Saturday, November 24, 2012

सरहदों पर तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या!

देश में मध्यावधि चुनाव होने की अटकल के बीच उसी के साथ कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने की चर्चा आम है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव होना है। सत्ताधारी दल भाजपा सहित प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की सक्रियता शुरू हो गई है। आम जनता को भी अब अपने बढ़ते महत्व का एहसास हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का ध्यान अब आदिवासी क्षेत्रों सहित शहरी मतदाताओं पर अधिक है। युवाओं को भी लुभाने अब राज्य सरकार लोक लुभावन योजनाएं शुरू करने का दावा कर रही है। छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा क्षेत्रों में 29 आदिवासी बाहुल्य है और उसमें से भी 21 सीटों पर भाजपा के विधायक काबिज हैं। आदिवासी अंचल बस्तर की 11 विधानसभा सीटों में 10 भाजपा के पास है। केवल एक सीट पर कांग्रेस के विधायक चुने गये थे। हाल ही में आरक्षण के मामले में राज्य सरकार की घोषणा के बाद सतनामी समाज सहित आदिवासी समाज भी कुछ नाराज है। सलवा जुडूम के बाद बढ़ती नक्सली गतिविधियां नक्सलियों के आतंक के चलते गांव छोडऩे वाले आदिवासी अब सलवा जुडूम कैम्प लगभग बंद होने से बेघर वार है वही आदिवासी क्षेत्रों की जमीन उद्योगपतियों को जबरिया देने से भी समाज नाखुश है। बस्तर में सभी जिलों में कांग्रेस प्रदर्शन, गिरफ्तारी की स्थिति के चलते सरकार कुछ चितिंत है। सरकार आदिवासियों को चावल योजना के बाद चना वितरण, कूप कटाई का लाभांस 15 से 20 प्रतिशत करने की घोषणा की वही बांस कटाई का पूरा लाभांष आदिवासियों को देने की घोषणा कर चुकी है। वही किसानों को नया पृथक कृषि बजट, एक प्रतिशत ब्याज पर किसानों को ऋण पांच हार्स विद्युत पर छह से सात हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क देकर साधने का प्रयास कर रही है वहां धान के एक-एक दाना खरीदने की बात भी कर रही है।
भाजपा युवाओं को भी जोडऩे का प्रयास कर रही है। उद्योग पतियों को राज्योत्सव में आमंत्रित करके एमओयू करके प्रदेश के हजारों नौकरियों का सपना तो दिखा रही है वही हाल ही में युवाओं को उनके रूझान के चलते टेबलेट देने की घोषणा कर भी रिझाने का प्रयास कर रही है। कम्प्यूटर शिक्षा के बढ़ते के्रज के चलते यह योजना युवाओं को निश्चित ही आकर्षित करेगी।
आज से ही राज्य सरकार ने शहरी मतदाताओं को रिझाने शहरी क्षेत्रों में सुराज अभियान शुरूकर चुकी है। गांव के चलाने वाले सुराज अभियान और शहरी क्षेत्रों में शुरू सुराज अभियान में बड़ा फर्क है। एक तो शहरी मतदाता शिक्षित एवं जागरुक होते है दूसरा शहरी मतदाता सफाई, सड़क, पेयजल और बिजली की समस्या को लेकर परेशान है। वैसे डा. रमन सिंह का यह अभियान कितना सफल होकर शहरी मतदाताओं को रिझाता है इसका पता तो बाद में ही चलेगा पर एक बात जरूर है कि शहरी क्षेत्र के विधायक, मंत्री 4 साल पूरा होने के बाद अपने मतदाताओं से रूबरू होंगे जाहिर है उन्हें मतदाताओं की समस्या और आक्रोश से रूबरू होना पड़ेगा।
कांग्रेस की तैयारी
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मात्र डेढ़ फीसदी अधिक मत लेकर प्राप्त कर सत्ता का सुख हासिल कर लिया था। मात्र डेढ़ फीसदी के अंतर के कारण भाजपा इस चुनाव में कुछ चिंतित है तो कांग्रेस यह गड्डा आसानी से पाटने की कवायद शुरू कर चुकी है। यह ठीक है कि नंद कुमार पटेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में उत्साह तो जागा ही है, उनके नेतृत्व में जिस तरह प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, धरना, आंदोलन तथा रैलियां हुई है उसने कांग्रेस में जान फंूक दी है। कांग्रेस ने लगातार भटगांव कोल ब्लाक के गलत आबंटन का मुद्दा उठाया और केन्द्र सरकार ने वह आबंटन निरस्त करने की सिफारिश कर दी यह कोल खदान भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती को आबंटित की गई थी। कांग्रेस का तो सीधा आरोप था कि यह खान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के दबाव में दी गई थी खैर कांग्रेस ने भाजपा का विरोध तो किया पर जनहित के मुद्दे पर उसे और भी जमकर संघर्ष करना होगा। सरप्लस बिजली वाले प्रदेश में आम उपभोक्ता को महंगी बिजली दी जा रही है, नगरीय निकायो में नलों से दिया जाने वाला पानी महंगा हो गया है, राजधानी में ही सड़कों की हालत खस्ता है, धान खरीदी में अनियमितता, खाद का संकट, कालाबाजारी , मिलावट आदि कुछ आम जनता से जुड़ी बातें है, कांग्रेस ने आंदोलन तो किया पर रस्म अदायगी की,
