Thursday, July 26, 2012

मांगने वाला तो गूंगा था मगर
देने वाले तू भी बहरा हो गया

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 घंटे के भीतर 24 से.मी. पानी गिरा और राजधानी में जलमग्न के हालात बन गये। छोटी-छोटी बस्तियों से लेकर शहर की पाश कालोनियां पानी से लबालब हो गई। अविभाजित मप्र से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से हालात वैसे ही है। नगर निगम का बजट हर साल बढ़ता जा रहा है, 2007 में बजट 532.16 करोड़ था तो इस साल 2012 में निगम का बजट 1475 करोड़ यानि लगभग 3 गुना हो चुका है पर हालात में कोई तब्दीली नहीं आई है। छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा के सदस्य विधायक विश्राम गृह में रहते हैं वहां भी हर साल बारिश में पानी घुस जाता है। पिछले साल तो कुछ विधायकों ने सत्र के दौरान भी यह मुद्दा उठाया था पर हालात जस के तस हैं।
कभी राव दम्पत्ति रायपुर में पदस्थ थे। श्रीमती अरूणा मोहन राव, आईपीएस थी तथा शहर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थ थी तो उनके पति आइएएस मोहन राव, एडीशनल कलेक्टर के साथ ही निगम प्रशासक भी रहे। उनका रायपुर शहर के विषय में एक कथन काफी दिलचस्प था। रायपुर शहर की बड़ी अजीब समस्या है, बारिश में निचली बस्तियों में पानी भर जाता है तो वहां से पंप आदि लगाकर पानी निकालना पड़ता है और गर्मी में लगभग इन्ही बस्तियों में पेयजल संकट के हालात बन जाते हैं तो टैंकर से पेयजल की आपूर्ति करना पड़ता है, यदि बारिश के पानी को वहां संचित करने की व्यवस्था हो जाए तो गर्मी में पेयजल संकट से निपटा जा सकता है। खैर प्रशासक बनते रहे, महापौर बनते रहे, निगम आयुक्त आते-जाते रहे और रायपुर वासी स्वयं को अपने हालात में छोड़ने के आदि हो गये हैं। छत्तीसगढ़ में जैसे काम की तालाश में पलायन आम बात है वैसे ही बारिश में राजधानी में पानी भरना आम बात है।
महापौर की बयानबाजी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की प्रथम महिला महापौर डा. किरणमयी नायक अब रिकार्ड बनाती जा रही है। महिला महापौर बनने का तो उनका रिकार्ड है ही अब वे अपनी बयानबाजी के लिये भी चर्चा में आ रही है। किसी भी समस्या, सफाई, पेयजल दर में वृद्धि निगम कर्मियों का वेतन, तबादले की बात उठती है और वे सीधा आरोप छग सरकार के मंत्रियों पर लगाकर अपने कत्वर्य को इतिश्री मान लेती है। हाल ही में रायपुर में अनवरत बारिश के बाद नगर की कुछ बस्तियां, पॉश कालोनी और सड़कों पर पानी भरने, बहने को लेकर डा. नायक ने सीधा आरोप ही लगा दिया कि इस समस्या के लिये शहर के दो मंत्री और 3 विधायक (देवजी पटेल भी) जवाबदेह है। यहां तक तो ठीक था उन्होंने यह भी कह दिया कि यह समस्या तब तक रहेगी जब तक जनता ऐसे नकारे विधायक चुनती रहेगी। छत्तीसगढ़ शासन के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जनता लगातार चुन रही है, राजेश मूणत भी लगातार विधायक बनते आ रहे हैं. हां नंदे साहू तथा कुलदीप जुनेजा जरूर पहली बार विधायक बने है, महापौर ने तो अपनी ही पार्टी के विधायक तथा नगर निगम में लम्बी पारी खेलने वाले कुलदीप जुनेजा को भी एक तरह से नाकारा ही साबित कर दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि सड्डू मोवा में पानी भरने के लिये छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल द्वारा अभी तक निगम को कालोनी नहीं सौपने की बात भी महापौर ने की तो जयस्तंभ चौराहा तो निगम के पास है, राजातालाब, रेल्वे स्टेशन मार्ग, गुढ़ियारी, तेलीबांधा,क्षेत्र तो निगम मुख्यालय के पास फिर वहां क्यों पानी भर जाता है। थोड़ी सी बारिश में ही जयस्तंभ, काफी हाऊस गली, अमरदीप टाकीज रोड की हालात बिगड़ जाती है क्यों? केवल बयानबाजी करना ही तो समस्या का हल नहीं है। जिन गरीबों के घर पानी घुस गया, उनके घर चूल्हा नहीं जला, मेहनत से इकट्ठा किया गया सामान खराब हो गया उसका क्या? केवल बारिश में राहत पहुंचाना, भोजन का पैकेट देने से समस्या का हल नही हो सकता है। राजधानी की समस्या के हल के लिये कुछ ठोस पहल करना होगा। महापौर मेडम शायद भूल गई हैं कि राजधानी में पूर्व महापौर स्वरूपचंद जैन, संतोष अग्रवाल, तरूण चटर्जी, सुनील सोनी, पूर्व उप महापौर अब्दुल हमीद (कोटा) गंगाराम शर्मा, गजराज पगारिया सलाह देने मौजूद है, इन लोगों के पास रायपुर नगर निगम क्षेत्र का अच्छा अनुभव है, लम्बे समय तक अपनी कार्यकाल में निगम की समस्या से रूबरू हो चुके हैं। क्या पहली बार सीधे महापौर बनी डा. किरणमयी नायक ने कभी इन लोगों से चर्चा करने की जरूरत समझी हैं? रायपुर, छत्तीसगढ़ की राजधानी बनी है और भाजपा की राज्य सरकार होने के बावजूद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की महिला महापौर को चुनकर एक नया फैसला दिया है पर क्या महापौर जनता के फैसले को सही साबित करने में सफल रही है? रायपुर की जनता बुनियादी जरूरतों के लिये निगम की तरफ देख रही है पर लगता है कि वह भी कांग्रेस-भाजपा की राजनीति के बीच फंसती जा रही है।
