Tuesday, February 26, 2013

गवाही दुश्मनों की कह रही है सुलहनामें में
नकाबों में चेहरों का अंदाजा नहीं होता

पिछले राज्योत्सव में विडियोकान चर्चा में था इस बार राज्योत्सव तो बिना किसी चर्चा के निपट गया पर आईपीएल मैच और एक बड़ी औद्योगिक कंपनी की चर्चा शुरू हो गई है। पिछलो राज्योत्सव में विडियोकान की तरफ से फिल्म अभिनेता सलमान खान मंच पर आये थे और प्रदेश के मुखिया और संवैधानिक मुखिया को लाइन लगवाकर उनसा स्वागत करा दिया गया था इसको लेकर काफी किरकिरी भी हुई थी इस बार राज्योत्सव में किरकिरी नहीं हुई पर आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) राजधानी में प्रस्तावित है और तिल्दा के पास जीएम आर पावर इस आयोजन में रूचि ले रहा है। हाल ही में इस पावर के जी.एम. राव रायपुर आए थे। उन्होंने परसदा के पास के स्टेडियम का अवलोकन किया और आईपीएल की तैयारियों का भी जायजा लिया। बड़ी बात यह है प्रचार में लगी जीएम आर पावर कम्पनी ने भी इस बात को तो गुप्त रखा और खेल विभाग सहित सरकार ने भी।
वैसे छत्तीसगढ़ की राजधानी में यदि आईपीएल अच्छे से निपट गया तो छत्तीसगढ़ को बीसीसीआई के 31 वें सदस्य के रूप में मान्यता मिलना लगभग तय है, रणजी से मान्यता भी मिल जाएगी और अंतर्राष्ट्रीय मैच का रास्ता भी खुल जाएगा।
इधर आईपीएल कराने खेल विभाग की टीम नागपुर से दिल्ली तक की खाक छान रही है। उन्हें शायद भिलाई रेंज के पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा नहीं दिख रहे हैं। जो राज्य में पूर्व में खेल आयुक्त रह चुके हैं, कामन वैल्थ जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में भी वे सुरक्षा प्रभारी थे तथा खेल आयोजन को काफी निकट से देखा है। खैर खेल संचालनालय से अब पुलिस का रोल समाप्त हो गया है। तभी तो राजकुमार देवांगन को हटाकर जितेन्द्र शुक्ला को प्रभारी बनाया गया है।
मेट्रो रेल और दिक्कत
छत्तीसगढ़ में मेट्रो रेल के लिये राजधानी रायपुर से राजनांदगांव तक रेल लाईन का सर्वे शुरू हो चुका है। इस बार भी बजट में एक करोड़ की राशि आरक्षित की गई है। सूत्र बताते हैं कि सर्वे के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि मेट्रो चलेगी अथवा नहीं।
दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन (डीएमआरसी) तीन माह से रायपुर, दुर्ग तथा राजनांदगांव जिलों का सर्वे कर रही है। सूत्र कहते हैं कि प्रारंभिक सर्वे में भूमिगत रेल लाईन की जगह पिलर खड़ा करके मेट्रो रेल दौड़ाने की अधिक संभावनाएं है। रायपुर, भिलाई, दुर्ग तथा राजनांदगांव में यातायात का दबाव बहुत है साथ ही साथ घनी आबादी भी है ऐसे में रेल लाईन बिछाने में दिक्कत आ सकती है वहीं लागत भी बहुत बढ़ सकती है।
रायपुर में तेलीबांधा के पास से आमापारा होकर नेहरूनगर भिलाई और वहां से अंजोरा होकर राजनांदगांव तक मेट्रो चलाने की योजना है। प्रारंभिक चरण में रायपुर से दुर्ग तक ही मेट्रो रेल चलाने को लेकर सर्वे शुरू हो गया है। सूत्र कहते हैं कि राजधानी से राजनांदगांव तक 92 किलोमीटर में मेट्रो चलाने की योजना है और इसके लिये 150 से अधिक मेट्रो स्टेशन भी बनाना प्रस्तावित है।
सूत्र बताते हैं कि घनी आबादी के चलते भूमिगत रेल लाईन या स्टेशन कम स्थान पर रहेगा और डिवाइडर के ऊपर पिलर खडा करके रेल दौड़ाने को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। बहरहाल सर्वे रिपोर्ट के बाद ही मेट्रो चलेगी या नहीं इसका फैसला हो सकेगा।
पुलिस अफसरों की कमी!
