Sunday, October 16, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

खुद ही लहुलूहान है घर की हक़ीक़तें
मत फेंकिये फरेब के पत्थर नये-नये
छत्तीसगढ़ में नक्सली फल-फूल रहे हैं। सरकारी अधिकारी, उद्योगपति, ठेकेदार भी फल-फूल रहे हैं नक्सली प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले तथाकथित एनजीओ भी फल-फूल रह हैं। जनप्रतिनिधि भी कुछ खास मुसीबत में नहीं हैै। बस वहां की आम जनता परेशान हैैं। सरकार से परेशान हैं, सरकार भी की सुरक्षाबल से परेशान है, नक्सलियों से परेशान है और अभी तक तो एसपीओ (विशेष पुलिस अफसर) से भी परेशान थी अब एसपीओ तो सरकार के ही अंग नई नियुक्ति के बाद बन जाएंगे उसके बाद वे क्या करेंगे यही सोचकर कम परेशान नहीं हैं।
अभी तक सरकार के पास वन ठेकेदार तेंदूपत्ता व्यवसायी, परिवहन कार्यकर्ताओं सहित कुछेक सरकारी अधिकारियों द्वारा नक्सलियों को आर्थिक मदद देने की सूचनाएं पहुंचती थी। हालांकि अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में सरगुजा के विपक्षी एक तत्कालीन विधायक द्वारा बड़ी रकम देने का मामला विधानसभा में चर्चा में आया था। पर हाल ही में एक बहुराष्टï्रीय औद्योगिक कंपनी एस्सार पर नक्सलियों को आर्थिक सहायता (रंगदारी टेक्स) करने का मामला चर्चा में हैै। दंतेवाड़ा के युवा पुलिस कप्तान अंकित गर्ग ने एक ठेकेदार को नक्सलियों को 15 लाख रुपए की बड़ी रकम देने के पूर्व गिरफ्तार करने का मामला गर्म हैै। हालांकि ठेकेदार ने वह रकम एस्सार की होने की बात की और उसके बाद एक एनजीओ 'जय जोहारÓ सहित एस्सार केडी जीएम, एक अन्य मददगार सोरी सोनी को पुलिस ने हिरासत में लिया हैै और पूछताछ की जा रही है।
छत्तीसगढ़ में नक्सली हथियारों के मामले में दिनों दिन मजबूत होते जा रहे थे उन्हें बारूद की आपूर्ति कहां से होती हैै, उनके आर्थिक मददगार कौन-कौन हैैं इस पर चर्चा होती रही हैै पर अब जो खुलासा हो रहा हैै वह कम चौकाने वाला नहीं हैै। एस्सार पाइप लाइन के सहारे लौह अयस्क को किरंदुल से विशाखापट्नम परिवहन करती हैै। यह पाइप लाइन छत्तीसगढ़, उड़ीसा सहित आंध्रप्रदेश के धुर नक्सली इलाके से गुजरती हैै। और लगता है कि इसी के एवज में एस्सार नक्सलियों को बड़ी रकम अदा करती हैै। हाल ही में पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी ने नक्सलियों और एस्सार के रिश्ते, आर्थिक मदद आदि के विषय में जांच करने आईजी पी.एन. तिवारी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई हैै और जांच शुरू हो चुकी हैै।

50 लाख पौधे कहां लगाये गये!

इधर सूत्रों का कहना है कि एस्सार प्रबंधक पैसा कही खर्च होना बताकर अधिक भुगतान संबंधित जनों को करता था और वे लोग 'नकदीÓ नक्सलियों तक पहुंचाते थे। पता चला है कि एस्सार के ठेकेदार बी के लाला को दोगुना अधिक दर में परिवहन का ठेका दिया गया था उसी तरह उड़ीसा चित्रगोडा में जिस पंप हाऊस को पहले नक्सलियों ने क्षतिग्रस्त करके लौह अयस्क का परिवहन प्रभावित किया था और उसी के बाद बिना बाधा के परिवहन की 'डीलÓ हुई होगी उस पंप हाऊस की मरम्मत के लिये 5 गुना अधिक रकम खर्च बताई गई हैै। क्या यह अतिरिक्त पैसा भी नक्सलियों के फंड में गया होगा? इधर पुलिस जांच में एस्सार प्रबंधन द्वारा पिछले 3 महीनों के भीतर 50 लाख पौधे किसी सूरज नर्सरी जगदलपुर से खरीदने और उसके एवज में करीब 50 करोड़ के भुगतान के कागजात भी हाथ लगे हैंं। पौधे जिस नर्सरी से खरीदकर भुगतान करना बताया जा रहा है वह नर्सरी जगदलपुर में है ही नहीं, न तो उस नर्सरी का रजिस्ट्रेशन नंबर मिला है न ही फोन नंबर, जाहिर है नर्सरी कहां स्थापित हैै इसका पता तो लग ही नहीं सकता हैै। सवाल यह भी उठ रहा है कि एस्सार ने 50 लाख पौधे आखिर कहां लगाये हैं। 50 लाख पौधे कितने वाहनों से आये किस-किस नंबर के वाहन से पौधे पहुंचे इसकी भी जानकारी एस्सार प्रबंधन को नहीं हैै।
पुलिस कप्तान ने दंतेवाड़ा केडीएफओ से 50 लाख पौधों की आपूर्ति के विषय में जांच करने कहा तो किसी भी वन जांच चौकी में पौधों के परिवहन का उल्लेख नहीं मिला। सवाल फिर उठ रहा है कि 50 करोड़ का भुगतान किसे किया गया? लगता है कि बिचौलियों के नाम से एस्सार भारी रकम का भुगतान कराता हैै और उसे नकदी की शक्ल में नक्सलियों तक पहुंचाया जाता हैै। बहरहाल कई बार एस्सार प्रबंधन के कार्यालय में संदिग्ध लोगों के आने-जाने की चर्चा पहले से चल रही हैै। कही ये अनजान लोग नक्सली या उनके समर्थक तो नहीं थे?

