Tuesday, March 20, 2012

आइना छत्तीसगढ़
फूल था मैं मुझको कांटा बना के छोड़ दिया
अब कांटे से कहते हैं कि चुभना छोड़ दें
छत्तीसगढ़ में अपने वरिष्ठ अफसर की प्रताडऩा से एक युवा आईपीएस अफसर द्वारा अपनी ही सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या करने का मामला चर्चा में है। हालांकि प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने इस मामले में सीबीआई जांच कराने की घोषणा कर दी है पर इस मामले को लेकर पुलिस की भूमिका पर कई सवाल उठ रहे हैं। अभी तक बिलासपुर के पुलिस कप्तान राहुल शर्मा की आत्महत्या के मामले मेें साधारण मर्ग सिविल लाइन थाने में दर्ज किया गया है। जबकि 'सुसाइड नोटÓ के बाद भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के तहत जुर्म कायम अभी तक हो जाना था। सवाल जांच का नहीं है सवाल पुलिस की प्रक्रिया का है। मृतक पुलिस कप्तान के सुसाइड नोट, उनके परिजनों के आरोप-प्रत्यारोप के बाद अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ भी पुलिस जुर्म कायम कर सकती थी पर लगता है कि पुलिस मुख्यालय कुछ करना ही नहीं चाहता है।
सवाल यह उठ रहा है कि जब राहुल शर्मा ने आत्महत्या कर ली है और कोई अपराध बिलासपुर शहर की पुलिस ने कायम ही नहीं किया है तो फिर सीबीआई जांच कराने की क्या जरूरत है? वैसे भी सीबीआई किसी मामले की जांच करती है और यहां तो पुलिस ने कोई मामला ही दर्ज नहीं किया है। फिर सीबीआई को उन कारणों का भी खुलासा करना होगा कि क्यों स्थानीय पुलिस इस मामले में जांच नहीं कर रही है।
कई सवाल?
इधर राहुल शर्मा आत्महत्या मामले में कई पेंच हैं और कई सवाल अभी भी अनुतरित ही हैं।
* घटना दिनांक अर्थात 11 मार्च को करीब एक बजकर 15 मिनट दोपहर को राहुल शर्मा को लहुलुहान हालत में देखकर शहर कप्तान वेदव्रत सिरमौर को घटना की जानकारी दी थी। शहर कप्तान मौके पर तत्काल पहुंच गये थे पर एम्स में राहुल शर्मा को 3 बजकर 40 मिनट पर ले जाया गया और 3 बजकर 50 मिनट पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सवाल यह है कि राहुल शर्मा को एम्स तक पहुंचाने में एक घंटा 55 मिनट क्यों लगा?
* शहर कप्तान सिरमौर ने घटना की जानकारी रायपुर में बैठे तत्कालीन आईजी जीपी सिंह को तो दे दी पर उसी शहर में रह रही राहुल की पत्नी श्रीमती गायत्री शर्मा को शाम 3 बजे सूचना क्यों दी?
* शहर कप्तान बेदव्रत सिरमौर आखिर घटनास्थल पर 2 घंटे क्या करते रहे? उन्होंने बिलासपुर के जिला कलेक्टर रामसिंह ठाकुर को भी देर से जानकारी क्यों दी? जबकि उसी जिले के कप्तान ने आत्महत्या कर ली थी।
* तत्कालीन आईजी जी पी सिंह ने बताया कि घटना के दिन सुबह सवा 9 बजे राहुल शर्मा ने घर से कामकाज ठीक नहीं होने के नाम पर पुलिस अफसर मैस जाने की जानकारी दी थी।
* पुलिस कप्तान राहुल शर्मा अवकाश पर थे और आई जी जी पी सिंह रायपुर में थे। पहला सवाल तो यह है कि स्वीकृत अवकाश के एक दिन पहले ही राहुल काम पर कैसे लौट आये? दूसरा सवाल यह है कि जब एस पी अवकाश पर थे तो ऐसा क्या काम आ गया था कि आईजी को भी 3-4 दिनों के लिए रायपुर जाना पड़ा? क्या आईजी ने पुलिस मुख्यालय से बिलासपुर छोडऩे की विधिवत अनुमति ली थी? यदि ली थी तो वे किस काम से रायपुर आये थे?
* घटना दिनांक को एक सरकारी बैठक से लौटकर पुलिस कप्तान राहुल शर्मा ने लंच के बाद कार्यालय चलने की बात की थी। बाद में वे लम्बी देर तक किसी से मोबाइल पर चर्चा करते रहे। सवाल यह उठ रहा है कि उनकी आखरी बातचीत किससे हुई थी संभवत: इसी बातचीत के बाद उन्होंने आत्महत्या करने जैसे खतरनाक कदम उठाया?
* राहुल शर्मा के साथ रहने वाले दंतेवाड़ा, रायगढ़ के कुछ अफसर कहते हैं कि उन्हें डेली डायरी लिखने की आदत थी तो वह डायरी कहां है? जब वह डायरी घर में नहीं है तो जाहिर है कि घटनास्थल पर होगी। मृतक हमेशा अपने साथ लेपटॉप भी रखते थे पर उनकी आत्महत्या के बाद उनका लेपटॉप भी कहां है इसकी भी किसी को खबर नहीं है।

