Tuesday, July 10, 2012

मैं चाहता हूं खुद से
मुलाकात हो मगर
आईने मेरे कद के
बराबर नहीं मिले

छत्तीसगढ़ वनों के विनाश और नदियों के प्रदूषण से जूझ रहा है। खनन और औद्योगिक परियोजनाओं से विस्थापित लोग या तो सड़क पर उतर चुके हैं या विरोध कर रहे हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ में समस्या इसलिये भी गंभीर है क्योंकि यहां की खनिज संपदा वनों में ही गड़ी हुई है।
राज्य की 4 प्रमुख नदियां महानदी, गोदावरी, नर्मदा, और गंगा के विस्तारित नदी कंधार का हिस्सा है। राज्य में 12 नदियां है जिनकी संयुक्त लम्बाई 1885 किलोमीटर ही है। अधिकतर नदियां खनिज प्रधान जिलों से ही गुजरती है। मसलन इंद्रावती नदी, लौह अयस्क वाले बस्तर और दंतेवाड़ा जिलों से होकर गुजरती है तो महानदी रायगढ़ और रायपुर महासमुंद जिलो से गुजरती है। हसदेव नदी कोयला समृद्ध कोरबा और कोरिया में बहती है तो रिंहद और कन्हार सरगुजा जिले में बहती है। इनमें से कई नदियों पर खनन और खनिज आधारित उद्योगों में गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इंद्रावती नदी की सहयोगी नदियों में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के लौह अयस्क खनन से प्रदूषण की सच्चाई अब दस्तावेज बन चुकी है। शखनी और डंकनी नदी का पानी लौह अयस्क के प्रदूषण के चलते लाल हो चुका है तो नदी तट से लगी सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर हो चुकी है। वहां कभी फसलें लहलहाया करती थी आजकल सूखा की स्थिति है।
कोरिया जिले की हालत भी कुछ ऐसी ही है। यहां का भूमिगत जल, खनन गतिविधियों के चलते प्रदूषित हो चुका है। सरगुजा जिले के अम्बिकापुर में दिग्मा गांव में जल स्तर बहुत अधिक गिरने की खबर है। पहले 25-30 फूट का गड्डा करने पर पानी निकल आता था पर अब 60-70 फूट की गहराई पर भी पानी नसीब नहीं होता है।
एक अध्ययन के मुताबिक बस्तर की बैलाडिला खदानों के दूस्प्रभाव पर मप्र विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद ने 1997 एक दूर संवेदी अध्ययन में पाया था कि बैलाडिला में लौह अयस्क खदानों के कारण पर्यावरण पर भयावह दुष्प्रभाव पड़ा है। अध्ययन में वन क्षेत्र घटने, समृद्ध जैव विविधता पर संकट की बात सामने आई थी वही जल और वायु प्रदूषण के चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी नष्ट होने के प्रकरण मिले थे। किरंदुल खदानों के कारण आसपास की कई किलोमीटर के दायरे में मिट्टी पूरी तरह बंजर हो चुकी है वही बचेली खदान के कारण 5 किलोमीटर के दायेर में वन क्षेत्र उजड़ता जा रहा है।
इधर 1989 से 92 तक केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक अध्ययन में पाया था कि किरंदुल में खदानों के कारण वन क्षेत्र घटा है वहां खेती भी प्रभावित हुआ है। इधर पता चला है कि एनएमडीसी द्वारा बनाये गये बांध सेडिमेंशन टैंक ही है। खदन से निकलने वाले कीचड़ में लौह अयस्क लगभग आधा से कम होता है यही कीचड़ नदी के पानी को प्रदूषित करता है। पानी का रंग मटमैला, लाल होता जा रहा है। पहले कचरा और कीचड़ बांध के पास ही एकत्रित होता था जिससे आसपास का क्षेत्र काले रंग के पठार में तब्दील हो गया है इसी के कारण कई प्राकृतिक जल स्त्रोतों की धारा भी बदल गई है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 1989-92 में बड़े जल स्त्रोतों से संबंधित ठिकानों को अलग से कचरा जमा करने की सलाह दी गई थी लेकिन इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।
