Monday, March 28, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़
खुद के करीब हो के चले जिन्दगी से हम
खुद अपने आइने को लगे अजनबी से हम
कुछ दूर चलके रास्ते सब एक से लगे
मिलने गये किसी से मिल आये किसी से हम


छत्तीसगढ़ कांगे्रस में चल रही गुटबाजी अब विधानसभा में भी दिखाई देने लगी है। डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत की सदन के भीतर भाव भगिमा को लेकर कांगे्रस विधायक दल ने उनसे सवाल पूछने के बहिष्कार करने का निर्णय लिया। विधानसभा में बकायदा इस निर्णय का पालन भी होता रहा है। गतिरोध के चलते ही विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने मंत्री की तरफ से खेद व्यक्त भी कर दिया। हालांकि वे यह भी कहते रहे कि वीडियो क्लीपिंग में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। विपक्ष चाहे तो उसे देख सकता है। पर कांगे्रस के वरिष्ठï नेता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने विस में प्रश्न पूछने पर बहिष्कार जारी रखने की बात की उनकी बात समाप्त होते ही नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने सदन में आसदी के खेद का हवाला देकर बहिष्कार समाप्त करने की घोषणा कर दी। उसी के बाद कांगे्रस विधायक दल में नेता प्रतिपक्ष के निर्णय के बाद कुछ मतभेद उभरे हैं। अजीत जोगी ने तो नेता प्रतिपक्ष को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी प्रकट की है। हालांकि नेता प्रतिपक्ष अपने फैसले को सही मान रहे हैं। सवाल फिर यह उठ रहा है कि आसंदी को खेद प्रकट करना पड़ा पर उस समय सदन में मौजूद मंत्री ने खेद प्रकट करने में रुचि नहीं ली। वैसे यह मामला भविष्य में रंग ला सकता है। ज्ञात रहे कि मूणत और कांगे्रस के वरिष्ठï विधायक नंदकुमार पटेल के बीच सदन के भीतर उपजे विवाद के चलते ही कांगे्रस विधायक दल ने सवाल नहीं पूछने का निर्णय लिया था। उस दिन जब आसंदी के आग्रह के बाद नेता प्रतिपक्ष ने विवाद समाप्त करने की घोषणा की तो उसी के बाद राजेश मूणत से सवाल पूछने से ही नंदकुमार पटेल ने इंकार कर दिया उन्होंने यह कहकर अपना रोष जाहिर किया कि वे मंत्री के जवाब से संतुष्ठï हैं।

सदन का बहिष्कार!

वैसे कांगे्रस विधायक दल द्वारा लिया गया एक निर्णय की चर्चा भी यहां जरूरी है। राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे की मानपुर के पास पुलिस मुठभेंड़ में नक्सलियों ने हत्या कर दी थी उसके बाद विधानसभा सत्र में कांगे्रस विधायक दल ने कुछ दिन सदन की कार्यवाही का लगातार बहिष्कार किया। पूरे सदन की कार्यवाही कुछ दिनों तक नहीं चली। पहले मुख्यमंत्री फिर गृहमंत्री फिर डीजीपी फिर आईजी दुर्ग आदि को एक के बाद एक निशाना बनाया गया और उसी के बाद अचानक सदन की कार्यवाही में कांगे्रस विधायक दल शामिल हो गया। सदन का बहिष्कार जिन मुद्दों को लेकर किया गया उन मुद्दों का क्या हुआ, सरकार ने विपक्ष के मुद्दे पर क्या किया यह सभी अतीत के गर्त में है। कांगे्रस ने सदन के बहिष्कार करने का निर्णय अचानक कैसे तथा क्यों वापस ले लिया इसकी जानकारी तो कई कांगे्रस के विधायकों को भी नहीं है। मीडिया को तो पता चलने का सवाल ही नहीं पैदा होता है।