राहुल की महानता!

राहुल शर्मा खुशमिजाज व्यक्ति थे। दंतेवाड़ा में नक्सली अभियान में कई बार उन्होंने अगुवाई की, ताड़मेटला या दंतेवाड़ा जेलबे्रक के समय की उन पर आरोप उछाले गये पर वे विचलित नहीं हुए, रायगढ़ में उनका अच्छा कार्यकाल रहा उन्हें जाबांज अफसर माना जाता था। कोल माफिया के खिलाफ या भूमाफिया के खिलाफ उन्होंने सख्त कार्यवाही की वहीं रायगढ़ की बाढ़ में ग्रामीणों-शहरी लोगों का जीवन बचाने उनके द्वारा किये गये अदम्य साहस की अभी भी लोग प्रशंसा करते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि उसने बिलासपुर जिलें में महज कुछ दिनों की पुलिस कप्तानी के बाद आत्महत्या जैसा कायरतापूर्ण कदम क्यों उठाया? वैसे वे एक अच्छे अफसर होने के साथ ही अच्छे इंसान थे। छोटे-बड़े पुलिस अफसरों की बैठक में एक अधिकारी द्वारा 'हमें कप्तान की कोई जरूरत नहीं हैÓ यह सुनकर भी वे स्वयं को शांत बनाये रखा, रोजाना के हस्तक्षेप के बाद भी उन्होंने जितना बर्दाश्त करना था उतना किया भी पर वे अच्छे इंसान थे इसलिये भी साबित होता है कि उन्होंने सुसाइड नोट लिखा पर हस्तक्षेप करने वाले पुलिस अफसर और उस न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक नहीं किया यह उस राहुल शर्मा की ही महानता थी।
केवल पुलिस महानिरीक्षक को बिलासपुर से हटाकर पुलिस मुख्यालय में अटैच करने से काम नहीं होगा इस मामले में राहुल शर्मा और आइजी जी बी सिंह के पुराने इतिहास पर भी नजर डालनी होगी? एक आईजी अंसारी (अब एडीशन डीजी) के सरकारी बंगले बस्तर में एक आरक्षक के पास से डकैती की रकम की बरामदगी, डॉ. रमन सिंह और तत्कालीन डीजीपी स्व. ओ पी राठौर के सामने पुलिस मुख्यालय रायपुर में तथा कथित नक्सलियों को आत्मसमर्पण और बाद में अधिकांश फर्जी नक्सली साबित होना, खेल संचालक के पद पर कार्यरत होने के दौरान छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद और भाजपा नेता रमेश बैस से तकरार सहित राजनांदगांव और बस्तर में बतौर पुलिस कप्तान के कार्यकाल की ही यदि किसी से निष्पक्ष जांच कराई जाए तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। बहरहाल राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये। राहुल शर्मा और कोई कदम नहीं उठाए इसके लिए सरकार को कुछ सोचना ही होगा?

