Monday, March 28, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

खुले आम सजा कौन दे रहा हैै?
निर्दोष का पता कौन दे रहा हैै?
बाजार में हो रही सो आम हत्या?
सल्फी का मजा कौन ले रहा हैै?

छत्तीसगढ़ के धुर नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर में सलवा जुडूम समर्थकों, विशेष पुलिस अधिकारियों सहित सुरक्षाबल द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार की शिकायत नई नहीं है। पहले बस्तर में आदिवासी नक्सलियों और सुरक्षाबल के बीच दो पाटों के बीच पिसने मजबूर थे बाद में एसपीओ तथा सलवा जुडूम समर्थकों की नई फौज तैयार हो गई। एसपीओ तथा सलवा जुडूम समर्थकों द्वारा निरीह आदिवासियों पर अत्याचार का चलन शुरू हुआ। बिना लायसेंस और शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लिये बस्तर में जिस तरह वहीं के युवकों को हथियार सौंपे गए तथा किसी को भी मारने की लगभग खुली छूट दी गई यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचा यही नहीं सलवा जुडूम समर्थकों, एसपीओ तथा सुरक्षाबल द्वारा आदिवासियों के घर जलाना, हत्याएं तथा बलात्कार फर्जी मामला बनाकर जेल में बंद करने की शिकायत राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग तक भी पहुंची थी। बस्तर के तत्कालीन एक पुलिस अधीक्षक ने तो कई लोगों को नक्सली बताकर रायपुर लाकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सामने आत्मसमर्पण कराया और वाहवाही भी लूटी पर बाद में आदिवासी अंचल के एक भाजपा विधायक द्वारा वास्तविकता सामने लाने पर कई तथाकथित नक्सली को छोडऩा पड़ा। जांच की घोषणा भी की गई जांच में क्या हुआ यह तो पता नहीं चला है। अलबत्ते वह एसपी आजकल आईजी के पद पर पदोन्नत हो चुका है। हालात यह थे कि राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट पर देश की प्रमुख पंचायत सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर छत्तीसगढ़ शासन को दंतेवाड़ा और बीजापुर कलेक्टरों को सलवा जुडूम, सुरक्षाबलों द्वारा आदिवासियों की नष्टï की गई सम्पत्तियों हेतु मुआवजा देने और प्रभावित गांव के परिवारों को बसाने का निर्देश दिया। खैर हाल ही में दंतेवाड़ा के 3 गांवों में करीब 300 घरों को आग लगाने के बाद कमिश्नर, कलेक्टर को राहत सामग्री लेकर जाते रोककर पुलिस ने छत्तीसगढ़ में एक नया अध्याय जोड़ा है। यदि सुरक्षा कारणों से कमिश्नर, कलेक्टर को जाने से रोका गया तो एसडीएम और तहसीलदारों को मुआवजा राशि और राहत सामग्री लेकर कैसे पहुंचने दिया गया क्या छोटे अधिकारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की नहीं है। इसके पहले भी मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को जबरिया रोका गया, नारेबाजी की गई तो क्या किसी के खिलाफ कार्यवाही की गई? वैसे कमिश्नर और आईएएस और आईपीएस के बीच टकराव की नौबत आ गई थी। कमिश्नर और कलेक्टर की शिकायत पर एसएसपी को तो हटाया गया पर टकराव रोकने दंतेवाड़ा कलेक्टर प्रसन्ना को भी शहीद किया गया।
सक्ती के स्वामी!
