आइना ए छत्तीसगढ़
हमारी बेबसी यह है कि हम कुछ नहीं कहते हैं
वफा बदनाम होती है अगर फरियाद करते हैं
भारतीय जनता पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के पुत्र के विवाह में छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं ने भी शिरकत की, आखिर उनकी पार्टी के प्रमुख के घर पर कोई शुभ अवसर हो तो जाना तो पड़ेगा ही। फिर पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद ही उन्होंने पहले छत्तीसगढ़ प्रवास पर ही यह कहकर कई मंत्रियों, संसदीय सचिवों और विधायकों की नींद उड़ा दी कि पिछला चुनाव में 10 हजार से कम मतों से जीतने वालों के लिए खतरे की घंटी है। यानी भाजपा के विधायकों को यदि पिछला चुनाव 10 हजार से कम मतों से जीता है तो उन्हें पुन: टिकट मिलेगी यह कोई जरूरी नहीं है। नीतिन गडकरी ने यह किस संदर्भ में कहां यह तो पता नहीं है पर कइयों की नींद उन्होंने जरूर उड़ा दी है।
नीतिन गडकरी के हिसाब से तो छत्तीसगढ़ सरकार के 8 मंत्री सहित 4 संसदीय सचिव खतरे में है। छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल के वनमंत्री विक्रम उसेंडी मात्र 109 मतों से विजयी रहे हैं तो जल संसाधन मंत्री हेमचंद यादव 702 कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू 1490 मतों से ही अपनी जीत दर्ज की थी। इसके अलावा छत्तीसगढ़ को अपने बयानों के लिये चर्चित पंचायत मंत्री रामविचार नेताम (4210) गृहमंत्री ननकीराम कंवर (8321) स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल (9376) उद्योगमंत्री दयालदास बघेल (6507) महिला एवं बाल विकास मंत्री लता उसेंडी (2771) ही विजयी रहे हैं। संसदीय सचिवों में विजय बघेल (7842) भइया लाल राजवाड़े (5546) ओमप्रकाश राठिया (3367) और भरत साय (9592) भी विजयी रहे हैं। मंत्रियों और संसदीय सचिवों को मिलाकर भाजपा के कुछ 28 विधायक ऐसे हैं जो 10 हजार से कम मतों से पिछला चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे हैं। विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक (6070) विस उपाध्यक्ष नारायण चंदेल (1190) डॉ. सुभाऊ कश्यप (1201) नंदकुमार साहू (2979) आदि भी इसी श्रेणी में हैं।
खैर बात शुरू हुई थी भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के नागपुर में पुत्र के विवाह के अवसर पर जाहिर है कि मंत्री विधायक तो शुभ अवसर पर नागपुर गये ही थे वहीं पार्टी के कुछ बड़े पदाधिकारी भी वहां पहुंचे थे। वैसे मंत्री विधायक तो पहुंचे ही साथ ही पिछली बार विधानसभा चुनाव में पराजित होने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे, पूर्व पंचायत मंत्री मंत्री अजय चंद्राकर आदि भी वहां पहुंचेना नहीं भूले। वैसे गडकरी के बेटे की शादी में भव्य आयोजन देखकर एक पूर्व मंत्री ने दिलचस्प टिप्पणी कर दी। हम तो चुनाव लड़कर लाखों खर्च करते हैं पर नीतिन जी ने तो एक भी चुनाव नहीं लड़ा है। चलो, इसी भव्य आयोजन में उन्होंने अच्छा खासा खर्च कर दिया है।
कानून व्यवस्था पर चिंतित डॉ. रमन सिंह
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के हाल ही में पुलिस अधिकारियों की कानून व्यवस्था की स्थिति पर समीक्षा बैठक में तेवर देखकर कई लोगों के हाथ-पांव फूल गये हैं। केवल चापलूसी तथा राजनीतिक सेटिंग के चलते फील्ड में कमान हासिल करने वालों को मुख्यमंत्री की चेतावनी खतरे की घंटी ही लग रही है। दरअसल आदिवासी अंचल बस्तर तो नक्सली वारदातों से सहमा हुआ है। आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद नक्सली भिलाई, दुर्ग, बारनवापारा के