Thursday, June 30, 2011

दर्द-आशनाई का क्या खूब ये मंजर देखा
खुद जख्म लगाते हैं, और खुद ही हवा देते हैं

छत्तीसगढ़ में कुछ प्रशासनिक और पुलिस के अफसर समय की नजाकत भांप कर अपनी निष्ठïा बदलते रहते हैं यही कारण है कि अविभाजित मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार से अजीत जोगी और अब डॉ.रमन सिंह सरकार में कुछ अफसर खुशहाल हैं और अच्छे पदों पर नियुक्ति का जुगाड़ भी कर लेते हैं वहीं इन सरकारों में उपेक्षित अफसर अभी तक 'केवल नौकरी करना है इसलियेÓ नौकरी कर रहे हैं। आम जनता यह समझ नहीं पा रही है कि जोगी के शासनकाल में विपक्ष के निशाने पर रहे अफसर भाजपा की सरकार बनने के बाद इस सरकार के साथ कदमताल करने में सक्षम कैसे हो गये हैं। बहरहाल कुछ सालों से 'विकल्प नहीं हैÓ यह जुमला चल पड़ा है। सत्ता के गलियारे में 'डॉ.रमन सिंह का विकल्प नहींÓ तो विपक्ष के गलियारे में 'अजीत जोगी का विकल्प नहींÓ यह चर्चा आम है। अब तो डीजीपी विश्वरंजन, मुख्यसचिव जॉय उम्मेन का विकल्प नहीं मिल रहा है यह जुमला भी उछाला जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में एक शब्द काफी चर्चा में है 'विकल्प नहीं है।Ó

छत्तीसगढ़ में पिछले 7 सालों से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्हालने वाले डॉ. रमन सिंह के सद्व्यवहार और उनकी नीति से खुश होकर भाजपा आलाकमान कहता है कि उनका विकल्प नहीं है। कभी छत्तीसगढ़ में चुने गये विधायकों की बदौलत अविभाजित मध्यप्रदेश में कांगे्रस की सरकार बनती थी उसी छत्तीसगढ़ में कांगे्रस की हालत देखकर पुराने कांगे्रसी भी शरमा जाते हैं। तमाम विरोध के बावजूद छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बनाये गए थे। पिछले 2 विधानसभा चुनावों में कांगे्रस की पराजय के बाद आम कांगे्रसी यही कहता है कि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी का कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि वे न केवल स्वयं विधायक बनते आ रहे हैं। वहीं उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी भी विधायक बन रही हैं। भाजपा की सरकार होने के बावजूद डॉ. रमन सिंह के गृहक्षेत्र राजनांदगांव लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने बाबा देवव्रत को विजयी बनाकर एक चुनौती तो खड़ी कर चुके हैं यह बात और कि हाल ही में बस्तर लोकसभा उपचुनाव में उनका पसंदीदा प्रत्याशी कवासी लखमा पराजित हो गया। पांच वर्षों तक नेता प्रतिपक्ष रहे तथा मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार महेंद्र कर्मा पिछले चुनाव में भाजपा के नये-नये प्रत्याशी से चुनाव हार गये वहीं हाल ही के बस्तर लोकसभा उपचुनाव में उनके निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा को बड़ी लीड मिली है। मोतीलाल वोरा राष्टï्रीय स्तर के नेता हैं पर उनका पुत्र अरुण वोरा लगातार दुर्ग विधानसभा से पराजित हो रहा है। विद्याचरण शुक्ल ने कभी केन्द्र में एकतरफा चलाई थी पर पिछले विस चुनाव में उन्होंने संतोष अग्रवाल को रायपुर ग्रामीण से टिकट दिलवाया था, वे पराजित रहे। आदिवासी नेता अरविंद नेताम की तो बेटी पिछला विस चुनाव हार चुकी हैं। कांगे्रस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा तो स्वयं ही चुनाव हार चुके हैं। हां, तत्कालीन कांगे्रस के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत जरूर छत्तीसगढ़ से एक मात्र सांसद बनने में सफल रहे। पर उनका ज्यादा समय तो दिल्ली और भोपाल में ही कटता है। ऐसी स्थिति में यदि आमजन कहते है कि अजीत जोगी का विकल्प नहीं है तो गलत नहीं कहते हैं। जहां तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, रविन्द्र चौबे की बात है तो वे आमजनों की कसौटी पर खरा नहीं उतर सके हैं। कांगे्रस अध्यक्ष बने वरिष्ठ विधायक नंदकुमार पटेल से अब कांगे्रसियों को आशाएं हैं वैसे उनका आक्रामक रवैया लोगों को भा रहा है पर उनके आक्रमण की धार कब तक ऐसी पैनी बनी रहेगी यह देखना है। वैसे कई धड़ों में बंटी छत्तीसगढ़ कांगे्रस को वे एकजुट करने का अनवरत प्रयास कर रहे हैं।

