Tuesday, December 20, 2011

खुले आम सजा कौन दे रहा है
निर्दोष का पता कौन दे रहा है
बाजार में हो रही है सरेआम हत्या
सल्फी का मजा कौन ले रहा है

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरनारायण सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आदिवासी समाज की 32 फीसदी आरक्षण एवं संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के नाम पर आयोजित रैली ने सरकार के कान खड़ेे कर दिये हैं। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल ने आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण देने की सैद्धांंतिक सहमति बना ली है पर प्रदेश में इससे कुल आरक्षण 58 प्रतिशत हो जाएगा जबकि सर्वोच्च न्यायालय 50 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में पूर्व में फैसला दे चुका है। एक-दो राज्यों में जरूर आरक्षण का प्रतिशत 50 से ऊपर है पर वहा बकायदा आयोग बनाकर, परीक्षण कर लागू किया गया है।
'एक वीर एक कमान सभी आदिवासी एक समानÓ इस नारे के साथ आदिवासी समाज के 34 संगठनों ने छत्तीसगढ़ के 10 स्थानों पर रैली और सभा लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप मढ़ा है। रैली, सभा में जारी पर्चे में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का एक तिहाई 66.19 लाख आदिवासी जनसंख्या है, हमारी बदौलत ही सरकार बनती है फिर भी शासन-प्रशासन को सबसे अधिक अपमान और पीड़ा आदिवासी समाज को झेलनी पड़ती है। सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (4), 16(4) (क) (ख), 46, 47, 48(क), 49,225, 243(घ,ड़), 243 (य, ग), 244(1), 275, 330, 332, 335, 338, 339, 342 तथा 5 बी अनुसूची में अनुसूचित जातियों के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास के पर्याप्त प्रावधान के बावजूद आदिवासी समाज का अपेक्षित विकास क्यों नहीं हो रहा है। आरोप तो यह भी लगाया गया है कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के क्रियान्वयन की बजाय आदिवासी समाज को 1-2 रुपए किलो चावल में खरीदने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि 32 प्रतिशत आरक्षण शासकीय नौकरियेां सहित शिक्षण संस्थाओं में भी लागू किया जाए।
छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 धारा 165(6) के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों द्वारा क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध है पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बस्तर में टाटा एस्सार, रायगढ़ एवं जशपुर जिले में जिंदल, कोरबा जिले में बालको और वेदांता तथा सरगुजा जिले में भारी उद्योग लगाने भूमि अधिग्रहित कर आबंटित की जा रही है जिससे आदिवासी भूमि स्वामी दर-दर की ठोकर खाने मजबूर हैं। भू अर्जन अधिनियम 1884 यथा संशेधित 1994 में शासकीय प्रयोजनों जैसे तालाब, सड़क, रेल पटरी आदि के निर्माण हेतु भूअर्जन का प्रावधान था पर सरकार लगातार, संशोधन कर निजी कंपनियों के लिये भूमि अधिग्रहित कर माटीपुत्र आदिवासियों को बेदखल कर रही है। इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों के नगरीय निकायों में असंवैधानिक चुनाव कराकर 3 नगर निगम, 7 नगर पालिका तथा 264 पार्षदों के पद छीनकर गैर आदिवासियों को दे दिया गया है। इसके अलावा फर्जी प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं करने, आदिवासियों को नक्सली समर्थक मानकर प्रताडि़त करने, फर्जी मुठभेड़ में हत्या कराने, जेल में बंद करने का भी आरोप सरकार पर लगाया है।
वीसी-बैस की हालत
एक जैसी!
छत्तीसगढ़ में सबसे वरिष्ठ सांसद बनने का गौरव पाने वाले विद्याचरणश्ुाक्ल तथा रमेश बैस की हालत कुछ एक जैसी ही है। विद्याचरण शुक्ल फिलहाल सांसद नहीं है पर रमेश बैस सांसद हैं पर क्रमश: केन्द्र की सरकार और राज्य की सरकार में दोनों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
विद्याचरण शुक्ल कांगे्रस के वरिष्ठ नेताओं में से एक है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ उन्हें काम करने का अनुभव है। 1957 बलौदाबाजार लोस से अपनी राजनीतिक पारी बतौर सांसद उन्होंने शुरू की थी और 1966 में पहली बार संसदीय कार्य तथा संचार मंत्रालय में उपमंत्री बने थे। उसके बाद गृह, वित्त, रक्षा योजना, सूचना एवं प्रसारण, नागरिक आपूर्ति सहकारिता, विदेश, जल संसाधन तथा संसदीय कार्य जैसे कई मंत्रालय का कार्य सम्हाला। हालांकि कांगे्रस छोड़कर विद्याचरण शुक्ल जनमोर्चा, राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी सहित भाजपा का भी चक्कर लगा चुके हैं। बतौर भाजपा प्रत्याशी वे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी महासमुंद से पराजित भी हुए थे। उन्हें प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार