Monday, March 28, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

खुले आम सजा कौन दे रहा हैै?
निर्दोष का पता कौन दे रहा हैै?
बाजार में हो रही सो आम हत्या?
सल्फी का मजा कौन ले रहा हैै?

छत्तीसगढ़ के धुर नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर में सलवा जुडूम समर्थकों, विशेष पुलिस अधिकारियों सहित सुरक्षाबल द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार की शिकायत नई नहीं है। पहले बस्तर में आदिवासी नक्सलियों और सुरक्षाबल के बीच दो पाटों के बीच पिसने मजबूर थे बाद में एसपीओ तथा सलवा जुडूम समर्थकों की नई फौज तैयार हो गई। एसपीओ तथा सलवा जुडूम समर्थकों द्वारा निरीह आदिवासियों पर अत्याचार का चलन शुरू हुआ। बिना लायसेंस और शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लिये बस्तर में जिस तरह वहीं के युवकों को हथियार सौंपे गए तथा किसी को भी मारने की लगभग खुली छूट दी गई यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचा यही नहीं सलवा जुडूम समर्थकों, एसपीओ तथा सुरक्षाबल द्वारा आदिवासियों के घर जलाना, हत्याएं तथा बलात्कार फर्जी मामला बनाकर जेल में बंद करने की शिकायत राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग तक भी पहुंची थी। बस्तर के तत्कालीन एक पुलिस अधीक्षक ने तो कई लोगों को नक्सली बताकर रायपुर लाकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सामने आत्मसमर्पण कराया और वाहवाही भी लूटी पर बाद में आदिवासी अंचल के एक भाजपा विधायक द्वारा वास्तविकता सामने लाने पर कई तथाकथित नक्सली को छोडऩा पड़ा। जांच की घोषणा भी की गई जांच में क्या हुआ यह तो पता नहीं चला है। अलबत्ते वह एसपी आजकल आईजी के पद पर पदोन्नत हो चुका है। हालात यह थे कि राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट पर देश की प्रमुख पंचायत सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर छत्तीसगढ़ शासन को दंतेवाड़ा और बीजापुर कलेक्टरों को सलवा जुडूम, सुरक्षाबलों द्वारा आदिवासियों की नष्टï की गई सम्पत्तियों हेतु मुआवजा देने और प्रभावित गांव के परिवारों को बसाने का निर्देश दिया। खैर हाल ही में दंतेवाड़ा के 3 गांवों में करीब 300 घरों को आग लगाने के बाद कमिश्नर, कलेक्टर को राहत सामग्री लेकर जाते रोककर पुलिस ने छत्तीसगढ़ में एक नया अध्याय जोड़ा है। यदि सुरक्षा कारणों से कमिश्नर, कलेक्टर को जाने से रोका गया तो एसडीएम और तहसीलदारों को मुआवजा राशि और राहत सामग्री लेकर कैसे पहुंचने दिया गया क्या छोटे अधिकारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की नहीं है। इसके पहले भी मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को जबरिया रोका गया, नारेबाजी की गई तो क्या किसी के खिलाफ कार्यवाही की गई? वैसे कमिश्नर और आईएएस और आईपीएस के बीच टकराव की नौबत आ गई थी। कमिश्नर और कलेक्टर की शिकायत पर एसएसपी को तो हटाया गया पर टकराव रोकने दंतेवाड़ा कलेक्टर प्रसन्ना को भी शहीद किया गया।
सक्ती के स्वामी!
छत्तीसगढ़ में जन्में श्यामराव उर्फ स्वामी अग्निवेश काफी दुखी हंै। पिछली बार जब उनके प्रयास से पांच अपहृत पुलिस कर्मियों को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाया गया था तो उनकी काफी वाहवाही हुई थी। उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा मिला था। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ उन्होंने संयुक्त पत्रवार्ता की थी। डीजीपी विश्वरंजन उनके बगलगीर थे पर इस बार उनके साथ तथाकथित लोगों ने अच्छा व्यवहार नहीं किया है। हालांकि स्वामीजी ने सुकमा रेस्ट हाऊस में आरोप लगाया है कि विरोध के पीछे पुलिस का हाथ है। ग्रामीणों को उकसाकर पुलिस मामले की सच्चाई छिपाना चाहती है। इस विरोध से यह स्पष्टï है कि 300 घरों को फूंके जाने के पीछे पुलिस जवानों और एसपीओ की भूमिका है। इधर स्वामी अग्निवेश और उनके साथ के लोगों से दोरनापाल में घटित घटना पर डीजीपी विश्वरंजन का बयान भी चर्चा में है। वे कहते हैं कि उन्होंने भी घटना के बारे में सुना है। खबर लगी है कि स्वामी अग्निवेश ने डॉ. रमन सिंह से चर्चा की है। अलबत्ता उनसे किसी ने चर्चा नहीं की है और न ही शिकायत की है, उनसे शिकायत करने पर किसी तरह की कार्यवाही पर विचार किया जाएगा। सवाल फिर यही उठ रहा है कि नक्सलियों और सरकार के बीच सुलह के लिये प्रयासरत स्वामी अग्निवेश के विषय में डीजीपी का यह बयान क्या गैर जिम्मेदाराना नहीं है। वैसे स्वामी जी ने कहा है कि एसएसपी कल्लुरी को स्थानांतरित नहीं निलंबित किया जाना चाहिए था।
खैर बहुत कम लोगों को पता है कि स्वामी अग्निवेश का जन्म 21 सितंबर 1939 को सक्ती (अब छत्तीसगढ़) में हुआ था। इनका नाम श्यामराव है और इनके दादा सक्ती राज परिवार के दीवान भी रह चुके हैं। अभी भी इस राजपरिवार से स्वामी अग्निवेश के अच्छे संबंध हैं। खैर सक्ती में पैदा होने के बाद इन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कालेज में बिजनेस व्याख्याता भी रहे। बाद में हरियाणा जाकर आर्य समाजी बन गये। 1977 से 82 तक राज्य के शिक्षा मंत्री भी रहे बाद में बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाया और अभी भी कार्यरत हैं।
छत्तीसगढ़ में शांति अभियान पर निकले स्वामी अग्निवेश के लिए शनिवार अच्छा साबित नहीं हुआ। स्वामी जी ताड़मेटला आदिवासी इलाकों में राहत सामग्री लेकर दंतेवाड़ा जा रहे थे पर कुछ लोगों ने हल्ला बोल दिया, राहत सामग्री लूट ली, उनके वाहन पर अंडे और टमाटर फेंके यही नहीं कुछ ने थाने में जाकर शिकायत भी की कि स्वामी जी नक्सलियों के लिए लाखों रुपये (35 लाख) लेकर आ रहे थे। बहरहाल 13-14 मार्च को सुरक्षाबल एसपीओ ने ताड़मेटला सहित पास के 2 गांवों में कुछ घरों में आग लगा दी मारपीट की हालांकि बलात्कार का भी आरोप लगाया जा रहा है खैर आगजनी के शिकार करीब 50 परिवार आज भी खुले आसमान के नीचे दिन गुजार रहे हैं। शनिवार को स्वामी अग्निवेश इन्हीं के लिए कंबल और अन्य राहत सामग्री लेकर जा रहे थे। पता चला है कि स्वामीजी दोरनापाल पहुंचे तो वहां सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं ने उनके वाहन पर अंडे, टमाटर फेंके और वापस जाने के लिए कहा, पुलिस सूत्र इसे असामाजिक तत्वों का कृत्य बता रही है खैर किसी तरह स्वामी जी को सुकमा रेस्ट हाऊस सुरक्षित पहुंचा दिया गया पर कलेक्टर प्रसन्ना तथा एस.एस.पी कल्लूरी सुरक्षित नहीं रह सके उन्हें राज्य सरकार ने स्थानांतरित कर दिया है। भाई प्रसन्ना को नक्सली जिले से हटाकर राजधानी में नगर निगम का कमिश्नर बनाया गया है वैसे किसी कलेक्टर को निगम आयुक्त बनाने की यह संभवत पहली घटना है।

