आइना ए छत्तीसगढ़
दामन है तार-तार मुझे कुछ पता नहीं
कब आ गई बहार मुझे कुछ पता नहीं
दिल क्यों है बेकरार मुझे कुछ पता नहीं
किस का है इंतजार मुझे कुछ पता नहीं
छत्तीसगढ़ के 10 साल पूरे हो चुके हैं। भाजपा की सरकार बनाकर अपना 7 साल का बतौर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पूरा कर रिकार्ड बना चुके हैं। लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरा कार्यकाल का भी 2 साल पूरा करने वाले डॉ. रमन सिंह देश के भाजपा मुख्यमंत्रियों में अब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे नंबर पर जगह बना चुके हैं। हालांकि पूर्व उपराष्टï्रपति स्व. भैरोसिंह शेखावत 3 बार मुख्यमंत्री बन चुके थे पर उन्हें कभी भी 5 साल तक मुख्यमंत्री रहने का सौभाग्य नहीं मिला था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने हाल ही में अपना पांच साल पूरा किया है पर उनके लिये उन्हें 2 पारी खेलनी पड़ी है। 2003 के विधानसभा में करीब 3 साल तथा 2008 की विधानसभा के बाद उन्हें 2 साल बतौर मुख्यमंत्री काम करने का अवसर मिला है। डॉ.रमन सिंह का पहला पांच-पांच साल समझने में ही लगा पर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके आसपास के लाग ही कहते हैं कि अब वे पहले के डॉ. रमन सिंह नहीं रहे वे अब मुख्यमंत्री बन चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी कार्यप्रणाली तथा भले आदमी की छवि का लाभ पार्टी को भी मिल रहा है। उनके बारे में यही कहा जाता है कि नौकरशाही के चलते काम रुक जरूर जाते हैं पर डॉ. रमन सिंह किसी के खिलाफ बदले की भावना से काम नहीं करते हैं जैसा कि आम राजनीतिज्ञों की आदत होती है। बहरहाल डॉ. रमन सिंह ने अपने सात साल बतौर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में पूरे कर लिये हैं। पर अफसरों पर सवारी करने पर सफल नहीं हो सके हैं। आज भी प्रदेश में नौकरशाही भारी साबित हो रही है। सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि मुख्यमंत्री के आसपास ही रहने वाले अफसर मुख्यमंत्री को आम जनता से दूर ही कर रहे हैं। डाक्टर साहब के निर्देश का भी ये अफसर पालन करने में रुचि नहीं लेते हैं। असल में सीएम हाऊस सहित सचिवालय में पदस्थ अफसर जनता और सीएम के बीच पुल का काम करना चाहिये पर ऐसा होता नहीं है। यह भी तो नहीं देखा जा रहा है कि मुख्यमंत्री के निर्देशों का 'फालोअपÓ हो रहा है या नहीं। वैसे डॉ. रमन सिंह के पास अमन सिंह, विक्रम सिंह सिसोदिया के बाद एक और 'सिंहÓ सुबोध सिंह भी पहुंच गये हैं पर तीनों 'सिंहोंÓ में एका कई बार नहीं है यह स्पष्टï हो चुका है। सीएम सचिवालय में एक निजी सचिव ओ पी गुप्ता भी है उसके बारे में तो कुछ मंत्री, सांसद सहित अफसर भी शिकायत कर चुके हैं कि वह तो ऐसे निर्देश फोन पर देता है मानों वहीं मुख्यमंत्री हो?
गुटबाजी और अहं की लड़ाई !
