Wednesday, April 4, 2012

आइना ए छत्तीसगढ़
अल्लाह किसका नाम है, मल्लाह किसका नाम
तूफान किसका नाम है, कश्ती में आकर देख
छत्तीसगढ़ का आदिवासी अंचल बस्तर अपनी प्राकृतिक छटा, औषधीय पौधे, नयनाभिराम झरने, पहाड़ों के लिये विख्यात है तो आदिम मानवों की सभ्यता का पुट अभी भी कहीं-कहीं दिखाई देने के लिये चर्चित है पर आजकल बस्तर में नक्सलियों द्वारा किये जा रहे विस्फोटकों की बारुदी गंध, लाल होती धरती, गोलियों की आवाजें, खाकी और हरी वर्दीधारियों के बूटों की धमक के लिये भी चर्चित है। बस्तर को समझना है तो बस्तर के ग्रामीण अंचलों में जाकर ही समझा जा सकता है।
नैसर्गिक सौंदर्य से ओत-प्रोत बस्तर, केरल राज्य से भी बड़ा है। उत्तर से दक्षिण तक 275 किलोमीटर की लम्बाई और पश्चिम से पूर्व तक 182 किलोमीटर की लम्बाई तक फैले इस विशाल भूभाग का क्षेत्रफल 39 हजार 114 वर्ग किलोमीटर है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर बस्तर में वनों से आंच्छादित पहाड़ियां तथा उनसे मुक्त रूप से विचरण करते वन्यप्राणी, मनोहारी जलप्रतापों के साथ कलकल बहती नदियां तथा जंगलों में पांरपरिक नृत्यों से सीधा संबंध स्थापित करते हैं।
अपनी संस्कृति, पुरातात्विक एवं भौगोलिक विशिष्ठताओं के कारण यह क्षेत्र अपना विशिष्ठ महत्व रखता है। इस क्षेत्र यानी बस्तर संभाग में 72 फीसदी अनुसूचित जनजातियां तथा अनुसूचित जातियां निवास करती हैं। बस्तर में मानव विकास की ऐतिहासिक मंजिलों में बस्तर का अबूझमाड़, शिकारी युग, उत्तर और मध्यबस्तर का क्षेत्र कृषि युग तथा बैलाडिला की औद्योगिक युग का प्रतिनिधित्व करती है।
कोयल नहीं बोलती
सजा नहीं मजा!
पालतू मवेशी
साल की कोमल पत्तियां
खा जाते हैं
बीजा, हर्रा, सागवान
सिहरती है पत्तियां तेंदू की
जब, हरी वर्दी में
कोई कुल्हाड़ी लेकर आता है
जीवन का चक्का घूमता है
अंतहीन नैराश्य के अंधेरे में
सलफी पीकर चुपचाप
दिन काट रहा है बस्तर में

आदिवासी अंचल बस्तर में कतिपय व्यापारियों तथा कुछ बाहरी लोगों द्वारा सीधे-सादे गरीब, निश्चल तथा प्रकृति प्रेमी आदिवासयिों के शोषण का सिलसिला काफी समय से चल रहा है। बस्तर को राष्ट्र की मुख्य धरा में सम्मिलित करने और इस क्षेत्र के समूचित विकास में योगदान के लिये सक्षम बनाने की चुनौती आजादी के पहले और बाद में सभी के सामने है। बस्तर पहले एक जिला था फिर उसे कांकेर और दंतेवाड़ा जिलों में बांटा गया और अभी हाल ही में प्रदेश सरकार ने कुछ और नये जिलों में विभक्त कर दिया है। इसमें क्षेत्र छोटे हो गये हैं। आलम तो यह है कि एक जिला एक विधानसभा क्षेत्र में सीमित है। वहां प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कलेक्टर, पुलिस कप्तान तथा जनप्रतिनिधि के रूप में एक मात्र विधायक है जाहिर है कि यदि तीनों प्रमुखों के बीच किसी योजना, विचार को लेकर मतभेद हो जाएगा तो जिले का विकास निश्चित तौर पर ही प्रभावित होगा। वैसे बस्तर में एक कमिश्नर तथा एक पुलिस महानिरीक्षक की तैनाती है वहीं कांकेर में नक्सली उपमहानिरीक्षक का पद भी स्थापित किया गया है। बस्तर में जिस तरह नक्सली आतंक का दौर जारी है वह सिमटने की जगह फैलता ही जा रहा है। पुलिस दल पर हमला, मुखबिर के नाम पर ग्रामीणों का अपहरण, हत्या, अवैध वसूली, रंगदारी टैक्स वसूलने में नक्सली लगे हैं तो ग्रामीण भी अब एक चक्की के दो पाटों के बीच किसी तरह जीवन यापन करने मजबूर हैं। 