 
सन् 2003 में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने रोमेल्ट तकनीक पर आधारित इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिये भूमिपूजन किया था। भूमिपूजन के बाद ही एनएमडीसी ने कम जमीन होने का बहाना बनाकर अपना वादा तोड़कर नगरनार में मिनी स्पंज प्लांट की स्थापना का मन बनाया। बस्तर में ग्रामीणों के आक्रोश के चलते ही 17 सितम्बर 2008 को तत्कालीन इस्पात मंत्री रामविलास पासवान नगरनार के 3 मिलियन टन क्षमता के इंट्रीग्रेटेड इस्पात संयंत्र की स्थापना की पुन: आधारशिला रखी थी।
अब ग्लोबल टेण्डर कर एनएमडीसी पुन: चर्चा में है। एनएमडीसी ने ग्लोबल टेण्डर बुलाकर 49 फीसदी शेयर स्टील निर्माण में विशेषज्ञता प्राप्त कंपनी को दिए जाने का प्रस्ताव है। इससे निर्माणाधीन स्टील प्लांट पर एनएमडीसी का एकाधिकार नहीं रहेगा इसी बात को लेकर विभिन्न राजनीतिक दल और संगठन अब एनएमडीसी के खिलाफ एकजुट  हो रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जब एमओयू में ज्वाइंट वेंचर की बात नहीं थी तब पब्लिक सेक्टर की कंपनी एमएमडीसी अपने साथ किसी निजी कंपनी को पार्टनर कैसे बना सकती है...। 12 साल से चल रहे इस गडबड़झाले को लेकर ग्रामीण भी आक्रोशित हैं।
और अब बस
भदौरा गांव में जमीन के फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद महिला सरपंच सहित कुछ लोग पता नहीं कहां चले गये हैं।
2 भाजपा के प्रदेश कार्यालय के लोकार्पण समारोह में संगठन मंत्री सौदान सिंह मंच पर नहीं बैठे उनकी नाराजगी का कारण पता लगाने का प्रयास चल रहा है।
3 छत्तीसगढ़ विस चुनावों में नेता प्रतिपक्ष पुन: चुनाव नहीं जीतता है.. वैसे पंचायत मंत्री की वापसी के विषय में भी यही कहा जाता है।
4 छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद दूसरी बार छत्तीसगढिय़ां जनसंपर्क संचालक बनाया गया है। रायगढ़ जिले के मूल निवासी अभी ओमप्रकाश चौधरी बने पहले तिवारी जी संचालक बनाए गये थे. 

Tuesday, April 9, 2013

मैं दहशतगर्द था मरने पर बेटा बोल सकता है
हुकुमत के इशारे पर तो मुरदा बोल सकता है
हुकुमत की तवज्जों चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है