छत्तीसगढ़ 10 साल पूरे कर चुका है और ग्यारहवें साल की तरफ अग्रसर है पर प्रदेश में आपसी गुटबाजी और अहं की लड़ाई भी अनवरत जारी है। भारतीय जनता पार्टी की सत्तासीन सरकार की बात हो या प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस की बात हो या अफसरों की चर्चा करें खुलकर या लुकाछिपी में शह और मात का खेल जारी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उन्हीं की नाम राशि वाले रमेश बैस के बीच 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। शुक्ल बंधुओं को पराजित कर प्रदेश के सबसे वरिष्ठï सांसद बैस को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने से किसने रोका यह सर्वविदित है। डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल के वरिष्ठï सदस्य बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत के बीच भी 36 का आंकड़ा है। कमल विहार को लेकर दोनों के बीच कडु़वाहट तो मंत्रिमंडल की बैठक में सार्वजनिक हो चुका है। कृषिमंत्री चंद्रशेखर साहू तथा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के बीच भी 36 का आंकड़ा है। खेल मंत्री लता उसेंडी और पूर्व मंत्री रेणुकासिंह के बीच भी जमकर ठनी है। मुख्यमंत्री सचिवालय को संविदा नियुक्ति में पदस्थ अमन सिंह और ओएसडी विक्रम सिंह सिसोदिया के संबंध भी अच्छे नहीं रहे हैं। गृहमंत्री ननकीराम कंवर और डीजीपी विश्वरंजन के बीच तो भारी कटुता है। जहां तक विश्वरंजन का सवाल है तो छत्तीसगढ़ के अधिकांश मंत्री उनके व्यवहार और कार्यप्रणाली से असंतुष्टï हैं। वहीं उनके समकक्ष 2 डीजी संतकुमार पासवान और अनिल एम नवानी से उनके संबंध मधुर नहीं है। आर्थिक अपराध शाखा के आईजी डी एम अवस्थी के तो अधिकांश मंत्रियों सहित आईएएस, आईपीएस अफसरों से संबंध ठीक नहीं हैं। उन्हें अभी एडीजी पदोन्नति की चर्चा ही है और लोग उनके मुख्यालय में नहीं आने के लिए प्रयास तेज कर चुके हैं।
राजधानी की महापौर किरणमयी नायक और निगम कमिश्नर ओपी चौधरी के बीच तो 36 का आंकड़ा है वहीं महापौर सभापति के बीच भी मधुर संबंध नहीं है इसका खामियाजा रायपुर की जनता भुगत रही है वैसे अब महापौर का संबंध अपनी ही पार्टी के प्रमुख नेताओं से भी अच्छे नहीं रह गये हैं। कभी उन्हें अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, डॉ. चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा का करीबी माना जाता था पर आजकल महापौर ने ही उनसे दूरियां बढ़ा ली है ऐसा कांगे्रसी ही कहते हैं।
कांगे्रस पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल में 36 का आंकड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में अरूण वोरा को दत्तक पुत्र बताने वाले जोगी से आजकल मोतीलाल वोरा फिर दूर हो गये हैं। डॉ. चरणदास महंत तो हाल ही में नगरीय निकाय चुनाव की बैठक में अजीत जोगी से 'हमने आपको नहीं बुलाया थाÓ यह कहकर अपनी कडुवाहट सार्वजनिक कर चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे अभी भी जोगी खेमे के विधायकों के आज भी विधानसभा में नेता नहीं मानेे जाते हैं। हाल ही में तो विधायक बदरूद्दीन कुरैशी ने उन पर आर्थिक अनियमितता के गंभीर आरोप लगाकर शपथ पत्र में शिकायत कर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वैसे डॉ. रमन सिंह ने रविन्द्र चौबे के मधुर संबंधों की चर्चा अब तो आम कांगे्रसी भी करने लगा है।
तिरंगा केक
