Monday, February 13, 2012



आइना ए छत्तीसगढ़
मैं वो दरिया हूं, हर बूंद है भंवर जिसकी
तुमने अच्छा ही किया, मुझसे किनारा करके मुंतजिर हूं, सितारों की जरा आंख लगे चांद को छत पर बुला लूंगा इशारा करके

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और इसके मुखिया डॉ. रमन सिंह पर नौकरशाही पर नियंत्रण नहीं रखने का आरोप लगता रहा है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस तो शुरू से ही आरोप लगाता रहा है कि प्रदेश के नौकरशाह नियंत्रण में नहीं हैं। सरकार उनकी लगाम खींच नहीं पा रही है। प्रदेश की सरकार को नेता नहीं नौकरशाह ही चला रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भी तब का विपक्ष यही आरोप लगाता था कि अजीत जोगी पूरे प्रदेश में कलेक्टरी कर रहे हैं। सभी जिलों के जिलाधीश ही जिलों का नियंत्रण कर रहे हैं और मंत्री केवल पदनाम के लिये ही बने हैं। खैर डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने के बाद नौकरशाही भारी रही पर दूसरी बार प्रदेश के बागडोर सम्हालने के बाद डॉ. रमन सिंह ने बेलगाम नौकरशाही पर नियंत्रण का प्रयास शुरू कर दिया है। उन्होंने कुछ अफसरों के पर कांटे तो कुछ को उनकी सही जगह भी पहुंचाया है। डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के उन्मूलन के लिये आईबी में पदस्थ रहे विश्वरंजन को उनकी शर्तों पर छत्तीसगढ़ लाया तो बाद में उन्हें हटाने में भी कोई संकोच नहीं किया। विश्वरंजन को डीजीपी पद से हटाकर अनिल एम नवानी को नया डीजीपी बनाया और उनके कार्यों की भी समीक्षा की जा रही है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर और विश्वरंजन की सार्वजनिक बयानबाजी के कारण सरकार की छवि पर तो असर पड़ रहा था वहीं पुलिस प्रशासन में कसावट भी नहीं आ पा रही थी। हालांकि अनिल नवानी की तैनाती के बाद बयानबाजी का दौर तो थमा है पर 'कसावटÓ अभी तक नजर नहीं आ रही है।
मुख्यमंत्री ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करके छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ आईएएस अफसर बी के एस रे से पांच साल जूनियर पी जाय उम्मेन को मुख्य सचिव का दायित्व सौंपा था पर जॉय उम्मेन के समय भी प्रशासन में वह कसावट नहीं आ सकी जिसकी उम्मीद की जा रही थी। बीच में उनकी प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में जाने की खबर थी पर मुख्यमंत्री ने ही उन्हें रोका था पर कामकाज में सुधार नहीं आने पर उन्हें भी सेवानिवृत्ति के 3 माह पूर्व ही हटाने में कोई गुरेज नहीं किया गया। जॉय उम्मेन असल में सुनील कुमार के डी के एस मंत्रालय में पावरफुल बनने के बाद एक माह के अवकाश पर चले गये और सरकार ने सुनील कुमार को मुख्य सचिव बना दिया। अपनी स्वच्छ तथा ईमानदार छवि, अनुशासनप्रियता तथा काम से काम रखने के रूप में मशहूर होने के कारण सुनील कुमार को यह दायित्व सौंपा गया है। प्रदेश में प्रशासनिक कसावट लाने सभी 27 जिलों में जनोपयोगी कार्यों में गति लाने के नाम पर सुनील कुमार के मुख्य सचिव बनते ही डी के एस मंत्रालय में प्रशासनिक कसावट के संकेत मिलने शुरू हो गये हैं। प्रमुख सचिव से बाबू तक समय पर कार्यालय पहुंचने लगे हैं। आम लोगों को जरूर कुछ राहत की उम्मीद जागी है नहीं तो फाइलों की बात तो दूर बाबू और साहब के दर्शन भी नसीब नहीं होते थे।
छत्तीसगढ़ में नौकरी की शुरूआत
