Tuesday, October 30, 2012

रातों को जागते है इसी वास्ते कि ख्वाब
देखेगा आँख बंद तो फिर लौट जाएगा।

लगभग 11.5 विलियन रु (261 मिलियन डालर) की लागत से नई राजधानी के लिये लगभग 11000 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है। इस खर्च में निर्माण लागत को शामिल नहीं किया गया है। करीब 6 लाख की आबादी के लिये फिलहाल शहर बसाया जा रहा है। भूमि उपयोग के आंकड़ों से पहली नगर में यह मध्य दिल्ली का एक अन्य संस्करण जाना पड़ता है। नये शहर की सिर्फ 10 फीसदी हिस्सा वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग के लिये होगा जबकि सार्वजनिक तथा अर्ध सार्वजनिक उपयोग के लिये 26 फीसदी हिस्सा आरक्षित है। 26 फीसदी वाले इस हिस्से में ही स्कूल, अस्पताल और सरकारी दफ्तरों के अलावा अन्य संस्थान होंगे।
छत्तीसगढ़ की नवनिर्मित राजधानी नया रायपुर में सरकारी कार्यालयों के स्थानांतरण का काम अंतिम चरण में है। मंत्रालय एवं सरकारी कार्यालयों के स्थानांतरण के बाद 7 नवम्बर से औपचारिक रूप से काम काज शुरू हो जाएगा। वैसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 6 नवम्बर को विधिवत उद्घाटन करने वाले है। मौजूदा राजधानी रायपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नई राजधानी में सभी सचिवालय, सरकारी कार्यालय और विभाग एक जगह बनाये गये हैं। इसे करीब 8000 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित किया गया है। हालांकि बुनियादी ढांचा क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाएं अभी भी चल रही है जिसे पूरा होने में अभी समय लगेगा।
छत्तीसगढ़ राज्य का स्थापना दिवस एक नवम्बर को है और उसी दिन राज्योत्सव का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी के हाथों होना है। समापन समारोह में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी उपस्थित रहेंगे। बीच के कार्यक्रमों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता शामिल होंगे।
कांग्रेसी असमंजस में
छत्तीसगढ़ की नई राजधानी में एक से 6 नवम्बर को आयोजित राज्योत्सव को लेकर आम कांग्रेसी असमंजस में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा का कहना है कि राज्योत्सव राज्य का उत्सव है और इसमें सभी को शामिल होना चाहिये पर वे यह भी कहते हैं कि ये मेरा व्यक्तिगत विचार है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल का कहना है कि जिस दिन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आ रहे है उस दिन कांग्रेसियों को शामिल होना चाहिये। इधर कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल भी विद्याचरण शुक्ल की बात से सहमत है कि राज्योत्सव में जिस दिन राष्ट्रपति आ रहे है उस दिन कांग्रेसियों को शामिल होना ही चाहिये पर वे मोतीलाल वोरा की बातों पर भी एक तरह से सहमति दे रहे हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रपति जब राज्योत्सव के समापन पर आ रहे है तब तो कांग्रेसियों को जाना ही चाहिये पर अन्य दिनों में राज्योत्सव में शामिल होने पर किसी कांग्रेसी के लिये बंदिश नहीं है। दरअसल पिछले 2011 के राज्योत्सव में कांग्रेसियों ने बहिष्कार का एलान किया था। उसके बाद भी कवि सम्मेलन में राजिम के विधायक तथा पूर्व मंत्री अमितेष सुक्ला ने वहां शिरकत की थी पर उनके खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही नहीं हो सकी थी। लगता है कि पिछले राज्योत्सव के बहिष्कार के ऐलान के बाद नंदकुमार पटेल ने बीच का रास्ता इस बार निकालने का फैसला लिया है। वैसे अभी तक अजीत जोगी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया राज्योत्सव को लेकर नहीं आई है। वैसे जब डा. रमन सिंह के 60 वें जन्मदिन पर कांग्रेसियों ने बधाई नहीं देने का निर्णय लिया था तो अजीत जोगी ने डा. रमन सिंह के निवास पर जाकर बधाई दी थी। वैसे कांग्रेस का आम कार्यकर्ता बड़े नेताओं के बयान के बाद असमंजस में है।
और एएसआई निलंबित हो गया...
छत्तीसगढ़ पुलिस कार्य प्रणाली को लेकर अक्सर चर्चा होती है। पुलिस की अंदरूनी राजनीति और कार्य प्रणाली कैसी हो गई है इसकी भी पुलिस मुख्यालय में जमकर चर्चा है। यह खबर सच तो नहीं है पर पुलिस कार्यप्रणाली को आईना दिखने पर्याप्त है। एक किस्सा पुलिस मुख्यालय में जमकर चल रहा है। किस्सा कुछ यूं है। एक सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) ने एक बड़े बदमाश को गोली मारकर मुठभेड़ में मार गिराया। उसने इसकी सूचना थाना निरीक्षक को फोन पर दी। थाना निरीक्षक ने आदेश दिया कि रोजनामचे में उनके नाम का भी जिक्र किया जाए। निरीक्षक ने डीएसपी को बदमाश को खुद मारने की जानकारी दी तो डीएसपी ने रोजनामचे में उसके नाम को भी शामिल करने का आदेश दिया डीएसपी ने एएसपी (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक) और पुलिस अधीक्षक को बदमाश के मुठभेड़ में मारने की खबर दी और सभी के क्रमश: आदेश के बाद रोजनामचा में एएसआई से लेकर पुलिस कप्तान तक का नाम मुठभेड़ की उल्लेखनीय सफलता के रूप में शामिल हो गया। इसी के बाद जब मारे गये बदमाश का पोस्ट मार्टम कराया गया तो रिपोर्ट आई कि बदमाश पहले ही दिल के दौरे से मर गया था। मरने के बाद उसके मृत शरीर पर गोली दागी गई। बस फिर क्या था एसपी, एएसपी,डीएसपी तथा टीआई (थाना निरीक्षक) ने क्रमश: दबाव बनाकर अपना नाम रोजनामचा से हटाने का सिलसिल शुरू किया और आखिर में मुठभेड़ के नाम पर मृत बदमाश के शरीर में गोली मारने का आरोप एएसआई पर लगा और उसे निलंबित कर दिया गया। इसका मतलब यही है कि अच्छे में सभी अफसर साथ है, श्रेय लेने में सभी साथ है पर मुसबित में उसे खुद झेलनी पड़ती है।