विकल्प नहीं?

छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या लगातार बढ़ती जा रही है पर यह कहा जाता है कि विकल्प नहीं है इसलिए सरकार की मजबूरी है। डीजीपी विश्वरंजन का कोई विकल्प नहीं है। क्या जेल डीजी संत कुमार पासवान, होमगार्ड डीजी अनिल नवानी विकल्प नहीं बन सकते हंै? जबकि दोनों अधिकारियों को फील्ड का अधिक अनुभव है। संतकुमार पासवान तो अब नक्सल प्रभावित जिले रायपुर, राजनांदगांव, बिलासपुर के पुलिस कप्तान रहे तो बस्तर के डीआईजी, आईजी का कामकाज सम्हाल चुके हंै, यही नहीं बस्तर में निर्विघ्र चुनाव कराने उन्हें तत्कालीन चुनाव आयुक्त लिंगदोह ने भी बधाई संदेश भेजा था। वैसे प्रदेश में पुलिस के सभी विभागों में वे सेवाएं दे चुके हैं तो सीआईएसएफ डीआईजी भी रह चुके हैं। राजधानी में आईजी भी रह चुके हैं। अनिल नवानी का भी अभी तक का रिकार्ड अच्छा है यह जरूर है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वे पदस्थ नहीं रहे हैं। अभी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में तैनात टी जे लांगकुमेर और डीआईजी कल्लुरी का विकल्प नहीं मिल रहा था पर आखिर सरकार को कल्लुरी को बस्तर से हटाना ही पड़ा और उनके विकल्प के रूप में अंकित गर्ग को तैनात किया गया। एक समय यह भी चर्चा होती थी कि तत्कालीन आईजी गुप्त वार्ता डीएम अवस्थी का भी विकल्प नहीं है पर बाद में मुकेश गुप्ता को विकल्प बनाया गया और वह सही विकल्प साबित भी हुए हैं क्योंकि बस्तर में लगातार नक्सली पकड़े जा रहे हैं पर कानून व्यवस्था की स्थिति जरूर कुछ चिंताजनक है।
आईपीएस अफसरों में सीआरपीएफ के डायरेक्टर जनरल और पुलिस अकादमी के डायरेक्टर का पद काफी सम्मानजनक माना जाता है और छत्तीसगढ़ कैडर के ही राजीव माथुर आजकल पुलिस अकादमी हैदराबाद में डायरेक्टर है। आखिर जेल डीजी होने के बाद भी उन्होंने प्रतिनियुक्ति की राह क्यों चुनी इस पर चिंतन जरूरी है। खैर किसकी कहां पदस्थापना करना है यह सरकार का काम है पर नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ में जहां गृहमंत्री और डीजीपी के बीच अखबार युद्घ चलता रहता है क्या यहां ईमानदारी में विकल्प ढूंढने की जरूरत नहीं है?