नंदिनी अहिवार में निर्माणाधीन जे.के. लक्ष्मी सीमेण्ट प्लांट में स्थायी नौकरी और जमीन का उचित मुआवजा की मांग को लेकर ग्रामीण उत्तेजित हो गये और प्रदर्शन हिंसक हो गया। आगजनी, तोडफ़ोड़, मारपीट के कारण प्लांट प्रबंधन ने 600 करोड़ के नुकसान का दावा किया है पर यह बाते गले नहीं उतर रही है कि क्या गांव वाले इतने हिंसक होकर कुछ भी समय में करोड़ों की सम्पत्ति को फूंक सकते हैं। वैसे पुलिस और प्रशासन अपना काम कर रह हैं पर इस आगजनी तथा आगजनी के कारणों की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
दुर्ग जिले के अंतर्गत मलपुरी गांव के आसपास बड़े-बड़े फार्म हाऊस है यहां खेती के साथ फल, साग-सब्जी आदि का भी उत्पादन होता है। चर्चा हो रही है कि विधिवत अनुमति के बिना मलपुरी में जे.के. लक्ष्मी प्लांट की आधार शिला रखी गई है। यहां प्लांट के लिये जमीन खरीदी में अनियमितता, स्थायी नौकरी देने के वादे, गांव की सड़क बंद करने, प्लांट के सुरक्षा कर्मियों की दादागिरी, मारपीट को लेकर अक्सर प्लांट प्रबंधन और ग्रामीणों में टकराव होता रहा है। इसकी रिपोर्ट भी थाने सहित कलेक्टर, एसपी के पास पहुंचती रहती है कई बार मध्यस्थता भी हो चुकी है पर हालात जस के तस है।
करीब 2 साल से छुटपुट विरोध कर रहे ग्रामीणों ने करीब पौने 2 माह पूर्व 14 फरवरी को स्थायी नौकरी की मांग को लेकर आंदोलनरत थे। 4 अप्रैल को भी सुरक्षा सुरक्षाकर्मियों और आंदोलनकर्मियों के बीच झड़प हुई और यहा स्थिति सामने आई, पुलिस ने हालांकि जेके. सीमेण्ट संयंत्र के पास दो हेण्डग्रेनेड जप्त करने का दावा किया है पर सवाल यह उठ रहा है कि ग्रामीणों या आंदोलनकारियों ने कुछ ही समय में 600 करोड़ की सम्पत्तियों को नुकसान कैसे पहुंचाया. ग्रामीण कोई प्रशिक्षित नक्सली तो थे नहीं कि उन्होंने योजना बनाकर इस घटना को अंजाम दिया, कहीं इस पूरी घटना के पीछे प्रबंधन की भूमिका तो नहीं थी। बहरहाल  सरकार  ने प्रशासनिक और एडीजी संजय पिल्ले जांच कराने की घोषणा की वैसे इतनी बड़ी घटना के लिये जिसमें कुछ समय के भीतर 600 करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान हुआ है बड़े स्तर की जांच जरूरी है।
सुनील का दिप्वास्वप्न
रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा एक बार फिर नगरवासियों को दिप्वास्वप्न दिखाया जा रहा है। नगर निगम में महापौर, सभापति आदि पद की जिम्मेदारी सम्हाल चुके सुनील सोनी काफी अनुभवी नेता है। जनता की कमजोरी को जानते हैं, विवादित कमल विहार योजना से ध्यान हटाने कुछ नई योजनाओं की शुरूआत की घोषणा कर दी है। शहर की जनता वैसे इन योजनाओं को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़ रही है।
पहले ईएसई कालोनी (जिलीधीश कार्यालय से लगी) के जीर्णोद्वार में राविप्रा लाखों रूपए खर्च कर चुका है अब उसी कालोनी में स्वाभिमान प्लाजा बनाने की घोषणा हाल ही में राविप्रा के बजट में की गई है। राविप्रा दक्षिण कोरिया स्थित सियोल के ग्वांगवामन स्केवेयर की तर्ज पर ईएसई कालोनी में प्रस्तावित छत्तीसगढ़ स्वाभिमान प्लाजा पर 480 करोड़ खर्च करने की योजना बना चुका है। इसके लिये 2013-2014 के बजट में प्रावधान किया गया है। इस मनोरंजन स्थल में प्रवेश पर आम लोगों से तगड़ा शुल्क लिया जाएगा। इस प्लाजा की कमाई से टाटीबंध से तेलीबांधा तथा शास्त्री चौक से स्टेशन चौक के बीच फ्लाईओवर बनाने की घोषणा है।
इस संबंध में राविप्रा की इस कागजी योजना पर एक किस्सा याद आ रहा है। एक व्यक्ति ने अपने पड़ोसी को बताया कि वह एलसीडी लेना वाला है उसके पड़ोसी ने पूछा कि -कब एलसीडी लोगे तो उसने कहा कि जब हम अपना नया मकान बनाएंगे। पड़ोसी ने फिर पूछा कि नया मकान कब बनेगा। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि जब तक पुराना मकान अपने आप नहीं गिर जाएगा। कुछ इसी तरह राविप्रा भी स्वाभिमान माल और फ्लाई ओवर की बात कर रहा है।
सड़क चौड़ीकरण?
नगर निगम ने आमापारा से जयस्तंभ चौक तक सड़क चौड़ीकरण की योजना बनाई थी उसमें तात्यापारा तक तो चौड़ीकरण हो चुका है बस फूल चौक से जयस्तंभ चौक के बीच सड़क चौड़ीकरण होना है, उसके लिये बजट भी स्वीकृत है फिर क्यों सड़क चौड़ीकरण नहीं किया गया यह किसी को पता नहीं है। भाई सुनील सोनी सत्ताधारी दल के एक प्रमुख सदस्य है, राविप्रा के अध्यक्ष है तथा नगर निगम में महापौर, सभापति की जिम्मेदारी सम्हाल चुके है। वे शहर के ह्रदयस्थल जयस्तंभ तक इस सड़क के कुछ मीटर ही चौड़ीकरण कराने पहल करें तो रोज जाम में फंसे लोगों की दुआएं हासिल कर सकते हैं।
राजनांदगांव दौरा करें
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को सपनों का सौदागार कहा जाता है. उन्होंने भी अपने कार्यकाल में रेलवे स्टेशन से शास्त्री चौक होकर कालीबाड़ी तक ओव्हर प्लाई बनाने की घोषणा की थी खैर आमानाका और फाफाडीह स्थित ओव्हर ब्रिज उनकी ही कल्पना के कारण अस्तित्व में आ चुका है।