और अब बस
0 विद्याचरण शुक्ल, नवीन जिंदल कांग्रेसी नहीं है शोषक है। मोतीलाल वोरा, नवीन जिंदल एवं उनके परिवार को अच्छे से जानता हूं, उनके माता-पिता भी कांग्रेसी थे।
0 सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी तो सभी जानते है पर बस्तर की पहाड़ी मैना सोने का अंडा देने वाली पक्षी बन गई है। मोनोगेमस होने की बात जानकर भी उस की कैप्टिव ब्रीडिंग पर लाखों खर्च किया जा चुका है।

Tuesday, October 23, 2012

तू मुसीबत में अकेला है तो हैरत कैसी
हर कोई डूबती कश्ती से उतर जाता है
जिंदगी जंग है और जंग लडऩे के लिये
जिनको जीना नहीं आता है मर जाता है

छत्तीसगढ़ में कभी कमिश्नर रहे शेखर दत्त आज राज्यपाल है, कभी रायपुर में ही बतौर कलेक्टर पदस्थ रहे अजीत जोगी को पृथक छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला, रायपुर में ही कभी कलेक्टर रहे सुनील कुमार वर्तमान में प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया या मुख्य सचिव है। कभी एडीशनल कलेक्टर तथा निगम प्रशासन रहे शिवराज सिंह मुख्य सचिव होकर सेवा निवृत्ति के पश्चात आजकल मुख्यमंत्री के सलाहकार बने हुए है। कभी यहां पुलिस कप्तान और पुलिस महानिरीक्षक रहे संतकुमार पासवान और पुलिस महानिरीक्षक रहे रामनिवास अब डीजीपी बनने की राह में है। आयुर्वेदिक कालेज छात्रावास में रहकर पढ़ाने करने वाले डा. रमन सिंह लगातार दो कार्यकाल से मुख्यमंत्री है तथा भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में रिकार्ड बना रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजधानी रायपुुर में अविभाजित मप्र के समय वरिष्ठ आईएएस अफसरों को कलेक्टर बनाया जाता था। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी रायपुर में 14 नवम्बर 78 से 26 जून 81 तक कलेक्टर रह चुके है और इसके बाद उन्हें इंदौर का कलेक्टर बनाया गया था। बाद में वे राजनीति में उतर गये, राज्यसभा , लोकसभा होकर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने, छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुमार भी अविभाजित मप्र के समय रायपुर के कलेक्टर रहे। उन्होंने 6 फरवरी 87 से 20 मार्च 88 तक रायपुर की कलेक्टरी की थी। आज वे राज्य के सबसे बड़े नौकरशाह के पद पर पदस्थ है। मुख्य सचिव का पद भार सम्हाल रहे है।
छत्तीसगढ़ में आजकल राजनांदगांव-कवर्धा को विशेष रियायत दी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों से या यों कहें कि जब से छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी है तो कवर्धा , राजनांदगांव क्षेत्र को अपनी राजनीतिक कर्म भूमि बनाने वाले डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने हैं तभी से रायपुर के कलेक्टर बनने का रास्ता व्हाया कवर्धा, राजनांदगांव होकर पूरा होता है। राजनांदगांव के कलेक्टर रहे गणेश शंकर मिश्रा 19 दिसंबर 03 से 14 जून 06 तक राजनांदगांव में कलेक्टर रहे फिर बस्तर कलेक्टर, कमिश्नर होकर आजकल वाणिज्यकर आयुक्त के महत्वपूर्ण पद पर काबिज है। कवर्धा में आई ए एस संजय गर्ग 5 जुलाई 07 से 23 मई 09 तक कलेक्टर रहे और 30 जून 09 से 9 नवम्बर तक राजधानी के कलेक्टर बनाये गये थे। इसके पहले कवर्धा कलेक्टर सोनमणी बोरा 14 जून 06 से 23 अप्रेल 08 पदस्थ रहे और उसे के बाद उन्हें सीधा रायपुर का कलेक्टर बनाया गया था। सोनमणी बोरा 23 अप्रैल 08 से 25 अक्टूबर 10 तक राजधानी के कलेक्टर बिलासपुर रहे, हाल फिलहाल छग गृह निर्माण समिति के आयुक्त सहित जन संपर्क संचालनालय के मुखिया है। राजनांदगांव में ही 6 जनवरी 2009 से 9 फरवरी 10 तक कलेक्टर रहे डा. रोहित यादव बाद में 13 सितंबर से 27 जुलाई 12 तक राजधानी के कलेक्टर बनाये गये थे. हाल फिलहाल कोमल सिद्धार्थ परदेशी भी व्हाया राजनांदगांव ही रायपुर आये है। कोमल परदेशी 23 अप्रैल 08 से 15 फरवरी 10 तक कवर्धा में कलेक्टर रहे उसके बाद उन्हें राजनांदगांव का कलेक्टर बनाया गया। राजनांदगांव में 16 फरवरी 10 से 27 जुलाई 12 तक कलेक्टर रहने वाले कोमल की पदस्थापना कलेक्टर रायपुर के पद पर की गई है। 28 सितंबर 12 को उन्होंने राजधानी रायपुर में कलेक्टरी सम्हाली है।
वैसे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में दो-दो बार कलेक्टर बनने का भी रिकार्ड विकासशील और अमिताभ जैन के नाम है। अमिताभ जैन 18 दिसंबर 2000 से 4 अप्रैल 2003 तक रायपुर में कलेक्टर रहे तो 29 मार्च 04 से 17 मई 2005 तक दूसरी बार कलेक्टर बनने का रिकार्ड बनाया है। वही विकाशील का भी रिकार्ड बना हुआ है। विकाशील 30 अप्रैल 2007 से 23 अप्रैल 2003 तक राजधानी के कलेक्टर रहे फिर 25 अक्टूबर 08 से 22 दिसम्बर 08 तक भी उन्होंने राजधानी में कलेक्टर का कार्यभार सम्हाला है। जाहिर है कि प्रदेश के मुखिया के करीबी होने तथा उनके क्षेत्र की कलेक्टरी करने का लाभ तो मिलता ही है।
अगला डीजीपी कौन!
