Monday, June 17, 2013

मुहाजिरों यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा

चाल, चरित्र और चेहराÓ के साथ राजनीतिक सुचिता को लेकर चर्चा में रही भारतीय जनता पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाला 84 वर्षीय बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के विभिन्न पदों से इस्तीफा देकर यह संकेत तो दे ही दिया है कि भाजपा के भीतर क्या चल रहा है। लगभग 2 वर्षों से गुजरात से निकलकर राष्ट्रीय चेहरा बनने की राह पर निकले नरेन्द्र मोदी को भाजपा की लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेजे गये पत्र में 'भाजपाÓ की हालत का ही खुलासा किया है। उन्होंने पत्र में कहा गया है कि पिछले कुछ समय से पार्टी (भाजपा) में जो चल रहा है या जो हो रहा है, वह पार्टी की विचारधारा के विपरीत है। भाजपा अब पहले जैसी विचारधारा वाली पार्टी नहीं रही है। ज्यादातर नेता अपने 'निजी एजेन्डाÓ को पुरा करने में लगे है। इसी पत्र को मेरा इस्तीफा माना जाए।
सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा में यह पीढ़ी का बदलाव है या नई विचारधारा करवट ले रही है। भाजपा में 2 सांसदों से पहली गैर कांग्रेसी सरकार अटल जी के नेतृत्व में बनाने के पीछे अटल-आडवाणी की मेहनत किसी से छिपी नहीं है। जनसंघ से भाजपा के सफर में करीब 60 साल के सार्वजनिक जीवन गुजारने वाले आडवाणी को आखिर इस्तीफा देने क्यों मजबूर होना पड़ा?
गोवा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने समुद्र मंथन करके नरेन्द्र मोदी को निकालकर उन्हें भाजपा लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष घोषित किया बस यही से भाजपा में दरार की शुरूवात हुई। आडवाणी सहित कुछ नेता इसके विरोधी थे। सूत्र कहते है कि इन नेताओं का सुझाव था कि लोकसभा चुनाव प्रचार समिति के लिये अलग अध्यक्ष बनाया जाए वहीं राज्यों के लिये अलग-अलग प्रभारी बनाया जाए पर न जाने क्यों इस राय को महत्व नहीं दिया गया। सवाल यह भी उठ रहा है कि गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में अटल-आडवाणी की फोटो तक से परहेज किया गया बाद में हडबड़ी में कटआऊट लगाये गये। मोदी ने अपने भाषण में आडवाणी के नाम का जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझा? बहरहाल अटल बिहारी वाजपेयी अस्वस्थ है और लौह पुरूष के नाम से चर्चित आडवाणी इस्तीफा दे चुके है जाहिर है कि भाजपा दो फाड़ होने की स्थिति में है। वैसे डेमेज कंट्रोल करने भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता आडवाणी को मनाने में लगे है पर सवाल उठ रहा है कि आडवाणी की उपेक्षा में पीछे राजनाथ-मोदी गुट का हाथ है या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ है या दोनों का हाथ है यह स्पष्ट नहीं हो सका है।
छग : आडवाणी-मोदी
लौह पुरूष लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे तथा नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने से छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में भी असर से इंकार नहीं किया जा सकता है। छग ही नहीं देश मे 'सिंधी समाजÓ के मतदाता भाजपा से नाराज होंगे यह तय है क्योंकि सिंधी समाज के ही लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के इस्तीफा दे दिया है तो एक दूसरे बड़े नेता राम जेठमलानी को हाल ही में भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने पार्टी से निस्कासित कर दिया है। छग में सिंधी समाज के मतदाताओं की अच्छी संख्या है। इधर भाजपा में पहले से उपेक्षित चल रहे अल्प संख्यक समुदाय के मतदाता भी नरेन्द्र मोदी को हाल ही में दी गई जिम्मेदारी के बाद कुछ नाखुश है। यदि यह वर्ग एकजूट हो जाएगा तो भाजपा को नुकसान राज्य में भी हो सकता है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा वरिष्ठ सांसद नेता रमेश बैस, राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय, सांसद दिलीप सिंह जूदेव, भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती करूणा शुक्ल आदि आडवाणी समर्थक है। साथ ही भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार के मुखिया डा.रमनसिंह से इनके मतभेद जाहिर हो चुके है यही नहीं अपनी ही पार्टी की सरकार में अपनी ही उपेक्षा से नाराज चल रहे है। इधर भाजपा सरकार के प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से भी नरेन्द्र मोदी से 'संबंधÓ किसी से छिपे नहीं है। छग के पहले नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में पर्यवेक्षक बनकर आये नरेन्द्र मोदी के सामने जो विरोध हुआ था उसी के बाद बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडे, अजय चंद्राकर और देवजी पटेल पर निलंबन की गाज गिरी थी। जाहिर है कि मोदी-आडवाणी एपीसोड से बृजमोहन खेमा भी खुश नहीं होगा। हां एक बात जरूर है कि राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने, मोदी के पार्टी में और मजबूत बनकर उभरने से डा.रमनसिंह खेमा जरूर उत्साहित है। क्योंकि उनको विरोधी खेमा पार्टी में कुछ कमजोर हो रहा है। बहरहाल 'अप एण्ड डाऊनÓ ही का नाम ही तो राजनीति है।
