आइना ए छत्तीसगढ़
बातें तो सभी करते हैं अमनों-अमन की
'बापू कहां से आएगा इन गांधियों के बीच
भारत की राजनीति में गांधीवाद की बात सभी करते हैं। कांगे्रस भाजपा या अन्य राजनीतिक पार्टियों को समय बे समय गांधीवाद की याद आती रहती है। हाल ही में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के अनशन के बाद फिर गांधी को याद किया जा रहा है। गांधी के भारत में जिस तरह कुछ राजनेता अपशब्दों की आंधी चला रहे हैं, चरित्र हत्या कर रहे हैं, सियासी राजनीति के तहत जनतंत्र की मर्यादा का हास कर रहे हैं शालीन परंपरा को तोड़ रहे हैं वह चिंता का विषय ही है। भारत में कैसी राजनीति हो रही है कांगे्रस, भाजपा के बड़े नेता अपनी मर्यादा भूल गये हैं, शालीनता भूल गये हैं, सियासी दलों का चरित्र क्या होता जा रहा है। मुद्दों को लेकर सत्तापक्ष का विरोध करना विपक्ष अपना कर्तव्य समझता है और सत्ता पक्ष को अपना पक्ष मजबूत करने की भी स्वतंत्रता है पर मुद््दों पर आकर तर्कसंगत विरोध में सही वाक्य कहने की बजाय कुछ नेता कुर्तक कर रहे हैं। विषयांतर होकर राजनीतिक दलों के नेता एक-दूसरे के प्रति अपशब्दों का उपयोग कर रहे हैं। इन नेताओं का असंसदीय संबोधन जब मीडिया से मुखरित होता है, प्रचार पाता है तब सुनने और देखने वाले सभी को आश्यर्च होता है। भाजपा के पितृपुरुष अटल बिहारी बाजपेयी अंलकारित ढंग से मुद्दे का विरोध करते थे तब उनकी दमदार और विरोधी बातों की पं. जवाहरलाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी तक तारीफ करते थे। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी विरोध किये जाने वाले विषय को तर्कसंगत तरीके से रखते थे। राजनाथ सिंह का विरोध भी शालीन और सीमित शब्दों में होता रहा। तर्कसंगत और शालीन विरोध भाजपा के दिग्गज नेताओं की पूंजी रही है पर भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी अपशब्द उगलने के लिये चर्चा में हैं। कभी कांगे्रस को औरंगजेब की औलाद, कभी लादेन की औलाद, कभी तलुआ चाटने वाले नेता, कभी हिटलर आदि के उनके कुछ विवादास्पद बयान चर्चा में रहे हैं उनके बयान के बाद भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने भ्रष्टïाचार के जहाज में कांगे्रसी 'भांडÓ कहकर एक नया अध्याय जोड़ा है। हाल ही में भाजपा के नेताओं की तर्क पर कांगे्रस के वरिष्ठï नेता हरिप्रसाद ने भाजपा अध्यक्ष को नालायक, सर्कस का जोकर कहकर एक नई संस्कृति को जन्म दिया है। वैसे जब से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी बने हैं उन्होंने कई विवादास्पद तथा स्तरहीन टिप्पणियां की है। अमर-सिंह-मुलायम पहले दहाड़ते थे बाद में तलुए चाटते हैं, कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह तो औरंगजेब की औलाद हैं, कांगे्रस और यूपीए की सरकार तो मुन्नी से भी अधिक बदनाम हो गई है, आदि-आदि। एक बार अमर सिंह ने सपा छोडऩे के बाद टिप्पणी की कि मुलायम सिंह तो झाड़ी में छिपे सांप हैं, हाल ही के विधानसभा चुनाव में वरिष्ठï सीपीएम नेता अच्युतानंदन ने राहुल गांधी को 'अमूल बेबीÓ कह दिया था। वैसे पिछले लोस चुनाव में वरुण गांधी ने एक जनसभा में किसी विशेष वर्ग के हाथ कटवाने की टिप्पणी करके हगांमा मचा दिया था उस पर लालूप्रसाद यादव ने जवाब में कहा था कि वे गृहमंत्री होते तो वरुण पर रोलर चलवा देते। खैर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी टिप्पणी करने में पीछे नहीं हैं। उन्होंने एक बार कांगे्रस पार्टी को बुढिय़ा पार्टी कहा था इस पर प्रियंका गांधी ने एक सभा में जनसमुदाय से पूछा था कि क्या वह बुढिय़ा दिखाई देती है। बाद में नरेंद्र मोदी ने अपनी टिप्पणी सुधार कर कहा था कि चलो कांगे्रस बुढिय़ा नहीं 'गुडिय़ाÓ पार्टी है। वैसे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी अपनी टिप्पणियों के लिये आजकल चर्चा में हैं। उन्होंने राजघाट में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अन्य नेताओं के धरना के दौरान नृत्य करने पर भाजपा को 'नचनियों की पार्टीÓ कह दिया था। उन्होंने खूंखार आतंकवादी लादेन को 'लादेनजीÓ कहकर भी विपक्ष के निशाने पर आ गये थे। उन्होंने हाल ही में बाबा रामदेव को 'ठगÓ कहकर भी संबोधित किया था। कुल मिलाकर बेतुकी टिप्पणियां करके ये राजनेता मीडिया की सुर्खियां बने हुए थे। वैसे ये टिप्पणियां मीडियां में छाने के नाम पर की गई थी या जुबान फिसल गई थी यह तो कहना मुश्किल है पर प्रजातंत्र में यह गालीतंत्र दुखद ही कहा जा सकता है।
छत्तीसगढ़ और बदजुबानी!
