Saturday, May 22, 2010

आइना ए छत्तीसगढ़

तमाम लोग हवाओं से बात करने लगे
वे कल्पना के परिंदों को मात करने लगे
जो शत्रु थे, वो लड़े युद्घ सामने आकर
हमारे दोस्त ही, पीछे से घात करने लगे

छत्तीसगढ़ की राजनीति में कभी शुक्ल बंधुओं का दबदबा था कहा जाता था कि इनके बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। फिर शुक्ल विरोधी गुट अर्जुन सिंह की सरपरस्ती में उभरा उसे दिग्विजय सिंह, अजीत जोगी जैसे नेताओं ने हवा दी और शुक्ल गुट के वंशवादी वृक्ष में मठा डालने का प्रयास किया गया। कांगे्रस की गुटबाजी के कारण ही कभी मध्यप्रदेश की सरकार छत्तीसगढ़ के विधायकों के भरोसे बनती थी उसी छत्तीसगढ़ में भाजपा लगातार 2 बार सरकार बनाने में सफल हो चुकी है। पर भाजपा में भी अब शह और मात खेल तेजी से चल रहा है। विद्याचरण शुक्ल को राज्यसभा टिकट के लिये जोर मारना पड़ रहा है तो छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन सकें। यह छत्तीसगढ़ में चल रही शह और मात के खेल का बड़ा उदाहरण है। छत्तीसगढ़ जैसे नवजात राज्य में राजनीति और कूटनीति की यह चाल राजनीतिक पार्टी को क्या नुकसान पहुंचाएगी यह तो नहीं कहा जा सकता है पर 'छत्तीसगढ़ का विकासÓ जरूर प्रभावित हो रहा है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी छत्तीसगढ़ का कुछ वर्षों से नेतृत्व नहीं होना भी चितंनीय ही कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ में कांगे्रस और भाजपा की राजनीति के दो योद्घा आजकल अपनी ही पार्टी में असहज हो गये हैं उनकी अपनी ही पार्टी में आजकल वैसी नहीं चल रही है जैसी चलनी चाहिए। 24 जनवरी 1966 से संसदीय कार्य एवं संचार मंत्रालय में उपमंत्री से अपनी केन्द्रीय राजनीति का आगाज करने वाले विद्याचरण शुक्ल ने गृह राज्य मंत्री, वित्त, रक्षा, सूचना एवं प्रसारण नागरिक आपूर्ति एवं सहकारिता, विदेश, जल संसाधन, संसदीय आदि मंत्रालय का कार्यभार सम्हाल चुके हैं। भारत की राजनीति में एक चर्चित नाम विद्याचरण शुक्ल से देश ही नहीं विदेश में भी लोग परिचित हैं। उन्हें हमेशा कांगे्रस का पर्याय समझा जाता था। वैसे केन्द्र की राजनीति में उन्हें हमेशा 'पीएम के बादÓ का ही दर्जा हासिल था। 1957 में पहली बार बलौदाबाजार लोकसभा से मिनीमाता के साथ वे भी चुने गये थे उस समय 2 सांसद चुनने का प्रावधान था उस समय सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले और उसके निकटवर्ती प्रत्याशी सांसद चुने जाते थे। 1957 के बाद 1962 से महासमुंद लोकसभा चुनाव में उन्होंने खूबचंद बघेल को पराजित किया था उसके बाद1964 का उपचुनाव जीता, 1967 में महासमुंद, 1971 में रायपुर 80, 84,89 से महासमुंद का चुनाव जीतते रहे केवल 1997 का चुनाव रायपुर लोस से विजयी रहे। वे 1977, 1997 का लोस चुनाव रायपुर से पराजित हो गये थे तो नया राज्य बनने के बाद 2004 का लोस चुनाव महासमुंद से बतौर भाजपा प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से हार गये थे। खैर 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ बगावत कर जनता दल गठित करने वाले नेताओं के साथ विद्याचरण शुक्ल भी थे। 1989 में वे जद प्रत्याशी के रूप में सांसद बने। पर उन्हें वीपी सिंह के मंत्रिमंडल के स्थान नहीं मिला पर कांगे्रस के समर्थन से चंद्रशेखर की बनी सरकार में वे जरूर कैबिनेट मंत्री बने थे। 1991 में वीसी की कांगे्रस में वापसी होती है और वे नरसिंह राव सरकार में कैबिनेट मंत्री बनते हैं। पर 96 के लोस चुनाव में उन्हें हवाला के नाम पर कांगे्रस प्रत्याशी नहीं बनाती है बाद में हवाला से न्यायालय द्वारा दोष मुक्त किये जाने के बाद 98 में उन्हें कांगे्रस पुन: लोस प्रत्याशी बनाती है लेकिन वे पराजित हो जाते हैं। उसके बाद वे 99 के लोस चुनाव में उनकी जगह श्यामाचरण शुक्ल को प्रत्याशी कांगे्रस पार्टी बनाती है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद विद्याचरण शुक्ल ने पहला मुख्यमंत्री बनने बड़ी लाबिंग की, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ उनके फार्महाऊस में अशोभनीय घटना भी उन पर भारी पड़ी, अजीत जोगी, दिग्विजय सिंह मजबूत होते गये और वीसी