सिलसिला जख्म-जख्म जारी है
ये जमीं दूर तक हमारी है
नाव कागज की छोड़ दी है मैंने
अब समंदर की जिम्मेदारी है
छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन में लोकायुक्त जस्टिस एल सी भादू की यह टिप्पणी कि 'भ्रष्टï लोकसेवकों को महत्वपूर्ण पदों से हटाना जरूरीÓ एक तरह से छत्तीसगढ़ सरकार को आइना दिखाने का ही प्रयास है। जब देश में अन्ना हजारे के अनशन के बाद 'जनलोकपालÓ बनाने की मुहिम का पूरे देश में स्वागत किया जा रहा है स्वयं मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह भी मजबूत लोकपाल के पक्षधर हैं ऐसे समय प्रतिवेदन के माध्यम से लोकायुक्त जस्टिस भादू की टिप्पणी स्वागत योग्य है। जस्टिस भादू ने राज्य सरकार के सचिवों पर गंभीर आक्षेप लगाया है। उनका कहना है कि लोकायुक्त की अनुशंसाओं को विभिन्न विभागों के सचिव गंभीरता से नहीं लेते हैं उसे डस्टबीन (कचरे की पेटी) में डाल देते हैं। ऐसा करते समय सचिवों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनुशंसा उस व्यक्ति की है जो हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस या जस्टिस रह चुका है।
उन्होंने अपने वार्षिक प्रतिवेदन में कहा है कि सिद्घांतत: किसी लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टïाचार स्थापित होने का आदेश होने पर संबंधित लोकसेवक को महत्वपूर्ण पद से हटा देना चाहिए पर वह अधिकारी महत्वपूर्ण पद पर बना रहता है और आयोग की अनुशंसा ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है।
स्क्रीन
जस्टिस भादू ने कहा है कि सरकारी अमला कब पैसा खा जाए, यह भी कह पाना कठिन है।लेकिन अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि तालाब में मछलियों की संख्या अनगिनत है और हर मछली अधिक पानी पीने को बेताब है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रष्टïाचारियों को बचाया जा रहा है।
लोकायुक्त जस्टिस भादू ने अपने प्रतिवेदन में सरकार को सुझाव दिया है कि आयोग की अनुशंसा को गंभीरता पूर्वक लेकर उसका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। यदि क्रियान्वयन नहीं करने की स्थिति पैदा होती है तो उस परिस्थिति में कम से कम 3 वरिष्ठï मंत्रियों मुख्य सचिव विभागीय प्रमुख सचिव/सचिव की कमेटी द्वारा विचार-विमर्श कर सामूहिक निर्णय लेना चाहिए। परंतु ऐसी कोई व्यवस्था शासन द्वारा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी लोकसेवक के विरुद्घ अवचार स्थापित होने का आदेश आयोग द्वारा राज्य सरकार को भेजा जाता है तो सर्वप्रथम अवचारी लोकसेवक को महत्वपूर्ण पद से हटाया जाना चाहिए। परंतु यह बात देखने में आई है कि कई मामलों में लोकसेवक के विरुद्घ अवचार स्थापित होने की अनुशंसा की गई है। वही महत्वपूर्ण अधिकारी के रूप में पदस्थ रहता है और आयोग की अनुशंसा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
क्यों नाराज हैं राजीव रंजन
छत्तीसगढ़ में एक नौकरशाह थे राजीव रंजन, उन्हें बिहार-झारखंड के एक बड़े नेता के खास होने के कारण छत्तीसगढ़ लाया गया था यहां आकर उन्हें छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल का अध्यक्ष बनाया गया और उसके बाद उनके ही अंदाज बदल गये। प्रदेश के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस ने जब उनसेे कुछ जानकारी मांगी तो उन्होंने सत्ताधारी दल भाजपा के वरिष्ठï सांसद को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने की सलाह दे दी और उसके बाद बहुत बवाल भी हुआ। उनकी शिकायत भाजपा आलाकमान तक पहुंची पर प्रदेश के मुखिया की सरपरस्ती और भाजपा गठबंधन मेें शामिल एक बड़े नेता के संरक्षण के चलते काफी समय बाद उनसे किनारा किया गया उन्हें ऊर्जा विभाग का ओएसडी बनाकर दिल्ली में अटैच किया गया फिर हालात समझकर उन्होंने खुद किनारा भी कर लिया। इस बार नीतीश कुमार की आंधी के चलते राजीव रंजन विधायक भी चुन लिये गये हैं वैसे उनका छत्तीसगढ़ का कार्यकाल चर्चा में रहा है। हाल ही में वे छत्तीसगढ़ प्रवास पर आये और रायपुर में बाकायदा पत्रकारों को बुलवाकर चर्चा की और छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के विषय में काफी कुछ कह गये, छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ भी बोल गये। सरकार के कभी काफी करीबी रहे रंजन जी का यह विष--वमन किसी के समझ में नहीं आया। बाद में पता चला कि उनका पुराना कुछ मसला बाकी था और वह ठीक नहीं होने पर उन्होंने अपना गुस्सा सरकार सहित विद्युत मंडल पर ही उतार दिया जबकि पहले वे सरकार और विद्युत मंडल के गुण गाने में नहीं अघाते थे।
