Tuesday, March 1, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

कुछ सोच के चुप रह गया आवाज न निकली

वो मुझसे मेरे घर का पता पूछ रहा था


जिला स्तर पर कलेक्टर प्रशासनिक प्रमुख होता है पहले उसे लाट साहब कहा जाता था और अंगे्रजों के समय से अभी तक जिला कलेक्टर को असीमित अधिकार मिले हैं। नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ से जुड़े उड़ीसा में मलकानगिरी के कलेक्टर का नक्सलियों द्वारा अपहरण और सशर्त रिहाई दुखद घटना ही कही जा सकती है। वैसे मलकान गिरी के कलेक्टर के अपहरण के बाद छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नक्सली प्रभावित क्षेत्र के प्रमुख अधिकारियों को सतर्कता बरतने की सलाह देकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री पा ली है। वैसे भाई विश्वरंजन को नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर कुछ खास पसंद नहीं है। नौकरी के प्रारंभिक दौर में वे बस्तर में रहे हैं पर डीजीपी बनने के बाद बस्तर से न जाने क्यों उन्हें विरक्ति हो गई है।
कभी कभार किसी बड़ी घटना को नक्सलियों द्वारा अंजाम देने पर वे बस्तर जरूर जाते हैं पर लौट भी आते हैं उन्होंने कभी वहां रात बिताई है ऐसा प्रमाण तो नहीं है। खैर हाल ही में 5 एसएएफ के जवानों का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया और उनके रिश्तेदार बस्तर के जंगलों में खोज करने निकल गये। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को स्वामी अग्निवेश से अनुरोध करना पड़ा और उन्होंने बकायदा राजकीय अतिथि बनकर अहृत जवानों को नक्सलियों से (निशर्त?) रिहा भी कराया। वैसे दंतेवाड़ा में एक इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल 'सहारा समयÓ के एक उत्साही पत्रकार ने बीते साल अहृत जवानों को रिहा कराया था। खैर अब तो डीजीपी साहब नक्सलियों की हिट लिस्ट में आ गये हैं ऐसी चर्चा है और ऐसे में वे नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर जाकर नक्सलियों के खिलाफ जमीन की लड़ाई सीधे लड़ेंगे या सुरक्षा बल का नेतृत्व करेंगे ऐसा लगता नहीं है। वैसे सीआरपीएफ के डीजी विजय कुमार जरूर कुछ समय से बस्तर की खाक छान रहे हैं, सुरक्षाबल के लोगों से रु-ब-रु हो रहे हैं, सुरक्षाबल के सहित सलवा जुडूम समर्थकों के राहत कैम्पों में रात गुजार रहे हैं यही नहीं 2-3 बात तो नक्सलियों के खिलाफ एम्बुश का भी नेतृत्व कर चुके हैं। वैसे अब वे जब रायपुर में विमान से उतरते हैं तो कोई बड़ा पुलिस अधिकारी उन्हें रिसीव करने नहीं जाता है क्योंकि ऐसे में बस्तर जाने का खतरा बना रहता है। हो विजय कुमार की वापसी पर जरुर पुलिस के बड़े अफसर विदाई देने पहुंच जाते हैं।

पुलिस भारी या पुलिस पर भारी...

छत्तीसगढ़ में आजकल न्यायधानी बिलासपुर सुर्खियों में है। न्यायधानी में सुरक्षा व्यवस्था की हालत किसी से छिपी नहीं है। बिलासपुर के ही मूल निवासी विनोद चौबे की राजनांदगांव पुलिस अधीक्षक रहते मानपुर में नक्सलियों द्वारा उनके कुछ सुरक्षा कर्मियों सहित हत्या कर दी गई थी। पुलिस निरीक्षक शहीद अब्दुल वहीद भी यही के निवासी थे। खैर बात न्यायधानी की सुरक्षा व्यवस्था की हो रही है। यहां पुलिस अधीक्षक थे जयंत थोराट, एक सिनेमा छविगृह के कर्मचारी की पुलिस कर्मियों द्वारा मारपीट से मौत के मामले में उन्हें घसीटा गया, फिर पत्रकार सुनील पाठक की हत्या हो गई और उन्होंने एक आरोपी को पकड़ा भी पर उन पर दबंगता का आरोप लगाकर हटा दिया गया उनके स्थान पर पुलिस अधीक्षक अजय यादव को बनाया गया और पुलिस पर दबंगता का आरोप हटा और नेताओं पर दबंगता का आरोप लगना श्ुारू हो गया है। जयंत के समय पुलिस भारी पड़ रही थी तो यादव के समय राजनेता और अपराधी भारी पड़ रहे हैं।
पत्रकार सुनील पाठक हत्याकांड का खुलासा नहीं हो सका और राज्य सरकार को सीबीआई से जांच कराने का निर्णय लेना पड़ा। इधर 3 फरवरी को क्राइम ब्रांच से सूचना मिलने पर चोरों को पकडऩे गये आरपीएफ के उपनिरीक्षक एस पी सिंह और हवलदार सी पी सिंह की आरोपियों ने हत्या कर दी। उपनिरीक्षक सिंह पहले भारतीय सेना में थे और कारगिल युद्घ में भी हिस्सा लिया था। इधर 4 फरवरी को तिफरा नगर पंचायत अध्यक्ष के पति राजेश शुक्ला, सभापति विजय वर्मा ने चौकी में पदस्थ हवलदार क्रांति बानी और नगर सैनिक रामचरण की चौकी में घुसकर जबरदस्त पिटाई कर दी। ये नेता मोटर सायकल चलान करने से नाराज थे। इधर 4 फरवरी को ही भाजपा के विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिलाध्यक्ष योगेश बाजपेयी ने यातायात डीएसपी इरफान से मारपीट की। यहां मारपीट का कारण यातायात चेकिंग ही बना। वैसे बिलासपुर में जब देश की सबसे बड़ी न्याय पंचायत के मुखिया पहले आये थे तो एक दबंग मंत्री द्वारा एक डिप्टी कलेक्टर को तमाचा मारने की भी घटना घटित हो चुकी है। यहां मामला प्रोटोकाल के दायरे में नहीं आने के कारण मंत्रीजी को मनपसंद विश्रामगृह नहीं मिलना था। खैर नये मामलों में दोषी के खिलाफ जुर्म कायम ही हुआ है पर इस तरह की घटनाएं सुरक्षा बल को आहत तो करती ही है।