नहीं देने में सहयोग देने के नाम पर भाजपा नेतृत्व ने उपकृत किया था पर बतौर भाजपा प्रत्याशी पराजय के बाद वे कांगे्रस में लौट आए हैं। कांगे्रस में वापसी के बाद उनकी स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पिछले लोस चुनाव ें वे महासमुंद से कांगे्रस की टिकट चाहते थे पर वहीं से अजीत जोगी ने भी टिकट के लिये दबाव बनाया था और दोनों को टिकट नहीं मिली। हां पिछले विधानसभा चुनाव में उनके एकमात्र समर्थक संतोष अग्रवाल को जरूर रायपुर की एक विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया था पर वे भी पराजित रहे। ऐसा लगता है कि अपनी ही पार्टी में पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं।
छत्तीसगढ़ में पार्षद विधायक होकर लोकसभा का सफर तय करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश बैस वरिष्ठ सांसद है। ब्राह्मणपारा से वे पिछले 78-83 पार्षद चुने गये फिर 1980 में वे मंदिर हसौद से विधायक बने। 1989, 96, 98, 99, 2004, 2009 में वे रायपुर लोकसभा से चुने गये। पूर्व मुख्यमंत्री पं.श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने का भी श्रेय उनके खाते में दर्ज है। यही नहीं इस्पात एवं खनन रसायन एवं उर्वरक, सूचना एवं प्रसारण, पर्यावरण एवं वन, मंत्री भी वे केन्द्र में रहे। भाजपा और आरएसएस के वे स्थापित नाम हैं।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़कर प्रदेश में पहले विस चुनाव की बागडोर उन्हें सौंपने की पहल हुई थी पर उनके स्थान पर डॉ. रमन सिंह ने वह चुनौती स्वीकार कर ली और पिछले 8 साल से लगातार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड पूरा कर रहे हैं। रमेश बैस और प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया के बीच मनभेद कई बार सार्वजनिक हो चुके हैं। पार्टी मंचों सहित कुछ अन्य मंचों पर सरकार की कार्यप्रणाली पर रमेश बैस प्रहार भी कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की है तो सीमेंट के बढ़ते दामों पर चिंता प्रकट करते हुए आंदोलन तक की धमकी दे डाली है। वही तीरदांजी संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी नाराजगी खेल संघ के संचालक आईपीएस अफसर से है। वैसे ये वही अफसर हैं जिन पर फर्जी नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का आरोप पहले भी लग चुका है। रमेश बैस ही हालत तो यह है कि प्रदेश सरकार के अफसर उनकी सिफारिशों को तवज्जो नहीं देते हैं कुद मंत्री तक उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। बहरहाल कांगे्रस तथा भाजपा के दोनों वरिष्ठ नेताओं की हालत कुछ एक जैसी ही है।
हम साथ-साथ हैं!
छत्तीसगढ़ के आला पुलिस अफसर एक साथ तभी दिखाई देते हैं जब मुख्यमंत्री या केन्द्रीय गृह मंत्री आकर कोई बैठक लेते हैं इसमें भी केवल मुख्यालय में पदस्थ अफसर शामिल होते हैं या जिला मुख्यालयों में तैनात अफसर शामिल होते हैं पर प्रतिनियुक्ति में गये पुलिस अफसर, साथ-साथ कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। पर हाल ही में एक समारोह में पुलिस के कई आला अफसरों को साथ-साथ देखकर सुखद अनुभूति ही हुई। छत्तीसगढ़ होमगार्ड के खेल समापन समारोह में गवर्नर शेखर दत्त, गृहमंत्री ननकीराम कंवर पहुंचे थे और उन्हीं के साथ जेल महानिरीक्षक संतकुमार पासवान, एडीसी उपाध्याय, आईजी पी एन तिवारी, संजय पिल्ले, आनंद तिवारी, बी एस मरावी, देवांगन पहुंचे थे। प्रदेश के मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन सार्वजनिक समारोह में कम ही दिखाई देते हैं पर वे भी वहां पहुंचे थे। कार्यक्रम में डीजी होमगार्ड विश्वरंजन तथा आर सी पटेल तो बतौर आयोजक वहां पहुंचे थे। कहा जाता है कि आईजी होमगार्ड आर सी पटेल के अनुरोध पर सभी अधिकारी वहां गये थे। चलो प्रयास किसी का भी हो सभी पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी अच्छा संकेत है। हां होमगार्ड में कभी डीजी रहे तथा अब पुलिस डीजी बने अनिल नवानी की अनुपस्थिति जरूर चर्चा में रही।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ सरकार के करीबी एक चिकित्सक ने बाल आश्रम में कब्जा करने काफी मेहनत की यह बात और है कि उन्हें सफलता नहीं मिली।
(2)
छत्तीसगढ़ में चल रहे पर्चा विवाद पर कुछ आर एस एस, भाजपा नेता चिंतित हैं। चर्चा है कि एक बड़े नेता के इर्द-गिर्द रहने वाले ही एक नेता पर शक क सुई पहुंच रही है पर आरएसएस का करीबी होने के कारण उन्हें दण्ड भी तो नहीं दिया जा सकता है।
(3)
मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने डॉ. रमन सिंह पर कोई आरोप नहीं लगाया है। इसका खुलासा भी आनन-फानन में कर दिया एक टिप्पणी... हम सभी ठाकुर साथ-साथ हैं।

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