Monday, December 17, 2012

मैने चिरागों की हिफाजत वहां भी की
सूरज के डूबने का जहां रिवाज न था

छत्तीसगढ़ की राजनीति तो मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के इर्द गिर्द ही दिखाई देती है। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में राज्य से स्टार प्रचारकों में दोनों नेता शीर्ष पर होंगे यह तय है।
छत्तीसगढ़ में 1980 में जनता सरकार के पतन के बाद जनसंघ ने अपने स्वरूप में परिवर्तन कर उसे भारतीय जनता पर्टी का नाम दे दिया वही समाजवादी पार्टी जनता दल के नाम से अस्तित्व में आई थी। 1980-85 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी और उनकी स्थिति 1967 की ही बनी रही थी। हालांकि नेटवर्क में विस्तार जरूर हुआ था। 1985 में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर के बावजूद भाजपा की ताकत बढ़ी वह 13 विधानसभा क्षेत्रों में विजयी रही थी। पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले चुनाव में भाजपा की ताकत बढ़ी थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के लिये सप्रे स्कूल के मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने पहली बार छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनाने का वादा किया था। राज्य बना, विधायकों की संख्याबल के नाम पर पहली सरकार कांग्रेस की बनी, अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। इधर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव के लिये प्रदेश की बागडोर सम्हालने तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस और डा. रमन सिंह को संगठन ने विधानसभा चुनाव कराने की पहल की उसके लिये केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़ने की शर्त थी। डा. रमन सिंह ने केन्द्रीय मंत्री का पद-मोह छोड़कर छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा की जिम्मेदारी सम्हाली और छग की जनता ने नया राज्य बनाने पर भाजपा को छग की बागडौर सौंप दी। डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने, पहली बार छग के भाजपा की सरकार बनी, गरीबो को एक और दो रूपये किलो चावल योजना सहित कई विकास योजनाओं के चलते तथा कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते दूसरा विधानसभा चुनाव परिणाम भी भाजपा की झोली में गया और डा. रमन सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और 7 दिसम्बर का उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपना 9 साल पूरा कर लिया है और वे कहते है कि आगामी विस चुनाव में जीतने के लिये उनके पास योजना है जिसे समय पर सामने लाएंगे। हालांकि डा. रमन सिंह ने 9 साल बतौर मुख्यमंत्री पूरा कर लिया है पर उनके खिलाफ आदिवासी एक्सप्रेस भी चलाई गई उपचुनाव में कांग्रेस की विजय को मुद्दा बनाकर उन्होंने घेरने का प्रयास उनकी ही लोगों द्वारा किया गया। उन्हें लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल सहित वरिष्ठ आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल  से हटाना, फिर शामिल करना पड़ा पर उनका कारवां जारी है। हालांकि उन पर नौकरशाही द्वारा सरकार चलाने का आरोप भी लगता रहा है पर अभी तक तो उन्होंने बेरोकटोक सफर शुरू रखा है। उन्हें सुनील कुमार जैसे इमानदार और अनुभवी मुख्य सचिव भी मिल गया है जिससे नौकरशाह नियंत्रण में है सामने तो प्रदेश में रेल कारीडोर, उद्योग सम्मेलन सहित कई विकास योजनाओं की घोषणा और उनके क्रियान्वयन में भी सफलता मिलती जा रही है। वैसे मंत्रिमंडल के कुछ साथी भी डा. रमन सिंह से नाखुश है पर भाजपा हाई कमान का मानना है कि डा. रमन सिंह का चेहरा ही छग में भाजपा के रूप में पहचाना जाता है और यह चेहरा आगामी लोकसभा-विधानसभा में पहले से बेहत्तर परिणाम हासिल करेगा। वैसे डा. रमन सिंह 9 साल के कम समय में भारत के कई राज्यों में भाजपा की पहचान बन चुके है तभी तो गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश बिहार, हिमाचल में भी चुनाव के समय इन्हें आमंत्रित किया जाता है। वैसे केन्द्र में प्रतिनिधित्व की भी बात समय समय में उठती रहती है। उनकी छवि के चलते ही उन्हें प्रधानमंत्री के योग्य प्रत्याशी के रूप में शामिल करने में कोई गुरेज नहीं है। मप्र के उद्योग मंत्री विजय वर्गीय ने तो डा. रमन सिंह को प्रधानमंत्री बनने योग्य ठहरा भी दिया है।
जोगी का रहना, नहीं रहना!
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पहले मुख्यमंत्री आईएएस, आईपीएस अफसर रहे अजीत जोगी भले ही विवादों में रहते है पर उनकी छत्तीसगढ़ में पकड़ से उनके विरोधियों सहित सत्ताधारी दल भाजपा के नेता भी इंकार नहीं करते हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तथा अविभाजित मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, केन्द्र सरकार में एक मात्र मंत्री तथा छग के एक मात्र लोकसभा सदस्य डा. चरणदास महंत भी वरिष्ठ नेता है। आदिवासी नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम भी है हालांकि वे कांग्रेस छोड़कर तीसरा मोर्चा बनाने प्रयत्नशील है। वरिष्ठ विधायक तथा नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, वरिष्ठ विधायक तथा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल आदि भी है पर इनमें से एक भी भीड़ जुटाऊ और उसे वोटों में तब्दील करने की उतनी क्षमता नही रखता जितनी क्षमता अजीत जोगी में है।
