Monday, June 17, 2013

आग से दोस्ती उसकी थी जला घर मेरा

दी गई किसको सजा और खता किसकी थी

बस्तर सदियों से अपनी संस्कृति, सभ्यता के लिये अपनी पहचान पूरी दुनिया में बनाये रखा था। यहां इंद्रावती का जल आज भी इस बात की गवाही देता है कि कितनी सहज प्रवृत्तियों से यह अंचल जी रहा है। राग-द्वेष का नाम यहां नहीं है लोक शब्द और संस्कृति का महत्व अंचल के लिये  सनातन और शाश्वत है। यहां के लोक गीतों, लोक संगीतों और नृत्यों में बस्तर का जनजीवन मुखर हो उठता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि बस्तर इस धरती पर अपना अनूठापन लिये हुए है। बस्तर ने अगर करवट नहीं बदली तो केवल यही कारण है कि यहां के लोग नितांत सहज और भोले हैं। यहां के लोगों के भोलेपन का एक उदाहरण हमेशा चर्चा का विषय रहता है। किसी आदिवासी को किसी छोटे-मोटे अपराध में पुलिस जवान गिरफ्तार करके रस्सी से बांधकर अपने साथ थाने ले जा रहा था। राह में जंगल में अधिक शराब पीकर वह वेसुध हो गया तब बस्तर का वह आदिवासी उस वेसुध पुलिस वाले को कंधे में डालकर थाने लेकर पहुंच गया और स्वयं को भी थाने के हवाले कर दिया।
बहरहाल सुरम्य और सदाबहार और निस्तब्ध वनों की खुशबू, सरल और सारा जीवन बिताकर अपनी संस्कृति और सभ्यता में रचे बसे संसार में एक खौफनाक जहर नक्सलियों ने घोल दिया है। सदाबहार वनों में अब बारूद की गंध और मानव खून की गंध फैल रही है। कभी ग्रामीणों के 'दादाÓ कहे जाने वाला नक्सलियों ने जन विरोधी कार्य शुरू कर दिया है। सुरक्षा, ग्रामीण तथा राजनेताओं को निशाने पर अब नक्सलियों ने ले लिया है। आईबी के संचालक छत्तीसगढ़ में राज्यपाल बनने के बाद अब आंधप्रदेश में राज्यपाल की जिम्मेदारी सम्हाल रहे नरसिम्हन साहब ने छत्तीसगढ़ की विदाई के समय साक्षात्कार में मुझसे कहा था कि आखिर नक्सली चाहते क्या हैं यही स्पष्ट नहीं है? यह ठीक है कि सलवा जुडूम आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद नक्सली कुछ अधिक हिंसक हो गये है। छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदात बढ़ी है पर हाल ही में दरभा घाट में जिस तरह निरपराध लोगों को नक्सलियों ने निशाना बनाया इससे यह तो स्पष्ट  हो ही गया कि अब नक्सलियों की कोई आई दिया ेलाजी ही नहीं रह गई है। वैसे नक्सलियों ने कहा है कि वे तो महेन्द्र कर्मा को ही मारना चाहते थे।
 बयानबाजी और मायने
आदिवासी अंचल बस्तर के दरभा की जीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन को उड़ाने का प्रयास किया, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार जैसे लोकप्रिय नेताओं सहित करीब 30 लोगों की हत्या कर दी। पर बस्तर से नक्सलवाद के खात्में की जगह अब कांग्रेस-भाजपा की निगाह अगले चुनाव पर है। नक्सली वारदात से लाभ-हानि का आकलन किया जा रहा है। कांग्रेस और प्रदेश की भाजपा सरकार में शामिल लोग जिस तरह की बयानबाजी रक रहे है, जिस स्तर पर बयानबाजी कर रहे है, वह निश्चित ही दूख के इस समय में उचित प्रतीत नहीं हो रही है। सियासत की राजनीति निश्चित ही आमजन को रास नहीं आ रही है। अभी तो मृतक लोगों की तेरहवी भी नहीं हो सकी है। नक्सली हमले में नक्सलियों का हाथ था यह तो तय हो चुका हे पर उसके पीछे कौन था इसको लेकर सियासत शुरू है। कांग्रेस के एक मात्र लोकसभा सदस्य और केंद्र सरकार में मंत्री चरणदास महंत ने आरोप लगाया है कि इस वारदात के पीछे भाजपा और मुख्यमंत्री का हाथ है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो घटना के समय मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स सार्वजनिक करने की मांग ही कर डाली है।
