ना मिले जख्म ना निशान मिले पर परिंदे लहु-लुहान मिले।
यही संघर्ष है जमीं से मेरा मेरे हिस्से का आसमान मिले॥
छत्तीसगढ़ के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर एक कनाडाई कंपनी के संचालक मीर अली ने रिश्वत मांगने का आरोप लगाया और प्रारंभिक जांच में ही यह आरोप छवि धूमिल करनेवाला ही साबित हो रहा है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने स्पष्टï किया कि सड़क ठेका देने का पूरा मामला केन्द्र सरकार का है और राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका ही नहीं है वैसे पता चला है कि नेशनल हाइवे 221 के जगदलपुर-कोण्टा के बीच निर्माण कार्य का ठेका केन्द्र ने मुंबई की नीरज सीमेंट स्ट्रक्चरल को दिया था और उसने किसी सुपर बिल्ड को पेटी कांट्रेक्ट दिया था। सुरक्षा निधि के रुप में सुपर बिल्ड ने ही 14 करोड़ रुपए सुरक्षा निधि के रुप में जमा कराए थे। समय पर काम नहीं होने पर केन्द्र सरकार के परिवहन मंत्रालय ने नीरज सीमेंट को ब्लेक लिस्टेड करके एक करोड़ रुपए जप्त कर लिए है वहीं 13 करोड़ की राशि राजसात करने की कार्यवाही भी शुरू कर दी है। केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के इस ठेके में राज्य के लोक निर्माण विभाग की भूमिका केवल नोडल एजेंसी की ही है। सुरक्षा निधि जब्त होने की कार्यवाही शुरू होने पर सुपर बिल्ड के मीर अली ने जरूर बृजमोहन अग्रवाल से कार्रवाई रोकने की मांग की, बाद में पीडब्ल्यूडी की ओर से पत्र लिखा गया कि उनकी कंपनी को ठेका नही दिया गया है। इसलिए पत्राचार करके बस इसी के बाद आरोप का दौर शुरू हुआ ऐसा लगता है ।
वैसे 19 अप्रैल 2010 को निविदा आमंत्रण के बाद 24 जून को नीरज सीमेंट स्ट्रक्चरल को 136 करोड़ का ठेका मिला। अक्टूबर 10 में मीर अली की कंपनी ने बिना ड्राइंग डिजाईन के काम शुरू किया पर नक्सलियों ने काम रोक दिया। इसके बाद 13 मई 2011 को केन्द्र ने नीरज सीमेंट को काली सूची में डाल दिया। 20 मई को एक करोड़ की बैक गारंटी जप्त कर ली गई। इसके बाद 20 जून 11 को सुपर बिल्ड ने बैंक गारंटी उनकी है यह पत्र लिखा जिस पर अधीक्षण यंत्री पीडब्ल्यूडी ने पत्र लिखा कि ठेका उनके नाम नहीं है इसलिए पत्राचार न करें। इसके बाद 24 जून 2011 को नीरज सीमेंट को नोटिस दिया गया और 30 जून 2011 को कंपनी की अनुबंध निरस्त कर दिया गया। वैसे इस मामले में कनाडाई अखबार टोरंटो स्टार के साऊथ एशिया ब्यूरो के रीक वेस्टहेड ने ई-मेल भेजकर मुख्यमंत्री सचिवालय और बृजमोहन अग्रवाल से पक्ष मांगा। इसी के बाद यह बात सार्वजनिक हुई। वैसे इस मेल में कहीं भी 10 लाख डालर मांगने का उल्लेख नहीं हे।
बहरहाल इस मामले में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी एम.के. राउत से जानकारी मांगने पर जरूर कुछ गलत फहमियां बढ़ी थी कि मुख्यमंत्री सीधे अपने मंत्री से क्यों पूछताछ नहीं की और इसी से तरह-तरह के कयास भी लगाने का दौर शुरू हो गया था खैर डा. रमन सिंह ने बृजमोहन पर लगाए गए आरोप को खारिज कर दिया है इसी को कहते है सूत न कपास और जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा।
परिवारवाद जारी
छत्तीसगढ़ में विजयी विधायकों के बल पर कभी अविभाजित म.प्र. से सरकार बना करती थी। जब म.