छत्तीसगढ़ में आईपीएस के 103 स्वीकृत पदों के खिलाफ 73 अफसर ही तैनात है इसके बाद भी अगले माह कुछ बड़े अफसर सेवानिृत्त हो जाएंगे ऐसे भी नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ में आईपीएस अफसरो का टोटा हो जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद स्वागत दास, रवि सिन्हा तो केन्द्र से आए ही नहीं वहीं विनोद सिंह, प्रदीप गुप्ता, जयदीप कुमार, विवेकानंद , अमरेश कुमार, अमित कुमार, नेहा चंपावत मिगोई डेपूटेशन पर केन्द्र चले गये हैं। हाल ही में एडीजी एम. डब्लु अंसारी भी डेपूटेशन पर चले गये हैं।
होमगार्ड महानिदेशक संत कुमार पासवान, पुलिस महानिदेशक सरगुजा रेज भरत सिंह अप्रेल में सेवानिवृत्त हो जाएगे वहीं कांकेर के डीआईजी जयंत थोराट की भी सेवानिवृत्ति इसी साल हो जाएगी। हालत यह है कि डीजीपी रामनिवास के चुनाव बाद सेवा निवृत्त होने के बाद प्रदेश में डीजी स्तर के एक ही अधिकारी गिराधारी नायक बचेंगे यानि प्रदेश को 10 माह केवल एक ही डीजी से काम चलाना पडेेगा।
वैसे पुलिस के बड़े अफसर संजय पिल्ले, डीएम अवस्थी, आर.सी. पटेल, राजकुमार देवांगन, जुटी राजधानी में तो है पर प्रतिनियुक्ति में दूसरे विभागों में है। कुल मिलाकर पुलिस अफसरों की कमी से सरकार को जूझना पड़ेगा यह तय है।
मैं चुनाव नहीं लडूंगी!
मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की पत्नी श्रीमती वीणा सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि वे कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। धमतरी में छत्रपति शिवाजी जयंती समारोह में शिरकत करने पहुंची श्रीमती वीणा सिंह ने पत्रकारों की जिज्ञासा शांत करते हुये घोषणा की कि वे चुनाव नहीं लड़ेगी उनसे जब विश्राम भवन में पत्रकारों ने पूछा कि प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव मे यदि पार्टी हाईकमान आपको चुनाव लड़ने कहेगा तो क्या आप चुनाव लडेंगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारे साहब (डा. रमन सिंह) वैसे भी प्रदेश भाजपा की बागडोर सम्हाले हुए है मेरे चुनाव लड़ने का सवाल नहीं उठता है। ज्ञात रहे कि डा. रमन सिंह के अलावा आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी वीणा सिंह और पुत्र अभिषेक सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा राजनीतिक क्षेत्र में जमकर हो रही थी। वीणा सिंह ने तो स्पष्ट कर दिया कि वे चुनाव नहीं लडेंगी पर अभिषेक सिंह ने अभी चुनाव लड़ने पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी और उनकी पत्नी डा. रेणु जोगी विधायक है और अब आगामी विधानसभा चुनाव उनेके पुत्र अमित जोगी के भी लड़ने की पूरी संभावना है। सूत्र कहते हैं कि दो लोग विधानसभा चुनाव लडेंगे तो एक लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। कौन लोस चुनाव लड़ेगा इसको लेकर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है। वैसे सूत्र कहते हैं कि अमित जोगी विधानसभा चुनाव लडेंगे और वह भी किसी सामान्य विधानसभा क्षेत्र से...।
1
और अब बस...
नीतिन गडकरी के भाजपा अध्यक्ष पद से हटने के बाद एक आईएएस अफसर की अब पकड़ कमजोर हो गई है।
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केन्द्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव का ब्रीफकेस गायब हो गया... कांग्रेसी नेता कह सकते है कि प्रदेश में अज अध्यक्ष सुरक्षित नहीं तो इस समाज के लोग....!
3
छत्तीसगढ़ सरकार के एक मंत्री को आगामी चुनाव में हार जाने के लिये अभी से शर्ते लग रही है... एक टिप्पणी टिकट भी तो कट सकती है...!

Tuesday, February 19, 2013

दोपहर तक बिक गया बाजार का हर एक झूठ
मैं एक सच लेकर शाम तक बैठा रहा

225 करोड़ रूपये के खर्च से बनाये नये मंत्रालय पर मंत्री-अफसर नहीं चूहे राज कर रहे हैं। यहां चूहों ने उनकी कुर्सियों हथिया ली है। सीट, फाइल सब चूहें कुतर रहे हैं, उसके बाद ये अफसरों के हाथ लग रही हैं। इन चूहों ने अफसरों की नाक में दम कर दिया है। यह नया मंत्रालय रायपुर से 26 कि.मी. दूर है। आसपास खेत होने से वहां चूहे ज्यादा आ रहे हैं.