वैसे भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है। पड़ोसी राज्य म.प्र. के भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने तो इस नक्सली वारदात में अजीत जोगी का हाथ होने की आशंका ही जाहिर कर दी है। इधर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुश्री मीनाक्षी लेखी ने एक इलेक्ट्रानिक चैनल में वारदात में आये नक्सलियों द्वारा तेलगू में बातचीत करने पर उन्हें आंध्र्रप्रदेश का होने का हवाला देकर वहां कांग्रेस की सरकार होने की बात करके एक नई चर्चा को जन्म दिया है। इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता तथा पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में चर्चा में रहे अजय चंद्राकर ने वारदात के पीछे एक कांग्रेस नेता के होने का शक जाहिर करते हुए बस्तर के एक मात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा के नार्काे टेस्ट की मांग कर डाली है। भाई अजय चंद्राकर पिछले विस चुनाव में पराजय के बाद लगता है कि बहुत कुछ भूल चुके है। राजनांदगांव जिले के मानपुर क्षेत्र में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौब की नक्सलियों ने हत्या की थी तब भी कई तरह की चर्चा शुरू हुई थी। तब शक के दायरे में आने वालों के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई थी, दंतेवाड़ा जेल ब्रेक देश का सबसे बड़ा नक्सली जेल ब्रेक था तब तत्कालीन जेलर के नार्को टेस्ट कराने की सलाह भाई अजय ने सरकार को नहीं दी थी। सीआरपीएफ के 76 जवान एक साथ शहीद हो गये थे और सभी आरोपी न्यायालय से रिहा हो गये तब जांच अधिकारी के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई। बिलासपुर में पुलिस करतान ने आत्महत्या कर ली या संदिग्ध परिस्थितियों में उकनी मौत हुई तब उनके मृत्युपूर्व लिखे पत्र के आधार पर दोषियों की नार्को टेस्ट कराने की जरूरत उनकी सरकार ने नहीं समझी तब अजय चंद्राकर कहां थे...।
 जान बचाना गलत था क्या!
एक गांव में रहने वाला विधायक कवासी लखमा ने यदि नक्सली हमले के बाद गोड़ी में नक्सलियों से बातचीत की एक  मोटर सायकल में सवार होकर घटनास्थल में अपनी जान बचाने निकल भागे तो क्या वह शक के घेरे में है। उन्हें क्या अपनी जान बचाने की जगह नक्सलियों के सामने निहत्थे खड़े होकर अपनी जान भी दे देना था। हर व्यक्ति को अपनी जान बचाने का अधिकार है। अजीत जोगी को भाजपा के कुछ नेता निशाना बना रहे हैं, उन्हें साजिश में शामिल होने का आरोप मढ़ रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि क्या उनके कहने से क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर जिन्हें चूक के कारण भाजपा की प्रदेश सरकार ने हटा दिया है। श्री अजीत जोगी के आदेश पर सुरक्षा दस्ता तैनात करने में कोताही की थी? यदि ऐसा था तो फिर तो यही कहा जा सकता है कि अघोषित तौर पर सरकार के मुखिया अजीत जोगी ही है। सरकार किस पार्टी की है छत्तीसगढ़ में? जांच का जिम्मा एक आई ए को है, राज्य सरकार भी न्यायिक जांच करा रही है, परिणाम आने के बाद इस वारदात का खुलासा हो सकेगा, इसके पहले बिना सिर पैर की बयानबाजी व्यक्तिगत लांछन लगाना उचित भी नहीं है फिर अभी तो मृतकों की चिताओं के अंगारे भी दहक ही रहे हैं। उनके परिजन अभी भी शोकाकुल है ऐसे में भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य लोगों को अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए।