'सलवा जुडूमÓ स्वर्स्फूत आंदोलन था या प्रायोजित आंदोलन था यह बहस का मुद्दा हो सकता है। परंतु यह आंदोलन अब दम तोड़ चुका है। इस आंंदोलन की अगुवाई करने वालों को नक्सली चुन-चुन कर मार रहे हैं। अब बस्तर में सलवा जुडूम आंदोलन के समर्थक, विरोधी का अलग-अलग समूह बन गया है। नक्सलियों और सुरक्षाबल के बीच आम आदिवासी पिस रहा है। किसका समर्थन करें किसका विरोध! बस्तर में पहले पदस्थापना को 'काला पानीÓ की संज्ञा दी जाती थी। सरकारी अफसर या कर्मचारी वहां पदस्थापना को 'सजाÓ मानते थे पर अब ऐसा नहीं है। बस्तर में पदस्थ अफसर अब वहां से हटना नहीं चाहते हैं। सूत्र कहते हैं कि जब से बस्तर में नक्सली आतंक बढ़ा है औद्योगिकीकरण का दौर चला है तब से वहां पैसों की फसल उगना शुरू हो गया है। जाहिर है कि फसल काटने में कोई पीछे नहीं है। जिस तरह बस्तर में सीआईएसएफ, सीएफ, बीएसएफ की पैरा मिलेटरी फोर्स तैनात हो गई है। बड़ी संख्या में बल की मौजूदगी से अब बस्तर में 'नक्सलीराजÓ पूरी तरह नहीं रहा है। इसलिये अब बस्तर जाकर 'मरनेÓ का भ्रम टूट गया है। बस्तर से एक उपनिरीक्षक प्रकाश सोनी का अपहरण हुआ फिर नाटकीय तरीके से उसकी वापसी भी हो गई, कभी कभार एक दो पुलिस के जवानों या एसपीओ के अपहरण की खबर मिलती रहती है। कुछ की हत्या तथा कुछ की रिहाई भी हो जाती है पर प्रशासनिक बड़े अधिकारियों सहित वन, पीडब्ल्यूडी, पीएचई, अफसरों से लेकर ठेकेदार सभी महफूज हैं तो अब बस्तर जाने की परिभाषा बदल रही है। जिस तरह हाल ही में छापे में बस्तर के छोटे कर्मचारी से लेकर अधिकारियों के पास करोड़ों की संपत्ति का खुलासा हुआ है उससे तो यही साबित हो रहा है कि बस्तर में पैसों की फसल उग रही है और उसे काटने जनप्रतिनिधियों से अधिकारियों, कर्मचारियों तक सभी सक्रिय हैं।
बस्तर के जिलाधीश और चर्चा
सीपी एण्ड बरार के समय ही बस्तर पृथक जिला था और वहां के पहले कलेक्टर एस पी मुश्रान रहे वहीं 16 जनवरी 1949 से 21 जनवरी 55 तक अर्थात 6 साल का लम्बा समय गुजारकर रिकार्ड बनाने का श्रेय आर सी व्ही पी नरोन्हा के नाम है। वही मात्र 24 दिन ही बस्तर में कलेक्टर रहे हर्ष मंदर ने भी रिकार्ड बनाया है। हर्ष मंदर ने 25 वें कलेक्टर के रूप में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1 मार्च 93 को कलेक्टर बस्तर का कार्यभार सम्हाला और 25 मार्च 93 को अर्थात मात्र 24 दिन में ही वे कार्यमुक्त हो गये। वैसे बस्तर में पदस्थ कलेक्टरों का कार्यकाल कुछ मामलों को लेकर चर्चित भी है। आर सी व्ही पी नरोन्हा ने 25 दिन तक अबूझमाड़ को सबसे पहली बार बूझने का प्रयास किया तथा बस्तर के विकास के लिये बहुत काम भी किया तभी तो उनकी स्मृति में 'नरोन्हा गांवÓ भी बसाया गया है। भानुप्रतापपुर के पास आज भी उनके नाम पर एक गांव स्थापित है।