और अब बस

(1)
मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा है। सूत्रों का कहना है कि गृहमंत्रालय का प्रभार फिर बिलासपुर, जिले के पास जा सकता है। हां, यह तय है कि ननकी चाचा के पास अब पुलिस का विभाग नहीं रहेगा।
(2)
शिक्षा विभाग से मूलत: जुड़े और जबरिया साहित्यकार बने एक कर्मी आजकल जगह-जगह बता रहे हैं कि उनसे जुड़ी एक साहित्यिक संस्था को अब जमीन मिल गई है और कुछ अफसर भवन बनाने में जल्दी सक्रिय हो जाएंगे।
(3)
पाठ््यपुस्तक निगम का 2 लाख मासिक किराये का कार्यालय अब अभनपुर रोड से मंत्रालय के पास स्थानांतरित होने की चर्चा है। इतनी जल्दी नया कार्यालय ढूंढने का कारण आपसी मतभेद बताया जा रहा है।
आइना ए छत्तीसगढ़
खुद के करीब हो के चले जिन्दगी से हम
खुद अपने आइने को लगे अजनबी से हम
कुछ दूर चलके रास्ते सब एक से लगे
मिलने गये किसी से मिल आये किसी से हम


छत्तीसगढ़ कांगे्रस में चल रही गुटबाजी अब विधानसभा में भी दिखाई देने लगी है। डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत की सदन के भीतर भाव भगिमा को लेकर कांगे्रस विधायक दल ने उनसे सवाल पूछने के बहिष्कार करने का निर्णय लिया। विधानसभा में बकायदा इस निर्णय का पालन भी होता रहा है। गतिरोध के चलते ही विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने मंत्री की तरफ से खेद व्यक्त भी कर दिया। हालांकि वे यह भी कहते रहे कि वीडियो क्लीपिंग में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। विपक्ष चाहे तो उसे देख सकता है। पर कांगे्रस के वरिष्ठï नेता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने विस में प्रश्न पूछने पर बहिष्कार जारी रखने की बात की उनकी बात समाप्त होते ही नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने सदन में आसदी के खेद का हवाला देकर बहिष्कार समाप्त करने की घोषणा कर दी। उसी के बाद कांगे्रस विधायक दल में नेता प्रतिपक्ष के निर्णय के बाद कुछ मतभेद उभरे हैं। अजीत जोगी ने तो नेता प्रतिपक्ष को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी प्रकट की है। हालांकि नेता प्रतिपक्ष अपने फैसले को सही मान रहे हैं। सवाल फिर यह उठ रहा है कि आसंदी को खेद प्रकट करना पड़ा पर उस समय सदन में मौजूद मंत्री ने खेद प्रकट करने में रुचि नहीं ली। वैसे यह मामला भविष्य में रंग ला सकता है। ज्ञात रहे कि मूणत और कांगे्रस के वरिष्ठï विधायक नंदकुमार पटेल के बीच सदन के भीतर उपजे विवाद के चलते ही कांगे्रस विधायक दल ने सवाल नहीं पूछने का निर्णय लिया था। उस दिन जब आसंदी के आग्रह के बाद नेता प्रतिपक्ष ने विवाद समाप्त करने की घोषणा की तो उसी के बाद राजेश मूणत से सवाल पूछने से ही नंदकुमार पटेल ने इंकार कर दिया उन्होंने यह कहकर अपना रोष जाहिर किया कि वे मंत्री के जवाब से संतुष्ठï हैं।

सदन का बहिष्कार!

वैसे कांगे्रस विधायक दल द्वारा लिया गया एक निर्णय की चर्चा भी यहां जरूरी है। राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे की मानपुर के पास पुलिस मुठभेंड़ में नक्सलियों ने हत्या कर दी थी उसके बाद विधानसभा सत्र में कांगे्रस विधायक दल ने कुछ दिन सदन की कार्यवाही का लगातार बहिष्कार किया। पूरे सदन की कार्यवाही कुछ दिनों तक नहीं चली। पहले मुख्यमंत्री फिर गृहमंत्री फिर डीजीपी फिर आईजी दुर्ग आदि को एक के बाद एक निशाना बनाया गया और उसी के बाद अचानक सदन की कार्यवाही में कांगे्रस विधायक दल शामिल हो गया। सदन का बहिष्कार जिन मुद्दों को लेकर किया गया उन मुद्दों का क्या हुआ, सरकार ने विपक्ष के मुद्दे पर क्या किया यह सभी अतीत के गर्त में है। कांगे्रस ने सदन के बहिष्कार करने का निर्णय अचानक कैसे तथा क्यों वापस ले लिया इसकी जानकारी तो कई कांगे्रस के विधायकों को भी नहीं है। मीडिया को तो पता चलने का सवाल ही नहीं पैदा होता है।

सुराज की तलाश!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह 19 से 23 तथा 25 से 29 अपै्रल को चिलचिलाती धूप में दो चरणों में ग्राम सुराज अभियान चलाएंगे। हर गांव में चौपाल होगी, सरकार के कर्मचारी अधिकारी, प्रभारी मंत्री सहित मुख्यमंत्री तक हर गांव में पहुंचेंगे ऐसा पहले भी होता आया है और इस बार भी कुछ ऐसी ही योजना है। वैसे मुख्यमंत्री इस बार भी छापामार शैली में किसी भी गांव में अचानक पहुंचकर सरकार की योजनाओं की समीक्षा करेंगे वहीं ग्राम की समस्या का त्वरित हल
निकालने का भी प्रयास करेंगे। वैसे गत वर्ष ग्राम सुराज अभियान में 2 लाख से अधिक आवेदन आये थे उनका क्या हुआ इसकी पहली समक्षा जरूरी है। वैसे प्रदेश में सुराज अभियान के पहले या बाद में मंत्रिमंडल का पुनर्गठन और प्रशासनिक सर्जरी होने की चर्चा है। जो प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी कांग्रेस की सरकार के समय सरकार के करीबी थे उनमें से अधिकांश आजकल सत्ताधारी दल भाजपा के बगलगीर बने बैठे है। डा. रमन सिंह के अधीन ही आर्थिक अपराध शाखा है और उसके मुखिया नें जिस तरह हाल ही में हुई भ्रष्टï अधिकारियों की पोल खोली है छापा मारकर आय से कई गुना अधिक संपत्ति का पता लगाता है यह भी कम चिंता जनक नहीं है। आखिर अधिकारियों जनता की सुविधाओं की कटौती करके ही तो पैसा बनाया है। वैसे जानकार कहते है कि डा. रमन सिंह के पास कुछ बड़े नौकरशाहों की गोपनीय जानकारी पहुंच चुकी है, उनकी कार्यप्रणाली सहित विपक्षीदल कांग्रेस को गोपनीय जानकारी पहुंचाने का भी खबर पहुंची है। ऐसे 7-8 बड़े अफसर निशाने पर हैं। एक अफसर ने तो विभाग हटते ही विपक्ष को जानकारी पहुंचा दी है और उससे सरकार की किरकिरी भी हो रही है। वैसे एक बड़ा मंत्रिमंडल फेरबदल और प्रशासनिक सर्जरी जल्दी होनी है और उसमें डा. रमन सिंह की सख्त प्रशासक होने की छवि सामने आएगी ऐसा कहा जा रहा है।