पेस्ट कंट्रोल के जरिये एक बार चूहों पर रोक लगाने के प्रयास भी किया गया लेकिन उससे भी बात नहीं बनी। इतना ही नहीं चूहों की यह कारस्तानी दिल्ली तक जा पहुंची और चूहों के लिये भी दिल्ली से तीन विशेषज्ञ भी आये। इस टीम ने तीन दिन तक चूहा प्रभावित इलाकों में दवा डाली। इतने में बात नहीं बनी तो चूहों के बिलों पर विशेष प्रकार के पैड बिछाए गये हैं। इन पैड पर जैसे ही चूहे आते हैं तो चिपक जाते हैं। कुछ दिन पहले ही टीम लौटी है। लेकिन परिणाम कुछ खास नहीं रहा है। चूहों की मार जारी है। पुराने बिल बंद किए तो चूहों ने नए बना लिए। इन चूहों का आक्रमण सबसे अधिक मंत्रालय में फाइबर केबल पर हो रहा है। केबल कुतरने की वजह से मंत्रालय का सिस्टम बार-बार ठप हो रहा है। ऐसे में चूहों और अफसरों की जंग जारी है।
नायक का डीजीपी बनना तय
छत्तीसगढ़ से एक और वरिष्ठ आईपीएस अफसर एडीजी एम.डब्लु. अंसारी पलायन कर केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। इसके पहले राजीव माथुर भी डीजीपी बनने के बड़े दावे के बाद भी पलायन कर दिल्ली चले गये थे। वैसे वर्तमान डीजीपी रामनिवास यादव के बाद गिरधारी नायक सहित एम.डब्लु.अंसारी ही डीजीपी पद के प्रबल दावेदार थे पर अंसारी जानते थे कि पुलिस और राजनीति में उनकी विरोधी लाबी पूरे फार्म में चल रही है इसलिये उनके लाख दावे के बाद भी उन्हें डीजीपी नहीं बनाया जा सकेगा बहरहाल अंसारी के प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद गिरधारी नायक अगले डीजीपी होंगे यह लगभग तय है। सरकार कांग्रेस की बने या भाजपा तीसरी बार सरकार बनाये, दोनों ही दलों को सरकार बनाने के बाद नायक को डीजीपी बनाना ही होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में पुलिस मुखिया बनाने में सत्तापक्ष से करीबी का काफी ख्याल रखा जाता है। पूरी योग्यता और वरिष्ठता के बाद भी वासुदेव दुबे डीजीपी नहीं बन सके, अविभाविजत म.प्र. में वे छत्तीसगढ़िया होने के कारण छले गए और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़िया होने के कारण डीजीपी पद से वंचित रहे। इसी तरह वरिष्ठता क्रम में राजीव माथुर भी राजनीति का शिकार हो गये उन्हें डीजीपी नहीं बनाया गया और वे प्रतिनियुक्ति में केन्द्र सरकार में चले गये और उन्हें पुलिस अकादमी हैदराबाद का प्रभारी बनाया गया वैसे किसी भी आईपीएस अफसर के लिये सीआरपीएफ का डीजी और पुलिस अकादमी का संचालक बनना सपना होता है क्योंकि दोनों पर आईपीएस के लिये प्रतिष्ठा के पद माने जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में योग्य अधिकारी होने के बावजूद स्व. ओपी राठौर और विश्वरंजन को लाकर डीजीपी बनाया गया और उसी समय से वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को योजनाबद्ध तरीके से पुलिस मुख्यालय से बाहर करने का क्रम शुर हो गया, वैसे अनिल नवानी पहले डीजीपी रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल भाजपा सरकार में पूरा किया। उनके सेवानिवृत्त होने के पहले से ही वरिष्ठता क्रम में दूसरे नंबर के अफसर संतकुमार पासवान के डीजीपी बनने की चर्चा थी पर उनके स्थान पर रामनिवास को डीजीपी बनाया गया। संतकुमार पासवान अप्रैल 13 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। डीजी के कैडर और नान कैडर 2 स्वीकृत पद के लिये गिरधारी नायक नान कैडर पर पर डीजी पदोन्नत हो जाएंगे वैसे उनसे बाद एम.डब्लु. अंसारी का नंबर है यदि छग में रहते तो उनका डीजी बनना तय था अंसारी केन्द्रीय अल्पसंख्यक विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर प्रतिनियुक्ति में जा रहे हैं। वैसे अंसारी जब कांग्रेस के कार्यकाल में छग में आए थे तो जशपुर में लिली कुजुरू मामले में जांच कर तत्कालीन कलेक्टर एम.आर. सारथी को दोषी ठहराने पर आईएएस लाबी उनसे नाराज चल रही थी, बाद में वे दंतेवाड़ा भेजे गए थे। 