प्र. में छत्तीसगढ़ अलग हुआ तब भी संख्या बल के आधार पर ही प्रदेश में पहली कांग्रेस की सरकार बनी और विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने तो विभाजन के बाद स्व. श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के रूप में 2 पूर्व मुख्यमंत्री हमें विरासत में मिले। पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में भाजपा की सरकार बनी और पिछले 2 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पराजय का सामना कर रही है तो लोकसभा में भी उसे पिछले दो चुनावों में एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा है पर लगता है कि कांग्रेस की अभी भी नींद खुली नहीं है। पिछली बार प्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधियों के चुनाव में अनियमितता के चलते सूची निरस्त हो गई थी पिछले बार आरोप लगाया गया था। दूसरे-दूसरे जिलों से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है पर इस बार नई सूची में भी ऐसा ही हुआ है। रायुपर जिले के या यो कहें कि रायपुर नगर के एक कांग्रेसी नेता को बिलासपुर संभाग से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। वहीं शहर के एक नेता को तो गरियाबंद से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है।
वैसे परिवारवाद छत्तीसगढ़ में अभी भी बदस्तूर चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को दुर्ग से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में लगातार पराजित होने वाले उनके बेटे अरुण वोरा को भी प्रदेश कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाया गया है। हाल ही में जारी प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची में मोतीलाल वोरा के बड़े बेटे अरविंद वोरा को भी प्रतिनिधि बनाया गया है। उनके भाई तो रायपुर से प्रदेश प्रतिनिधि हैं ही। हाल ही में दुर्ग जिले के कुछ कांग्रेसियों ने कांग्रेस हाईकमान का ध्यान आकर्षित किया है कि जाने-अनजाने में उनसे एक नाम छूट गया है। मोतीलाल वोरा की धर्मपत्नेी शांति वोरा का नाम भी प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची में शाामिल कर लिया जाए इससे हो सकता है कि चौथी बार दुर्ग विधानसभा से अरुण वोरा छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचने में सफल हो जाए।
केन्द्रीय राज्यमंत्री
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आखिर छत्तीसगढ़ के एक मात्र विजयी सांसद डा. चरणदास महंत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर ही लिया और डा. चरणदास को कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री का प्रभार मिला है। उनके काबीना मंत्री आदरणीय शरद पवार है और डा. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल या सोनिया गांधी के सामने शरद पवार की क्या हैसियत है यह किसी से छिपी नहीं है। वैसे केन्द्र में राज्यमंत्री की हालत क्या रहती है यह किसी से छिपी नहीं है। छत्तीसगढ़ से डा.रमेश बैस लंबे समय तक राज्यमंत्री रहे है वे स्वतंत्र प्रभार भी सम्हाल चुके हैं, अरविंद नेताम भी राज्यमंत्री रह चुके है। छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी कुछ माह केन्द्र में राज्य मंत्री का पद भार सम्हाल चुके हैं। उन्हें राज्यमंत्री के कामकाज और राज्यमंत्री के अधिकार और हैसियत की पूरी जानकारी है। तभी तो पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में उन्हें जब राज्यमंत्री का पद छोड़कर छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनकर चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव आया तो उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। बहरहाल प्रदेश के एक मात्र सांसद डा. चरणदास महंत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया गया है वे अर्जुन सिंह के जमाने में अविभाजित म.प्र. के कृषि मंत्री रह चुके है, उन्हें खेती-किसानी का भी अनुभव है। वे केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से तालमेल रखकर छत्तीसगढ़ में कृषि विकास पर जोर दे, कृषि आधारित शोध संस्थान की स्थापना कराएं साथ ही कृषि आधारित उद्योगों की प्रदेश में स्थापना की पुरजोर कोशिश करेंगे ऐसा लगता है।
नये डीजीपी की कवायद