राविप्रा ने टाटीबंध से तेलीबांधा तथा शास्त्री चौक से स्टेशन चौक तक फ्लाई ओव्हर बनाने की योजना बनाई है। भाई सुनील सोनी कभी राजनांदगांव नहीं गये हैं ऐसा लगता है। राष्ट्रीय राजमार्ग में राजनांदगांव शहर में फ्लाईओव्हर बनाने के बाद उस शहर की यातायात व्यवस्था की दुर्दशा हुई है वह किसी से छिपी नहीं है। मुख्यमंत्री के करीबी वरिष्ठ भाजपाई नेता लीलाराम भोजवानी से तो सुनील सोनी सलाह ले ही सकते है। खैर कुछ कांग्रेसी नेता कहते है कि आगामी विधानसभा चुनाव में शहर से सुनील सोनी भाजपा की टिकट चाहते हैं और यह दिवास्वप्न का उसी से गहरा संबंध है।
17 आईएएएस 10 प्रमोटी
छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश की भाजपा सरकार ने अंतिम फेरबदल किया है। कुछ प्रमुख सचिवों सहित 7 जिलो कलेक्टरों को बदल दिया है वहीं 15 आईएएस अफसरों के प्रभार में भी फेरबदल कर दिया है। नए फेरबदल के बाद प्रदेश के 27 जिलों में 17 जिलों की कमान सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों को सौंपी गई है। इस तरह 10 जिलों में आईएएस पदोन्नत अफसरों के जिम्मे जिलों का प्रभार है। आईएएस और पदोन्नत आईएएस की नियुक्ति के लिये सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह की क्या नीति है इसका खुलासा तो नहीं हो सका है पर कुछ आईएएस और पदोन्नत आईएएस अफसर जरूर जिलों का प्रभार नहीं मिलने से नाखुश है. कुछ तो जिला पंचायतों में सीईओ बनाने से नाराज है. वैसे सरकार की मंशा क्या है यह तो वही जाने पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सीधी भर्ती के आईएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी की तैनाती है तो न्यायाधानी बिलासपुर में सीधी भर्ती के ठाकुर रामसिंह बतौर कलेक्टर पदस्थ है और दुर्ग-भिलाई में भी पदोन्नत ब्रजेश मिश्रा बतौर कलेक्टर कार्यरत है। तो अशोक अग्रवाल मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव में आरपीएस त्यागी जांजगीर जिले कार्यरत है. वैसे राजधानी में हाल ही में तबादले से प्रभावित एक सीधी भर्ती का आईएएस अफसर दुर्ग कलेक्टर बनने प्रयत्नशील है। इधर अन्य प्रमुख जिलों में पदोन्नत आईएएस कलेक्टर के रूप में कार्य कर रहे हैं। खैर आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यदि सरकार ने बतौर कलेक्टर नई नियुक्ति की है या कलेक्टर पद पर यथावत रखा है तो कोई बात तो जरूर होगी।
शराब से पानी तक
हाल ही में राज्यशासन की तबादला सूची में गांधी जी के अनन्य भक्त , गांधीजी के बताए आदर्श पर चलने और चलाने पर यकीन करने वाले भाई गणेश शंकर मिश्रा को आबकारी और विक्रयकर प्रमुख से हटाकर सीधे पीएचई (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी) के प्रमुख के पद पर पदस्थापित कर केदार कश्यप के साथ संलग्न करने की कम से कम मंत्रालय सहित अफसरों में जमकर चर्चा है सत्ता के काफी करीबी रहनेवाले भाई गणेश शंकर मिश्रा इस सरकार में अफसरों की मनचाही पदस्थापना कराने में सक्षम माने जाते थे। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से उनके मधुर संबंध भी किसी से छिपे नहीं थी पर (सम्मान) की भूख ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। महात्मा गांधी को आदर्श मानने वाले भाई गणेश शंकर ने सरकार सहित वेबरेज निगम के अध्यक्ष भाई देवजी पटेल को विश्वास में लिए बिना ही महात्मा गांधी को ब्रांड एम्बेसडर बनाकर विपक्ष के निशाने पर आ गए, वहीं सरकार की किरकिरी कराने भी कोई कोताही नहीं बरती। बताया जाता है कि उनके खिलाफ पार्टी के ही कुछ नेता सहित अफसर लगातार शिकायत भी करते रहे थे। खैर शराब विभाग के प्रमुख को नल बोरिंग विभाग का प्रमुख बना दिया गया है। वैसे भाई गणेश शंकर  को यह तो पता ही होगा कि सरकार के करीबी  रहे पूर्व मुख्य सचिव पी जाय उम्मेन और पूर्व पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन को किस तरह सरकार ने एक झटके में ही समय पूर्व हटा दिया था आपकी तो अभी नौकरी में कुछ समय बचा भी है।
तारण और जनसंपर्क!
रायगढ़ जिले के मूल निवासी ओमप्रकाश चौधरी संचालक जनसंपर्क बन गये है इसके पहले से नगर निगम रायपुर में कमिश्नर रह चुके हैं। राजनांदगांव के कलेक्टर अशोक अग्रवाल इसके पहले संचालक जनसंपर्क रह चुके हैं। वे रायपुर नगर निगम में आयुक्त रह चुके है। मनोज श्रीवास्तव (अब म.प्र.) भी रायपुर निगम के कमिश्नर रहे है और बाद में म.प्र. सरकार में जनसंपर्क आयुक्त बने। इस हिसाब से तो वर्तमान आयुक्त तारण प्रकाश सिन्हा के सितारे भी बुलंद दिख रहे है। भविष्य में वे भी संचालक जनसंपर्क बन सकते है। वैसे भी जिस तरह पार्षद से लेकर आम जनता महापौर की जगह उनके  जनसंपर्क करने या समस्या बताने अधिक प्रयासरत है उससे उनके जनसंपर्क अधिकारी के रूप में अच्छी ट्रेनिंग हो रही है।
... और अब बस
द्य सेल (स्टील एथारिटी आफ इंडिया) के नाम से नकली सरिया बनाकर उसे बड़े प्रोजेक्ट को आपूर्ति करने वाले उद्योगपति अग्रवाल पिता पुत्र के पीछ आखिर किस राजनेता का पैसा लगा है। दोनों पिता-पुत्र अचानक कैसे अमीर हो गये?
द्य नई राजधानी के एक भव्य समारोह में भाजपा की महिला नेत्री को किस आईएएस अफसर ने सुश्री की जगह श्रीमती कहकर संबोधित किया?
द्य किस वरिष्ठ आईएएस अफसर को उसके ओहदे से नीचे के पद पर नई पदस्थापना की गई है।