2005 में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें बस्तर रेंज का आईजी बनाया गया पर तत्कालीन एसपी जीपी सिंह (अब रायपुर रेंज के आईजी) से विवाद, आईजी निवास में गार्ड से लूट की रकम मिलने पर अंसारी को हटा दिया गया उसके बाद पुलिस मुख्यालय, जेल मुख्यालय, होकर वे पिछले ढाई साल से संचालक लोक अभियोजन के पद पर कार्यरत रहे  पासवान के अप्रैल 13 में सेवानिवृत्त होने पर गिरधारी नायक का डीजी बनना तय है. उनके बाद वरिष्ठता क्रम में अंसारी है, रामनिवास की सेवानिवृत्ति के पश्चात अंसारी डीजी बनते। रामनिवास की सेवानिवृत्त के बाद नायक का डीजीपी बनना लगभग तय है। ज्ञात रहे है कि नायक 82 बैच के तो अंसारी 84 बैच के आईपीएस है।
400 रूपये किलो टमाटर
राजीव गांधी मिशन में प्रशिक्षण ले रहे गरीब बच्चों को 400 रूपए किलो के हिसाब से खरीदकर टमाटर खिलाये गये हैं। विभागीय अधिकारी की मानें तो मुम्बई से मंगाकर टमाटर खिलाए गये थे। इसलिये इतने महंगे टमाटर पडे थे। आर.बी.सी. प्रशिक्षण केन्द्र सरायपाली में मात्र 22 बच्चों की उपस्थिति दर्ज बताई गई है पर वहां एक दिन में एक क्विंटल हरी सब्जी खरीदी की जानकारी आरआईटी के तहत सामने आई है। सरायपाली में किसी पंकज सब्जी भंडार से बिल क्रमांक 230, जनवरी 15 को 5 किलो टमाटर 400 रूपए प्रति किलो की दर से 2000 रूपए का क्रय किया गया है वहीं किसी पांडे महाराज सब्जी भंडार से बिल क्रमांक 251 के अनुसार 400 रूपए प्रति किलो की दर से 10 किलो टमाटर 4000 में खरीदा गया था। सबसे आश्चर्य तो यह है कि खंड स्त्रोत अधिकारी ने हरी सब्जी और टमाटर मुम्बई से खरीदने के कारण अधिक दाम की बात स्वीकर कर रहे हैं जबकि सरायपाली के पास सरगुजा में टमाटर के खरीददार नहीं मिलने से टमाटर सड़ने की भी खबर मिली है।
पापुनि और जांच
पाठ्य पुस्तक निगम में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ एक पूर्व अधिकारी के कार्यकाल की जांच अभी भी चल रही है पर रफ्तार (सरकारी) है। पापुनि के उक्त अधिकारी के कार्यकाल के दौरान, कागज खरीदी, आश्यकता से अधिक पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन, घटिया कागज में प्रकाशन, महापुरूषों की फोटो की छपाई और वितरण, टेंडर की शर्तों से विपरीत घटिया स्तर के कागजों की खरीदी, नियुक्तियों में अनियमितता, आदि का आरोप लगा और कुछ लोगों ने लोक आयोग और आर्थिक अपराध ब्यूरों में शिकायत, की वहां जांच जारी है। सूत्र कहतो हैं कि जांच के लिये आवश्यक कागजात और फाईल पापुनि या संबंधित विभाग द्वारा मुहैय्या नहीं कराया जा रहा है। सूत्र कहते हैं कि कार्यालय से जांच से संबंधित फाईल ही गायब है। लोक आयोग और एबीसी की जांच जरूरी कागजातों के अभाव में लंबित है। उक्त अधिकारी को हटाकर उच्च स्तर पर गोपनीयता जांच भी कराई गई है और करोड़ों की अनियमितता भी सामने आई है पर अभी तक सरकारी जांच ही चल रही है। सवाल यही उठ रहा है कि बिना नाखून के शेर पालने से आखिर लाभ क्या है। उक्त अधिकारी और उनके परिजनों की सम्पत्तियों की जांच भी कर ली जाए तो भी कई बेनामी सम्पत्तियों मिल सकती है। वैसे ईमानदार एक आला अफसर का प्रयास जारी है।
विदाई पार्टी नहीं
छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह सरकार में (सिहों) की चर्चा गर्म रही पहले शिवराज सिंह, फिर अमन सिंह की सक्रियता और उनके बढ़ते कद के चलते कई आईपीएस और आईएएस अफसर हलाकान रहे फिर इन्हीं के साथ ही प्रदेश को तब वरिष्ठ उपेक्षा कर उनसे कुछ साल जूनियर आईएएस पी जाय उम्मेन को मुख्य सचिव बनाया गया और उनसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर विश्वरंजन को दिल्ली से उनकी शर्तों पर लाकर डीजीपी बनाया गया औ नक्सली उन्मूलन की जिम्मेदारी इन पर सौंपी गई। ये दोनों अफसर काफी प्रभावशाली रहे। देश में संभवत: यह पहला प्रदेश था जहां तत्कालीन मुख्य सचिव अपने ही प्रदेश के डीजीपी को (सर) कहकर संबोधित करते थे। खैर समय बदला और जाय उम्मेन को हटाकर सुनील कुमार को मुख्य सचिव और अनिल नवानी को डीजीपी बनाया गया। जाय उम्मेन ने तो वीआरएस ले लिये पर विश्वरंजन डीजी होमगार्ड के पद पर कार्य करते रहे।