छत्तीसगढ़ के पुलिस मुखिया अनिल एम नवानी का कार्यकाल 30 नवम्बर को समाप्त होना है। 30 नवम्बर को वे कार्यमुक्त हो जाएंगे और उससे पहले ही अगले पुलिस महानिदेशक का नाम तय हो जाएगा। हालांकि वरिष्ठता क्रम में उनके बैच मेट संतकुमार पासवान का नंबर है और उसके बाद 82 बैच के आईपीएस रामनिवास यादव का नंबर आता है इन्हीं दोनों में किसी एक को नया पुलिस महानिदेशक बनाया जाएगा यह तय माना जा रहा है। कुछ ही माह समय सेवा निवृत्ति होने के लिये बचा होने के कारण तथा सरकार के करीबी होने के कारण रामनिवास का पलड़ा कुछ भारी दिख रहा है। सूत्र तो कहते है कि वर्तमान डीजीपी अनिल नवानी का सुझाव भी रामनिवास की तरफ अधिक है।
खैर अगला डीजीपी किसे बनाया जाएगा यह अभी तय नहीं है पर पिछले आम चुनावों में जब तत्कालीन डीजीपी विश्वरंजन को चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाया गया था तब संतुकमार पासवान कार्यवाह क डीजीपी भी रह चुके हैं। वैसे छग में पूर्व डीजीपी श्री मोहन शुक्ला और अशोक दरबारी को छग लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। आरएलएस यादव को सरकार ने सलाहकार बनाया था। विश्वंरजन तो डा. रमन सिंह के अनुरोध पर केन्द्र से छग लौटे थे पर बाद बाद में सरकार के उनसे संबंध ठीक नहीं रहे और उन्हें महत्वपूर्ण डीजीपी पद से हटाकर डीजी होमगार्ड बना दिया और सेवा निवृत्ति के पश्चात वे रायपुर में ही स्थायी निवास बना चुके हैं पर सरकार ने उन्हें उपकृत नहीं किया है। डीजीपी अनिल नवानी को सरकार सेवानिवृत्ति के पश्चात कोई पद देकर उपकृत करेगी ऐसा लगता तो नहीं है।
खैर पासवान डीजीपी बनते है तो अप्रैल 13 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनके बाद रामनिवास विधानसभा चुनाव कराकर सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनके बाद डीजीपी बनने की लाईन में 4 एडीजी का दावा बनता है। वैसे वरिष्ठता क्रम में 82 बैच के ही गिरधारी नायक प्रबल दावेदार है उसके बाद 84 बैच के मो. वजीर अंसारी, 85 बैच के ए एन उपाध्याय और 86 बैच के डीएम अवस्थी का नंबर वरिष्ठता क्रम में आता है। विधानसभा चुनाव के बाद सरकार किस पार्टी की बनती है और उस समय हालात क्या होते है अगला डीजीपी कौन होगा यह इसी बात पर निर्भर करेगा वैसे अगली सरकार के पास किसी बाहरी अफसर को भी डीजीपी बनाने का विकल्प खुला रहेगा। खैर अभी तो 30 नवम्बर के बाद अनिल नवानी के बाद अगला डीजीपी कौन होगा इसी बात को लेकर पुलिस मुख्यालय में कवायद तेज है। कुछ अफसर वरिष्ठता के आधार पर संतकुमार पासवान के पक्षधर है तो कुछ रामनिवास का पलड़ा भारी होने का कयास लगा रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में वरिष्ठता के स्थान पर सरकार अपनी पसंद-नापसंद पर ही यह निर्णय लेती है। जिस तरह विश्वरंजन को हटाकर अनिल नवानी को डीजीपी बनाया गया था वह भी उस समय अप्रत्याशित कदम था। जबकि उस समय विश्वरंजन हटेंगे यह कल्पना किसी ने नहीं की थी।
राज्योत्सव और डीडी नगर
राजधानी रायपुर में राज्योत्सव साइंस कालेज के बगल में स्थित रविशंकर विश्वविद्यालय स्टेडियम में होता था तो उसका फायदा किसको होता था यह तो सरकार ही जानती है पर कम से कम डीडी नगर के रहवासियों के लिये जरूर त्यौहार होता था। आयुर्वेदिक कालेज से डीडीनगर जाने वाली सड़क की हर साल मरम्मत होती थी। चिनकी सड़क बनती थी क्योंकि व्ही व्ही आई पी इसी सड़क से राज्योत्सव में आते जाते थे। यह नही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सर संघचालक स्व. सुदर्शनजी भी अपनी बहन से मिलने रोहणीपुरम जाने इसी मार्ग से आते थे इसलिये कभी कभार यह सड़क की मरम्मत हो जाया करती थी पर इस बार तो राज्योत्सव नई राजधानी में हो रहा है वही हाल ही में सुदर्शन जी का भी निधन हो गया है। ऐसे में आयुर्वेदिक कालेज से डीडी नगर, रोहणीपुरम जाने वाली यह मुख्य सड़क की मरम्मत नहीं हो रही है और इस क्षेत्र के निवासी तो जरूर यह महसूस भी कर रहे है। हालांकि साइंस कालेज हास्टल के बगल से एक चौड़ी सड़क निर्माणाधीन है जो बाद में पूरी होगी। खैर अभी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ा एक स्कूल क्षेत्र में स्थापित है और संघ के आयोजन भी होते हैं। उम्मीद अभी भी जागी हुई है कि कभी तो इस सड़क का पुनर्रूद्धार होगा ही?
नामकरण पर सलाह
छत्तीसगढ़ मंत्रालय के नये रायपुर में बने भवन में डीके एस मंत्रालय से शासकीय विभागों की शिफ्टिंग का काम तेजी से चल रहा है। 25 अक्टूबर तक शिफ्टिंग पूरी होने की समय सीमा तय की गई है एक नवम्बर से 6 नवम्बर तक नई राजधानी में ही इस साल का राज्योत्सव होगा। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 6 नवम्बर को इसका उद्घाटन भी करने जा रहे है पर अभी तक नई राजधानी और मंत्रालय भवन का नामकरण नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब डी.के. अस्पताल में मंत्रालय का कामकाज शुरू हुआ था तो उसे डीकेएस मंत्रालय भवन का नाम दे दिया गया था। छत्तीसगढ़ में वर्तमान विधानसभा भवन का नामकरण भी 11 सालों में नहीं हो सका अलबत्ता सभागृह का जरूर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम जाना जाता है। माना विमानतल टर्मिनल के नामकरण को लेकर भी विवाद था पर विधानसभा में संकल्प पारित कराकर उसका नाम स्वामी विवेकानंद विमानतल रखा गया है। प्रदेश के सबसे बड़े 700 बिस्तर अस्पताल को 700 बिस्तर अस्पताल मेकाहारा, डा. अम्बेडकर अस्पताल या बड़े अस्पताल के नाम से जाना जाता है।
नई राजधानी और नये मंत्रालय भवन के नामकरण को लेकर कई सुझाव आ रहे है, श्रीराम की माता कौशल्या दाऊ कल्याण सिंह, वीर नारायण सिंह, पं. श्यामा प्रसाद, मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के नाम सामने आये है। बहरहाल अंतिम निर्णय तो डा. रमन सिंह को ही लेना है वैसे संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि नई राजधानी में सड़कों, चौक चौराहों के नाम देश-प्रदेश की विभूतियों के नाम से रखे जाएंगे जहां तक नया रायपुर और मंत्रालय भवन के नामकरण की बात है तो इस पर मिल बैठकर निर्णय लिया जा सकता है।
और अब बस
0 नई राजधानी में 203 हेक्टेयर में एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा मानव निर्मित जंगल सफारी का शिलान्यास हो गया..एक टिप्पणी पहले नई राजधानी में मानव बसाहट पर तो ध्यान देना चाहिये।
0 आरक्षण कम होने से सतनामी समाज नाराज है तो बढऩे के बाद भी आदिवासी समाज नाराज है। आखिर प्रदेश सराकर को आरक्षण बढ़ाने घटाने की किस नौकरशाह ने इसकी सलाह दी थी?
