दुनिया से निराली है कुछ अपनी कहानी
अंगारों से बच निकला हूं फूलों से जला हूं
रामलीला मैदान से बाबा रामदेव का तम्बू सरकार ने उखाड़ दिया, उन्हें बल पूर्वक हरिद्घार भिजवा दिया। सरकार का कहना है कि बाबा ने योग शिविर के नाम पर वहां स्थान आरक्षित कराया था और वहां सत्याग्रह शुरू कर चुके थे। सत्याग्रह करना था तो जंतर-मंतर में स्थान सुरक्षित कराना था। बहरहाल केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पत्र जारी किया है कि 4 जून के आंदोलन के पहले ही बाबा से सरकार का लिखित समझौता हो गया था उनकी मांगे मान ली गई थी फिर बाबा ने अपने समर्थकों सहित मीडिया को गुमराह क्यों किया। बाबा रामदेव कहते हैं कि उनके महामंत्री आचार्य बालकृष्ण से प्रधानमंत्री के नाम धोखे से पत्र लिखाया गया। बहरहाल कांगे्रस के महासचिव तथा अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते हैं कि बाबा ने लोगों को ठगा है, तो बाबा रामदेव ने केन्द्रीय मंत्री सिब्बल पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है। सवाल यह उठ रहा है कि जब बाबा आंदोलन समाप्त करने की मंच पर घोषणा कर चुके थे तो आचार्य बालकृष्ण के लिखित पत्र मीडिया के सामने जारी होने पर वे क्यों नाराज हो गये और सम्मानजनक एक बड़ा आंदोलन समाप्त होते-होते न केवल रुक गया बल्कि सरकार की ज्यादती का शिकार हो गया। कालाधन और भ्रष्टïाचार समूचे देश के लिये नासूर बन गया है। कई राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, कर चोर आजकल इसे व्यवसाय का रूप दे चुके हैं। एक ग्राम पंचायत का सरपंच, निगम पार्षद, किसी निगम का अध्यक्ष, नगर पालिका, नगर पंचायत अध्यक्ष, विधायक या सांसद अपना कार्यभार सम्हालने के पश्चात कैसे अचानक चार चक्कों की गाड़ी में घूमना शुरू कर देते हैं, उनके रहन-सहन के स्तर में परिवर्तन आ जाता है, ये तो बकायदा अपने वाहनों में अपने पद की नाम पट्टिïका लगाकर शान से घूमते हैं और अब रौब गालिब करते हैं। इन जनप्रतिनिधियों की आर्थिक स्थिति सुधरती जाती है और उसके बाद भी सरकार उनके भत्ते तथा सुविधाएं बढ़ाने में पीछे नहीं है। छत्तीसगढ़ में आर्थिक अपराध ब्यूरो ने जिस तरह पटवारी, जैसे छोटे शासकीय कर्मचारी सहित कुछ छोटे अफसरों के पास आय से कई गुना अधिक सम्पत्ति का खुलासा किया है वह चौंकाने वाला ही है। सरकार का एक अदना सा कर्मचारी यदि करोड़ों की संपत्ति का मालिक है तो बड़े अफसरों के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है।
संपत्तियों का ब्यौरा क्यों नहीं दिया?
छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने बजट सत्र में सभी मंत्रियों सहित सत्ता पक्ष के विधायकों द्वारा अपनी संपत्ति का विवरण विधानसभा में प्रस्तुत करने की घोषणा की थी और इससे उत्साहित होकर नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने विपक्ष के विधायकों की तरफ से भी संपत्ति का विवरण देने पर हामी भरी थी। बजट सत्र आया, गया, आखिरी दिन तक इंतजार होता रहा पर न तो सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपनी संपत्ति का विवरण दिया और न ही विपक्ष के विधायकों ने? संपत्ति का विवरण क्यों नहीं दिया इसका कारण भी जनता को बताना मुनासिब नहीं समझा गया। जाहिर है जब सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधि इस दिशा में गंभीर नहीं है तो अफसर कहां से गंभीर होंगे। कुछ अफसरों ने संपत्ति का विवरण दिया, कुछ ने नहीं। वैसे संपत्ति का विवरण नहीं देने वाले अफसरों पर कोई कार्यवाही होती ही नहीं हैै तो अफसर विवरण आखिर क्यों दें। वैसे आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के कुछ अफसरों ने जरुर अपनी संपत्ति का विवरण दिया है। वैसे दिग्विजय सिंह-बाबा रामदेव के बीच चल रहा 'ठगीÓ की चर्चा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में भी की जा सकती है। प्रदेश का सत्ताधारी दल केन्द्र की सरकार की भ्रष्टïाचार में लिप्त होने का आरोप लगाकर महारैली निकाल चुका है, इसकी युवा शाखा भी रैली निकाल चुकी है। केन्द्र में काबिज तथा राज्य में प्रमुख विपक्षी दल भी राज्य सरकार पर भ्रष्टïाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर धरना-रैली आयोजित कर रहा है। कांगे्रस की सरकार के समय शिवनाथ नदी का पानी बेचने पर बवाल मचाने वाली भाजपा के कार्यकाल में कुछेक अधिकारियों ने मिलकर 'रोगदा बांधÓ ही बेच दिया है। कांगे्रस और भाजपा, एक-दूसरे की सरकार पर महंगाई बढ़ाने का आरोप लगा रही है वैसे आम जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा है इससे लगता है कि जनता ही 'ठगीÓ जा रही है। प्रमुख राजनीतिक पार्टियां तो 'राजनीति-राजनीतिÓ का खेल खेल रही है। एक आईएएस चर्चा में?छत्तीसगढ़ में एक आईएएस अफसर अब फिर चर्चा में है। सरकार के प्रचारतंत्र से जुड़ी एक संस्था के प्रमुख रहते हुए इस अफसर ने एक सवा दो लाख रुपए मासिक पर एक कार्यालय किराये पर लिया था। कांगे्रस के कार्यकाल में इस करार नामे की काफी चर्चा हुई और आखिर वह कार्यालय खाली करना पड़ा पर सरकार को जो क्षति हुई उसका कुछ नहीं हुआ। इसके बाद ग्रामोद्योग, नगरीय प्रशासन आदि विभाग में भी वे कार्यरत रहे और गरीबों के मकान बनाने की योजना में केन्द्र से मिले पैसों को संबंधित ठेकेदार को अग्रिम देने, कार्य में विलंब, 2-3 नगर निगमों में सड़कों की सफाई के लिये स्वीफ्ट वाहन खरीदने के मामले में भी चर्चा में है। हाल ही में उन्हें विभाग से हटाकर दूसरे विभाग में पदस्थ किया गया और आरोप लग रहा है कि उन्होंने पहले वाले विभाग की महत्वपूर्ण जानकारी विपक्ष को मुहैया कराके चले गये हैं। विपक्ष ने इस जानकारी के बिना पर सरकार को घेर लिया है और सरकार इस मामले की जांच भी करा रही है जिससे कम से कम 3-4 आईएएस अफसर बेचैन है। वैसे एक बात तय है कि अजीत जोगी की सरकार हो या डॉ. रमन सिंह की वर्तमान सरकार की बात करें। यह अफसर कई विवादों से घिरे होने के बाद भी मलाईदार पद पाने में सफल हो जाता है। वैसे इस बार सरकार कुछ सजग दिख रही है शायद इसे लूप लाइन में भेजने की तैयारी हो चुकी है।