महामहिम की सलाह
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम शेखरदत्त अविभाजित मप्र के समय रायपुर संभाग के कमिश्नर रह चुके है इस दौरान उन्होंने बस्तर संभाग का भी प्रभार सम्हाला है। पहले पदस्थ होने के कारण उन्हें छत्तीसगढ़ की अच्छी जानकारी भी है। काफी कम लोगों को पता है कि शेखरदत्त की रायपुर में पदस्थापना के दौरान ही शहर को रिंग रोड की सौगात मिली थी यह बात और है कि आज तक रिंग रोड योजना पूरी नहीं हो सकी है। उनके समय ही रायपुर संभाग में बांस वृक्षारोपण योजना सहित मछली पालन योजना को बढ़ावा मिला था। लोगों ने अपने खेतों में फसल के साथ ही मछली पालन की योजना क्रियान्वित की थी। शेखर दत्त उस समय गठित छत्तीसगढ़ विकास प्रधिकरण के सचिव भी थे। इस प्राधिकरण के उपाध्यक्ष तत्कालीन मंत्री झुमुकलाल भेड़िया बनाये गये थे। छत्तीसगढ़ के समुचित विकास के लिये उस समय कुछ बनाई गई योजनाओं भी शेखरदत्त की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
खैर महामहिम बनकर आने के बाद भी क्षेत्र के लिये उनकी संवेदनशीलता जारी है। राजधानी में प्रदूषण से वे भी नाखुश है। हाल ही में उन्होने कारखानों द्वारा प्रदूषण फैलाने पर सीधे थाने जाकर धारा 133 के तहत शिकायत करने की न केवल सलाह दी है बल्कि इस संबंध में पुलिस महानिदेशक को भी पत्र लिखकर निर्देश देने की बात की है। पर्यावरण जनता चेतना समिति के प्रतिनिधि मंडल से चर्चा के बाद राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि कोई भी व्यक्ति धारा 133 के तहत कारखाने के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज कर सकता है। पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर निर्देश देंगे कि थाने में रिपोर्ट लिखने में कोई आना कानी न की जाए। उन्होंने तो प्रतिनिधि मंडल को यह आश्वासन भी दिया कि औद्योगिक क्षेत्र का वे औचक निरीक्षण भी करेंगे। ज्ञात रहे कि पूर्व राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन (अब आंध्रप्रदेश के राज्यपाल) ने अपने कार्यकाल में उरला-सिलतरा औद्योगिक क्षेत्र का औचक निरीक्षण किया था जिससे उस समय हड़कम्प मच गया था और बहुत समय तक प्रदूषण पर नियत्रण की स्थिति बनी रही थी।
डा. चरण का कथन
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के एक मात्र सांसद तथा केन्द्र में कृषि राज्य मंत्री डा. चरणदास महंत ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने उद्योगों के लिये प्रदेश के किसानों की करीब एक लाख हेक्टेयर जमीन छीन ली है। उनका सीधा आरोप है कि उद्योगपतियों को राज्य सरकार का संरक्षण है इसलिये किसानो ंकी जमीन छीनी जा रही है। डा. महंत ने तो राज्यसारकर की उद्योगों को जमीन देने की नीति का विरोध किया है। उन्होंने यह भी कहा कि कोरबा में अब बिजली बनाने वालों को एक एकड़ भी जमीन अब नही दी जाएगी पर सरकार ने किसानों की जमीन जो ली है उसे वापस कराने क्या करेंगे, कोरबा में यदि राज्य सरकार जमीन अधिग्रहित करेगी तो उसे कैसे रोकेंगे इस सवाल का हालांकि उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है। ज्ञात रहे कि खेती की जमीन घटने के बाद भी फसल उत्पादन बढ़ने की राज्य सरकार की दलील पर भी उन्होंने शंका प्रकट करते हुए जांच की बात की थी पर आज तक जांच की जानकारी नहीं मिल सकी है। वैसे बहुत कम लोग जानते है कि डा. चरणदास महंत राजनीति में आने के पूर्व नायब तहसीलदार के पद पर कार्य कर चुके है और उन्होंने राजस्व मामलों की अच्छी जानकारी भी है। खैर छत्तीसगढ़ कभी च्धान का कटोराज् था अब च्उद्योग का खौलता कड़ाहज् बनने की ओर अग्रसर है। नेता भले ही कुछ नहीं कर सकने की स्थिति में है पर बयानबाजी तो कर ही सकते हैं।
और अब बस
बारिश से रायपुर में जलमग्न के हालात... मेडम महापौर इसके लिये शहर के 4 विधायक ही नहीं गृहमंत्री ननकीराम कंवर ही अधिक दोषी है। उन्होंने बारिश के लिये हवन कराया और उसी के बाद झमाझम बारिश हुई।
0 राजाओं के स्कूल के नाम से चर्चित राजकुमार कालेज की जाच नजूल अधिकारी ने शुरू कर दी है। नजूल जमीन को बंधक रखकर बैक से ऋण लेने का मामला चर्चा में हैं।
0 बाल्को जमीन मामले को लेकर कांग्रेस न्यायालय पहुंच गई है। पहले भी तत्कालीन मुख्य सचिव जाय उम्मेन के खिलाफ सिविल लाईन थाने में शिकायत की गई थी उसका क्या हुआ, किसी को पता ही नहीं चला।
