Saturday, May 4, 2013

वह सरफिरी हवा थी,
सम्हलना पड़ा मुझे
मैं आखरी चिराग था,
जलना पड़ा मुझे

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के वोटों का गणित सत्ता की ओर तथा सत्ता से विमुख करा सकता है। नये राज्य में सत्ता की चाबी आदिवासी क्षेत्रों के पास ही है। नया राज्य बनने के बाद आदिवासी न जाने क्यों कांग्रेस से रुठ गये हैं वही भाजपा के करीबी हो गये हैं पिछले 2 विधानसभा चुनावों में आदिवासियों ने भाजपा का समर्थन किया। वैसे आदिवासी क्षेत्रों में भारी मतदान के कारणों का भी खुलासा अभी तक नहीं हो सका है।
छग में पिछले 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले मात्र 39 हजार 596 मत अधिक हासिल करके भाजपा ने 19 सीटों पर कब्जा किया था और कांग्रेस 10 सीटों पर ही अपनी जीत दर्ज कर सकी थी। 2003 के विस चुनावों छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा क्षेत्र में 34 आदिवासी वर्ग के लिये सीट आरक्षित थी कुल 50 विधायक भाजपा के चुनकर आये थे जिसमें 25 विधायक आदिवासी क्षेत्रों से आये थे। जबकि कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी और 9 विधायक आदिवासी थे।
2008 के विस चुनाव में परिसीमन के कारण आदिवासी क्षेत्रों की संख्या 29 हो गई थी। इस विस चुनाव में भाजपा को 50 सीटें मिली थी जिनमें आदिवासी सीटों की संख्या 19 थी। वही कांग्रेस को 10 आदिवासी क्षेत्रों में सफलता मिली थी इस हिसाब से सीटें घटने के बाद भी कांग्रेस की आदिवासी क्षेत्र में एक सीट बढ़ी थी।
2008 में 19 आदिवासी सीटों में भाजपा को 12 लाख 7 हजार 982 मत मिले थे तो कांग्रेस 10 सीटों में विजयी रही थी और उसे 11 लाख 68 हजार 386 मत मिले थे। यानि 2008 के विस चुनाव में भाजपा 19 सीटें ले सकी थी और कांग्रेस 10 सीटों पर विजयी रही थी पर मतों का अंतर मात्र 39 हजार 596 का ही थी। कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस में मामूली अंतर से परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं।
भाजपा और गुटबाजी
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को कुछ ही महीने बाकी है। कांग्रेस, भाजपा, बसपा सहित तीसरा मोर्चा के नाम पर कुछ राजनेता तथा राजनीतिक पार्टी सक्रिय हो गई हैं। सत्ता धारी दल भाजपा में में भी गुटबाजी है यह बात और है कि अनुशासन के डंडे के चलते बात बाहर नहीं आ पाती है वही कांग्रेस के बड़े नेता तो गुटबाजी को सार्वजनिक भी करते रहते हैं। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, एनसीपी, एनपीपी (संगमा), कम्युनिस्ट पार्टी, मुक्ति मोर्चा, बसपा आदि सभी दल तीसरा मोर्चा बनाकर कांग्रेस-भाजपा को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं।
सत्ताधारी दल भाजपा में कभी-कभी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती रहती है। यह बात और है कि छग बनने के बाद प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता नंदकुमार साय, शिवप्रताप सिंह, सोहन पोटाई आदि हासिये पर हैं तो डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल ननकीराम कंवर, रामविचार नेताम कभी-कभी अपना विरोध प्रकट कर ही देते हैं। गृहमंत्री ननकीराम कंवर के तो विवादास्पद, सरकार विरोधी बयान सुर्खियां बनते रहते हैं। बस्तर तथा सरगुजा ही भाजपा की सरकार बनाने का प्रवेश द्वार है और यहां के आदिवासी तथा गैरआदिवासी नेता भी उपेक्षा से दुखी हैं। छत्तीसगढ़ में पहले आदिवासियों को 20' आरक्षण दिया जाता था उसे बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया गया है फिर भी आदिवासी समाज का बड़ा वर्ग सरकार से नाराज है। प्रदेश के 18 आदिवासी संगठनों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय संयोजक और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी वीपीएस नेताम छत्तीसगढ़ में 'झारखंड फार्मूलेÓ को लागू करने पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि यदि झारखंड में 26' आदिवासियों की आबादी के बाद भी आदिवासी समाज को शिबू सोरेन , बाबूलाल मरांडी, मधु कोडा और अर्जुन मुण्डा मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं!
वैसे डॉ. रमन सिंह सरकार की उपेक्षा से पिछड़ा वर्ग के नेता तथा छग के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस, बिलासपुर के सांसद, जशपुर सरगुजा क्षेत्र के निवासी दिलीप सिंह जूदेव, भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी श्रीमती करुणा शुक्ला भी कम नाराज नहीं हैं।
कांग्रेस और गुट
