Sunday, December 26, 2010
अपना चेहरा न बदला गया,
आइने से खफा हो गये,
बेवफा तो न वो थे न हम
यूं हुआ बस जुदा हो गये
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह निश्चित ही भाग्य के धनी है तभी तो नगरपालिका में एक पार्षद से सार्वजनिक जीवन की राजनीति शुरू करने के बाद विधायक, सांसद होकर केन्द्र में मंत्री बन गये थे और छत्तीसगढ़ राज्य में एक पूरा कार्यकाल समाप्त कर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर एक रिकार्ड बनाने अग्रसर हैं। उनके साथ सबसे अच्छी बात तो यह है कि उनकी छवि अच्छे राजनेता की है। वहीं विवादों से दूर रहने के अलावा उनमें एक अच्छा गुण यह है कि वे कम से कम बात करते हैं। वहीं राजनीति में 'बदले की भावनाÓ से कार्य करना उनकी आदत नहीं है जैसा अक्सर राजनेताओं में देखा जाता है। बहरहाल राजनीतिक पार्टी में अदने से कार्यकर्ता के रूप में शामिल होकर उन्होंने मुख्यमंत्री तक का सफर पूरा किया है। यह एक उदाहरण दें सकता है। वैसे उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को राजनांदगांव लोकसभा में पराजित किया था और उसी के फलस्वरूप उन्हें केन्द्र में मंत्री बनाया गया था। 2003 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले विधानसभा चुनाव में उन्हें मंत्री पद छोड़कर छत्तीसगढ़ जैसे तत्कालीन कांगे्रस के गढ़ में सरकार बनाने की बात सपना देखने जैसी थी पर यह चुनौती उन्होंने स्वीकार की और उसी चुनौती में सफल होने के कारण वे लगातार दूसरी बार भी मुख्यमंत्री बने हैं। वैसे डॉ. रमन सिंह के साथ एक बात अच्छी है कि उन्हें उनकी ही पार्टी से चुनौती खुलकर नहीं मिल रही है। छत्तीसगढ़ के पितृ पुरुष लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर फिर वापसी से उन्होंने अपने पार्टी विरोधियों को यह तो समझाने में सफल रहे कि वे कड़े निर्णय लेने में भी पीछे नहीं हैं। उनके पहले कार्यकाल में उनके विरोध में आदिवासी एक्सप्रेस चली थी पर उसमें शामिल बड़े नेता आजकल प्रदेश की राजनीति से ही बाहर है। उस समय तो यह कहा जाता था कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रदेश के 'सिंहÓ को बचा लिया पर उनके हटते ही नीतिन गडकरी भाजपा अध्यक्ष बने और सुषमा स्वराज लोस में नेता प्रतिपक्ष बनी तब प्रदेश में बड़े फेरबदल की उम्मीद असंतुष्टï नेता कर रहे थे पर जिस तरह सार्वजनिक मंचों सहित पार्टी फोरम में भाजपा के बड़े नेताओं ने डॉ. रमन सिंह की पीठ थपथपाई उससे कइयों के मंसूबों में पानी फेर दिया है।
क्यों जुदा हो गये?
बहरहाल प्रदेश के कद्दावर भाजपा नेता रमेश बैस और डॉ. रमन सिंह के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं यह जगजाहिर है। एक भाजपा के नेता का कहना है कि दोनों में कई समानताएं हैं फिर भी दोनों की विचारधारा क्यों नहीं मिलती है यह समझ से परे हैं। दोनों का नाम 'रÓ से रमेश बैस, रमन सिंह हैं दोनों ने पार्षद का चुनाव जीतकर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया है, दोनों पहले विधायक बने, बैस पहले विधायक मंदिर हसौद से बने थे तो डॉ. रमन सिंह कवर्धा से चुने गये थे। दोनों सांसद रह चुके हैं, दोनों केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो चुके हैं। दोनों ने पूर्व मुख्यमंत्री को हटाया है। डॉ. रमन सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को पराजित किया था तो रमेश बैस ने पं. श्यामाचरण शुक्ल को पराजित किया था। एक बात दोनों में और भी कामन है दोनों 'डेरी हत्थाÓ है यानी बांये हाथ से लिखते हैं। वैसे दोनों में एक असमानता यह है कि रमेश बैस का पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से याराना है तो डॉ. रमन सिं का 36का आंकड़ा है। डॉ. रमन सिंह के पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से काफी अच्छे संबंध है तो रमेश बैस से उनका 36 का आंकड़ा है।
कांगे्रस की अपनी लड़ाई!
