Monday, April 30, 2012

तूफानों से आंख मलिाओं
सैलाबों को पार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ों
तैर के दरिया पार करो
लाल आतंक को जड़ से उखाड़ फेंकने के अनगिनत वादों, ढेंरों रणनीतियों और भारी-भरकम रकम खर्च करने के बावजूद नतीजा सिफर है। केन्द्र और राज्य सरकार ने माओवादियों के खिलाफ मोर्च पर सुरक्षा बलों के करीब 30 हजार से अधिक जवानों को झोंक रखा है, बीते चार साल में लाल आतंक पर लगाम कसने के लिये 3975 करोड़ रूपये भी फूंके जा चुके है लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। उनकी ताकत में बढ़ोत्तरी हो रही है।
छत्तीसगढ़ राज्य में एक विधानसभा क्षेत्र को सुकमा जिला का दर्जा दिया गया और नक्सलियों ने सुराज अभियान के दौरान ही 2006 बैच के आईएएस तथा तमिलनाडू के मूल निवासी 32 वर्षीय कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण कर लिया। एलेक्स को खतरे का अंदाजा था उन्हें एलर्ट भी किया गया था फिर भी 2 सुरक्षा कर्मी के साथ वे सुराज अभियान में निकले थे, उन्हें मोटर सायकल में बैठकर नहीं जाना था। कलेक्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां के पुलिस कप्तान की थी। ये जुमले नक्सलियों की ताकत को कम नहीं करते है वहीं युवा कलेक्टर के अपहरम की घटना को भी झूठला नहीं सकते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जब किसी जिले का कलेक्टर ही सुरक्षित नहीं है तो आम जन की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुलिस मुख्यालय से लगातार बयान आते रहे है कि नक्सलियों को सुरक्षा बल का दबाव है, उनकी जमीन खिसक रही है और वे पलायन करने मजबूर है। कलेक्टर का अपहरण मुख्यालय के सतही बयान की हकीकत बयान करता है। छत्तीसगढ़ में डीजीपी के रूप में स्व. ओपी राठौर ने कार्य किया, पंजाब में आतंकवाद निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के पी एस गिल की भी बतौर सलाहकार नियुक्ति की गई, इंटेलीजेन्स ब्यूरो के अनुभवी अधिकारी विश्वरंजन की भी डीजीपी के पद पर नियुकक्ति की गई और उन्हें हटाकर डीजीपी के पद पर अनिल एम नवानी को पदसस्थ किया गया है। हालात तो जस केतस भी नहीं है। नक्सली लगातार अपना क्षेत्र विस्तार कर है। माओवादी की लेन्ही (जबरिया वसूली) तो अब 200 करोड़ सालाना हो गई है। 1968 में पश्चिम बस्तर में माओवादियों ने 15 लड़ाकों के साथ बीजापुर क्षेत्र में मद्देड़दलम का गठन किा था सूत्र कहते है कि आज बस्तर में ही माओवादियों की 7 डिवीजनल कमेटी, लड़ाकों की 2 बटालियन, 11 कंपनियां और 30 प्लाटून हैं। जानकार कहते हैं कि अपनी लगातार आर्थिक स्थिति सुधारते हुए माओवादी अब सुरक्षाबलों से लंबी लड़ाई के लिये तैयार हैं। सुरक्षा बल के पास यूबीजीएल (अंडर, बैरल ग्रेनेड लांचर) के जवाब में माओवादियों के पास अमरीका एम 16 सीरीज के घातक हथियार  है। अब तो माओवादियों के पास सैटेलाईट फोन होने का भी खुलासा हो चुका है। बीजापुर के रानीबोदली क्षेत्र में किसी कमांडर से आदेश लेने का पता चला था।
छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिला छोड़कर अधिकांश जिले नक्सली आंतक से प्रभावित है। बस्तर, राजनांदगांव, सरगुजा क्षेत्र में तो उनकी सक्रियता है ही। वहीं अब गरियाबंद, राजहरा, कोरबा, सारंगढ़, महासमुंद जिले में भी नक्सली आहट सुनाइ दे रही है। राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में युवा पुलिस कप्तान विनोद चौबे की शहादत से हमने सबक नहीं सीखा, गरियाबंद क्षेत्र के एएसपी की शहादत हो गई, एक साथ 76 सुरक्षाबल के जवान की शहादत भी हो गई, दंतेवाड़ा में जेलब्रेक से 299 कैदी बंदी नक्सलियों के साथ भाग गये, बस्तर में बारूद की एक ट्रक लूट ली गई, बस्तर में सुरक्षाबल के जवानों सहित आम ग्रामीण की नक्सलियों द्वारा हत्या की खबर आम हो गई है। आपरेशन ग्रीन हण्ट, सलवा जुडूम जनजागरण अभियान, एसपीओ की भर्ती फर्जी मुठभेड़ आदि की खबर आम है। सुरक्षा बल और माओवादियों के बीच आम आदिवासी पिस रहा है , एस्सार जैसे औद्योगिक संस्थान द्वारा नक्सलियों को 15 लाख की आर्थिक मदद के मामले का खुलासा हुआ है। मामला थाने में दफन हो गया और अब तो नक्सलियों ने एक युवा कलेक्टर का अपहरण कर अपनी शर्त रखकर हद ही कर दी है। अपने साथियों और शहरी नक्सल सूत्रों की रिहाई की शर्त रखकर सरकार को ब्लेकमेल करने का माहौल बना लिया है।
सरकार ने मप्र की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच छग के पूर्व मुख्य सचिव सयोग्य कुमार मिश्रा को कलेक्टर की रिहाई के लिये मध्यस्थ बनाया है वहीं नक्सलियों ने पूर्व कलेक्टर ब्रम्हदेव शर्मा और हैदराबाद विवि के पूर्व प्रो. हरगोविंद को मध्यस्थ बनाया है। वहीं पूर्व विधायक मनीष कुंजाम की पहल पर बीमार कलेक्टर को दवाई सुलभ हो सकी। सवाल यह है कि आखिर छग की पुलिस यहां का मुख्यालय क्यों किसी की दया पर निर्भर है। यदि नक्सलियों की बस्तर में समानांतर सरकार है तो बयानबाजी कर पुलिस मुख्यालय झूठे दावे क्यों करता है। कुल मिलाकर इन नक्सलियों के गुरुर को तोडऩा होगा उनका खौफ कम करना होगा, ठोस रणनीति बनानी होगी, नक्सली क्षेत्र की पर्याप्त जानकारी नहीं होने वाले अफसरों के जिम्मे नक्सली उन्मूलन की बात करना ख्याली पुलाव ही साबित होगा। नक्सल आपरेशन के लिये किसी जानकार पुलिस अधिकारी को नक्सली डीजी बनाकर भी कुछ ठोस कार्यवाही की जा सकती है जैसा अविभाजित मप्र के समय नक्सल आईजी का पद सृजित किया गया था।
दूषित पानी:आप स्वयं जिम्मेदार
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नगर निगम का महापौर कांग्रेस की बनी है, और प्रदेश में मंत्री भी नगर निगम क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं फिर भी छत्तीसगढ़ की राजधानी के निवासी स्वयं को अब छला हुआ महसूस कर रहे है।
प्रदेश की राजधानी रायपुर में वायु प्रदूषण तो किसी से छिपा नहीं है। शहर के हृदय स्थल जयस्तंभ चौक पर वायु प्रदूषण की स्थिति सबसे अधिक खतरनाक है, मालवीय रोड़ महात्मागांधी मार्ग की हालत भी कमोवेश वही है वहीं प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था जिस डी के एस भवन से चलती है उस भवन के सामने स्थिति शास्त्री चौक में वायु प्रदूषण की हालत चिंता जनक है। राजधानी की पेयल व्यवस्था की हालत भी किसी से छिपी नहीं है।
