Thursday, September 24, 2009

आइना-ए-छत्तीसगढ़


फलसफ़ा वक्त का इतना ही बताता है हमें

हमें जिन्दगी नाम है, हालात से सौदा करना

तेज तूफान है, कश्ती भी बहुत जर्जर है

मेरी मजबूरी है, मांझी पर भरोसा करना

1949 से 1976 पर चीनी कम्युनिष्टï पार्टी के अध्यक्ष रहे माओत्सेतुंग ने जनवादी क्रांति के लिये जो रणनीति बनाई थी इसकी अगली मंजिल पर भारतीय कम्युनिष्टï पार्टी (माओवादी) ने अमल शुरू कर दिया है लेकिन यह पार्टी भारत में प्रतिबंधित है। माओ का कहना था-'क्रांतिकारी गांवों को आधार बनाकर शहरों को घेरेंगे। सत्ताधारी वर्ग के अंतिम दुर्ग शहरों पर कब्जा कर ही मजदूर वर्ग की सत्ता कायम कर सकेंगे। इसी राजनीतिक रणनीति के मदï्देनजर नक्सबाड़ी के दौरे में चारू मजूमदार ने 'गांव की ओर चलोÓ यह नारा दिया। चारू के नेतृत्व को अति वामपंथ की संज्ञा दी गई और सरकार ने इसे उग्रवाद बताया। व्यवस्था परिवर्तन के लिये हथियार बंद क्रांति के केन्द्रीय कार्यभार को सुनिश्चित करने वाले चारू के अनुयायियों की बदली रणनीति आगाह कर रही है कि सरकार उन्हें उग्रवादी कहती है वैसे लोगों ने लोकतंत्र के सर्वाधिक मजबूत क्षेत्र शहरों में भी दस्तक देना शुरू कर दी है। 'माओ का नारा हमाराÓ की बात करने वाले माओवादी अब शहरी क्षेत्रों में जनसंगठन बनाकर अपनी गतिविधियों को फैला रहे हैं। यहां के सामंती सत्ता खत्म करने के लिये माओवादी बंदुकों का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं बल्कि छात्र, युवा, महिला और मजदूरों का मोर्चा बनाकर क्रांति के दस्ते बना रहे हैं। नक्सलवाद देश की राजधानी तक पहुंच गया है एक बड़ा नक्सली नेता कल ही पकड़ा गया है तभी तो केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने दिल्ली में नक्सल विरोधी पुलिस की शाखा बनाने की सिफारिश कर दी है। वैसे खुफिया रिपोर्ट के अनुसार नक्सलवादियों ने महानगरों में एनजीओ, सामाजिक संगठन, मजदूर संगठन, मानव अधिकार सहित कुछ विश्वविद्यालयों सहित मीडिया के कुछ लोगों तक अपनी पैठ कर ली है। देश में दिल्ली, कोलकोता, चेन्नई, मुंबई जैसे मेट्रों शहरों सहित बंगलुरू, नागपुर, पटना, भोपाल, राऊरकेला, भिलाई, दुर्ग, रायपुर, हैदराबाद, हुगली में माओवादी और उनके समर्थक पकड़े जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ में माओवादी बस्तर में हथियार बना रहे थे और पुलिस ने पकड़ा भी है सवाल यह है कि हथियार बनाने के लिये सामान की आपूर्ति तो कहीं न कहीं से होती होगी, बारूद विस्फोट के लिये बारुद कहां से मिलता है। वैसे यदि जंगलों में नक्सलियों के ठौर-ठिकाने उजाडऩे की मुहिम तेज की जाने वाली है तो उनके शहरी संपर्क सूत्रों पर भी निगाह रखनी होगी केवल राज्य की खुफिया पुलिस पर भरोसा कर कोई कदम उठाना ना समझी ही मानी जाएगी। पानसिंह से गाजीबाबा तकनक्सली प्रभावित 7 राज्यों सहित छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या से निपटने केन्द्रीय