छत्तीसगढ़ में भी नेताओं की बदजुबानी चर्चा में रही है। कांगे्रस के वरिष्ठï नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को 'लबरा राजाÓ कहकर विरोध किया था तो भाजपा के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कम से कम अभी तक तो शालीन भाषा का उपयोग करते रहे हैं। पर भाजपा के कुछ नेता मौका मिलते ही अजीत जोगी को तानाशाह, नकली आदिवासी कहने से परहेज नहीं करते हैं। इधर प्रदेश के वरिष्ठï सांसद तथा आदिवासी नेता नंदकुमार साय को पहले 'लखीराम की गायÓ के उपनाम से संबोधित किया जाता था। हाल ही के बस्तर, लोकसभा के उपचुनाव में कुछ भाजपाई नेताओं ने कांगे्रस के प्रत्याशी के खिलाफ 'निरक्षरÓ कहकर प्रचारित करने का भी पहला मामला था। एक बार लोकसभा चुनाव में कांगे्रस के वर्तमान प्रवक्ता तथा अभी तक किसी भी चुनाव में विजयी नहीं होने वाले राजेंद्र तिवारी ने कांगे्रस भवन के सामने विद्याचरण शुक्ल की चुनावी सभा में यह पूछा था कि शुक्ल के पिता कौन है यह सभी जानते हैं पर अटल बिहारी बाजपेयी के पिता का नाम क्या था यह कोई नहीं जानता है? वहां मौजूद लोगों ने हालांकि अटलजी के पिता का नाम तो नहीं बताया पर विद्याचरण शुक्ल को पराजित करके यह साबित कर दिया कि उन्हें राजेंद्र तिवारी की यह जुबानी पसंद नहीं आई। हाल ही तो दुर्ग से सांसद तथा भाजपा की महिला शाखा की राष्टï्रीय महासचिव सुश्री सरोज पांडे ने जबलपुर के बाद रायपुर में पत्रकारों में चर्चा करते हुए एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। सुश्री सरोज पांडे ने कांगे्रस के एक महासचिव के नाम का उल्लेख नहीं करते हुए कहा कि फिरंगी महिला के सामने ये कांगे्रसी दुम हिलाते हुए अपनी वफादारी साबित करने का प्रयास करते हैं। बहरहाल भाजपा और भाजयुमो नेताओं को कांगे्रस के नेताओं या पार्टी का पुतला जलाकर उनकी बदजुबानी का विरोध करने का अधिकार तभी बनता है जब उनकी पार्टी के नेता शालीन विरोध करें। वैसे छत्तीसगढ़ में बदजुबानी को दोनों पार्टी के बड़े नेेताओं को रोकने कारगर कदम उठाना होगा।
कांगे्रस का आंदोलन और पीडीएस की समीक्षा!
