Tuesday, May 22, 2012

मैं तो छोटा हूं, झुका दूंगा कभी भी अपना सिर
सब बड़े तय तो कर लें, कौन है सबसे बड़ा!

अखंड कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में हालत अच्छी तरह देखकर समझकर गये है कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी। राजधानी के करीब 10 घंटे के प्रवास के दौरान उन्होंने युवा कांग्रेसियों, राष्ट्रीय छात्र संगठन के नेताओं सहित स्थानीय निकाय के निर्वाचित पदाधिकारियों के कार्यक्रमों में शिरकत की वही कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों से भी चर्चा की और कभी कांग्रेस के गढ रहे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत के लिये कौन जिम्मेदार है इसका तो अहसास उन्हें हो ही गया है।
वैसे लगता है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के पास छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत की जानकारी लगातार पहुंचती रहती है। छत्तीसगढ़ आने के पूर्व ही उन्होंने अच्छा होमवर्क किया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अंतर्कलह, गुटबाजी, बड़े नेताओं के बीच अहम की लड़ाई, शह और मात का खेल उनकी जानकारी में था छग की जनता की कांग्रेस में अपेक्षा और उम्मीदें, कांग्रेस नेता उसके मुकाबले कहां खड़े है यह सब आंकलन करके आये थे राहुल। वैसे तो कांग्रेस के युवराज ने पांच कार्यक्रमों में एक ही दिन में शिरकत की पर वे सभी कार्यक्रमों में कांग्रेस की स्थिति की टोह ही लेते रहे। सभी जगह अपने संबोधन में उन्होंने एक ही बात कही प्रदेश की जनता कांग्रेस के साथ है वह भाजपा के कुशासन से मुक्त होना चाहती है लेकिन प्रदेश के कांग्रेसी एक जुट नही है। अगर सभी कांग्रेस के नेता एकजुट होते तो 2008 का विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता नही मिलती। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनाने वे यहां कभी भी आ सकते है। जरूरत होगी तो माओवादी क्षेत्र बस्तर-सरगुजा भी जाएंगे उन्होंने वैसे एक तरह से कांग्रेसियों को एक जुट होने का संकेत भी दे दिया है। उन्होंने तो राजधानी के हालात देखकर स्पष्ट चेतावनी भी दे दी कि भाषण बाजी से परिवर्तन नहीं होता कार्यकर्ताओं में अनुशासन की कमी है और बड़े नेताओं में भी एकता नही है यदि अभी नही संभले तो बाहर ही बैठना पड़ेगा। उनकी चेतावनी का क्या असर दिखाई देता है इसका पता तो बाद में ही चलेगा वैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के कई गुट है। विद्याचण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी के अलग-अलग गुट है और प्रदेश कांग्रेस संगठन के छोटे बड़े नेता, विधायक इन्ही गुटों के इर्द गिर्द ही दिखाई देते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कांग्रेस के विधायक अपनी जीत के लिये कांग्रेस पार्टी को नहीं स्वयं को जिम्मेदार मानते है तो हार का ठीकरा किसी न किसी बड़े नेता, उनके गुट पर फोड़ते हैं। 2008 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा स्वयं पराजित हो गये जिन्होंने टिकट वितरण में प्रमुख भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता मोतीलाल वोरा के पुत्र तीसरी बार विस चुनाव में पराजित हो गये। नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा केवल अपनी सीट नहीं हारे बल्कि बस्तर में कांग्रेस की लुटिया पुन: डूबा दी। कांग्रेस के युवा नेता तथा कुर्मी समाज के बड़े नेता होने का दम पाल बैठे भूपेश बघेल भी विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव हार गये। छग के एक मात्र सांसद तथा वर्तमान में केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत के घर में कांग्रेसी प्रत्याशी पराजित हो गया। आदिवासी नेता तथा हाल ही में देश में आदिवासी राष्ट्रपति की वकालत करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम अपनी पुत्री को टिकट तो दिलवा सकें पर उसे विजयी बनाने में सफल नहीं रहे। बस्तर में केवल एक सीट कवासी लखमा ने जीतकर कांग्रेस की लाज बचाई, कभी वहां कांग्रेस का ही बोलबाला रहता था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा राकांपा जाकर 2003 में विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी लड़ाकर भाजपा के लिये सस्ता सुख का मार्ग प्रशस्त करने वाले विद्याचरण शुक्ल ने राजधानी से संतोष अग्रवाल को टिकट दिलवाई थी और उनके एकमात्र प्रत्याशी भी पराजित हो गये। हालात यह है कि बड़े नेताओं की पहल पर उनके रिश्तेदारों या उनके समर्थकों को कांग्रेस आलाकमान ने टिकट दी और हालात सामने है। क्या कांग्रेस में टिकट वितरण के लिये कोई नया तरीका इजाद किया जाएगा या फिर वही पुरानी दबाव की रणनीति हो चलेगी वैसे राहुल गांधी के युवाओं के प्रति विश्वास से ऐसा लगता है 2013 के विस चुनाव में युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी बहरहाल राहुल की चेतावनी के बाद भी कांग्रेस के मठाधीशों की नींद टूटती है या नही यह देखना है।
