Wednesday, March 14, 2012

आइना ए छत्तीसगढ़
समय ने जब भी अंधेरों से दोस्ती की है
जला कर अपना घर हमने रौशनी की है
सुबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहा उजालों ने खुदकुशी की है

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद छत्तीसगढ़ की सत्तारुढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी पार्टी कांगे्रस के बयानबाज नेता अपनी झेंप मिटाने प्रयत्नशील हैं। वैसे इन पांच राज्यों सहित इसके पहले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम कांगे्रस भाजपा के लिये सोचनीय जरूर है। दरअसल गैर कांगे्रसी, गैर भाजपाई परिणाम कुछ राज्यों में आये हैं। इससे भारत में दो दलीय प्रणाली की वकालत करने वालों पर कुठाराघात हुआ है। वहीं जाति-पाती, की राजनीति भी अब खतरे में दिखाई दे रही है। यह ठीक है कि छत्तीसगढ़ राज्य में अभी तक दो राजनीतिक दल, कांगे्रस और भाजपा के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता आया है और कोई स्थानीय दल उभर नहीं सका है पर इस बार हो सकता है कि निर्दलीय अधिक चुनकर आएं जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं?
पूर्व में हुए विधानसभा चुनावों में तमिलनाडु से सुश्री जयललिता, पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बेनर्जी तथा बिहार में नीतीश कुमार ने अपने बल पर अपने समर्थकों को चुनाव में विजयी बनाकर प्रदेश की सत्ता की बागडोर सम्हाल ली है। वहीं हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम भी कांगे्रस-भाजपा के लिये अच्छे तो नहीं कहे जा सकते हैं। देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। पंजाब में अकाली दल की पुन: सरकार में वापसी हुई है यह बात और है कि अकाली दल को भाजपा का समर्थन था। उत्तराखंड में भी कांगे्रस बड़े दल के रूप में उभरा है वहां उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। यहां कांगे्रस-भाजपा अपनी सरकार बनाने प्रयत्नशील हैं तो मणिपुर में कांगे्रस की सरकार बन रही है। गोवा में इस बार कांगे्रस से भाजपा ने सत्ता छीन ली है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि पिछले एक साल के भीतर कुछ राज्यों में गैर कांगे्रसी, गैर भाजपा की सरकार ही बनी है।
भाजपा के छत्तीसगढ़ी नेता कहते हैं कि पंजाब में पुन: उनके समर्थक अकालीदल की सरकार बनी है। गोवा में कांगे्रस से हमारी पार्टी ने सत्ता छीन ली है तो कांगे्रसी नेताओं का भी अपना तर्क है। उनका कहना है कि मणिपुर में हमारी पार्टी की सरकार बनी है तो उत्तराखंड में हमारी सरकार बनना तय है। सवाल उत्तर प्रदेश का है तो वहां 22 से बढ़कर 27, पंजाब में 42 से बढ़कर 46, उत्तराखंड में 21से बढ़कर 31, और मणिपुर में विधायकों की संख्या 30 से बढ़कर 42 हुई है तो भाजपा की केवल गोवा में ही सीट बढ़ी है बाकी 4 राज्यों में पिछले विस चुनाव के मुकाबले उनकी संख्या कम ही हुई है। उत्तरप्रदेश में 54 से घटकर 47, पंजाब में 19 से घटकर 12, उत्तराखंड में 35 से कम होकर 31 सीटों पर पार्टी आ गई है। मणिपुर में जरूर उनकी संख्या यथावत है। इस तरह भाजपा का जनाधार कम ही हुआ है तो कांगे्रस की सीट संख्या बढ़ी है तो जाहिर है कि जनाधार भी बढ़ा है।
डॉ. रमन रेल (1)
छत्तीसगढ़ में रेल सुविधाओं के विस्तार के लिये मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की पहल पर मुख्यसचिव सुनील कुमार ने 45 किलोमीटर लम्बे औद्योगिक रेल गलियारे के लिये एमओयू किया है। 40 हजार करोड़ की लागत वाली इस योजना में पैसों का जुगाड़, साझेदारों के विषय में जल्दी निर्णय हो जाएगा वैसे रेल सुविधा के लिये तरसते प्रदेश के लिये यह योजना रामबाण साबित होगी। इसके लिये पूर्वीय गलियारे में भूपदेवपुर-घरघोड़ा-धर्मजयगढ़, कोरबा, उत्तर गलियारे में सूरजपुर, परसा, कटघोरा, पश्चिम गलियारे में गेवरारोड, पेण्ड्रारोड शामिल हैं, तेलाई पाली, रायगढ़ से घरघोड़ा भी प्रस्तावित है। इसके अलावा रायगढ़, माण्ड कोल फील्ड गलियारा के तहत खरसिया से घरघोड़ा होकर धर्मजयगढ़ तक लाइन का प्रस्ताव है। इस प्रस्तावित रेल लाइन को यदि कोरबा से जोड़ दिया जाए तो कोरबा से धर्मजयगढ़, पत्थल गांव, जशपुर होकर पड़ोसी राज्य झारखंड के लोहरदगा तक रेल यात्रियों को सुविधाएं मिल सकती है। अकलतरा-सुरजपुर, कारीडोर के अंतर्गत पहली रेल लाइन अकलतरा से मोरगा तक तथा दूसरी रेल लाइन परसा से सूरजपुर तक प्रस्तावित है जो कटघोरा तक जुड़ सकती है। इन दोनों रेल लाइनों का निर्माण होनेे से मुम्बई-हावड़ा लाइन और अनूपपुर-अम्बिकापुर रेल लाइन से जुड़ाव हो सकता है। इसी तरह जयराम नगर-चिल्हाटी रेल गलियारा बिलासपुर जिले के सीमेण्ट उद्योगों सहित यात्रियों के लिये भी उपयोगी हो सकता है।