भैसावृत्ति!
अजीत जोगी के एक भैसा प्रसन्ग की चर्चा अपनी सायकिल बिगड़ने पर मित्र की सायकल से घर आ रहे थे। सायकल वे स्वयं चला रहे थे,  गौरेला-पेण्ड्रा में भदोरा-दत्ताप्रेय टेकरी के बीच ढलान पर जब वे आ रहे थे तब भैसो की टोली सामे आ गई। त्वरित निर्णय लेकर वे दो भैसों क बीच से सायकल निकाल रहे थे पर भैसों की सीग मारने की वृत्ति के शिकार होकर घायल हो गये थे। आज के हालात में भी जब वे मंजिल की ओर बढ़ने का प्रयास करते है तो सींग मारने की प्रवृत्ति के लोग सींग मारने से बाज नहीं आते है, वे तो अब भैसावृत्ति से बचने का रास्ता सीख चुके है पर अब उनके बेटे अमित जोगी सींग मारने की वृत्ति का शिकार हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने में सफल अजीत जोगी व्हील चेयर्स में है फिर भी उनके खिलाफ अफवाह का बाजार हमेशा गर्म रहता है। कभी अफवाह फैलती है कि वे बहुजन समाज पार्टी में जा रहे है कभी उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने का मामला उछाला जाता है, हद तो यह है कि किस राज्य के राज्यपाल बन रहे है इसका भी दावा किया जाता है। कभी सोनिया-राहुल से उनके मतभेद बढ़े उन्हें मिलने का समय नहीं मिला ऐसी चर्चा होती है। पर हाल ही में राहुल गांधी द्वारा अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर यही साबित किया कि कांग्रेस में अजीत जोगी का क्या स्थान है। कांग्रेस की सर्वोच्च टीम कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी है अजीत जोगी। इस कमेटी में आजतक विद्याचरण शुक्ल और उनके अग्रज स्व. श्यामाचरण शुक्ल को शामिल नहीं किया गया जबकि कभी शुक्ल बंधु कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं के नाक के बाल माने जाते थे।
कांग्रेस में जोगी विधायक है उनकी पत्नी डा. रेणु जोगी विधायक बनती आ रही है, उनके कई समर्थक विधायक चुनकर आ रहे है। हालत यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, उपनेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम पराजित हुई। विद्याचरण शुक्ल द्वारा टिकट दिलवाये गये एक मात्र प्रत्याशी संतोष अग्रवाल भी पराजित रहे। सवाल यही उठ रहा है कि यदि जीतने योग्य प्रत्याशी को टिकट दिया जाता, भाई भतीजावाद को प्रश्रय नहीं दिया जाता और इन नेताओं का जनाधार मजबूत होता तो ये सभी विजयी होते ऐसे में कांग्रेस की सरकार क्यों नहीं बनती? बस्तर कभी कांग्रेस का गढ़ था वहां महेन्द्र कर्मा, अरविन्द नेताम, मनकूराम सोढ़ी जैसे मजबूत कांग्रेसी नेता पिछले चुनाव में थे फिर भी कांग्रेस को केवल एक विधानसभा का में ही सफलता मिली और उसके लिये भी कवासी लखमा की अपनी छवि ने ज्यादा असर दिखाया था। बहरहाल जोगी रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी और जोगी नही रहेंगे तो कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी ऐसी चर्चा को जोगी तो कामन है। वैसे केन्द्रीय नेतृत्व को यह तय करना होगा कि जोगी नहीं तो कौन?
दिग्गी की सक्रियता
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मप्र सहित छत्तीसगढ़ में जल्दी ही सक्रिय होने की चर्चा है। सूत्र कहते है कि दिग्गी राजा तो यदि छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया जाय तो कांग्रेस की गुटबाजी कम जरूर हो सकती है। अविभाजित मप्र के 10 साल मुख्यमंत्री रहते हुए उनके छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेसी नेताओं से अच्छे संबंध है। वर्तमान नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल उनके मंत्रिमंडल के सदस्यरह चुके है तो अजीत जोगी और दिग्गी राजा के राजनीतिक गुरू भी अर्जून सिंह रह चुके हैं। केन्द्रीय राज्य मंत्री डा. चरणदास महंत कभी उनके मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके है तो उन्ही की सलाह पर पहली बार डा. चरण को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से भी उनके संबंध बहुत अच्छे नही तो बुरे भी नहीं है।
बहरहाल दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ के ठाकुर रमन सिंह पर भी हमला तेज कर दिया है। भोपाल में हाल ही पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह ने माओवादियों से समझौता किया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान जिन क्षेत्रों में माओवादियो ने मतदान बहिष्कार का ऐलान किया था वहां 70 से 80 प्रतिशत मतदान हुआ जिसमें 90 प्रतिशत मत भाजपा को मिले है। उन्होंने आरोप लगाया कि डा. रमन सिंह और भाजपा के संस्कार संस्कृति लेनदेन के हैं। खैर बात आरोप की नहीं। इस बयान से यह तो स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस हाईकमान की नजर भी बस्तर में है। वैसे भी बस्तर के चुनाव परिणाम छत्तीसगढ़ की सत्ता की कुंजी है यह तो तय है।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन पुलिस अधीक्षकों के फेरबदल की चर्चा है। वैसे अब जिलों की कमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को नही सौंपने का भी निर्णय हो चुका है।
0 छत्तीसगढ़ मंत्रालय में प्रमुख सचिवों के भी बदलने की चर्चा है। एक प्रमुख सचिव से एक बड़ा विभाग वापस लिया जाना तय माना जा रहा है। लोक आयोग की लताड़ के बाद भी वे नहीं सुधरे हैं।

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