कभी छत्तीसगढ़ से जीतने वाले कांगे्रसी विधायकों की संख्या के आधार पर ही अविभाजित मध्यप्रदेश में सरकार बनती थी उसी छत्तीसगढ़ में पृथक राज्य बनने के बाद कांगे्रस की स्थिति दिनोंदिन सोचनीय होती जा रही है वहीं भाजपा फलती-फूलती जा रही है। कांगे्रस की हालत यह है कि वह विधानसभा हो या आम जनता के बीच कहीं भी भाजपा पर निशाना लगाने में सफल नहीं हो पा रही है। भाजपा की सरकार बनने के बाद विपक्षी दल कांगे्रस के पास कई मुद्दे हैं। भ्रष्टïाचार, प्रदेश के खनिज संसाधनों का अत्याधिक दोहन, स्वास्थ्य समस्या, केन्द्र के पैसों का दुरुपयोग, कानून व्यवस्था, कई मुद्दे हैं पर विपक्ष उसे दमदार तरीके से उठाने में न जाने क्यों असफल ही साबित हो रहा है। दरअसल कांगे्रस को अपनों से ही लडऩे से फुर्रसत नहीं मिल रही है। वहीं आये दिन कांगे्रस, सत्ताधारी दल को नये-नये मुद्दे परोस रही है।
देश की सबसे पुरानी कांगे्रस पार्टी में आखिर छत्तीसगढ़ में हो क्या रहा है। कभी इन्हीं की पार्टी के कुछ लोग केन्द्रीय मंत्री तथा प्रदेश प्रभारी नारायण सामी पर कालिख फेंकते हैं और संगठन में काबिज नेता 'एक बड़े नेताÓ की शिकायत आलाकमान से करता है। महापौर किरणमयी नायक सामान्य सभा के बहिष्कार की चेतावनी देती हैं और उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष का पत्र आ जाता है कि सामान्य सभा में शामिल हों। कांगे्रस के पार्षद निर्दलीय पार्षद के पक्ष में मतदान करते हैं? अधिक संख्या में कांगे्रस के पार्षद बनने के बाद भी निगम में भाजपा का सभापति बन जाता है?
खैर हाल ही में सोनिया गांधी के जन्मदिन पर 'तिरंगा केकÓ भी अब जमकर चर्चा में है। इस विषय में तो अब कांगे्रस के महासचिव (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यकाल के) सुभाष शर्मा और जिला कांगे्रस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल के खिलाफ पुलिस ने राष्टï्रीय ध्वज का अपमान के मामले में जुर्म कायम कर लिया है। यह गैर जमानती मामला है अब भले ही सुभाष शर्मा कहें कि मैंने तो केवल केक काटा है किसने बनाया था मुझे पता नहीं है। धाड़ीवाल कह रहे हैं कि केक का रंग तिरंगे से अलग था बीच में चक्र में डंडिया कम थी। बहरलाल यह बताना भी जरूरी है कि धाड़ीवाल तो पेशें से वकील हैं और सुभाष शर्मा ने भी एलएलबी किया है फिर सुंदरनगर गृहनिर्माण सोसायटी के बतौर संस्थापक रहकर उन्होंने इतनी अधिक लड़ाई कोर्ट में लड़ी है कि उन्हें देश के कानून का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो गया है। वैसे पुलिस दोनों नेताओं के अलावा उस कार्यक्रम में उपस्थित अन्य नेताओं, केक बनाने आदेश देने वाले व्यक्ति, केक बनाने वाले बेकरी मालिक पर भी कार्यवाहीं करने के मूड में हैं।
और अब बस
(1)
खेलमंत्री लता उसेंडी कहती हैं कि हमारी सरकार ने खेल बजट में 40 गुना वृद्घि कर दी है। भाजपा सरकार में 'बजटÓ बढऩे पर ही तो खेलने का मौका मिल रहा है इसीलिए तो कई कांगे्रसी दुखी हैं।
(2)
छत्तीसगढ़ के एक अफसर की पत्नी को 40 हजार रुपए मासिक मिल रहा है उनका काम ग्रामीणों को शौचालय जाने प्रेरित करना ही है।
(3)
कभी संगठन प्रभारी रहे एक बड़े भाजपा नेता की पत्नी के एनजीओ को प्रदेश सरकार ने एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें बच्चों की सेहत का जिम्मा सौंपा गया है।
Monday, December 13, 2010
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