छत्तीसगढ़ में भाजपा के फलने-फूलने का बहुत बड़ा कारण 'कांगे्रसÓ ही है। देश की सबसे 125 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी कांगे्रस की हालत छत्तीसगढ़ में किसी से छिपी नहीं है। यहां के बड़े कांगे्रसी नेताओं की उच्च महत्वाकांक्षा तथा अहं की लड़ाई के कारण कांगे्रस दिनों दिन रसातल में मिलती जा रही है। कभी छत्तीसगढ़ से विजयी कांगे्रस के विधायकों की संख्या के आधार पर अविभाजित मध्यप्रदेश में कांगे्रस की सरकार बनती थी पर अब इसी छत्तीसगढ़ में कांगे्रस की हालत पर तरस ही आ रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ में कांगे्रस के कुछ नेता देश में जाने-पहचाने जाते हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा वर्तमान में कांगे्रस के राष्टï्रीय सचिव मोतीलाल वोरा भी एक बड़ा नाम है। आदिवासी नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व गृहमंत्री, सांसद डॉ. चरण दास महंत, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में लम्बे समय तक गृहमंत्री रहे नंदकुमार पटेल, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू सभी बड़े नाम है। कांगे्रस के संगठन तथा सत्ता में कभी बड़ा दखल रखने वाले स्वरूपचंद जैने भी जाना पहचाना नाम है। कांगे्रस में कुछ और बड़े और जाने पहचाने नाम है पर उन्हें वह तवज्जो नहीं दी जा रही है। वहीं हाल-फिलहाल किसी नेता का पिछलग्गू बनकर संगठन में पद हासिल करने वालों की तूती बोल रही है और यही लोग टिकट वितरण करते हैं और चुनाव परिणाम साबित भी करता है कि टिकट वितरण में भेदभाव हुआ था। बहरहाल देश की सबसे पुरानी कांगे्रस पार्टी में बड़े नेताओं में एका नहीं है।धनेंद्र साहू जैसे अध्यक्ष से किसी बड़े नेता के खिलाफ कार्यवाही की उम्मीद करना बेकार है। अनुशासनहीनता और भीतरघात आम बात है। कभी नारायण सामी जैसे केन्द्रीय मंत्री पर कांगे्रस भवन में कालिख पोती जाती है तो कभी तिरंगा केक काटकर जगहंसाई का पात्र बनने में कोई कोताही नहीं बरती जाती है। भिलाई नगर निगम तथा बीरगांव नगर पालिका के चुनाव में टिकट वितरण को लेकर जिस तरह बड़े नेताओं के मतभेद सामने आये वह किसी से छिपा नहीं है। ऐन भिलाई नगर निगम के चुनाव के समय नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे पर जिस तरह पार्टी के विधायक बदरुद्दीन कुरैशी ने गंभीर आरोप लगाये, शपथ पत्र दिया वह मामला कांगे्रस हाईकमान को प्रेषित हो चुका है। बस्तर जहां कभी कांगे्रस का गढ़ था वहां 'सलवा जुडूमÓ अभियान को लेकर आज भी कांग्रेस की एक राय नहीं बन सकी है जबकि अब तो 'सलवाजुडूमÓ की मौत होने को है। कांग्रेस प्रदेश के विपक्ष की भूमिका कैसे निभा रही है यह भी सर्वविदित है। भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है पर विपक्ष चुप है। वरिष्ठï आईएएस अफसर बीएल अग्रवाल के ठिकानों पर छापे के बाद उनका निलंबन बहाली और हाल ही में राजस्व मंडल का अध्यक्ष बनाने पर विपक्ष चुप है। पाठ्यपुस्तक निगम की पाठ्य पुस्तकें कबाड़ी के गोदाम से जप्त की जाती है, पापुनि के महाप्रबंधक निर्धारित अवधि (3 साल) पूरा का भी प्रतिनियुक्ति पर है, लाखों रुपये मासिक पर किराये में भवन लिया गया है, महापुरुषों की वितरित होने वाली पोटो में सरदार वल्लभभाई पटेल शामिल नहीं है, इंदिरा, राजीव शामिल नहीं है पर विपक्ष चुप है। प्रदेश के गृहमंत्री और डीजीपी के बीच 36 का आंकड़ा है , नक्सली अपहरण करते हैं और परिजन हैदराबाद जाकर छोडऩे की अपील करते है पर विपक्ष चुप है। नई राजधानी रायपुर में निर्माण कार्यो पर भ्रष्टï्राचार का बोलबाला है, धान खरीदी हो या सालबीज खरीदी का मामला हो विपक्ष चुप है क्यों?