0 पुलिस महानिदेशक बनने की कतार में खड़े एक पुलिस अफसर ने राजनीतिक आकाओं को सेर करने के बाद अब भगवान शंकर की शरण में चले गये हैं। उन्होंने सावन के महीने में महाकाल की नगरी उज्जैन में जाकर पूजा अर्चना की। इसकी जमकर चर्चा पुलिस मुख्यालय में हैं।

Tuesday, July 17, 2012

अंधेरे चारों तरफ सांय-सांय करने लगे
चिराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
तरक्की कर गये मौत के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो दुआएं करने लगे

छत्तीसगढ़ में आखिर हो क्या रहा है? समाज में सबसे अधिक प्रतिष्ठित पेशा चिकित्सकों का समझा जाता है। चिकित्सक को एक तरह से भगवान का दर्जा दिया जाता है। उसे देवदूत भी समझा जाता है पर पिछले कुछ सालों से कम से कम छत्तीसगढ़ में तो कुछ चिकित्सक अपनी हरकतों से देवदूत का दर्जा स्वयं गंवा रहे हैं। सवाल प्रशासन या शासन की कार्यवाही का नहीं है सवाल इस संवेदनशील  पेशे की इमानदारी का भी है।
छत्तीसगढ़ में कुछ माह पूर्व ही मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर कुछ मरीजों की आँखों की रोशनी जाने का मामला प्रकाश में आया था। मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर लक्ष्य पूरा करने के नाम पर कुछ सरकारी अस्पतालों में मरीजों का लापरवाही से मोतियाबिन्द आपरेशन किया गया। मरीजों की आँखों की रोशनी छिन गई, आपरेशन के पहले तो धुंधला-धुंधला दिखाई भी देता था, आपरेशन के बाद तो आंखों की रोशनी ही चली गई। जांच हुई, कुछ चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही भी की गई और चिकित्सक फिर काम पर लौट गये और मरीजों की आँखों के सामने जीवन भर का अंधेरा छा गया।
हाल फिलहाल गरीब मासूम महिलाओं का गर्भाशय इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि एक तो आपरेशन से मरीज से डाक्टरों को लाभ हो रहा था वही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अलग से लाभ हो रहा था। आरएसबीवाय (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) की शुरूवात छत्तीसगढ़ में एक अक्टूबर 2009 से हुई थी। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों को स्मार्ट कार्ड के जरिये आपरेशन खर्च का भुगतान सरकार को करना था। सरकारी अस्पतालों के साथ ही कुछ निजी नर्सिंग होम को भी यह सुविधा दी गई थी। पता चला है कि पिछले ढाई वर्षों शासन के माध्यम से बीमा कंपनी ने 7 करोड़ 75 लाख का भुगतान किया है इसमें से 70 प्रतिशत केवल गर्भाशय की सर्जरी के नाम पर भुगतान हुआ है।
सूत्रों की माने तो कई ग्रामीण महिलाओं को गर्भाशय बड़ा होने या गर्भाशय का कैंसर होने सहित गर्भाशय की बीमारियों का भय दिखाकर उनका गर्भाशय निकाल लिया गया। गर्भाशय निकालने के बाद कोई भी महिला कभी मां नहीं बन सकती है। आरएसबीवाय की रकम हड़पने कुछ निजी नर्सिंग होम के संचालकों ने बिना किसी बीमारी के हजारों की संख्या में महिलाओं के गर्भाशय निकालकर असमय कुछ महिलाओं को बांझ और बीमार बनाने का काम किया है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि ढाई साल में ही 3344 महिलाओं के गर्भाशय संबंधी आपरेशन किये गये हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी स्वीकार किया है कि प्रदेश के कतिपय डाक्टर आर्थिक हित के लिये स्मार्ट कार्ड का दुरूपयोग कर रहे हैं। आठ माह के भीतर ही डाक्टरों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत गरीब 2 करोड़ का भुगतान किया गया है। हालांकि प्रदेश में ऐसे मामलों की जांच शुरू कर दी गई है, कुछ डाक्टरों और उनके नर्सिंग होम को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है पर प्रभावित महिलाओं से मातृत्व सुख छीनने वाले डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर की बात क्यों नहीं उठ रही है। वैसे भी डाक्टर अब असंवेदनशील होते जा रहे हैं। बड़े बड़े निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में मरीज की मौत के बाद भुगतान के अभाव में लाश परिजनों नहीं सौंपने की बात यदा-कदा सामने आती रहती है। लापरवाही से इलाज की बात भी आती रहती है। सवाल यह उठ रहा है कि धरती का देवदूत क्यों असंवेदनशील होता जा रहा है।
कानून का डर भी नहीं!
सुंदर नगर में टोल प्लाजा बनाने पर प्रदेश के मुख्य सचिव सुनील कुमार ने नाराजगी जाहिर की थी फिर नगर निगम की तरफ से भी विरोध किया गया था। हाल ही प्रदेश के उच्च न्यायालय ने सुंदर नगर में टोल प्लाजा पर यथा स्थिति का आदेश दिया है फिर भी निर्माण कार्य चल रहा है । क्या टोल प्लाजा बनाने वाले कानून से बड़े हो गये है। आखिर इनको किसका संरक्षण प्राप्त है?