खैर सेवानिवृत्त होने के बाद ग्यारह महीनों तक जाय उम्मेन को विदाई पार्टी नहीं दी गई। बाद में उन्हें आनन-फानन कुछ अफसरों ने विदाई दी और राज्योत्सव में राष्ट्रपति से सम्मानित भी करा दिया। इधर विश्वरंजन डीजी होमगार्ड के पद से सेवानिवृत्त हो गये वे इसके पहले डीजीपी भी सबसे लम्बे समय तक रहे पर उन्हें अभी तक पुलिस मुख्यालय या आईपीएस संघ ने विदाई देना भी मुनासिब नहीं समझा। खैर कभी जाय उम्मेलन और विश्वरंजन को आईएएस और आईपीएस अफसर घेरे रहते थे और निकटता बनाने की होड़ लगी रहती थी खैर वक्त वक्त की बात है चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं।
और अब बस
0 राजिम महाकुंभ 25 फरवरी से शुरू हो रहा है, चुनावी वर्ष होने के कारण लगभग सभी मंत्री वहां जाएंगे यह तय है।
0 कांकेर और बालौद के पुलिस कप्तानों को बदल दिया गया है कारण कही आश्रम में बलात्कार तो नहीं है?
0 भाजपा सरकार मुस्लिम महिला विरोधी नहीं है जांजगीर में आखिर एक मुस्लिम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पदस्थ किया है वहीं 2 जिलों बेमेतरा और महासमुन्द में महिला कप्तान की भी नियुक्ति की है।
बूढ़ा दरख्त कांप के खामोश हो गया
पत्ते हवा के साथ बहुत दूर चले गये

छत्तीसगढ़ में भी आगामी विधानसभा चुनाव के लिये शह और मात का खेल शुरू हो गया है। भाजपा सरकार के मुखिया और बतौर मुख्यमंत्री अपनी दूसरी पारी का समापन कर तीसरी पार्टी में सत्तासीन होने की पुरजोर कोशिश डा. रमन सिंह ने शुरू कर दी है। वे जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी व्हाया बस्तर होकर ही आती है। आदिवासी अंचल बस्तर की 11 विधानसभाओं में 10 पर भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस के कवासी लखमा अकेले बस्तर अंचल में कांग्रेस का झंडा लेकर खड़े हैं। छ.ग. के नेता प्रतिपक्ष रहे महेन्द्र कर्मा पिछले विस चुनाव में पराजित हो गये और वे यह भी मानते हैं कि डा. रमन सिंह सरकार में बिना विभाग के मंत्री के रूप में बनी उनकी छवि उन्हें नुकसान भोगना पड़ा यही नहीं उन्हें निपटाने में डा. रमन सिंह की भी अहम् भूमिका रही। बहरहाल राजनीतिक जानकर कहते हैं कि बस्तर में 11 विस में 10 में भाजपा का कब्जा चरम पर है जाहिर 11 में 11 विस में भाजपा का कब्जा रह नहीं सकता है कांग्रेस की कुछ सीटें बढ़ेंगी तो भाजपा की कम होंगी यह लगभग तय है। सलवा जुडूम अभियान के चलते गांव छोड़कर इधर-उधर बसे आदिवासी, नक्सलियों तथा सुरक्षा बल की ज्यादती के शिकार आदिवासी, कारपोरेट क्षेत्र के लोगों को सरकारी मदद से अपनी जल, जंगल और जमीन से जबरिया हटाए जा रहे हैं आदिवासी सरकार से कुछ नाराज बताये जा रहे हैं। हाल ही में बस्तर में कई स्थानों पर कांग्रेस की रैलियों में आदिवासियों की उपस्थिति ने भाजपा के कान खड़े कर दिये हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अचानक बस्तर के आदिवासियों के बीच मतदान की प्रेरणा, मतदान बढ़ने का कारण, राजधानी रायपुर से अधिक आदिवासी अंचल बस्तर में मतदान पर भी कांग्रेस की अब नजर रहेगी। यह ठीक है कि राजनाथ सिंह के पुन: भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से सौदान सिंह, रामप्रताप सिंह, डा. रमन सिंह की तिकड़ी को ताकत मिली है पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में उनकी पार्टी के 18 विधायक कुछ मंत्री भी की पराजय रिपोर्ट में डा. रमन सिंह कुछ सतर्क हुए है। उन्होंने जीतने वाले प्रत्याशियों की टोह लेना भी शुरू कर दिया है। सौदान सिंह ने तो पहले ही अपना दौरा करने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। सूत्र कहते हैं कि जिस तरह पिछले विस चुनाव में कुछ सिटिंग एमएलए की टिकट कटी थी वैसा इस बार भी होगा बरहाल आदिवासियों को रिझाने में डा. रमन सिंह लगे है। सतनामी समाज तो वैसे भी कांग्रेस का परम्परागत मतदाता है, हाल ही में सतनामी समाज की आरक्षण प्रतिशत कम करने से भी समाज का बड़ा हिस्सा नाराज है। भाजपा के पास मंत्री पुन्नुलाल मोहिला, गुरूगद्दीनसीन विजयकुमार गुरू, राज्यसभा सदस्य भूषण जांगड़े इसी समाज से है पर उनका जनाधार कितना है यह किसी से छिपा नहीं है वैसे डा. रमन सिंह के कार्यकाल में अफसरशाही भारी है इसीलिये पार्टी के कुछ नेता नाराज भी बताये जाते हैं। कुछ अफसर तो सुपर सीएम की भूमिका में है।
