यहां गुनाह हवा में छुपाये जाते हैं,
चराग खुद नहीं बुझते, बुझाये जाते हैं,
अजीब कर्ज है नफरत का, कम नहीं होता
बढ़ता जाता है जितना चुकाया जाता है।
विद्याचरण शुक्ल को अचानक नवीन जिंदल पर इतना गुस्सा क्यों आ गया? कोल ब्लाक आबंटन में चर्चा में आये नवीन जिंदल अचानक ही नायक से खलनायक बन गये। विद्या भैय्या ने तो कांग्रेस के इस राज्यसभा सदस्य को कांग्रेसी मानने से ही इंकार कर दिया। उन्हें शोषक कहा, छत्तीसगढ़ के लोगों का शोषण करने वाला ठहाराया, यही नहीं उन्हें अच्छा उद्योगपति भी नहीं बताया है। विद्या भैय्या राजधानी रायपर में रहकर उन्हें कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी यही नहीं रायगढ़ जाकर भी जिंदल समूह के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली यह बात और है कि उन्हें जिंदल समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें काले झंडे भी दिखाये गये। वैसे एक बार उनके राजनीतिक स्वर्णिम काल में आरंग के पास एक गांव में उन्हें सतनामी बंधुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था उसके बाद यह दूसरा अवसर है जब विद्या भैय्या को अपने ही छत्तीसगढ़ में काले झंडे देखने पड़े हैं। विद्या भैय्या प्रदेश ही नहीं देश के वरिष्ठ सांसद रहे है कई वर्षों तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हराव, वीपी सिंह, चंद्रशेखर आदि के काफी करीबी रहे यही नहीं कई बार विषम परिस्थितियों में कांग्रेस के लिये संकट मोचक बनकर भी अपनी कुशल रणनीति का परिचय दे चुके हैं. कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा, जनतादल, भाजपा होकर कांग्रेस में लौटे विद्या भैय्या का समय अब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें महासमुंद से लोकसभा प्रत्याशी भी नहीं बनाया गया था। यह बात ठीक है कि पहली अजीत जोगी सरकार को पुन: सत्ता में आने से रोकने में विद्या भैय्या ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी पर आजकल उनके सितारे कुछ गर्दिश में चल रहे हैं। हाल ही में जिंदल समूह के खिलाफ उनका नाराजगी का कारण तलाशा गया तो पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में कोयला मंत्रालय से कुछेक अधिकारियों को कोल ब्लाक आबंटन विवाद के चलते हटा दिया है उसमें एक अफसर विद्या भैय्या का करीबी रिश्तेदार है, इसके चलते विद्या भैय्या नाराज है और नवीन जिंदल के बहाने केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अप्रत्यक्ष मोर्चा खोल बैठे है । रायगढ़ में जिंदल के खिलाफ मुहिम चलाने पहुंचे विद्या भैय्या का साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा उसी जिले के विधायक नंदकुमार पटेल ने भी नहीं दिया इसकी भी जमकर चर्चा है।
परिवार बांटने लगी गैस
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता रहता है। कांग्रेस के कई नेताओं के परिजन अभी भी बतौर उत्तराधिकारी राजनीति में है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल की तरह जगजीवनराम की बेटी मीरा कुमार , शीला दीक्षित का पुत्र संदीप दीक्षित, अर्जुन सिंह का पुत्र अजय सिंह, राष्ट्रपति जाकिर अली खान के दामाद के दामाद खुर्शीद आलम, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र तथा कल ही उपचुनाव में बमुश्किल सांसद चुने गये अभिजीत मुखर्जी भी परिवारवाद के उदाहरण है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी पं. रविशंकर शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल , श्यामाचरण शुक्ल, अमितेष शुक्ल, अजीत जोगी और अब अमित जोगी, बिसाहूदास महंत और अब चरणदास