छत्तीसगढ़ राज्य 11 साल पहले बना और आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस के कुछ अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ कैडर ले लिया। इनमें से अधिकांश तो ऐसे भी हैं जिनका राज्य बनने के बाद ही छत्तीसगढ़ आगमन हुआ नहीं। कुछ अफसर जरूर अविभाजित मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ में पदस्थ रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ में अभी तक 6 मुख्यसचिव अपना कार्य कर चुके हैं और इनमें से कुछ तो अल्प समय के लिये राज्य बनने के पहले छत्तीसगढ़ में पदस्थ रहे हैं वहीं एक मुख्यसचिव तो राज्य बनने के 4 साल बाद ही पहली बार छत्तीसगढ़ आये थे। सातवें मुख्य सचिव सुनील कुमार ने तो आईएएस होने के बाद अपने कैरियर की शुरूआत ही बस्तर से की थी और रायपुर में भी कलेक्टरी की।
बहरहाल छत्तीसगढ़ को पहली बार सुनील कुमार जैसा मुख्यसचिव मिला है जिसे आदिवासी अंचल बस्तर से राजधानी रायपुर सहित छत्तीसगढ़ की अच्छी खासी जानकारी है क्योंकि छत्तीसगढ़ में इनकी पदस्थापना लंबी रही है।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्य सचिव रहे अरुण कुमार ने तो राज्य बनने के पहले 6 जुलाई 66 से 6 मई 67 तक बिलासपुर में अनुविभागीय अधिकारी, सहायक कलेक्टर के रूप में ही सेवाएं दी थी। उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात दूसरे मुख्य सचिव सुयोग्य कुमार मिश्रा तो एक अगस्त 72 से 2 जून 73 तक बिलासपुर में एडिशनल कलेक्टर का पदभार सम्हाला था। उसके बाद राज्य बनने के बाद ही उनकी वापसी हुई थी। छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्य सचिव अशोक कुमार विजयवर्गीय भी छत्तीसगढ़ बनने के पूर्व एक बार यहां पदस्थ रहे थे। वे अविभाजित मध्यप्रदेश में 4 नवंबर 80 से 24 दिसंबर 82 तक अतिरिक्त आयुक्त आदिवासी विभाग में ही कार्य कर चुके थे। चौथे मुख्य सचिव आर पी बगई भी अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर के संभागायुक्त का कार्यभार सम्हाल चुके थे।
पांचवे मुख्य सचिव तथा वर्तमान में योजना आयोग के उपाध्यक्ष शिवराज सिंह भी अविभाजित मध्यप्रदेश में 12 जुलाई 78 से 20 अगस्त 80 तक सक्षम अधिकारी, निगम प्रशासक का कार्यभार सम्हाल चुके थे। उसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ही उनकी वापसी हुई थी। छत्तीसगढ़ के छठवें मुख्यसचिव पद के लिये वरिष्ठता के आधार पर हालांकि बी के एस रे का दावा बनता था। वे छत्तीसगढ़ में राज्य बनने के पहले 26 दिसंबर 74 से एक सिंतबर 76 तक बिलासपुर में सहायक कलेक्टर, 6 जुलाई 81 से 9 फरवरी 84 तक राजनांदगांव में कलेक्टर रह चुुके हैं पर उनके स्थान पर उनसे 5 साल जूनियर आईएएस अफसर पी जॉय उम्मेन अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भी कभी भी छत्तीसगढ़ में पदस्थ नहीं रहे, नया राज्य बनने के 4 साल बाद ही छत्तीसगढ़ आये थे। मुख्य सचिव बनने के बाद भी वे कई जिला मुख्यालय भी नहीं गये थे। छत्तीसगढ़ के सातवें मुख्य सचिव सुनील कुमार 1979 बैच के आईएएस अफसर हैं। ये छत्तीसगढ़ के लिये जाना पहचाना नाम है। 18 फरवरी 1954 को जन्में सुनील कुमार ने तो अपनी नौकरी की शुरूआत ही छत्तीसगढ़ से की है। आईएएस कैरियर की शुरूआत में ही एक मई 80 से जुलाई 80 तक आदिवासी अंचल बस्तर (जगदलपुर) में बतौर सहायक कलेक्टर पद का दायित्व सम्हाला था। 6 सितंबर से दिसंबर 82 तक पुन: रायपुर में बंदोबस्त अधिकारी का कार्य भी किया वहीं 3 फरवरी 87 से 26 मार्च 88 तक रायपुर में बतौर कलेक्टर का कार्यभार सम्हाला। उस समय रायपुर जिले में ही वर्तमान में महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, बलौदाबाजार जिला आता था और छत्तीसगढ़ में 90 में 20 विधायक इस जिले का नेतृत्व करते थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे पहले मुख्यमंत्री के सचिव रहे वहीं जनसंपर्क सचिव का भी कार्यभार सम्हाला था।
