Monday, June 17, 2013

कोई खुशियों की चाह में रोया
कोई दुखों की पनाह में रोया
अजीब सिलसिला है ये जिंदगी का
कोई भरोसे के लिये, तो कोई भरोसा करके रोया

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने एक राजनीतिक पार्टी कुछ नेताओं को घेरकर अधाधुंध गोलियां चलकार लहूलुहान कर दिया। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला किसी राजीतिक पार्टी ने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है बस्तर में सलवा जुडूम की शुरूवात करने वाले महेन्द्र कर्मा और नक्सलियों के बीच कुछ वर्षों से —— की लड़ाई चल रही थी। अवसर देखकर नक्सलियों ने उन्हें गोली मारकर छलनी कर दिया पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल से नक्सलियों की क्या दुश्मनी थी यह समझ से परे है। अविभाजित म.प्र. और छत्तीसगढ़ पृथक राज्य में करीब 7-8 साल गृहमंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल चुके पटेल तो कभी भी नक्सलियों की हिट लिस्ट में नहीं रहे। गरियाबंद से किसान सम्मेलन से लौटते समय उनके काफिले पर हमला हुआ था। तब नक्सलियों ने घायल लोगों का इलाज भी किया था। फिर यदि हाल-फिलहाल नक्सलियों से कुछ अरावत हुई भी होगी तो उनके बेटे दीपक का हत्या नक्सलियों ने क्यों की। 84 वर्षीय विद्याचरण शुक्ल तो नक्सलवाद पर कम ही टिप्पणी करते थे वे तो वैसे भी कुछ वर्षों से सत्ता से दूर है, वृद्ध नेता को नक्सलियों द्वारा गोली मारना भी समझ के परे है। राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार की भी हत्या का नक्सलियों के पास कोई उद्देश्य रहा होगा ऐसा लगता नहीं है।
नक्सलियों ने पहले परिवर्तन यात्रा को एक ट्रक उड़ाकर रोका फिर एक विस्फोट किया इसके पहले सड़क पर एक पेड़ काटकर रास्ता बंद कर दिया था। पहला वाहन तो विस्फोट का शिकार हो गया पर नक्सलियों ने दूसरे वाहन से सबसे आखरी वाहन जिस पर विद्याचरण शुक्ल सवार थे सभी वाहनों पनर एके 47, जैस अत्याधुनिक हथियार से अधाधुंध फायर किया जाहिर है कि उनका उद्देश्य परिवर्तन यात्रा में शामिल सभी लोगों की हत्या करना था पर कुछ लोगों को तो उन्होंने छोड़ दिया जिसमें विधायक कवासी लखमा प्रमुख है। 9 साल से सत्ता से दूर कांग्रेसियों से आखिर नक्सली नाराज क्यों थे?
वैसे इतनी अधिक संध्या में नक्सलियों के जमावड़े की सूचना भी गुप्तचर शाखा को नहीं मिलना भी कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। पूर्व कें्रदीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को 3 गोली लगने के बाद भी करीब 3-4 घंटे तक पुलिस प्रशासन का नहीं पहुंचना, 108 एंबुलेंस का काफी देर से पहुंचना, घटना स्थल से ही आधे किलोमीटर दूर नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र की लाश पड़ी होने की सूचना मीडिया कर्मी की खबर के बाद प्रशासन का सक्रिय होना भी गंभीर मामला है। वैस सूत्र रहते है सरकार की विकास यात्रा जब बस्तर में निकली तो करीब 4 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात थे पर जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकली तो वहां सुरक्षा बल का अता-पता नहीं था। केवल नेताओं के सुरक्षा कर्मियों ने ही नक्सलियों का मुकाबला किया और गोली खत्म होने के कारण खुद शहीद हो गये और अपने नेताओं की सुरक्षा करने में भी असमर्थ रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के गनमैन, नंदकुमार पटेल के गनमैन और जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त महेन्द्र कर्मा के सुरक्षा कर्मी आखिर कितनी देर घात लगाकर तैयारी से आये नक्सलियों का कितनी देर मुकाबला करते।
सुकमा में परिवर्तन यात्रा के लौट रहे कांग्रेसी काफिले पर घात लगाकर दरभा-जीरम घाटी पर नक्सलियों द्वारा की गई गोलबारी से आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा, राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार , प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा म.प्र. और छत्तीसगढ़ के करीब 8 वर्षों तक गृहमंत्री रहे नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दीपक पटेल सहित लोगों की हत्या तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल पर जानलेवा हमा करके नक्सलियों पर कुठाराघात किया है वहीं यह भी जाहिर करने का प्रयास किया है कि बस्तर क्षेत्र में उनकी समानांतर सरकार है। राज्य सरकार का अस्तित्व केवल कागजों पर ही सीमित है।
