Sunday, May 1, 2011

आईना-ए-छत्तीसगढ़

सच बात मान लीजिये चेहरे पर धूल है

इल्जाम आईनों पर लगाना फिजूल है


छत्तीसगढ़ के सभी राजनीतिक-दलों का सपना रहा है कि देश-प्रदेश के सामान्य जन को इस तरह शिक्षित और चेतना संपन्न बनाएंगे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों की पहचान करने में सक्षम हो जाएगा और रास्ते की बाधाओं से लडऩे के काबिल भी होगा। वे कामयाब नहीं हुए। राजनैतिक दल लोक तांत्रिक- पद्धतियों से सत्ता तक पहुंचने में तो सफल हो गए, किन्तु उनसे उनका सपना छूट गया। छूट गया तो वे उसके लिए व्याकुल और बेचैन नहीं हुए। उन्होने खूबसूरत बहानों को तर्क की तरह इस्तेमाल करना सीख लिया।
'गरीबी मिटानेÓ और 'रामराज्यÓ लानेवाली राजनीतिक-शक्तियों को तो यह भी नहीं पता कि किन औजारों से ऐसा संभव होगा। वे इतने खुश है कि एक मोहक-नारा आखिरकार लोगों को ठग लेने में सफल हो सकता है। करोड़ों लोगों की राजनीतिक ठगी को सत्ता के मात्र एक कार्यकाल के लिए भी वाजिब मान लेने से भी उन्हें गुरेज नहीं। वे बार-बार ठगने के लिए नेपथ्य से तैयार होकर चले आ रहे हैं। एक बड़ा ठग दूसरे ठग को पछाड़ देता है तो इसे भी यह गुमान हो जाता है कि वह जन भावनाओं का प्रतिनिधि हो गया है। उधर, दूसरी ओर एक ऐसा प्रयोग चल रहा है, जिसका उद्देश्य न तो क्रांति करना है और न ही सत्ता में पहुंचना। वे वाम या दक्षिण विचार से भी प्रेरित नहीं हैं। हां, इतने चेतन संपन्न अवश्य है कि उनके भीतर समाज की वर्तमान सूरत बेचैनी पैदा करती है। वे भी बदलने के लिए मु_िïयां कसना जानते हैं। खैर नक्सलवादी जैसी शहरी निस्ठा से ओत-प्रोत यथार्थवादी आंदोलन भी अपनी प्रारंभिक आभा दिखाकर अकाल मौत का शिकार हो गया है।