सुरक्षा बल तथा राज्य पुलिस के बीच बेहतर तालमेल बनाये रखने केन्द्र सरकार ने 1975 बैच के मध्यप्रदेश काडर के आईपीएस अफसर विजय रमन को प्रभारी बनाकर यह तो साबित कर ही दिया कि नक्सलवाद से निपटने केन्द्र के पास इच्छा शक्ति है। अभी तक किसी बड़ी नक्सली वारदात के बाद केन्द्र और राज्य एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में कोई परहेज नहीं करते थे। राज्य हमेशा आरोप लगाती थी कि हमारे पास इच्छा है पर शक्ति नहीं है केन्द्र के पास शक्ति है पर इच्छा नहीं हैं। खैर 'देर आयद दुरुस्त आयदÓ की तर्ज पर विजय रमन की नियुक्ति की गई और वे नक्सली अभियान या अन्य कोई समस्या पर सीधे केन्द्रीय गृहमंत्री या गृह सचिव को ही रिपोर्ट करेंगे।केन्द्रीय सुरक्षाबल के स्पेशल डीजी विजय रमन छत्तीसगढ़ के लिये कोई नया नाम नहीं है। 8 मई 82 से 12 जून 84 तक वे रायपुर के पुलिस कप्तान भी रह चुके हैं। यही नहीं उनका नाम पहले छत्तीसगढ़ के डीजीपी के लिये भी उभरा था हालांकि उन्होंने उस समय रुचि नहीं ली थी। खैर केरल में 18 जनवरी 51 को जन्मे विजय रमन का सर्विस रिकार्ड काफी अच्छा है यही नहीं वे काफी लोकप्रिय अफसर माने जाते हैं। 'बयानबाजीÓ की जगह 'कारगर कार्यवाहीÓ करने में विश्वास रखते हैं। अपने भिण्ड जिले में बतौर पुलिस कप्तान उन्होंने इनामी डकैत पानसिंह का आतंक कम किया था। पानसिंह की भी डकैत बनने की एक अलग कहानी है। पानसिंह अच्छा एथलीट था और धावक के रूप में उसने एथियाड में पदक भी देश के लिये हासिल किया था। बाद में न जाने क्यों वह चंबल के बीहड़ में उतर गया यही नहीं खूंखार डकैतों में उसकी गिनती होने लगी। उसके बारे में कहा जाता था कि वह हवा की गति से दौड़ कर भाग जाता था। विजय रमन ने अपने भिण्ड में पदस्थापना के दौरान ही पानसिंह का आतंक समाप्त कर दिया था। इस युवा असफर की इस कामयाबी काफी चर्चा में रही। उसी के बाद उनकी नियुक्ति रायपुर में बतौर पुलिस कप्तान की गई। उनके डाकू मारने की चर्चा उनकी नियुक्ति के बाद चली तो यहां भी उनको लेकर तरह-तरह की चर्चा होती रही पर यहां पदस्थापना के बाद मिलनसार, न्यायप्रिय तथा सभी को साथ लेकर चलने वाले अधिकारी के रूप में उनकी पहचान बनी थी। विजय रमन बाद में प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में चले गये थे। रमन 2003 में उनकी नियुक्ति जम्मू-कश्मीर में हुई थी उन्होंने वहां अपनी पदस्थापना के दौरान जैस-ए-मोहम्मद के कमांडर तथा खतरनाक आतंकवादी गाजी बाबा को पकडऩे में सफलता पाई थी। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तथा नरसिम्हन राव के कार्यकाल में विजय रमन स्पेशल प्रोटेक्शन गु्रप (एसपीजी) में भी पदस्थ रहे हैं इस तरह सुरक्षा का भी उनको अच्छा अनुभव है। 