Tuesday, November 22, 2011

हम सिर्फ तोहमतों की सफाई न दे सके,
खामोश रहकर शहर में बदनाम हो गये
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने बयानों के लिये चर्चा में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने शिक्षाकर्मियों के आंदोलन पर सरकार द्वारा एस्मा लगाने और गिरतारी के बाद कहा कि मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह 'परबुधियाÓ हैं। परबुधिया का मतलब होता है जो दूसरों की सलाह पर या उनके कहने पर कार्य करें। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव के समय अजीत जोगी ने उन्हें 'लबरा राजाÓ भी कई सभाओं में कहा था लबरा छत्तीसगढ़ी का शब्द है और इसका मतलब है 'झूठाÓ। खैर मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह को 'परबुधियाÓ यानि दूसरों की
सलाह पर काम करने वाला तो अजीत जोगी ने कह दिया पर किसकी सलाह पर काम करते हैं यह स्पष्टï नहीं किया है। वैसे छत्तीसगढ़ के कुछ भाजपा नेता, सरकारी अधिकारी, व्यापारी, ठेकेदार भी इसी तलाश में है कि मुयमंत्री किसकी सुनते हैं। पहले चर्चा थी कि डॉ. रमन सिंह तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सुनते थे, फिर चर्चा थी कि वे भाजपा संगठन के एक दूसरे 'सिंहÓ की सुनते थे। फिर चर्चा चली कि वे अपने आसपास सक्रिय दो अफसरों 'सिंहÓ की भी सुनते हैं। फिर भाजपा में ऊपरी स्तर पर परिवर्तन हो गया और नीतिन
गडकरी भाजपा अध्यक्ष और सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गई। इसके बाद से प्रदेश के कुछ हालात बदल गये हैं। इन दोनों नेताओं के प्रदेश में 2 करीबी नेता हैं पर दोनों ही डॉ. रमन सिंह के करीबी तो नहीं है यह तय है। अब डॉ. रमन सिंह अपनी दूसरी पारी में किसकी सुनते हैं इसका खुलासा नहीं हो सका है। जिस तरह उन्होंने एक झटके से डीजीपी रहे विश्वरंजन को हटाया है, नये जिलों का निर्माण कर कई भाजपा नेताओं को ही आश्चर्य में डाल दिया है, उनके तेवर से अब उनके कुछ मंत्री, सरकारी अफसर
सहित पार्टी के कुछ चर्चित पदाधिकारी पीडि़त हैं वे किसकी सलाह ले रहे हैं यह पता लगाने लोग बेकरार हैं। अजीत जोगी प्रशासनिक अफसर रहे हैं, मुयमंत्री भी रहे हैं यदि वे डॉ. रमन सिंह किसकी सुनते हैं यही स्पष्टï कर दे तो 'जनहितÓ में एक बड़ी मदद कर सकते हैं। बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप से दूर विवादों से दूर रहने की डॉ. रमन सिंह की अपनी एक अलग कला है।

कांगे्रस सक्रिय है?