अटलजी के पिता का क्या नाम है?

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस में कभी विद्याचरण शुक्ल और कभी अजीत जोगी के खेमे में अपनी दखल स्थापित कर 'बड़े नेताÓ का भ्रम पालने वाले राजेंद्र तिवारी को इस बार नवनियुक्त प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने जमीनी हकीकत से वाकिफ करवा ही दिया। विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी के करीबी रहकर कांगे्रस का पर्याय बनने तथा अपने बड़बोलेपन के लिये विख्यात राजेंद्र तिवारी को इस बार प्रदेश कांगे्रस कमेटी में स्थान नहीं मिला उन्हें न तो महासचिव बनाया गया और न ही मुख्य प्रवक्ता। उन्हें विशेष आमंत्रित सदस्य बनाकर उनके कद का अहसास करा दिया गया। विद्याचरण शुक्ल के लोकसभा चुनाव में गांधी चौक कांगे्रस भवन के पास एक चुनावी सभा में राजेंद्र तिवारी ने बाजपेयी के पिता का क्या नाम हैै? पूछकर जनता को नाराज कर दिया। खैर उनका तो कुछ नहीं बिगड़ा, विद्या भैया वह चुनाव जरूर पराजित हो गये, पिछले विस चुनाव में भी एक बार राजेंद्र तिवारी मीडिया से ही उलझ पड़े थे बाद में माफी मांगकर किसी तरह मामला सुलझाया था। बहरहाल इस बार नंदकुमार पटेल ने जरूर प्रवक्ता बनाने में विशेष सावधानी बरती, मीडिया, समिति का अध्यक्ष इंजीनियर शैलेश नितिन त्रिवेदी को बनाया तो उनके साथ अमीर अली फरिश्ता, राजेश बिस्सा, आनंद शुक्ला आदि को भी समयोजित किया हैै। सूचना के अधिकार के तहत तो राजेश बिस्सा राष्टï्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं।

पूर्व मंत्री के पीए को तमाचा

छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में चर्चित एक मंत्री के पीए उस समय उनसे भी अधिक चर्चा में थे। भाजपा के छोटे नेता और कार्यकर्ता उस समय यही नहीं समझ पाते थे कि मंत्री बड़ा है या उनका पीए! चूंकि पीए सर्वगुण संपन्न था इसलिये मंत्रीजी भी उनके खिलाफ कुछ भी सुनना पंसद नहीं करते थे। खैर पिछले चुनाव में वह मंत्री चुनाव हार गये और उनके पीए का भी रौब समाप्त हो गया। फिर भी पूर्वमंत्री ने अपने पीए को दूसरे मंत्री के पास एडजस्ट कराया पर वहां पीए की दाल नहीं गली तो दूसरे सीधे-सादे छत्तीसगढिय़ा मंत्री के पास उस पीए की तैनाती करवाने में सफलता पाई। पर वह पीए इतने बड़े आदमी हो गये कि उसी पूर्व मंत्री के एक निकटीय रिश्तेदार के काम को भी करवाने में रुचि नहीं ली। 2-3 बार भी कहने पर जब काम नहीं हुआ तो पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने उस पीए को वर्तमान मंत्री के बंगले में जाकर तमाचा रसीद करने में कोताही नहीं बरती। खैर अब इस मंत्री की भी चला-चली की बेला हैै, पूर्व मंत्री भी नाराज हो गये हैैं अब पीए कहीं और पदस्थापना की जुगाड़ में है।
और अब बस
(1)
खेल-कूद के सामानों की खरीदी में अनियमितता की शिकायत संगठन और आरएसएस नेताओं के पास पहुंच गई है। देखना है कि आगे क्या होता हैै।
(2)
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ 3 और सिंह भी अमेरिका यात्रा पर रवाना हो गये हैं। मंत्रालय सहित फील्ड में पदस्थ अधिकारी कुछ दिन जरूर तनावमुक्त रह सकते हैं।
(3)
2 सगी बहनों की उम्र में 3 माह का अंतर है। उन्हें नौकरी में रखने पर पापुनि के महाप्रबंधक, लोक आयोग में इस शिकायत से परेशान हैं। दोनों की अंकसूचियों का सत्यापन भी तो उन्होंने किया है। उन्हें इस शिकायत का कोई काट भी तो नहीं मिल रहा हैै।

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