Tuesday, April 2, 2013

मांगने वाला तो गूंगा था मगर
देने वाला तू भी बहरा हो गया

छत्तीसगढ़ में लगातर दो बार भाजपा की सरकार बनाने वाले डा. रमन सिंह भाजपा सरकार की तिकड़ी बनाने के लिये प्रयत्नशील है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली सहित सभी बड़े भाजपा नेता डा. रमन सिंह की सार्वजनिक मंच सहित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठकों में तारीफ कर चुके हैं पर राजनाथ सिंह की टीम में छत्तीसगढ़ को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से कुछ नाराजगी जरूर है।
भाजपा महिला मोर्चा में जरूर दुर्ग की सांसद सुश्री सरोज पांडे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। पर उनसे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से संबंध किसी से छिपे नहीं है। डा. रमन सिंह के समर्थक किसी भी नेता को राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह नहीं मिली है जबकि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर छत्तीसगढ़ को अधिक महत्व मिलने की उम्मीद थी। इधर भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी तथा पूर्व सांसद श्रीमती करूणा शुक्ला को भी इस बार राजनाथ सिंह की टीम में जगह नहीं मिली है। वैसे वे एक मात्र भाजपा सांसद प्रत्याशी रहीं जिन्हें पिछले लोस चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। इधर चर्चा थी कि डा. रमन सिंह को भी पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया जा रहा है पर शिवराज सिंह का नाम भी आने से केवल नरेन्द्र मोदी को ही संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है। बहरहाल छत्तीसगढ़ की इतनी अधिक उपेक्षा की चर्चा जमकर है।
लता की सक्रियता
छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल में शामिल एक मात्र महिला मंत्री लता उसेण्डी के कार्यकाल में आखिर हो क्या रहा है। उनके विधानसभा से लगे झलियामारी कन्या आश्रम में 5 से 12 साल की उम्र की बच्चियों से बलात्कार मामले की चर्चा देश में होती रही। राष्ट्रीय स्तर पर इससे छग की छवि को धक्का लगा और इस मामले में कुछ लोगों को आरोपी बनाकर प्रभावित बच्चियों को मुआवजा देकर उन्हें दूसरे आश्रम में रखकर राज्य सरकार ने अपना काम पूरा कर लिया। बालौद के एक छात्रावास आमाडुला में एक लड़की को छात्रावास अधीक्षिका द्वारा दूसरो के सामने पेश करने का मामला प्रकाश में आया, रात में आश्रम में बड़ी-बड़ी कारों में लोगों के आने का भी मामला उभरा था। छात्रावास अधीक्षिका अनिता ठाकुर ( खन्ना) को जेल भेज दिया गया। उसके बयान के भी एक कसबायी पत्रकार से पुलिस ने पूछताछ करना उचित नहीं समझा जबकि आरोप के चलते उसकी पत्रकारिता की एजेन्सी वापस ले ली गई और एक जनप्रतिनिधि ने अपने प्रतिनिधि के पद से हटा दिया गया। सबसे आश्चर्य तो यह है कि महिला अधीक्षिका के मोबाईल को आने वाले नंबरों की जांच भी नहीं की गई यही नहीं जेल के भीतर रहते उसे पदोन्नति का लाभ देने की खबर है। ये प्रकरण अभी चर्चा में ही थे तभी दुर्ग के बेथल चिल्ड्रन होम में कुछ बच्चों के साथ अप्राकृतिक कृत्य और कार्यवाही न करने के आरोप में  केयरटेकर और संचालक को गिरफ्तार कर लिया गया। छत्तीसगढ़ में आखिर यह हो क्या रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री लता उसेण्डी कन्यादान योजना, महिलाओं को सिलाई मशीन, सायकल वितरण कराने सहित आईपीएल मैच कराकर छत्तीसगढ़ सरकार को वाहवाही दिलाने में व्यस्त है। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में जो बच्चों के यौन शोषण की खबर आ रही है उससे बदनामी भी हो रही है आाखिर इसके लिये राज्य सरकार कर क्या रही है। झलियामारी में पुरूषों की तैनाती से बच्चियों का यौन शोषण हुआ तो बालोद के आमाडुला में महिला अधीक्षिका पर ही यौन शोषण कराने का आरोप है। कुल मिलाकर सरकारी आश्रम, छात्रावास सहित अन्य संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे  बाल, महिला आश्रम को अच्छा वातावरण बनाने के लिये राज्य सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे।
भदौरा जमीन घोटाला
कांग्रेस ने भदौरा  में जमीन की अवैध खरीदी-बिक्री को लेकर अमर अग्रवाल पर निशाना साधा है हालांकि अमर अग्रवाल ने इस मामले को स्वयं को दूर बताकर 100 करोड़ की मानहानि का नोटिस भी भिजवा दिया है।
भदौरा गांव में जमीन खरीदी बिक्री का सिलसिला पिछले 4 साल से चल रहा है। गांव में 127 बिक्री पत्रों के जरिये 205.96 एकड़ जमीन की खरीदी-बिक्री की गई। इसमें सरकारी जमीन खसरा नंबर 509 में 11.54 एकड़ भी शामिल है यह जमीन निस्तार पत्रक में चराई मद और धरसा मद में दर्ज है फिर भी किसी द्धिवजराम को विक्रेता बनाया गया है। किसी जसकरण सिंह कोरबा ने चिड़ीपाल गैस प्राईवेट लिमिटेड के लिये 16.20 एकड़ निजी और 11.54 एकड़ जमीन खरीदी वहीं अकुंश गोयल ने रंजू इन्फ्राकान के लिये 8.31 एकड़ निजी और 5.39 एकड़ शासकीय जमीन, मो. रफीक ने रूक्मिणी इन्फास्ट्राक्चर रायगढ़ के लिये 4.06 एकड़ निजी जमीन, संजय गर्ग दिल्ली ने 8.10 एकड़ निजी, मनोज तोसनवाल ने 5.93 एकड़ निजी जमीन फर्जी तरीके से खरीदने का आरोप है।
प्रदेश में सियासी मुद्दा बने भदौरा जमीन घोटाले की जांच मस्तूरी पुलिस  कर रही है। जिला प्रशासन की जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 16.93 एकड़ शासकीय और 42.93 एकड़ निजी जमीन की फर्जी बिक्री की तस्दीक हो चुकी है। कमिश्नर आर.पी. जैन ने कलेक्टर को रजिस्ट्री शून्य करने के निर्देश दिए हैं। सबसे बड़ा तथ्य यह सामने आ रहा है कि मृतक व्यक्ति को न केवल जीवित बताया गया है बल्कि मृत व्यक्ति भदौरा से चलकर मस्तूरी तक पहुंचता है और रजिस्ट्रार के सामने अपनी जमीन बेचकर फिर मर जाता है। बहरहाल अमर अग्रवाल ने इस घोटाले में अपना नाम लपेटे जाने पर नाखुश है उन्होंने महापौर वाणीराव और कांग्रेस के सचिव वाजपेयी को 100 करोड़ के मानहानि का नोटिस भेजा है।
कहां है पवन, तरूण!
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने प्रदेश में विपक्ष जिंदा है इसका एहसास तो भाजपा सरकार को कराया है इसमें कोई संदेह नहीं है उनकी सक्रियता और सरकार के खिलाफ आंदोलनों के चलते कांग्रेसी भी उत्साहित हैं वही अगली सरकार बनाने के मंसूबे भी पाल रहे हैं। वैसे अगले विधानसभा चुनाव में यदि कांग्रेस के पक्ष में बेहतर परिणाम आते हैं तो उसका श्रेय भाजपा सरकार को ही जाएगा। यह भी तय है अभी से चर्चा चल रही है है कि यदि ऐसा होता तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार प्रमुख रूप से जिम्मेदार होगी। बहरहाल नंदकुमार पटेल के साथ एक कमी जरूर खल रही है वह यह कि उन्होंने रूठे और प्रमुख पुराने नेताओं को फिर से जोड़ने और सक्रिय करने का संभवत: प्रयत्न नहीं किया है। छत्तीसगढ़ में गांधी के नाम से चर्चित पवन दीवान अपने आश्रम तक ही सीमित है। पवन दीवान, छत्तीसगढ़ियों के बीच एक बड़ा और लोकप्रिय नाम है। उनके प्रशंसक आज भी छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में मिल जाएंगे पर वे भी पूरे मन से राजनीति से जुड़ नहीं सके हैं। रायपुर शहर में कभी शहर जिला कांग्रेस से लोक निर्माण मंत्री बनने वाले तरूण चटर्जी भी न जाने कहां है, एक समय में रायपुर की राजनीति में उनका बड़ा सक्रिय नाम था, राजेश मूणत से एक बार पराजित होने के बाद उनका भी अता-पता नहीं है। ये तो कुछ उदाहरण है ऐसे कई समर्पित कांग्रेसी अभी भी सक्रिय नहीं है। वैसे नंदकुमार पटेल पर यह आरोप लगता रहता है कि जनाधार विहीन कुछ नेताओं से वे घिरे रहते है जो कभी विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी के दरबार में जी-हुजुरी किया करते थे। एक बात यह अच्छी है कि उनके करीबी नेता कांग्रेस संगठन के बड़े पद पर तो है पर विधानसभा टिकट नहीं चाहते है क्योंकि उन्हें जनता के बीच अपनी हैसियत का अंदाजा है। बहरहाल नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे और चरणदास महंत का त्रिफला सक्रिय है। महंत ने तो आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने सहित मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं होने का खुलासा पत्रकारावार्ता में कर दिया है। अजीत जोगी स्वास्थ्यगत कारणों से मुख्यमंत्री बनना नहीं चाहेंगे पर भाभी डा. रेणु जोगी का नाम जरूर बढ़ाएंगे ऐसे में नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे को उम्मीद तो करना ही चाहिए।
और अब बस
1
बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ महापौर किरणमयी नायक को चुनाव लड़ाने की चर्चा है...। कांग्रेस की मजबूरी है बृजमोहन के खिलाफ कोई कांग्रेसी चुनाव लड़ने तैयार नहीं है।
2
मुख्य सचिव सुनील कुमार के दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर जाने की अफवाह पता नहीं कौन फैला रहा है.... कुछ माह का कार्यकाल बचा होने पर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति नहीं होती है यही नियम है।
3
बस्तर की एक मात्र सामान्य विधानसभा सीट से रायपुर के एक बड़े नेता के चुनाव लड़ने की चर्चा है तो जमीन के धंधे से जुड़े एक भाजपा के नेता महासमुन्द जिले से चुनाव लड़ने की तैयार शुरू कर चुके हैं।
4
प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर संत कुमार पासवान पुलिस महानिदेशक बने बिना सेवानिवृत्त हो गए, इसके पहले तब के सबसे वरिष्ठ आईएएस अफसर बी.के.एस.रे. भी बिना मुख्य सचिव बने रिटायर हो गये थे।
5
भाजपा नेता अगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार होली मिलन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं यह बात और है कि मिलने समारोह में कम भीड़ देखकर नेता परेशान भी लग रहे हैं।
6
नितिन गडकरी के प्रदेश भाजपा के प्रभारी बनने की चर्चा शुरू होते ही एक आईएएस अफसर काफी खुश है उन्हें जिले की कमान मिलने की पूरी संभावना है।