0 भटगांव कोल खदान आबंटन केन्द्र सरकार निरस्त कर सकती है एक टिप्पणी...इससे संचेती को फर्क पड़ेगा डा. रमन सिंह बेअसर रहेंगे।

Tuesday, October 16, 2012

यहां गुनाह हवा में छुपाये जाते हैं,
चराग खुद नहीं बुझते, बुझाये जाते हैं,
अजीब कर्ज है नफरत का, कम नहीं होता
बढ़ता जाता है जितना चुकाया जाता है।

विद्याचरण शुक्ल को अचानक नवीन जिंदल पर इतना गुस्सा क्यों आ गया? कोल ब्लाक आबंटन में चर्चा में आये नवीन जिंदल अचानक ही नायक से खलनायक बन गये। विद्या भैय्या ने तो कांग्रेस के इस राज्यसभा सदस्य को कांग्रेसी मानने से ही इंकार कर दिया। उन्हें शोषक कहा, छत्तीसगढ़ के लोगों का शोषण करने वाला ठहाराया, यही नहीं उन्हें अच्छा उद्योगपति भी नहीं बताया है। विद्या भैय्या राजधानी रायपर में रहकर उन्हें कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी यही नहीं रायगढ़ जाकर भी जिंदल समूह के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली यह बात और है कि उन्हें जिंदल समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें काले झंडे भी दिखाये गये। वैसे एक बार उनके राजनीतिक स्वर्णिम काल में आरंग के पास एक गांव में उन्हें सतनामी बंधुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था उसके बाद यह दूसरा अवसर है जब विद्या भैय्या को अपने ही छत्तीसगढ़ में काले झंडे देखने पड़े हैं। विद्या भैय्या प्रदेश ही नहीं देश के वरिष्ठ सांसद रहे है कई वर्षों तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हराव, वीपी सिंह, चंद्रशेखर आदि के काफी करीबी रहे यही नहीं कई बार विषम परिस्थितियों में कांग्रेस के लिये संकट मोचक बनकर भी अपनी कुशल रणनीति का परिचय दे चुके हैं. कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा, जनतादल, भाजपा होकर कांग्रेस में लौटे विद्या भैय्या का समय अब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें महासमुंद से लोकसभा प्रत्याशी भी नहीं बनाया गया था। यह बात ठीक है कि पहली अजीत जोगी सरकार को पुन: सत्ता में आने से रोकने में विद्या भैय्या ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी पर आजकल उनके सितारे कुछ गर्दिश में चल रहे हैं। हाल ही में जिंदल समूह के खिलाफ उनका नाराजगी का कारण तलाशा गया तो पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में कोयला मंत्रालय से कुछेक अधिकारियों को कोल ब्लाक आबंटन विवाद के चलते हटा दिया है उसमें एक अफसर विद्या भैय्या का करीबी रिश्तेदार है, इसके चलते विद्या भैय्या नाराज है और नवीन जिंदल के बहाने केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अप्रत्यक्ष मोर्चा खोल बैठे है । रायगढ़ में जिंदल के खिलाफ मुहिम चलाने पहुंचे विद्या भैय्या का साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा उसी जिले के विधायक नंदकुमार पटेल ने भी नहीं दिया इसकी भी जमकर चर्चा है।
परिवार बांटने लगी गैस
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता रहता है। कांग्रेस के कई नेताओं के परिजन अभी भी बतौर उत्तराधिकारी राजनीति में है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल की तरह जगजीवनराम की बेटी मीरा कुमार , शीला दीक्षित का पुत्र संदीप दीक्षित, अर्जुन सिंह का पुत्र अजय सिंह, राष्ट्रपति जाकिर अली खान के दामाद के दामाद खुर्शीद आलम, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र तथा कल ही उपचुनाव में बमुश्किल सांसद चुने गये अभिजीत मुखर्जी भी परिवारवाद के उदाहरण है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी पं. रविशंकर शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल , श्यामाचरण शुक्ल, अमितेष शुक्ल, अजीत जोगी और अब अमित जोगी, बिसाहूदास महंत और अब चरणदास महंत, भवानीलाल वर्मा और नोबल वर्मा, मोतीलाल वोरा, अरूम वोरा सहित काफी लोग शामिल है। राजनीति में किसी परिवार की तीसरी पीढ़ी विरासत सम्हाल रही है तो किसी परिवार की दूसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत सम्हालने आतुर है जिसमें अमित जोगी पंकज शर्मा, हरमीत सिंह होरा, राजेश शर्मा आदि के नाम शामिल है। वहीं परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली कांग्रेस पार्टी के हाल ही के एक निर्णय से जनसामान्य का संयुक्त परिवार टूटन की कगार पर है। संयुक्त परिवार अच्छा परिवार यह नारा भी कुछ समाज सेवियों ने दिया है तथा भारत में संयुक्त परिवार को सही ठहराया है। पर कांग्रेस नीत सरकार के मुखिया डा. मनमोहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रवैय्ये के चलते संयुक्त परिवार अब टूटने की कगार पर है।
मजबूरी क्या क्या कर देती है। इसका खुलासा आजकल रसोई गैस कनेक्शनो को लेकर देखने को मिल रहा है। जब से एक घर में एक कनेक् शन और एक कनेक्शन पर एक सब्सिडी वाले 6 सिलेण्डर एक साल में देने का प्रावधान जारी हुआ है तब से घरों में कागजी बटवारों की संख्या बढऩे लगी है। मजे की बात तो यह है कि लोग आपस में मिल जुलकर एक ही घर में रह है लेकिन नोटरी बयान हल्फी देकर घर में बंटवारा साबित करने की फिराक में है। पति-पत्नी में अलगाव के मामले सामने आ रहे है तो कही भाई-भाई कही पिता-पुत्र कागजों में अलग हो रहे है। वैसे गैस कंपनियों के सख्त निर्देश है कि एक से अधिक कनेक्शनों के मामले में भौतिक सत्यापन किया जाए।
जोगी-ननकी भाई नहीं
गृहमंत्री तथा सुरक्षाबल में की भर्ती नहीं हो पाने के कारण संभवत: सुरक्षा बलों से नाराज चल रहे आदिवासी नेता ननकीराम कंवर के बयानों की चर्चा जरूरी हो गई है वे कभी भी कुछ भी कह देते हैं। नक्सलियों के मारे जाने पर शहीद सुरक्षा बलों के जवानों पर उन्होंने कहा था कि लड़ाई में दोनो तरफ के लोग मारे जाते है, कभी कहते है कि जवानों की शहादत उनकी सतर्कता नहीं बरतने के कारण उनकी गलती से हुई है। उन्होंने हाल ही में अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टर और पुलिस कप्तान पर कांग्रेसियों का पक्ष लेकर भाजपाईयों को प्रताडि़त करने का आरोप लगा दिया था। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पर दिये गये बयान को लेकर वे चर्चा में है।