रोगदा बांध

जांजगीर-चांपा में केएसकेएस महानदी पावर प्रोजेक्ट को रोगदा बांध बेचने के मामले में हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा की जांच समिति विस उपाध्यक्ष नारायण प्रसाद चंदेल की अध्यक्षता में बना दी है और उसमें प्रदेश के धाकड़ विधायक मोहम्मद अकबर, धर्मजीत सिंह, देवजी भाई पटेल, दीपक पटेल को शामिल किया गया है।
हालांकि इस रोगदा बांध को निजी कंपनी को देने के मामले में विपक्ष के मुख्य सचिव जॉय उम्मेन को निशाना बनाया था पर इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर सहित 2 सचिव स्तर के अधिकारी भी निशाने में हैं जिनकी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि तीनों अधिकारी मुख्यमंत्री के अधीन एक विभाग में पहले कभी न कभी पदस्थ रह चुके है। इसमें से एक अधिकारी को तो अजीत जोगी के कार्यकाल में तब विपक्षीदल भाजपा ने निशाने पर लिया था और विधानसभा में उस अधिकारी के विभाग के खिलाफ 25-30 सवाल भी पूछे थे। वहीं एक अधिकारी तो मुख्यमंत्री का काफी दिनों तक बगलगीर भी रह चुका है।

और अब बस

(1)
मुख्यमंत्री के कभी काफी करीबी रहे एक आईपीएस अफसर आजकल करीबी हो गये एक आईपीएस अफसर को निपटाने अब पत्रकारों से मेलजोल फिर बढ़ाने लगे है।
(2)
बस्तर में लोस चुनाव होना तय है किसी से एक मंत्री को सलाह दी है कि वहां की 'बोली नहीं जानताÓ 'नक्सलियों के निशाने में हूंÓ यह कहकर पल्ला झाडऩे का प्रयास अभी से शुरू कर दो नहीं तो फिर आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक रूप से टूटने की तैयारी कर लो?

Wednesday, March 9, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

एक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में, कोई देर से जाने वाला
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला


कांगे्रस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह नहीं रहें। अविभाजित मध्यप्रदेश में 3 बार मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल और केन्द्रीय मंत्री रह चुके अर्जुन सिंह को कांगे्रस के संविधान में परिवर्तन करके राष्टï्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। छत्तीसगढ़ के सच्चे हितैषी तो वे थे साथ ही पंजाब में राज्यपाल बनकर राजीव-लोगोंवाल समझौता कराना उनकी कार्यकुशलता का एक उदाहरण है। बतौर संचार मंत्री उन्होंने आम आदमी तक 'टेलीफोनÓ पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छत्तीसगढ़ के खरसिया से विधानसभा उपचुनाव और दिल्ली में लोकसभा उपचुनाव जीतकर उन्होंने अपनी लोकप्रियता ही साबित की थी। राजीव की हत्या के बाद उनकी नरसिंह राव से नहीं जमी इसीलिये उन्होंने कांगे्रस छोड़कर एन डी तिवारी के नेतृत्व में बनी तिवारी कांगे्रस में चले गये पर उनके राजनीतिक चेलों से उस वक्तउनका साथ छोड़ दिया। 1996 में वे लोस चुनाव हार गये फिर कांगे्रस वापसी के बाद 98 का लोस चुनाव भी होशंगाबाद से हार गये। 2000 में मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिये चुने गये। 2004 में यूपीए की सरकार में मावन संसाधन मंत्री बने और उच्च शिक्षण संस्थाओं पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के आरक्षण का ऐतिहासिक फैसला क्रियान्वित कराया था। वैसे जीवन के अंतिम काल में वे जरूर अलग-थलग पड़ गये। उन्हें सबसे अधिक नुकसान तब हुआ जब उनके जीवन पर लिखी पुस्तक में उनकी पत्नी के हवाले से कथित तौर पर कहा गया कि कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अर्जुन सिंह को देश का राष्टï्रपति-प्रधानमंत्री नहीं बनाकर गलती की।
वहीं दिसंबर 1984 में भोपाल में युनियन कार्बाइड से जहरीली गैस रिसाव में लाखों लोगों के प्रभावित होने पर भी अमेरिका के मुख्य आरोपी एंडसन की रिहाई में प्रदेश सरकार की मदद का आरोप था। 11 अगस्त 2010 को उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि एंडसन को छोडऩे के लिए केन्द्रीय गृहमंत्रालय का दबाव था तब नरसिंह राव गृहमंत्री थे। पर उन्होंने गांधी-नेहरु परिवार पर आंच तो नहीं आने दी पर यह कहकर भी चौंका दिया कि गैस-त्रासदी और एंडसन की गिरफ्तारी की जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दी थी पर उन्होंने चुप्पी साध ली थी। गृहमंत्रलाय पर किसका दबाव था यह राज ही रह गया।
छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक मंत्री बनाये थे
छत्त्ीसगढ़ के सच्चे हितैषी, अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पंजाब के पूर्व राज्यपाल तथा कांगे्रस के राष्टï्रीय उपाध्यक्ष अर्जुन सिंह चल बसे और उनके निधन के बाद छत्तीसगढ़ कांगे्रस के कई दिग्गज नेताओं के राजनीतिक गुरु, मार्गदर्शक भी चले गये। छत्तीसगढ़ में शहीद वीरनारायण सिंह, पं. सुंदरलाल शर्मा को उन्होंने लगातार स्मरण कर स्थापित किया तो बिलासपुर में गुरुघासीदास विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर उसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
कभी श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह को श्यामाचरण शुक्ल को कांगे्रस से निकाले जाने के बाद की राजनीति में घर जाने का बेहतर मौका मिला। 1980 के विस चुनाव में कांगे्रस को अच्छी सफलता के बाद अर्जुन सिंह स्वाभाविक तौर पर मुख्यमंत्री के दावेदार हो गये थे उस समय तो विद्याचरण शुक्ल ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए शिवभानु सिंह सोलंकी को सामने कर दिया। हालांकि वे सफल नहीं हो सके। मुख्यमंत्री बनने के बाद अर्जुन सिंह ने 'शुक्ल बंधुओंÓ की राजनीतिक पकड़ को तोडऩे की कोशिश शुरू की। शुक्ल बंधुओं को 'बाहरीÓ स्थापित करने के लिये स्थानीय ब्राह्मïण नेतृत्व को उभारा। पवन दीवान को कांगे्रस में प्रवेश कराया। पंं. सुंदरलाल शर्मा को इतिहास से निकालकर महिमा मंडित किया। सोनाखान में वीरनारायण सिंह की शहादत की याद की गई और उनकी स्मृति में सोनाखान में स्मारक बनाया गया तो सर्किट हाऊस (अब राजभवन) के सामने चौराहे का नामकरण भी वीरनाराण सिंह के नाम किया गया।
अर्जुन सिंह के इन प्रयासों से शुक्ल बंधुओं को कितना राजनीतिक नुकसान हुआ यह तो नहीं आंका जा सकता है पर अर्जुन सिंह गुट के रूप में छत्तीसगढ़ में एक नया कांगे्रसी संगठन तैयार हो गया इसमें कई शुक्ल समर्थक नेता भी शामिल हो गये थे। अर्जुन सिंह भी समझते थे कि छत्तीसगढ़ में शुक्ल बंधुओं के गढ़ को ढहाना आसान नहीं है इसलिये उन्होंने झुमुकलाल भेडिय़ा, वेदराम, भंवरसिंह पोर्ते जैसे आदिवासी नेताओं को प्रोत्साहित किया वहीं मनकूराम सोढ़ी, गंगा पोटाई आदि को आगे बढ़ाते हुए अपनी जमीन छत्तीसगढ़ में तैयार की। उन्होंने सतनामी समाज के गुुरु विजय कुमार को अपने मंत्रिमंडल में शामिल भी किया। इसका उन्हें दोहरा लाभ हुआ वे आदिवासी और सतनामी समाज के मसीहा के रूप में पहचान पाने लगे अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में पहली बार छत्तीसगढ़ से 6 कबीना मंत्री बनाए गये जिसमें 5 हरिजन आदिवासी थे। इसके अलावा 7 राज्यमंत्री एवं उपमंत्री बनाये गये यानि छत्तीसगढ़ के 13 लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। छत्तीसगढ़ में पहली बार मंत्रिमंडल में इतने लोगों का प्रतिनिधित्व मिला था।
पं. रविशंकर शुक्ल के मुख्यमंत्रित्व काल में नरेश सिंह, रानी पदमावती, गणेशराम अनंत कबीना मंत्री तो मथुराप्रसाद दुबे, केशव लाल गुमाश्ता, वीरेंद्र बहादुर सिंह उपमंत्री के रूप में शामिल रहे थे। वही कैलाश नाथ काटनू मंत्रिमंडल में केवल वीरेंद्र बहादुर सिंह को छोड़कर सभी को शामिल किया गया। वहीं भगवंत राव मंडलोई मंत्रिमंडल में केवल 3 मंत्री छत्तीसगढ़ में राजा नरेश सिंह, केशवलाल गुमाश्ता और मथुरा प्रसाद दुबे शामिल रहे। पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र मंत्रिमंडल में नरेश चंद, गणेशराम अनंत और पदमावती देवी कबीना और डॉ. रामचरण राय, रामेश्वर शर्मा, वेदराम ही शामिल थे। बाद में जरुर पुर्नगठन में नरेश चंद्र, वेदराम, किशोरीलाल शुक्ल, पं.श्यामाचरण शुक्ल को कबीना तथा रामगोपाल तिवारी, टुमन लाल को राज्यमंत्री तथा राजेंद्र प्रसाद शुक्ल को संसदीय सचिव बनाया गया था। वहीं गोविंदनारायण सिंह के मंत्रिमंडल 7 कबीना मंत्री डॉ. रामचंद्र राय,रामेश्वर प्रसाद शर्मा, बृजलाल वर्मा, वीरेंद्र बहादुर सिंह, धर्मपाल गुप्ता, भानुप्रताप सिंह, गणेशराम अनंत शामिल थे तो शारदा चरण तिवारी, बद्रीनाथ बघेल राज्यमंत्री एवं दृगपाल शाह, पे्रम सिंह उपमंत्री के रूप में शामिल थे। बाद में पुर्नगठन में छत्तीसगढ़ के 6 कबीना, 3 राज्यमंत्री तथा एक उपमंत्री को जगह दी गई।