छत्तीसगढ़ में करीब 7 साल से अंगद के पांव की तरह स्थापित डॉ. रमन सिंह सरकार को उखाड़ फेकने की तैयारी कांगे्रस संगठन ने शुरू कर दी है। वरिष्ठï नेता, अनुभवी तथा सरपंच से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले नंदकुमार पटेल के कांगे्रस अध्यक्ष बनने के बाद कांगे्रसियों में भी उम्मीद जगी है। कुछ बयानबाज नेताओं का पत्ता कटेगा ऐसी उम्मीद लोग कर रहे हैं क्योंकि कांगे्रस के कुछ नेता केवल मीडिया के ईर्द-गिर्द ही रह कर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं उनका जनाधार क्या है यह सभी को पता है। बहरहाल कांगे्रस के स्थानीय नेता भाजपा की डॉ. रमन सरकार पर घोटाले बाज होने का आरोप लगाते रहते हैं और केन्द्र की यूपीए सरकार में शामिल कांगे्रस के मंत्री जब प्रदेश प्रवास पर आते हैं तो डॉ. रमन सरकार की तारीफ करके चले जाते हैं। प्रदेश सरकार की खिचाई करने वाले कांगे्रसी नेता कुछ करने की स्थिति में नहीं रहते हैं। 26 जून को ही कांगे्रस संगठन ने प्रदेश की भाजपा सरकार की नीतियों, भ्रष्टïाचार को लेकर राजधानी में एक बड़ी रैली करने की योजना बनाई है इसमें प्रदेश के बड़े नेताओं सहित केन्द्र स्तर के कुछ नेता भी शामिल होंगे, रैली में एक लाख लोगों को लाने की तैयारी है। वहां प्रदेश सरकार और उसकी नीतियों को कोसा जाना तय है पर इसके पहले 21-22 को केन्द्रीय खाद्य मंत्री के व्ही थामस अपनी टीम के साथ आकर छत्तीसगढ़ सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अध्ययन करने आ रहे हैं। जाहिर है कि प्रणाली की अच्छाई सुनकर ही वे आ रहे हैं छत्तीसगढ़ सरकार की पीडीएस की तारीफ भी करेंगे ऐसे में कुछ दिन बाद इसी राज्य सरकार की कांगे्रस द्वारा विरोध करना जनता किस रूप में लेगी इसकी कल्पना की जा सकती है।
रामनिवास खुश हैं!
छत्तीसगढ़ में अभी एक डीजी (पुलिस महानिदेशक) का पद केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत है जिस पद पर विश्वरंजन पदस्थ हैं उन्होंने डीजीपी का पद लंबे समय तक विपरीत परिस्थितियों में भी थामकर रखने का रिकार्ड बना लिया है। वहीं डीजी के नान कैडर पद पर डीजी के समतुल्य ही अनिल नवानी पदस्थ हैं वे डीजी होमगार्ड के पद पर तैनात है तो उन्हीं के बैचमेट संतकुमार पासवान डीजी जेल के पद पर पदस्थ हैं। संतकुमार पासवान की वरिष्ठïता देखकर ही केन्द्र सरकार ने उनके लिये डीजी का पद सृजित किया है। विश्वरंजन की सेवानिवृत्ति तक संतकुमार पासवान डीजी रहेंगे और उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात फिर छत्तीसगढ़ में 2 डीजी हो जाएंगे। यानि एक डीजीपी और दूसरे नानकैडर डीजी। इधर हाल ही में पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के केन्द्र सरकार द्वारा 2डीजी का पद स्वीकृत होने के बाद वहां अधिकृत तौर पर 4 डीजी बन सकेंगे यानि 2 डीजी के पद होंगे। वहीं 2 नान कैडर डीजी के पद। ऐसे प्रदेश के चौथे वरिष्ठï आईपीएस अफसर रामनिवास खुश हो सकते हैं। यदि छत्तीसगढ़ में भी 2डीजी का पद स्वीकृत करने में केन्द्र सरकार उदारता दिखाती है तो रामनिवास नान कैडर पद के खिलाफ डीजी बन सकते हैं। वैसे रामनिवास छत्तीसगढ़ के अगले डीजीपी बनने के लिये प्रयासरत हैं पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के एक करीबी नान पुलिस कर्मी तो यह भी प्रचार कर रहे हैं कि रामनिवास साहब ने उन्हें अपने साथ भी रखने का वादा कर लिया है। बहरहाल अभी तो चर्चा यह है कि विश्वरंजन समय से पहले हटते हैं या नहीं, या उन्हें हटाया जाता है तो पासवान या नवानी को डीजीपी तो पासवान या नवानी को डीजीपी बनाया जाता है या कार्यवाहक डीजीपी के पद पर रामनिवास की नियुक्ति की जाती है, वैसे मुख्यमंत्री ने हाल ही में पुलिस अफसरों की क्लास लेकर वैकल्पिक तलाश की बात की थी उससे पुलिस मुख्यालय में आमद और रवानगी को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं।
और अब बस
(1)छत्तीसगढ़ के एक पुलिस अफसर एक संवैधानिक संस्था के अध्यक्ष बनने के लिये अब लोगों से राय लेना शुरू कर चुके हैं पहले वे इस पदस्थापना में रुचि नहीं ले रहे थे।(2)पुलिस मुख्यालय और बाहर पदस्थ 2 वरिष्ठï आईपीएस अफसरों में अब प्रचार युद्घ शुरू हो गया है। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार-प्रसार में रुचि ले रहे हैं, देखें दोनों में कौन प्रभावित होता है। (3)हाल ही में कांगे्रस के प्रदेश प्रभारी के हरिप्रसाद के एक कार्यक्रम में तरुण चटर्जी दिखाई दिये। एक टिप्पणी-नंदकुमार पटेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद का यह पहला चमत्कार है।
Tuesday, June 21, 2011
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