आइना ए छत्तीसगढ़
रोज तारों को नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उसकी याद आई है सांसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है
छत्तीसगढ़ में दो सिंहों की जमकर चल रही है। एक है भाजपा की प्रदेश में दूसरी बार लगातार सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तो दूसरे सिंह है अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कांगे्रस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह।
केन्द्रीय राज्य मंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनकर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनाने की चुनौती स्वीकार करने वाले डॉ. रमन सिंह ने कभी 'कांग्रेस के गढ़ रहेÓ छत्तीसगढ़ में दो बार लगातार सरकार बनाने का रिकार्ड बनाया है। अपनी पहली पारी सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद अपनी सादगी और स्वच्छ छवि के चलते दूसरी बार भी मुख्यमंत्री बनकर अपना करीब आधा कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। उनके सामने न तो उनकी पार्टी के नेताओं की कोई चुनौती है और न ही प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस की। उनकी प्रदेश में सरकार चलाने की कार्यप्रणाली इतनी अच्छी है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्य आकर भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। वैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह से उनकी अच्छी बनती थी, लालकृष्ण आडवाणी से भी उनके संबंध मधुर हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के बनने के बाद कुछ नेता जरूर उत्साहित थे पर डॉ. रमन सिंह ने इन्हें भी साध लिया और अपनी राजनीतिक यात्रा निर्विघ्र जारी रखी है। डॉ.रमन को सत्ताधारी दल या विपक्ष से खतरा नहीं है। दरअसल उनके पास जो नौकरशाहों की टीम है उनके निर्णयों को लेकर कई बार अंगुली भी उठती है खैर क्या यह कम बड़ी बात है कि उनके दूसरे कार्यकाल में कांगे्रस कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर सकी है।
छत्तीसगढ़ में भारी दिग्गी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में सर्वश्री अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा के कभी-कभार भारी होने की खबरें उड़ती रही हैं पर फिलहाल तो कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह ही प्रदेश की राजनीति में भारी पड़ रहे हैं। क्योंकि कभी उनके सिपहसलार रहे नेता आजकल महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में हालांकि पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का पलड़ा दिखाई देता है। प्रदेश युवक कांगे्रस सहित भाराछासं के अध्यक्ष जोगी खेमे के हैं। वहीं लोकप्रियता या यों कहें कि कांगे्रस के भीड़ जुटाने वाले एक मात्र नेताओं में जोगी की गिनती होती है। मोतीलाल वोरा तथा विद्याचरण शुक्ल उम्र के इस पड़ाव में अधिक सक्रिय हैं यह तो कहा नहीं जा सकता है इन दोनों नेताओं की राजनीति करने की कुछ अलग स्टाइल है। खैर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को पृथक करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी से दिग्गी राजा की अगाध श्रद्धा है और साल में दोनों नवरात्रि में वे आते भी हैं। आजकल छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका एक तरह से वर्चस्व है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे कभी दिग्गी राजा के मंत्रिमंडल के लम्बे समय तक सदस्य रहे हैं तो प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल भी दिग्विजय सिंह के काफी करीबी रहे हैं उन्होंने उनके मंत्रिमंडल में गृह मंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार सम्हाल चुके हैं। इधर हाल ही में डॉ. चरणदास महंत भी दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में लम्बे समय तक सदस्य रह चुके हैं वहीं दिग्गी राजा के राजनीतिक गुरु स्व. अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। यानि कांगे्रस के फिलहाल प्रमुख जिम्मेदारी सम्हाल रहे तीनों प्रमुख नेता दिग्गी राजा के 'खासÓ हैं। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री तथा नौकरशाह रहे अजीत जोगी और दिग्गी राजा हमउम्र होने के साथ ही लगभग एक ही समय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की है। कहा तो यह भी जाता है कि अजीत जोगी को आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति प्रवेश में अर्जुन सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी तो 'सलाहÓ दिग्गी राजा की भी थी। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से दिग्गी राजा के संबंध मधुर ठीक-ठाक हैं पर छत्तीसगढ़ निर्माण के समय शुक्ल के फार्महाउस में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्गी राजा से जो व्यवहार हुआ था वह कम से कम भुलाने वाली बात तो नहीं है। मोतीलाल वोरा की अपनी राजनीति की स्टाइल है और वे दिल्ली-दुर्ग तक ही स्वयं को सीमित कर चुके हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह की छत्तीसगढ़ में एकतरफा चल रही है यह तो कहा ही जा सकता है।
अजय और वित्त आयोग?