58 वर्षीय विजय रमन 23 जनवरी 2009 को सीआरपीएफ में एडीजी के रूप में पदस्थ हुए हैं और उनकी नियुक्ति विशेष डीजी के पद पर रायपुर में हुई है और वे यही मुख्यालय बनाकर छत्तीसगढ़ सहित आसपास के नक्सली प्रभावित 7 राज्यों के केन्द्रीय सुरक्षाबल तथा उन राज्यों की पुलिस में बेहतर तालमेल बनाकर नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाएंगे। वैसे 58 वर्ष की उम्र में नक्सलियों को समाप्त करने की मुहिम में सात राज्यों का नेतृत्व करना एक चुनौती भरा काम है पर उनके जानने वाले कहते हैं कि चुनौती स्वीकार करना उनके स्वभाव में हैं वैसे नक्सलियों के सफाये की उनकी मुहिम सफल होती है तो वह एक बड़ी उपलब्धि होगी। 5 महिला एसपीओ की छुट्टïी?हाल ही में पुलिस अधीक्षक बीजापुर ने सलवा जुडूम अभियान के तहत 5 महिला एसपीओ की सेवाएं समाप्त कर दी है अब इन महिलाओं के सामने समस्या यह है कि आखिर जाएं तो कहां जाएं!बीजापुर के पुलिस कप्तान ने हाल ही में बीजापुर थाने में पदस्थ 5 महिला विशेष पुलिस अधिकारी सुश्री सुनीता दुर्गम, कमला आंगना पल्ली, अनिता प्रधान, विनीता एंड्रिक और सविता पटेल को बिना बताये अनुपस्थित रहने सहित कार्य में लापरवाही बरतने का आरोप लगाकर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी है। 2100 रुपये मासिक यानि 70 रुपये रोज की दर पर ये महिला एसपीओ नक्सलियों के खिलाफ सरकार और पुलिस को मदद कर रही थीं। वहां की स्थानीय होने के कारण उन्हें एसपीओ बनाया गया था साथ ही नक्सलियों के खिलाफ चलाये जा रहे सलवा जुडूम अभियान में सहयोग करने के कारण ये लोग वैसे भी नक्सलियों की हिटलिस्ट में होती हैं। नक्सली तो अब पुलिस की जगह एसपीओ को अपना दुश्मन 'नंबर वनÓ मानती हैं। नक्सली इनके विरोधी हैं, गांव में रहने पर नक्सली इन पर हमला कर सकते हैं ऐसे में यदि पुलिस ने इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई है तो ये पांचों महिलाएं अब जाएंगी कहांï? अब 2100 रुपए मासिक वेतन में एसपीओ बनी इन महिलाओं से पुलिस के कड़े कानून और अनुशासन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सवाल उठता है कि यदि इन्हें काम पर नहीं लिया गया तो हो सकता है कि मजबूरी में ये नक्सलियों के दबाव में उनसे जुड़ जाएंï? खैर राजनांदगांव में पुलिस के जवानों ने मदनवाड़ा जाने से मना कर दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और लगता है कि उसी तर्ज पर 5 महिला एसीपीओ पर भी गाज गिरी है। और अब बस(1)हमारे एक मित्र ने ब्राह्मïणों को एक-दूसरे से सबसे अधिक जुड़ा होने वाला, दूसरों को भी जोडऩे में सक्षम बताया है। उनका कहना है कि ब्राह्मïण (क्चक्र्र॥रूढ्ढहृ) में 'बीÓ फार बीएसएनएल, 'आरÓ फार रिलायंस, 'एÓ फार एयरटेल, 'एचÓ फार हच, 'एमÓ फार एमटीएनएल, 'आईÓ फार आइडिया और 'एनÓ फार नोकिया। मोबाइल की कंपनी का नाम बताकर उन्होंने यह सिद्घ करने का भी प्रयास किया है। (2)नंदकुमार साय का आरोप है कि कांगे्रस सरकार ने उन्हें आदिवासी होने के कारण सरकारी घर से बेदखल किया। इस पर एक टिप्पणी थी कि यदि उन्हें भाजपा लोकसभा चुनाव लडऩे से बेदखल नहीं करती तो यह नौबत ही नहीं आती।