जोगी और त्रिफला
छत्तीसगढ़ में 10 सालों से सत्ता सुख से दूर कांग्रेस नेता अब बैचेने हो गये है वे किसी भी तरह सत्तासीन होना चाहते हैं और इसके लिये आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, त्रिफला चरणदास महंत, नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे के बीच मतभेद मिटेंगे ऐसा लगता तो नहीं है। अजीत जोगी को सत्ता से उतारने में विद्यारण शुक्ल की भूमिका अहम् रही थी, उन्होंने राकांपा के बैनर तले अपने प्रत्याशी मैदान में उतारकर भाजपा को सरकार बनाने में एक तरह से मदद की यह बात और है कि बाद में भाजपा प्रत्याशी बतौर वे महासमुन्द लोकसभा से चुनाव समर में उतरे और अजीत जोगी के हाथों पराजित भी हो गये थे। वे कांग्रेस में है पर सोनिया-राहुल से काफी दूर होने के कारण वे आगामी विधानसभा चुनाव में प्रभावी भूमिका में नहीं रहेंगे। ऐसा लगता नहीं है। जहां तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का सवाल है तो युवाओं में उनकी पकड़ से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। हाल ही में युवक कांग्रेस और भाराछंस में उनके समर्थन में बड़ी संख्या में जीतकर आये हैं यदि राहुल की 40 फीसदी युवाओं को टिकट देने की योजना तय मानी जाती है तो जोगी अधिकाधिक अपने समर्थक युवाओं को टिकट दिलवाने में सफल रहेंगे वही कुछ वर्तमान में कुछ निर्वाचित विधायक उनके खास समर्थक है। रही बात त्रिफला की तो राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद दिग्विजय सिंह भारी बनकर उभरे हैं उनके मंत्रिमंडल में कभी शामिल डा. चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे और नंदकुमार पटेल के समर्थकों को वे टिकट दिलवाएंगे यह भी तय है। जहां तक मोतीलाल वोरा का सवाल है तो वे अपने पुत्र सहित 2-3 लोगों को हर बार टिकट दिलवाने में रूचि दिखाते हैं और वे इस बार भी इसमें सफल होंगे। सूत्र कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की राज्यसभा सदस्य मोहिसना किदवई के कोटे से कुछ लोग टिकट हासिल करने प्रयास करेंगे सवाल यही उठता है कि मोहिसना जी कितनी रूचि लेंगी।
नेता प्रतिपक्ष और संयोग
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष को लेकर एक संयोग बन चुका है। अभी तक के परिणाम यही बताते हैं कि नेता प्रतिपत्र अगला चुनाव जीत नहीं पाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने सम्हाली थी पर अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें मरवाही से अजीत जोगी के खिलाफ प्रत्याशी बना दिया गया और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। उस चुनाव के बाद डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे तो आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष तथा भूपेश बघेल को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। पिछले विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा तथा उपनेता भूपेश बघेल को पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार नेता प्रतिपक्ष की भूमिका रविन्द्र चौबे सम्हाल रहे हैं। देखना यह है कि वे अभी तक का रिकार्ड तोड़ते है या संयोग में अपना नाम शामिल करते हैं।
विस अध्यक्ष- उपाध्यक्ष