सुराज की तलाश!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह 19 से 23 तथा 25 से 29 अपै्रल को चिलचिलाती धूप में दो चरणों में ग्राम सुराज अभियान चलाएंगे। हर गांव में चौपाल होगी, सरकार के कर्मचारी अधिकारी, प्रभारी मंत्री सहित मुख्यमंत्री तक हर गांव में पहुंचेंगे ऐसा पहले भी होता आया है और इस बार भी कुछ ऐसी ही योजना है। वैसे मुख्यमंत्री इस बार भी छापामार शैली में किसी भी गांव में अचानक पहुंचकर सरकार की योजनाओं की समीक्षा करेंगे वहीं ग्राम की समस्या का त्वरित हल
निकालने का भी प्रयास करेंगे। वैसे गत वर्ष ग्राम सुराज अभियान में 2 लाख से अधिक आवेदन आये थे उनका क्या हुआ इसकी पहली समक्षा जरूरी है। वैसे प्रदेश में सुराज अभियान के पहले या बाद में मंत्रिमंडल का पुनर्गठन और प्रशासनिक सर्जरी होने की चर्चा है। जो प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी कांग्रेस की सरकार के समय सरकार के करीबी थे उनमें से अधिकांश आजकल सत्ताधारी दल भाजपा के बगलगीर बने बैठे है। डा. रमन सिंह के अधीन ही आर्थिक अपराध शाखा है और उसके मुखिया नें जिस तरह हाल ही में हुई भ्रष्टï अधिकारियों की पोल खोली है छापा मारकर आय से कई गुना अधिक संपत्ति का पता लगाता है यह भी कम चिंता जनक नहीं है। आखिर अधिकारियों जनता की सुविधाओं की कटौती करके ही तो पैसा बनाया है। वैसे जानकार कहते है कि डा. रमन सिंह के पास कुछ बड़े नौकरशाहों की गोपनीय जानकारी पहुंच चुकी है, उनकी कार्यप्रणाली सहित विपक्षीदल कांग्रेस को गोपनीय जानकारी पहुंचाने का भी खबर पहुंची है। ऐसे 7-8 बड़े अफसर निशाने पर हैं। एक अफसर ने तो विभाग हटते ही विपक्ष को जानकारी पहुंचा दी है और उससे सरकार की किरकिरी भी हो रही है। वैसे एक बड़ा मंत्रिमंडल फेरबदल और प्रशासनिक सर्जरी जल्दी होनी है और उसमें डा. रमन सिंह की सख्त प्रशासक होने की छवि सामने आएगी ऐसा कहा जा रहा है।

रोगदा बांध

जांजगीर-चांपा में केएसकेएस महानदी पावर प्रोजेक्ट को रोगदा बांध बेचने के मामले में हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा की जांच समिति विस उपाध्यक्ष नारायण प्रसाद चंदेल की अध्यक्षता में बना दी है और उसमें प्रदेश के धाकड़ विधायक मोहम्मद अकबर, धर्मजीत सिंह, देवजी भाई पटेल, दीपक पटेल को शामिल किया गया है।
हालांकि इस रोगदा बांध को निजी कंपनी को देने के मामले में विपक्ष के मुख्य सचिव जॉय उम्मेन को निशाना बनाया था पर इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर सहित 2 सचिव स्तर के अधिकारी भी निशाने में हैं जिनकी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि तीनों अधिकारी मुख्यमंत्री के अधीन एक विभाग में पहले कभी न कभी पदस्थ रह चुके है। इसमें से एक अधिकारी को तो अजीत जोगी के कार्यकाल में तब विपक्षीदल भाजपा ने निशाने पर लिया था और विधानसभा में उस अधिकारी के विभाग के खिलाफ 25-30 सवाल भी पूछे थे। वहीं एक अधिकारी तो मुख्यमंत्री का काफी दिनों तक बगलगीर भी रह चुका है।

और अब बस

(1)
मुख्यमंत्री के कभी काफी करीबी रहे एक आईपीएस अफसर आजकल करीबी हो गये एक आईपीएस अफसर को निपटाने अब पत्रकारों से मेलजोल फिर बढ़ाने लगे है।
(2)
बस्तर में लोस चुनाव होना तय है किसी से एक मंत्री को सलाह दी है कि वहां की 'बोली नहीं जानताÓ 'नक्सलियों के निशाने में हूंÓ यह कहकर पल्ला झाडऩे का प्रयास अभी से शुरू कर दो नहीं तो फिर आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक रूप से टूटने की तैयारी कर लो?

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