रायपुर के सुंदर नगर में बनाए जा रहे टोल प्लाजा पर हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने नेशनल हाईवे लोक निर्माण विभाग व राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने के लिये कहा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 अन्तर्गत रायपुर से आरंग के बीच दोहरे लेन को फोरलेन में बदलने निर्माण कार्य के लिए बीओटी से राज्य शासन ने अनुबंध किाय था। फोरलेन के लिए एक्सप्रेस वे में दो से ज्यादा टोल प्लाजा नहीं हो सकता। राज्य शासन ने बीटीओ अर्थात बनाओ चलाओ और लागत राशि वसूल हो जाए तो शासन को हस्तगत कर दो, कम्पनी से वर्ष 2006 में अनुबन्ध किया गया। अनुबंध में शर्त यह थी कि टोल प्लाजा शहर के बाहर रखा जाएगा। वर्ष 2006 में विभागीय मंत्री राजेश मूणत थे। अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करते हुए टोल प्लाजा का निर्माण 2010 में रायपुर के सुंदर नगर में शुरू किया गया जबकि टोल प्लाजा का शहर के अंदर होना जनता के लिए सुविधाजनक नहीं है। बीटीओ अन्तर्गत निर्माण कम्पनी ने अपने हित के लिए शहर के अंदर सुन्दर नगर में टोल प्लाजा बनाना शुरू कर दिया इससे कम्पनी को 25 वर्ष में 25 हजार करोड़ की अतिरिक्त आय होने का अनुमान है इसीलिए प्रदेश सरकार ने भी इसकी मंजूरी दे दी थी।
टोल प्लाजा राष्ट्रीय राजमार्ग 6 के अन्तर्गत आरंग और सरोना में बनाया जाना था। सरोना में टोल प्लाजा का कोई विकल्प नहीं था इसके बाद भी विभागीय मंत्री राजेश मूणत के विरोध में कारण नोटशीट चली और सुंदर नगर में टोल प्लाजा निर्माण की अनुमति दे दी। इसको लेकर कई शिकायतें भी आई। नगर निगम रायपुर की महापौर ने भी सुन्दर नगर का विरोध किया मगर प्रदेश सरकार की ओर से स्थल नहीं बदला गया जिस पर हाईकोर्ट में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई।
रायपुर के जनमानस सेवा समिति नामक एक स्वयंसेवी संस्था व अन्य ने तथा एक और ने यह जनहित याचिकाएं दायर की और कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट8ए तथा टोल प्लाजा नियम 2008 के तहत स्पष्ट है कि एक ही सड़क पर जगह-जगह टोल प्लाजा नहीं बनाया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति राजनांदगांव से आरंग जाता है और सुंदर नगर में टोल प्लाजा हो तो उसे 5 टोल प्लाजा का टेक्स लगेगा।
जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुनील सिंहा और जस्टिस आर एस शर्मा की युगलपीठ ने सुंदर नगर में निर्माणाधीन टोल प्लाजा पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए नेशनल हाईवे, लोक निर्माण विभाग राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब देने को कहा है। इधर इस आदेश के बाद भी टोल प्लाजा का निर्माण चल रहा है। क्या प्रदेश में कानून का डर नहीं है? यह चर्चा अब आम है।
सरकारी गवाह
एस्सार-नक्सल नोट कांड को प्रकाश में लाने वाले पुलिस कप्तान को बदल दिया गया। एस्सार की तरफ से नक्सलियों को 15 लाख की बड़ी रकम देने के पहले एस्सार के ठेकेदार बी.के. लाला को रकम के साथ रंगे हांथों पकड़ा गया। नक्सलियों के सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार लोग अभी भी जेल में हैं। 15 लाख की बड़ी रकम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की किरंदुल शाखा से निकाली गई थी रकम किसके खाते से निकली थी, कौन रकम निकालने गया था यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, पर इसी बीच एस्सार नक्सल नोट कांड के प्रमुख हीरो बी.के. लाला ने सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगा दी है। पैसा एस्सार की तरफ से नक्सलियों को देना था, उस कंपनी के जीएम और पैसा पहुंचाने वाले ठेकेदार जमानत पर है। नक्सल सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार सोढ़ी सोनी और लिंगाराम जेल में हैं। ऐसे में ठेकेदार लाला को सरकारी गवाह बनाने की चर्चा को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। एस्सार-नक्सल नोट कांड में एसआईटी ने 180 दिन पूरे होने पर आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर दिया है। मामले के मुख्य आरोपी ठेकेदार बीके लाला ने एडीजे के अदालत में सरकारी गवाह बनने अर्जी भी लगाई है।
आरोपी बीके लाला ने एडीजे श्रीमति अनिता डहरिया की अदालत में सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाई है। इस अर्जी पर सुनवाई आज होगी। आरोपी लाला ने धारा 306 और 307 के तहत यह अर्जी लगाई है, इसमें उन्होंने अदालत से अपनी लिए माफी की मांग करते हुए अदालत को सरकारी गवाह के रूप में मामले की सभी जानकारी देने की बात कही है। मामले के अन्य दो आरोपी सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोडोपी अभी जेल में हैं, जबकि आरोपी बीके लाला और एस्सार के जीएम डीवीसीएस वर्मा को बेल मिल चुकी है।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पिछले वर्ष 9 सितंबर को पालनार के बाजार से ठेकेदार बीके लाला को 15 लाख की रकम नक्सलियों तक पहुंचाते हुए लिंगाराम कोड़ोपी के साथ गिरफ्तार किया था। मामले की विवेचना के बाद समेली की पूर्व आश्रम अधिक्षिका सोनी सोढ़ी तथा एस्सार के जीएम श्री वर्मा की भी गिरफ्तारी हुई। मामले में सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोड़ोपी को अभी जमानत नहीं मिल पाई है। सोनी सोढ़ी ने पुलिस पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है और सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी चल रहा है।