अब सवाल कांग्रेस पार्टी का है। कांग्रेस में बड़े नेताओं की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का एक बड़ा गुट है जिसके कुछ विधायकों, पूर्व विधायकों, युवा वर्ग सहित महिलाओं की संख्या अधिक है। दूसरा गुट मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, डॉ. चरण दास महंत, रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल, सत्यनारायण शर्मा का है। दूसरे गुट में नेता कभी-कभी  साथ-साथ नजर आते हैं कभी अलग-अलग नजर आते हैं। वैसे सभी नेताओं का गुट मिलाकर भी अजीत जोगी के गुट के बराबर भी नहीं पहुंचता है। वैसे अजीत जोगी विरोधी गुट का नेतृत्व डॉ. चरणदास महंत कर रहे हैं और उनके पीछे दिग्विजय सिंह का हाथ है ऐसा समझा जा रहा है। बहरहाल कांग्रेस में बड़े नेता गुटबाजी का शिकार हैं पर कभी-कभी सभी एक मंच पर भी दिखाई दे जाते हैं तथा 'हम साथ-साथ हैंÓ्र यह संदेश भी देना चाहते हैं। वैसे अजीत जोगी का कहना है कि कांग्रेस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है इसमें मतभेद नहीं मतभेद हो सकता है। हमारी नेता सोनिया गांधी ही है। भाजपा में तो उनका नेता राजनाथ सिंह हैं, आडवाणी हैं, सुषमा स्वराज हैं, नरेन्द्र मोदी हैं , नितिन गडकरी हैं, अरुण जेटली हैं यह तय नहीं है। जहां तक प्रदेश की बात है तो मंत्री बृजमोहन अग्रवाल-राजेश मूणत की तकरार किसी से छिपी नहीं है। धरमलाल कौशिक-अमर अग्रवाल, सरोज पांडे-प्रेमप्रकाश पांडे का झगड़ा कई बार सार्वजनिक हो चुका है। रमन सिंह के खिलाफ ही उनके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य भी हैं। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में गुटबाजी का दीमक अधिक है।
महिला आयोग का फरमान
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के कड़े रूख के चलते कई निजी संस्थान दुविधा में हैं। आयोग ने शाम 6 बजे के बाद महिलाओं से काम लेने वाले व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने के संकेत दिये हैं। अब शाम 6 बजे के बाद महिलाओं से काम लेना अपराध माना जाएगा। वैसे महिला आयोग के इस आदेश के बाद प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों स्थित शापिंगमाल, सुपर मार्केट, कपड़ों, साड़ियों और स्वर्णाभूषणों के शो रूम में कार्यरत महिलाओं सहित प्रबंधन के सामने कई समस्या उभरी है। बताया जाता है कि इन संस्थानों में कार्यरत महिलाएं सुबह 10-11 बजे से रात 9 बजे तक कार्य करती हैं। वैसे रात में काम से छूटकर घर जाती महिलाएं छेड़छाड़ या अन्य तरह की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कभी कभी यह देरी अप्रिय स्थिति भी निर्मित कर देती है। वैसे देखना यह है कि महिला आयोग के शाम 6 बजे वाले आदेश का कलेक्टर कितना पालन कराते हैं।
डीएसपी और बाल विवाह
छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया के समय बाल विवाह होते हैं और इन्हें रोकने हर साल राज्य सरकार संबंधित जिलों के कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित थाना प्रभारियों को निर्देश भी देती है और कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में बाल विवाह की रोकथाम में सरकार को कुछ सफलता भी मिली है पर छत्तीसगढ़ की नई राजधानी स्थित मंत्रालय में बतौर सुरक्षा में तैनात एक अधेड़ पुलिस उप अधीक्षक नाबालिग से शादी करते पकड़ा जाए तो इसे आप क्या कहेंगे।
उत्तरप्रदेश के चंदौली में एक अधेड़ पुलिस अफसर को एक नाबालिग से मंदिर में विवाह रचाते पुलिस ने पकड़ा और दुल्हा-दुल्हन सहित इनके परिजनों को थाने भी ले गई। छत्तीसगढ़ में पदस्थ डीएसपी 50 साल का है तो दुल्हन की उम्र मात्र तेरह साल है। दुल्हा उत्तरप्रदेश के चंदोली के बलुआ थाना क्षेत्र का रहने वाला है। उसकी पत्नी का निधन हो गया है। हालांकि पुलिस को देखकर टोपी और गले में पड़ी वरमाला फेंककर भागने का प्रयास भी किया। उनका कहना है कि लड़की बालिग है जबकि लड़की 10 वीं पास है और उसकी उम्र मात्र 13 साल है। गरीबी के कारण लड़की के पिता ने बेमेल वर से शादी करने का फैसला मजबूरी में लिया था। बहरहाल पुलिस अधिकारी, लड़की के पिता और विवाह कराने पहुंचे पंडित के खिलाफ बाल विवाह अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। जिन पर समाज ने बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी दी है यदि वही ऐसा करें तो क्या कहा जा सकता है। अब तो छग सरकार क्या करती है इसी का इंतजार है।
और अब बस
(1) बृजेन्द्र कुमार को पहले जनसंपर्क आयुक्त के पद से हटाया गया फिर प्रमुख सचिव के पद से मुक्त किया गया। एक टिप्पणी...एक साथ पदमुक्त नहीं किया जा सकता था क्या?
(2) रविशंकर विवि के कुलपति डॉ. पांडे और पत्रकारिता विवि के कुलपति डॉ. जोशी लगातार दो बार कुलपति बनने में सफल रहे।
(3) बस्तर के महाराजा कोमलचंद भंजदेव के सक्रिय होने से नुकसान कांग्रेस को होगा या भाजपा को। अभी चर्चा का विषय है।
(4) आदिवासी नेता अरविंद नेताम 'संगमा की पार्टीÓ के प्रदेश अध्यक्ष बन गये हैं। पिछले चुनाव में अपनी बेटी को वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जिताने में सफल नहीं हो सके थे।
(5) छत्तीसगढ़ की 2 महिला महापौर विधानसभा चुनाव लड़ने इच्छुक है। एक की तो पार्टी विधायक की सीट पर ही नजर है।

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