Wednesday, November 30, 2011

यूं लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन हैै लिखने वाले को भी ये खबर नहीं
किस्से में जो नहीं है वही बात खास है

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और संगठन के कुछ बड़े लोग पीले और सफेद पर्चों से परेशान है। इन पर्चों के माध्यम से पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को उभारने का प्रयास किया गया है ऐसा लगता है। वैसे प्रदेश में पार्टी के सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी समय-समय पर अपना असंतोष जाहिर करते रहे हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ये पर्चे किसने जारी किया है उसकी जांच होगी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा पार्टी के असंतुष्टï या कांगे्रस के लोगों पर यह पर्चा जारी करने का आरोप मढ़ रहे हैं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी चुटकी ली है कि सवाल यह नहीं है कि पर्चा किसने जारी किया है सवाल यह है कि पर्चे में जो असंतोष जाहिर किया गया है उस पर सरकार और संगठन को जांच करना चाहिए।
बहरहाल भाजपा में असंतोष कोई नई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के चुनाव से यह असंतोष परिलक्षित हो गया था। नेता प्रतिपक्ष बने नंदकुमार साय, पार्टी अध्यक्ष भी रहे, उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में नये क्षेत्र मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतार कर उन्हें शहीद करा दिया गया। वहां से पराजित होने के बाद वे स्वत: ही मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बने शिवप्रताप सिंह को प्रदेश की राजनीति से अलग कर राज्य सभा भिजवा दिया गया उनका बेटा तो पार्टी से बगावत कर चुनााव मैदान में भी उतरा था। एक और अध्यक्ष ताराचंद साहू की हालत तो और भी खराब है। लगातार भाजपा की ओर से सांसद बनने वाले ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाकर भाजपा की जड़ों में मठा डालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमप्रकाश पांडे भी हासिये में है। हां, दुर्ग जिले में महापौर, विधायक और सांसद बनकर सुश्री सरोज पांडेय ने एक रिकार्ड बनाया है और वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्टï्रीय पदाधिकारी है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय, जनता पार्टी की सरकार में बस्तर से एक मात्र गैर आदिवासी के रूप में विधानसभा चुनाव में विजयी होकर संसदीय सचिव बनने वीरेंद्र पांडे भी हासिये पर है तथा पार्टी से बाहर हैं। डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने पर विधायक खरीदी-बिक्री के मामले को प्रकाश में लाने वाले वीरेंद्र पांडे को उपहार स्वरूप राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था पर बाद में उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी गई और वे पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव भी लड़कर पार्टी से बाहर हो गये वे आजकल भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद और विद्याचरण शुक्ल-श्यामाचरण शुक्ल को लोकसभा चुनावों में पराजित करने वाले रमेश बैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उपेक्षित ही है। वे कभी-कभी असंतोष जाहिर भी करते रहे हैं। इस सरकार द्वारा नियुक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने कहा था यह मामला काफी चर्चा में रहा फिर भी राजीव रंजन काफी समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे। कमल विहार योजना का भी उन्होंने विरोध किया था पर यह योजना शुरू कर ही दी गई पार्टी के एक सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी प्रदेश सरकार से संतुष्ट नहीं है। हाल ही में उन्होंने पुलिसिया कार्यवाही से नाराज होकर 'प्रशासनिक आतंकवादÓ का जिक्र कर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है यही नहीं हाल ही में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि यदि भाजपा की सरकार तीसरी बार बनी तो मुख्यमंत्री जशपुर का होगा। बगीचा के एक सार्वजनिक समारोह में जब जूदेव ने यह कहा उस समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा सांसद विष्णुदेव साय भी मौजूद थे। डॉ. रमन सिंह द्वारा अमर अग्रवाल और ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर पुन: वापसी भी चर्चा में रही।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठï नेता तथा छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की हालत किसी से छिपी नहीं है वे हैं तो गृहमंत्री पर पुलिस के एक सिपाही का भी तबादला उनकी मर्जी से नहीं होता है, कहा तो यहां तक जाता है कि गृहमंत्रालय के किसी भी फेरबदल में उनकी राय नहीं ली जाती। अखबरों में समाचार प्रकाशित होने के बाद उन्हें खबर मिलती है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो इस सरकार के लिये संकट मोचक है। प्रदेश में उपचुनाव हो या कोई समस्या खड़ी होती है तो उन्हें आगे करके उपयोग किया जाता है पर हाल ही में एक तथाकथित ठेकेदार के आरोप पर सरकार के मुखिया ने मुख्य सचिव से जांच करने का आदेश देकर भी सभी को चौंका दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने आरोप को तो गलत माना पर विदेशी दूतावास में सरकार की तरफ से विरोध पत्र भेजने में भी रुचि नहीं दिखाई है। बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में प्रयोग के तहत अधिकारियों की पदस्थापना का खेल भी जारी है। कभी भी किसी की नियुक्ति इन विभागों में की जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों में चर्चित अजय चंद्राकर को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाने से भाजपा का एक खेमा नाराज हैं। इधर तकनीकी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहित लोकसेवा आयोग में 'ऊपरÓ के दबाव पर बाहरी लोगों की नियुक्ति का भी पार्टी स्तर पर विरोध हो रहा है। इससे छत्तीसगढ़ की योग्यता पर यह भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोग इस पद के लिये नहीं हैं? खैर भाजपा का यह अंदरुनी मामला है और सत्ता-संगठन इससे कैसे निजात पाता है यह देखना है।