इधर मामले के मुख्य आरोपी बीके लाला के सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाने से पूरे मामले में ही नया मोड़ आ गया है। कानून के जानकारों का मानना है कि आरोपी लाला के सरकारी गवाह बनने से मामले को सुलझाने में काफी मदद मिल सकती है, इसके साथ ही आरोपी लाला ने माफी मांगकर सरकारी गवाह बनने की जो अर्जी लगाई, इससे भी यह स्पष्ट हो गया है कि उसने स्वयं को कसूरवार मान लिया है। 17 जुलाई को ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि अदालत मामले के मुख्य आरोपी को सरकारी गवाह मानेगी या नहीं।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और नेता प्रतिपक्ष राज्य सरकार की कुछ अनियमितताओं को लेकर न्यायालय जाने वाले थे पर क्यों नहीं गये...। अब यह सवाल का जवाब तो दोनों नेता ही अच्छे से दे सकते हैं।
0 माओवादी प्रभावित क्षेत्र के मंत्री और संसदीय सचिव के लिये बुलेट प्रूफ वाहनों का प्रावधान अनुपूरक बजट में किया गया है। परेशान है गृहमंत्री कंवर, उनकी मांग के बावजूद उन्हें बुलेट प्रुफ कार नहीं मिली है क्योंकि उनका विधानसभा क्षेत्र नक्सलियों से प्रभावित नहीं है।
0 कुछ कलेक्टरों के साथ कुछ पुलिस अधीक्षकों का भी तबादला तय है। इमानदार मुख्य सचिव के आने में कई लोग असहज महसूस कर रहे हैं।

Tuesday, July 10, 2012

मैं चाहता हूं खुद से
मुलाकात हो मगर
आईने मेरे कद के
बराबर नहीं मिले

छत्तीसगढ़ वनों के विनाश और नदियों के प्रदूषण से जूझ रहा है। खनन और औद्योगिक परियोजनाओं से विस्थापित लोग या तो सड़क पर उतर चुके हैं या विरोध कर रहे हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ में समस्या इसलिये भी गंभीर है क्योंकि यहां की खनिज संपदा वनों में ही गड़ी हुई है।
राज्य की 4 प्रमुख नदियां महानदी, गोदावरी, नर्मदा, और गंगा के विस्तारित नदी कंधार का हिस्सा है। राज्य में 12 नदियां है जिनकी संयुक्त लम्बाई 1885 किलोमीटर ही है। अधिकतर नदियां खनिज प्रधान जिलों से ही गुजरती है। मसलन इंद्रावती नदी, लौह अयस्क वाले बस्तर और दंतेवाड़ा जिलों से होकर गुजरती है तो महानदी रायगढ़ और रायपुर महासमुंद जिलो से गुजरती है। हसदेव नदी कोयला समृद्ध कोरबा और कोरिया में बहती है तो रिंहद और कन्हार सरगुजा जिले में बहती है। इनमें से कई नदियों पर खनन और खनिज आधारित उद्योगों में गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इंद्रावती नदी की सहयोगी नदियों में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के लौह अयस्क खनन से प्रदूषण की सच्चाई अब दस्तावेज बन चुकी है। शखनी और डंकनी नदी का पानी लौह अयस्क के प्रदूषण के चलते लाल हो चुका है तो नदी तट से लगी सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर हो चुकी है। वहां कभी फसलें लहलहाया करती थी आजकल सूखा की स्थिति है।
कोरिया जिले की हालत भी कुछ ऐसी ही है। यहां का भूमिगत जल, खनन गतिविधियों के चलते प्रदूषित हो चुका है। सरगुजा जिले के अम्बिकापुर में दिग्मा गांव में जल स्तर बहुत अधिक गिरने की खबर है। पहले 25-30 फूट का गड्डा करने पर पानी निकल आता था पर अब 60-70 फूट की गहराई पर भी पानी नसीब नहीं होता है।
एक अध्ययन के मुताबिक बस्तर की बैलाडिला खदानों के दूस्प्रभाव पर मप्र विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद ने 1997 एक दूर संवेदी अध्ययन में पाया था कि बैलाडिला में लौह अयस्क खदानों के कारण पर्यावरण पर भयावह दुष्प्रभाव पड़ा है। अध्ययन में वन क्षेत्र घटने, समृद्ध जैव विविधता पर संकट की बात सामने आई थी वही जल और वायु प्रदूषण के चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी नष्ट होने के प्रकरण मिले थे। किरंदुल खदानों के कारण आसपास की कई किलोमीटर के दायरे में मिट्टी पूरी तरह बंजर हो चुकी है वही बचेली खदान के कारण 5 किलोमीटर के दायेर में वन क्षेत्र उजड़ता जा रहा है।
इधर 1989 से 92 तक केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक अध्ययन में पाया था कि किरंदुल में खदानों के कारण वन क्षेत्र घटा है वहां खेती भी प्रभावित हुआ है। इधर पता चला है कि एनएमडीसी द्वारा बनाये गये बांध सेडिमेंशन टैंक ही है। खदन से निकलने वाले कीचड़ में लौह अयस्क लगभग आधा से कम होता है यही कीचड़ नदी के पानी को प्रदूषित करता है। पानी का रंग मटमैला, लाल होता जा रहा है। पहले कचरा और कीचड़ बांध के पास ही एकत्रित होता था जिससे आसपास का क्षेत्र काले रंग के पठार में तब्दील हो गया है इसी के कारण कई प्राकृतिक जल स्त्रोतों की धारा भी बदल गई है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 1989-92 में बड़े जल स्त्रोतों से संबंधित ठिकानों को अलग से कचरा जमा करने की सलाह दी गई थी लेकिन इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।