हाल ही में राजधानी में पेयजल दर में वृद्धि भी हुई है। महापौर किरणमयी नायक पेयजल दर वृद्धि के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। वैसे यह तय है कि राजधानी की सफाई, प्रकाश व्यवस्था की हालत भी कम चिंता जनक नहीं है। निगम में जिस तरह कांग्रेसी-भाजपाई पार्षद आपस में उलझते रहते है, आम बजट पास नहीं होने का रिकार्ड भी बन चुका है उससे नगरवासी कम चिंतित नहीं है।
इधर हाल ही में की निस्तारी समस्या दूर करनेवाले बूढ़ातालाब, कंकाली तालाब, तेली बांधा तालाब, महाराजाबंध तालाब तथा नरहैया तालाब का पानी भी जहरीला होने की रिपोर्ट निगम मुख्यालय पहुंची है। सूत्र कहते है कि इन तालाबों का पानी नहाने के लिए भी अनुपयोगी माना गया है इसका उपयोग करने पर चर्म बीमारियां भी होने की संभावना प्रबल है। बताया जाता है कि जब निगम में महापौर सहित आला अफसरों को यह जानकारी मिली तो एक हल निकाला गया कि इन पांचों तालाबों के पास चेतावनी नूमा बोर्ड लगाया जाएगा कि इस तालाब का पानी जहरीला हो गया है इसका उपयोग हानिकारक हो सकता है और इसका उपयोग करने पर आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
सवाल यह उठ रहा है कि चेतावनी बोर्ड लगाकर निगम प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरा करने की बात करेगा पर इन तालाबों का पानी उपयोग नहीं करने पर नागरिको के पास इसका विकल्प क्या होगा?
मनमानी शुरू
रायपुर से दिल्ली और मुंबई जानेवाले विमान यात्रियों को अब एयर लाइंस कंपनियों की मनमानी को बर्दाश्त करना पड़ रहा है। तत्काल यात्रा करनेवालों को 30 से 32 हजार रुपए खर्च करना पड़ रहा है। जबकि इतनी कीमतों में यात्री सिंगापुर, श्रीलंका, बैकांक, दुबई से आना-जाना हो सकता है।
छत्तीसगढ़ के एक मात्र विवेकानंद एयरपोर्ट को जल्द ही अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का दर्जा दिए जाने की तैयारी चल रही है। पर यहां के विमान यात्रियों को सुविधा के नाम पर ठगा ही जा रहा है। रायपुर से दिल्ली, मुंबई के लिए एयर इंडिया, जेट तथा इंडिगो की ही फ्लाईट है। हाल ही में केन्द्र सरकार ने एक अप्रैल से एयर लाइंस कंपनियों पर सर्विस टेक्स बढ़ाया है और उसी के बाद कंपनियों ने अपने यात्री किराए पर 100 से 4000 रुपए तक की बढ़ोत्तरी की है। इस टेक्स का सबसे अधिक असर तो तत्काल टिकट लेनेवालों पर ही परिलक्षित हो रहा है। रायपुर से दिल्ली और मुंबई के लिए सफर करनेवाले यात्रियों को अब एक तरफ की उड़ान के लिए इतना अधिक खर्च करना पड़ रहा है। जितने किराए पर तो वे विदेश जाकर वापस लौट सकते है। वैसे एयर लाइंस कंपनी मनमानी किराया यात्रियों से तत्काल टिकट के नाम पर वसूल रही है, राज्य सरकार का तो इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। पर राज्य सरकार के आला अफसर भी एयर लाइंस कंपनियों की मनमानी से हैरान है और इस की शिकायत डीजीसीए से करने पर भी विचार कर रही है।
और अब बस
छत्तीसगढ़ के पहले नेता प्रतिपक्ष पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राज्य सभा संासद नंदकुमार साय को उनकी वाहन लाक करने पर गुस्सा गया असल में पुलिस से उनका गुस्सा काफी पुराना है। एक टिप्पणी ... देर से आया पर गुस्सा तो आया आखिर!

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