Tuesday, March 19, 2013

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां छोड के जाने को कहा जाता है
पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

छत्तीसगढ़ में भाजपा की राज्य सरकार आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये आरक्षण को लेकर परेशान है तो कांग्रेस इन वर्ग के असंतोष को लेकर हवाई किला बनाकर अपनी सरकार निश्चित बनने का भ्रम पाल बैठी है। एक बार जरूर है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार कारण होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जाति वर्ग की राजनीति अपने पूरे शबाब में है। आदिवासी, सतनामी तथा पिछड़ा वर्ग के लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग ने चारामा से राजधानी तक पदयात्रा निकालकर सरकारी नौकरी में 14 की जगह 27 फीसदी आरक्षण की मांग की वही अपनी आबादी 51 फीसदी होने का दावा करते हुये 51 फीसदी  विधानसभा, लोकसभा की सीट की मांग कर डाली है। वही सरकार के करीब 6 माह पूर्व ही एससी वर्ग के आरक्षण 16 फीसदी के स्थान पर कटौती करके 12 प्रतिशत कर दिया है इससे सतनामी समाज आक्रोशित है। इधर आदिवासियों का आरक्षण 28 फीसदी के स्थान पर 32 फीसदी तक दिया है पर इससे आदिवासी समाज भी खुश नहीं है क्योंकि न्यायालय से क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है। सतनामी, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी करने मे प्रदेश की भाजपा सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता रमेश बैस भाजपा के प्रमुख आधार स्तंभ है। छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ सांसद होने के साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, चन्द्रशेखर साहू भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है पर हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। रमेश बैस और डा. रमन सिंह के बीच का तनाव जगजाहिर है।
इधर सतनामी समाज को मनाने के लिये भाजपा के पास सतनामी समाज के गुरू गद्दीनशीन विजय गुरू है तो पुन्नुलाल मोहिले जैसे पुराने नेता भी है पर सतनामी समाज इनके समझाने से और भी बिगड़ रहा है, राज्य सरकार ने राज्यसभा में भी भूषण लाल जांगड़े को भेजा है पर असर नहीं हो रहा है वैसे भाजपा के एक नेता कहते है कि हमे सतनामी समाज का मत मिलता ही कहा था। सवाल यह उठ रहा है कि सतनामी समाज का मत भाजपा को मिलता था या नहीं यह बात और है पर सतनामी समाज खुलकर सरकार का विरोध तो नहीं करता था इस बार तो सतनामी समाज का बड़ा हिस्सा आरक्षण में कटौती पर सरकार से नाखुश है।
बात आदिवासी समाज की है तो वह भी सरकार से कम से कम खुश तो नहीं है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ा पर सलवा जुडुम अभियान, नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी, कई गांव खाली करने, उद्योगों के लिये आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण आदि कई मुद्दे ऐसे है जिससे आदिवासी वर्ग भी नाखुश है। भाजपा के पास नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर, शिवप्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेता है पर इनकी सरकार के प्रति नाराजगी भी कभी कभी दिखाई दे जाती है बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद उनका स्थान रिक्त है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सांसद दिनेश कश्यप भी मिलकर बलीदादा की जगह नहीं भर सकते है। वैसे कांग्रेस असंतोष से खुश है और नाराजगी को कांग्रेस की तरफ मतों में तब्दील करने प्रयासरत है।
मनमोहन के मुंह में छग डाला
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनसंपर्क विभाग में प्रयोग दर प्रयोग किया जा रहा है। किसी भी आईएएस को जनसंपर्क संचालनालय का मुखिया बना दिया जाता है और उसे अन्य कामों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और वह अफसर जनसंपर्क को (पार्ट-टाईम) की तरह ही समझता है। वर्तमान में पदस्थ संचालक जनसंपर्क सोनमणी बोरा  जमीन, मकान के काम में इतने उलझे है कि उन्हें जनसंपर्क विभाग के लिये समय निकालना कठिन हो जाता है। राज्य के मुखिया जब नये जिलों की स्थापना के समारोह में जा रहे थे तब संचालक को जनसंपर्क कार्यालय जाने का समय नहीं मिला था। प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकारों को डा. रमन सिंह ने सम्मानित किया पर संचालक ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा, एक बड़े समाचार पत्र के विमोचन समारोह में जाने का समय संचालक को नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि जनसंपर्क कार्यालय जाने वाले पत्रकारों को छोड़कर वे अन्य पत्रकारों को ठीक से पहचानते भी नहीं है। उनके कार्यालय में नियमित नहीं आने से वहां की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है यह तय है। वैसे तो सूत्र कहते हैं कि वे जनसंपर्क में रहने में रूचि नहीं रखते है यह भी चर्चा है कि राज्य सरकार उन्हें जनसंपर्क में रखने भी अब तैयार नहीं है बहरहाल किसी पड़ोसी जिले का कलेक्टर बनाने की भी चर्चा है। वैसे प्रजातंत्र के चौथे पाये से संबंधित विभाग में सरकार कब तक नये-नये प्रयोग करेगी यह समझ से परे है। वैसे प्रदेश की संवेदनशील सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह जनसंपर्क विभाग के मुखिया है और उन्हें अब निर्णय लेना है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ का नाम भी नहीं लिया और राज्य के मीडिया में खबर आई कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य है-प्रधानमंत्री
केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री जरूर आकर छत्तीसगढ़ की तारीफ करते थे। लेकिन ताजा मामला प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 8 मार्च को एक विज्ञप्ति जारी करते हुये आंकड़ों के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ की तारीफ करते हुये उसे देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य बताया है जबकि हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री ने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि- देश के नक्शे पर 26 वें राज्य के रूप में सिर्फ 12 साल पहले अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ के विकास की राह पर जिस तेजी से कदम बढ़ाये है आज प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी उसकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के जवाब में कहा कि देश के बिमारू कहे जाने वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति की है। उन्होंने लिखित भाषण में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाले राज्य के रूप में पहचाना जा रहा है।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम ही नहीं लिया है। राज्यसभा की वेबसाईट पर मौजूद प्रधानमंत्री के भाषण में जब छत्तीसगढ़ को तलाशने की कोशिश की गई तो इस खबर की सच्चाई सामने आई।
चंपू से भोंदू भारी!
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री सांसद चंद्रशेखर साहू ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर थाने में दर्ज- गैर जमानती (एफआईआर) को रद्द कराने पत्र भेजा है। आरोपी सरपंच ईश्वरी बाई साहू पर बलवा और आगजनी जैसे संगीन मामले है। 6 अक्टूबर 12 को भेजे गए पत्र पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। वही भाजपा के एक नेता अब्दुल अजीम भोंदू के खिलाफ जेल में बंद होने के दौरान ही धारा 307 हटा दी गई और वह जेल से जमानत पर रिहा हो गया।
निरीक्षक स्तर के दो अफसरों ने वारंट तामिली के दौरान हुई हमले पर खुद रिपोर्ट लिखाई थी कि उन पर जानलेवा हमला हुआ था। थाना निरीक्षक उमेश मिश्रा और थाना निरीक्षक आर.के. दुबे की रिपोर्ट पर थाने में हमलावारों के खिलाफ 147,148,149,186, 353,332, 307, 209 तथा 506 वी के तहत जुर्म कायम हुआ था। इसी के बाद कुछ भाजपा नेताओं सहित समाज ने दबाव बनाया था और उसके बाद अफसर कर्मियों से मारपीट के मामले में धारा 307 हटा दी गई। सूत्र कहते हैं कि अधिकारियों के डाक्टरी मुलाहिजा में गंभीर चोट नहीं पाई गई इसलिये धारा 307 हटाई गई है। सवाल यह है कि रिपोर्ट लिखने वाले और गलत धारा लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई? खैर चम्पू भैय्या से तो भोंदू भाई ही भारी निकले है।
और अब बस...
0 बस्तर के तोकापाल तहसील में एक अरब 22 करोड़ 62 लाख का वृक्षारोपण एनजीओ, वन,कृषि उद्यान विभाग द्वारा कराया गया। मनरेगा के तहत वृक्षारोपण वास्तविक क्षेत्र से अधिक भूमि में कैसे कराया गया है यह जांच का विषय है
0 राज्य सरकार के मुखिया के करीब दिखाई देने वाले एक सेवानिवृत्त अफसर आजकल मिलने-जुलनेवालों से जल्दी दिल्ली में स्थायी तौर पर जाने की बात करने लगे है।
0 बसपा विधायक दूजराम बौद्ध ने वेतनभत्ता कम होने पर बीपीएल कार्ड की मांग सदन में कर डाली। डा. रमन सिंह ने कैबिनेट की बैठक लेकर  सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर लिया। इसे कहते है संवेदनशील मुख्यमंत्री।

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