Saturday, March 23, 2013

जागते रहिए की आवाज लगाने वाला
लूटनेवालों को होशियार भी कर सकता है

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षीदल कांग्रेस की अपनी अपनी रणनीति बन रही है। भाजपा के अपने सर्वे सहित आईबी के सर्वे में भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है, इससे भाजपा के कर्णधार कुछ मायूस है तो कांग्रेसी काफी खुश है।
भाजपा के अपने सर्वे, वरिष्ठ नेताओं को मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान 50 फीसदी विधायकों में 27 की अगले चुनाव में वापसी फिलहाल नहीं दिखाई दे रही है यानि 50 से प्रतिशत अधिक विधायकों की वापसी खतरे में है। ऐसे में 27 वर्तमान विधायकों की टिकट कटने के संकेत मिल रहे है। वैसे 2008 के विस चुनाव में भी भाजपा में 18 विधायकों के टिकट काटे थे और उसका लाभ भी हुआ था दूसरी बार लगातार भाजपा सत्तासीन हुई थी सूत्र कहते हैं कि बस्तर प्रदेश के करीब 7 मंत्रियों की वापसी पर भी सर्वे रिपोर्ट से सवाल लग गये हैं। बस्तर सहित सरकार बनाने का प्रमुख द्वार है इस बार वहां बलीराम कश्यप के बिना ही चुनाव होना है। वैसे तो उनके पुत्र केदार कश्यप तथा एकमात्र महिला मंत्री सुश्री लता उसेडी, वनमंत्री विक्रम उसेण्डी मंत्रिमंडल के सदस्य है पर चर्चा है कि ये लोग अपनी अपनी सीट बचा लें यही काफी है। सरगुजा, रायपुर संभाग के भी 3-4 मंत्रियों की हालत ठीक नहीं है। इधर रायपुर ग्रामीण, बालौद, डौंडीलोहारा, गुंडरदेही, कांकेर, चित्रकूट, कोण्डागांव, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, तखतपुर, बेमेतरा, मस्तूरी, बेलतरा, भटगांव, प्रेम नगर आदि में वर्तमान विधायकों की हालत ठीक नहीं है यह सर्वे रिपोर्ट में सामने आया है।
इधर कांग्रेस की हालत भी ठीक नहीं है पर भाजपा के प्रति आदिवासियों , सतनामियों, पिछड़ों, शिक्षाकर्मियों, सरकारी कर्मचारियों आदि के असंतोष का लाभ मिलने की संभावना से कांग्रेस उत्साहित है। वैसे आगामी चुनाव में टिकट वितरण में सागौन बंगला की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल, डा. चरणदास महंत आदि भी अपने कुछ खास समर्थकों को टिकट दिला सकते है पर अजीत जोगी लगता है कि सभी पर भारी पडेंगे। राहुल गांधी ने 40 फीसदी चुनावों को टिकट देने की बात की है ऐसे में अजीत जोगी के पास तो युवक कांग्रेस, भाराछंस की भारी भरकम टीम है वहीं 15-20 विधायक तो जोगी खेमे में आज भी है यह माना जाता है। वैसे बस्तर, सरगुजा सहित दुर्ग जिले से कांग्रेस को काफी सीटें जीतने का भरोसा है।
विधायकों का वेतन 25 से 75 हजार!
छत्तीसगढ़ में महंगाई इतनी अधिक बढ़ गई है कि आम जनता, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी तो बेहाल है वहीं विधायक भी कम परेशान नहीं है। हाल ही में बसपा के विधायक द्ध्जिराम बौद्ध ने विधायक को मिलनेवाले वेतन, भत्ते में परिवार चलाने में मुश्किल पडऩे की गुहार लगाते हुए गरीबी रेखा का राशनकार्ड मुहैय्या कराने की मांग खाद्यमंत्री से कर दी। उसका कहना था कि विधायक बनने के पहले वे कारपेंटर थे और उनका राशनकार्ड से 35 किलो चांवल आदि मिलता था पर विधायक बनने के बाद उनसे वह सुविधा वापस ले ली गई। अब बसपा विधायक दल का नेता होने के कारण उन्हें दौरा करना पड़ता है और वेतन तो डीजल में ही चला जाता है ऐसे में 6 बच्चों सहित पत्नी का गुजारा करना मुश्किल है। खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले का कहना है कि विधायक जी आयकर दाता है ऐसे  में उन्हें गरीबी रेखा का राशनकार्ड नहीं दिया जा सकता है।
इधर प्रदेश के करीब 2 लाख शिक्षाकर्मी कम वेतन, वर्षों तक सेवा करने के नाम पर अपना वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर सप्रे शाला के मैदान में परिवार सहित आंदोलन पर रहे थे, भूखहड़ताल भी किया, बूढ़ा तालाब में घुसकर धरना भी दिया, कुछ युवाओं ने अर्धनग्न प्रदर्शन भी किया पर निलंबन, बर्खास्तगी का डर दिखाकर आंदोलन को जबरिया समाप्त करा दिया गया। प्रदेश के लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मी भी लम्बे समय तक आंदोलन पर रहे पर सरकार ने उनकी भी नहीं सुनी। महंगाई बढऩे पर वेतन भत्ता वृद्धि की मांग राज्य सरकार ने ठुकरा दी।
पर प्रदेश सरकार का लगता है कि अपने मंत्रियों, विधायकों की महंगाई से होने वाली दिक्कतों पर जरूर ध्यान गया। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 12 साल पूरे हो चुके हैं और 12 सालों के भीतर सरकार ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन भत्ते आदि में 8 बार बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से हर डेढ़ साल में जनप्रतिनिधियों के वेतन में वृद्धि हो रही है। जब मध्यप्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ था उस समय विधायकों का वेतन 25 हजार रुपये मासिक था। भाजपा की सरकार बनने के बाद 9 सालों के भीतर विधायकों का वेतन करीब 75 हजार के आस पास हो गया है यानि छत्तीसगढ़ में 9 सालों में विधायकों के वेतन तीन गुना हो गया है। छत्तीसगढ़ राज्य बनते समय विधायकों को 50 हजार का प्रतिवर्ष यात्रा कूपन मिलता था वह यात्रा कूपन अब 3 लाख का हो गया है यानि यात्रा कूपन राशि में 6 गुना वृद्धि कर दी गई है। वैसे इतिहास बताता है कि जब भी अविभाजित म.प्र. या छत्तीसगढ़ में गैर कांग्रेसी सरकार बनती रही है तब तब विधायकों, मंत्रियों का वेतन में वृद्धि होती रही है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी के अनुसार अगले चुनाव में वापसी की उम्मीद नहीं होने के कारण ही गैर कांग्रेसी सरकार वेतन वृद्धि करती है। बहरहाल महंगाई के लिए केन्द्र सरकार पर राज्य सरकार आरोप मढ़ती है और केन्द्र सरकार महंगाई बढऩे राज्य सरकार को दोषी ठहराती है। ऐसे में विधायकों का वेतन तो राज्य सरकार बढ़ा रही है पर आमजनता को तो कोई राहत नहीं मिल रही है न तो खाना पकाने की गैस और न ही पेट्रोल, डीजल आदि पर राज्य सरकार कोई कर कम कर रही है।
रक्तचाप बढ़ रहा है आईएएस अफसरों का
छत्तीसगढ़ विधानसभा का सत्र जल्दी समाप्त होगा या पहले ही सत्रावसान हो जाएगा इसको लेकर कांग्रेस-भाजपा के विधायक चिंतित नहीं है बल्कि प्रदेश के कई आईएएस अफसरों का रक्तचाप बढ़ गया है। काफी समय से यह संभावना प्रकट की जा रही है कि प्रदेश में जल्दी ही एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी होनी है जिसमें 27 जिलों में कम से कम 15 जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं वही प्रमुख सचिव से सचिव स्तर पर भी कुछ लोग प्रभावित हो सकते हैं। आगामी विस चुनाव को देखते हुए इस सरकार की यह आखरी प्रशासनिक सर्जरी होगी। पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व सन 2008 में तत्कालीन मुख्य सचिव शिवराज सिंह ने कुछ अनुभवी आईएएस अफसरों को जिलों का कमान सौंपी थी और उसका लाभ भी सरकार को मिला था। भाजपा की सरकार दूसरी बार सत्ता में आ गई थी। इधर इस बार मुख्य सचिव के रूप में सुनील कुमार जैसे सख्त अफसर तैनात हैं। अन्य मुख्य सचिवों की तरह इनकी कोई कोटरी नहीं है। काम से काम रखने वाले सुनील कुमार के आसपास चापलूस अफसर फटकते भी नहीं हैं ऐसे में कुछ अच्छे छवि के आईएएस अफसरों को जिलों की कमान मिलने की उम्मीद है तो कुछ दागी अफसर पदस्थापना के लिए राजनेताओं की शरण में हैं। खैर नई पदस्थापना को लेकर कई आईएएस अफसरों के रक्तचाप बढ़ गये हैं। सूत्र कहते हैं कि होली के आसपास नई प्रशासनिक सर्जरी होना लगभग तय है।
एलेक्स पॉल फिर चर्चा में
सुकमा के जिलाधीश बतौर नक्सलियों द्वारा पहले अपहरण और बाद में रिहा किये गये आईएएस एलेक्स पॉल मेमन फिर चर्चा में है। हाल ही में रायपुर विकास प्राधिकरण में साज सज्जा, कीमती मोबाइल, लेपटाप आदि खरीदी को लेकर चर्चा में थे। वहीं हाल ही में धमतरी जिले में बतौर मुख्य कार्यपालन अधिकारी उन्होंने बारहवें वित्त आयोग से प्राप्त ब्याज की राशि से 4 लाख 97 हजार 667 रुपये से नई एम्बेसडर कार खरीदने और उसकी साज-सज्जा में करीब 91 हजार खर्च करने का मामला सूचना के अधिकार के तहत मिले दस्तावेजों से सामने आया है। नियमानुसार यह राशि केवल पंचायत विकास के ही खर्च होना था। वैसे जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में भी आईएएस एलेक्स पॉल मेमन ने अनुमति लेना उचित नहीं समझा। वैसे यह मामला पूरी तरह वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। हालांकि धमतरी के कलेक्टर नवल सिंह मंडावी जांच कराने की बात कह रहे हैं। पर एक आईएएस अफसर की जांच कैसे होती है यह किसी से छिपा नहीं है।
और अब बस
(1)
मनरेगा के तहत कागजों की जगह सही में तालाब खुदाई होती तो छग में तेल का भंडार मिल गया होता...दूसरी टिप्पणी...यदि वृक्षारोपण सही में होता तो हम अभी हम जंगलों के बीच बैठे होते।
(2)
महात्मा गांधी को ब्रांड एम्बेसडर बनाने वाले रेडियस वाटर मामले से जुड़े एक बड़े अफसर को अचानक हटाया गया...पहले पी. जॉय उम्मेन और विश्वरंजन को भी तो अचानक ही हटाया गया था...।
(3)
आईपीएल के लिये सुरक्षा के नाम पर पुलिस विभाग ने 5 करोड़ मांगा...पर बजट में तो केवल 50 लाख का ही प्रावधान रखा गया है।
(4)
गिरौधपुरी में कुतुबमीनार के समान जैतखाम के लोकार्पण को लेकर सतनामी समाज के गुरु विजयकुमार भाजपा सरकार से दूर हो रहे हैं तो कांग्रेस से तो बहुत ही दूर हो चुके हैं।
(5)
एक समारोह में विभागीय संचालक तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री के बगल में मंच में बैठे रहे तो विभागीय प्रमुख सचिव दर्शकदीर्घा में। यही नहीं दर्शकदीर्घा से बुलवाकर प्रमुख सचिव से अतिथियों का स्वागत करवाया गया और फिर उन्हें जाकर दर्शकदीर्घा में ही बैठना पड़ा। वहां भी दो कुर्सियों में तीन अधिकारियों को एडजेस्ट करना पड़ा।
 वेतन एक नजर में
मुख्यमंत्री 93 हजार मासिक (करीब)
विस अध्यक्ष 91 हजार
उपाध्यक्ष 89 हजार
कबीना मंत्री 90 हजार
राज्यमंत्री 88 हजार
संसदीय सचिव 83 हजार
विधायक 75 हजार