प्रदेश कांग्रेस में क्या!
प्रदेश कांगे्रस में भी क्या चल रहा है यह आम कार्यकर्ता की समझ के बाहर है पर वह महसूस तो कर रहा है कि कुछ न कुछ तो चल रहा ही है। पं. श्यामाचरण शुक्ल की मूर्ति की राजिम में स्थापना के कार्यक्रम में अजीत जोगी को आमंत्रण नहीं मिलने के बावजूद दिग्विजय सिंह के साथ डा. रेणु जोगी, अमित जोगी का विमान से रायपुर आना, अमितेष शुक्ल के घरभोज में भी रेणु-अमित का शामिल होना कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अजीत जोगी के जन्मदिन पर अमितेष शुक्ल द्वारा सागौन बंगले में जाकर जोगी को बधाई देना तथा पिता की मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम में नहीं बुलवाना भी समझ के बाहर है।
हाल ही में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी प्रतापगढ़, नजफगढ़ आदि का उल्लेख कर बाहरी लोगों से छत्तीसगढ़ का लाभ नहीं होने संबंधी संबोधन और प्रतिउत्तर में दिग्विजय सिंह द्वारा नक्सली हिंसा में शहीद उदय मुदलियार को कर्नाटक का होने की बात करना चर्चा में रहा। रात में अमित जोगी की दिग्विजय सिंह से 'गुप्तगूÓ भी चर्चा में रही। बाद में कार्यकारिणी अध्यक्ष डा. चरणदास महंत का अजीत जोगी के बयान पर सफाई देना कि  यह दिग्विजय सिंह के नहीं 'डा. रमनसिंह आदि के खिलाफ थाÓ यह भी आम कार्यकर्ता को हजम नहीं हो रहा है।
राजनीति के जानकार कहते है कि भीतर ही भीतर कोई 'राजनीतिक खिचड़ीÓ जरूर पक रही है। सूत्र तो कहते है कि दिग्विजय सिंह को किसी ने छत्तीसगढ़ से अगला लोकसभा चुनाव लडऩे की भी सलाह दे दी है हालांकि दिग्गी राजा ने हंसकर टाल दिया है। वैसे दिग्गी राजा की हाल फिलहाल छत्तीसगढ़ में सक्रियता से नये राजनीतिक समीकरण बन रहे है।
नक्सली ङ्क्षहसा औार बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर में हाल ही में नक्सली हिंसा से नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित 30 लोगों की मौत हो गई है वहीं विद्याचरण शुक्ल अभी भी दिल्ली में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। बस्तर की इस हिंसक नक्सली वारदात से भाजपा सरकार की नीव हिल गई हैं। कांग्रेसियों के प्रति हमदर्दी उभर रही है तो भाजपा की सरकार के प्रति आक्रोश भी उभर रहा है सुरक्षा चूक के लिये वैसे सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और सरकार ने चूक स्वीकार भी कर ली है।
यह तो तय है कि पिछले विस चुनाव की तरह कांग्रेस को इस बार एक सीट से संतोष नहीं करना पड़ेगा कांग्रेसी सीट निश्चित ही बढ़ेगी वहीं तीसरा मोर्चा में एनपीसी कम्युनिस्ट पार्टी, भंजदेव परिवार के लोग भी वहां के परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में तो है वही विधानसभा में अपना खाता भी खोल सकते है।
जाहिर है ऐसे में भाजपा को ही नुकसान होगा। इस बार बस्तर चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता बलीराम कश्यम नहीं होंगे तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र से ही अगली सरकार के भाग्य का फैसला होगा यह इस बार भी तय माना जा रहा है। इधर कांग्रेस अपनी परिवर्तन यात्रा 16 जून से बस्तर के उसी स्थान से शुरू करने जा रही है जहां नक्सली वारदात में 30 लोगों की मौत हुई थी। केशलूर से शुरू होने वाली इस परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आने के संकेत मिल रहे हे तो समापन पर श्रीमती सोनिया गांधी के आने की चर्चा अभी से हैं। दिल्ली की बैठक में परिवर्तन यात्रा शुरू करने पर सहमति भी बन चुकी है।
और अब बस
0 लालकृष्ण आडवाणी की उपेक्षा तो छग में पहले भी दे चुकी है। सिंधी समाज के कार्यक्रम में आडवाणी को छोड़कर पहले भाषण देकर प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता राजनांदगांव चले गये थे।
0 अजीत जोगी कहते है कि भाजपा अब राम (राम जेठमलानी) और कृष्ण (लालकृष्ण आडवाणी) से भी अब दूर हो रही है।

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