महंत, भवानीलाल वर्मा और नोबल वर्मा, मोतीलाल वोरा, अरूम वोरा सहित काफी लोग शामिल है। राजनीति में किसी परिवार की तीसरी पीढ़ी विरासत सम्हाल रही है तो किसी परिवार की दूसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत सम्हालने आतुर है जिसमें अमित जोगी पंकज शर्मा, हरमीत सिंह होरा, राजेश शर्मा आदि के नाम शामिल है। वहीं परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली कांग्रेस पार्टी के हाल ही के एक निर्णय से जनसामान्य का संयुक्त परिवार टूटन की कगार पर है। संयुक्त परिवार अच्छा परिवार यह नारा भी कुछ समाज सेवियों ने दिया है तथा भारत में संयुक्त परिवार को सही ठहराया है। पर कांग्रेस नीत सरकार के मुखिया डा. मनमोहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रवैय्ये के चलते संयुक्त परिवार अब टूटने की कगार पर है।
मजबूरी क्या क्या कर देती है। इसका खुलासा आजकल रसोई गैस कनेक्शनो को लेकर देखने को मिल रहा है। जब से एक घर में एक कनेक् शन और एक कनेक्शन पर एक सब्सिडी वाले 6 सिलेण्डर एक साल में देने का प्रावधान जारी हुआ है तब से घरों में कागजी बटवारों की संख्या बढऩे लगी है। मजे की बात तो यह है कि लोग आपस में मिल जुलकर एक ही घर में रह है लेकिन नोटरी बयान हल्फी देकर घर में बंटवारा साबित करने की फिराक में है। पति-पत्नी में अलगाव के मामले सामने आ रहे है तो कही भाई-भाई कही पिता-पुत्र कागजों में अलग हो रहे है। वैसे गैस कंपनियों के सख्त निर्देश है कि एक से अधिक कनेक्शनों के मामले में भौतिक सत्यापन किया जाए।
जोगी-ननकी भाई नहीं
गृहमंत्री तथा सुरक्षाबल में की भर्ती नहीं हो पाने के कारण संभवत: सुरक्षा बलों से नाराज चल रहे आदिवासी नेता ननकीराम कंवर के बयानों की चर्चा जरूरी हो गई है वे कभी भी कुछ भी कह देते हैं। नक्सलियों के मारे जाने पर शहीद सुरक्षा बलों के जवानों पर उन्होंने कहा था कि लड़ाई में दोनो तरफ के लोग मारे जाते है, कभी कहते है कि जवानों की शहादत उनकी सतर्कता नहीं बरतने के कारण उनकी गलती से हुई है। उन्होंने हाल ही में अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टर और पुलिस कप्तान पर कांग्रेसियों का पक्ष लेकर भाजपाईयों को प्रताडि़त करने का आरोप लगा दिया था। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पर दिये गये बयान को लेकर वे चर्चा में है।
मरवाही के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तारीफ कर दी थी। इस पर कोटा की विधायक श्रीमती डा. रेणुका अजीत जोगी ने बाद में कंवर-जोगी को भाई-भाई बता दिया था। बस किसी ने कंवर को सालह दे दी कि जोगी की तारीफ उन्हें भारी न पड़ जाए और रमन सरकार के निशाने पर होने के कारण पहले की तरह उनकी विदाई न हो जाए। बस गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने कहा कि अजीत जोगी मेरे भाई नही है , न तो उनसे मेरी शक्ल मिलती है और न ही मेरी जाति के है तो ऐसे में वे भाई कैसे हो गये? वैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े ननकीराम को संघ से जुड़े किसी भी जाति के लोग को भाई कहने में परहेज नहीं है पर अजीत जोगी तो संघ से भी नहीं जुड़े है, खैर ननकी का अर्थ होता है छोटा और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल प्रमुख विपक्षी दल तथा अफसर भी कहते है कि ननकीराम को तो दूधभात है। उनके बयानों को कोई भी गंभीरता से नहीं होता है।
महापौर श्मशान घाट में