सुराज अभियान

बहरहाल अंतिम मनुष्य तक पहुंचने के महान उद्देश्य को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह हर साल के 52 सप्ताह में 2 सप्ताह 'सुराज अभियानÓ के तहत सरकारी अमले सहित जन प्रतिनिधियों को छत्तीसगढ़ के सभी गांव तक पहुंचने का निर्देश देते हैं वे स्वयं भी उडऩखटोले से किसी भी गांव में अचानक पहुंचते हैं और ग्रामीणों से रूबरू होते हैं, उनके सुख-दुख की चर्चा करते हैं, सरकारी योजनाओं की अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की समीक्षा करते हैं, ग्रामीणों की समस्याओं का त्वरित निराकरण करते हैं। पर इस बार सुराज अभियान में कुछ स्थानों पर विरोध का सामना दल को करना पड़ रहा है। ग्रामीणों का आक्रोश है कि पिछले सुराज अभियान के तहत दिये गये आवेदनों और आश्वासनों का क्या हुआ। दरअसल सुराज अभियान के बाद मिले आवेदनों की समीक्षा जरूरी है और निदान की भी कोशिश होनी चाहिए।
सवाल यह उठ रहा है कि गांवो की बात तो दूर कितने बड़े अफसर जिला मुख्यालयों में जाते हैं इस अभियान के तहत मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन को कम से कम कुछ गांवों की हालत का अवलोकन तो करा ही दिया है। वैसे डा. रमनसिंह ने यह भी अपेक्षा है कि पुलिस महानिदेशक आई विश्वरंजन को भी एकाध दिन उडऩखटोले में ले जाकर छत्तीसगढ़ के कुछ गांव तथा वहां के हालात का अवलोकन जरूर करा दें। छत्तीसगढ़ गांवो में बसता है, यदि गांवों का विकास हुआ तो छत्तीसगढ़ को विकसित राज्य बनने से कोई रोक नहीं सकता है। एक छोटे से गांव ठाठापुर में जन्मे डा. रमनसिंह गांवों की पीड़ा से वाकिफ हैं पर उनके दो मजबूत स्तंभ मुख्य सचिव और डीजीपी की तो केवल राजधानी में ही रूचि है, ये दोनो अफसर किसी जिला मुख्यालय में कभी साथ साथ गये हैं? नक्सलप्रभावित क्षेत्र में गये हैं, कभी रात्रि विश्राम राजधानी छोड़कर किसी जिला मुख्यालय में किया है ऐसा कोई समाचार अभी तक नहीं मिला है। वैसे डा. रमनसिंह को अफसरशाही पर नियंत्रण अब तो रखना ही होगा अन्यथा सुराज अभियान जैसे अच्छे उद्देश्य से शुरू किये गये कार्य को अंजाम तक पहुंचाना कठिन ही होगा?