शहर का कोई माई बाप नहीं
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 2 दिनों की बारिश के चलते ही कई इलाकों को जलमग्र सा कर दिया है। शहर की कई पॉश कालोनी सहित कुछ निचली बस्तियों में पानी भरने के कारण रतजगा की स्थिति बन गई थी। रायपुर शहर की कई प्रमुख सड़कों पर पानी भर गया, नालियां ओव्हरफ्लो हो गई, राजधानी का हृदय स्थल जयस्तंभ चौक काफी हाऊस के आस-पास सड़क पर पानी भर गया था, नये निगम मुख्यालय के सामने भी पानी का जमाव हो गया था। छत्तीसगढ़ के विधायकों के लिये नियत स्थान विधायक विश्राम गृह में भी इतना पानी भर गया था कि विधायकों का अपने कमरों से बाहर आकर विधानसभा सत्र में भाग लेने जाना भी समस्या हो गया था, कुछ विधायकों ने तो इसकी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष को भी की है। बहरहाल यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी का कोई माई बाप नहीं है। नगर के 2 विधायक बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री हैं। दोनों मंत्रियों में 36 का आंकड़ा है। यह किसी से छिपा नहीं है। राजेश मूणत तो नगरीय प्रशासन मंत्री भी हैं। नगर के तीसरे विधायक कुलदीप जुनेजा कांगे्रस से हैं और नगर निगम में कभी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं तो महापौर किरणमयी नायक भी कांगे्रस की हैं। कांगे्रसी पार्षदों की पर्याप्त संख्या के बाद भी सभापति संजय श्रीवास्तव (भाजपा) चुने गये हैं। निगम कमिश्नर जिस तेजी से आते-जाते रहते हैं वह भी चर्चा में है। कुल मिलाकर आपसी प्रतिद्घंद्घिता और अहम की लड़ाई के चलते राजधानी की नागरिक सुविधाएं प्रभावित हो रही है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी की महापौर डॉ. किरणमयी नायक को धार्मिक यात्राएं और सेमीनारों में भाग लेने से फुर्सत नहीं है। हाल ही में नगर के कई क्षेत्रों में 2 दिनों की अनवरत बारिश से पानी घुस गया था और महापौर को शहर में निकलने की फुर्सत नहीं थी। एक चैनल की खबर के अनुसार उन्होंने मेंहदी लगा रखी थी। इधर सत्ताधारी दल के खिलाफ राजधानी से चुने गये एक मात्र विधायक कुलदीप जुनेजा को शहर की समस्या की जगह अपने लोगों के निजी काम कराने में अधिक रुचि लेते देखाजा रहा है। सवाल फिर यही उठ रहा है कि शहर की जनता ने कांगे्रस का महापौर चुनकर क्या कोई गलती की है? शहर के अधिकांश वार्डों में सफाई व्यवस्था बदतर है। सफाई का ठेका कुछ पार्षदों ने अपने लोगों को दे रखा है, ब्राह्मïण-ठाकुर यदि सफाई ठेकेदार होंगे तो सफाई कैसे हो पाएगी, सफाई ठेका देने में भी पारदर्शिता नहीं बरती गई है जिससे आक्रोश व्याप्त है। शहर में पानी का शुल्क बढ़ा दिया गया है, नलों में मीटर लगाने की तैयारी हो रही है महापौर को शहर के भीतर बड़े काम्पलेक्सों से वसूली कर निगम की आय बढ़ाने की चिंता है पर वर्षों से लंबित भूमिगत नाली योजना पूरी कराने में रुचि नहीं है। करोड़ों की लागत से नगर निगम के भवन बनाकर वहां कार्यालय स्थानांतरित करने की चिंता है पर निगम के पुराने भवन का क्या किया जाए इस पर रुचि नहीं है। निगम प्रशासन को अपनी आय बढ़ाने की चिंता है। हाल ही में सफाई कर में वृद्घि, ठेले, छोटे-रोजगार करने वालों से कर लेने की तैयारी हो रही है पर नगर के व्यवस्थित विकास की चिंता नहीं है। कांगे्रस- भाजपा की अंदरूनी राजनीति में निगम फंस गया है और शहर की जनता इसमें सफर कर रही है। महापौर किरणमयी नायक भाजपा सरकार पर आरोप मढ देती है और भाजपा शहर की हालत के लिये महापौर को जिम्मेदार ठहरा देती है और जनता बस बयानबाजी में ही उलझकर रह गई है।
और अब बस
कांगे्रस के एक पूर्व विधायक को शहर अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की चर्चा चली पर एक बात यह उठी कि 8-9 बजे रात के बाद तो उनसे बात करना मुश्किल है ऐसे में यह प्रस्ताव स्वयमेव ही खारिज हो गया।
(2)
भाजपा विधायकों ने अपने क्षेत्र के लिये अपनी पसंद का थानेदार नियुक्त करने का अनुरोध किया है, मंत्री अपने क्षेत्र में पसंदीदा एसपी और सीएसपी, डीएसपी चाहते हैं। इसीलिये तो ननकीराम कंवर गृहमंत्री रहना नहीं चाहते हैं एक टिप्पणी...!
(3)
पूर्व डीजीपी विश्वरंजन ने अपनी छुट्टïी बढ़ा ली है, उन्होंने नया कार्यभार भी नहीं सम्हाला हैं। एक टिप्पणी... वे अनिश्चय की स्थिति में है प्रदेश में रहे या नहीं!
Thursday, September 22, 2011
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