नक्सलियों ने पहले ही भाजपा की विकास यात्रा और कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को लेकर धमकी दी थी लेकिन फिर भी सुरक्षा बल की सक्रियता नहीं होगा भी आश्चर्य जनक ही है।
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार गठित हुई है उसके बाद से नक्सली वारदातों में वृद्धि हुई है। कुछ ऐसी बड़ी वारदात हुई है जिससे छत्तीसगढ़ की चर्चा भारत ही नहीं विश्व में भी हुई है। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में 76 सीआरपीएफ के जवानों की हत्या कर दी। यह भी विश्व में सबसे बड़ी नक्सली वारदात थी। पुलिस ने कुछ नक्सलियों को गिरफ्तार कर प्रकरण भी बनाया पर न्यायालय में पुलिस अपना पक्ष सही तरह से नहीं रख सकी और सभी आरोपी नक्सली न्यायालय से बरी हो गये क्या इस पर सही विवेचना नहीं करने वालों के खिलाफ सरकार ने कार्यवाही की नहीं...।
16 अप्रैल 2007 को रानीबोरली में नक्सली हमल से 49 लोगों की मौत हुई, 17 जुलाई 07 को दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने 25 लोगों की हत्या कर दी।
दंतेवाड़ा क जेल में नक्सलियों ने 299 कैदी बंदी को जेल से भगाने का कमा किया यह भी देश में जेलब्रेक की सबसे बड़ी नक्सली वारदात रही पर कार्यवाही केवल तत्कालीन जेल प्रभारी के खिलाफ की गई उस पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया पर वह न्यायालय से बरी हो गया क्योंकि राजद्रोह का मुकदमा चलाने के पूर्व सरकार से विधिवत अनुमति ही नहीं ली गई थी इस मामले में भी सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी।
राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित कुछ जवानों की हत्या मानपुर क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा की गई उसके बाद भी सरकार ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं कि जबकि उस समय तरह-तरहकी चर्चा आम थी।  सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेमन तो रिहा हो गये पर अपहरण किन परिस्थितियों में हुआ इसकी समीक्षा अभी तक नहीं हो सका है।
बस्तर के राहीगर नाम से चर्चित तथा सलवा जुडूम आंदोलन के प्रणेता महेन्द्र कर्मा सहित उनके रिश्तेदारों पर नक्सलियों ने कई बार हमला किया उनको कहा रिश्तेदार भी शहीद हो गया, पूर्व सांसद वलीराम कश्यप के पुत्र की भी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। ग्रामीणों तथा सुरक्षाबल के लोगों की हत्या तो अब बस्तर में आम हो गई है। पर कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने एक बार पुलिस मुख्यालय में बैठक लेकर नक्सली क्षेत्र में पुलिस के आला अफसरों को रात गुजारने का आदेश दिया था पर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ अफसर रात नहीं कितने दिन नक्सली क्षेत्र में गुजारे यह पता आसानी से लगाया जा सकता है।
कभी छत्तीसगढ़ में विशेष सलाहकार बनाकर केजीएस गिल को लाकर प्रयोग किया गया तो कभी भी छत्तीसगढ़ में पदस्थ नहीं रहने वाले स्व.ओपी राठौर को पुलिस महानिदेर्शक बनाकर 'सलवा जुडूमÓ अभियान चलाया गया, कभी आईबी में कई साल गुजारने वाले विश्वरंजन को डीजीपी बनाकर भी नया प्रयोग किया गया। वहीं नक्सली मामलों के जानकार तथा बस्तर में पहली बार मतदान कराकर केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा सम्मानित संत कुमार पासवान नक्सली फील की जगह होमगार्ड, जेल आदि में पदस्थापना कर भी सरकार ने प्रयोग किया। सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस मुख्यालय सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कितने अफसरों में नक्सलवाद या नक्सल अभियान की जानकारी है। कितने अफसर नक्सली क्षेत्र में पदस्थ रहें है।
और अब बस
० सलवा जुडूम आंदोलन के कारण महेन्द्र कर्मा की जान चली गई, हजारों आदिवासी अपने घर-बार प्रदेश से वंचित हो गये, एक टिप्पणी तो सलवा जुडूम का लाभ किसे मिला...।
० भाजपा के लोग आरोप लगाते है कि नक्सलियों को कांग्रेस का समर्थन है। हाल फिलहाल की घटना ने साबित कर दिया है कि नक्सली किसी के नहीं है।

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