बैस का विकल्प नहीं

छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस का भी कोई विकल्प नहीं है। ब्राह्मïणपारा के पार्षद से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने वाले रमेश बैस अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक भी बने तथा फिर सांसद बनकर केन्द्रीय राज्यमंत्री तक का सफर पूरा किया और अभी लोकसभा में भाजपा संसदीय दल के मुख्य सचेतक हैं। रमेश बैस का विकल्प न तो भाजपा के पास है और न ही कांगे्रस के पास। कांगे्रस पार्टी के दिग्गज नेता तथा मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री रह चुके स्व. पंडित श्यामाचरण शुक्ल के साथ ही उनके अनुज तथा कई वर्षों तक केन्द्र में मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल को लोकसभा चुनाव में पराजित करने का श्रेय रमेश बैस के खाते में है। कांगे्रस के बुजुर्ग नेताओं को पराजित करने वाले बैस ने पिछले चुनाव में कांगे्रस के युवा नेता भूपेश बघेल को भी पराजय का स्वाद चखाया है।
भारतीय जनता पार्टी में पार्षद विधायक और सांसद होकर केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले रमेश बैस छत्तीसगढ़ में जरूर उपेक्षित से रहते हैं। कई बार वे राज्य सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने में भी परहेज नहीं रखते हैं। प्रदेश सहित देश के वरिष्ठï सांसदों में बैसजी की गिनती होती है पर जहां भी गलत देखते हैं वे उसकी खिलाफत करने में पीछे नहीं रहते हैं। हाल ही में एक चैनल से साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया कि राज्य सरकार काम तो अच्छा कर रही है पर जनता उतना नहीं जुड़ रही है जितना अभी तक जुडऩा चाहिए था। खैर उन्होंने कहा कि अभी ढाई साल का समय विधानसभा चुनाव को है और हम तक तक और भी सब ठीक-ठाक कर लेंगे।

इनका भी विकल्प नहीं है?

छत्तीसगढ़ में विकल्प नहीं मिलने की बात निचले स्तर पर भी है। डॉ. रमन सिंह का विकल्प नहीं मिल रहा है यह तो तय है, पर डॉ.रमन सिंह के सामने 'विकल्प नहीं मिलने की समस्या सामने है।Ó
प्रोटोकाल के हिसाब से किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के बाद गृहमंत्री वरिष्ठïता क्रम में दूसरे नंबर पर होते हैं। अभी आदिवासी नेता ननकीराम कंवर यह जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। पिछले एक डेढ साल से लगातार गृहमंत्री बदले जाने की चर्चा होती रही है कहा तो यह भी जा रहा है कि अगला मंत्रिमंडल फेरबदल 'गृहमंत्रीÓ बदलने ही किया जाएगा पर डॉ. रमन सिंह को खोजबीन के बाद भी कोई विकल्प नहीं मिल रहा है। बृजमोहन अग्रवाल, चंद्रशेखर साहू, अमर अग्रवाल, केदार कश्यप, राजेश मूणत, धरमलाल कौशिक सभी के नाम अगले गृहमंत्री के रूप में समाचार पत्रों की सुर्खियां बन चुके हैं पर नया गृहमंत्री बनने कोई तैयार नहीं है।
बढ़ती नक्सली वारदात और बिगड़ती कानून व्यवस्था के साथ वर्तमान पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के रहते कोई भी गृहमंत्री बनने तैयार नहीं है। ऐसे में नया गृहमंत्री बनने के लिये डीजीपी को बदलना पड़ेगा ऐसे में अपै्रल 12 तक या तो डीजीपी के सेवानिवृत्त होने का इंतजार करना होगा या उन्हें किसी संवैधानिक पद पर भेजा जा सकता है। पर नया डीजीपी कौन होगा इसका विकल्प सरकार के पास है। नक्सली क्षेत्र में लम्बे समय तक पदस्थ रहने वाले संतकुमार पासवान एक बार कार्यवाहक डीजीपी बनने वाले अनिल नवानी का विकल्प तो सरकार के पास है ही। वैसे अपनी उपेक्षा से राजीव माथुर प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में चले गये थे और वे पुलिस अकादमी हैदराबाद से सेवानिवृत्ति होने वाले हैं वैसे राज्य सरकार ने जिसे डीजीपी के लायक नहीं समझा वह एकेडेमी के अध्यक्ष बने और आईपीएस अफसर सीआरपीएफ के डीजी और अकादमी का संचालक बनना परम सौभाग्य समझते हैं।
मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन कुछ समय पूर्व प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाना चाहते थे पर उन्हें राज्य सरकार ने रोक लिया था क्योंकि सरकार के पास इनका भी विकल्प नहीं है। वैसे आदिवासियों की हितचिंतक होने का दावा करने वाली सरकार को क्या आदिवासी आईएएस नारायण सिंह योग्य नहीं लगते हैं, अपनी लम्बी आईएएस की पारी खेलने वाले, छत्तीसगढ़ में कई पदों पर कार्य करने वाले सुनील कुमार क्या इस पद के लिए उपयुक्त नहीं लगते हैं। खैर आसन्न विधानसभा सत्र में जब जांजगीर जिले के रोगदा बांध पर विधानसभा कमेटी अपनी रपट प्रस्तुत करेगी तब की किरकिरी को सम्हालना सरकार को ही पड़ेगा और इसके लिये मुख्य सचिव जॉय उम्मेन कम जिम्मेदार नहीं है क्योकि उनकी कार्यप्रणाली को लेकर ही विधानसभा की कमेटी बनाई गई है।

लांगकुमेर?