फोटो चरणदास महंत
केन्द्र में कांगे्रसनीत सरकार है और डॉ. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में एक मात्र सांसद तथा राज्यमंत्री के रूप में शामिल डॉ. चरणदास महंत छत्तीसगढ़ का नेतृत्व कर रहे हैं ऐसे में प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह द्वारा 'औद्योगिक रेल गलियाराÓ का एमओयू करना डॉ.चरणदास कैसे हजम कर लेते तो उन्होंने 2012-13 के रेल बजट में रायपुर, बलौदाबाजार-भटगांव-सारंगढ़-झारसुगड़ा रेल मार्ग को शामिल करने का आग्रह रेलमंत्री से कर ही दिया है। उनकी मांग के पीछे तर्क भी है। 1999-2000 में तब अविभाजित मध्यप्रदेश में उक्त रेल लाइन सर्वे पश्चात स्वीकृति भी प्रदान की गई थी। 2003 में 971. 96 करोड़ की सर्वे रिपोर्ट बनाई गई थी उसके बाद किसी तरह का बजट आबंटन प्राप्त नहीं हो सका था। 2011 के रेल बजट में तत्कालीन रेल मंत्री सुश्री ममता बेनर्जी द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी उस समय इस रेल लाइन की लागत 2161.37 करोड़ हो गई थी। पर बजट में उल्लेख के बावजूद प्रशासकीय स्वीकृति और बजट आबंटन नहीं हो सका है। डॉ. चरणदास महंत के अनुसार सर्वे की रिपोर्ट 28 दिसंबर 2010 को प्रस्तुत की गई थी जिसमें रायपुर से झारसुगड़ा व्हाया खरोरा, पलारी, बलौदाबाजार, भटगांव होकर सारंगढ़ नई रेल लाइन का उल्लेख था। 310 किलोमीटर लम्बी यह रेल लाइन को आगामी रेल बजट में शामिल करने डॉ. महंत ने दबाव बनाया है। डॉ. महंत ने दिल्ली से कोरबा-अम्बिकापुर व्हाया अनूपपुर के मध्य कोयलांचल एक्सप्रेस प्रतिदिन चलाने, कोरबा, चांपा, मनेंद्रगढ़, चिरमिरी, रायगढ़ और राजनांदगांव को माडल स्टेशन के रूप में विकसित करने की मांग भी की है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का विस्तार बिलासपुर से गेवरारोड कोरबा तक करने, बिलासपुर-चेन्नई एक्सप्रेस का विस्तार रामेश्वरम तक करने, कोरबा-कानपुर व्हाया कटनी, इलाहाबाद सुपरफास्ट टे्रन प्रतिदिन चलाने सहित नीर प्लांट की स्थापना बिलासपुर में करने का भी अनुरोध किया है। देखना है कि छत्तीसगढ़ के एक मात्र कांगे्रसी सांसद और केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य की मांग को रेल मंत्री कितनी गंभीरता से लेते हैं।
विद्युत कटौती!
'सरप्लस बिजली राज्यÓ का ढिढ़ोरा पीटने वाली प्रदेश की सरकार अब बिजली की बढ़ती मांग और मांग के मुकाबले कम उत्पादन के चलते समयबद्ध बिजली की कटौती की मानसिकता बना चुकी है। हाल ही में विद्युत की दरों में वृद्धि के लिये नियामक आयोग की जनसुनवाई में जनआक्रोश का सामना करने के बाद भी विद्युत दर में 30 प्रतिशत की वृद्धि तय मानी जा रही है वहीं अब विद्युत कटौती की तैयारी शुरू हो गई है।
मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में उत्पादन कंपनी से 1914, केन्द्रीय कोटा 910, बायोमास 105, एनएसपीसीएल से 50, इस तरह 2979 मेगावाट बिजली प्रदेश के पास है वहीं मार्च के पहले सप्ताह की विद्युत की मांग 3000 मेगावाट के आसपास पहुंच गई है। मौसम के तेवर देखकर मांग और बढ़ेगी यह तय है। सूत्र कहते हैं कि बिजली अफसरों ने किसी भी हालत में 3200 मेगावाट से अधिक की आपूर्ति नहीं करने की मानसिकता बना ली है। इसके लिये मांग जिस दिन 3200 मेगावाट से उपर पहुंचेगी उसी दिन से शहर और ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत की समयबद्ध कटौती शुरू कर दी जाएगी। वैसे यह भी योजना बनाई जा रही है आम उपभोक्ताओं की जगह उद्योगों को 'पीकआवरÓ में भार राहत लिया जाएगा। बहरहाल भीषण गर्मी में बिजली उपभोक्ताओं को अधिक दर बिजली की देनी होगी साथ ही कटौती का भी सामना करना ही होगा।
और अब बस
(1)
एक वन अफसर का एक एनजीओ से सम्मान कराने का सपना टूट गया है। उसने सम्मान करने मंत्रालय के एक बड़े अफसर को आवेदन किया था। अफसर ने गृहमंत्रालय से रिपोर्ट मंगवाई और वह एनजीओ फर्जी निकली। ज्ञात रहे कि वनमंत्री सहित कुछेक वन अफसरों के विदेश प्रवास स्थगित कराने भी उस वन अफसर ने अंतिम समय तक रुचि ली थी।
(2)
नगर पालिक अधिकारी स्तर से सीधे एक विश्वविद्यालय के कुलसचिव बनने का सपना एक मंत्री के निजी सचिव का टूट ही गया। उसके पूर्व मंत्री का दबाव भी काम नहीं आया।
(3)
अपै्रल में एक बड़े पुलिस फेरबदल की चर्चा अभी से चल रही है। पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।

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