मरवाही के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तारीफ कर दी थी। इस पर कोटा की विधायक श्रीमती डा. रेणुका अजीत जोगी ने बाद में कंवर-जोगी को भाई-भाई बता दिया था। बस किसी ने कंवर को सालह दे दी कि जोगी की तारीफ उन्हें भारी न पड़ जाए और रमन सरकार के निशाने पर होने के कारण पहले की तरह उनकी विदाई न हो जाए। बस गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने कहा कि अजीत जोगी मेरे भाई नही है , न तो उनसे मेरी शक्ल मिलती है और न ही मेरी जाति के है तो ऐसे में वे भाई कैसे हो गये? वैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े ननकीराम को संघ से जुड़े किसी भी जाति के लोग को भाई कहने में परहेज नहीं है पर अजीत जोगी तो संघ से भी नहीं जुड़े है, खैर ननकी का अर्थ होता है छोटा और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल प्रमुख विपक्षी दल तथा अफसर भी कहते है कि ननकीराम को तो दूधभात है। उनके बयानों को कोई भी गंभीरता से नहीं होता है।
महापौर श्मशान घाट में
महापौर डा. किरणमयी नायक हमेशा चर्चा में रहती है कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जुलुस में फूल बरसाकर चर्चा में आती है तो कभी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद  धाड़ीवाल की विज्ञापन में गरिमा के अनुकूल फोटो प्रकाशित नहीं कराने के कारण नोटिस मिलने पर चर्चा में आती है। कभी बीसा नहीं मिलने पर अपनी धार्मिक यात्रा से वापस आने तथा कभी नगर में सिटी बस चलाने के मामले में अखबारों की सुर्खियों बनती है। कभी बारिश में शहर की मुख्य सड़कों में पानी भरने पर मुम्बई-दिल्ली से शहर की तुलना के कारण लोगों की नाराजगी मोल ले लेती है पर हाल ही में 2 महिला पार्षदों को लेकर श्मशान घाट जाने को लेकर चर्चा में है। हाल ही में दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जब महापौर डा. किरणमयी नायक, पार्षद द्वय कविता ग्वालानी, रेखा रामटेके उस घर में पहुंचे तो पता चला की शवयात्रा श्मशान घाट चली गई है बस महापौर सीधे श्मशान घाट पहुंच और भीतर जाकर शव पर पुष्प अर्पित कर वापस लौट गई। लोग कहते है कि वैसे भी महिलाओं को श्मशान घाट किसी शव के साथ जाने की इजाजत समाज नहीं देता है पर समाज से महापौर को क्या लेना देना है। पर पता चला है कि दोनों पार्षदों की जरूर उनके परिजनों ने क्लास ले ली तथा भविष्य में महापौर के साथ किसी भी ऐसी जगह जाने की मनाही का फैसला सुना दिया है। पर महापौर को तो यह सामान्य बात ही लग रही है।
और अब बस
0 छग मानवाधिकार आयोग के कार्यालय के लिये वन विभाग का रेस्ट हाऊस मांगा जा रहा है। एक टिप्पणी... हाई कोर्ट के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश के लिये गरिमामय, अच्छा भवन तो होना ही चाहिये।
0 आईजी मुकेश गुप्ता ने यातायात समस्या को लेकर राजधानी पुलिस की क्लास ले ली है। एक टिप्पणी... बहुत दिन बाद लगा कि ये पहले वाले मुकेश गुप्ता है।
0 डा. रमन सिंह साठ साल के हो गये वीसी जोगी तो पहले ही सठिया चुके है। चरण, बृजमोहन जरूर मन ही मन खुश होंगे।

Wednesday, October 10, 2012

बिजली की होती मारामारी
तब शुरू होती मेरी पारी
राज्य और केन्द्र को लड़ाता हूं
माफियाओं का प्यारा हूं
जी हां! मैं कोयला हूं
कोयला घोटाले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार भी घिरनेवाली है। 9 अक्टूबर को दिल्ली में अंतर मंत्रिमंडल समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को कोल आबंटन मामले की सुनवाई होगी। सूत्र कहते हैं कि इस बैठक में भटगांव के दोनों कोल ब्लाक तथा ओडि़शा के दो ब्लाकों पर फैसला हो सकता है। 9 की बैठक को लेकर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है।
छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को वाणिज्यिक उपयोग के लिये कोल ब्लाक दिये गये थे पर निगम ने संयुक्त उपक्रम बनाकर उपरोक्त कोल ब्लाकों को निजी हाथों को सौंपकर उसमें स्वयं भागीदार बन गया है। यही नही भटगांव के चर्चित दोनों कोल ब्लाको को उद्योगों की जरूरत पूरा करने के लिये दिये थे पर राज्य सरकार ने अजय संचेती और उनके भाइयों की एसएमएस इंफ्रास्ट्रक्चर को सौप दिया। इस कंपनी को तो कोल ब्लाक के विस्तार और उत्खनन का कोई अनुभव ही नहीं है। संचेती बंधुओं को सिविल कांट्रेक्टर और लेण्ड डेव्लपर हैं।
भटगांव कोल ब्लाक एक्सटेंशन और एक्सटेशन क्रमांक 2 को राज्य में उर्जा, इस्पात संयंत्रों के हित में राज्य की जरूरतों का हवाला देकर केन्द्र सरकार से छग खनिज विकास निगम के नाम से लिया था।
महालेखाकार की रिपोर्ट के बाद प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी वही राज्य सरकार पर महालेखाकार ने सरगुजा जिले के आसपास भटगांव के दो कोल ब्लाको को क्रमश: 552 और 129.60 पैसे प्रति मीट्रिक टन पर आबंटन पर सवाल उठाते हुए 1052 करोड़ के घाटे का अनुमान लगाया है। विधानसभा के अंतिम दिन कैग की रिपोर्ट आई और रिपोर्ट पर चर्चा नहीं कर सत्र का समापन हो गया।
इधर इन कोल ब्लाक के आबंटन के पूर्व भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती चर्चा में है। उनके रिश्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी से भी है तभी तो लोगों के विरोध के चलते उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाने पर भी गड़करी कुछ बड़े नेताओं के निशाने पर आये थे।
पहले संचेती बंधुओं ने दुर्ग बाईपास रोड पर काम किया और उन पर 16 करोड़ की देनदारी निकाल कर उनके खाते सील किये गये फिर किसी की मेहरबानी से रकम वसूल नहीं की गई और खाते भी फ्री कर दिये गये।