कांग्रेस के पास पुराने समर्पित कांग्रेसी नेताओं, कार्यकर्ताओं की फौज है पर नंदकुमार पटेल ने उन्हें जोडऩे भी कुछ खास मेहनत नही की। पवन दीवान का छग में अच्छा जनाधार है पर उनसे मिलने का भी समय नहीं निकाल पाये, यह तो एक उदाहरण है ऐसे कई नेता और कार्यकर्ता जिनसे क्षेत्र में कांग्रेस को पहचाना जाता था वे उपेक्षित हैं। हां, कुछ जनाधार विहीन और अखबारी नेता जरूर उनके आसपास सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस अध्यक्ष यदि पुराने उपेक्षित कांग्रेसियों को ही सक्रिय कर लेंगे तो डेढ़ प्रतिशत मतो का गड्डा पाटना कठिन नहीं होगा?
कांग्रेस आलाकमान मध्यावधि चुनाव का संकेत दे चुका है। कांग्रेसी पर्यवेक्षक उसेण्डी प्रदेश का दौरा करके प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र से 3-3 युवाओं की पैनल बनाने टोह ले रहे हैं। सूत्र कहते है कि मप्र, छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों मे ंलोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने की भी चर्चा है। छत्तीसगढ़ मे ंकांग्रेस के विधायक अधिक चुने जाते हैं पर पिछले  दो लोकसभा चुनावों में केवल एक सांसद ही बन रहा है। जबकि विधायकों की संख्या के आधार पर कम से कम 4-5 सांसद बनने चाहिये थे। सूत्र कहते है कि यदि लोस-चुनाव एक साथ होंगे तो कांग्रेस को लाभ हो सकता है।
तीसरे मोर्चे को झटका
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संस्थापक , 4 बार सांसद तथा 2 बार विधायक रह चुके ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन से प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने के अभियान को झटका लगा है। साहू समाज में अपना अहम स्थान रखने वाले ताराचंद साहू के प्रयास से ही अरविंद नेताम, पुरूषोत्तम कौशिक, पूर्व विधायक मनीष कुंजाम, एनसीपी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक नोबल वर्मा, पूर्व मंत्री डीपी धृतलहरे, बसपा के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक दाऊराम रत्नाकर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक हीरा सिंह मरकाम आदि का एक मंच पर एकत्रित होकर कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ एक तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू की थी और उसके सूत्रधार थे स्व ताराचंद साहू। सूत्र कहते है कि तीसरे मोर्चे की तैयारी, प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की थी। बहरहाल ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन के बाद तीसरे मोर्चे के गठन पर कुछ गतिरोध आया है। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने हालांकि पिछले विस चुनाव में खाता तो नहीं खोला था पर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराई थी। वैसे भी कांग्रेस-भाजपा पर राष्ट्रीय स्तर पर जो आरोप लग रहे है ऐसे भी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता से राजनीति सूत्र भी इंकार नहीं कर रहे हैं।
अजीत जोगी और चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा मीडिया में छाये रहते हैं। कभी उनके कांग्रेस छोडऩे की चर्चा उछलती है तो कभी उनके कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के महासचिव तथा पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी से बढ़ती दूरियां की खबर उछलती है कभी उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाने की चर्च गर्म होती है, कभी वे प्रदेश के प्रभारी सचिव बी.