1990 में केन्द्र की विज्ञान और प्रौद्योगिकी इकाई की रिपोर्ट में कहा गया था कि खदानों के बेहिसाब खनन और नदियों में कचरा बहाने से न सिर्फ नदियां ही प्रदूषित हुई है बल्कि बैलाडिला के आसपास 35000 हेक्टेयर की खेती और जंगल भी बरबाद हो गये है (21 साल पुरानी रिपोर्ट ) आज की हालत भगवान ही जानता है। इधर 1996 में सरकार ने ऐलान किया था कि शंखनी और डंकनी नदियों के आसपास 65 गांव प्रभावित हुए है तब एनएमडीसी को निर्देश दिया गया था कि गांववालों को शुद्ध पेयजल के लिये 200 कुएं खोदे जाए। एनएमडीसी ने सरकार का आदेश तो माना, कुएं खोदे पर वह खानापूर्ति ही थे। कम गहरे कुएं खोदे जाने के कारण आज एक भी काम के लायक नहीं है।
1997 में मप्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद ने अपनी रिपोर्ट में एनएमडीसी के लौह अयस्क खदानों से होने वाले जल प्रदूषण को गंभीर मामला बताया था और कहा था कि इसका असर नदियों में दूर तक दिखाई पड़ता है। बैलाडिला संयंत्र से गिरने वाला कचरा इतना भारी होता है कि किरंदुल और बचेली जैसे नाले लगभग सूख गये है, रिपोर्ट के मुताबिक किरंदुल नाले के करीब 37 गांव के लोग पानी पीने के लिये इस जल का इस्तेमाल बंद कर चुके है।
बच्चे नक्सली
बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा कोत्तागुड़ा में हुई कथित मुठभेड़ को लेकर सरकार अपने रूख पर कायम है हालांकि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिह ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से इस मुठभेड़ की जांच कराने की घोषणा की है। इससे आरोप-प्रत्यारोप की सच्चाई देर-सबेर सामने आ ही जाएगी पर आदिवासी विकास परिषद के नेता तथा सुकमा के अपहृत कलेक्टर एलेक्स पाल की नक्सलियों से रिहाई के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने ही मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। उनका कहना है कि मृतकों में 4 बच्चे 12 और 13 साल के है जिनके उम्र की पुष्टि राशन कार्ड से होती है। मनीष कुंजाम के अनुसार इस मुठभेड़ में मारे गये हपका छोटू पिता भीमा (12 साल),काका संध्या पिता भीमा ( 12 साल), मरकाम रामविलास पिता बुच्चा (13 साल), मरकाम नागेश पिता मल्ला (13 साल) शामिल है। वही काका पार्वती पिता कीटा (16 वर्ष),  काका रमेश पिता कीटा (15 वर्ष), सरके रमन्ना पिता पोटी (16 वर्ष) , हुक्का पिता सुकराम (15 वर्ष), कोरसा विचेम पिता गुड्डा (15 वर्ष) ,इरपा सुरेश पिता चन्दैया (16 वर्ष) शामिल है। सवाल यह उठा रहा है कि मृतकों में कुछ व्यस्कों के वोटर कार्ड उपलब्ध है और बच्चों के नाम राशन कार्ड में मिले है इसका तो यही मतलब निकाला जा सकता है कि नक्सलियों के वोटर कार्ड और राशन कार्ड भी बस्तर में बन चुके है। यदि राज्य सरकार इन्हें नक्सली मानती है तो।
आखिर किसका संरक्षण!