1990 में केन्द्र की विज्ञान और प्रौद्योगिकी इकाई की रिपोर्ट में कहा गया था कि खदानों के बेहिसाब खनन और नदियों में कचरा बहाने से न सिर्फ नदियां ही प्रदूषित हुई है बल्कि बैलाडिला के आसपास 35000 हेक्टेयर की खेती और जंगल भी बरबाद हो गये है (21 साल पुरानी रिपोर्ट ) आज की हालत भगवान ही जानता है। इधर 1996 में सरकार ने ऐलान किया था कि शंखनी और डंकनी नदियों के आसपास 65 गांव प्रभावित हुए है तब एनएमडीसी को निर्देश दिया गया था कि गांववालों को शुद्ध पेयजल के लिये 200 कुएं खोदे जाए। एनएमडीसी ने सरकार का आदेश तो माना, कुएं खोदे पर वह खानापूर्ति ही थे। कम गहरे कुएं खोदे जाने के कारण आज एक भी काम के लायक नहीं है।
1997 में मप्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद ने अपनी रिपोर्ट में एनएमडीसी के लौह अयस्क खदानों से होने वाले जल प्रदूषण को गंभीर मामला बताया था और कहा था कि इसका असर नदियों में दूर तक दिखाई पड़ता है। बैलाडिला संयंत्र से गिरने वाला कचरा इतना भारी होता है कि किरंदुल और बचेली जैसे नाले लगभग सूख गये है, रिपोर्ट के मुताबिक किरंदुल नाले के करीब 37 गांव के लोग पानी पीने के लिये इस जल का इस्तेमाल बंद कर चुके है।
बच्चे नक्सली
बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा कोत्तागुड़ा में हुई कथित मुठभेड़ को लेकर सरकार अपने रूख पर कायम है हालांकि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिह ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से इस मुठभेड़ की जांच कराने की घोषणा की है। इससे आरोप-प्रत्यारोप की सच्चाई देर-सबेर सामने आ ही जाएगी पर आदिवासी विकास परिषद के नेता तथा सुकमा के अपहृत कलेक्टर एलेक्स पाल की नक्सलियों से रिहाई के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने ही मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। उनका कहना है कि मृतकों में 4 बच्चे 12 और 13 साल के है जिनके उम्र की पुष्टि राशन कार्ड से होती है। मनीष कुंजाम के अनुसार इस मुठभेड़ में मारे गये हपका छोटू पिता भीमा (12 साल),काका संध्या पिता भीमा ( 12 साल), मरकाम रामविलास पिता बुच्चा (13 साल), मरकाम नागेश पिता मल्ला (13 साल) शामिल है। वही काका पार्वती पिता कीटा (16 वर्ष),  काका रमेश पिता कीटा (15 वर्ष), सरके रमन्ना पिता पोटी (16 वर्ष) , हुक्का पिता सुकराम (15 वर्ष), कोरसा विचेम पिता गुड्डा (15 वर्ष) ,इरपा सुरेश पिता चन्दैया (16 वर्ष) शामिल है। सवाल यह उठा रहा है कि मृतकों में कुछ व्यस्कों के वोटर कार्ड उपलब्ध है और बच्चों के नाम राशन कार्ड में मिले है इसका तो यही मतलब निकाला जा सकता है कि नक्सलियों के वोटर कार्ड और राशन कार्ड भी बस्तर में बन चुके है। यदि राज्य सरकार इन्हें नक्सली मानती है तो।
आखिर किसका संरक्षण!
छत्तीसगढ़ में सब चलता है। सरकारी अधिकारी कुछ भी कर ले कितनी बड़ी भी गलती कर लें पर राजनीतिक संरक्षण के चलते कुछ नहीं होता है। छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम की कार्य प्रणाली हमेशा चर्चा में रही है। यहां 2 सगी बहनों की नियुक्ति दोनों के बीच मात्र 3-4 माह का अंतर (अंक सूची के आधार पर ) हो लोक आयोग में शिकायत हो जांच शुरु हो जाए पर दोषी अफसर पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।
संवेदनशील मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हाल ही में नक्सली प्रभावित क्षेत्रों के स्कूली बच्चों के इंजीनियरिंग में प्रवेश के बाद उन्हें दिल्ली ले जाकर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात कराई और राज्य सरकार की कार्यवाही से अवगत कराया। इसी राज्य में पढऩे वाली बेटियों के लिये नि:शुल्क साइकिल की व्यवस्था की है, वही नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकों के वितरण की भी योजना शुरू की है पर पुस्तकों के प्रकाशन और वितरण करने वाला पापुनि हमेशा चर्चा में रहा है। कभी गुरू घासीदास के विषय में गलत प्रकाशन की बात सामने आई, सतनामी समाज आंदोलित हुआ और फिर वह अध्याय हटाकर पुस्तक का प्रकाशन किया गया, फिर नई पुस्तक प्रकाशित की गई। खर्च लाखों में हुआ पर कार्यवाही किसी के खिलाफ नहीं हुई, फिर पांचवी पर्यावरण पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 183 में राष्ट्रीय प्रतीक के पाठ में तिरंगा का रंग ही बदलकर प्रकाशित हो गया। किताब में तिरंगे का रंग सबसे उपर हरा, मध्य में सफेद तथा सबसे नीचे केशरिया प्रकाशित हो गया। कुल 6 लाख 79 हजार 700 प्रतियां प्रकाशित हुई, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के जिले कवर्धा से शिकायत आई और वितरीत पुस्तकें वापस लेकर पुन: प्रकाशन करा कर लाखों खर्च किये गये पर फिर किसी पर कार्यवाही नहीं हो सकी क्यों? जरूरत से अधिक पुस्तकें प्रकाशन, भिलाई और बिलासपुर में रद्दीवाले के पास पापुनि की मुफ्त वितरित होने वाली पुस्तकें जप्त भी हुई पर फिर किसी पर कार्यवाही नहीं हो सकी।