अभी भटगांव कोल ब्लाक के आबंटन में अनियमितता का आरोप कांग्रेस लगा रही है वहीं कैग ने भी घाटे का अनुमान लगाया है। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यही है कि कोल ब्लाक आबंटन के लिये सलाहकार नागपुर के बनाये गये तो संचेती भी नागपुर के हैं। इस कोल आबंटन में छग खनिज विकास निगम 51 प्रतिशत का पार्टनर है और एसएमएस इंफ्रास्ट्रक्चर 49 प्रतिशत का पार्टनर है उसमें भी नागपुर की सोलर एक्सप्लोसिव लिमिटेड बड़ी पार्टनर है। इसके बाद भी संयुक्त उपक्रम का 24.99 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली अजय संचेती को एमडी बनाया गया है। सूत्र यहां यह भी जुड़ रहे है कि अजय संचेती के पार्टनर सत्यनारायण नुवाल का नाम नवभारत कोल फील्डस को लेकर भी सामने आया है। भाजपा की नेत्री डा. नीनासिंह के पति व्ही.के. सिंह को राज्य सरकार की सिफारिश पर 2009 में 36 करोड़ टन कोयला भंडारवाला ब्लाक आबंटित किया गया था और बाद में इस कंपनी ने 74 प्रतिशत हिस्सेदारी 300 करोड़ में सोलर एक्सप्लोसिव्ह नामक कंपनी को बेच दिया यह कंपनी सत्यनारायण नुवाल की है जो भाटगांव कोल ब्लाक में अजय संचेती की कंपनी के पार्टनर हैं। हालांकि नवभारत कोल फील्डस के मामले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है।
संचेती बंधुओं को बाजार दर से काफी कम में कोल ब्लाक आबंटन, बिना अनुभव के संयुक्त उपक्रम का भागीदार बनाने, निविदा प्रक्रिया में अनियमितता नागपुर की ही एक कंसल्टेंसी फर्म एक्सिनों कैपिटल सर्विस लिमिटेड की नियुक्ति निविदाओं के लिये कोई सुरक्षित निधि तय नहीं करने, सार्वजनिक उपक्रम बनाने पर मात्र 24.99 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले अजय संचेती को एमडी बनाने आदि के मुद्दों पर अंतर मंत्रि मंडल समिति 9 को दिल्ली में छग खनिज निगम से पूछताछ करेगी। फिर ओडिशा के चेदीपाड़ा के दो कोल ब्लाक भी छग खनिज विकास निगम, उत्तर प्रदेश विद्युत निगम और महाराष्ट्र बिजली बोर्ड के संयुक्त उपक्रम को आबंटित हुए हैं। वहां केलवाशरी स्थापित करने के लिये गौतम अडानी की कंपनी से अनुबंध कर लिया गया है। कांग्रेस के महासचिव तथा प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सिफारिश पर गौतम अडानी को ठेका देने का आरोप लगाया है। इन दो कोल ब्लाक आबंटन मामला भी अंतर मंत्रिमंडल समूह की बैठक में उठेगा। वैसे 9 और 10 अक्टूबर को देश के 47 कोलब्लाक आबंटन पर समूह चर्चा करने वाला है। कांग्रेसी सूत्रों को विश्वास है कि छग खनिज विकास निगम से ये चारो कोल ब्लाक छीने जा सकते हैं, यदि ऐसा हुआ तो प्रदेश में राजनीतिक हल चल और भी तेज हो जाएगी यह तय मामा जा रहा है।
गुटबाजी कांग्रेस-भाजपा की
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर चर्चा आम है, वैसे कांग्रेस से अधिक गुटबाजी भाजपा में भी है यह बात और है कि वह सार्वजनिक नहीं हो पाती है। कांग्रेस में अभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और जुनियर जोगी अमित अभी चर्चा में है। हाल ही प्रदेश के एक मात्र कांग्रेसी सांसद और केन्द्र सरकार में मंत्री डा. चरणदास महंत ने बिना किसी पद में रहते हुए अमित जोगी के प्रदेश में जगह-जगह दौरे पर नाराजगी पार्टी मंच में जाहिर की थी उसके बाद युवक कांग्रेस और भारतीय छात्र संगठन ने अमित जोगी के पक्ष में बयानबाजी की। उसी के बाद दिल्ली में कांग्रेस की बैठक आदि की चर्चा होती रही पर सूत्र बताते है कि कांग्रेस के आला नेताओं ने छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को घेरने के लिये मेहनत करने का सुझाव दिया है वहीं गुटबाजी पर नियंत्रण कि जिम्मेदारी कांग्रेस आला कमान पर छोडऩे की बात की है। असल में कांग्रेस में पहले अजीत जोगी निशाना बनते थे और अब उनके साथ अमित जोगी को भी निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा लगातार विस चुनाव हार रहे हैं। पिछले विस चुनाव में विद्याचारण शुक्ल ने रायपुर से संतोष अग्रवाल को टिकट दिलाई थी पर वे भी पराजित हो गये। डा. चरणदास महंत का गृह जिला चांपा है पर वहां भी कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अजीत जोगी ही एक मात्र जनाधार वाले नेता बचते हैं। उनपर हालांकि कुछ कांग्रेसी प्रत्याशियों को पराजित कराने के भी आरोप उछलते रहते हैं सवाल उठता है कि वे प्रत्याशी जितवा सकते हैं, पराजित करा सकते हैं तो कांग्रेस में उन्हें सर्वमान्य नेता मानने कुछ नेता तैयार क्यों नहीं है।
सूत्र कहते है कि पहले अजीत जोगी और डा. चरणदास महंत में नजदीकियां बढ़ी थी पर आजकल जोगी-विद्याचरण शुक्ल के बीच संबंध अच्छे हो रहे हैं बस यही बात कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को बर्दाश्त नहीं हो रही है। कभी जोगी पर नई पार्टी बनाने के समाचार भी उछलते हैं। हालांकि कांग्रेस के ही सूत्र बताते है कि मीडिया में छाये रहने की कला जोगी जी को आती है और उन्हीं के गुट के लोग अफवाह फैलाते रहते हैं।
इधर कांग्रेस के अधिक गुटबाजी भाजपा में है। डा. रमन सिंह से सांसद रमेश बैस, नंदकुमार साय, दिलिप सिंह जूदेव मतभेद कई बार जाहिर हो चुके हैं। डा. रमन सिंह और सबसे वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बीच भी संबंध मधुर है ऐसा कहा नहीं जा सकता है। बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, अमर अग्रवाल के रिश्ते भी ठीक-ठाक नहीं है। मुख्यमंत्री से दुखी रहने वालों में गृहमंत्री ननकीराम कंवर का नाम भी प्रमुख है। वही हाल ही में आदिवासी मुख्यमंत्री की मुहिम चलाने वाले मंत्रिमंडल के सदस्य रामचिवार नेताम भी कुछ दुखी चल रहे हैं। दिसम्बर में प्रदेश में नया अध्यक्ष बनना है। वर्तमान अध्यक्ष को ही पुन: जिम्मेदारी दी जाएगी या किसी अनुसूचित जाति। जनजाति के वर्ग से नया अध्यक्ष बनाया जाएगा यह भी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को अध्यक्ष बनाया जा सकता है ऐसे में मंत्रिमंडल के पुर्नगठन होना भी तय है। वैसे भी मंत्रिमंडल का पुर्नगठन राज्योत्सव के बाद होगा ऐसे संकेत मिले हैं। इधर हाल ही जूदेव ने आदिवासी मुख्यमंत्री सरगुजा जिले  से बनाने की बात करने आदिवासी एक्सप्रेस को गति दे दी है।