Thursday, September 10, 2009

91-92 का मामला और अब लोक आयोग में मामला दर्ज
रायपुर । सेंट्रल जेल में सन 1991 से 92 तक कर्मचारियों से की गई करीब 25-30 लाख की वसूली कर उसे जमा नहीं करने में बरती गई। अनियमितता के मामले में छग लोक आयोग में प्रकरण क्रमांक 31/06 दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी गई है। इस प्रकरण में जांच में नौकरशाहों की भूमिका तथा जांच में किस तरह लीपापोती होती रही है उसका काफी लंबा इतिहास सामने आया है। दिलचस्प तो यह है कि जिसके कार्यकाल की जांच होनी ती उसी के अपने हस्ताक्षर से जांच टीम का गठन किया था।सेंट्रल जेल रायपुर के आसपास बने 40 जेल स्टाफ के भवनों को कंडम घोषित करने पर उसकी बिजली काट दी गई थी तब सेंट्रल जेल के अधीक्षक पी.डी. वर्मा थे। तब सभी का कनेक्शन जेल के मुख्य भवन से जोड़कर बिजली आपूर्ति होती रही और उसके एवज में कर्मचारियों से निश्चित रकम ली जाती रही। जबकि जेल का बिल तो सरकारी मद से ही पटाया जाता रहा। बाद में रकम ली जाती रही और उसे जमा नहीं कर आर्थिक अनियमितता का आरोप लगा तो कई अधिकारियों के पास से फाईल गुजरकर लोक आयोग के पास पहुंची और प्रकरण कायम कर जांच प्रारंभ कर दी गई।23 मार्च 2002 को जब जेल महानिदेशक के पद पर अशोक दरबारी पदस्थ थे तब उनके पास बिजली बिलों में अनियमितता की शिकायत पहुंची तो उन्होंने प्रकरण की गंभीरता को देखकर पूरे प्रकरण की जांच सतर्कता विभाग से करवाने की अनुशंसा कर दी। दरअसल टी.के. शोरी जो मुख्यालय में बिल अधिकारी के पद पर है उन्होंने इस प्रकरण पर वित्तीय अनियमितता की टीप लिखी थी कि अवैधानिक विद्युत कनेक्शन पर उपभोक्ताओं (जेल स्टाफ) से राशि वसूली तो की गई पर उसे जमा नहीं कराना भूल ठहराना शासन को भ्रमित करना तथा ऐसे अनुचित कार्य को उचित ठहराने की कोशिश करना है। तत्कालीन जेल अधीक्षक पी.डी. वर्मा ( वर्तमान में डीआईजी) ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं कर व्यवस्थाओं के संबंध में अपने दायित्वों का निर्वहन सतर्कतापूर्वक नहीं करने शासन को हानि पहुंचाई। इसी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन डीजी जेल अशोक दरबारी ने प्रकरण को गंभीर मानकर इसकी जांच सतर्कता विभाग से कराने की अनुशंसा कर शासन को प्रस्ताव भेजा ता। तब तत्कालीन प्रमुख सचिव (जेल) ए.के. विजयवर्गीय ने भी इस प्रकरण की दंडाधिकारी जांच का आदेश दिया तथा रायपुर जिले के तत्कालीन अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी अशोक अग्रवाल (वर्तमान में कलेक्टर कोरबा) को जांच अधिकारी बनाया था। तत्कालीन एडीएम अशोक अग्रवाल ने अपनी जांच पूरी कर 29 जुलाई 2005 को अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि उचित होगा कि विद्युत देयकों की वसूली के संबंध में शासन स्तर से एक विशेष आडिट दल का गठनकर पूरी जांच कराई जाए जिससे स्पष्ट हो सके कि विद्युत बिलों की वसूली में कितने रुपये का गबन हुआ है। अनियमितता के लिए कौन-कौन दोषी है, उत्तरदायी कौन अफसर/कर्मचारी है अथवा पुलिस महानिदेशक जेल के अभिमत के अनुसार प्रकरण सतर्कता विभाग को सौंपा जा सकता है।जांच रिपोर्ट शासन तक पहुंची तब तक अशोक दरबारी के स्थान पर वासुदेव दुबे डी.जी. जेल बन चुके थे तथा प्रमुख सचिव जेल के पद पर आर.पी. बगई की पदस्थापना हो चुकी थी। दंडाधिकारी जांच की रिपोर्ट के आधार पर बगई साहब ने आदेश किया कि जांच रिपोर्ट तथा डीजी जेल के अभिमत के आधार पर यह उचित होगा कि डीजी जेल के प्रशासकीय नियंत्रण में एक, दो या तीन अधिकारियों का दल बनाया जाए और उन्हें जांच का जिम्मा दिया जाए कि किन-किन अधिकारियों/कर्मचारियों से कितनी वसूली की जानी चाहिए और इसके अतिरिक्त कोई दंड दिया जाना हो तो उसका प्रस्ताव भी दिया जाए। जब यह सरकारी फरमान जेल तक पहुंचा तब तक वासुदेव दुबे जेल डीजी बन चुके थे। उन्होंने तो कमाल ही कर दिया जिस जेल अधीक्षक पीडी वर्मा के कार्यकाल में बिजली बिलों की अनियमितता हुई थी उसी के हस्ताक्षर से एक जांच कमेटी की घोषणा करवा दी। जांच समिति में टी.के. शोरी वित्त अधिकारी, अजय मिश्रा उद्योग अधीक्षक जेल मुख्यालय तथा श्यामराज सिंह तत्कालीन जेल अधीक्षक सेंट्रल जेल रायपुर को शामिल किया गया। इसमें टी.के. शोरी तो वहीं अधिकारी थे जिनकी शिकायत पर ही अनियमितता की जांच शुरू हुई थी वहीं 2 अन्य अधिकारी जेल डीआईजी पीडी वर्मा के अधीन अधिकारी थे। यानी डीआईजी के समय के प्रकरण की जांच उनके मातहत अधिकारियों को करनी थी और जिसके कार्यकाल की जांच होनी थी उसी अफसर ने अपने हस्ताक्षर से जांच टीम की घोषणा की थी।जाहिर है जांच रिपोर्ट आई कि मानवीय कारण से तत्कालीन व्यवस्था में निर्धारित शुल्क वसूल कर समय-समय पर जमा कराने से यह स्पष्ट है कि वसूली को जमा नहीं कराने में बदनियति से गबन नहीं है। वसूली गई राशि समय-समय पर जमा नहीं कराना या बीच में वसूल नहीं किया जाना प्रशासनिक त्रुटि मानी जा सकती है। शिकायत निराधार पाई गई। इसके बाद प्रकरण लोक आयोग को भेजा गया और वहां प्रकरण को प्रथम दृष्टया ही 31/06 क्रमांक में प्रकरण दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी गई है।