नाश्ते की प्लेट
हाल ही में बालौद जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में विद्यार्थियों  को नि:शुल्क वितरित की जाने वाली पाठ्य पुस्तकों को नाश्ता की प्लेट बनाकर नास्ता देने का मामला भी चर्चा में हैं। जिला पंचायत सदस्य देवलाल ठाकुर की शिकायत पर कलेक्टर बालौद ने एसडीएम को जांच का आदेश दिया था। जांच के बाद इसके तार रायपुर से जुड़े होने के संकेत मिल रहे हैं। नाश्ता बालौद के बीकानेर स्वीट्स से भेजा गया था। पता चला कि डौडीलोहारा क्षेत्र से नाश्ता प्लेट बीकानेर स्वीट्स भेजी गई थी। बीकानेर स्वीट्स के संचालक ने वह नाश्ता की प्लेट बालौद के दिनेश ट्रेडर्स से खरीदा था। दिनेश ट्रेडर्स के संचालक के अनुसार उसने वह प्लेट सम्यक ट्रेडर्स गोलबाजार रायपुर से मंगवाया था। इसका मतलब है कि पाठ्य पुस्तकों को रायपुर में ही बेचा गया था। सवाल यह उठ रहा है कि या तो पाठ्य पुस्तकें किसी क्षेत्र में भेजी ही नहीं गई यदि ऐसा है तो उस क्षत्र के बच्चे पढ़ाई कैसे कर रहे है या यह भी हो सकता है कि जरूरत से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है। बहरहाल प्रतिनियुक्ति का समय समाप्त होने, चर्चा में रहने लोक आयोग में शिकायत दर्ज होने के बाद भी पापुनि में एक अधिकारी का जमे रहना सरकारी संरक्षण की ही चुगली करता हैं।
और अब बस
0 एक सरकारी अधिकारी की प्रिंटिग प्रेस के बाद पेट्रोल पंप की स्थापना और निर्माण की जमकर चर्चा है हालांकि दोनों किसी दूसरे के नाम से हैं।
0 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में मेनेजमेण्ट कोटा समाप्त करने और निजी स्कूलों पर करोड़ों जुर्माना करने के पीछे किसका हाथ है, इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है।

Tuesday, July 3, 2012

वह हादसा भी कितना अजीबो गरीब था
वह आग से जला जो नदी के करीब था
शेषन केन्द्र में सचिव थे तो बुच म.प्र. के मुख्य सचिव

बस्तर में इंद्रावती नदी के किनारे रहने वाले 5 जिलों के 42 से अधिक गांवों के आदिवासी सहमें से हैं। पिछले साल 2011 की सर्दी के मौसम में बीजापुर जिले के भैरमगढ़ विकास खंड के सडार के आसपास संरक्षित वन परिक्षेत्र में कुल्हाड़ी चलने की आवाज आदिवासियों ने सुनी तब पता चला कि इंद्रावती नदी में पनबिजली योजना का काम प्रारंभ हो रहा है। पहले चरण में केवल 50 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना है। इस तरह बोधघाट परियोजना का जिन्न फिर बाहर आ गया है। 1971 मेें इंद्रावती नदी  के जल के 500 मेगावाट बिजली बनाने बोधघाट परियोजना बनाई गई थी। जिसका व्यापक विरोध हुआ था और मप्र के तत्कालीन मुख्य सचिव एम.एन बुच की रिपोर्ट पर केन्द्र के तत्कालीन वन एवं पर्यावरण सचिव टी.एन. शेषन (बाद में चुनाव आयोग के सर्वेसर्वा) ने अनापत्ति नहीं दी और 100 गांवों के 60 हजार आदिवासी डूबान से बेघरबार होने से बच गए।
बोधघाट परियोजना
बोधघाट परियोजना के तहत 1983 में 125 मेगावाट की चार युनिट अर्थात 500 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए विश्वबैंक की मदद से इंदिरा सरोवर जल विद्युत परियोजना का शुभारंभ हुआ था। ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थल बारसूर के पास 600 करोड़ की इस महत्वाकांक्षी विद्युत परियोजना पर्यावरण संबंधी स्वीकृति नहीं मिलने के कारण 80 करोड़ खर्च करने के बाद 1985 में बंद कर दी गई थी। इस परियोजना के अंतर्गत इंद्रावती नदी के पानी को रोकने से प्रभावित होने वाले 260 किलोमीटर क्षेत्र के 48 गांव प्रभावित हो रहे थे। वहीं 8 लाख वृक्ष प्रभावित हो रहे थे। तब मप्र विद्युत मंडल ने 260 किलोमीटर क्षेत्र के 115 गांवों में 124 क्षेत्र का चयन कर 24 लाख वृक्षो का रोपण करने की योजना बनाई थी। वृक्षारोपण के नाम पर 16 करोड़ (8 करोड़ वृक्षारोपण तथा 8 करोड़ स्थापना व्यय) खर्च किया गया था। मप्र विद्युत मंडल ने कुल डूबान में आनेवाली भूमि और संपत्ति के मुआवजा के तौर पर तीन हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से 50 लाख व्यय किया था। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह इस परियोजना के समर्थक थे तो तत्कालीन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री विद्याचरण शुक्ल तथा तत्कालीन सांसद अरविंद नेताम ने जमकर विरोध किया था। उस समय बारसूर में प्रस्तावित परियोजना स्थल के पास इंद्रावती नदी में एक करोड़ 14 लाख की लागत से पुल भी बनाया गया था वहीं व्हीआईपी विश्राम गृह भी बनाया था उस समय इस विश्राम गृह की तुलना मप्र के सबसे खूबसूरत विश्रामगृह के रुप में होती थी। परियोजना का विरोध करनेवाले गिने चुने राजनेता थे कुछ ने तो पर्यावरण के नाम पर स्वत: को  भी उभारने की कोशिश की थी। इस परियोजना का पर्यावरण तथा वृक्षों के नुकसान को लेकर विरोध करनेवाले कालांतर में मालिक मक्बूजा में करोड़ों की लकड़ी कटाई के भी आरोपी निकले। तब तत्कालीन मप्र के मुख्य सचिव एमएन बुच ने अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भेजी थी और तबके सचिव टीएन शेषन ने इस विद्युत परियोजना को पर्यावरण संबंधी स्वीकृति नहीं दी थी।