नई राजधानी का नामकरण

छत्तीसगढ़ की नई राजधानी आकार लेने को आतुर है। सरकारी अधिकारियों से लेकर कुछ नेता नई राजधानी में जल्दी स्थानांतरण का दावा करने में पीछे नहीं है। कोई कहता है कि छत्तीसगढ़ राज्योत्सव यानि नवम्बर 2011में कुछ कार्यालय वहां शुरू हो जाएंगे तो कोई कहता है कि जनवरी 2012 में नई राजधानी में सरकार वहीं से अपना निर्णय लेना शुरू कर देगी। बहरहाल सभी को प्रतीक्षा है कि देश के पिछड़े हुए क्षेत्र के नाम से कभी चर्चित छत्तीसगढ़ की अत्याधुनिक राजधानी कब अपना आकार लेगी और सरकार वहां कब से छत्तीसगढिय़ों के विकास के लिए निर्णय लेगी!
भारत की राजधानी जब दिल्ली बनी तो दिल्ली को ही विशेष रूप से विकसित किया गया और 'नई दिल्लीÓ नाम दिया गया। वैसे जिस भी राज्य में नई राजधानी किसी बड़े शहर के पास विकसित की गई तो उसे नया नाम दिया गया। हां अविभाजित म.प्र. में जरूर ओल्ड भोपाल, न्यू भोपाल का नाम दिया गया और लगता है कि अभी भी हम अविभाजित म.प्र. की मानसिकता से बाहर नहीं आये हैं तभी तो हम नई राजधानी का नाम 'नया रायपुरÓ देने प्रयासरत हैं। भारत के एक प्रमुख प्रदेश गुजरात की नई राजधानी अहमदाबाद से कुछ किलोमीटर दूर बनी और महात्मागांधी की याद में उस नई राजधानी का नाम 'गांधीनगरÓ दिया गया उसी तरह मां कामाख्या की नगरी गुवाहाटी के पास नई राजधानी विकसित की गई और उसका नाम दिया गया 'दिसपुरÓ । छत्तीसगढ़ की नई राजधानी निर्माणाधीन है। रायपुर शहर से कुछ किलोमीटर दूर स्थित इस नई राजधानी को अभी से 'नया रायपुरÓ नाम दिया जा रहा है कहीं यह इसी नाम से ही चर्चा में न आ जाए वैसे अभी से राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ की गरिमा के अनुरूप नाम दिया जाना जरूरी है। वैसे नामकरण के संबंध में एक उदाहरण रायपुर शहर के 700 बिस्तर अस्पताल का भी है। पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृत्ति चिकित्सा महाविद्यालय से संबंद्ध यह अस्पताल पहले डीके अस्पताल (दाऊ कल्याण सिंह) के नाम से जाना जाता था क्योंकि दाऊजी ने इसकेलिए बड़ा दान दिया था। बाद में इस अस्पताल को मेडिकल कालेज का नया भवन बनने पर सेन्ट्रल जेल के सामने स्थानांतरित कर दिया गया तथा मरीज बिस्तरों की संख्या भी 700 कर दी गई इसके बाद वहां नामकरण की राजनीति चली। किसी ने डा. आम्बेडकर के नाम पर तो किसी ने इंदिरा गांधी के नाम पर नामकरण करना चाहा,डा. अम्बेडकर की मूर्ति की भी अस्पताल के सामने स्थापित हो गई। सियासत के चलते आज तक विधिवत इस अस्पताल का नामकरण नहीं हो सका है। कोई मेकाहारा (मेडिकल कालेज हास्पिटल रायपुर) कहता है तो कोई 700 बिस्तर अस्पताल कहता है वहीं कुछ लोग पहले की तरह आज भी इसे बड़ा अस्पताल कहते हैं। छत्तीसगढ़ की नई राजधानी का नामकरण करने अभी से प्रयास किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ का पुराना नाम दक्षिण कौसल रहा है। दक्षिण कौसल (वर्तमान छत्तीसगढ़) का साम्राराज्य श्री राम के पुत्र कुश को मिला था। महाराजा कुश ने इस राज्य की राजधानी का नाम 'कुशावतीÓ रखा था। तब रतनपुर, मल्हार तथा सिरपुर आदि विकसित नहीं हुए थे ऐसा जानकार कहते हैं जाहिर है उस समय रायपुर-बिलासपुर आदि का तो नामो निशान ही नहीं था। महाराजा कुश के वंशज हजारों वर्षो तक दक्षिण कौसल में राज्य करते रहे। महारानी कौशल्या के पिता , श्रीराम के नाना , मामा का पहले यहां राज्य रहा है। इसी कारण ही छत्तीसगढ़ में मामा-भांजा का रिश्ता काफी पवित्र और सम्मानजनक माना जाता है। इतिहास कहता है कि महाराजा नाग्नाजित की राजधानी जांजगीर-चांपा जिले के 'कोसलाÓ में थी संभवत: यही कुशावती का परिवर्तित नाम हो। बहरहाल नई राजधानी का नाम 'कुशावतीÓ भी रखा जा सकता है वही नई राजधानी में 'नया रायपुरÓ कहने की जगह कोई और भी अच्छा नाम दिया जा सकता है जिससे छत्तीसगढ़ के प्राचीन गौरवांवित इतिहास की झलक लोगों को मिलेगी साथ ही नही राजधानी को नये नाम के साथ भी पहचान मिलेगी।

और अब बस

(1)

एक वरिष्ठï आला अफसर की पत्नी ने तलाक ले लिया। तलाक का प्रमुख कारण पति-पत्नी और 'वोÓ था। बहरहाल वह आला अफसर अभी तक नहीं सुधरे हैं हाल ही में उन्होंने एक महिला कर्मी का जबरिया हाथ पकड़ लिया था ऐसी चर्चा है।

(2)

बस्तर लोकसभा उपचुनाव कश्यप परिवार सहित डा. रमनसिंह, अजीत जोगी के लिए प्रतिष्ठïा का सवाल है, साथ ही छत्तीसगढ़ की भावी राजनीति का भी संकेत होगा।

(3)

अधिकारियों के एक स्वयंभू नेता बने एक प्रगतिशील अधिकारी की भी जन्मतिथि में सफेदा लगाकर फेरबदल कराने की चर्चा है।

No comments:

Post a Comment