माल का निर्माण अपनी मर्जी से?नगर निगम से नक्शा पास कराने के बाद अपनी मर्जी से निर्माण करा रहे अंबुजा माल पर नगर निगम ने 7 करोड़ 73 लाख रुपए का जुर्माना किया है। बलौदाबाजार-विधानसभा मार्ग पर शांति सरोवर के सामने अंबुजा माल 5 एकड़ जमीन पर बन रहा है। कहा जाता है कि इसके संचालक ने निगम से नक्शा पास कराकर निर्माण शुरू कराया और बाद में अपनी मनमर्जी से अंदरूनी ले आऊट में छेड़छाड़ की, निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे को भी बदल दिया गया। निगम आयुक्त ने शिकायत मिलने पर बड़ा जुर्माना किया है। सवाल यहां यह उठ रहा है कि किसी गरीब की झोपड़ी या छोटे मकान को धरासायी करने में निगम को देर नहीं लगती है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर कब्जा हटाने में उसे समय नहीं लगता है। पर चूंकि माल बड़े आदमी का होता है इसलिये निगम कोई बड़ी कार्यवाही करने से गुरेज रखता है। इसके पहले भी तेलीबांधा रोड पर एक माल के अनियमित निर्माण पर निगम ने राजीनामा शुल्क लेकर उसे नियमित कर दिया था। सवाल फिर यह उठ रहा है कि विधानसभा रोड पर निर्माणाधीन इस अंबूजा माल के अनियमित निर्माण की क्या निगम के अधिकारियों ने पहले रुचि नहीं ली, जिस मार्ग से छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री, विधायक तथा आलाअफसर, विधानसभा सत्र के दौरान निकलते हैं वहांंंंं आखिर नक्शे के विपरीत निर्माण की हिम्मत संचालक ने कैसे जुटाई वैसे निगम प्रशासन को किसी ऐसे बड़े निर्माण पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए, तभी तो लगेगा कि निगम प्रशासन 'आमÓ और 'खासÓ में कोई परहेज नहीं करता है।
नक्सली फिर दोषमुक्त!नक्सली के आरोप में पकड़े गये लोगों को न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया, नक्सली समर्थक राजद्रोह के आरोप में पकड़े गये डॉ. बिनायक सेन और पीयूष गुहा को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दे दी। देश के सबसे बड़े दंतेवाड़ा नक्सली जेल बे्रक के आरोपी बनाये गये, जेल इंचार्ज को भी न्यायालय ने राजद्रोह से मुक्त कर दिया, क्योंकि पुलिस ने राजद्रोह का मुकदमा चलाने राज्य सरकार से विधिवत अनुमति नहीं ली थी आखिर यह हो क्या रहा है?10 मई 2009 को सिहावा से करीब 40 किलोमीटर दूर मांदागिरी पर्वत के पास कांकेर जिले के 13 पुलिस कर्मी, एसपीओ नक्सली हमले में शहीद हो गये थे। इसके बाद सिहावा पुलिस ने 44 नामजद नक्सलियों सहित कइयों के खिलाफ जुर्म कायम कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया था। 19 कथित नक्सलियों ने 20 सितंबर 10 को न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में दोष मुक्त कर दिया वहीं 5 लोगों को 3 जून को न्यायालय ने दोष मुक्त कर दिया। ठोस गवाह या सबूत सरकार पेश नहीं कर सकी। डॉ. बिनायक सेन के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस पर विपरीत टिप्पणी करके जमानत दे दी। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल तथा धुर नक्सली प्रभावित जिले दंतेवाड़ा में देश का सबसे बड़ा जेलबे्रक हुआ 299 नक्सली और कैदी फरार हो गये। जेल प्रभारी के खिलाफ 'राजद्रोहÓ का मामला पुलिस ने बनाया पर राज्य सरकार से मुकदमा चलाने अनुमति ही नहीं ली और जेल प्रभारी बरी हो गये। दुर्ग जेल में जाकर एक नक्सली समर्थक से पुलिस के एक आला अफसर ने मुलाकात की और उसका चालान पेश नहीं हो सका और वह छूट गया। जगदलपुर के एक पुलिस कप्तान ने पुलिस मुख्यालय में मुख्यमंत्री के समक्ष 65 नक्सलियों को आत्मसमपर्ण कराया। बाद में उसमें से कई नक्सली नहीं निकले और उन्हें छोडऩा पड़ा। आखिर पुलिस कर क्या रही है और ऐसे मामलों में विवेचना ठीक करने वालों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है।
और अब बस
(1)छत्तीसगढ़ के रोजगार कार्यालयों में इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे पंजीयन की व्यवस्था शुरू हो गई है... एक टिप्पणी... सरकार के पास नौकरी तो है नहीं कम से कम इस व्यवस्था से चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी।(2)डॉ. रमन सिंह सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने कांगे्रस अध्यक्ष ने एक उपसमिति गठित की है। एक टिप्पणी... क्या विधानसभा में सरकार पर आरोप लगाने में कोई दिक्कत आ रही है?(3) लखनऊ में भाजपा अधिवेशन के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और वरिष्ठï सांसद रमेश बैस साथ-साथ आये, एक टिप्पणी... साथ-साथ तो कई बार दिखाई देते हैं 'पर साथ-साथ हैं तो नहीं!
Wednesday, June 8, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut acchi post hai.............
ReplyDeleteaapki post ko facebook me merey link me post kiya hoon