महापौर डा. किरणमयी नायक हमेशा चर्चा में रहती है कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जुलुस में फूल बरसाकर चर्चा में आती है तो कभी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल की विज्ञापन में गरिमा के अनुकूल फोटो प्रकाशित नहीं कराने के कारण नोटिस मिलने पर चर्चा में आती है। कभी बीसा नहीं मिलने पर अपनी धार्मिक यात्रा से वापस आने तथा कभी नगर में सिटी बस चलाने के मामले में अखबारों की सुर्खियों बनती है। कभी बारिश में शहर की मुख्य सड़कों में पानी भरने पर मुम्बई-दिल्ली से शहर की तुलना के कारण लोगों की नाराजगी मोल ले लेती है पर हाल ही में 2 महिला पार्षदों को लेकर श्मशान घाट जाने को लेकर चर्चा में है। हाल ही में दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जब महापौर डा. किरणमयी नायक, पार्षद द्वय कविता ग्वालानी, रेखा रामटेके उस घर में पहुंचे तो पता चला की शवयात्रा श्मशान घाट चली गई है बस महापौर सीधे श्मशान घाट पहुंच और भीतर जाकर शव पर पुष्प अर्पित कर वापस लौट गई। लोग कहते है कि वैसे भी महिलाओं को श्मशान घाट किसी शव के साथ जाने की इजाजत समाज नहीं देता है पर समाज से महापौर को क्या लेना देना है। पर पता चला है कि दोनों पार्षदों की जरूर उनके परिजनों ने क्लास ले ली तथा भविष्य में महापौर के साथ किसी भी ऐसी जगह जाने की मनाही का फैसला सुना दिया है। पर महापौर को तो यह सामान्य बात ही लग रही है।
और अब बस
0 छग मानवाधिकार आयोग के कार्यालय के लिये वन विभाग का रेस्ट हाऊस मांगा जा रहा है। एक टिप्पणी... हाई कोर्ट के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश के लिये गरिमामय, अच्छा भवन तो होना ही चाहिये।
0 आईजी मुकेश गुप्ता ने यातायात समस्या को लेकर राजधानी पुलिस की क्लास ले ली है। एक टिप्पणी... बहुत दिन बाद लगा कि ये पहले वाले मुकेश गुप्ता है।
0 डा. रमन सिंह साठ साल के हो गये वीसी जोगी तो पहले ही सठिया चुके है। चरण, बृजमोहन जरूर मन ही मन खुश होंगे।
चराग खुद नहीं बुझते, बुझाये जाते हैं,
अजीब कर्ज है नफरत का, कम नहीं होता
बढ़ता जाता है जितना चुकाया जाता है।
विद्याचरण शुक्ल को अचानक नवीन जिंदल पर इतना गुस्सा क्यों आ गया? कोल ब्लाक आबंटन में चर्चा में आये नवीन जिंदल अचानक ही नायक से खलनायक बन गये। विद्या भैय्या ने तो कांग्रेस के इस राज्यसभा सदस्य को कांग्रेसी मानने से ही इंकार कर दिया। उन्हें शोषक कहा, छत्तीसगढ़ के लोगों का शोषण करने वाला ठहाराया, यही नहीं उन्हें अच्छा उद्योगपति भी नहीं बताया है। विद्या भैय्या राजधानी रायपर में रहकर उन्हें कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी यही नहीं रायगढ़ जाकर भी जिंदल समूह के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली यह बात और है कि उन्हें जिंदल समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें काले झंडे भी दिखाये गये। वैसे एक बार उनके राजनीतिक स्वर्णिम काल में आरंग के पास एक गांव में उन्हें सतनामी बंधुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था उसके बाद यह दूसरा अवसर है जब विद्या भैय्या को अपने ही छत्तीसगढ़ में काले झंडे देखने पड़े हैं। विद्या भैय्या प्रदेश ही नहीं देश के वरिष्ठ सांसद रहे है कई वर्षों तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हराव, वीपी सिंह, चंद्रशेखर आदि के काफी करीबी रहे यही नहीं कई बार विषम परिस्थितियों में कांग्रेस के लिये संकट मोचक बनकर भी अपनी कुशल रणनीति का परिचय दे चुके हैं. कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा, जनतादल, भाजपा होकर कांग्रेस में लौटे विद्या भैय्या का समय अब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें महासमुंद से लोकसभा प्रत्याशी भी नहीं बनाया गया था। यह बात ठीक है कि