बस्तर के 7वें कलेक्टर मो. अकबर ने 62 से 66 यानी 4 साल तक वहां पदस्थ रहे। 1 मई 62 से 1 जून 66 तक उनकी बस्तर में तैनाती रही और उनके कार्यकाल में ही 'बस्तर के मसीहाÓ के नाम से चर्चित और आदिवासी अंचल में आज भी पूज्य माने जाने वाले बस्तर नरेश प्रवीरचंद भंजदेव की संदिग्ध परिस्थिति में पुलिस की गोली से हत्या का मामला चर्चित रहा। डी पी मिश्र के मुख्य मंत्रित्व काल में घटित इस हत्याकांड की गूंज विधानसभा ही नहीं संसद में भी गंूजी। कहा जाता है कि मो. अकबर अपनी आयु के अंतिम पड़ाव में कुछ विक्षिप्त हो गये थे और लोग उसका कारण प्रवीरचंद भंजदेव के हत्याकांड से भी जोड़ते हैं।
गैर सरकार संगठन या एनजीओ से जुड़े तथा आजकल समाजसेवी के रूप में नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले ब्रम्हदेव शर्मा भी कलेक्टर बस्तर का दायित्व सम्हाल चुके हैं। बस्तर जिले में 11वें कलेक्टर के रूप में ब्रम्हदेव शर्मा ने 24 अगस्तर 69 को कार्यभार सम्हाला और 3 नवम्बर 71 को वे बस्तर से कार्यमुक्त हुए। बी डी शर्मा ने अपने कार्यकाल में दैहिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी तथा विकास कार्यों पर जोर दिया था। ब्रम्हदेव शर्मा आजकल उड़ीसा राज्य में एक इटली के नागरिक तथा विधायक के अपहरण में नक्सलियों और राज्य सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं।
10 अक्टूबर 1977 से 1 अगस्त 80 तक बस्तर के कलेक्टर रहे नन्हें सिंह का भी कार्यकाल अच्छा खासा चर्चित रहा है। इन्हीं के कार्यकाल में बहुचर्चित यशोदा कांड और बैलाडीला गोलीकांड हुआ था जिसमें कुछ श्रमिकों, आदिवासियों की मौत हो गई थी यह मामला भी काफी गर्माया था तथा इसकी चर्चा भी विधानसभा में गूंजी थी। बस्तर में 28 वें कलेक्टर के रूप में 25 फरवरी 97 को प्रवीरकृष्ण ने कलेक्टर का कार्यभार सम्हाला था वे 'इमली आंदोलनÓ के लिये चर्चित हैं। इमली का सही मूल्य दिलाने में उनकी विशेष भूमिका थी।
1988 में बस्तर को संभाग का दर्जा मिला था। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि उस समय बस्तर के कलेक्टर नारायण सिंह थे। 3 जून 88 से 17 माच्र 89 तक वे कलेक्टर रहे तथा वहां के दर्जा मिलने के बाद नारायण सिंह ही वहां के पहले कमिश्नर बने। इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद गणेश शंकर मिश्रा जगदलपुर के कलेक्टर बने और उनके कार्यकाल में औद्योगिकीकरण का प्रयास तेज हुआ। कलेक्टर कार्यालय में गांधी प्रार्थना से काम की शुरूआत कर उन्होंने भी एक नया रिकार्ड बनाया। बाद में उन्हें ही बस्तर संभाग के कलेक्टर का भी पदभार दिया गया। नारायण सिंह के बाद गणेश शंकर मिश्रा ऐसेे कलेक्टर रहे जो बाद में संभाग के कमिश्नर भी बने।
और अब बस
(1)
विश्व में धान की 12500 प्रजातियां पाई जाती है उसमें में 10,000 प्रजातियां केवल छत्तीसगढ़ में पाई जाती है इसलिये इसे 'धान का कटोराÓ कहा जाता है।
(2)
दंतेश्वरी मंदिर के विषय में किदंवती है कि यहा दक्षपुत्री सति के दांत गिरे थे इसलिये पहले एक छोटी से टेकरी पर स्थित इस शक्तिपीइ को दंतावाला देवी भी कहा जाता था बाद मे ंयह दंतेश्वरी मां के रूप में चर्चित हुआ। आज भी मंदिर के गर्भगृह में भक्तगण धोती पहनकर ही प्रवेश कर सकते हैं।
(3)
बस्तर के प्रथम राजा जिस मार्ग से बस्तर पहुंचे थे कालांतर में उसी मार्ग से बस्तर में रेल पहुंची। किरंदुल-विशाखापट््नम का रेलमार्ग पुरातन मार्ग से ही स्थापित है।

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