कहां है जूदेव

छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता तथा बिलासपुर से निर्वाचित सांसद दिलिप सिंह जूदेव कहां है यह अब चर्चा का विषय है। सांसद जूदेव के एक प्रतिनिधि से बिलासपुर पुलिस के लोगों ने दुव्र्यवहार किया तो जूदेव ने जमीन आसमान सिर पर उठा लिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार पर गंभीर आरोप लगाकर बिलासपुर में 'प्रशासनिक आतंकवादÓ होने की बात की थी। उनकी नाराजगी के चलते ही वहां के पुलिस कप्तान विजय यादव और पुलिस महानिरीक्षक ए डी गौतम को वहां से हटाकर ही क्रमश: राहुल शर्मा और जी बी सिंह की तैनाती की गई थी। तैनाती के कुछ दिनों बाद ही राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये। जाहिर है कि राहुल की मौत सिस्टम के कारण हुई या प्रशासनिक आतंकवाद के कारण हुई यह तो जांच में ही खुलासा हो सकेगा पर राहुल शर्मा के आत्महत्या मामले में अभी तक दिलिप सिंह जूदेव का कोई भी बयान नहीं आना कम चर्चा में नहीं है। आखिर इस मामले में जूदेव चुप क्यों हैं?

मरावी को एवार्ड क्यों नहीं!

छत्तीसगढ़ पुलिस में बोधन सिंह मरावी जाना पहचाना नाम है। बस्तर में उन्होंने ही नक्सलियों के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाने की शुरूआत की थी। बस्तर, राजनांदगांव, बिलासपुर सहित सरगुजा में वे विभिन्न पदों पर पदस्थ रहे। उन्हें सरगुजा में पुलिस महानिरीक्षक बनाकर भेजा गया था। वहां उन्होंने नक्सलियों से सीधा मोर्चा लिया और पुलिस दल का नेतृत्व भी किया था। सरगुजा में नक्सली मुठभेंड़ में उनके सिर पर गोली लगी थी और वे काफी दिनों तक अस्पताल में भी रहे। हाल ही में रायपुर में सहायक परिवहन आयुक्त के पद पर रहते हुए वे फिर अस्पताल में भर्ती हुए थे और उनके सिर से बुलेट के छर्रे भी निकाले गये थे। डाक्टरों की मानें तो उनके सिर पर कुछ गोली के टुकड़े अभी भी हैं। खैर बात यह है कि भारत में नक्सलियों से मुठभेंड़ में गोली खाने वाले वे पहले आईजी थे पर उन्हें पुलिस मुख्यालय की गुटबाजी के चलते गैलेण्ट्री एवार्ड नहीं मिल सका। कहा जा रहा है कि उनके नाम की अनुशंसा ही देर से की गई। वहीं गैर नक्सली क्षेत्र में एक ग्रामीण की हत्या करने वाले एक अफसर को गैलेण्ट्री एवार्ड मिल गया क्यों? बिलासपुर में आईजी जी बी सिंह को हटाने के बाद मरावी की वहां नियुक्ति पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि एक अफसर ने इसके लिए प्रमुख भूमिका निभाई है। सवाल यह उठा रहा है कि पुलिस मुख्यालय सहित रायपुर शहर में प्रतिनियुक्ति पर कई युवा अफसर तैनात हैं फिर उनकी नियुक्ति बिलासपुर में क्यों नहीं की गई यह भी चर्चा में है जबकि कई अफसर फील्ड में तैनात होने तैयार है।
सवाल तो यह भी उठा रहा है कि एक अफसर जो गैलेण्ट्री एवार्ड लेने का हकदार है उसे किन कारणों से यह एवार्ड नहीं मिला, पुलिस मुख्यालय से देर से उनके नाम की अनुशंसा करने के पीछे दोषी कौन हैं, क्या इसकी भी जांच कराई जाएगी। खैर बी एस मरावी ने बिलासपुर में आईजी का पदभार सम्हाल लिया है पर देखना यह है कि हकदार अफसरों के हक पर कौन कुठाराघात कर रहा है और वह कब तक सफल होता रहेगा।
और अब बस
(1)
गृहमंत्री बनने कोई तैयार नहीं है, गृह सचिव बनने की कोई अफसर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है ऐसे में छत्तीसगढ़ में यह सब तो चलता ही रहेगा।
(2)
विनोद चौबे नक्सलियों से लोहा लेते शहीद हो गये, राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये, गरियाबंद में एएसपी की मौत पर अभी पुलिस मुख्यालय कोई नया शब्द नहीं ढूंढ पाया है।
(3)
छत्तीसगढ़ में लालटेन सस्ती होगी, यह खबर मिलने पर एक टिप्पणी...सरप्लस बिजली स्टेट में महंगी होती बिजली के चलते लालटेन ही सहारा बनेगी उसे तो सस्ता करना ही था।

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