Tuesday, March 19, 2013

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां छोड के जाने को कहा जाता है
पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

छत्तीसगढ़ में भाजपा की राज्य सरकार आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये आरक्षण को लेकर परेशान है तो कांग्रेस इन वर्ग के असंतोष को लेकर हवाई किला बनाकर अपनी सरकार निश्चित बनने का भ्रम पाल बैठी है। एक बार जरूर है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार कारण होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जाति वर्ग की राजनीति अपने पूरे शबाब में है। आदिवासी, सतनामी तथा पिछड़ा वर्ग के लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग ने चारामा से राजधानी तक पदयात्रा निकालकर सरकारी नौकरी में 14 की जगह 27 फीसदी आरक्षण की मांग की वही अपनी आबादी 51 फीसदी होने का दावा करते हुये 51 फीसदी  विधानसभा, लोकसभा की सीट की मांग कर डाली है। वही सरकार के करीब 6 माह पूर्व ही एससी वर्ग के आरक्षण 16 फीसदी के स्थान पर कटौती करके 12 प्रतिशत कर दिया है इससे सतनामी समाज आक्रोशित है। इधर आदिवासियों का आरक्षण 28 फीसदी के स्थान पर 32 फीसदी तक दिया है पर इससे आदिवासी समाज भी खुश नहीं है क्योंकि न्यायालय से क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है। सतनामी, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी करने मे प्रदेश की भाजपा सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता रमेश बैस भाजपा के प्रमुख आधार स्तंभ है। छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ सांसद होने के साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, चन्द्रशेखर साहू भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है पर हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। रमेश बैस और डा. रमन सिंह के बीच का तनाव जगजाहिर है।
इधर सतनामी समाज को मनाने के लिये भाजपा के पास सतनामी समाज के गुरू गद्दीनशीन विजय गुरू है तो पुन्नुलाल मोहिले जैसे पुराने नेता भी है पर सतनामी समाज इनके समझाने से और भी बिगड़ रहा है, राज्य सरकार ने राज्यसभा में भी भूषण लाल जांगड़े को भेजा है पर असर नहीं हो रहा है वैसे भाजपा के एक नेता कहते है कि हमे सतनामी समाज का मत मिलता ही कहा था। सवाल यह उठ रहा है कि सतनामी समाज का मत भाजपा को मिलता था या नहीं यह बात और है पर सतनामी समाज खुलकर सरकार का विरोध तो नहीं करता था इस बार तो सतनामी समाज का बड़ा हिस्सा आरक्षण में कटौती पर सरकार से नाखुश है।
बात आदिवासी समाज की है तो वह भी सरकार से कम से कम खुश तो नहीं है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ा पर सलवा जुडुम अभियान, नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी, कई गांव खाली करने, उद्योगों के लिये आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण आदि कई मुद्दे ऐसे है जिससे आदिवासी वर्ग भी नाखुश है। भाजपा के पास नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर, शिवप्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेता है पर इनकी सरकार के प्रति नाराजगी भी कभी कभी दिखाई दे जाती है बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद उनका स्थान रिक्त है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सांसद दिनेश कश्यप भी मिलकर बलीदादा की जगह नहीं भर सकते है। वैसे कांग्रेस असंतोष से खुश है और नाराजगी को कांग्रेस की तरफ मतों में तब्दील करने प्रयासरत है।
मनमोहन के मुंह में छग डाला
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनसंपर्क विभाग में प्रयोग दर प्रयोग किया जा रहा है। किसी भी आईएएस को जनसंपर्क संचालनालय का मुखिया बना दिया जाता है और उसे अन्य कामों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और वह अफसर जनसंपर्क को (पार्ट-टाईम) की तरह ही समझता है। वर्तमान में पदस्थ संचालक जनसंपर्क सोनमणी बोरा  जमीन, मकान के काम में इतने उलझे है कि उन्हें जनसंपर्क विभाग के लिये समय निकालना कठिन हो जाता है। राज्य के मुखिया जब नये जिलों की स्थापना के समारोह में जा रहे थे तब संचालक को जनसंपर्क कार्यालय जाने का समय नहीं मिला था। प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकारों को डा. रमन सिंह ने सम्मानित किया पर संचालक ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा, एक बड़े समाचार पत्र के विमोचन समारोह में जाने का समय संचालक को नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि जनसंपर्क कार्यालय जाने वाले पत्रकारों को छोड़कर वे अन्य पत्रकारों को ठीक से पहचानते भी नहीं है। उनके कार्यालय में नियमित नहीं आने से वहां की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है यह तय है। वैसे तो सूत्र कहते हैं कि वे जनसंपर्क में रहने में रूचि नहीं रखते है यह भी चर्चा है कि राज्य सरकार उन्हें जनसंपर्क में रखने भी अब तैयार नहीं है बहरहाल किसी पड़ोसी जिले का कलेक्टर बनाने की भी चर्चा है। वैसे प्रजातंत्र के चौथे पाये से संबंधित विभाग में सरकार कब तक नये-नये प्रयोग करेगी यह समझ से परे है। वैसे प्रदेश की संवेदनशील सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह जनसंपर्क विभाग के मुखिया है और उन्हें अब निर्णय लेना है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ का नाम भी नहीं लिया और राज्य के मीडिया में खबर आई कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य है-प्रधानमंत्री
केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री जरूर आकर छत्तीसगढ़ की तारीफ करते थे। लेकिन ताजा मामला प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 8 मार्च को एक विज्ञप्ति जारी करते हुये आंकड़ों के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ की तारीफ करते हुये उसे देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य बताया है जबकि हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री ने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि- देश के नक्शे पर 26 वें राज्य के रूप में सिर्फ 12 साल पहले अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ के विकास की राह पर जिस तेजी से कदम बढ़ाये है आज प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी उसकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के जवाब में कहा कि देश के बिमारू कहे जाने वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति की है। उन्होंने लिखित भाषण में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाले राज्य के रूप में पहचाना जा रहा है।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम ही नहीं लिया है। राज्यसभा की वेबसाईट पर मौजूद प्रधानमंत्री के भाषण में जब छत्तीसगढ़ को तलाशने की कोशिश की गई तो इस खबर की सच्चाई सामने आई।
चंपू से भोंदू भारी!
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री सांसद चंद्रशेखर साहू ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर थाने में दर्ज- गैर जमानती (एफआईआर) को रद्द कराने पत्र भेजा है। आरोपी सरपंच ईश्वरी बाई साहू पर बलवा और आगजनी जैसे संगीन मामले है। 6 अक्टूबर 12 को भेजे गए पत्र पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। वही भाजपा के एक नेता अब्दुल अजीम भोंदू के खिलाफ जेल में बंद होने के दौरान ही धारा 307 हटा दी गई और वह जेल से जमानत पर रिहा हो गया।
निरीक्षक स्तर के दो अफसरों ने वारंट तामिली के दौरान हुई हमले पर खुद रिपोर्ट लिखाई थी कि उन पर जानलेवा हमला हुआ था। थाना निरीक्षक उमेश मिश्रा और थाना निरीक्षक आर.के. दुबे की रिपोर्ट पर थाने में हमलावारों के खिलाफ 147,148,149,186, 353,332, 307, 209 तथा 506 वी के तहत जुर्म कायम हुआ था। इसी के बाद कुछ भाजपा नेताओं सहित समाज ने दबाव बनाया था और उसके बाद अफसर कर्मियों से मारपीट के मामले में धारा 307 हटा दी गई। सूत्र कहते हैं कि अधिकारियों के डाक्टरी मुलाहिजा में गंभीर चोट नहीं पाई गई इसलिये धारा 307 हटाई गई है। सवाल यह है कि रिपोर्ट लिखने वाले और गलत धारा लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई? खैर चम्पू भैय्या से तो भोंदू भाई ही भारी निकले है।
और अब बस...
0 बस्तर के तोकापाल तहसील में एक अरब 22 करोड़ 62 लाख का वृक्षारोपण एनजीओ, वन,कृषि उद्यान विभाग द्वारा कराया गया। मनरेगा के तहत वृक्षारोपण वास्तविक क्षेत्र से अधिक भूमि में कैसे कराया गया है यह जांच का विषय है
0 राज्य सरकार के मुखिया के करीब दिखाई देने वाले एक सेवानिवृत्त अफसर आजकल मिलने-जुलनेवालों से जल्दी दिल्ली में स्थायी तौर पर जाने की बात करने लगे है।
0 बसपा विधायक दूजराम बौद्ध ने वेतनभत्ता कम होने पर बीपीएल कार्ड की मांग सदन में कर डाली। डा. रमन सिंह ने कैबिनेट की बैठक लेकर  सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर लिया। इसे कहते है संवेदनशील मुख्यमंत्री।

Wednesday, March 13, 2013

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां छोड के जाने को कहा जाता है
पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