छत्तीसगढ़ में सब चलता है। सरकारी अधिकारी कुछ भी कर ले कितनी बड़ी भी गलती कर लें पर राजनीतिक संरक्षण के चलते कुछ नहीं होता है। छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम की कार्य प्रणाली हमेशा चर्चा में रही है। यहां 2 सगी बहनों की नियुक्ति दोनों के बीच मात्र 3-4 माह का अंतर (अंक सूची के आधार पर ) हो लोक आयोग में शिकायत हो जांच शुरु हो जाए पर दोषी अफसर पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।
संवेदनशील मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हाल ही में नक्सली प्रभावित क्षेत्रों के स्कूली बच्चों के इंजीनियरिंग में प्रवेश के बाद उन्हें दिल्ली ले जाकर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात कराई और राज्य सरकार की कार्यवाही से अवगत कराया। इसी राज्य में पढऩे वाली बेटियों के लिये नि:शुल्क साइकिल की व्यवस्था की है, वही नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकों के वितरण की भी योजना शुरू की है पर पुस्तकों के प्रकाशन और वितरण करने वाला पापुनि हमेशा चर्चा में रहा है। कभी गुरू घासीदास के विषय में गलत प्रकाशन की बात सामने आई, सतनामी समाज आंदोलित हुआ और फिर वह अध्याय हटाकर पुस्तक का प्रकाशन किया गया, फिर नई पुस्तक प्रकाशित की गई। खर्च लाखों में हुआ पर कार्यवाही किसी के खिलाफ नहीं हुई, फिर पांचवी पर्यावरण पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 183 में राष्ट्रीय प्रतीक के पाठ में तिरंगा का रंग ही बदलकर प्रकाशित हो गया। किताब में तिरंगे का रंग सबसे उपर हरा, मध्य में सफेद तथा सबसे नीचे केशरिया प्रकाशित हो गया। कुल 6 लाख 79 हजार 700 प्रतियां प्रकाशित हुई, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के जिले कवर्धा से शिकायत आई और वितरीत पुस्तकें वापस लेकर पुन: प्रकाशन करा कर लाखों खर्च किये गये पर फिर किसी पर कार्यवाही नहीं हो सकी क्यों? जरूरत से अधिक पुस्तकें प्रकाशन, भिलाई और बिलासपुर में रद्दीवाले के पास पापुनि की मुफ्त वितरित होने वाली पुस्तकें जप्त भी हुई पर फिर किसी पर कार्यवाही नहीं हो सकी।
नाश्ते की प्लेट
हाल ही में बालौद जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में विद्यार्थियों  को नि:शुल्क वितरित की जाने वाली पाठ्य पुस्तकों को नाश्ता की प्लेट बनाकर नास्ता देने का मामला भी चर्चा में हैं। जिला पंचायत सदस्य देवलाल ठाकुर की शिकायत पर कलेक्टर बालौद ने एसडीएम को जांच का आदेश दिया था। जांच के बाद इसके तार रायपुर से जुड़े होने के संकेत मिल रहे हैं। नाश्ता बालौद के बीकानेर स्वीट्स से भेजा गया था। पता चला कि डौडीलोहारा क्षेत्र से नाश्ता प्लेट बीकानेर स्वीट्स भेजी गई थी। बीकानेर स्वीट्स के संचालक ने वह नाश्ता की प्लेट बालौद के दिनेश ट्रेडर्स से खरीदा था। दिनेश ट्रेडर्स के संचालक के अनुसार उसने वह प्लेट सम्यक ट्रेडर्स गोलबाजार रायपुर से मंगवाया था। इसका मतलब है कि पाठ्य पुस्तकों को रायपुर में ही बेचा गया था। सवाल यह उठ रहा है कि या तो पाठ्य पुस्तकें किसी क्षेत्र में भेजी ही नहीं गई यदि ऐसा है तो उस क्षत्र के बच्चे पढ़ाई कैसे कर रहे है या यह भी हो सकता है कि जरूरत से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है। बहरहाल प्रतिनियुक्ति का समय समाप्त होने, चर्चा में रहने लोक आयोग में शिकायत दर्ज होने के बाद भी पापुनि में एक अधिकारी का जमे रहना सरकारी संरक्षण की ही चुगली करता हैं।
और अब बस
0 एक सरकारी अधिकारी की प्रिंटिग प्रेस के बाद पेट्रोल पंप की स्थापना और निर्माण की जमकर चर्चा है हालांकि दोनों किसी दूसरे के नाम से हैं।
0 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में मेनेजमेण्ट कोटा समाप्त करने और निजी स्कूलों पर करोड़ों जुर्माना करने के पीछे किसका हाथ है, इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है।

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