Tuesday, February 19, 2013

बूढ़ा दरख्त कांप के खामोश हो गया
पत्ते हवा के साथ बहुत दूर चले गये

छत्तीसगढ़ में भी आगामी विधानसभा चुनाव के लिये शह और मात का खेल शुरू हो गया है। भाजपा सरकार के मुखिया और बतौर मुख्यमंत्री अपनी दूसरी पारी का समापन कर तीसरी पार्टी में सत्तासीन होने की पुरजोर कोशिश डा. रमन सिंह ने शुरू कर दी है। वे जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी व्हाया बस्तर होकर ही आती है। आदिवासी अंचल बस्तर की 11 विधानसभाओं में 10 पर भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस के कवासी लखमा अकेले बस्तर अंचल में कांग्रेस का झंडा लेकर खड़े हैं। छ.ग. के नेता प्रतिपक्ष रहे महेन्द्र कर्मा पिछले विस चुनाव में पराजित हो गये और वे यह भी मानते हैं कि डा. रमन सिंह सरकार में बिना विभाग के मंत्री के रूप में बनी उनकी छवि उन्हें नुकसान भोगना पड़ा यही नहीं उन्हें निपटाने में डा. रमन सिंह की भी अहम् भूमिका रही। बहरहाल राजनीतिक जानकर कहते हैं कि बस्तर में 11 विस में 10 में भाजपा का कब्जा चरम पर है जाहिर 11 में 11 विस में भाजपा का कब्जा रह नहीं सकता है कांग्रेस की कुछ सीटें बढ़ेंगी तो भाजपा की कम होंगी यह लगभग तय है। सलवा जुडूम अभियान के चलते गांव छोड़कर इधर-उधर बसे आदिवासी, नक्सलियों तथा सुरक्षा बल की ज्यादती के शिकार आदिवासी, कारपोरेट क्षेत्र के लोगों को सरकारी मदद से अपनी जल, जंगल और जमीन से जबरिया हटाए जा रहे हैं आदिवासी सरकार से कुछ नाराज बताये जा रहे हैं। हाल ही में बस्तर में कई स्थानों पर कांग्रेस की रैलियों में आदिवासियों की उपस्थिति ने भाजपा के कान खड़े कर दिये हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अचानक बस्तर के आदिवासियों के बीच मतदान की प्रेरणा, मतदान बढ़ने का कारण, राजधानी रायपुर से अधिक आदिवासी अंचल बस्तर में मतदान पर भी कांग्रेस की अब नजर रहेगी। यह ठीक है कि राजनाथ सिंह के पुन: भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से सौदान सिंह, रामप्रताप सिंह, डा. रमन सिंह की तिकड़ी को ताकत मिली है पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में उनकी पार्टी के 18 विधायक कुछ मंत्री भी की पराजय रिपोर्ट में डा. रमन सिंह कुछ सतर्क हुए है। उन्होंने जीतने वाले प्रत्याशियों की टोह लेना भी शुरू कर दिया है। सौदान सिंह ने तो पहले ही अपना दौरा करने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। सूत्र कहते हैं कि जिस तरह पिछले विस चुनाव में कुछ सिटिंग एमएलए की टिकट कटी थी वैसा इस बार भी होगा बरहाल आदिवासियों को रिझाने में डा. रमन सिंह लगे है। सतनामी समाज तो वैसे भी कांग्रेस का परम्परागत मतदाता है, हाल ही में सतनामी समाज की आरक्षण प्रतिशत कम करने से भी समाज का बड़ा हिस्सा नाराज है। भाजपा के पास मंत्री पुन्नुलाल मोहिला, गुरूगद्दीनसीन विजयकुमार गुरू, राज्यसभा सदस्य भूषण जांगड़े इसी समाज से है पर उनका जनाधार कितना है यह किसी से छिपा नहीं है वैसे डा. रमन सिंह के कार्यकाल में अफसरशाही भारी है इसीलिये पार्टी के कुछ नेता नाराज भी बताये जाते हैं। कुछ अफसर तो सुपर सीएम की भूमिका में है।
जोगी और त्रिफला
छत्तीसगढ़ में 10 सालों से सत्ता सुख से दूर कांग्रेस नेता अब बैचेने हो गये है वे किसी भी तरह सत्तासीन होना चाहते हैं और इसके लिये आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, त्रिफला चरणदास महंत, नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे के बीच मतभेद मिटेंगे ऐसा लगता तो नहीं है। अजीत जोगी को सत्ता से उतारने में विद्यारण शुक्ल की भूमिका अहम् रही थी, उन्होंने राकांपा के बैनर तले अपने प्रत्याशी मैदान में उतारकर भाजपा को सरकार बनाने में एक तरह से मदद की यह बात और है कि बाद में भाजपा प्रत्याशी बतौर वे महासमुन्द लोकसभा से चुनाव समर में उतरे और अजीत जोगी के हाथों पराजित भी हो गये थे। वे कांग्रेस में है पर सोनिया-राहुल से काफी दूर होने के कारण वे आगामी विधानसभा चुनाव में प्रभावी भूमिका में नहीं रहेंगे। ऐसा लगता नहीं है। जहां तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का