नया डीजी कौन
छत्तीसगढ़ प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी नवम्बर माह में राज्योत्सव के बाद सेवा निवृत्त हो रहे है उनका उत्तराधिकारी संत कुमार पासवान होगे या रामनिवास यादव होंगे इसी बात को लेकर अटकलें जारी है। हालांकि रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाने के बाद उनका दावा भी मजबूत बन रहा है। दरअसल नवानी के सेवा निवृत्त होने के बाद उनके बैचमेट संतकुमार पासवान का नंबर आता है पर वे अप्रेल 13 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 4-5 महीने के लिये उन्हें डीजीपी बनाया जाता है या नहीं इसका फैसला मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को लेना है। पासवान के बाद राम निवास यादव का क्रम है उनकी सेवा निवृत्ति जनवरी-फरवरी 14 में होनी है। यदि पासवान को डीजीपी बनाया जाता है तो उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात 9-10 माह के लिये रामनिवास भी डीजीपी बन सकते है और आगामी विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में होना है। बहरहाल वरिष्ठता क्रम की उपेक्षा की बात छग में नई नहीं है। छत्तीसगढिय़ा वासुदेव दुबे सबसे वरिष्ठ होने केबाद भी डीजीपी नहीं बन सके तो बीके एस रे सबसे वरिष्ठ आईएएस होने के बाद, भी मुख्य सचिव नहीं बनाये गये थे।
और अब बस
0 राज्योत्सव के बाद कुछ कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित सचिवों, पुलिस महानिरीक्षकों का तबादला होना तय माना जा रहा है।
0 मोतियाबिंद आपरेशन में अनियमितता से कुछ की आंखों की रोशनी गई, पैसो की लालच में कुछ महिलाओं की बच्चेदानी निकाली गई और अब स्मार्ट कार्ड से बिना इलाज के पैसे निकाले गये एक टिप्पणी...स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का समय अभी ठीक नहीं चल रहा है।
0 गणेशजी विराजित हुए और उन्हें विसर्जित भी कर दिया गया पर एक गणेशजी एक विभाग में काफी समय से तैनात है, कांग्रेसी और भाजपाई दोनों उनकी पदस्थापना से खुश है क्योंकि ये गणेशजी चंदा लेते नहीं चंदा देते हैं।
चाकू काटे बांस को बंशी खोले भेद
उतने ही सुर जानिये, जितने उसमें छेद

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव को देखकर सत्ताधारी दल भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की चुनावी तैयारी शुरू हो गई है वही बहुजन समाज पार्टी, सहित ताराचंद साहू, अरविंद नेताम तथा दाऊराम रत्नाकर भी छग स्वाभिमान मंच के बैनर तल चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे है। वैसे जिस तरह देश और प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की किरकिरी चल रही है उससे किसी एक पार्टी को प्रदेश में स्पष्ट बहुमत मिलेगा ऐसा लगता नही है। वैसे भी हाल फिलहाल यानि कुछ महीनों के भीतर जिस जिस प्रदेशों में चुनाव हुए है वहां गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई सरकार बनने से राजनीतिक समीकरण बनता-बिगड़ता जा रहा है। जयललिता की सरकार बनी, नीतिश कुमार की सरकार बनी , ममता बेनर्जी की सरकार बनी और छग से लगे ओडिसा में तो बीजू जनता दल की सरकार काबिज ही है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जिस तरह समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, इसके पहले बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी थी ये देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस-भाजपा के लिये खतरे की घंटी है। पर कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने, एक दूसरे को नीचा दिखाने लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में अविभाजित मप्र के समय बहुजन समाज पार्टी, कम्प्युनिस्ट पार्टी, गोडवाना गणतंत्र पार्टी का खाता खुल चुका है। यह बात और है कि राज्य बनने के बाद इनके नेता अपनी पकड़ आमजनता में बनाये नहीं रख सके पर अब कांग्रेस -भाजपा से दुखी आम जनता क्षेत्रीय दलों की ओर रूख कर सकती है। कांग्रेस की अजीत जोगी सरकार के खिलाफ भय भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा करके सत्ता में आई भाजपा के शासन काल में भ्रष्टाचार तो सामने आ ही रहा है जहां तय भय मुक्त करने की बात है तो अधिकारी इतने भय मुक्त हो गये है कि उन्हें सरकार की कोई चिंता नहीं है। करोड़ों रूपये की अघोषित सम्पत्तियां छापों में मिलना इस बात का गवाह है। महंगाई भ्रष्टाचार के लिये प्रदेश के भाजपा नेता केन्द्र सरकार पर आरोप मढ़ रहे है तो कांग्रेस के नेता प्रदेश की भाजपा सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं। केन्द्र कांग्रेस नीत सरकार पर डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस महंगा करने से महंगाई बढऩे की बात भाजपा नेता करते है पर कांग्रेस शासित राज्यों की तरह 3 गैस सिलेण्डरों पर राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी देने की बात प्रदेश की भाजपा सरकार क्यों नहीं मान रही है। डीजल पर वैट टैक्स कम करने क्यों तैयार नहीं है। बिजली की दर कम करने की पहल क्यों नहीं हो रहे है, हाल ही में ट्रांसपोर्ट व्यवसायियों ने डीजल की कीमत वृद्धि पर परिवहन किराया बढ़ाने या दूसरे राज्यों की तरह परिवहन कर कम करने की मांग की थी पर जनता की हितैषी होने का दावा करने वाली प्रदेश सरकार ने परिवहन कर कम करने की जगह 10 से 35 प्रतिशत यात्री किराया बढ़ाकर जनता पर आर्थिक बोझ डालना उचित समझा क्यों अगले माह कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढऩे के कारण प्रदेश के बिजलीदर में वृद्धि की तैयारी है?