कांगे्रस और प्रभार
वैसे छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरह कांगे्रस में भी असंतोष तो है साथ ही भाई-भतीजावाद, बड़े नेताओं के करीबी लोगों को महत्व देने की चर्चा है। नये प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने सभी नेताओं के 'खासÓ को प्रदेश की कार्यसमिति में स्थान देकर सभी को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है पर असंतोष तो अभी भी है। अल्पसंख्यक वर्ग से मुसलमान, जैन समाज के लोग पर्याप्त पद नहीं देने से नाराज है।
हाल ही में प्रदेश के 11 लोकसभा क्षेत्र के लिये महामंत्रियों और सदस्यों को प्रभारी बनाया गया है उसमें बड़े नेताओं की पसंद का विशेष ख्याल रखा गया है। कांगे्रस कमेटी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यक्षेत्र दुर्ग और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से उनके खास समर्थक सुभाष शर्मा और उनके पुत्र अरुण वोरा को प्रभारी बनाया गया है तो बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से डॉ. शिवडहरिया प्रभारी बनाये गये हैं इस लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी पिछला लोस चुनाव लड़ चुकी है। छत्तीसगढ़ में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से हमेशा विद्याचरण शुक्ल का दबाव रहता है हालांकि अजीत जोगी भी यहां से सांसद बन चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल भी यहां से सांसद बन चुके हैं। यहां का प्रभार विधान मिश्रा को सौंपा गया है ये कभी विद्याचरण शुक्ल के करीबी थे, बाद में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गये थे। आजकल वे किसके साथ है यह स्पष्टï नहीं है। इसी के साथ बड़े नेताओं से जुड़े चंद्रभान बारमते, वेद प्रकाश शर्मा को सरगुजा, भूपेश बघेल को रायगढ़ पदमा मनहर, दीपक दुबे को जांजगीर, डॉ. प्रेमसाय सिंह को कोरबा, देवव्रत सिंह को रायपुर, फूलोदेवी नेताम, उदय मुदलियार को बस्तर, रमेश वल्र्यानी और अब्दुल हमीद हयात को कांकेर का प्रभारी बनाया गया है। वैसे इन नेताओं को लोकसभा का प्रभार क्या देखकर, क्या सोचकर दिया गया है इसका खुलासा तो नंदकुमार पटेल ही बेहतर कर सकते हैं।
राजेंद्र-सुभाष परेशान!
छत्तीसगढ़ की कांगे्रस के 2 बड़े नेता राजेंद्र तिवारी (एक बार विधानसभा में पराजित) सुभाष शर्मा (एक बार पार्षद बनने का श्रेय) बहुत परेशान है। राजेंद्र तिवारी पहले विद्याचरण शुक्ल और बाद में अजीत जोगी का दामन थामकर बड़े नेता बनने का गुमान पाल बैठे थे। इस बार नंदकुमार पटेल ने उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाकर उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है। नाराज राजेंद्र तिवारी ने हाल ही में कांगे्रस भवन में एक कार्यक्रम में (आराम-हराम है) पर अपने स्वभाव के अनुसार, टिप्पणी कर दी और अब उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की चर्चा है। वहीं सुभाष शर्मा जो अभी तक स्वयं को कांगे्रस का पर्याय मानते थे। उन्हें मोतीलाल वोरा के चलते महासचिव तो बनाया गया पर प्रभारी महासचिव नहीं बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष किसी भी महासचिव को प्रभारी महासचिव बनाने के विरोध में है। बहरहाल हाल ही में सुभाष शर्मा के सुंदरनगर में 14 साल से प्रापर्टी टेक्स नहीं जमा करने पर सुंदरनगर सोसायटी दफ्तर का पहला माला, सांस्कृतिक भवन को सील कर दिया वहीं स्कूल परिसर पर बने 28 दुकानदारों को दुकानें खाली कराने का आदेश दे दिया है। खैर महापौर किरणमयी नायक की नोटसीट से वह सील खुल भी गई। सवाल यह है कि कांगे्रस पार्टी की महापौर है और सुंदरनगर सोसायटी के सर्वेसर्वा सुभाष शर्मा भी कांगे्रस के है फिर निगम ने आनन-फानन में यह कार्यवाही क्यों की? खैर पार्षद मृत्युंजय दुबे का आरोप है कि नगर निगम रिकार्ड में काम्पलेक्स की दुकानें स्कूल के कमरे के रूप में दर्ज है और यह प्रापर्टी 2006 में दुकानदारों को सोसायटी अध्यक्ष शर्मा ने बकायदा रजिस्ट्रीकर के बेची है! परेशान है सुभाष शर्मा, भाजपा के महापौर ने कुछ नहीं किया और कांगे्रसी महापौर ने इसे अंजाम दिया...!
और अब बस
(1)
नगर निगम द्वारा राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर 2009 तक 80 लाख खर्च होता था अब सवा 2 करोड़ खर्चा हो रहे हैं... एक टिप्पणी... राजधानी में सफाई तो होती ही नहीं है...!
(2)
मंत्रालय में पदस्थ और चर्चित एक आईएएस केन्द्र की प्रतिनियुक्ति में जाना चाहते हैं वैसे दिसंबर में उनकी इच्छा पूरी होने की संभावना है।
(3)
पापुनि के महाप्रबंधक के खिलाफ लोक आयोग में 4 प्रकरण पहुंच गये हैं, प्रतिनियुक्ति अवधि भी समाप्त हो गई है। एक बड़े अफसर ने प्रतिनियुक्ति समाप्त करने का अनुरोध भी सरकार से किया है फिर अब देरी क्या है?

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