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अविभाजित म.प्र. के विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने यहां भी विस अध्यक्ष का पदभार सम्हाला और उपाध्यक्ष पद का दायित्व बनवारीलाल अग्रवाल ने सम्हाला था। यह बात और है कि कार्यकाल के बीच में ही उन्हें हटना पड़ा और धर्मजीत सिंह विस उपाध्यक्ष बन गये थे। छग बनने के बाद पहले विस चुनाव में राजेंद्र शुक्ल और धर्मजीत तो जीते पर भाजपा की सरकार बनी वहीं बनवारीलाल अग्रवाल को पराजय का सामना करना पड़ा। इस चुनाव के बाद प्रेमप्रकाश पांडे को अध्यक्ष बनाया गया और बद्रीधर दीवान को उपाध्यक्ष बनाया गया इसके बाद के चुनाव में प्रेमप्रकाश पांडे  चुनाव हार गये, बद्रीधर दीवान चुनाव तो जीत गये पर उन्हें विस उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया वर्तमान विधानसभा में धरमलाल कौशक अध्यक्ष तथा नारायण चंदेल उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि विस अध्यक्ष यदि विजयी होते हैं तो सरकार नहीं बनती है, वहीं उपाध्यक्ष या तो हार जाते हैं यदि विजयी होते हैं तो उन्हें उपाध्यक्ष नहीं बनाया जाता है। देखना यह है कि छत्तीसगढ़ का यह रिकार्ड धरमलाल कौशिक और नारायण चंदेल तोड़ते हैं या नहीं।
और अब बस
नये मंत्रालय भवन में एक मंत्री नियमित जाते हैं... उन्हें मंत्रालय भवन से प्रेम नहीं है असल में उनकी अगली बार चुनकर लौटने की संभावना कम है?
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अजीत जोगी, डा. रेणु जोगी और अमित जोगी... एक ही परिवार से 3 को विधायक प्रत्याशी कांग्रेस बनाती है या नहीं यही आजकल चर्चा का विषय है। एक टिप्पणी... एक को विधायक प्रत्याशी नहीं तो लोकसभा प्रत्याशी तो बनाया ही जा सकता है।
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पं. अमितेष शुक्ल परेशान है कि राजिम से उनके खिलाफ एक मंत्री के चुनाव लड़ने की चर्चा है, वैसे जोगी की नाराजगी तो अभी भी है ही?

Monday, February 4, 2013

खुद ही लहूलुहान है घर की हकीकतें
मत फेंकिये फरेब के पत्थर नये-नये

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने की घोषणा साधू-संत सम्मेलन में इलाहाबाद महाकुंभ में हो सकती है। 6 फरवरी को नवनियुक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह महाकुंभ में स्नान करने पहुंचेगे और 7 फरवरी को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित संत समागम में नरेन्द्र मोदी के नाम पर भावी प्रधानमंत्री के रूप में एक तरह की मुहर लग जाएगी। दरअसल भाजपा और उसके अनुगामी संगठन हिन्दू कार्ड फिर खेलने में जुट गये है। वैसे भी भाजपा के पास अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी के बाद कोई बड़ा लोकप्रिय या भीड़ जुटाऊ नेता बचा नहीं है। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में लम्बी पारी खेलकर अपनी हिन्दू समर्थक की छवि बनाई है। राजनाथ सिंह के उत्तरप्रदेश में हाल के विधानसभा चुनाव में मात्र 10 विधायक ही भाजपा के बने है। नेता प्रतिपक्ष लोकसभा सुषमा स्वराज को अपने गृह प्रदेश के स्थान पर म.प्र. से जीतकर लोकसभा पहुंची हैं। अरूण जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता है पर उनका भी  आम जनता के बीच वह छवि नहीं बन पाई है, बाकि बचे वैकैया नायडू, मुरली मनोहर जोशई आदि को भाजपा का युवा नेतृत्व बुजुर्ग नेता मानता है। म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को अभी राज्य की राजनीति से दिल्ली ले जाने भाजपा अलाकमान तैयार नहीं है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी का वजन पार्टी में जरूर बढ़ रहा है। भोपाल में पत्रकारवार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि जब मैं पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बना था तब मैने भाजपा संसदीय दल की बैठक में लालकृष्ण आडवाणी को भावी प्रधानमंत्री घोषित किया था। अब यदि नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री घोषित किया जाता है तो गलत क्या है। बहरहाल भाजपा के सहयोगी दल क्या करेंगे इसका पता तो भावी प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद ही चल सकेगा।
तो बृजमोहन भारी पड़ेंगे
