Tuesday, June 26, 2012

जल जहरीला हो गया पी-पीकर तेजाब
ऐ विकास! तू धन्य है, मांगे कौन जवाब

राष्ट्रपति चुनाव के पहले कांग्रेस नीत गठबंधन यूपीए और भाजपा नीत एनडीए की हालत का नजारा सभी को हो रहा है। यह विडम्बना ही है कि पिछले आम चुनाव में कोई भी राष्ट्रीय दल एक तिहाई मत भी हासिल नहीं कर सका और आगामी आमचुनाव को अधिक समय नहीं बचा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं द्वारा डाले गये कुल मत का 28.55 प्रतिशत मत कांग्रेस तो 18.80 प्रतिशत मत भाजपा को मिल सका। उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि देश में कुल पंजीकृत मतदाताओं में महत 16.94 प्रतिशत मत लेकर केन्द्र में कांग्रेस की सरकार का राज है तो पंजीकृत मतदाताओं का महत 10.94 प्रतिशत मत ही भाजपा को मिल सका है। भाजपा और कांग्रेस दोनों मिलकर भी पंजीकृत मतदाताओं का 50 प्रतिशत मत प्राप्त नहीं कर सकी है। सत्ता का मद, भ्रष्टाचार और जनता से कटाव से ही इन दलों की नीव खोखली होती जा रही है देश में अनेक राज्य ऐसे है जहां कांग्रेस-भाजपा अपने अस्तित्व बचाने प्रयासरत है। देश में सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी तथा आजादी के बाद से सक्रिय भाजपा की अपनी साख गिरने के कारण ही। क्षेत्रीय दल कुछ राज्यों में लगातार अपनी पकड़ बना रहे है। तमिलनाडु से शुरू हुआ सिलसिला आजकल कई राज्यों में विस्तारित हो चुका है। देश के सबसे बड़े उत्तर-प्रदेश में कांग्रेस तथा भाजपा की हालत इस विधानसभा चुनाव में सामने आ गई है। जबकि कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पीएम इन वेंटिंग राहुल गांधी यही से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह यही के है। यहां समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है। पश्चिम बंगाल में वर्षों से सक्रिय कम्युनिस्ट पार्टी को धरासायी करके तुणमूल कांग्रेस की सुश्री ममता बेनर्जी ने अपनी सरकार बनाई है तो बिहार में नीतिश कुमार ने दूसरी बार कमान संभाली है। यह बात और है कि भाजपा का उन्हें समर्थन है। कुल मिलाकर क्षेत्रीय दल अब कुछ राज्यों में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस-भाजपा से भारी पड़ रहे है। उड़ीसा में तो वैसे भी नवीन पटनायक अपना परचम लहरा रहे है। गुजरात में भाजपा के नरेन्द्र मोदी लगातार अपनी सरकार बनाने में सफल रहे हो तो मप्र सहित छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार दूसरी बार बनी है।
छत्तीसगढ़ की हालत
छत्तीसगढ़ में भी आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल के अंत तक होना है। यहां लगातार दो बार डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन चुकी है और डा. रमन सिंह तीसरी बार सरकार बनाने प्रयास रत है। कांग्रेस यहां आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी खोई प्रतिष्ठा हासिल करने की योजना बना रही है। कभी छत्तीसगढ़ से चुने गये कांग्रेसी विधायकों की संख्या तथा समर्थन से अविभाजित मप्र में कांग्रेस की सरकार बनती थी पर पृथक राज्य बनने के बाद कांग्रेस छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतकर सरकार बनाने में सफल रही।
2000 में छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बना तब अविभाजित मप्र के लिये 1998 में छत्तीसगढ़ से 62 कांग्रेस विधायक चुने गये थे और भाजपा विधायकों की संख्या 22 थी। संख्याबल के आधार पर कांग्रेस के अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने और नेता प्रतिशत बने आदिवासी नेता नंदकुमार साय। 2003 के विधानसभा चुनाव अर्थात छत्तीसगढ़ राज्य के लिये प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा के विधायकों की संख्या 22 से बढ़कर 50 हो गई और कांग्रेस के विधायकों की संख्या 62 से 37 पहुंच गई। हालांकि भाजपा को 39.3 प्रतिशत मत हासिल हुए तो कांग्रेस को 36.7 प्रतिशत मत यानि 2.6 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त करके भाजपा ने अपनी सरकार बना ली और कांग्रेस के मुकाबले 13 अधिक विधायक भी विजयी बनने में सफल रहे। डा.रमन सिंह मुख्यमंत्री बने तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कांग्रेस के महेन्द्र कर्मा ने सम्हाली थी।