विकल्प बस्तर में पदस्थ पुलिस महानिरीक्षक टी.जे.लांगकुमेर का भी सरकार के पास नहीं है। बस्तर में सेनानी, पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, कार्यकारी महानिरीक्षक से महानिरीक्षक का कार्यकाल आईपीएस टी.जे. लांगकुमेर ने बस्तर में ही पूरा किया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से आज तक यानि करीब-करीब 11 साल का समय उन्होंने बस्तर में ही गुजारा है। सैकड़ों आदिवासियों सहित सुरक्षाबलों के जवानों की शहादत और उसके मुकाबले मु_ïीभर नक्सलियों को मुठभेड़ में मारने की घटना के गवाह हैं लांगकुमेर। कई अफसर आये, चले गये, सलवा जुडूम अभियान की शुरूआत और उसे पल-पल मरते देखने के इतिहास के भी ये साक्षी रहे। सलवा जुडूम केम्प पर नक्सलियों का हमला, विशेष पुलिस अफसर (एसपीओ) की ज्यादती, 76 सीआरपीएफ जवानों की शहादत, दंतेवाड़ा के सबसे बड़े जेल बे्रक भी इनके समय हुआ। बस्तर में 300 झोपडिय़ों के जलाने की घटना, संभाग कमिश्नर और कलेक्टर को घटना स्थल पर जाने से रोकने की बात सामने आई, कांगे्रस के 10 विधायकों को जनविरोध के चलते घटना स्थल पर पहुंचने नहीं दिया गया यह सभी ऐतिहासिक घटनाएं बन चुकी है। 76 सीआरपीएफ जवानों की शहादत पर लांगकुमेर पर भी जांच में छींटे पड़े पर वे वहीं पदस्थ हैं। असल में उनका विकल्प ही नहीं है ऐसा कहा जा रहा है क्या बस्तर में आईजी के रूप में पदस्थ होने प्रदेश में कोई और योग्य अफसर नहीं है? खैर विकल्प तो तत्कालीन आईजी डीएम अवस्थी का भी उस समय नहीं था पर मुकेश गुप्ता को उनका विकल्प बनाया गया और गुप्तवार्ता सहित रायपुर आईजी का काम-काज ठीक-ठाक तो चल ही रहा है।
साहेब बंदगी
दूर करो गंदगी
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस की जनजागरण रैली में पहली बार नेताओं की एकजुटता और भारी भीड़ से कांग्रेसी उत्साहित हैं तो सत्ताधारी दल भाजपा में पहली बार कुछ बेचैनी देखी गई है। कांगे्रसी नेताओं ने भाजपा की प्रदेश सरकार बेलगाम भ्रष्टïाचार, वादा खिलाफी तथा कानून व्यवस्था की बदतर स्थिति का आरोप लगाकर इसे उखाड़ फेंकने का आव्हान किया।
प्रदेश कांगे्रस प्रभारी के हरि प्रसाद ने भाजपा के वरिष्ठï नेता तथा पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष कहने पर आपत्ति करते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में कुछ घटनाएं शर्मनाक हुई हैं। उन्हें सरदार पटेल की तरह लौहपुरुष कहने की जगह 'डरपोक पुरुषÓ कहना चाहिये। वहीं प्रदेश के एक मात्र सांसद तथा कबीरपंथ समुदाय के डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि (स्वरूप भैया) स्वरूपचंद जैन ने अभी-अभी एक नया नारा दिया है 'साहेब बंदगी-दूर करो गंदगीÓ यानि हम अब गंदगी के साथ ही भाजपा सरकार रूपी भ्रष्टाचार की गंदगी दूर करने का आव्हान करेंगे।
वैसे कांगे्रस की इस विशाल रैली को लेकर कम से कम प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल काफी खुश हैं क्योंकि उनके अध्यक्ष बनने के बाद से कम से कम कांगे्रस के कई गुटों के नेता एक मंच पर तो दिखाई दे जाते हैं। देखना यह है कि वे अपनी टीम में बड़े नेताओं के समर्थक चापलूस नेताओं को स्थान देते हैं या कांगे्रस के प्रति समर्पित नेताओं को।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ में किसी उपचुनाव जीतने के लिये भाजपा के पास बृजमोहन अग्रवाल का कोई विकल्प नहीं है यह तो साबित हो ही चुका है।
(2)
छत्तीसगढ़ में आए एक सचिव स्तर के अधिकारी ने अपना आलीशान मकान शहर की एक पोश कालोनी में बनाया है। दरअसल छत्तीसगढ़ में रहने के लिये रायपुर का कोई विकल्प नहीं हैं।
(3)
कांगे्रस की विशाल रैली में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की अनुपस्थिति कुछ लोगों को जरूर खली। एक टिप्पणी:- साहब वहां मौजूद होते तो कई वहां पहुंचते ही नहीं।

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