छत्तीसगढ़ में जन्में श्यामराव उर्फ स्वामी अग्निवेश काफी दुखी हंै। पिछली बार जब उनके प्रयास से पांच अपहृत पुलिस कर्मियों को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाया गया था तो उनकी काफी वाहवाही हुई थी। उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा मिला था। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ उन्होंने संयुक्त पत्रवार्ता की थी। डीजीपी विश्वरंजन उनके बगलगीर थे पर इस बार उनके साथ तथाकथित लोगों ने अच्छा व्यवहार नहीं किया है। हालांकि स्वामीजी ने सुकमा रेस्ट हाऊस में आरोप लगाया है कि विरोध के पीछे पुलिस का हाथ है। ग्रामीणों को उकसाकर पुलिस मामले की सच्चाई छिपाना चाहती है। इस विरोध से यह स्पष्टï है कि 300 घरों को फूंके जाने के पीछे पुलिस जवानों और एसपीओ की भूमिका है। इधर स्वामी अग्निवेश और उनके साथ के लोगों से दोरनापाल में घटित घटना पर डीजीपी विश्वरंजन का बयान भी चर्चा में है। वे कहते हैं कि उन्होंने भी घटना के बारे में सुना है। खबर लगी है कि स्वामी अग्निवेश ने डॉ. रमन सिंह से चर्चा की है। अलबत्ता उनसे किसी ने चर्चा नहीं की है और न ही शिकायत की है, उनसे शिकायत करने पर किसी तरह की कार्यवाही पर विचार किया जाएगा। सवाल फिर यही उठ रहा है कि नक्सलियों और सरकार के बीच सुलह के लिये प्रयासरत स्वामी अग्निवेश के विषय में डीजीपी का यह बयान क्या गैर जिम्मेदाराना नहीं है। वैसे स्वामी जी ने कहा है कि एसएसपी कल्लुरी को स्थानांतरित नहीं निलंबित किया जाना चाहिए था।
खैर बहुत कम लोगों को पता है कि स्वामी अग्निवेश का जन्म 21 सितंबर 1939 को सक्ती (अब छत्तीसगढ़) में हुआ था। इनका नाम श्यामराव है और इनके दादा सक्ती राज परिवार के दीवान भी रह चुके हैं। अभी भी इस राजपरिवार से स्वामी अग्निवेश के अच्छे संबंध हैं। खैर सक्ती में पैदा होने के बाद इन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कालेज में बिजनेस व्याख्याता भी रहे। बाद में हरियाणा जाकर आर्य समाजी बन गये। 1977 से 82 तक राज्य के शिक्षा मंत्री भी रहे बाद में बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाया और अभी भी कार्यरत हैं।
छत्तीसगढ़ में शांति अभियान पर निकले स्वामी अग्निवेश के लिए शनिवार अच्छा साबित नहीं हुआ। स्वामी जी ताड़मेटला आदिवासी इलाकों में राहत सामग्री लेकर दंतेवाड़ा जा रहे थे पर कुछ लोगों ने हल्ला बोल दिया, राहत सामग्री लूट ली, उनके वाहन पर अंडे और टमाटर फेंके यही नहीं कुछ ने थाने में जाकर शिकायत भी की कि स्वामी जी नक्सलियों के लिए लाखों रुपये (35 लाख) लेकर आ रहे थे। बहरहाल 13-14 मार्च को सुरक्षाबल एसपीओ ने ताड़मेटला सहित पास के 2 गांवों में कुछ घरों में आग लगा दी मारपीट की हालांकि बलात्कार का भी आरोप लगाया जा रहा है खैर आगजनी के शिकार करीब 50 परिवार आज भी खुले आसमान के नीचे दिन गुजार रहे हैं। शनिवार को स्वामी अग्निवेश इन्हीं के लिए कंबल और अन्य राहत सामग्री लेकर जा रहे थे। पता चला है कि स्वामीजी दोरनापाल पहुंचे तो वहां सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं ने उनके वाहन पर अंडे, टमाटर फेंके और वापस जाने के लिए कहा, पुलिस सूत्र इसे असामाजिक तत्वों का कृत्य बता रही है खैर किसी तरह स्वामी जी को सुकमा रेस्ट हाऊस सुरक्षित पहुंचा दिया गया पर कलेक्टर प्रसन्ना तथा एस.एस.पी कल्लूरी सुरक्षित नहीं रह सके उन्हें राज्य सरकार ने स्थानांतरित कर दिया है। भाई प्रसन्ना को नक्सली जिले से हटाकर राजधानी में नगर निगम का कमिश्नर बनाया गया है वैसे किसी कलेक्टर को निगम आयुक्त बनाने की यह संभवत पहली घटना है।

विकल्प नहीं?

छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या लगातार बढ़ती जा रही है पर यह कहा जाता है कि विकल्प नहीं है इसलिए सरकार की मजबूरी है। डीजीपी विश्वरंजन का कोई विकल्प नहीं है। क्या जेल डीजी संत कुमार पासवान, होमगार्ड डीजी अनिल नवानी विकल्प नहीं बन सकते हंै? जबकि दोनों अधिकारियों को फील्ड का अधिक अनुभव है। संतकुमार पासवान तो अब नक्सल प्रभावित जिले रायपुर, राजनांदगांव, बिलासपुर के पुलिस कप्तान रहे तो बस्तर के डीआईजी, आईजी का कामकाज सम्हाल चुके हंै, यही नहीं बस्तर में निर्विघ्र चुनाव कराने उन्हें तत्कालीन चुनाव आयुक्त लिंगदोह ने भी बधाई संदेश भेजा था। वैसे प्रदेश में पुलिस के सभी विभागों में वे सेवाएं दे चुके हैं तो सीआईएसएफ डीआईजी भी रह चुके हैं। राजधानी में आईजी भी रह चुके हैं। अनिल नवानी का भी अभी तक का रिकार्ड अच्छा है यह जरूर है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वे पदस्थ नहीं रहे हैं। अभी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में तैनात टी जे लांगकुमेर और डीआईजी कल्लुरी का विकल्प नहीं मिल रहा था पर आखिर सरकार को कल्लुरी को बस्तर से हटाना ही पड़ा और उनके विकल्प के रूप में अंकित गर्ग को तैनात किया गया। एक समय यह भी चर्चा होती थी कि तत्कालीन आईजी गुप्त वार्ता डीएम अवस्थी का भी विकल्प नहीं है पर बाद में मुकेश गुप्ता को विकल्प बनाया गया और वह सही विकल्प साबित भी हुए हैं क्योंकि बस्तर में लगातार नक्सली पकड़े जा रहे हैं पर कानून व्यवस्था की स्थिति जरूर कुछ चिंताजनक है।
आईपीएस अफसरों में सीआरपीएफ के डायरेक्टर जनरल और पुलिस अकादमी के डायरेक्टर का पद काफी सम्मानजनक माना जाता है और छत्तीसगढ़ कैडर के ही राजीव माथुर आजकल पुलिस अकादमी हैदराबाद में डायरेक्टर है। आखिर जेल डीजी होने के बाद भी उन्होंने प्रतिनियुक्ति की राह क्यों चुनी इस पर चिंतन जरूरी है। खैर किसकी कहां पदस्थापना करना है यह सरकार का काम है पर नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ में जहां गृहमंत्री और डीजीपी के बीच अखबार युद्घ चलता रहता है क्या यहां ईमानदारी में विकल्प ढूंढने की जरूरत नहीं है?

और अब बस

(1)
मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा है। सूत्रों का कहना है कि गृहमंत्रालय का प्रभार फिर बिलासपुर, जिले के पास जा सकता है। हां, यह तय है कि ननकी चाचा के पास अब पुलिस का विभाग नहीं रहेगा।
(2)
शिक्षा विभाग से मूलत: जुड़े और जबरिया साहित्यकार बने एक कर्मी आजकल जगह-जगह बता रहे हैं कि उनसे जुड़ी एक साहित्यिक संस्था को अब जमीन मिल गई है और कुछ अफसर भवन बनाने में जल्दी सक्रिय हो जाएंगे।
(3)
पाठ््यपुस्तक निगम का 2 लाख मासिक किराये का कार्यालय अब अभनपुर रोड से मंत्रालय के पास स्थानांतरित होने की चर्चा है। इतनी जल्दी नया कार्यालय ढूंढने का कारण आपसी मतभेद बताया जा रहा है।

1 comment:

  1. धन्यवाद आप के ब्लॉग से कुछ अन्दर और बाहर की खबरे पढने को मिली है
    शानदार पोस्ट

    ReplyDelete