Sunday, August 12, 2012

जाने कितनी उड़ान बाकी है
इस परिंदे में जान बाकी है
जितनी बंटनी थी बंट गई ये जमी
अब तो बस आसमान बाकी है
छत्तीसगढ़ में प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस में एक पर्चा चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। कांग्रेस की नीतियों और फैसलों की आलोचनाओं से लबालब पत्र इन दिनों सुर्खियों में है। सवाल यह उठ रहा है कि करीब 8 सालों से सरकार से दूर होकर भी कांग्रेस को सदबुद्धि नहीं आई है।
पत्र किसने लिखा, पत्र से किसको लाभ होगा किसे निशाना बना गया है यह सवाल भी उठ रहे हैं। पहले भारतीय जनता पार्टी में पर्चेबाजी का दौर चला, डा. रमन सिंह और उनके आसपास सक्रिय नौकरशाहों को निशाना बनाया गया था। उन पत्रों की भाषा देखकर ऐसा लगता था भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसी जानकार ने अपनी पीड़ा का इजहार किया है पर भाजपा के आला नेताओं ने पत्र लिखने का ठीकरा कांग्रेस पार्टी पर फोड़ दिया किसी कांग्रेसी द्वारा लिखने की बात की, अपने स्तर पर जांच भी कराई पर कुछ खास पता नहीं लग सका। इन कांग्रेस की नीतियों, फैसलों की आलोचना करते हुए एक पत्र सार्वजनिक हो गया है। जाहिर है कि पत्र की भाषा से लगता है कि किसी जानकार कांग्रेसी ने यह पत्र जारी किया है पर कांग्रेस के कुछ आला नेताओं ने इस पत्र के लिये कांग्रेस की जगह भाजपा के लोगों को जिम्मेदार ठहरा दिया है। वैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप लगाने का मौका नहीं छोड़ती है। महंगाई बढऩे के लिये भाजपा की प्रदेश सरकार केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार को जिम्मेदार ठहराती है तो कांग्रेस इसकी जिम्मेदारी प्रदेश की भाजपा सरकार पर थोपकर अपना कत्वर्य पूरा मान लेती है। पेट्रोल डीजल और केरोसीन के दाम बढऩे के लिये केन्द्र सरकार और उसकी नीतियों को जिम्मेदार माना जा सकता है पर केन्द्र सरकार की मजबूरी है कि पेट्रोलियम पदार्थ के लिये खाड़ी के देशो पर निर्भर होना पड़ता है और वहां के उतार-चढ़ाव का असर भारत में भी पड़ता है। परन्तु राज्य में बिजली और पेयजल में वृद्धि के लिये तो राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। पानी हमारा है और उसकी दर तो हम तय कर सकते हैं। केवल बिजली कंपनियों के खर्चे पूरे करने बिजली दर में वृद्धि कहां तक उचित है। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि और राज्यों से छत्तीसगढ़ में बिजली सस्ती है? तो छग में पानी कोयला भी तो बहुतायत में है। हम बिजली के मामले में पृथक राज्य बनने के बाद सरप्लस में थे। बिजली कंपनियों बनाकर लगातार आय में कमी होने के लिये आखिर जिम्मेदार कौन है? कुल मिलाकर सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है और आम जनता तमाशा देखने ही मजबूर हैं।
चाल्र्स डिकेंस...
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नीतियों को लेकर एक पत्र चर्चा में है। दलित और आदिवासी के बहाने किसी ने पूरी भड़ास कांग्रेस पर निकाली है। पीएम इन वेटिग राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास पर आने पर मंच से किसी भी दलित और आदिवासी नेता को बोलने का अवसर नहीं दिया और दूसरे वर्गों के लोगों ने भाषण दिया उसमें इन वर्गों का उल्लेख नहीं किया यहां से उपेक्षा का आरोप शुरू हुआ और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे पर भी कई गंभीर आरोप लगाये गये हैं। पत्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल को सहकारिता चुनाव में पराजय का जिम्मेदार ठहराया गया है साथ उनके बडबोलेपन पर भी सवाल उठाया गया है। पृथक बस्तर राज्य से लेकर मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनाने संबंधी बयानबाजी की भी भूमिका पर सवाल उठाये गये है। कांग्रेस ने 8 वर्षों में दलितों और आदिवासियों के लिये क्या किया? इस शीर्षक से शुरू पत्र में सलवा जुडूम पर कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये है। महेन्द्र कर्मा पर कटाक्ष किया गया है वहीं इस मसले में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और बस्तर के एक मात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा की तारीफ की गई है। पत्र में प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष को से एक पद दलित आदिवासी समुदाय को देने सहित ब्लाक कांग्रेस कमेटी में 50 प्रतिशत पद इन्हीं वर्गों को देने की वकालत की गई है।