पहली अजीत जोगी सरकार को पुन: सत्ता में आने से रोकने में विद्या भैय्या ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी पर आजकल उनके सितारे कुछ गर्दिश में चल रहे हैं। हाल ही में जिंदल समूह के खिलाफ उनका नाराजगी का कारण तलाशा गया तो पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में कोयला मंत्रालय से कुछेक अधिकारियों को कोल ब्लाक आबंटन विवाद के चलते हटा दिया है उसमें एक अफसर विद्या भैय्या का करीबी रिश्तेदार है, इसके चलते विद्या भैय्या नाराज है और नवीन जिंदल के बहाने केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अप्रत्यक्ष मोर्चा खोल बैठे है । रायगढ़ में जिंदल के खिलाफ मुहिम चलाने पहुंचे विद्या भैय्या का साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा उसी जिले के विधायक नंदकुमार पटेल ने भी नहीं दिया इसकी भी जमकर चर्चा है।
परिवार बांटने लगी गैस
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता रहता है। कांग्रेस के कई नेताओं के परिजन अभी भी बतौर उत्तराधिकारी राजनीति में है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल की तरह जगजीवनराम की बेटी मीरा कुमार , शीला दीक्षित का पुत्र संदीप दीक्षित, अर्जुन सिंह का पुत्र अजय सिंह, राष्ट्रपति जाकिर अली खान के दामाद के दामाद खुर्शीद आलम, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र तथा कल ही उपचुनाव में बमुश्किल सांसद चुने गये अभिजीत मुखर्जी भी परिवारवाद के उदाहरण है। हालांकि छत्तीसगढ़ में भी पं. रविशंकर शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल , श्यामाचरण शुक्ल, अमितेष शुक्ल, अजीत जोगी और अब अमित जोगी, बिसाहूदास महंत और अब चरणदास महंत, भवानीलाल वर्मा और नोबल वर्मा, मोतीलाल वोरा, अरूम वोरा सहित काफी लोग शामिल है। राजनीति में किसी परिवार की तीसरी पीढ़ी विरासत सम्हाल रही है तो किसी परिवार की दूसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत सम्हालने आतुर है जिसमें अमित जोगी पंकज शर्मा, हरमीत सिंह होरा, राजेश शर्मा आदि के नाम शामिल है। वहीं परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली कांग्रेस पार्टी के हाल ही के एक निर्णय से जनसामान्य का संयुक्त परिवार टूटन की कगार पर है। संयुक्त परिवार अच्छा परिवार यह नारा भी कुछ समाज सेवियों ने दिया है तथा भारत में संयुक्त परिवार को सही ठहराया है। पर कांग्रेस नीत सरकार के मुखिया डा. मनमोहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रवैय्ये के चलते संयुक्त परिवार अब टूटने की कगार पर है।
मजबूरी क्या क्या कर देती है। इसका खुलासा आजकल रसोई गैस कनेक्शनो को लेकर देखने को मिल रहा है। जब से एक घर में एक कनेक् शन और एक कनेक्शन पर एक सब्सिडी वाले 6 सिलेण्डर एक साल में देने का प्रावधान जारी हुआ है तब से घरों में कागजी बटवारों की संख्या बढऩे लगी है। मजे की बात तो यह है कि लोग आपस में मिल जुलकर एक ही घर में रह है लेकिन नोटरी बयान हल्फी देकर घर में बंटवारा साबित करने की फिराक में है। पति-पत्नी में अलगाव के मामले सामने आ रहे है तो कही भाई-भाई कही पिता-पुत्र कागजों में अलग हो रहे है। वैसे गैस कंपनियों के सख्त निर्देश है कि एक से अधिक कनेक्शनों के मामले में भौतिक सत्यापन किया जाए।
जोगी-ननकी भाई नहीं