5 साल सरकार चलाने के बाद डा. रमन सिंह ने गरीबों को सस्ता चांवल वितरण की योजना शुरू की, आम चर्चा है कि 2008 में भाजपा की सरकार बनाने में चावल योजना कारगर साबित हुई पर चुनाव परिणाम से यह साबित नहीं होता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को फिर 50 सीटे ही मिली और एक प्रतिशत ही अधिक मत मिले। यानि 2003 में 39.3 प्रतिशत मत के स्थान पर भाजपा को 40.3 प्रतिशत मत हासिल हुए इसका मतलब है कि चावल वितरण योजना का कोई बना लाभ भाजपा को नहीं मिला। इधर कांग्रेस को 2008 के विस चुनव में 38 सीटे मिली यानि 2003 मुकाबले एक सीट अधिक मिली साथ ही कांग्रेस का मत भी 2 प्रतिशत बढ़ा 2003 में कांग्रेस को 36.7 प्रतिशत मत मिला था तो 2008 में कांग्रेस को 38.6 प्रतिशत मत मिला था तो 2 प्रतिशत अधिक मिला। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मात्र 2.6 प्रतिशत अधिक मत कांग्रेस से प्राप्त कर भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में है।
वैसे 2008 के विस चुनाव में विधानसभा अध्यक्ष तथा भाजपा प्रत्याशी प्रेम प्रकाश पांडे, संससदीय कार्य एवं पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर, खाद्य मंत्री सत्यानंद राठिया, कृषि मंत्री मेघराम साहू, अजा जजा मंत्री गणेश राम भगत पराजित हो गये तो कांग्रेस के दिग्गज तथा नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू कार्यकारी अध्यक्ष सत्यानारायण शर्मा, उप नेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम की पूत्री की पराजय चर्चा में रही। वैसे यदि कांग्रेस गुटबाजी भाई-भतीजावाद छोड़कर अच्छे प्रत्याशी का चयन करती है तो आगामी विस चुनाव में बेहतर परिणाम ला सकती है इधर भाजपा ने भी मंथन शुरू कर दिया है। अस्पष्ट सूत्रों की माने तो आगामी विधानसभा का चुनाव में कुछेक वर्तमान विधायकों का भी टिकट कट सकता है उसमें 3-4 मंत्री भी शामिल हो सकते हैं। भाजपा के सर्वे में कुछेक के जीतने की संभावना नहीं बताई गई है।
बहरहाल अजा और अजजा के आरक्षण का मुद्रा सरकार के खिलाफ माहौल बना रहा है इसे डा. रमन सिंह मैनेज करने प्रयासरत तो कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने आगे है। औद्योगिकीकरण की आड़ में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी सरकार की परेशानी का कारण बना हुआ है और अब कांग्रेस कुछ भ्रष्टाचार और अनिमितता के मामलों को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने भी जा रही है।
और अब बस
0 वित्त आयोग के अध्यक्ष अजय चंद्राकर ने कबीना मंत्री का दर्जा वापस कर दिया है वह दर्जा भी वापस हो गया है। असल में मंत्री के दर्जा से उन्हें कम वेतन मिल रहा था, केवल अध्यक्ष के नाते अधिक वेतन मिलेगा...एक टिप्पणी...अजय की यह हालत है तो वाकी गरीब भाजपा नेताओं की हालत क्या होगी?
0 गृहमंत्री ननकीराम कंवर कहते है कि पुलिस में तबादले कौन करता है उन्हें भी पता नहीं है। उन्हें शायद यह भी पता होगा कि कुछ मंत्री भी अपने विभागीय सचिव से परेशान है पर वे अपनी व्यथा सार्वजनिक नहीं कर रहे है। नगर निगम, स्वस्थ्य, पर्यटन, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा विभाग इसके उदाहरण है।

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