वहीं 13 मार्च 69 से 25 मार्च 69 तक राजा नरेश सिंह के मंत्रिमंडल में केवल 2 कबीना मंत्री बृजलाल वर्मा, दृगपाल शाह को स्थान दिया गया। बाद में पंडित श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल में वेदराम, महंत बिसाहूदास, गणेशराम अनंत कबीना, भोपालराव पवार, झुमुकलाल भेडिय़ा, प्यारेलाल कंवर, चित्रकांत जायसवाल को राज्यमंत्री, देसवाय मरावी को उपमंत्री बनाया गया था। प्रकाश सेठी मंत्रिमंडल में भी 4 मंत्री किशोरी लाल शुमन, बिसाहू दास महंत, रमनलाल, झुमुकलाल भेडिय़ा तथा कमलादेवी सिंह संसदीय सचिव बनी थी बाद में पुनर्गटन में 9 मंत्री तथा 3 संसदीय सचिव बनाये गये थे। इसके बाद श्यामाचरण शुक्ल पुन: मुख्यमंत्री बने तो मथुरा प्रसाद दुबे, श्रीधर मिश्र, कबीना, रामचंद सिंह देव प्यारेलाल कंवर राज्यमंत्री तथा किशन लाल कुर्रे, बवानी लाल वर्मा संसदीय सचिव बनाये गये थे। इसके बाद कैलाश जोशी, वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, सुंदरलाल पटवा म.प्र. के मुख्यमंत्री बने।
9 फरवरी 1980 को जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने तो पहले दौर में वेदराम, झुमुकलाल भेडिय़ा, डा. दुमनलाल को कबीना मंत्री तथा भंवर सिंह पोर्ते से मनकूराम सोढ़ी, डा. कन्हैयालाल शर्मा को राज्यमंत्री बनाया। 1981 में पुनगर्ठन में कबीना मंत्री के रूप में 6 , राज्य मंत्री के रूप में 5, उपमंत्री के रूप में 2 तथा एक संसदीय सचिव यानि 14 छत्तीसगढ़ के लोगों को शामिल किया गया था। जिसमें वेदराम, झुमुकलाल भेडिय़ा, डा दुमनलाल, भवर सिंह पोर्ते, मनकूराम सोढ़ी, डा. कन्हैयालाल शर्मा कबीना मंत्री, राज्यमंत्री के रूप में भवानी लाल वर्मा, मोती लाल वोरा, बी.आर.यादव, बंशीलाल धृतलहरे, श्रीमति कमला देवी, उपमंत्री के रूप में मकसूदन लाल चंद्राकर, जीवनलाल साहू और संसदीय सचिव के रूप में गंगा पोटाई को स्थान दिया गया था। वहीं 1983 में पुनगर्ठन में 19 लोगों को शामिल किया गया था। बाद में मोतीलाल वोरा जब मुख्यमंत्री बने तो छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की संख्या 14 से घटकर 8 हो गई। मोतीलाल वोरा के मंत्रिमंडल में कबीना मंत्री के रूप में डा. कन्हैयालाल शर्मा, बी.आर.यादव, बंशीलाल धृतलहरे, कमला देवी सिंह, गंगा पोटाई तो राज्य मंत्री के रूप में चित्रकांत जायसवाल हरिप्रसाद शर्मा और रणवीर सिंह शास्त्री को शामिल किया गया था। बाद में श्यामाचरम शुक्ल 1 दिसंबर 89 से एक मार्च 90 तक मुख्यमंत्री बने तो उनके कैबिनेट में 6 कबीना, 4 राज्यमंत्री तथा 3 उपमंत्री जरूर बनाये गये थे। हां दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में जरूर छत्तीसगढ़ को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में मिला। उनके मंत्रिमंडल में 28 दिसंबर 95 के पुनर्गठन के बाद कबीना मंत्री तथा 7 राज्यमंत्री बनाये गये थे। कबीना मंत्रियों में राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, बी.आर. यादव, अशोक राव, चरणदास महंत, शिव नेताम, डा. प्रेमसाय सिंह, धनेस पाटिला, जागेश्वर साहू, बिसाहू लाल सिंह तथा राज्यमंत्री के रूप में नंदकुमार पटेल, डेरहू प्रसाद धृतलहरे, चनेशराम राठिया, सत्यनारायण शर्मा, जालम सिंह पटेल, रविन्द्र चौबे, माधव सिंह ध्रुव शामिल थे।
छत्तीसगढ़ विकास प्राधिकरण!
हालांकि अर्जुनसिंह के राजनीतिक चेले दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में ही पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और सौभाग्य से अर्जुन सिंह के दूसरे चेले अजीत जोगी नये राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. आईएएस की नौकरी से कांग्रेस की राजनीति में अजीत जोगी को लाने का श्रेय वैसे अर्जुन सिंह को ही जाता है कहा जाता है कि उन्होंने ही अजीत जोगी को रायपुर में कलेक्टर की कमान सम्हालने भेजा था बहरहाल मोतीलाल वोरा के मुख्यमंत्रित्व काल में अजीत जोगी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर सीधे राज्यसभा की सदस्यता हासिल की। खैर अर्जुन सिंह ने भी पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को उस समय समझा था तथा महत्व भी दिया था। छत्तीसगढ़ की उपेक्षा और दर्द को समझकर उन्होंने पहली बार छत्तीसगढ़ से आजादी के बाद मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया था वहीं उन्होंने छत्तीसगढ़ विकास प्राधिकरण की भी स्थापना की थी। जिसका मुख्यालय रायपुर था। इस प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल में शामिल जुमुकलाल भेडिय़ा को दी गई थी। प्राधिकरण के अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री थे। वहीं प्राधिकरण के सचिव के रूप में तत्कालीन संभाग कमिश्नर शेखर दत्त को मनोनीत किया था। शेखर दत्त इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के राज्यपाल है। खैर छत्तीसगढ़ विकास प्राधिकरण ने क्या किया, बाद में यह प्राधिकरण भंग हो गया, क्यों भंग किया गया तह तो नहीं कहा जा सकता पर यह तो तय है कि अर्जुन सिंह को छत्तीसगढिय़ों की चिंता थी इसीलिए उन्होंने छत्तीसगढ़ के समग्र विकास के लिए प्राधिकरण का भी गठन किया था।
और अब बस
1985 में विधानसभा चुनाव में सफलता के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ अर्जुन सिंह ने ली और दूसरे दिन ही पंजाब के राज्यपाल नियुक्त हो गये। एक पुलिस अधिकारी के अंतरंग संस्मरण (परित्राणाय साधुनाम) पुस्तक में डॉ. आर एल एस यादव ने लिखा है कि राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह से वादा किया था कि वे केवल 6 माह के लिए पंजाब चले जाएं। वहां शांति स्थापित कर लोकप्रिय सरकार बनाने के लिये चुनाव कराना है। चुनाव समाप्त होते ही उन्हें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में वापस आने की छूट होगी। उनसे यह भी कहा गया था कि अपने उत्तराधिकारी के रूप में वे जिस विधायक को चाहे मुख्यमंत्री मनोनीत कर सकते हैं। क्या कारण था! क्या परिस्थितियां थी! जिसके कारण अर्जुन सिंह ने मोतीलाल वोरा को अपना उत्तराधिकारी चुना! यह तो ज्ञात नहीं है परंतु इस निर्णय से वे अपने जीवन के बाद के वर्षों में पछताते अवश्य पाये गये।