डीएम की वापसी !
छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में एक अफसर थे दुर्गेश माधव अवस्थी। रायपुर जिले के आईजी सहित आईजी गुप्त वार्ता के पद पर भी कार्यरत थे। प्रदेश के कुछ मंत्रियों सहित विपक्ष के कुछ नेताओं ने उनकी लगातार शिकायत की। इसी बीच 75 सीआरपीएफ के जवानों की नक्सलियों द्वारा सामूहिक हत्या के मामले में उन्होंने अपने एक कनिष्ठï अधिकारी को बली का बकरा बनाने का प्रयास किया, सरकार ने भी ऐसा ही पक्ष रखा पर बस्तर प्रवास पर गये गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। चिदंबरम की नाराजगी के चलते ही डा. रमन सिंह को कड़ा निर्णय लेकर डीएम अवस्थी को पुलिस मुख्यालय से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा वहीं आईजी (गुप्तवार्ता) पर मुकेश गुप्ता को तैनात करना पड़ा । इधर हाल ही में डीेम अवस्थी को अब आईजी से एडीशनल डीजी पदोन्नत करने की चर्चा है। सूत्रों का कहना है कि 'सरकारÓ के निर्देश पर ही डीपीसी आयोजित की गई थी। बहरहाल डीएम अवस्थी को पुन: पुलिस मुख्यालय लाने की चर्चा है वैसे चर्चा यह भी है कि उन्हें वर्तमान पद को पदोन्नत कर पुलिस मुख्यालय से बाहर ही रखने के लिए भी कुछ मंत्री और वरिष्ठï अफसर सरकार पर दबाव बनाये हुए हैं।वैसे लोग कहते है कि अब आरोप लगाने के बाद आईएएस बाबू लाल अग्रवाल पदोन्नत हो सकते है तो कई तरह के विवादों से चर्चित डीएम अवस्थी वापस मुख्यालय क्यों नहीं आ सकते।
और अब बस
(1)
बिहार के एक नेता के 'प्रसादÓ के नाम पर पुलिस के एक आला अफसर को हटाने में सरकार असमंजस में है वैसे तो मंत्रालय स्तर पर उन्हें हटाने नोटशीट भी चल चुकी है।
(2)
उत्तर प्रदेश के एक बड़े नेता का सरकार पर फिर दबाव है कि उनके समर्थक अफसर को फिर अच्छा पद दिया जाए पर सरकार के कुछ मंत्रियों का इससे नाराज होने का खतरा बढ़ गया है।
(3)
जाय उम्मेन के बाद या नारायण सिंह या सुनील कुमार...यह चर्चा मंत्रालय में जमकर है कुछ तो दुखी है पर बहुत से अफसर परिवर्तन की वकालत भी कर रहे हैं।
(4)
छ.ग. टेनिस एसोसिएशन को स्थायी सदस्य की मान्यता दिलाने में विक्रम सिंह सिसोदिया की अहम भूमिका रही। एक टिप्पणी..सरकार को कई क्षेत्रों में मान्यता दिलाने का जिम्मा अब अमनसिंह के पास है इसलिए विक्रम सिंह अब खेलकूद में व्यस्त हैं?
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nice post ................this is the only post which gives the recent political and social scenario of our state c.g.
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