पुराने फूल -औ-पत्ते चमन से छांटे जाएंगे
लगी है बागबां को धुन, नया गुलशन बनाने की
कांग्रेस ने युंका नेता राहुल गांधी को आखिर उपाध्यक्ष बना ही दिया। अब वे देश की सबसे पुरानी पार्टी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में दूसरे नंबर के ओहदे पर पहुंच गए है। वैसे नेहरू- गांधी परिवार के उत्तराधिकारी के रूप में वे सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस में दूसरे स्थान पर ही माने जाते थे पर अब उन्हें उपाध्यक्ष बनाकर सोनिया गांधी के बाद दूसरे नंबर की अधिकृत जिम्मेदारी सौंप दी गई है। कांग्रेस के सभी महासचिव अब अपनी रिपोर्ट राहुल गांधी को ही सौपेंगे। जाहिर है कि राहुल गांधी पर आगामी लोकसभा सहित छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों की अहम जिम्मेदारी होगी प्रत्याशी चयन से लेकर सरकार बनाने की जिम्मेदारी अब सोनिया गांधी के सिर से उतरकर राहुल के युवा कंधों पर डाल दी गई है।
वैसे कांग्रेस में राहुल पहले नेता नहीं है जो उपाध्यक्ष बने हैं इसके पूर्व स्व. अर्जुन सिंह और उनके बाद जितेन्द्र प्रसाद भी इस पद की शोभा बढ़ा चुके हैं यह बात और है कि बतौर उपाध्यक्ष इन दोनों का कार्यकाल उल्लेखनीय नहीं रहा पर इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने पर्याप्त अधिकार नहीं दिए होंगे पर राहुल गांधी तो सोनिया गांधी के पुत्र है इसलिए जाहिर है कि राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के सभी अधिकार एक तरह से राहुल के हाथ होंगे।
राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन में जिस तरह मनोनयन से नियुक्ति के स्थान पर आंतरिक लोकतंत्र स्थापना की दिशा में मतदान करने को प्राथमिकता दी उसका युवा वर्ग में अच्छा संदेश गया है। राहुल गांधी आगामी लोस और विस चुनावों में प्रत्याशी चयन के लिये क्या मापदंड तय करते हैं उसी का अब इंतजार है।
राहुल और छत्तीसगढ़
राहुल गांधी को कांग्रेस का एक तरह से सर्वे सर्वा बनाने से छत्तीसगढ़ की राजनीति में परिवर्तन की उम्मीद बढ़ गई है छत्तीसगढ़ में युवक कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संगठन के संगठनात्मक चुनाव में संगठन खेमे को दरकिनार करते हुए अजीत-अमित जोगी ने एक तरह से कब्जा कर लिया है। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ के युवाओं पर अजीत जोगी गुट का अच्छा प्रभाव है इसलिये यह गुट राहुल गांधी की युवा शक्ति को प्राथमिकता की तर्ज पर अधिक से अधिक संख्या में युवाओं को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने का प्रयास करेगा और जाहिर है कि बुजुर्गों की नाराजगी भी मोल लेगा।
इधर राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने से छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन खेमा काफी उत्साहित है। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा तो किसी तरह की गुटबाजी से शुरू से ही दूर हो चुके हैं। वहीं विद्याचरण शुक्ल अब राहुल गांधी से कोई अच्छा तालमेल बना सकेंगे ऐसा लगता नहीं है पर डा. चरणदास महंत, नेता प्रतिपत्र रविन्द्र चौबे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जरूर उत्साहित है। दरअसल राहुल गांधी की अभिविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से निकटता किसी से छिपी नहीं है। लोग तो यह भी कहते हैं कि दिग्विजय सिंह ही राहुल के राजनीतिक गुरू है इधर छत्तीसगढ़ से केन्द्र सरकार में शामिल एक मात्र मंत्री डा. चरणदास महंत, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल अभी पूरे फार्म में है और तीनों नेता अविभाजित म.प्र. के समय दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके है। जाहिर है कि इन तीनों के दिग्गीराजा से अच्छे संबंध हैं। ये लोग भी दिग्विजय सिंह के माध्यम से अपने समर्थकों को अधिकाधिक टिकट दिलवाने का प्रयास करेंगे। इधर राहुल गांधी को नए पद पर नियुक्ति के बाद प्रदेश की राज्यसभा सदस्य मोहसिना किदवई भी प्रभावशाली बनकर उभरेंगी क्योंकि राहुल गांधी कई मसलों में मोहसिना से मशविरा भी करते हैं। बहरहाल अगामी एक-दो माह के भीतर छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ परिवर्तन हो सकता है और कौन सा गुट प्रभावशाली बनेगा और कौन सा गुट प्रभावहीन होगा इसका भी खुलासा हो सकेगा।
गंगाराम की सलाह