छत्तीसगढ़ में कांगे्रस प्रमुख विपक्षी दल है हाल ही में यह लगने लगा है। जिस तरह सत्ताधारी दल भाजपा को कई मामलों में घेरने का प्रयास किया है उससे सत्ताधारी दल कुछ मुश्किल में लग रहा है तो कांगे्रस के लोग कम उत्साहित नहीं है। विधानसभा के भीतर और बाहर एक तरह से कांगे्रस ने राज्य सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।
राजनांदगांव के पुलिस कप्तान विनोद कुमार चौबे की नक्सलियों द्वारा हत्या के बाद कांगे्रस ने 4 दिन विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया था पर अगले दिन ही कार्यवाही ंमें भाग लेना शुरू कर दिया था। कांगे्रस ने किस कारण सदन की कार्यवाही के बहिष्कार का निर्णय लिया था यह अभी तक ज्ञात नहीं है। इधर बस्तर में ताड़मेटला, तीमापुर, मोरपल्ली में कुछ झोपड़ों में आगजनी, तत्कालीन कमिश्नर और कलेक्टर को राहत सामग्री लेकर जाने से रोकने की घटना के बाद वरिष्ठï विधायक नंदकुमार पटेल की अध्यक्षता में 10
कांगे्रसी विधायक को बस्तर में पुलिस घटनास्थल पर जाने से रोकती है और उस दौरान विधानसभा की कार्यवाही चलती रहती है यह भी चर्चा में है।
बहरहाल कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने विधानसभा में भी आक्रामक रुख दिखाया तो विधानसभा के बाहर भी उनकी सक्रियता से प्रदेश सरकार के लिये कुछ मुश्किलें तो दिखाई दे रही है। बालोद में सरकारी अस्पताल में मोतियाबिंद आपरेशन के बाद करीब 60 लोगों की आंखों की रौशनी जाने के मामले में कांगे्रस ने सरकार को जमकर घेरा है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के इस मामले में उदासीन रवैये के चलते भी कुछ नाराजगी है वहीं प्रदेश सरकार पर भ्रष्टïाचार का आरोप लगाकर लालकृष्ण
आडवाणी की एकता यात्रा के दौरान कांगे्रस के बड़े नेताओं ने गिरतारी देकर भी विपक्ष की मौजूदगी का एहसास दिलाया। वहीं धान खरीदी एक नवंबर से करने तथा किसानों को बोनस देने के नाम पर धरना भी दिया। यह धरना पूरे प्रदेश में हुआ यह बात और है कि राजधानी के 5 स्थानों पर धरना कार्यक्रम था पर यहां का जिमा लेने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और राजधानी के आसपास का जिमा लेने वाले पूर्व सांसद देवव्रत सिंह केवल एक-एक स्थान पर ही कुछ देर के लिये दिखाई दिये। बहरहाल कहने लगे है कि

प्रदेश में विपक्ष भी मजबूत हो रहा है।

बार बाला और कलेक्टर!

राज्योत्सव के समापन के अवसर पर जशपुर में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुंबई की बार-बालाओं ने 'मुन्नी बदनाम हुईÓ और 'शीला की जवानीÓ जैसे फिल्मी गानों पर फूहड़ नृत्य किया। इस कार्यक्रम में विधायक, कलेक्टर समेत कुछ प्रशासनिक अधिकारी भी देर रात तक झूमते रहे। राज्योत्सव के समापन समारोह में 'मुंबई से आई बार-बालाओं ने कम कपड़ों में नृत्य करते हुए अश्लीलता परोसी और हद तो यह हो गई कि कलेक्टर, पुलिस कप्तान देर रात तक वहां जमे रहे। अधिकारियों की उपस्थिति में कलेक्टर
अंकित आनंद भी बार-बालाओं के साथ मंच पर पहुंचकर न केवल गाना गाया बल्कि उनके साथ झूमते भी देखे गये।
पता चला है कि स्थानीय आदिवासी कलाकारों की उपेक्षा करके 9 लाख रुपए देकर मुंबई की बार बालाओं को बुलाया गया था वैसे सरकारी तौर पर इसकी पुष्टिï नहीं हो सकी है। वैसे राज्योत्सव में इस बार सांसद दिलिप सिंह जूदेव, नंदकुमार साय, संसदीय सचिव युद्घवीर सिंह की अनुपस्थिति चर्चा में रही। ज्ञात रहे कि विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष तथा वरिष्ठï विधायक रामपुकार सिंह को तो आमंत्रित ही नहीं किया गया था। बहरहाल कलेक्टर का मंच पर गाना गाना और झूमना चर्चा में है।