तुझको सदाएं देंगी मंजिल
रास्ता आंख बिछाएगा
जिस दिन तू अपने पैरों पर
खुद चलने लग जाएगा

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री, आईपीयेस, आईएएस अफसर अजीत जोगी अब ई-लेग्स तकनीक से अपने पैरों पर न केवल खड़े हो सकेंगे वरन व्हील चेयर छोड़कर चल फिर भी सकेंगे। यह खबर सुखद ही है। इस खबर से उनके समर्थकों सहित कांगे्रस में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। वैसे भी अजीत जोगी के जानने वाले कहते है कि 'जोगी पैरों से नहीं हौसलों से उड़ान भरते हैंÓ। मौलाना अब्दुल कलाम इंस्टीट््यूट भोपाल से बी ई करने के बाद इंजीनियरिंग कालेज रायपुर में प्राध्यापक फिर आईपीएस तथा बाद में आईएएस करने वाले अजीत जोगी के कई रिकार्ड हैं। एमएसीटी में उन्हें मिले नंबरों का रिकार्ड अभी नहीं टूटा है तो आजाद भारत में लंबे समय तक कलेक्टर रहने का भी उनका रिकार्ड बना है। सरकारी नौकरी छोड़कर 2 बार राज्यसभा सदस्य, एक बार रायगढ़, महासमुंद से लोकसभा सदस्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री होने का भी उन्हें गौरव प्राप्त है। उस समय वे विधायक भी नहीं थे। महासमुंद लोकसभा चुनाव के दौरान गरियाबंद के पास अपै्रल 2004 में एक दुर्घटना के बाद उनके शरीर का निचला हिस्सा शून्य हो गया और वे व्हील चेयर के सहारे हो गये पर उसके बाद भी उन्होंने हौसला कायम रखा। उन्होंने देश-विदेश में एलोपेथी, आयुर्वेदिक सभी तरह का इलाज कराया पर उन्हें राहत नहीं मिली और आखिर उनका प्रयत्न सार्थक हुआ और न्यूजीलैंड की एक कंपनी ने ई-लेग्स तकनीक से रोबोटीय पैर तैयार कर जोगी के अपने पैरों पर खड़ा होने की उम्मीद बांध दी है। वैसे जोगी कहा करते थे कि 'मैं सपनों का सौदागर हूंÓ लगता है कि उनका सपना अब पूरा होने वाला है। वैसे यह भी कहा जा सकता है कि उनकी पुत्रवधु तथा अमित की पत्नी के भी चरण उनके लिये शुभ ही है क्योंकि पुत्रवधु ने गृहप्रवेश लिया और जोगी जी का स्वयं के पैरों पर चलने का सपना हकीकत में बदलने वाला है। वैसे व्हीलचेयर में बैठकर उन्होंने बतौर विपक्षी नेता सरकार को कई मोर्चों में चुनौती दी है अब और अधिक स्वस्थ होने के बाद वे सत्ताधारी दल से जमकर मोर्चा लेंगे। वैसे भी कहा जाता है कि घायल शेर जब उठता है तो और खतरनाक हो जाता है।
और अब बस
(1)
जनसंपर्क विभाग में कभी पदस्थ रहे एक आईएएस अफसर तथा प्रतिनियुक्ति में दूसरे विभाग में पदस्थ मातहत अफसर छत्तीसगढ़ में नये प्रशासनिक फेरबदल से काफी परेशान है। उन्हें विभाग बदलने की नहीं 'निपटÓ जाने का अंदेशा हो गया है।
(2)
प्रदेश में पति-पत्नी आईएएस के लिये अच्छी खबर है अब उनकी पदस्थापना पास-पास होगी जो योग्य होगा वह कलेक्टर होगा और जो उससे कम योग्य होगा वह मंत्रालय में पदस्थ होगा।
(3)
राजधानी में एक थानेदार एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड के थाने में पदस्थ हो चुका है उसे अब किसी मोटरबोट चलाने वाले जल क्षेत्र के थाने में पदस्थापना का इंतजार है।
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