Tuesday, March 1, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

कुछ सोच के चुप रह गया आवाज न निकली

वो मुझसे मेरे घर का पता पूछ रहा था


जिला स्तर पर कलेक्टर प्रशासनिक प्रमुख होता है पहले उसे लाट साहब कहा जाता था और अंगे्रजों के समय से अभी तक जिला कलेक्टर को असीमित अधिकार मिले हैं। नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ से जुड़े उड़ीसा में मलकानगिरी के कलेक्टर का नक्सलियों द्वारा अपहरण और सशर्त रिहाई दुखद घटना ही कही जा सकती है। वैसे मलकान गिरी के कलेक्टर के अपहरण के बाद छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नक्सली प्रभावित क्षेत्र के प्रमुख अधिकारियों को सतर्कता बरतने की सलाह देकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री पा ली है। वैसे भाई विश्वरंजन को नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर कुछ खास पसंद नहीं है। नौकरी के प्रारंभिक दौर में वे बस्तर में रहे हैं पर डीजीपी बनने के बाद बस्तर से न जाने क्यों उन्हें विरक्ति हो गई है।
कभी कभार किसी बड़ी घटना को नक्सलियों द्वारा अंजाम देने पर वे बस्तर जरूर जाते हैं पर लौट भी आते हैं उन्होंने कभी वहां रात बिताई है ऐसा प्रमाण तो नहीं है। खैर हाल ही में 5 एसएएफ के जवानों का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया और उनके रिश्तेदार बस्तर के जंगलों में खोज करने निकल गये। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को स्वामी अग्निवेश से अनुरोध करना पड़ा और उन्होंने बकायदा राजकीय अतिथि बनकर अहृत जवानों को नक्सलियों से (निशर्त?) रिहा भी कराया। वैसे दंतेवाड़ा में एक इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल 'सहारा समयÓ के एक उत्साही पत्रकार ने बीते साल अहृत जवानों को रिहा कराया था। खैर अब तो डीजीपी साहब नक्सलियों की हिट लिस्ट में आ गये हैं ऐसी चर्चा है और ऐसे में वे नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर जाकर नक्सलियों के खिलाफ जमीन की लड़ाई सीधे लड़ेंगे या सुरक्षा बल का नेतृत्व करेंगे ऐसा लगता नहीं है। वैसे सीआरपीएफ के डीजी विजय कुमार जरूर कुछ समय से बस्तर की खाक छान रहे हैं, सुरक्षाबल के लोगों से रु-ब-रु हो रहे हैं, सुरक्षाबल के सहित सलवा जुडूम समर्थकों के राहत कैम्पों में रात गुजार रहे हैं यही नहीं 2-3 बात तो नक्सलियों के खिलाफ एम्बुश का भी नेतृत्व कर चुके हैं। वैसे अब वे जब रायपुर में विमान से उतरते हैं तो कोई बड़ा पुलिस अधिकारी उन्हें रिसीव करने नहीं जाता है क्योंकि ऐसे में बस्तर जाने का खतरा बना रहता है। हो विजय कुमार की वापसी पर जरुर पुलिस के बड़े अफसर विदाई देने पहुंच जाते हैं।

पुलिस भारी या पुलिस पर भारी...