गिल और बयान
पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन ब्लूस्टार के हीरो तथा सन 2006 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बतौर सुरक्षा सलाहकार के.पी.एस. गिल ने हाल ही में दरभा की जीरम घाटी में हमले के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर की गई टिप्पणी चर्चा में है। गिल का कहना है जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में बतौर सुरक्षा सलाहकार नक्सली उन्मूलन की योजना बनाई थी तब डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि वेतन लो, मौज करो। उन्होंने एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया कि जब नक्सली क्षेत्र में पदस्थ पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि बस्तर में उनके जिले में केवल 5 प्रतिशत क्षेत्र में उनका जोर है 95 प्रतिशत क्षेत्र में नक्सलियों का आदेश चलता है और इसकी लिखित जानकारी उपर भेजी गई तो उपरी लोगों ने उन्हें फटकार लगाई थी। बहरहाल न जाने किस सरकारी अधिकारी या राजनेता की सलाह पर डॉ. रमन सिंह ने केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाया था। गिल को वैसे फील्ड का विशेष अनुभव नहीं था फिर बस्तर के जंगल और नक्सलियों के गोरिल्ला वार की भी विशेष जानकारी नहीं थी। खैर छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल को उस समय मुख्यसचिव ने लगभग बराबर वेतन तथा सुविधाएं मुहैया कराई गई थी।
वैसे गिल के छग आगमन के साथ ही 60 लाख का खर्च हुआ था। करीब 60 हजार मासिक वेतन तया था 16 लाख की बुलेटप्रुफ एम्वेसडर कार खरीदी गई थी, उनकी सुरक्षा के लिये चार वाहन लगाये गये थे, पुलिस आफिसर मेस में उनकी सुरक्षा के लिये एक इंस्पेक्टर, 2 सब इंस्पेक्टर , 8 हथियारबंद जवान तैनात रहते थे वहीं जब से प्रवास पर जाते थे तो एक-पांच आगे तथा एक-पांच सुरक्षा गार्ड पीछे तैनात रहता था। वाहन चालक मिलाकर दो दर्जन स्टाफ साथ रहता था जिसका मासिक खर्च डेढ़ लाख के करीब आता था। केवल दिल्ली आने जाने का उनका हवाई बिल भी लाखों का हो गया था। एक बार जगदलपुर और एक बार सरगुजा जाकर उन्होंने वहां के पर्यटन क्षेत्रों का दौरा किया, कुछ ही बैठकों में वे शामिल हुए और छत्तीसगढ़ के खाते में नक्सली उन्मूलन का रिजल्ट आया शुन्य! अब वे कुछ भी आरोप डॉ. रमन सिंह पर लगाये और जवाब में डॉ. रमन सिंह कुछ भी कहे, छत्तीसगढ़ को आर्थिक क्षति ही पहुंची केपीएस गिल के सुरक्षा सलाहकार बनने से?
और अब बस
ठ्ठ माओवादी विचारधारा से प्रेरित होकर जनता की सेवा में उतरे महेन्द्र कर्मा की उसी विचार धारा से जुड़े कुछ लोगों ने हत्या कर दी।
ठ्ठ भाजपा ने शिवरतन शर्मा, अजय चंद्राकर, सच्चिदानंद उपासने ओर संजय श्रीवास्तव, श्रीचंद सुदरानी को प्रदेश प्रवक्ता बनाया है। सूत्र कहते हैं कि तीनों विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं... क्या प्रवक्ताओं को प्रत्याशी बनाया जाता है...!
ठ्ठ डॉ. चरणदास महंत और रविन्द्र चौबे परिवर्तन यात्रा में शामिल क्यों नहीं हुए... भाजपा का आरोप। वैसे गरियाबंद के पास पटेल के काफिले पर जब पहली बार नक्सली हमला हुआ था तब भी तो रविन्द्र चौबे नहीं गये थे।

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