गृहमंत्री तथा सुरक्षाबल में की भर्ती नहीं हो पाने के कारण संभवत: सुरक्षा बलों से नाराज चल रहे आदिवासी नेता ननकीराम कंवर के बयानों की चर्चा जरूरी हो गई है वे कभी भी कुछ भी कह देते हैं। नक्सलियों के मारे जाने पर शहीद सुरक्षा बलों के जवानों पर उन्होंने कहा था कि लड़ाई में दोनो तरफ के लोग मारे जाते है, कभी कहते है कि जवानों की शहादत उनकी सतर्कता नहीं बरतने के कारण उनकी गलती से हुई है। उन्होंने हाल ही में अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टर और पुलिस कप्तान पर कांग्रेसियों का पक्ष लेकर भाजपाईयों को प्रताडि़त करने का आरोप लगा दिया था। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पर दिये गये बयान को लेकर वे चर्चा में है।
मरवाही के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तारीफ कर दी थी। इस पर कोटा की विधायक श्रीमती डा. रेणुका अजीत जोगी ने बाद में कंवर-जोगी को भाई-भाई बता दिया था। बस किसी ने कंवर को सालह दे दी कि जोगी की तारीफ उन्हें भारी न पड़ जाए और रमन सरकार के निशाने पर होने के कारण पहले की तरह उनकी विदाई न हो जाए। बस गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने कहा कि अजीत जोगी मेरे भाई नही है , न तो उनसे मेरी शक्ल मिलती है और न ही मेरी जाति के है तो ऐसे में वे भाई कैसे हो गये? वैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े ननकीराम को संघ से जुड़े किसी भी जाति के लोग को भाई कहने में परहेज नहीं है पर अजीत जोगी तो संघ से भी नहीं जुड़े है, खैर ननकी का अर्थ होता है छोटा और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल प्रमुख विपक्षी दल तथा अफसर भी कहते है कि ननकीराम को तो दूधभात है। उनके बयानों को कोई भी गंभीरता से नहीं होता है।
महापौर श्मशान घाट में
महापौर डा. किरणमयी नायक हमेशा चर्चा में रहती है कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जुलुस में फूल बरसाकर चर्चा में आती है तो कभी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल की विज्ञापन में गरिमा के अनुकूल फोटो प्रकाशित नहीं कराने के कारण नोटिस मिलने पर चर्चा में आती है। कभी बीसा नहीं मिलने पर अपनी धार्मिक यात्रा से वापस आने तथा कभी नगर में सिटी बस चलाने के मामले में अखबारों की सुर्खियों बनती है। कभी बारिश में शहर की मुख्य सड़कों में पानी भरने पर मुम्बई-दिल्ली से शहर की तुलना के कारण लोगों की नाराजगी मोल ले लेती है पर हाल ही में 2 महिला पार्षदों को लेकर श्मशान घाट जाने को लेकर चर्चा में है। हाल ही में दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जब महापौर डा. किरणमयी नायक, पार्षद द्वय कविता ग्वालानी, रेखा रामटेके उस घर में पहुंचे तो पता चला की शवयात्रा श्मशान घाट चली गई है बस महापौर सीधे श्मशान घाट पहुंच और भीतर जाकर शव पर पुष्प अर्पित कर वापस लौट गई। लोग कहते है कि वैसे भी महिलाओं को श्मशान घाट किसी शव के साथ जाने की इजाजत समाज नहीं देता है पर समाज से महापौर को क्या लेना देना है। पर पता चला है कि दोनों पार्षदों की जरूर उनके परिजनों ने क्लास ले ली तथा भविष्य में महापौर के साथ किसी भी ऐसी जगह जाने की मनाही का फैसला सुना दिया है। पर महापौर को तो यह सामान्य बात ही लग रही है।
और अब बस
0 छग मानवाधिकार आयोग के कार्यालय के लिये वन विभाग का रेस्ट हाऊस मांगा जा रहा है। एक टिप्पणी... हाई कोर्ट के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश के लिये गरिमामय, अच्छा भवन तो होना ही चाहिये।
0 आईजी मुकेश गुप्ता ने यातायात समस्या को लेकर राजधानी पुलिस की क्लास ले ली है। एक टिप्पणी... बहुत दिन बाद लगा कि ये पहले वाले मुकेश गुप्ता है।
0 डा. रमन सिंह साठ साल के हो गये वीसी जोगी तो पहले ही सठिया चुके है। चरण, बृजमोहन जरूर मन ही मन खुश होंगे।
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