विपक्ष की भूमिका पर सवाल
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन के साथ ही विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस के विधायक दल की कार्यप्रणाली पर भी एक तरह से उंगली उठा दी है। इंडोर स्टेडियम में युवक कांग्रेसियों के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पर खनिज सम्पदा लूटने का आरोप मढा। उन्होंने कहा कि छग की भाजपा सरकार प्रदेश की खनिज सम्पदा लूटने में लगी है। यहां की हवा, पानी और बिजली तो बेच ही रही है साथ ही जमीन के अंदर की संपदा को भी बेचना से गुरेज नहीं किया। राहुल ने कहा कि कुछ लोग छत्तीसगढ़ को गरीब राज्य के रूप में प्रचारित कर रहे है लेकिन छत्तीसगढ़ बेहद संपन्न राज्य है। राहुल के मुताबिक यहां की धरोहरों के समुचित दोहन करने की आवश्यकता है। यह दायित्व राज्य सरकार का है। भाजपा सरकार लूट मचा रखी है तो कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि राज्य सरकार के इन कामों को रोकना होगा। प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं का महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन जाती है कि सरकार के इन कदमों का विरोध कर राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिये इस सम्पदाओं के सही तरीके से दोहन करना होगा।
राहुल गांधी के इस तरह के बयान का यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि प्रदेश में कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका से भी वे संतुष्ट नहीं दिखाई देते हैं। प्रदेश सरकार के गलत कदम का विरोध विधानसभा में सख्त तरीके से किया जा सकता है पर लगता है कि विपक्ष की भूमिका से भी वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। वैसे कुछ बड़े कांग्रेस नेताओं के साथ भाजपा के बड़े नेताओं से मधुर संबंधी की चर्चा भी आम है। बहरहाल प्रदेश में राहुल का एक दिवसीय प्रवास और सलाह के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि कुछ बदलाव भी हो सकते हैं। बदलाव राष्ट्रपति चुनव के पहले होंगे या बाद में यह कहा नहीं जा सकता पर एक बात तो तय है कि प्रदेश के कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका से राहुल गांधी कम से कम खुश तो नहीं है।
प्रथम नागरिक की उपेक्षा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की प्रथम नागरिक महापौर डा. किरणमयी नायक की भी संगठन ने उपेक्षा की। उन्हें न तो राहुल गांधी के साथ मंच पर बैठने दिया गया और न ही संबोधन का अवसर दिया गया स्थानीय निकाय के कार्यक्रम में भिलाई की महापौर श्रीमती निर्मला यादव को जरूर उद्बोधन का अवसर मिला बस इसी बात से डा. किरणमयी नायक नाराज है। उन्होंने अपनी नाराजगी राहुल गांधी के सामने व्यक्त जरूर की परन्तु मंच पर बैठने नहीं देने या संबोधन नहीं करने देने के स्थान पर प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी की शिकायत कर दी। उन्होंने राहुल गांधी से सीधी बातचीत करके प्रदेश में चल रही गुटबाजी को उभारकर बड़े नेताओं की फजीहत करने में कोताही नहीं बरती। वैसे चुनाव के समय विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, डा. चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा से आर्शीवाद लेने वाली महापौर चुनाव जीतने के बाद कभी उधर रूख ही नहीं किया। अब तो कहा जाता है कि किसी बड़े कांग्रेसी से यदि सिफारिश कराई जाती है तो निगम में काम ही नहीं होता हैं।
और अब बस
० कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में चुनाव जीतने के टिप्स दिये। एक खबर..। प्रतिक्रिया अरूण वोरा को चौथी बार चुनाव में विजयी होने टिप्स देने की अधिक जरूरत है।
० मंत्री लता उसेण्डी के घर पर हमला से एक सुरक्षा गार्ड की मौत हो गई नये पुलिस कप्तान ने कुछ अन्य कर्मियों को निलंबित किया। डबल स्टोरी भवन बनाने के चक्कर में वहां सुरक्षा कर्मी के खड़े होने रहने की जगह नहीं है तो सुरक्षाकर्मी कहां खड़े होकर सुरक्षा करेंगे।


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