मुफ्त चांवल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल में गरीबों तथा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालो को प्रतिमाह एक परिवार को 35 किलो चांवल देने की नीति अपनाई थी, उसके बाद चावल एक दो रूपये किलो में देने का प्रावधान किया और इस योजना का लाभ भी भाजपा को हुआ बस उसी तर्ज पर अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने अम्बिकापुर की सभा में घोषणा कर दी कि यदि अगली प्रदेश सरकार कांग्रेस की बनी तो आयकरदाताओं को छोड़कर सभी वर्गों को मुफ्त चांवल दिया जाएगा। सवाल फिर यही उठ रहा है कि क्या राज्य सरकारों का बस एक ही काम है पेट भरना। छत्तीसगढ़ में कभी बासी भात का चलन था। राज्य सरकार के गठन के करीब 12 साल बाद बासी से यात्रा शुरू की थी और चावल वितरण, नमक मुफ्त देने से हम फिर बासी तक पहुंच गये हैं। क्या छत्तीसगढ़ की भावी पीढ़ी का विकास हमारा कत्वर्य नहीं है। राज्य बनने के बाद कितने उद्योग धंधे स्थापित हुए, कितनी कृषि भूमि उद्योगों की भेंट चढ़ गई पर कितने नौजवानों को सरकारी रोजगार मिला या निजी उद्योगों में कितने प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को मिला इसकी चिंता आखिर कौन करेगा सत्ता पक्ष, विपक्ष या कोई नहीं।
अफसरों को जमीन बांटी!
राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा तत्पर से जुड़े वीरेन्द्र पांडे ने आईएएस, आईपीएस और न्यायाधीशों को करोड़ों की 87 एकड़ जमीन नियम विपरीत बांटने का आरोप छग गृह निर्माण मंडल पर लगाया है। उनका आरोप है कि नगर निगम सीमा पर स्थित धरमपुरा में आवासहीनो को आवास उपलब्ध कराने गृह निर्माण मंडल ने जमीन ली थी पर षडय़ंत्रपूर्वक कर करीब 87 एकड़ जमीन को गुपचुप आला अफसरों के लिये चिन्हित कर आबंटित कर दी गई है और एक तरह से आवासहीनो के साथ धोखा किया गया है। उनका सीधा आरोप है कि छग गृह निर्माण मंडल ने 500 आला अफसरों को उपकृत कर भूखंड आबंटित किया गया है यही नहीं बाजार मूल्य से काफी कम दर पर भूखंड आबंटन में करोड़ों की राजस्व क्षति भी हुई है। उनका आरोप यह भी है कि 2 साल तक भूखंड में निर्माण नही करने वालो का आबंटन निरस्त करने का प्रावधान है पर अफसरों के साथ इस नियम का भी उपयोग नहीं किया गया।
सगी बहनो का मामला
पाठ्यपुस्तक निगम में 2 सगी बहनो की उम्र के बीच तीन माह का अंतर होने का मामला लोग आयोग के पास विचाराधीन है। पापुनि में 2 सगी पांडे बहनों को नौकरी दी गई और दोनों की उम्र के बीच का फसला मात्र 3 माह है। यह संभव भी नहीं है। जुड़वा बहनों में भी यह अंतर नहीं रहता है। बहरहाल पापुनि के प्रबंध संचालक रहे सुभाष मिश्रा के कार्यकाल का यह किस्सा है। उन्हें तो हटाकर अपर संचालक (प्रचार) पंचायत विभाग बनाया गया है पहले पंचायत मंत्रालय का कार्य एक एपीआरओ या सूचना सहायक के पास होता था। खैर पांडे बहनों का मामला लोक आयोग में लंबित है। इन दोनों बहनों की सत्य प्रतिलिपि का भी सुभाष मिश्रा ने सत्यापन किया था। बहरहाल चर्चा है कि वहां से हटने के पहले ही इस मामले में लीपापोती भी की गई है। बताया गया है कि दोनों बहनों में एक पिता और दादा के पास रहती थी कम पढ़े लिखे होने के कारण जन्म तिथि लिखाने में गलती हो गई यह जवाब दिया गया है? सवाल उठ रहा है कि यदि पिता-दादा कम पढ़े लिखे थे,गलती से गलत जन्मतिथि लिखा दिया था तो बहनें तो पढ़ी लिखी थी उन्होंने क्यों सुधार नहीं कराया? एक बहन रायगढ़ में पढ़ी तो दूसरी जबलपुर में पढ़ी थी यह भी जांच का विषय हो सकता है इन दोनो शहरों में किनके पास रहकर यह बहन पढ़ाई करती थी? खैर लोक आयोग जल्दी ही फैसला देने वाला है।
10 अक्टूबर का इंतजार
कोयला खानों का समय पर विकास नहीं करने को लेकर अंतर मंत्रालय समूह (आईएमजी) ने निजी कंपनियों के बाद अब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी कसना प्रारंभ कर दिया है। छत्तीसगढ़ मिनरल डव्हलपमेण्ट कारपोपरेशन (सीएमडीसी) को भी नोटिस मिल चुका है और 10 अक्टूबर को पक्ष प्रस्तुत करने कहा गया है। सूत्र कहते है कि सीएमडीसी के पास गारेपेलम के अलावा, शंकरपुर, भटगांव और सोंधिया कोल ब्लाक है। छत्तीसगढ़ के सरकारी उपक्रमों को कोल ब्लाक्स आबंटित किये गये है केन्द्रीय और छग खनिज विकास निगम, राज्य बिजली बोर्ड के साथ ही महाराष्ट्र खनिज विकास निगम, तमिलनाडु बिजली बोर्ड, गुजरात खनिज विकास निगम, मप्र खनिज विकास निगम, राजस्थान विद्युत उत्पादन, कंपनी को भी यहां कोल ब्लाक दिये गये हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि भाजपा के राज्य सभा सदस्य अजय संचेती और उनके भाइयों की भागीदारी वाली एसएमएस इंफास्ट्रक्चर कंपनी को कोयला उत्खनन का अनुभव नहीं होने के बाद भी 2 कोल ब्लाक आबंटित किया गया है इसमें एक कोल ब्लाक काफी कम दर पर दिये जाने को लेकर कांग्रेस भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी उंगली उठ रही है। यही नहीं कोल ब्लाक के विस्तार और उत्खनन कार्यों के लिये अपात्र तथा अनुभवहीन कंपनी को खनिज विकास निगम ने अपना पार्टनर भी बना लिया है। लगता है कि 10 अक्टूबर को इस संबंध में राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद आईएमजी कोई निर्णय ले सकती है और इसी निर्णय पर राज्य का माहौल गर्माने की भी संभावना है।
और अब बस
0 निगम के बड़े अफसर की पत्नी पुलिस अधिकारी है वहीं अब पर्यटन मंडल के प्रबंधक संचालक आईएएस की आईपीएस पत्नी ने मुख्यालय में अपनी आमद दे दी है।
0 जिला कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने कार्यभार सम्हालते ही होटल मालिकों, के बाद अब गैस संचालकों की भी क्लास ले ही है। अब अगली बारी किसकी है इसी का इंतजार है।
0 राज्य प्रशासनिक सेवा के 1991 बैच के अफसर पदोन्नत होकर आईएएस बन गये है वही 87 बैच के राज्य पुलिस सेवा के अफसर अभी तक पदोन्नति से वंचित है। आखिर 4 साल के अंतर की वजह क्या है।