महंगी बिजली क्यों?

छत्तीसगढ़ राज्य भरपूर बिजली उत्पादन के चलते 'जीरो पावर कटÓ वाला राज्य बन गया है और छत्तीसगढ़ राज्य देश के कुछ राज्यों को बिजली बेचकर वहां भी रोशनी पैदा करने में मदद करता है पर इसी छत्तीसगढ़ में अब गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों से लेकर उद्योगपतियों तक की हालत खराब हो जाएगी ऐसी लगता है क्योंकि राज्य विद्युत मंडल ने नियामक आयोग को बिजली दर बढ़ाने पर प्रस्ताव भेजा है। वैसे छत्तीसगढ़ का दुर्र्भाग्य ही है कि यहां सबसे अधिक सीमेंट कारखाने हैं पर यहां के लोगों को महंगा सीमेंट मिलता है उसी तरह यहीं बिजली बनती है और यही के लोगों को अब महंगी बिजली मिलेगी। करीब 13 लाख गरीब परिवारों को नि:शुल्क बिजली देने वाली प्रदेश सरकार के घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं के लिये डेढ़ रुपए प्रति यूनिट की दर को ढाई रुपए करने जा रही है। यदि नियामक आयोग ने प्रस्ताव मान लिया तो 200 यूनिट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वालों को 1.60 पैसे से 3 रुपए 20 पैसे, 500 यूनिट खर्च करने वाले को एक रुपए 90 पैसे से 3 रुपए 65 पैसे प्रति यूनिट देने होंगे। इधर छोटे और मध्यम व्यवसायियों को 30-40 प्रतिशत वृद्घि का सामना करना पड़ेगा। जबकि कृषि पंप उपभोक्ताओं को 140 प्रतिशत वृद्घि का सामना करना पड़ेगा।
दरअसल बिजली विभाग से जुड़े एक बड़े अफसर का कहना है कि मंडल के विखंडन के कारण खर्च बढ़ा है और उसकी पूर्ति के लिये विद्युत शुल्क बढ़ाना मजबूरी है। वैसे विद्युत मंडल विखंडन के पहले लाभ में चल रहा था पर विखंडन के 2 साल बाद ही 750 करोड़ के घाटे में चला गया यह बात भी हजम नहीं हो रही है। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि विखंडन के पहले विद्युत मंडल लाभ में चल रहा था तो विखंडन करने की क्या जरूरत थी? क्या विखंडन के बाद खर्च बढ़ा है तो क्या उसकी भरपाई आम नागरिकों से की जाएगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऊर्जा मंत्रालय अभी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है। संवेदनशील मुख्यमंत्री जो गरीबों को सस्ता अनाज, मुफ्त नमद दे रहे हैं, बस्तर में चना वितरण की शुरुवात कर रहे हैं विद्युत मंडल के उपभोक्ताओं को बिजली दर बढऩे पर होने वाली असुविधा से पर क्यों अभी मौन हैं।

और अब बस

(1)
कालीबाड़ी चौक के पास इंदिरा गांधी की प्रतिमा को हटाने नहीं हटाने को लेकर भाजपा और कांगे्रस आमने-सामने आ गये थे पर अब विमानतल का नामकरण राजीव गांधी, श्यामाचरण शुक्ल के नाम करने को लेकर कांगे्रस का दो घड़ा आमने-सामने आ गया है।

(2)

दुर्ग कलेक्टर के पद पर ठाकुर राम सिंह की पुन: वापसी हो गई है एक टिप्पणी 'अभी ठाकुरोंÓ का समय अच्छा चल रहा है।

(3)

संजरी बालोद में कांगे्रस की पराजय: जोगी जाते हैं तो हराने का आरोप लगता है नहीं जो हैं तो हराने का आरोप लगता है। खैर जो भी हो बृजमोहन अग्रवाल तो अपने मिशन में सफल रहे।

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