सवाल है तो युवाओं में उनकी पकड़ से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। हाल ही में युवक कांग्रेस और भाराछंस में उनके समर्थन में बड़ी संख्या में जीतकर आये हैं यदि राहुल की 40 फीसदी युवाओं को टिकट देने की योजना तय मानी जाती है तो जोगी अधिकाधिक अपने समर्थक युवाओं को टिकट दिलवाने में सफल रहेंगे वही कुछ वर्तमान में कुछ निर्वाचित विधायक उनके खास समर्थक है। रही बात त्रिफला की तो राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद दिग्विजय सिंह भारी बनकर उभरे हैं उनके मंत्रिमंडल में कभी शामिल डा. चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे और नंदकुमार पटेल के समर्थकों को वे टिकट दिलवाएंगे यह भी तय है। जहां तक मोतीलाल वोरा का सवाल है तो वे अपने पुत्र सहित 2-3 लोगों को हर बार टिकट दिलवाने में रूचि दिखाते हैं और वे इस बार भी इसमें सफल होंगे। सूत्र कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की राज्यसभा सदस्य मोहिसना किदवई के कोटे से कुछ लोग टिकट हासिल करने प्रयास करेंगे सवाल यही उठता है कि मोहिसना जी कितनी रूचि लेंगी।
नेता प्रतिपक्ष और संयोग
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष को लेकर एक संयोग बन चुका है। अभी तक के परिणाम यही बताते हैं कि नेता प्रतिपत्र अगला चुनाव जीत नहीं पाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने सम्हाली थी पर अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें मरवाही से अजीत जोगी के खिलाफ प्रत्याशी बना दिया गया और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। उस चुनाव के बाद डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे तो आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष तथा भूपेश बघेल को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। पिछले विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा तथा उपनेता भूपेश बघेल को पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार नेता प्रतिपक्ष की भूमिका रविन्द्र चौबे सम्हाल रहे हैं। देखना यह है कि वे अभी तक का रिकार्ड तोड़ते है या संयोग में अपना नाम शामिल करते हैं।
विस अध्यक्ष- उपाध्यक्ष
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अविभाजित म.प्र. के विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने यहां भी विस अध्यक्ष का पदभार सम्हाला और उपाध्यक्ष पद का दायित्व बनवारीलाल अग्रवाल ने सम्हाला था। यह बात और है कि कार्यकाल के बीच में ही उन्हें हटना पड़ा और धर्मजीत सिंह विस उपाध्यक्ष बन गये थे। छग बनने के बाद पहले विस चुनाव में राजेंद्र शुक्ल और धर्मजीत तो जीते पर भाजपा की सरकार बनी वहीं बनवारीलाल अग्रवाल को पराजय का सामना करना पड़ा। इस चुनाव के बाद प्रेमप्रकाश पांडे को अध्यक्ष बनाया गया और बद्रीधर दीवान को उपाध्यक्ष बनाया गया इसके बाद के चुनाव में प्रेमप्रकाश पांडे  चुनाव हार गये, बद्रीधर दीवान चुनाव तो जीत गये पर उन्हें विस उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया वर्तमान विधानसभा में धरमलाल कौशक अध्यक्ष तथा नारायण चंदेल उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि विस अध्यक्ष यदि विजयी होते हैं तो सरकार नहीं बनती है, वहीं उपाध्यक्ष या तो हार जाते हैं यदि विजयी होते हैं तो उन्हें उपाध्यक्ष नहीं बनाया जाता है। देखना यह है कि छत्तीसगढ़ का यह रिकार्ड धरमलाल कौशिक और नारायण चंदेल तोड़ते हैं या नहीं।
और अब बस
नये मंत्रालय भवन में एक मंत्री नियमित जाते हैं... उन्हें मंत्रालय भवन से प्रेम नहीं है असल में उनकी अगली बार चुनकर लौटने की संभावना कम है?
2
अजीत जोगी, डा. रेणु जोगी और अमित जोगी... एक ही परिवार से 3 को विधायक प्रत्याशी कांग्रेस बनाती है या नहीं यही आजकल चर्चा का विषय है। एक टिप्पणी... एक को विधायक प्रत्याशी नहीं तो लोकसभा प्रत्याशी तो बनाया ही जा सकता है।
3
पं. अमितेष शुक्ल परेशान है कि राजिम से उनके खिलाफ एक मंत्री के चुनाव लड़ने की चर्चा है, वैसे जोगी की नाराजगी तो अभी भी है ही?

No comments:

Post a Comment