के. हरिप्रसाद पर नाराजगी जाहिर करते हुए चर्चा में रहते हैं। चर्चा और खबरों में रहने की कला अजीत जोगी अच्छे से जानते हैं। कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी के प्रदेश में रहते छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती है कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी जैसा जनाधार वाला कांग्रेसी नेता छत्तीसगढ़ मे ंदूसरा नहीं है। कभी अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के प्रदेश दौरे से प्रदेश के कुछ बड़े कांग्रेसी नेताओं के परेशान होने की भी खबर मिलती है। वैसे हाल ही में कांग्रेस आलाकमान द्वारा चुनाव घोषणा पत्र संबंधी उप समिति में अजीत जोगी को शामिल किये जाने की घोषणा के बाद उनके समर्थक उत्साहित है तो विरोधी नेता नाखुश। देश की जनता की नब्ज पहचानकर चुनाव घोषणा पत्र बनाने वाली कमेटी में अजीत जोगी को शामिल करने का मतलब साफ है कि वे कम से कम छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज तो पहचानते ही है। पिछले विस चुनाव में मात्र डेढ़ प्रतिशत कम मत हासिल करने के कारण कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा था। कई प्रमुख नेता पराजित हो गये थे। नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, उप नेता  भूपेश बघेल, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की पुत्री सभी पराजित हो गये थे। क्या सभी प्रमुख लोगों को अजीत जोगी ने टिकट दिलवाई थी खैर चुनाव घोषणा पत्र उप समिति में शामिल करने पर जोगी समर्थक उत्साहित है तो विरोधी यह कह रहे है कि उप समिति में शामिल करके जोगी को प्रदेश की राजनीति से दूर करने की रणनीति हैं। सवाल फिर उठ रहा है कि यदि प्रदेश की राजनीति से अजीत जोगी को मान लो दूर भी किया जाता है तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरण दास महंत, नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे या किसी अन्य के?
सुनील कुमार और दिल्ली
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, अपनी इमानदार छवि और सख्त अफसर के रूप में चर्चित सुनील कुमार को देश के 30 अच्छे सीआर वाले अफसरों की सूची में शामिल करके केन्द्रीय सचिव के रूप में इन्पैनलमेंट किया है। हालांकि स्वास्थ्य अधिकारी इसका खंडन कर रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव सुनील कुमार मार्च 2014 तक मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सम्हालेंगे। वैसे वे चाहे तो 17-18 माह का सेवा काल बचे होने के कारण केन्द्रीय सचिव पद पर जा सकते है क्योंकि केन्द्रीय सचिव पद के लिये कम से कम एक साल का समय अनिवार्य होता है। वैसे केन्द्रीय सचिव के पास प्रदेश की कुछ सरकारों से 8-10 गुना बजट अधिक होता है पर सुनील कुमार को तो बजट से कोई मतलब नही होता है। उनके छत्तीसगढ़ में मुख्य सचिव बनने के बाद कुछ राजनेताओं सहित कुछ आला अफसरों का बजट ही विबगड़ रहा है। वैसे पंजाब के राज्यपाल तथा केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्व. अर्जून सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, कलेक्टर अजीत जोगी, पूर्व मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल आदि के साथ कार्य करने वाले सुनील कुमार डा. रमन सिंह के साथ छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक प्रमुख का कार्यभार सम्हाल रहे हैं। वैसे अपनी नौकरी की शुरूवात बस्तर-अबूझमाड़ से करने वाले सुनील कुमार ने अपने कैरियर का प्रारंभ-विज्ञापन एजेन्सी और मीडिया के कार्य से किया था। जब अपनी आईएएस की नौकरी की शुरूवात उन्होंने बस्तर से की थी तब वहां बिजली भी नहीं थी और लालटैन की रोशनी में रात में काम होता था। अबूझमाड़ को उस दौरान कुछ दिन वहां जाकर उन्होंने बूझने का प्रयास भी किया था।
और अब बस
0 सुराज अभियान में आपत्ति के बाद महापौर किरण मयी नायक की होडिंग्स में फोटो हाटकर निगम का लोगों चस्पा किया जा रहा है...एक टिप्पणी...ऐसे में अगला विधानसभा चुनाव के दावे का क्या होगा? फोटो होने से आम जन कम से कम पहचानना तो शुरू ही कर देते।
0 नगर निगम को मच्छड़ मारने 95 लाख मिले थे और खर्च हुए सिर्फ एक लाख... सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी चौकाने वाली है। लगता है कि निगम के जनप्रतिनिधि और अधिकारी जीव हत्या के खिलाफ है तभी तो मच्छड़ों की आबादी बढ़ती ही जा रही है।
0 अगला पुलिस महानिदेशक कौन होगा राम या संत, वैसे भाजपा को संतों से अधिक राम से प्यार है इसलिये राम की संभावनाएं अधिक दिखाई दे रही हैं।


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