छत्तीसगढ़ में आजकल न्यायधानी बिलासपुर सुर्खियों में है। न्यायधानी में सुरक्षा व्यवस्था की हालत किसी से छिपी नहीं है। बिलासपुर के ही मूल निवासी विनोद चौबे की राजनांदगांव पुलिस अधीक्षक रहते मानपुर में नक्सलियों द्वारा उनके कुछ सुरक्षा कर्मियों सहित हत्या कर दी गई थी। पुलिस निरीक्षक शहीद अब्दुल वहीद भी यही के निवासी थे। खैर बात न्यायधानी की सुरक्षा व्यवस्था की हो रही है। यहां पुलिस अधीक्षक थे जयंत थोराट, एक सिनेमा छविगृह के कर्मचारी की पुलिस कर्मियों द्वारा मारपीट से मौत के मामले में उन्हें घसीटा गया, फिर पत्रकार सुनील पाठक की हत्या हो गई और उन्होंने एक आरोपी को पकड़ा भी पर उन पर दबंगता का आरोप लगाकर हटा दिया गया उनके स्थान पर पुलिस अधीक्षक अजय यादव को बनाया गया और पुलिस पर दबंगता का आरोप हटा और नेताओं पर दबंगता का आरोप लगना श्ुारू हो गया है। जयंत के समय पुलिस भारी पड़ रही थी तो यादव के समय राजनेता और अपराधी भारी पड़ रहे हैं।
पत्रकार सुनील पाठक हत्याकांड का खुलासा नहीं हो सका और राज्य सरकार को सीबीआई से जांच कराने का निर्णय लेना पड़ा। इधर 3 फरवरी को क्राइम ब्रांच से सूचना मिलने पर चोरों को पकडऩे गये आरपीएफ के उपनिरीक्षक एस पी सिंह और हवलदार सी पी सिंह की आरोपियों ने हत्या कर दी। उपनिरीक्षक सिंह पहले भारतीय सेना में थे और कारगिल युद्घ में भी हिस्सा लिया था। इधर 4 फरवरी को तिफरा नगर पंचायत अध्यक्ष के पति राजेश शुक्ला, सभापति विजय वर्मा ने चौकी में पदस्थ हवलदार क्रांति बानी और नगर सैनिक रामचरण की चौकी में घुसकर जबरदस्त पिटाई कर दी। ये नेता मोटर सायकल चलान करने से नाराज थे। इधर 4 फरवरी को ही भाजपा के विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिलाध्यक्ष योगेश बाजपेयी ने यातायात डीएसपी इरफान से मारपीट की। यहां मारपीट का कारण यातायात चेकिंग ही बना। वैसे बिलासपुर में जब देश की सबसे बड़ी न्याय पंचायत के मुखिया पहले आये थे तो एक दबंग मंत्री द्वारा एक डिप्टी कलेक्टर को तमाचा मारने की भी घटना घटित हो चुकी है। यहां मामला प्रोटोकाल के दायरे में नहीं आने के कारण मंत्रीजी को मनपसंद विश्रामगृह नहीं मिलना था। खैर नये मामलों में दोषी के खिलाफ जुर्म कायम ही हुआ है पर इस तरह की घटनाएं सुरक्षा बल को आहत तो करती ही है।

महंगी बिजली क्यों?

छत्तीसगढ़ राज्य भरपूर बिजली उत्पादन के चलते 'जीरो पावर कटÓ वाला राज्य बन गया है और छत्तीसगढ़ राज्य देश के कुछ राज्यों को बिजली बेचकर वहां भी रोशनी पैदा करने में मदद करता है पर इसी छत्तीसगढ़ में अब गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों से लेकर उद्योगपतियों तक की हालत खराब हो जाएगी ऐसी लगता है क्योंकि राज्य विद्युत मंडल ने नियामक आयोग को बिजली दर बढ़ाने पर प्रस्ताव भेजा है। वैसे छत्तीसगढ़ का दुर्र्भाग्य ही है कि यहां सबसे अधिक सीमेंट कारखाने हैं पर यहां के लोगों को महंगा सीमेंट मिलता है उसी तरह यहीं बिजली बनती है और यही के लोगों को अब महंगी बिजली मिलेगी। करीब 13 लाख गरीब परिवारों को नि:शुल्क बिजली देने वाली प्रदेश सरकार के घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं के लिये डेढ़ रुपए प्रति यूनिट की दर को ढाई रुपए करने जा रही है। यदि नियामक आयोग ने प्रस्ताव मान लिया तो 200 यूनिट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वालों को 1.60 पैसे से 3 रुपए 20 पैसे, 500 यूनिट खर्च करने वाले को एक रुपए 90 पैसे से 3 रुपए 65 पैसे प्रति यूनिट देने होंगे। इधर छोटे और मध्यम व्यवसायियों को 30-40 प्रतिशत वृद्घि का सामना करना पड़ेगा। जबकि कृषि पंप उपभोक्ताओं को 140 प्रतिशत वृद्घि का सामना करना पड़ेगा।
दरअसल बिजली विभाग से जुड़े एक बड़े अफसर का कहना है कि मंडल के विखंडन के कारण खर्च बढ़ा है और उसकी पूर्ति के लिये विद्युत शुल्क बढ़ाना मजबूरी है। वैसे विद्युत मंडल विखंडन के पहले लाभ में चल रहा था पर विखंडन के 2 साल बाद ही 750 करोड़ के घाटे में चला गया यह बात भी हजम नहीं हो रही है। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि विखंडन के पहले विद्युत मंडल लाभ में चल रहा था तो विखंडन करने की क्या जरूरत थी? क्या विखंडन के बाद खर्च बढ़ा है तो क्या उसकी भरपाई आम नागरिकों से की जाएगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऊर्जा मंत्रालय अभी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है। संवेदनशील मुख्यमंत्री जो गरीबों को सस्ता अनाज, मुफ्त नमद दे रहे हैं, बस्तर में चना वितरण की शुरुवात कर रहे हैं विद्युत मंडल के उपभोक्ताओं को बिजली दर बढऩे पर होने वाली असुविधा से पर क्यों अभी मौन हैं।

और अब बस

(1)
कालीबाड़ी चौक के पास इंदिरा गांधी की प्रतिमा को हटाने नहीं हटाने को लेकर भाजपा और कांगे्रस आमने-सामने आ गये थे पर अब विमानतल का नामकरण राजीव गांधी, श्यामाचरण शुक्ल के नाम करने को लेकर कांगे्रस का दो घड़ा आमने-सामने आ गया है।

(2)

दुर्ग कलेक्टर के पद पर ठाकुर राम सिंह की पुन: वापसी हो गई है एक टिप्पणी 'अभी ठाकुरोंÓ का समय अच्छा चल रहा है।

(3)

संजरी बालोद में कांगे्रस की पराजय: जोगी जाते हैं तो हराने का आरोप लगता है नहीं जो हैं तो हराने का आरोप लगता है। खैर जो भी हो बृजमोहन अग्रवाल तो अपने मिशन में सफल रहे।