छत्तीसगढ़ में भाजपा की राज्य सरकार आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये आरक्षण को लेकर परेशान है तो कांग्रेस इन वर्ग के असंतोष को लेकर हवाई किला बनाकर अपनी सरकार निश्चित बनने का भ्रम पाल बैठी है। एक बार जरूर है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार कारण होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जाति वर्ग की राजनीति अपने पूरे शबाब में है। आदिवासी, सतनामी तथा पिछड़ा वर्ग के लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग ने चारामा से राजधानी तक पदयात्रा निकालकर सरकारी नौकरी में 14 की जगह 27 फीसदी आरक्षण की मांग की वही अपनी आबादी 51 फीसदी होने का दावा करते हुये 51 फीसदी  विधानसभा, लोकसभा की सीट की मांग कर डाली है। वही सरकार के करीब 6 माह पूर्व ही एससी वर्ग के आरक्षण 16 फीसदी के स्थान पर कटौती करके 12 प्रतिशत कर दिया है इससे सतनामी समाज आक्रोशित है। इधर आदिवासियों का आरक्षण 28 फीसदी के स्थान पर 32 फीसदी तक दिया है पर इससे आदिवासी समाज भी खुश नहीं है क्योंकि न्यायालय से क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है। सतनामी, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी करने मे प्रदेश की भाजपा सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता रमेश बैस भाजपा के प्रमुख आधार स्तंभ है। छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ सांसद होने के साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, चन्द्रशेखर साहू भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है पर हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। रमेश बैस और डा. रमन सिंह के बीच का तनाव जगजाहिर है।
इधर सतनामी समाज को मनाने के लिये भाजपा के पास सतनामी समाज के गुरू गद्दीनशीन विजय गुरू है तो पुन्नुलाल मोहिले जैसे पुराने नेता भी है पर सतनामी समाज इनके समझाने से और भी बिगड़ रहा है, राज्य सरकार ने राज्यसभा में भी भूषण लाल जांगड़े को भेजा है पर असर नहीं हो रहा है वैसे भाजपा के एक नेता कहते है कि हमे सतनामी समाज का मत मिलता ही कहा था। सवाल यह उठ रहा है कि सतनामी समाज का मत भाजपा को मिलता था या नहीं यह बात और है पर सतनामी समाज खुलकर सरकार का विरोध तो नहीं करता था इस बार तो सतनामी समाज का बड़ा हिस्सा आरक्षण में कटौती पर सरकार से नाखुश है।
बात आदिवासी समाज की है तो वह भी सरकार से कम से कम खुश तो नहीं है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ा पर सलवा जुडुम अभियान, नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी, कई गांव खाली करने, उद्योगों के लिये आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण आदि कई मुद्दे ऐसे है जिससे आदिवासी वर्ग भी नाखुश है। भाजपा के पास नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर, शिवप्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेता है पर इनकी सरकार के प्रति नाराजगी भी कभी कभी दिखाई दे जाती है बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद उनका स्थान रिक्त है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सांसद दिनेश कश्यप भी मिलकर बलीदादा की जगह नहीं भर सकते है। वैसे कांग्रेस असंतोष से खुश है और नाराजगी को कांग्रेस की तरफ मतों में तब्दील करने प्रयासरत है।
मनमोहन के मुंह में छग डाला
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनसंपर्क विभाग में प्रयोग दर प्रयोग किया जा रहा है। किसी भी आईएएस को जनसंपर्क संचालनालय का मुखिया बना दिया जाता है और उसे अन्य कामों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और वह अफसर जनसंपर्क को (पार्ट-टाईम) की तरह ही समझता है। वर्तमान में पदस्थ संचालक जनसंपर्क सोनमणी बोरा  जमीन, मकान के काम में इतने उलझे है कि उन्हें जनसंपर्क विभाग के लिये समय निकालना कठिन हो जाता है। राज्य के मुखिया जब नये जिलों की स्थापना के समारोह में जा रहे थे तब संचालक को जनसंपर्क कार्यालय जाने का समय नहीं मिला था। प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकारों को डा. रमन सिंह ने सम्मानित किया पर संचालक ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा, एक बड़े समाचार पत्र के विमोचन समारोह में जाने का समय संचालक को नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि जनसंपर्क कार्यालय जाने वाले पत्रकारों को छोड़कर वे अन्य पत्रकारों को ठीक से पहचानते भी नहीं है। उनके कार्यालय में नियमित नहीं आने से वहां की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है यह तय है। वैसे तो सूत्र कहते हैं कि वे जनसंपर्क में रहने में रूचि नहीं रखते है यह भी चर्चा है कि राज्य सरकार उन्हें जनसंपर्क में रखने भी अब तैयार नहीं है बहरहाल किसी पड़ोसी जिले का कलेक्टर बनाने की भी चर्चा है। वैसे प्रजातंत्र के चौथे पाये से संबंधित विभाग में सरकार कब तक नये-नये प्रयोग करेगी यह समझ से परे है। वैसे प्रदेश की संवेदनशील सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह जनसंपर्क विभाग के मुखिया है और उन्हें अब निर्णय लेना है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ का नाम भी नहीं लिया और राज्य के मीडिया में खबर आई कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य है-प्रधानमंत्री
केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री जरूर आकर छत्तीसगढ़ की तारीफ करते थे। लेकिन ताजा मामला प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 8 मार्च को एक विज्ञप्ति जारी करते हुये आंकड़ों के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ की तारीफ करते हुये उसे देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य बताया है जबकि हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री ने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि- देश के नक्शे पर 26 वें राज्य के रूप में सिर्फ 12 साल पहले अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ के विकास की राह पर जिस तेजी से कदम बढ़ाये है आज प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी उसकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के जवाब में कहा कि देश के बिमारू कहे जाने वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति की है। उन्होंने लिखित भाषण में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाले राज्य के रूप में पहचाना जा रहा है।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम ही नहीं लिया है। राज्यसभा की वेबसाईट पर मौजूद प्रधानमंत्री के भाषण में जब छत्तीसगढ़ को तलाशने की कोशिश की गई तो इस खबर की सच्चाई सामने आई।
चंपू से भोंदू भारी!
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री सांसद चंद्रशेखर साहू ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर थाने में दर्ज- गैर जमानती (एफआईआर) को रद्द कराने पत्र भेजा है। आरोपी सरपंच ईश्वरी बाई साहू पर बलवा और आगजनी जैसे संगीन मामले है। 6 अक्टूबर 12 को भेजे गए पत्र पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। वही भाजपा के एक नेता अब्दुल अजीम भोंदू के खिलाफ जेल में बंद होने के दौरान ही धारा 307 हटा दी गई और वह जेल से जमानत पर रिहा हो गया।
निरीक्षक स्तर के दो अफसरों ने वारंट तामिली के दौरान हुई हमले पर खुद रिपोर्ट लिखाई थी कि उन पर जानलेवा हमला हुआ था। थाना निरीक्षक उमेश मिश्रा और थाना निरीक्षक आर.के. दुबे की रिपोर्ट पर थाने में हमलावारों के खिलाफ 147,148,149,186, 353,332, 307, 209 तथा 506 वी के तहत जुर्म कायम हुआ था। इसी के बाद कुछ भाजपा नेताओं सहित समाज ने दबाव बनाया था और उसके बाद अफसर कर्मियों से मारपीट के मामले में धारा 307 हटा दी गई। सूत्र कहते हैं कि अधिकारियों के डाक्टरी मुलाहिजा में गंभीर चोट नहीं पाई गई इसलिये धारा 307 हटाई गई है। सवाल यह है कि रिपोर्ट लिखने वाले और गलत धारा लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई? खैर चम्पू भैय्या से तो भोंदू भाई ही भारी निकले है।
और अब बस...
0 बस्तर के तोकापाल तहसील में एक अरब 22 करोड़ 62 लाख का वृक्षारोपण एनजीओ, वन,कृषि उद्यान विभाग द्वारा कराया गया। मनरेगा के तहत वृक्षारोपण वास्तविक क्षेत्र से अधिक भूमि में कैसे कराया गया है यह जांच का विषय है
0 राज्य सरकार के मुखिया के करीब दिखाई देने वाले एक सेवानिवृत्त अफसर आजकल मिलने-जुलनेवालों से जल्दी दिल्ली में स्थायी तौर पर जाने की बात करने लगे है।
0 बसपा विधायक दूजराम बौद्ध ने वेतनभत्ता कम होने पर बीपीएल कार्ड की मांग सदन में कर डाली। डा. रमन सिंह ने कैबिनेट की बैठक लेकर  सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर लिया। इसे कहते है संवेदनशील मुख्यमंत्री।