छत्तीसगढ़ के नये डीजीपी अनिल एम.नवानी ने हाल ही में पुलिस मुख्यालय में पुलिस महानिरीक्षकों, उप महानिरीक्षकों, पुलिस कप्तानों सहित कमाण्डेंटों की बैंठक लेकर अपनी कार्यप्रणाली का खुलासा कर ही दिया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें रिजल्ट चाहिए। उन्होंने टीम वर्क पर जोर देकर पुलिस को पेशेवर बनाकर दक्षता में वृद्घि करके जनता का विश्वास का त्वरित निराकरण करने पर बल दिया। नये डीजीपी ने कानून के दायरे में रहकर नक्सलियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के भी निर्देश दिए है। बैठक में एक तरह से नये डीजीपी ने पुलिस में सुस्ती, अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करने की अपनी मंशा जाहिर कर दी वहीं पुलिस को दायरे के भीतर ही काम करने की हिदायत भी दे दी है।
अपनी तेज तर्रार छवि के बजाय शांत और गंभीर रहनेवाले डीजीपी नवानी ने सभी जिलों में शहीद सेल की स्थापना कर पुलिस कप्तानों को स्वयं मानिटरिंग करने का निर्देश देकर शहीद पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के परिजनों के लिए अपनी संवेदनशीलता का ही परिचय दिया है। कार्यभार सम्हालने के डेढ दर्जन दिनों के बीच उन्होंने पाया कि शहीदो के परिजन जानकारी के अभाव में भटकते रहते हैं, शासन से मिलनेवाली सहायता राशि, अनुकंपा नियुक्ति, पेशन आदि के मामलो में शहीदों के परिजन बेवजह इधर-उधर चक्कर लगाते रहते हैं। कुछ मामले तो उनके सामने भी आये थे। बहरहाल उनका शहीद सेल की स्थापना करने का निर्णय स्वागत योग्य है।
पूर्व गृहमंत्री से प्रेम
डीजीपी रहते हुए गृहमंत्री ननकीराम कंवर से 36 का आंकड़ा रहा पर हटने के बाद आजकल पूर्व गृहमंत्री से प्रेम छलकना चर्चा में है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी तथा डीजी होमगार्ड बनाये गए विश्वरंजन द्वारा एक माह के स्वास्थ्यगत कारणों से अवकाश पर जाने और नया कार्यभार नहीं सम्हालने को प्रदेश सरकार गंभीरता से ले रही है। बीमारी के नाम पर अवकाश लेकर एक साहित्यिक आयोजन में शामिल होना चर्चा में है तो हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तथा पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल से उनकी देवेन्द्रनगर आवास पर जाकर मुलकात करने पर भी सरकार के कान खड़े हो गए हैं। विश्वरंजन के करीबी सूत्रों की माने तो नंदकुमार पटेल के काफिले पर नक्सलियों द्वारा हमले के समय अवकाश पर होने के कारण विश्वरंजन नहीं मिल सके थे। इसलिए अनौपचारिक मुलाकात करने गए थे। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ताड़मेटला में 300 आदिवासियों के मकान जल गए थे तब नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में 10 विधायकों के दल को कुछ लोगों ने रोक दिया था बाद में पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी की थी तब बतौर डीजीपी विश्वरंजन मिलने क्यों नहीं गए थे? छत्तीसगढ़ में डीजीपी बनने के बाद नक्सलियों द्वारा कई बड़ी वारदातें की गई तब प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं से मिलने क्यों नहीं गए? खैर नंदकुमार पटेल और विश्वरंजन के बीच क्या बातें हुई, यह तो दोनों ही बता सकते हैं पर डा. रमनसिंह सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की खुफिया शाखा यह पता लगाने का प्रयास कर रही है।
और अब बस
1. छत्तीसगढ़ में डा. रमनसिंह का सरकार बनने के बाद पुलिस का 10 गुना बजट बढ़ा, इतनी ही फोर्स बढ़ी पर नक्सली वारदात कितने प्रतिशत बढ़ी यह बतानेवाला कोई नहीं हैं।
2. कलेक्टर आफिस रायपुर से लगी ईएसी कालोनी के स्थान पर काम्प्लेक्स बनाने कुछ बड़े लोग रूचि क्यों ले रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है।
Saturday, August 20, 2011
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