रायपुर के उप महापौर तथा रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके गंगाराम शर्मा अपनी बेबाकी के लिये जाने जाते हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने के साथ ही वे शहर के अनियमित विकास के लिये चिंतित रहते हैं और अपनी ही पार्टी की महापौर को भी नगर विकास की अनदेखी पर कोसने में कोई परहेज नहीं करते हैं। हाल ही में कांग्रेस की रायपुर में चिंतन बैठक के पूर्व उन्होंने बतौर प्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र भेजकर सुझाव दिया है कि छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव 2013 में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में केवल 5 प्रतिशत क्षेत्रों को छोड़कर 95 प्रतिशत चुनाव समर में नये प्रत्याशी उतारना चाहिए। उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव यह भी दिया है कि लगातर 2 या 3 बार विधायक बनने या चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं दी जाए क्योंकि लगातार विधायक बनने वालों को आम जनता से संपर्क से लेकर संतुष्टि उनकी अपेक्षा के अनुरूप संतुष्टि संभव नहीं होती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि 2013 विधानसभा चुनाव की बागडोर अनिवार्य रूप से मोतीलाल वोरा के हाथों होना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस में बड़े कहने वाले नेता भले ही हाईकमान के दबाव या डर में एक होने की बात करें पर एक दूसरे का विरोध करने में नहीं चूकेंगे। वैसे गंगाराम शर्मा के सुझाव पर कांग्रेस अलाकमान रूचि लेता है या नहीं यह तो और बात है पर कांग्रेस को प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं की गुटबाजी पर अंकुश लगाने कुछ कठोर निर्णय तो लेना ही होगा। कभी छत्तीसगढ़ से विजयी कांग्रेस विधायकों की संख्या के आधार पर अविभाजित म.प्र. में कांग्रेस की सरकार बनती थी कभी सतनामी और आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोट होते थे पर बस्तर सहित प्रदेश के अन्य आदिवासी मतदाता कांग्रेस से दूर क्यों हो गए है और भाजपा का दामन थामने क्यों मजबूर हो गए है इसका तो कांग्रेस अलाकमान को जल्दी ही सर्वे कराना ही चाहिए...।
वेटिंग सी एम..
भाजपा और कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की सरकार बनाने एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। लगातार 2 बार राज्य सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने वाले डा. रमन सिंह अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने नए जिलों सहित आदिवासी अंचल बस्तर में अपना ध्यान लगाकर आदिवासियों को रिझाने का प्रयत्नशील हैं। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ सरकार का रास्ता बस्तर से ही निकलता है यदि तीसरी बार भी भाजपा की सरकार बनती है तो जाहिर है डा. रमन सिंह ही मुख्यमंत्री बनेंगे अभी तक तो यही लगता है। इधर कांग्रेस मानकर चल रही है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर चल रही है। प्रदेश सरकार का भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। आदिवासी, सतनामी समाज सत्ताधारी -दल से नाराज है तो सरकारी कर्मचारी, शिक्षाकर्मी भी सरकार से नाराज है। जहां तक मुस्लिम समाज का सवाल है तो विधानसभा में किसी भी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया गया वहीं प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति में भी एक भी मुस्लिम को स्थान नहीं दिया गया इसलिये उनके मत भी कांग्रेस को मिलेंगे। बहरहाल यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा... सीएम इन वेटिंग में श्रीमती रेणु जोगी, डा. चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल के नाम फिलहाल चर्चा में है। जयपुर चिंतन शिविर में लिये गये निर्णय के अनुसार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रत्याशी नहीं हो सकते ऐसे में नंदकुमार पटेल तो दौड़ में शामिल ही नहीं हो सकेंगे वैसे बहुमत आने पर किसी विजय उम्मीदवार से इस्तीफा दिलाकर विधानसभा पहुंचने का विकल्प तो खुला ही है। खैर कांग्रेस में पिछले बार भी 2 बार पराजित होने वालों को टिकट नहीं देने की बात चली थी पर कई ऐसे लोगों को बाद में टिकट दे दी गई थी।
और अब बस
1
भिलाई में कभी उद्योपतियों के हितैषी रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे आजकल मजदूर हितैषी की भूमिका में नजर आ रहे हैं। एक टिप्पणी... नया अवतार, नया किरदार कहीं आगामी विस चुनाव के कारण तो नहीं हैं।
2
प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह नए जिलों में जाकर विकास की गंगा बहाने में व्यस्त है और प्रचार का जिम्मा सम्हालने वाले विभाग के प्रमुख पिछले सप्ताह अपने कार्यालय जाना भी उचित नहीं समझा...।
लगी है बागबां को धुन, नया गुलशन बनाने की