किरण और अमितेष

बालोद नेत्रशिविर में करीब 60 लागों की आंखों की रौशनी चले जाने और प्रदेश सरकार द्वारा मात्र 50 हजार की मुआवजा राशि देने के विरोध में कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव 2011 के बहिष्कार का निर्णय लिया था। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, पूर्व मुयमंत्री अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल सहित कांगे्रस के विधायक आदि ने बहिष्कार किया। कांगे्रसी तो राज्योत्सव देखने भी नहीं गये पर राजधानी की प्रथम महिला महापौर किरणमयी नायक और राजिम के विधायक अमितेष शुक्ला ने जरूर राज्योत्सव के
पहले दिन शिरकत की। महापौर तो मुयमंच पर विराजमान रहीं वहीं अमितेष शुक्ला नीचे दर्शकदीर्घा में रहे यही नहीं एक रात कवि समेलन में भी वे मौजूद रहे। महापौर श्रीमती किरणमयी नायक का कहना है कि वे महापौर होने तथा नगर निगम का एक स्टाल लगे होने के कारण गई थीं पर अमितेष शुक्ला ने तो कोई स्पष्टïीकरण देना भी उचित नहीं समझा। खैर किरणमयी नायक महापौर थीं इसीलिये चली गईं। बहरहाल समापन समारोह में जरूर महापौर और राजिम विधायक नहीं पहुंचे। लगता है कि संगठन ने जरूर ही उनकी पेशी ली होगी।

जल्दी होगी प्रशासनिक सर्जरी

छत्तीसगढ़ में 9 जिलों की और स्थापना हो गई है। इन जिलों के लिये जल्दी ही कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित सरकारी मुलाजिमों की व्यवस्था करना है। इसी के चलते प्रदेश में इसी माह कुछ फेरबदल हो सकता है। कुछ कलेक्टर और कुछ पुलिस कप्तान, एडीशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, एडीशनल एसपी, डीएसपी आदि को इधर-उधर किया जा सकता है। कहा तो यह जा रहा है कि नये छोटे जिलों में पदोन्नत आईएएस और आईपीएस को मौका दिया जा सकता है। वहीं अभी छोटे जिलों में तैनात कुछ अफसरों को बड़े
जिलों में पदस्थ करने की भी तैयारी की जा रही है। वैसे चर्चा तो यह भी है कि फील्ड और मंत्रालय मेें पदस्थ कुछ अफसरों के प्रभार में भी बदलाव किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि दिसंबर में विधानसभा सत्र है उसके पहले फेरबदल की जगह जनवरी में पदस्थापना ही की जाएगी और शीतकालीन सत्र के बाद बड़ा बदलाव हो सकता है। इधर चर्चा है कि मंत्रिमंडलस्र[स्र[[स्र का विस्तार या तो शीतकालीन सत्र के बाद होगा या फिर बजट सत्र के बाद किया जाएगा। शीतकालीन सत्र में रोगदा बांध के विषय में गठित विधानसभा समिति अपनी रिपोर्ट
देगी इसको लेकर विपक्ष हंगामा भी करेगा। इसलिये शीतकालीन सत्र के बाद ही एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं है।

और अब बस
(1)
उत्तर प्रदेश में जन्में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व राज्यपाल के एम सेठ भाजपा में आ गये हैं एक टिप्पणी... उत्तर प्रदेश के एक राज्यपाल भी कांगे्रस में वापस आ गये हैं और कांगे्रस की हालत किसी से छिपी नहीं है।
(2)
पूर्व डीजीपी विश्वरंजन बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे मसलन नक्सलियों को घर में घुसकर मारेंगे और वर्तमान डीजीपी अनिल नवानी चुपचाप ही रहते हैं और फाइलों में उलझे रहते हैं।
(3)
शिक्षाकर्मी फेडरेशन के एक नेता कहते हैं कि सरकार ने एस्मा के तहत गिरतार किया यानि सरकार हमें सरकारी कर्मचारी मानती है! छत्तीसगढ़ में कुछ भी हो सकता है।

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