पर्चा कांग्रेस के किसी ने लिखा है, वैसे शक की सुई हाल ही में कांग्रेस से निकाले गये पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की तरफ भी इशारा कर रही है पर यदि पत्र उनकी तरफ से जारी होता तो महेन्द्र कर्मा की बुराई नही की जाती और अजीत जोगी की तारीफ का तो सवाल ही नही उठता। पत्र में जोगी सरकार के 3 सालों का जिक्र नही होना भी चर्चा में है। वैसे 10 पेज के इस पत्र में महान लेखक चाल्र्स डिकेंस के शब्दों में च्हम उल्टी तरफ रूख कर रहे हैज् का उल्लेख है पत्र में देश के संविधान निर्माता डा. भीमराव आम्बेडकर का भी उल्लेख है। वैसे छत्तीसगढ़ में कुछ कांग्रेसी नेताओं ने डा. भीमराव आम्बेडकर तो पढ़ा होगा उनके कथनों का उल्लेख भी कोई भी कर सकता है पर महान लेखक चाल्र्स डिकेंस को कितनो ने पढा होगा यही एक नेता विशेष की तरफ शक की सुई जा रही है पर यह भी तो हो सकता है कि शक पैदा करने की किसी ने जानबूझकर चाल्र्स डिकेंस का जिक्र कर स्वयं को शक के दायरे से बाहर रखने का प्रयास किया होगा यह भी संभव है।
बैस का जनदर्शन
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ भाजपा सांसद रमेश बैस का शनिवार को जनदर्शन का आयोजन राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। उनकी साफगोई ने प्रदेश सरकार पर सवालिया निशान भी खड़ा कर दिया है। इतने सालों से कांग्रेस-भाजपा की प्रदेश और देश में सरकार होने के बाद पहली बार रमेश बैस ने जनदर्शन आयोजित कर आमजनों से सीधे रूबरू होने की क्यों जरूरत समझी या सोचनीय है।
ब्राम्हणपारा से पार्षद फिर विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्री का सफर तय करते हुए भाई रमेश बैस अभी लोकसभा में भाजपा के प्रमुख सचेतक है। उन्हें अपने ही राज्य में अपनी ही पार्टी की सरकार होने के बाद भी आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिये हर शनिवार को जनदर्शन की जरूरत क्यों महसूस हुई। एक और बात यह है कि जनदर्शन में आई समस्याओं को लेकर भाई रमेश बैस ने मुख्यमंत्री राज्य सरकार के किसी मंत्री की जगह सीधे अफसरों को फोन करके एक सप्ताह के भीतर समस्या के निराकरण का अल्टीमेटम देते रहे सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि अफसरों ने किसी दबाव में एक सप्ताह के भीतर समस्याओं का निराकरण नहीं किया तो रमेश बैस का अगला कदम क्या होगा?
एक समाचार पत्र प्रतिनिधि से भी रमेश बैस ने कहा कि प्रदेश के नौकरशाह बेलगाम हो गये है इसीलिये समस्याओं का हल नहीं हो रहा है। अफसरों को सत्ता का भय नही है, जब तबादला और पोस्टिंग मनमाने तरीके से होने लगी है तब आम जनता की बात सुनने का समय किसके पास रहेगा। उन्होंने यह भी कहकर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है कि संसदीय क्षेत्र के दौरे में मैने महसूस किया है कि छोटे-छोटे कार्यों के लिये लोग भटक रहे है उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने डा. रमन सिंह के सुराज अभियान पर भी टिप्पणी की कि सुराज अभियान के तहत मिले आवेदनों को संबंधित विभागों में भेजकर मान लिया जाता है निराकरण हो चुका है। मैने मुख्यमंत्री से कहा है कि इसकी मानिटरिंग की व्यवस्था की जाए।
वाणिज्य कर विभाग और महिलाएं!
वाणिज्य कर विभाग में आजकल एक अफसर की जमकर चर्चा है। विभागीय बैठक में महिलाओं के सामने फाईल फेंकने पीकर आई है क्या? इस तरह की सार्वजनिक टिप्पणी से महिलाएं आहत है। भाजपा की सरकार के एक बड़े नेता का बरदस्त होने के वह अफसर बेखौफ हैं। वाणिज्य कर विभाग की एक महिला तो पहले ही आत्महत्या कर चुकी है वही इस मालदार विभाग से एक महिला अफसर ने हाल ही में अनिवार्य सेवा निवृत्ति ले ली है और कल उसे विदाई भी दे दी गई है। गांधी जी को आदर्श मानने वालों विभागीय प्रमुख के अधीन महिलाएं क्यों असहज महसूस कर रही है यह जांच का विषय हो सकता है वहीं एक दागी अफसर मोनोपली भी चर्चा में हैं।
और अब बस
0 अपनी कलेक्टरी का पहला जनदर्शन या जनता दरबार आयोजित कर एक कलेक्टर निपट गये हैं उनके स्थान पर आने वाले कलेक्टर की अभी ऐसी कोई योजना नही है।
0 एक सार्वजनिक सभा में अटल जी के पिता का नाम पूछने वाले कांग्रेस के एक चर्चित नेता आजकल कहां है यह पता नहीं है। अपनी बातों से हमेशा चर्चा में रहने वाले वह नेता किसके साथ है यह खोज का विषय है।
0 पुलिस महानिरीक्षको, पुलिस अधीक्षकों का तबादला शीघ्र होना है, दरअसल आगामी विस चुनाव को लेकर ठोक-बजाकर अफसरों की तलाश जारी है।

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