कांग्रेस ने युंका नेता राहुल गांधी को आखिर उपाध्यक्ष बना ही दिया। अब वे देश की सबसे पुरानी पार्टी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में दूसरे नंबर के ओहदे पर पहुंच गए है। वैसे नेहरू- गांधी परिवार के उत्तराधिकारी के रूप में वे सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस में दूसरे स्थान पर ही माने जाते थे पर अब उन्हें उपाध्यक्ष बनाकर सोनिया गांधी के बाद दूसरे नंबर की अधिकृत जिम्मेदारी सौंप दी गई है। कांग्रेस के सभी महासचिव अब अपनी रिपोर्ट राहुल गांधी को ही सौपेंगे। जाहिर है कि राहुल गांधी पर आगामी लोकसभा सहित छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों की अहम जिम्मेदारी होगी प्रत्याशी चयन से लेकर सरकार बनाने की जिम्मेदारी अब सोनिया गांधी के सिर से उतरकर राहुल के युवा कंधों पर डाल दी गई है।
वैसे कांग्रेस में राहुल पहले नेता नहीं है जो उपाध्यक्ष बने हैं इसके पूर्व स्व. अर्जुन सिंह और उनके बाद जितेन्द्र प्रसाद भी इस पद की शोभा बढ़ा चुके हैं यह बात और है कि बतौर उपाध्यक्ष इन दोनों का कार्यकाल उल्लेखनीय नहीं रहा पर इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने पर्याप्त अधिकार नहीं दिए होंगे पर राहुल गांधी तो सोनिया गांधी के पुत्र है इसलिए जाहिर है कि राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के सभी अधिकार एक तरह से राहुल के हाथ होंगे।
राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन में जिस तरह मनोनयन से नियुक्ति के स्थान पर आंतरिक लोकतंत्र स्थापना की दिशा में मतदान करने को प्राथमिकता दी उसका युवा वर्ग में अच्छा संदेश गया है। राहुल गांधी आगामी लोस और विस चुनावों में प्रत्याशी चयन के लिये क्या मापदंड तय करते हैं उसी का अब इंतजार है।
राहुल और छत्तीसगढ़
राहुल गांधी को कांग्रेस का एक तरह से सर्वे सर्वा बनाने से छत्तीसगढ़ की राजनीति में परिवर्तन की उम्मीद बढ़ गई है छत्तीसगढ़ में युवक कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संगठन के संगठनात्मक चुनाव में संगठन खेमे को दरकिनार करते हुए अजीत-अमित जोगी ने एक तरह से कब्जा कर लिया है। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ के युवाओं पर अजीत जोगी गुट का अच्छा प्रभाव है इसलिये यह गुट राहुल गांधी की युवा शक्ति को प्राथमिकता की तर्ज पर अधिक से अधिक संख्या में युवाओं को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने का प्रयास करेगा और जाहिर है कि बुजुर्गों की नाराजगी भी मोल लेगा।
इधर राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने से छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन खेमा काफी उत्साहित है। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा तो किसी तरह की गुटबाजी से शुरू से ही दूर हो चुके हैं। वहीं विद्याचरण शुक्ल अब राहुल गांधी से कोई अच्छा तालमेल बना सकेंगे ऐसा लगता नहीं है पर डा. चरणदास महंत, नेता प्रतिपत्र रविन्द्र चौबे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जरूर उत्साहित है। दरअसल राहुल गांधी की अभिविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से निकटता किसी से छिपी नहीं है। लोग तो यह भी कहते हैं कि दिग्विजय सिंह ही राहुल के राजनीतिक गुरू है इधर छत्तीसगढ़ से केन्द्र सरकार में शामिल एक मात्र मंत्री डा. चरणदास महंत, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल अभी पूरे फार्म में है और तीनों नेता अविभाजित म.प्र. के समय दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके है। जाहिर है कि इन तीनों के दिग्गीराजा से अच्छे संबंध हैं। ये लोग भी दिग्विजय सिंह के माध्यम से अपने समर्थकों को अधिकाधिक टिकट दिलवाने का प्रयास करेंगे। इधर राहुल गांधी को नए पद पर नियुक्ति के बाद प्रदेश की राज्यसभा सदस्य मोहसिना किदवई भी प्रभावशाली बनकर उभरेंगी क्योंकि राहुल गांधी कई मसलों में मोहसिना से मशविरा भी करते हैं। बहरहाल अगामी एक-दो माह के भीतर छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ परिवर्तन हो सकता है और कौन सा गुट प्रभावशाली बनेगा और कौन सा गुट प्रभावहीन होगा इसका भी खुलासा हो सकेगा।
गंगाराम की सलाह