फिर जिन्न बाहर आया
पर 2011 में सर्दी के मौसम में अचानक बोधघाट परियोजना का जिन्न फिर बाहर आ गया। इंद्रावती पर 25-25 मेगावाट की दो पन बिजली योजना की स्थापना की बात सामने आई। आदिवासियों को लग रहा है कि इस पनबिजली योजना के पूरे होने पर बोधघाट परियोजना को फिर साकार करने की कोशिश की जाएगी और आदिवासियों की हजारों एकड़ कृषिभूमि, लाखों वृक्ष, पशु पक्षी यहां तक कि आदिवासियों के देवी-देवता भी डूब जाएंगे। उस समय तो बस्तर में केवल एनएमडीसी ही लौह अयस्क का उत्खनन कर रही थी पर आज स्थिति बदल गई है। टाटा स्टील, एस्सार स्टील, मीको स्टील जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बस्तर में पैर जमा लिए हैं। बिजली और पानी की उनकी जरूरते लगातार बढ़ती जा रही है लिहाजा उनकी नजरें बस्तर की एक मात्र जीवनदायिनी इंद्रावती नदी पर है।
एस्सार से जुड़े तार
ग्राम सडार में पनबिजली परियोजना का काम छत्तीसगढ़ एनर्जी कंसोर्टियम (इंडिया) प्राईवेट लिमिटेड नामक हैदराबाद की कंपनी द्वारा किया जा रहा है। सूत्र कहते हैं कि इस कंपनी के पीछे कहीं न कहीं एस्सार के तार जुड़े हैं। एस्सार पानी बहाव के साथ लौह अयस्क का परिवहन करती है। इस तरह अयस्क विशाखापटनम बंदरगाह तक पहुंचाया जाता है। लौह अयस्क के परिवहन के लिए प्रयुक्त पानी की रि-साइकिलिंग की व्यवस्था नहीं होने के कारण पानी व्यर्थ में समुद में चला जाता है ऐसी हालत में इंद्रावती नहीं का पानी कम होता जाता है। सूत्रों का कहना है कि साडार में हैदराबाद की कंपनी बिजली उत्पादन के लिए पानी संग्रहित करने चेकडेम भी बना रही है और भविष्य में इसी डेम से एस्सार को भी पानी की आपूर्ति की जाएगी।
टुकड़ों में काम
बोधघाट परियोजना में 500 मेगावाट बिजली उत्पादन की योजना थी। 125-125 मेगावाट की 4 युनिट की स्थापना होनी थी। इसे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने स्वीकृति नहीं दी थी। इसलिए इस बार फिलहाल 50 मेगवाट बिजली उत्पादन की बात कही जा रही है इसमें कम भूमि और वन का नुकसान बताया जा रहा है। संभवत: 50 मेगावाट के लिए भी केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति भी नहीं ली गई है। 50 मेगावाट पनबिजली परियोजना पूरी होने पर बाद में टुकड़ों-टुकड़ों में पन बिजली परियोजना पूरी करके अंतत:  बोधघाट परियोजना केा अंजाम दिया जाएगा। बहरहाल मिनी बोधघाट परियोजना के पीछे असल मंशा जो भी हो आदिवासियों ने विरोध का स्वर मुखर कर दिया है।
विरोध के स्वर
आदिवासियों के विरोध के चलते 28 दिसंबर 11 को कलेक्टर दंतेवाड़ा ने छत्तीसगढ़ एनर्जी कंर्सोडियम प्रबंधन  सहित प्रभावित होने वाले एरपुंड, मालेवाही, पुषवाल, हर्राकोडेर, पीची कोडेर, अमलधार, कोडेनार बिंताभेजा, रायकोर, सतसपुर आदि के ग्रामीणों की बैठक ली थी। बैठक में कंपनी प्रबंधन ने लिखित में ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि एक भी गांव और खेती की जमीन डूबान में नहीं आएगी साथ ही चेकडेम निर्माण शुरू करने से पहले डूबान क्षेत्र के लेबल को मुनारों द्वारा चिन्हांकित किए बिना पेड़ों की कटाई नहीं की जाएगी। पर बाद में वृक्षों पर कुल्हाडिय़ां चलना शुरू हो गई। 16 जनवरी 12 को बारसूर महोत्सव में प्रदेश के मुखिया डा.रमन सिंह को अवगत कराया गया था। 15 फरवरी 2012 को बीजापुर में विशाल रैली निकाली गई और 24 मई 2012को राज्यपाल को भी विरोध पत्र भेजा गया था। हाल ही में ग्रामीण आदिवासियों ने एक रैली निकालकर अपना विरोध भी दर्ज कराया। आदिवासियों की परेशानी यह है कि प्रदेश सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ खड़े दिखाई दे रही है तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का रवैया ही उनकी समझ के बाहर है।
और अब बस
0 सलवा जुडूम के बाद 622 गांव खाली हो गए, कई लोग सलवा जुडूम केम्प में रहने लगे। अब तो केम्प नाम मात्र के ही बचे हैं। सवाल यह है कि बस्तर के आदिवासी अब कहां हैं।
0 बस्तर में नक्सलियों की समानांतर सरकार चलने का आरोप लगता है, कलेक्टर का नक्सली अपहरण कर लेते है, मध्यस्थों की पहल पर कलेक्टर रिहा भी होते हैं, रोज हत्या, धमाके आम बात है फिर भी बहुराष्ट्रीय कंपनियां वहां उद्योग संचालन कर रही है, आंध्र प्रदेश के ठेकेदार काम ले रहे हैं कैसे?