इलाहबाद महाकुंभ में संत समागम में साधू-संत नरेन्द्र मोदी को भाजपा का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर सकते हैं। जब कांग्रेस ने इस पर अपनी टिप्पणी की तो भाजपा के प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार साधू-संत तय नहीं करेंगे तो क्या हाफिज सईद (आंतकवादी) तय करेगा। साधू-संत भी भारतीय समाज का हिस्सा है। इसका मतलब है कि भाजपा में संसद के लिये चुने जाने वालों की राय नहीं ली जाएगी। खैर भाजपा साधू-संतों का बड़ा सम्मान करती है, साधू-संतों के वचनों को नियम-कानून मानती है तो भारत के कुछ राज्यों में जहां भाजपा की सरकार है वहां भी अभी से मुख्यमंत्री पर के लिये साधू-संत की राय क्यों नहीं लेती है। छत्तीसगढ़ में हर साल राजिम में कुंभ मेले का आयोजन होता है। बड़े-बड़े तथा पहुंचे हुए साधू-संतों आते हैं. नागा साधू आते है। राजिम में त्रिवेणी संगम के तट पर रहते है यदि यहां भी संत समागम कराकर भावी मुख्यमंत्री के लिये राय ली जाए तो निश्चित ही बृजमोहन अग्रवाल का पलड़ा भारी साबित होगा। कुछ वर्षों से राजिम कुंभ का सफल आयोजन संस्कृति मंत्री के रूप में बृजमोहन अग्रवाल कर रहे हैं। हठी साधु संतो को सम्हालना बस उन्हीं के बस की बात है फिर हर साल कुंभ के अंत में आये सभी साधू-संत बृजमोहन अग्रवाल को महामंडलेश्वर भी चुनते हैं इसका मतलब है यदि राजिम कुंभ में साधू संतो की राय ली जाए तो बृजमोहन अग्रवाल को मुख्यमंत्री बनने से को नहीं रोक सकता।
इधर पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में अभी भी भाजपा की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री है यदि म.प्र. के विषय में भी राय ली जाए तो सुश्री उमा भारती को साधू-संत भावी मुख्यमंत्री के लिये नामजद कर सकते हैं। पर भाजपा में केन्द्र के लिये अलग मापदंड है और राज्यों के लिये अलग...।
14 आईएएस अफसर बोझ!
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार, काम के प्रति लापरवाही और राज्य सरकार पर एक तरह से बोझ बने 14 आईएएस अफसरों पर तलवार लटक रही है। सूत्र कहते हैं कि मुख्य सचिव के बाद एक अफसर, एक प्रमुख सचिव, एक सचिव सहित 14 आईएएस अफसर को काम न काज के, नौ मन अनाज के साबित कर दिया गया है। केन्द्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय के आदेश पर गत दिनों छग सरकार के मुख्य सचिव सुनील कुमार, प्रशासन अकादमी के महानिदेशक नारायण सिंह की मौजदूगी में कई आईएएस अफसरों के अभी तक की नौकरी और कार्यों की समीक्षा की गई। सूत्र बताते है कि कुछ अफसर तो काम के प्रति अरूचि दिखा रहे हैं, कुछ लोग कभी कभी काम पर आते है। कुछ अफसरों का पुराना रिकार्ड अच्छा नहीं है, कुछ पर भष्ट आचरण का आरोप है तो कुछ अफसर दी जाने वाली जिम्मेदारी को पूरा करने में रूचि नहीं ले रहे हैं। ज्ञात रहे कि ऐसे 14 आईएएस अफसरों को सूचीबद्ध किया गया है। कार्मिक मंत्रालय का कोई अफसर समीक्षा बैठक में नहीं आने के कारण अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है। हालांकि इस कमेटी के एक सदस्य के पुराने रिकार्ड पर भी कुछ आईएएस अफसर अब उंगली उठा रहे हैं, जिसकी पदोन्नति केन्द्र सरकार और न्यायालय के आदेश पर निर्धारित समय के लिये रोकी गई थी वे आईएएस के रिकार्ड की समीक्षा कैसे कर सकते हैं।
... और अब बस
0   एक बड़े राजनेता की पत्नी को आंटी कहने पर डांट खानेवाले एक आईएएस अफसर राजधानी में  ही जमे रहने प्रयत्नशील है हालांकि उनका राजधानी बदर लगभग तय हैं।
0     सेवानिवृत्त महिला आईपीएस किरणबेदी ने एक बार अवैध पार्किग में खड़ी तत्कालीन प्रधानमंत्री   इंदिरा गांधी की कार को उठवा लिया था। इंदिरा जी ने उनकी तारीफ भी की थी पर राजधानी के  एक पार्षद मनोज कंदोई ने मोतीलाल वोरा के घर के सामने का पाटा सार्जजनिक नाली निर्माण के  लिये तोड़वा दिया और उन पर कांग्रेस से निष्कासन की तलवार लटक रही है।
0     छत्तीसगढ़ में आदिम जाति कल्याण विभाग के 8801 स्कूलों में शौचालय नहीं है। सर्वोच्च  न्यायालय     ने 4 अक्टूबर 12 को गाईड लाईन जारी कर 6 माह से सभी स्कूलों में शौचालय बनाकर सूचित करने कहा है देखें क्या होता है।