जंगल, सरायपाली, बागबाहरा में उड़ीसा की सीमा से लगे गांवों में सक्रिय होने प्रयासरत हैं तो रायगढ़ के गोमार्डा अभ्यारण्य, बिलासपुर के अचानकमार क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाने प्रयासरत हैं। उदंती अभ्यारण्य, सीतानदी क्षेत्र में तो उनकी सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। बस्तर में कानून व्यवस्था की स्थिति तो ठीक है ही नहीं। वहीं अब राजधानी रायपुर, औद्योगिक नगरी भिलाई-दुर्ग, न्यायधानी बिलासपुर, अम्बिकापुर में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है। हाल ही में बच्चों के अपहरण, उनकी हत्या से भी मुख्यमंत्री कम आहत नहीं है। उन्होंने पुलिस मुख्यालय में आईजी, एसपी की बैठक में 2-3 माह में स्थिति पर नियंत्रण पाने नहीं तो कार्यवाही की एक तरह से चेतावनी दे दी है। इधर सूत्रों की मानें तो हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत का रिकार्ड बनाने वाले नीतिश कुमार का मानना है कि बिहार में 'कानून व्यवस्थाÓ की स्थिति में सुधार उनकी जीत का प्रमुख कारण है। लगता है कि डॉ. रमन सिंह ने उन्हीं से प्रेरणा लेकर प्रदेश की कानून व्यवस्था ठीक-ठाक करने का मन बनाया है। वैसे भी बस्तर की 11 विधानसभ सीटों में 10 पर भाजपा का कब्जा है, वहां सलवा जुडूम दम तोड़ा रहा है, कानून के दायरे में आने के कारण वहां चाहकर भी सरकार कुछ करने की स्थिति में नहीं है, सलवा जुडूम के कारण शिविरार्थी का अब क्या होगा। यह सरकार के लिये चिंता का विषय है। इधर प्रमुख शहरों में कानून व्यवस्था की हालत से सरकार का चिंतित होना लाजिमी है। विपक्ष को एक अच्छा मौका मिल रहा है। दरअसल मुख्यमंत्री ने गृहमंत्री के साथ एक बार पहले भी पुलिस मुख्यालय का दौरा करके 'गुटबाजीÓ खत्म करने कहा था पर हालत जस की तस है। वैसे लगता है कि यदि एक दो माह के भीतर स्थिति संतोषप्रद नहीं दिखाई देती है तो पुलिस मुख्यालय से जिला स्तर पर एक बड़ा फेरबदल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
गृहमंत्री वी/एस डीजीपी
छत्तीसगढ़ जैसे नक्सली प्रभावित जिले में प्रदेश के सबसे पुराने और अनुभवी आदिवासी नेता तथा गृहमंत्री ननकीराम कंवर और डीजीपी विश्वरंजन के बीच शुरू से ही पटरी नहीं बैठ रही है। जबकि दोनों के बीच जनरेशन गेप भी नहीं है। गृहमंत्री सीधे-सादे हैं लाग लपेट से दूर हैं। अनुभवी हैं, तो डीजीपी भी अनुभवी हैं, कवि हृदय है साहित्यकार हैं, पर वे कुछ चापलूस किस्म के लोगों से घिर गये हैं। वे कब छुट्टïी पर जाते हैं कहां जाते हैं इसकी जानकारी भी गृहमंत्री को नहीं रहती है। कभी गृहमंत्री के निर्देशों पर अवहेलना की चर्चा होती है तो कभी उनके निर्देशों पर तबादला नहीं करने का मसला उठता है, कभी उन्हें बुलेटप्रुफ कार नहीं देने की बात उठती है। पर हाल ही में एचएम स्क्वाड को लेकर चर्चा गर्म है। गृहमंत्रालय के अनुरोध पत्र को गृहमंत्री ने खारिज कर दिया था। पर स्पेशल स्क्वॉड मुख्यमंत्री के कहने पर ही भंग कर दिया है। उन्होंने तो यह भी आपत्ति की है कि स्पेशल स्क्वॉड का नाम एचएम स्क्वॉड किसने रखा है। यह भी ठीक नहीं है। अब सवाल यह उठ रहा है कि एचएम स्क्वॉड का गठन किसने किया था, उसे भंग करने या नहीं करने का अधिकार किसको है। यदि गृहमंत्रालय के स्तर पर स्क्वॉड गठित किया गया था तो उसके लिये बल, वाहन आदि तो डीजीपी साहब ने ही उपलब्ध कराया होगा। उस समय उन्होंने क्यों मना नहीं किया था? यदि जिला पुलिस बल की कार्यप्रणाली से डीजीपी संतुष्टï हैं तो लगभग सभी बड़े जिलों में क्राइम स्क्वॉड के गठन की क्यों जरूरत पड़ी?