छत्तीसगढ़ में राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर चर्चित नेता तथा पिछले विधानसभा में पराजित अजय चंद्राकर की एक साल के लिये नियुक्ति की गई है वहीं प्रमुख अर्थशास्त्री तथा छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण दुर्गा महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. अशोक पारख को सदस्य बनाया गया है। जाहिर है कि सारा काम काज डॉ. पारख को सम्हालना पड़ेगा, रिपोर्ट तैयार करना होगा और उस रिपोर्ट की प्रस्तुतिकरण में ही अजय की भूमिका रहेगी।
वैसे किसी भी राज्य में वित्त आयोग का कामकाज काफी महत्वपूर्ण होता है। वित्तीय मुद्दा के संबंध में राज्य और केन्द्र सरकार के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना, वित्तीय संसाधनों का आंकलन जिससे केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान किया जा रहा है, राज्यों की पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा, सरकार के राज्य करों, शुल्कों, फीस और ड््यूटी पर होने वाली आय को पंचायतों में वितरित करने का सुझाव, राज्य की पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुधारने सुझाव देना आदि है। सवाल यह उठ रहा है कि अपने कार्यकलापों के कारण पिछले विस चुनाव में सभी विधानसभा क्षेत्रों में चर्चा में रहे अजय चंद्राकर ने एक बयान के आधार पर केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी के खिलाफ अदालत में मामला दायर किया है नारायण सामी को जमानत कराना पड़ा। ऐसे में केन्द्र से मध्यस्थ की भूमिका अदा करने में क्या अजय चंद्राकर सफल हो सकेंगे? हां पंचायतों की आर्थिक स्थिति सुधारने में उन्हें जरूर महारत हैं क्योंकि पिछले कार्यकाल में बतौर पंचायत मंत्री उन्होंने उल्लेखनीय कार्य जरूर किया है। वैसे विधानसभा चुनाव में पराजित प्रत्याशी को किसी पद पर नहीं लेने का निर्णय जरूर डॉ. रमन सिंह ने बदल दिया है पर जानकार लोगों का कहना है कि केवल एक साल के लिए ही अजय चंद्राकर पदस्थ किया गया है और वह भी ऐसे आयोग का अध्यक्ष बनाया है जिसका आमजन से कोई संपर्क नहीं रहता है। राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे का कहना है कि अजय चंद्राकर 'वित्तÓ को कितना समझते हैं यह तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी जानते हैं पर डॉ. अशोक पारख जैसे योग्य अर्थशास्त्री की नियुक्ति सराहनीय कही जा सकती है। बहरहाल कभी अजय के गुरु रहे डॉ. अशोक पारख फिर गुरु की भूमिका में आ गये हैं पर अजय पुराने शिष्य की भूमिका में रहते हैं या नहीं यहतो वक्त ही बताएगा।
नाराज हैं विश्वरंजन!
बहुत नाराज हैं पूर्व डीजीपी तथा कवि साहित्यकार, लेखक विश्वरंजन। कितने सम्मान से उन्हें आईबी से उनकी शर्तों पर छत्तीसगढ़ बुलवाया गया था और एक ही झटके में डीजीपी पद से बिना सलाह के ही हटाकर होमगार्ड में पदस्थ कर शहर से बाहर कर दिया?(होमगार्ड का मुख्यालय माना के करीब है) वैसे विश्वरंजन जी को अपने हटाने का दुख है और लोगों का कहना है कि डॉ. रमन सिंह ने हटाने में आखिर इतनी देरी क्यों कर दी? डॉ. रमन सिंह करते भी क्या? छत्तीसगढ़ में डीजी पद के तीन वरिष्ठï अफसर हैं पर विश्वरंजन दो अन्य डीजी अनिल नवानी और पासवान से बातचीत या मुलाकात करने में भी रुचि नहीं लेते थे। तीनों पुलिस के आला अफसरों को साथ-साथ काफी अर्से से नहीं देखा गया था जबकि संतकुमार पासवान को तो नक्सली मामले की अच्छी जानकारी है। बहरहाल विश्वरंजन साहब की जगह अनिल नवानी ने कार्यभार सम्हाल लिया है और स्वास्थ्यगत कारणों से विश्वरंजन अवकाश पर चले गये हैं। पर बीमार विश्वरंजन को हाल ही में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के एक कार्यक्रम में जरूर शिरकत करते देखा गया है। खैर विश्वरंजन के खास रहे प्रतिनियुक्ति में पुलिस मुख्यालय पहुंचे एक अफसर भी लम्बी छुट्टïी पर चले गये हैं खबर हैं कि उनका कक्ष किसी आईपीएस को आवंटित कर दिया गया है। बहरहाल अब पुलिस मुख्यालय में तथाकथित साहित्यकारों की आमद कम हुई है वही पीडि़त जन सीधे जाकर नये डीजीपी को अपना दुखड़ा सुनाने का अवसर मिलने से खुश हैं।
और अब बस
(1)
भाजपा के वरिष्ठï नेता लखीराम अग्रवाल की मूर्ति स्थापना समारोह में सांसद नंदकुमार साय का नाम निमंत्रण पत्र में नहीं डाला गया था। साय कार्यक्रम में नहीं गये। एक टिप्पणी:- राजनीति में पास-पास और दूर-दूर का दौर तो चलता ही रहता है।
(2)
रोगदा बांध की जानकारी विपक्ष तक पहुंचाने वाले एक आईएएस अब दिल्ली जाने की तैयारी में है। आखिर बकरे की मां कब तक दुआ मांगेगी?
(3)
छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग में इस बार एक वरिष्ठï आईएएस को नियुक्त करने की संभावना है। दिल्ली जाने से तो अच्छा है कि 62 साल तक पद पर बने रहना।
Monday, August 1, 2011
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