कमजोर। सन् 2004 के लोस चुनाव में वीसी शुक्ल के बतौर भाजपा प्रत्याशी महासमुंद से चुनाव लड़ा और कांगे्रस के अजीत जोगी से पराजित हो गये। उसके बाद वे फिर कांगे्रस में लौट गये पर उनकी स्थिति पहले जैसे नहीं रही। पिछले लोस चुनाव में महासमुंद से लोस टिकट चाहते थे, पर साहू समाज के एक ऐसे व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया गया जिसने पहली बार चुनाव लड़ा था। खैर उसकी पराजय भी हुई। अब विद्याचरण शुक्ल छत्तीसगढ़ से मोहसिना किदवई की रिक्त हो रही राज्य सभा के लिये प्रयासरत हैं वहीं उनका नाम अभी उभरा ही है कि अजीत जोगी भी सक्रिय हो गये हैं। कुल मिलाकर कभी देश, में प्रधानमंत्री के बाद की स्थिति रखने वाले वीसी शुक्ल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, लोकसभा टिकट के बाद अब राज्यसभा की टिकट के लिये संघर्ष कर रहे हैं जबकि कभी उनके आशीर्वाद से सांसद, विधायकों को टिकट मिला करती थी। वे कांगे्रस में तो हैं पर उपेक्षित ही हैं।अब भाजपा की बात करें। छत्तीसगढ़ की राजनीति में जनसंघ से लेकर भाजपा की बात करें तो एक नाम उभरता है रमेश बैस का। ब्राम्ह्मïणपारा वार्ड के पार्षद से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले रमेश बैस मध्यप्रदेश विधानसभा का सफर तय करके केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं। 1980 में मंदिर हसौद से विधायक बने रमेश बैस 1984 से 2004 तक लगातार रायपुर लोकसभा टिकट हासिल कर चुनाव लड़ रहे हैं और 89,96,98,99, 2003 और 2008 तक लोकसभा चुनाव में विजयी होते रहे हैं। उनके खाते में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल को भी पराजित करने का श्रेय है। केन्द्र में इस्पात एवं खान, रसायन एवं उर्वरक , सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहने का भी अनुभव है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले विस चुनाव में उन्हें ही सरकार बनाने की चुनौती देने का जिम्मा देने का प्रयास किया था पर उनकी अनिच्छा के चलते इस अवसर को डा. रमन सिंह ने लपक लिया, सरकार बनी और दूसरी बार डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने हैं। वैसे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद रमेश बैस का लगातार राजनीतिक बजन कम होता जा रहा है। प्रदेश की भाजपा सरकार के काम काज पर वे उंगली उठाने में पीछे नहीं है। हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में पिछड़ावर्ग की पैरवी कर उस वर्ग का अध्यक्ष बनाने की उनकी मांग भी खारिज हो गई और रामसेवक पैकरा जैसे एक अचर्चित नेता को अध्यक्ष की बागडोर सौंप दी गई। हालांकि रमेश बैक अब कह रहे हैं कि पैकरा के चयन के लिए उनसे राय ली गई? खैर मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और रमेश बैस के बीच मतभेद कई बार सार्वजनिक हो चुका है। प्रशासनिक अधिकारी भी इस बात की पुष्टिï करते हैं तो भाजपा के वरिष्ठï नेता भी।खैर पार्षद, विधायक, सांसद का सफर तक का केन्द्रीय मंत्री बनने वाले विद्याचरण -श्यामाचरण जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञों को उन्हीं के गृह नगर में पराजित करने वाले रमेश बैस को या उनके किसी पिछड़ा वर्ग के नेता को भाजपा का अध्यक्ष नहीं बनाना तो यही साबित करता है कि रमेश बैस के मुकाबले डा. रमन सिंह केन्द्रीय नेतृत्व के सामने अधिक मजबूत हैं।
और अब बस
(1)
कुछ वरिष्ठï कांग्रेसी अभी भी कहते है कि जब तक बेनी माधव तिवारी, रम्भू श्रीवास्तव आदि विद्याचरण शुक्ल के निजी सचिव थे तब तक ठीक था जब से राजेन्द्र तिवारी जैसे लोग जुड़े तब से भईया की राजनीतिक पराजय शुरू हो गई।
(2)
भाजपा के नेताओं का कहना है कि यह ठीक है कि राहुल गांधी का भाजपा में कोई विकल्प नहीं है पर छत्तीसगढ़ में रमेश बैस का विकल्प भी कांग्रेस के पास नहीं है हम इसी से खुश हैं।

2 comments:

  1. अरे वाह! आप भी ब्लॉग पर। अफसोस कि इतने दिनों तक देख ही नहीं पाया था मै आपका ब्लॉग।

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  2. bhai,
    blog par dekh kar achha laga. lage raho

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