Tuesday, March 5, 2013

ये इश्क नहीं आसां, हमने जो ये जाना है
काजल की लकीरों को, आंखों से चुराना है

छत्तीसगढ़ में राजनीति में युवा वर्ग तो सक्रिय है ही साथ ही उम्र दराज नेता भी अभी सक्रिय है। कांग्रेस में वयोवृद्ध  नेता अभी भी लम्बी राजनीतिक पारी खेलने उत्सुक है तो भाजपा में वयोवृद्ध नेताओं की जरूर कमी परिलक्षित हो रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उम्रदराज नेता अभी भी बड़ी जिम्मेदारी लेने तत्पर दिखाई दे रहे है।
कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा माने जाते है। 20 दिसम्बर 28 को जन्में वोरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष है तथा अविभाविजत म.प्र. के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री,उ.प्र. के राज्यपाल की जिम्मेदारी निभा चुके हैं अभी भी मुख्यमंत्री बनने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। दूसरे क्रम में बरसों तक केन्द्रीय मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल की गिनती होती है। 2 अगस्त 29 को जन्मे शुक्ल जी अभी भी दौड़ में शामिल है। पूर्व विधायक लक्ष्मण सतपथी (17 अगस्त 37) प्रोटेम स्पीकर बने ,वृद्ध महेन्द्र बहादुर सिंह (31 दिसम्बर 25) अभी भी स्वयं को युवा मानकर कोई भी जिम्मेदारी सम्हालने तैयार है।
कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेताओं में पवन दीवान, (एक जनवरी 1945), अजीत जोगी (29 अप्रेल 46), सत्यनारायण शर्मा (17 जनवरी 44),महेन्द्र कर्मा (5 अगस्त 50), डा. रेणु जोगी (27 अक्टूबर 50), नंदकुमार पटेल ( 8 नवम्बर 53), डा. चरणदास महंत (31 दिसम्बर 54), रविन्द्र चौबे ( 28 मार्च 57) आदि नई जिम्मेदारी के लिये तैयार है।
भारतीय जनता पार्टी में वयोवृद्ध नेताओं की सक्रियता भी देखते ही बन रही है। विधानसभा में वरिष्ठ विधायक बद्रीधर दीवान 22 नवम्बर 29 को जन्मे हैं। वे पिछली विधानसभा में उपाध्यक्ष थे। इस बार अध्यक्ष बनने उत्सुक थे बाद में उन्हें सीआईडीसी का अध्यक्ष बनाकर संतुष्ट कराया गया है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के साथ लगातार सक्रिय लीलाराम भोजवानी (24 जनवरी 41), गृहमंत्री ननकीराम कंवर (21 जुलाई 43) भी वरिष्ठ नेता हैं। वही इसके बाद राज्यसभा सदस्य तथा छग के पहले नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय (1 जनवरी 46), वरिष्ठ सांसद रमेश बैस (2 अगस्त 48) का नंबर आता है।
वही भाजपा की दूसरी पंक्ति में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह (5 अक्टूबर 52), बृजमोहन अग्रवाल (1 मई 59), अमर अग्रवाल( 22 सितम्बर 63), चन्द्रशेखर साहू (2 जुलाई 56), सरोज पांडे (22 जून 68) आदि का नंबर आता है।
बस्तर फिर छला गया!
छत्तीसगढ़ के बस्तरवासियों को फिर रेल बजट में छला गया है। इस बार एक यात्री रेल की उम्मीद बस्तरवासी कर रहे थे पर बरसों की प्रतीक्षा, प्रतीक्षा ही साबित हुई। रेल लाईन के लिये सर्वे का झुनझुना ही उनके हाथों आया।
बस्तर के लिये दुर्ग से एक यात्री रेल चलाने का क्रम कुछ माह पूर्व हुआ था पर यह ट्रेन दुर्ग से रायपुर के बीच 7 घंटे के सफर को 16 घंटे में पूरा करती है। इस रेल का रास्ता उड़ीसा होकर ऐसे रास्तों से घुमा-फिराकर बनाया गया है कि कोई मजबूर या सैलानी ही इसमें यात्रा करना पसंद करता है, हां, किराया कम है यह प्रचारित करके बस्तरवासियों के छाव में मरहम लगाने का प्रयास किया जाता है। 1962 में बस्तर मुख्यालय जगदलपुर रेल्वे स्टेशन बनकर तैयार हुआ था। 1976 में बस्तर से किरंदुल से विशाखापट्नम तक रेल की सौगात मिली थी। यह दुनिया सबसे खूबसूरत रेलमार्ग माना जाता है। 471 किलोमीटर लम्बे इस रास्ते में 46 सुरंगे भी है। प्राकृतिक सौंदर्ययुक्त यह मार्ग काफी आकर्षक है पर अक्सर सुरक्षा के नाम पर बस्तर की इस एकमात्र रेल को रद्द भी किया जाता रहा है। बहरहाल नए रेल बजट में बस्तर को फिर छला गया है।
कहां गए एग्लो इंडियन
जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी तपन मुखर्जी के अनुसार सत्तर के दशक के आसपास तक बिलासपुर के रेलवे कालोनी के फैले हुए इलाके में बड़ी संख्या में एग्लो इंडियन परिवार निवास करते थे. इस समुदाय के लोग जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि मिली-जुली नस्ल के थे। उनकी त्वचा गोरी थी और आंखें ज्यादातर नीली। ये यहां रेलवे के अधिकारी कर्मचारी थे। ये रेलवे कालोनी के बंगलों में आबाद थे। अक्सर रेलवे के इलाके में घूमते-फिरते नजर आते थे। पूरी तरह से अंग्रेजीदां रहन-सहन भी अंग्रेजों के माफिक इसाई धर्म को मानते थे. इनकी मातृभाषा अंग्रेजी हुआ करती थी। और चर्च में आया जाया करते थे. अंग्रेजों की तरह इनका अपना क्लब था जहां नाच-गानों के साथ अंग्रेजों की तरह आमोद-प्रमोद करते थे। इनके बच्चे रेलवे के अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ते थे. बाद की पीढ़ी के कई लड़के-लड़कियां हमारे साथ कालेज में थे। इस पीढ़ी में बहुत कुछ भारतीयता थी इनमें बहुत ेतेजी से बदलाव आया. अंग्रेजी रीति-रिवाज रहन-सहन कमजोर पड़ते गए। एक तरह से बिखराव आया. कुछ से कलकत्ता से मुलाकात हुई. कईयों ने भारतीयों से शादी कर ली है और यहां रच-बस गये हैं अच्छी हिन्दी और बंगला बोलते है कुल मिलाकर भारतीय समाज में घुल-मिल गए है. पहले की तरह अलग पहचान काफी कम हो गई है. अंग्रेजों को भारत से गए 65 साल हो गये हैं जाते समय वे अपनी निशांनियां छोड़ गए. आजादी के बाद नस्ल की आबादी 3 लाख थी. अंग्रेज इन्हें अपनी पैत्रिक भूमि नहीं ले गए. ये भी भारत नहीं छोड़ना चाहते थे. मानसिक पेशोपेश में रहे और भारत में ही रह गये. ब्रिटेन ने भी इन्हें वापस बुलाने की कोई पहल नहीं की. फिर 1941 के बाद की जनगणना में इनकी गिनती नहीं की गई. 50 से 60 की दशक के बीच इन्होंने भारत से बाहर निकलना शुरू किया. ये यहां से कनाड़ा, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में बस गये. बहुत से अपने पैत्रिक देश ब्रिटेन चले गए. कुल मिलाकर यह कुनबा छितर-बितर हो गया. पश्चिम लंदन का साउथ इलाका इनसे आबाद है. जहां भारतीयों की मिली-जुली संस्कृति है. यहां अपना रूपया भी चलता है. भारत की ही तरह सड़क किनारे खोमचे है और भारतीय  भोजन के ढाबा-रेस्तरां भी. एक तरह से यह समुदाय समाप्ति की ओर है. तथा समाज निरंतर धूमिल पड़ता जा रहा है. बहरहाल एंग्लो इंडियन लोग सिमट गए है. अब वे स्थानीयता भी स्वीकार कर चुके हैं. भारतीयों में लगभग घुल-मिल चुके हैं. भारतीयों की अनेकता में एकता के वे महत्वपूर्ण सूत्र है.
खेती का रकबा घटा!
छत्तीसगढ़ को (धान का कटोरा) कहा जाता था पर अब यह उद्योग के उबलते कड़ाह के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि औद्योगिकीकरण, खनिज उत्खनन, सड़क चौड़ीकरण, रहवासी क्षेत्र में वृद्धि के चलते कृषि का रकबा लगातार कम होता जा रहा है पर हर साल धान खरीदी बढ़ती जा रही है यह विरोधाभाष ही है।
सूत्र कहते हैं कि पिछले पांच सालों के भीतर प्रदेश में एक लाख 26 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि औद्योगिकरण और खनिज उत्खनन की भेंट चढ़ गई है। यहां खेतों की जोत का रकबा छोटा होकर औसतन 1.36 हेक्टेयर रह गया है। देश की नवी कृषि गणना रिपोर्ट के अनुसार 2005-2006 में प्रदेश में कृषि रकबा 52 लाख  10 हजार हेक्टेयर था जो नई गणना में यह रकबा घटकर 50 लाख 84 हजार हेक्टेयर रह गया है। पिछले 5 सालों में कृषि का रकबा कम हो गया है। आज की स्थिति में छत्तीसगढ़ में कृषि रकबा 8.26 प्रतिशत है जबकि इससे लगे मध्यप्रदेश में यह रकबा 12.19 फीसदी है। यह धान के कटोरे के लिये चिंता का विषय ही है।
और अब बस
एक वरिष्ठ आईएएस अफसर और एक वरिष्ठ मंत्री के बीच बढ़ती दूरी किसी से छिपा नहीं है। वरिष्ठ आईएएस अफसर का तो वे कुछ नहीं कर सके पर उनके बंगले की दीवार गिराकर ही खुश हो गये है।
2
पार्टी से बगावत करनेवालों के लिये वापसी का रास्ता बंद है राहुल गांधी ने कहा है। कि एक टिप्पणी.. ऐसे में नोबेल वर्मा का क्या होगा !
3
भाजपा का एक बड़ी नेत्री का बेमेतरा में सक्रिय होना चर्चा में है।