दरअसल यह पूरा झगड़ा गृहमंत्री और डीजीपी के अहं का अब बन चुका है। डीजीपी द्वारा प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान (सरकार से विधिवत अनुमति ली गई है या नहीं पता नहीं)
के गठन, राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक रहे विनोद चौबे की नक्सलियों द्वारा हत्या, डीजीपी उस समय संस्थान के कार्यक्रम में व्यस्त रहने पर गृहमंत्री ननकीराम कंवर द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद से दूरियां और बढ़ गई है। गृहमंत्री के नोटिस का हालांकि अभी डीजीपी की तरफ से जवाब नहीं आया है पर गृहमंत्री और डीजीपी के बीच की बढ़ती दूरियों से प्रदेश के अफसर भी अलग-अलग लामबंद होना शुरू हो गये हैं। कुल मिलाकर डा. रमनसिंह को मध्यस्थता का कोई बड़ा रास्ता मिकालना होगा। वैसे यह भी चर्चा है कि पुलिस अधिकारियों की जिला स्तर पर पदस्थापना मुख्यमंत्री के आसपास रहने वाले कुछ नौकरशाहों की पसंद-नापसंद पर आजकल अधिक निर्भर कर रहा है तभी तो बिलासपुर संभाग में एक प्रभारी मंत्री की इच्छा के विरूद्ध एक बड़े पुलिस अफसर की पदस्थापना की गई है।
अधिक पुस्तकें छपी तो कैसे?
बच्चों को मुफ्त बांटी जाने वाली पाठ्यपुस्तकें कबाड़ी के गोदाम में रद्दी के भाव में बेची गई आनन-फानन में पापुनि के महाप्रबंधक सुभाष मिश्रा सक्रिय हो गये, स्कूल प्रबंधन को दोषी ठहरा दिया। स्कूली शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने नाराजगी जाहिर की, अनाधिकृत बिक्री करने वालों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिये तथा वितरण से बची पुस्तकें पापुनि को लौटाने के भी निर्देश दिये। स्कूली शिक्षा विभाग में नये नये प्रमुख सचिव बने एम.के. राऊत ने भी आवश्यक निर्देश दिये। उन्होंने आगामी शिक्षा सत्र में छात्रों की वास्तविक संख्या के आधार पर ही पुस्तकें उपलब्ध कराने का भी भरोसा दिलाया। अब कुछ सवाल उठ रहे हैं कि वास्तविक छात्र संख्या से अधिक पुस्तकें प्रकाशित करने दोषी कौन है, स्कूलों में डाक से पापुनि ने पाठ्यपुस्तकें भेजी थी जाहिर है कि स्कूलों में मांग के अनुसार ही पुस्तकें भेजी गई होगी तो अधिक पुस्तकें कैसे पहुंची, फिर पुस्तकें यदि रद्दीवाले के गोदाम में पहुंची तो उस शाला के छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई है, यदि उन्हें पुस्तकें नहीं मिली तो बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा। पापुनि के महाप्रबंधक सुभाष मिश्र स्कूल प्रबंधक पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं तो एक स्कूल के पास 10 लाख की पुस्तकें कहां से पहुंची। वैसे पापुनि की स्थिति तो तभी साफ हो सकती है जब वह पिछले 3-4 साल में कागज की खरीदी और प्रकाशित पुस्तकों की संख्या सार्वजनिक करें। यही नहीं पिछले 3-4 सालों में दर्ज छात्र संख्या भी सार्वजनिक करना जरूरी है। वैसे 40 हजार महीने के किराये के मकान पर चल रहे कार्यालय को करीब 2 लाख मासिक के किराये पर लेने की क्या जरूरत थी यह भी स्पष्टï करना जरूरी है पापुनि के पूूर्व अध्यक्ष इकबाल अहमद रिजवी तो पापुनि के पिछले 5 साल के जमा खर्च की स्पेशल आडिट किसी विशेषज्ञ से कराने का अनुरोध भी शालेय शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल से कर रहे हैं।
और अब बस
(1) छत्तीसगढ़ के एक आईएएस अफसर को मलाईदार पद जाने का अफसोस है। यदि बिहार में नई सरकार के शपथग्रहण तक फेरबदल नहीं होता तो उनका मलाईदार पद नहीं जाता।
(2)
डा. रमन सिंह ने पुलिस मुख्यालय जाकर अफसरों की जमकर क्लास ली। इससे हाल ही में पुलिस मुख्यालय से हटाये गये एक अफसर काफी खुश है।
Thursday, December 9, 2010
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bahut accha laga padkar.........aapki dhar gajab ki hai.............
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