रायपुर के उप महापौर तथा रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके गंगाराम शर्मा अपनी बेबाकी के लिये जाने जाते हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने के साथ ही वे शहर के अनियमित विकास के लिये चिंतित रहते हैं और अपनी ही पार्टी की महापौर को भी नगर विकास की अनदेखी पर कोसने में कोई परहेज नहीं करते हैं। हाल ही में कांग्रेस की रायपुर में चिंतन बैठक के पूर्व उन्होंने बतौर प्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र भेजकर सुझाव दिया है कि छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव 2013 में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में केवल 5 प्रतिशत क्षेत्रों को छोड़कर 95 प्रतिशत चुनाव समर में नये प्रत्याशी उतारना चाहिए। उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव यह भी दिया है कि लगातर 2 या 3 बार विधायक बनने या चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं दी जाए क्योंकि लगातार विधायक बनने वालों को आम जनता से संपर्क से लेकर संतुष्टि उनकी अपेक्षा के अनुरूप संतुष्टि संभव नहीं होती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि 2013 विधानसभा चुनाव की बागडोर अनिवार्य रूप से मोतीलाल वोरा के हाथों होना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस में बड़े कहने वाले नेता भले ही हाईकमान के दबाव या डर में एक होने की बात करें पर एक दूसरे का विरोध करने में नहीं चूकेंगे। वैसे गंगाराम शर्मा के सुझाव पर कांग्रेस अलाकमान रूचि लेता है या नहीं यह तो और बात है पर कांग्रेस को प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं की गुटबाजी पर अंकुश लगाने कुछ कठोर निर्णय तो लेना ही होगा। कभी छत्तीसगढ़ से विजयी कांग्रेस विधायकों की संख्या के आधार पर अविभाजित म.प्र. में कांग्रेस की सरकार बनती थी कभी सतनामी और आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोट होते थे पर बस्तर सहित प्रदेश के अन्य आदिवासी मतदाता कांग्रेस से दूर क्यों हो गए है और भाजपा का दामन थामने क्यों मजबूर हो गए है इसका तो कांग्रेस अलाकमान को जल्दी ही सर्वे कराना ही चाहिए...।
वेटिंग सी एम..
भाजपा और कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की सरकार बनाने एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। लगातार 2 बार राज्य सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने वाले डा. रमन सिंह अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने नए जिलों सहित आदिवासी अंचल बस्तर में अपना ध्यान लगाकर आदिवासियों को रिझाने का प्रयत्नशील हैं। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ सरकार का रास्ता बस्तर से ही निकलता है यदि तीसरी बार भी भाजपा की सरकार बनती है तो जाहिर है डा. रमन सिंह ही मुख्यमंत्री बनेंगे अभी तक तो यही लगता है। इधर कांग्रेस मानकर चल रही है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर चल रही है। प्रदेश सरकार का भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। आदिवासी, सतनामी समाज सत्ताधारी -दल से नाराज है तो सरकारी कर्मचारी, शिक्षाकर्मी भी सरकार से नाराज है। जहां तक मुस्लिम समाज का सवाल है तो विधानसभा में किसी भी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया गया वहीं प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति में भी एक भी मुस्लिम को स्थान नहीं दिया गया इसलिये उनके मत भी कांग्रेस को मिलेंगे। बहरहाल यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा... सीएम इन वेटिंग में श्रीमती रेणु जोगी, डा. चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल के नाम फिलहाल चर्चा में है। जयपुर चिंतन शिविर में लिये गये निर्णय के अनुसार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रत्याशी नहीं हो सकते ऐसे में नंदकुमार पटेल तो दौड़ में शामिल ही नहीं हो सकेंगे वैसे बहुमत आने पर किसी विजय उम्मीदवार से इस्तीफा दिलाकर विधानसभा पहुंचने का विकल्प तो खुला ही है। खैर कांग्रेस में पिछले बार भी 2 बार पराजित होने वालों को टिकट नहीं देने की बात चली थी पर कई ऐसे लोगों को बाद में टिकट दे दी गई थी।
और अब बस
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भिलाई में कभी उद्योपतियों के हितैषी रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे आजकल मजदूर हितैषी की भूमिका में नजर आ रहे हैं। एक टिप्पणी... नया अवतार, नया किरदार कहीं आगामी विस चुनाव के कारण तो नहीं हैं।
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प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह नए जिलों में जाकर विकास की गंगा बहाने में व्यस्त है और प्रचार का जिम्मा सम्हालने वाले विभाग के प्रमुख पिछले सप्ताह अपने कार्यालय जाना भी उचित नहीं समझा...।
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